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जागते रहने के बारे में यीशु के प्रेषितों से सीखिए

जागते रहने के बारे में यीशु के प्रेषितों से सीखिए

“मेरे साथ जागते रहो।”—मत्ती 26:38.

1-3. धरती पर यीशु की आखिरी रात को प्रेषित जागते रहने से कैसे चूक गए और यह क्यों कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी गलती से सीखा?

 ज़रा अपने मन की आँखों से ये नज़ारा देखिए। धरती पर यीशु की आखिरी रात है और वह यरूशलेम के पूर्व की ओर स्थित अपनी एक मनपसंद जगह, गतसमनी के बाग में आया है। उसके साथ उसके वफादार प्रेषित भी हैं। यीशु बहुत ही दुखी और चिंतित है। वह एकांत में परमेश्‍वर से प्रार्थना करना चाहता है।—मत्ती 26:36; यूह. 18:1, 2.

2 यीशु अपने तीन प्रेषितों पतरस, याकूब और यूहन्‍ना के साथ बाग में काफी आगे तक जाकर ठहर जाता है और उनसे कहता है: “यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।” फिर वह प्रार्थना करने चला जाता है। जब वह वापस आता है, तो देखता है कि उसके दोस्त गहरी नींद सो रहे हैं। वह उनसे फिर गुज़ारिश करता है: “जागते रहो।” इसके बावजूद, वह उन्हें दो बार और सोते हुए पाता है! उसी रात कुछ देर बाद, सभी प्रेषित आध्यात्मिक तौर पर भी जागते रहने से चूक जाते हैं जब वे यीशु को छोड़कर भाग जाते हैं!—मत्ती 26:38, 41, 56.

3 ज़ाहिर है कि बाद में प्रेषितों को जागते न रहने की अपनी गलती का एहसास हुआ। वे बहुत पछताए और उन्होंने जल्द ही अपनी गलती से सबक सीखा। प्रेषितों की किताब इस बात का सबूत देती है कि प्रेषितों ने आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने में एक बढ़िया मिसाल कायम की। इससे ज़रूर उनके मसीही भाइयों को भी जागते रहने का बढ़ावा मिला होगा। लेकिन आज हमें पहले से कहीं ज़्यादा जागते रहने की ज़रूरत है। (मत्ती 24:42) तो आइए देखें कि जागते रहने के बारे में हम प्रेषितों की किताब से कौन-से तीन सबक सीख सकते हैं।

कहाँ गवाही देनी है, इस बारे में वे सचेत रहे

4, 5. पौलुस और उसके साथियों ने कैसे पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन का अनुभव किया?

4 सबसे पहले, हम देखते हैं कि कहाँ गवाही देनी है इस बारे में मिली हिदायतों को प्रेषितों ने माना। एक ब्यौरे में हम पढ़ते हैं कि यीशु ने किस तरह यहोवा से मिली पवित्र शक्‍ति का इस्तेमाल करके प्रेषित पौलुस और उसके साथ सफर करनेवालों को मार्गदर्शन दिया। (प्रेषि. 2:33) उनका सफर बहुत अनोखा था। चलिए देखते हैं कि वे कहाँ-कहाँ गए।प्रेषितों 16:6-10 पढ़िए।

5 पौलुस, सीलास और तीमुथियुस दक्षिण में गलातिया प्रांत के लुस्त्रा शहर से निकले और कुछ दिनों बाद वे रोमी राजमार्ग पर पहुँचे। यह राजमार्ग उन्हें पश्‍चिम में एशिया ज़िले के सबसे घनी आबादीवाले इलाके में ले जाता। उन्होंने इस रास्ते पर जाने का फैसला किया क्योंकि वे वहाँ के शहरों में हज़ारों लोगों को मसीह के बारे में खुशखबरी सुनाना चाहते थे। मगर किसी बात ने उन्हें वहाँ जाने से रोका। आयत 6 में हम पढ़ते हैं: “वे फ्रूगिया और गलातिया के देश से गुज़रे, क्योंकि पवित्र शक्‍ति ने उन्हें एशिया ज़िले में वचन सुनाने से मना किया था।” हालाँकि बाइबल में साफ-साफ नहीं बताया गया है कि पवित्र शक्‍ति ने किस तरह उन्हें एशिया ज़िले में प्रचार करने से रोका, मगर उन्हें रोका ज़रूर। ज़ाहिर है कि यीशु परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के ज़रिए पौलुस और उसके साथियों को किसी और दिशा में भेजना चाहता था।

6, 7. (क) बितूनिया के करीब पहुँचने पर पौलुस और उसके साथियों के साथ क्या हुआ? (ख) चेलों ने क्या फैसला लिया और उसका क्या नतीजा हुआ?

6 तो फिर वे कहाँ गए? आयत 7 समझाती है: “इसके बाद, उन्होंने मूसिया पहुँचकर बितूनिया प्रांत में जाने की कोशिश की, मगर यीशु ने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी।” जब पौलुस और उसके साथियों को एशिया में प्रचार करने से मना कर दिया गया, तो उन्होंने उत्तर में बितूनिया के शहरों में जाकर गवाही देने की सोची। मगर जैसे ही वे बितूनिया के करीब पहुँचे, यीशु ने फिर पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उन्हें वहाँ गवाही देने से रोक दिया। इससे वे ज़रूर उलझन में पड़ गए होंगे। उन्हें यह तो मालूम था कि क्या गवाही देनी है और कैसे गवाही देनी है, मगर उन्हें यह नहीं मालूम था कि कहाँ गवाही देनी है। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने एशिया जाने के लिए दरवाज़ा खटखटाया, पर दरवाज़ा नहीं खोला गया। फिर उन्होंने बितूनिया जाने के लिए दरवाज़ा खटखटाया, पर वह भी नहीं खोला गया। तो क्या उन्होंने खटखटाना बंद कर दिया? जी नहीं, इन जोशीले प्रचारकों ने हार नहीं मानी!

7 अब उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जो शायद कुछ अजीब लगे। आयत 8 बताती है: “वे मूसिया से होकर त्रोआस शहर पहुँचे।” वे बितूनिया से पश्‍चिम की ओर चल दिए और शहर-पर-शहर पार करते चले गए। आखिर में, 563 किलोमीटर का सफर तय कर वे त्रोआस के बंदरगाह पहुँचे, जहाँ से वे मकिदुनिया जा सकते थे। अब तीसरी बार पौलुस ने दरवाज़ा खटखटाया। और इस बार यह दरवाज़ा उनके लिए खुल गया! आयत 9 बताती है कि आगे क्या हुआ: “रात के वक्‍त पौलुस को एक दर्शन दिखायी दिया। उसने देखा कि मकिदुनिया का एक आदमी खड़ा हुआ उससे यह बिनती कर रहा है: ‘इस पार मकिदुनिया आकर हमारी मदद कर।’” अब पौलुस जान गया कि उसे कहाँ प्रचार करना है। बिना देर किए, वह फौरन अपने साथियों के साथ मकिदुनिया के लिए निकल पड़ा।

8, 9. पौलुस के सफर के ब्यौरे से हम क्या सीख सकते हैं?

8 इस ब्यौरे से हम क्या सबक सीख सकते हैं? ध्यान दीजिए कि एशिया ज़िले के लिए निकलने के बाद ही परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने पौलुस को रोका। उसी तरह पौलुस और उसके साथियों के बितूनिया के करीब पहुँचने के बाद ही यीशु ने उन्हें वहाँ जाने से रोका। आखिर में जब पौलुस त्रोआस पहुँचा, उसके बाद ही यीशु ने उसे मकिदुनिया जाने के लिए कहा। मंडली का मुखिया होने के नाते यीशु आज हमें भी इसी तरह मार्गदर्शन दे सकता है। (कुलु. 1:18) मसलन, आप शायद पायनियर सेवा करने की सोच रहे हों या ऐसी जगह जाकर बसने के बारे में सोच रहे हों, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। मगर हो सकता है कि किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए कदम उठाने के बाद ही यीशु आपको परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के ज़रिए मार्गदर्शन दे। ज़रा इस उदाहरण के बारे में सोचिए: एक ड्राइवर चाहे तो अपनी कार दाएँ या बाएँ मोड़ सकता है, मगर तभी जब कार चल रही हो। उसी तरह यीशु हमें अपनी सेवा बढ़ाने के बारे में मार्गदर्शन दे सकता है, मगर तभी जब हम आगे बढ़ रहे हों, यानी अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हों।

9 लेकिन तब क्या अगर आपको फिलहाल अपनी मेहनत का कोई फल नहीं मिल रहा? क्या आपको यह सोचकर हार मान लेनी चाहिए कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति आपका मार्गदर्शन नहीं कर रही है? याद कीजिए, पौलुस के सामने भी रुकावटें आयी थीं। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी और वह दरवाज़े खटखटाने में तब तक लगा रहा, जब तक कि उसके लिए एक दरवाज़ा खोला नहीं गया। पौलुस की तरह, अगर आप भी “मौके का एक बड़ा दरवाज़ा” ढूँढ़ने में लगे रहें, तो आपको भी आशीषें मिलेंगी।—1 कुरिं. 16:9.

प्रार्थना करने के लिए वे चौकस रहे

10. क्या बात दिखाती है कि जागते रहने के लिए प्रार्थना में लगे रहना बेहद ज़रूरी है?

10 आइए अब एक दूसरे सबक के बारे में देखें। पहली सदी के हमारे मसीही भाई प्रार्थना करने के लिए चौकस रहे। (1 पत. 4:7) जागते रहने के लिए प्रार्थना में लगे रहना बेहद ज़रूरी है। याद कीजिए कि अपनी गिरफ्तारी से पहले, गतसमनी के बाग में यीशु ने अपने तीन प्रेषितों से क्या कहा था। उसने कहा: “जागते रहो और लगातार प्रार्थना करते रहो।”मत्ती 26:41.

11, 12. हेरोदेस ने पतरस और दूसरे मसीहियों पर क्यों और कैसे ज़ुल्म किए?

11 उस वक्‍त पतरस भी गतसमनी के बाग में मौजूद था। बाद में, उसने खुद अनुभव किया कि सच्चे दिल से की गयी प्रार्थना में कितनी ताकत होती है। (प्रेषितों 12:1-6 पढ़िए।) इस ब्यौरे की शुरूआती आयतों से हमें पता चलता है कि राजा हेरोदेस ने यहूदियों की नज़रों में छाने के लिए मसीहियों पर बहुत ज़ुल्म किए। हेरोदेस शायद जानता था कि याकूब एक प्रेषित है जो यीशु का बहुत खास है। इसलिए उसने याकूब को “तलवार से मरवा डाला।” (आयत 2) इस तरह मंडली ने एक अज़ीज़ प्रेषित को खो दिया। भाइयों के लिए यह कितनी बड़ी आज़माइश थी!

12 इसके बाद हेरोदेस ने क्या किया? आयत 3 बताती है: “जब उसने देखा कि यहूदी इससे खुश हुए हैं, तो उसने पतरस को भी गिरफ्तार कर लिया।” मगर जेल की ऊँची दीवारें प्रेषितों को रोक नहीं पायी थीं, ना ही पतरस को रोक सकती थीं। (प्रेषि. 5:17-20) हेरोदेस को यह बात शायद अच्छी तरह मालूम थी। इस चालाक राजा ने पतरस पर कड़ा पहरा लगाया ताकि वह भाग न जाए। पतरस को “चार सिपाहियोंवाली चार पालियों के हवाले कर दिया गया, ताकि वे बारी-बारी से उस पर पहरा दें। [हेरोदेस का] इरादा था कि फसह के त्योहार के बाद वह उसे लोगों के सामने पेश करेगा।” (आयत 4) ज़रा सोचिए, हेरोदेस ने पतरस को दो पहरेदारों के साथ ज़ंजीरों से जकड़वा दिया और 16 पहरेदारों को बारी-बारी से दिन-रात उसकी पहरेदारी करने के लिए ठहराया! हेरोदेस ने सोचा कि फसह के त्योहार के बाद वह सबके सामने पतरस को पेश करेगा और उसे सज़ा-ए-मौत देकर उन्हें खुश कर देगा। ऐसे नाज़ुक हालात में पतरस के संगी मसीही उसके लिए क्या कर सकते थे?

13, 14. (क) पतरस के कैद होने पर मंडली ने क्या किया? (ख) प्रार्थना के मामले में हम उनसे क्या सीख सकते हैं?

13 भाई-बहनों को पता था कि उन्हें क्या करना है। आयत 5 कहती है: “पतरस को कैदखाने में पहरे में रखा गया था, मगर मंडली उसके लिए परमेश्‍वर से दिलो-जान से प्रार्थना कर रही थी।” जी हाँ, मंडली के लोग अपने प्यारे भाई के लिए सच्चे दिल से प्रार्थना कर रहे थे। वे याकूब की मौत से निराश नहीं हुए, ना ही उन्होंने यह सोच लिया था कि प्रार्थना करने का कोई फायदा नहीं। इसके बजाय, वे जानते थे कि वफादार उपासकों की प्रार्थनाएँ यहोवा के लिए बहुत मायने रखती हैं। अगर प्रार्थनाएँ उसकी मरज़ी के मुताबिक हों, तो वह ज़रूर उनका जवाब देता है।—इब्रा. 13:18, 19; याकू. 5:16.

14 पतरस के संगी मसीहियों ने जो रवैया दिखाया उससे हम क्या सीख सकते हैं? यही कि जागते रहने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम खुद के लिए प्रार्थना करें, बल्कि हमें अपने भाई-बहनों के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए। (इफि. 6:18) क्या आप ऐसे भाई-बहनों को जानते हैं, जो किसी दुख-तकलीफ से गुज़र रहे हैं? हो सकता है, कुछ भाई-बहन विरोध का सामना कर रहे हों, या फिर ऐसे इलाकों में हों जहाँ सरकार ने हमारे काम पर पाबंदी लगायी है। हो सकता है कि कुछ कुदरती आफतों के शिकार हुए हों। क्यों न हम ऐसे लोगों के लिए दिलो-जान से प्रार्थना करें? आप शायद ऐसे भाई-बहनों को भी जानते हों जिनकी परेशानियाँ लोगों को नज़र न आएँ, जैसे वे शायद पारिवारिक समस्याओं, निराशा या किसी बीमारी से जूझ रहे हों। क्यों न अपनी प्रार्थना में आप ऐसे लोगों का ज़िक्र करें? आप कुछेक के नाम लेकर “प्रार्थना के सुननेवाले” यहोवा से उनके लिए बिनती कर सकते हैं।—भज. 65:2.

15, 16. (क) बताइए कि यहोवा के स्वर्गदूत ने कैसे पतरस को कैद से छुड़ाया। (नीचे दी तसवीर देखिए।) (ख) यहोवा ने जिस तरह पतरस को छुड़ाया, उस पर मनन करने से हमें क्यों दिलासा मिलता है?

15 आइए देखें कि पतरस के साथ आगे क्या हुआ। कैद में अपनी आखिरी रात को जब पतरस दो पहरेदारों के बीच गहरी नींद सो रहा था, तब उसके साथ हैरतअंगेज़ घटनाएँ घटीं। (प्रेषितों 12:7-11 पढ़िए।) आगे जो हुआ उसे मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए: अचानक उसकी कोठरी रौशनी से जगमगा उठी। वहाँ एक स्वर्गदूत खड़ा था, जो पहरेदारों को नहीं दिखायी दे रहा था। उसने पतरस को जल्दी से जगाया। पतरस के हाथ मज़बूत ज़ंजीरों से बँधे हुए थे, मगर ज़ंजीरें अपने आप खुलकर गिर गयीं! स्वर्गदूत पतरस को पहरेदारों के सामने से कोठरी के बाहर ले गया। कुछ ही दूरी पर लोहे का एक भारी-भरकम फाटक था जो “अपने आप खुल गया” और स्वर्गदूत पतरस को कैदखाने से बाहर निकाल लाया। इसके बाद वह उसे छोड़कर चला गया। पतरस अब आज़ाद था!

16 यहोवा में अपने सेवकों को बचाने की क्या ही असीम ताकत है! ऐसे वाकयों पर मनन करने से क्या हमारा विश्‍वास मज़बूत नहीं होता? बेशक, आज हम यह उम्मीद नहीं करते कि यहोवा चमत्कार कर अपने सेवकों को छुड़ाएगा। मगर हमें पूरा यकीन है कि वह अपने लोगों की मदद करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करता है। (2 इति. 16:9) अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए वह हमें किसी भी आज़माइश का सामना करने की ताकत दे सकता है। (2 कुरिं. 4:7; 2 पत. 2:9) बहुत जल्द यहोवा अपने बेटे के ज़रिए लाखों लोगों को उस कैद से आज़ाद कराएगा, जिससे आज तक कोई आज़ाद नहीं हो पाया। वह है, मौत। (यूह. 5:28, 29) यहोवा के वादों पर विश्‍वास करने की वजह से हम हिम्मत के साथ किसी भी आज़माइश का सामना कर पाते हैं।

रुकावटों के बावजूद अच्छी तरह गवाही देना

17. वक्‍त की नज़ाकत को ध्यान में रखने और जोश के साथ प्रचार करने में पौलुस कैसे एक बढ़िया मिसाल था?

17 जागते रहने के बारे में प्रेषितों से हम एक और सबक सीख सकते हैं। वे रुकावटों के बावजूद खुशखबरी की अच्छी गवाही देते रहे। लगातार जागते रहने के लिए, वक्‍त की नज़ाकत को समझना और जोश के साथ गवाही देना ज़रूरी है। इस मामले में प्रेषित पौलुस ने एक बढ़िया मिसाल कायम की। उसने गवाही देने में खुद को पूरी तरह लगा दिया। उसने दूर-दूर तक सफर किया और कई मंडलियों की शुरूआत की। इस दौरान उसने बहुत-सी मुश्‍किलों का सामना किया। मगर वह वक्‍त की नज़ाकत को कभी नहीं भूला और न ही उसने अपना जोश ठंडा पड़ने दिया।—2 कुरिं. 11:23-29.

18. रोम में नज़रबंद किए जाने के बावजूद पौलुस ने गवाही देने का काम कैसे जारी रखा?

18 प्रेषितों की किताब में हमें पौलुस की जो आखिरी झलक मिलती है उस पर गौर कीजिए। यह अध्याय 28 में दर्ज़ है। पौलुस रोम आया, जहाँ उसे नीरो के सामने पेश होना था। उसे नज़रबंद रखा गया था और शायद एक पहरेदार के साथ ज़ंजीरों में जकड़ा गया था। मगर कोई भी ज़ंजीर उस जोशीले प्रेषित को गवाही देने से रोक नहीं पायी! पौलुस गवाही देने के लिए कोई-न-कोई रास्ता निकाल ही लेता था। (प्रेषितों 28:17, 23, 24 पढ़िए।) तीन दिन के बाद उसने यहूदियों के खास आदमियों को अपने यहाँ बुलवाया, ताकि उन्हें गवाही दे सके। इसके बाद पौलुस ने एक और ज़बरदस्त गवाही दी। आयत 23 कहती है: “उन्होंने [यानी वहाँ के यहूदियों ने] उसके साथ एक दिन तय किया और भारी तादाद में उसके ठहरने की जगह पर इकट्ठा हुए। और पौलुस ने उन्हें सारी बात समझायी और परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही देने के लिए वह मूसा के कानून और भविष्यवक्‍ताओं की किताबों से यीशु के बारे में दलीलें देकर उन्हें कायल करता रहा और सुबह से शाम हो गयी।”

19, 20. (क) पौलुस क्यों इतने असरदार तरीके से गवाही दे पाया? (ख) हालाँकि सब ने खुशखबरी कबूल नहीं की, फिर भी पौलुस ने कैसा रवैया बनाए रखा?

19 पौलुस क्यों इतने असरदार तरीके से गवाही दे पाया? आयत 23 से हम इसकी कई वजह जान पाते हैं। (1) उसकी बातचीत का खास मुद्दा परमेश्‍वर का राज और यीशु मसीह था। (2) वह अपने सुननेवालों को “दलीलें देकर” कायल करता था। (3) वह परमेश्‍वर के वचन से तर्क करता था। (4) वह खुद से ज़्यादा दूसरों की परवाह करता था इसलिए उसने “सुबह से शाम” तक गवाही दी। हालाँकि पौलुस ने ज़बरदस्त गवाही दी, मगर सभी ने खुशखबरी कबूल नहीं की। आयत 24 कहती है: “कुछ ने उसकी कही बातों पर विश्‍वास किया और दूसरों ने नहीं।” काफी बहस हुई और इसके बाद लोग चले गए।

20 क्या पौलुस निराश हो गया क्योंकि सब ने खुशखबरी का संदेश कबूल नहीं किया? कतई नहीं! प्रेषितों 28:30, 31 में हम पढ़ते हैं: “पौलुस पूरे दो साल तक किराए के मकान में रहा और जो कोई उसके यहाँ आता था उसका बड़े प्यार से स्वागत करता था। और उनको परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता था और प्रभु यीशु मसीह के बारे में बेझिझक और बिना किसी रुकावट के सिखाया करता था।” हौसला बढ़ानेवाले इन शब्दों से प्रेषितों की किताब खत्म होती है।

21. नज़रबंद होने के बावजूद पौलुस ने जो मिसाल रखी, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

21 पौलुस की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं? नज़रबंद होने की वजह से पौलुस घर-घर जाकर गवाही नहीं दे सकता था, लेकिन ऐसी हालत में भी उसने सही नज़रिया बनाए रखा। जो उससे मिलने आते, उन्हें वह गवाही देता रहा। उसी तरह, आज परमेश्‍वर के बहुत-से बेकसूर सेवक अपने विश्‍वास की खातिर जेलों में डाले जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अपनी खुशी बनाए रखते हैं और गवाही देने के काम में लगे रहते हैं। हमारे कुछ भाई-बहन ढलती उम्र या किसी बीमारी की वजह से अपने घरों में, या फिर अस्पताल में कैद होकर रह जाते हैं। फिर भी, वे मौका मिलने पर डॉक्टरों को, अस्पताल के कर्मचारियों को या जो उनसे मिलने आते हैं, उन्हें गवाही देते हैं। इन भाई-बहनों की दिली तमन्‍ना है कि वे परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी गवाही दें। उनकी बढ़िया मिसाल की हम कितनी कदर करते हैं!

22. (क) प्रेषितों की किताब से फायदा पाने के लिए क्या इंतज़ाम किया गया है? (ऊपर दिया बक्स देखिए।) (ख) इस दुष्ट दुनिया के अंत का इंतज़ार करते हुए आपने क्या करने की ठान ली है?

22 वाकई, प्रेषितों की किताब में पहली सदी के मसीहियों और प्रेषितों के बारे में जो बातें लिखी हैं, उससे हम जागते रहने के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस दुष्ट दुनिया की व्यवस्था के अंत का इंतज़ार करते हुए हमें हिम्मत और जोश के साथ गवाही देने के मामले में, पहली सदी के मसीहियों की मिसाल पर चलते रहना चाहिए। हमारे लिए परमेश्‍वर के राज के बारे में “अच्छी तरह गवाही देने” से बढ़कर कोई और सम्मान नहीं है!—प्रेषि. 28:23.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर बक्स]

“प्रेषितों की किताब को अब मैं एक नए अंदाज़ से देखता हूँ”

“बेअरिंग थरो विटनेस” अबाउट गॉड्‌स किंगडम किताब पढ़ने के बाद एक सफरी निगरान ने इस तरह अपनी भावनाएँ ज़ाहिर कीं: “प्रेषितों की किताब को अब मैं एक नए अंदाज़ से देखता हूँ। मैं इसमें दिए ब्यौरों से कई बार ‘गुज़रा’ हूँ, लेकिन यह ऐसा था मानो मैं अँधेरे में गंदा चश्‍मा पहने, हाथों में मोमबत्ती लिए चल रहा हूँ। मगर अब मुझे ऐसा लगता है कि मैं सूरज की चमकती हुई रौशनी में इस किताब को देख रहा हूँ। यह मेरे लिए बहुत बड़ी आशीष है!”

[पेज 12 पर तसवीर]

लोहे का फाटक खुल गया और स्वर्गदूत पतरस को कैदखाने से बाहर निकाल लाया