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“सच्चाई के बुनियादी ढाँचे” से सीखिए

“सच्चाई के बुनियादी ढाँचे” से सीखिए

“तू . . . कानून में पाए जानेवाले ज्ञान और सच्चाई के बुनियादी ढाँचे की समझ रखता है।”—रोमि. 2:20.

1. हमें मूसा के कानून की समझ हासिल करने में क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?

 अगर हमारे पास परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे पौलुस के खत न होते, तो हम मूसा के कानून के कई पहलुओं का सही मतलब नहीं समझ पाते। मिसाल के लिए, इब्रानियों को लिखे अपने खत में पौलुस समझाता है कि यीशु ने कैसे एक “विश्‍वासयोग्य महायाजक” के तौर पर एक ही बार हमेशा के लिए “प्रायश्‍चित्त का बलिदान” चढ़ाया है ताकि जो कोई उसमें विश्‍वास करे वह “सदा तक कायम रहनेवाला छुटकारा” हासिल कर सके। (इब्रा. 2:17; 9:11, 12) पौलुस ने यह भी समझाया कि निवासस्थान बस ‘स्वर्ग की चीज़ों की छाया’ थी; और मूसा जिस करार का बिचवई था, यीशु उससे भी “बेहतर करार” का बिचवई बना। (इब्रा. 7:22; 8:1-5) मूसा के कानून की ऐसी समझ हासिल करना पौलुस के दिनों के मसीहियों के लिए बहुत फायदेमंद था और आज हमारे लिए भी है। इसकी मदद से हम उन इंतज़ामों का मोल और अच्छी तरह समझ पाते हैं जो परमेश्‍वर ने हमारे लिए किए हैं।

2. गैर-यहूदियों की तुलना में यहूदी मसीहियों को किस बात की ज़्यादा समझ थी?

2 रोम की मंडली को लिखे खत में पौलुस ने कुछ बातें उन यहूदी मसीहियों के लिए लिखीं जिन्हें मूसा के कानून की शिक्षा मिली थी। उसने माना कि कानून से वाकिफ होने की वजह से वे यहोवा और उसके नेक उसूलों के बारे में “ज्ञान और सच्चाई के बुनियादी ढाँचे की समझ” रखते हैं। यहूदी मसीही पुराने ज़माने के यहूदियों की तरह, उन लोगों को सिखा सकते थे जिन्हें कानून की समझ नहीं थी, क्योंकि वे कानून में बतायी “सच्चाई के बुनियादी ढाँचे” को अच्छी तरह समझते थे और उसका दिल से आदर करते थे।रोमियों 2:17-20 पढ़िए।

यीशु के बलिदान की छाया

3. पुराने ज़माने के यहूदियों के बलिदानों के बारे में अध्ययन करने से हमें क्या फायदा होगा?

3 पौलुस ने जिस ज्ञान के बुनियादी ढाँचे का ज़िक्र किया, वह यहोवा के मकसद को समझने के लिए आज भी बहुत ज़रूरी है। मूसा के कानून में जो सिद्धांत दिए गए थे, वे आज भी मायने रखते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, आइए हम कानून के सिर्फ एक पहलू पर गौर करें कि कैसे अलग-अलग बलिदानों और चढ़ावों ने नम्र-दिल यहूदियों को यीशु के आने के लिए तैयार किया और उन्हें परमेश्‍वर की माँगों को समझने में मदद दी। यहोवा अपने सेवकों से जिन बुनियादी चीज़ों की माँग करता था, वह आज भी नहीं बदली हैं, इसलिए बलिदानों और चढ़ावों के बारे में परमेश्‍वर के कानून, हमें इस बात की जाँच करने में मदद देंगे कि हम पूरे दिल से उसकी सेवा कर रहे हैं या नहीं।—मला. 3:6.

4, 5. (क) मूसा का कानून लोगों को किस बात की याद दिलाता था? (ख) बलिदानों के बारे में परमेश्‍वर का कानून किस बात की ओर इशारा करता था?

4 पुराने ज़माने के यहूदी बखूबी जानते थे कि मूसा के कानून के कई पहलू उन्हें पापी होने का एहसास दिलाते हैं। मिसाल के लिए, अगर कोई व्यक्‍ति किसी इंसान की लाश छू ले, तो उसे खुद को शुद्ध करना था। इसके लिए, उसे एक लाल निर्दोष बछिए का बलिदान चढ़ाकर जलाना था। उसकी राख से ‘अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल’ बनाया जाता था और फिर वह जल उस व्यक्‍ति पर उसके अशुद्ध होने के तीसरे और सातवें दिन छिड़का जाता था। (गिन. 19:1-13) इसके अलावा जब एक स्त्री बच्चे को जन्म देती थी, तो उसे कुछ समय के लिए अशुद्ध ठहराया जाता था। यह उसे याद दिलाता था कि बच्चा पैदा करके वह आनेवाली पीढ़ी को असिद्धता और पाप विरासत में दे रही है। इसके बाद उसे प्रायश्‍चित्त के लिए एक बलिदान चढ़ाना होता था।—लैव्य. 12:1-8.

5 इसराएलियों को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कई और मौकों पर भी पापों की माफी के लिए बलिदान चढ़ाने होते थे। चाहे उन्हें इसका एहसास था या नहीं, ये बलिदान और आगे चलकर यहोवा के मंदिर में जो बलिदान चढ़ाए जाते, वे यीशु के परिपूर्ण बलिदान की महज़ “छाया” थे।—इब्रा. 10:1-10.

बलिदान चढ़ाने के पीछे रवैया

6, 7. (क) इसराएली किस बिनाह पर बलि के जानवर चुनते थे और ये बलिदान किस बात की ओर इशारा करते थे? (ख) हमें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?

6 परमेश्‍वर को जो भी बलिदान चढ़ाया जाता, उसे हर तरह से “निर्दोष” होना था। यहोवा को लूले-लँगड़े, अंधे, घायल या बीमार जानवर नहीं चढ़ाए जाने थे। (लैव्य. 22:20-22) जब इसराएली उसे कोई फल या अन्‍न चढ़ाते तो यह उनकी कटाई का “उत्तम से उत्तम भाग” यानी “पहली उपज” होना था। (गिन. 18:12, 29) कम दर्ज़े का बलिदान यहोवा को कबूल न होता। जानवरों की बलि के बारे में दिया गया यह खास कानून इस बात की ओर इशारा करता था कि यीशु का बलिदान एकदम निर्दोष और बेदाग होता और यह कि यहोवा इंसानों को छुड़ाने के लिए अपनी तरफ से सबसे बढ़िया बलिदान देता, जो उसे सबसे प्यारा था।—1 पत. 1:18, 19.

7 जब एक इंसान यहोवा की भलाई के लिए एहसान भरे दिल से बलिदान चढ़ाता तो क्या वह यहोवा को खुशी-खुशी अपना उत्तम नहीं देता? यह देनेवाले पर निर्भर था कि वह कैसा बलिदान चढ़ाएगा। लेकिन वह यह भी जानता था कि अगर उसके चढ़ावे में कोई दोष हो तो यहोवा उससे खुश नहीं होगा क्योंकि इससे ज़ाहिर होता कि वह सिर्फ नाम के लिए बलि चढ़ा रहा है या ऐसा करना उसके लिए एक बोझ है। (मलाकी 1:6-8, 13 पढ़िए।) यह हमें हमारी सेवा के बारे में सोचने पर मजबूर करता है। हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘मैं किस रवैए से यहोवा की सेवा कर रहा हूँ? क्या मुझे अपनी सेवा और अपने इरादों की जाँच करनी चाहिए?’

8, 9. इसराएली जिस रवैए से बलिदान देते थे, हमें उस पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

8 अगर एक इसराएली यहोवा का एहसान मानने के लिए अपनी मरज़ी से कोई बलि चढ़ाना चाहता या फिर एक होम-बलि के ज़रिए उसकी मंज़ूरी पाने की दरखास्त करता, तो वह खुशी-खुशी यहोवा को सबसे बेहतर जानवर चढ़ाता। हालाँकि आज के ज़माने में मसीही, जानवरों की बलि नहीं चढ़ाते मगर हम अपना समय, अपनी ताकत और अपने साधन यहोवा की सेवा में लगाकर एक तरह से यहोवा को बलि चढ़ा रहे होते हैं। प्रेषित पौलुस ने कहा कि मसीही आशा का “सरेआम ऐलान” करना और “भलाई करना और अपनी चीज़ों से दूसरों की मदद करना,” एक तरह से बलिदान हैं जिनसे परमेश्‍वर खुश होता है। (इब्रा. 13:15, 16) यहोवा के लोग जिस रवैए से ये काम करते हैं उससे वे दिखाते हैं कि वे परमेश्‍वर के कितने एहसानमंद हैं। तो फिर जिस रवैए और इरादे से पुराने ज़माने के इसराएली अपनी मरज़ी से बलिदान चढ़ाते थे, क्या हम भी अपनी सेवा उसी रवैए और इरादे से करते हैं?

9 लेकिन तब क्या जब एक इसराएली के लिए अपनी गलती की वजह से कानून के मुताबिक पाप-बलि या दोष-बलि चढ़ाना ज़रूरी होता? ऐसे में वह कानून की माँग पूरी करने के लिए कैसा रवैया दिखाता? क्या वह खुशी-खुशी बलिदान चढ़ाता या कुढ़-कुढ़कर? (लैव्य. 4:27, 28) अगर बलिदान देनेवाला सचमुच यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाए रखना चाहता, तो वह खुशी-खुशी यहोवा को बलि चढ़ाता।

10. मसीहियों को बिगड़े रिश्‍ते सुधारने के लिए कौन-से बलिदान करने पड़ सकते हैं?

10 हो सकता है कि आपने बिना सोचे-समझे, अनजाने में किसी भाई को नाराज़ किया हो। या हो सकता है कि आपका ज़मीर आपको कचोटे क्योंकि आपने कोई गलत काम किया है। अगर कोई यहोवा को नाराज़ नहीं करना चाहता, तो वह अपनी गलती को सुधारने की हर मुमकिन कोशिश करेगा। शायद इसके लिए एक मसीही को उस भाई या बहन से माफी माँगनी पड़े जिसे उसने ठेस पहुँचायी है या फिर कोई गंभीर पाप करने पर उसे मसीही प्राचीनों से मदद लेनी पड़े। (मत्ती 5:23, 24; याकू. 5:14, 15) इसका मतलब है कि मसीही साथियों या परमेश्‍वर के खिलाफ किए गए पापों की माफी पाने के लिए हमें कुछ कदम उठाने पड़ते हैं, जो शायद हमारे लिए इतने आसान ना हों। ये बलिदान की तरह होते हैं। लेकिन इनसे यहोवा और भाइयों के साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत हो जाता है और हमारा ज़मीर भी साफ रहता है। इन अच्छे नतीजों को देखकर हमें यकीन हो जाता है कि यहोवा के मार्गों पर चलना ही सबसे बेहतर है।

11, 12. (क) मेल-बलि कैसे चढ़ायी जाती थी? (ख) मेल-बलि का आज हमारी सच्ची उपासना से क्या ताल्लुक है?

11 मूसा के कानून में बताए बलिदानों में से एक था, मेल-बलि। यह दिखाता था कि एक इंसान का परमेश्‍वर के साथ अच्छा रिश्‍ता है। मेल-बलि चढ़ानेवाला और उसका परिवार, शायद मंदिर की ही एक कोठरी में चढ़ावे के जानवर का माँस खाते थे। जिस याजक ने बलि चढ़ायी थी, उसे और मंदिर के दूसरे याजकों को चढ़ावे का एक हिस्सा मिलता था। (लैव्य. 3:1; 7:31-33) एक उपासक यह बलिदान देता था ताकि वह यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाए रख सके। यह मानो ऐसा था जैसे वह, उसका परिवार, याजक और यहोवा साथ मिलकर भोजन का आनंद ले रहे हों।

12 यहोवा को इस तरह लाक्षणिक तौर पर खाने पर बुलाना और यहोवा का उस न्यौते को कबूल करना कितने बड़े सम्मान की बात थी। बेशक मेज़बान अपने इस खास मेहमान के लिए बढ़िया-से-बढ़िया पकवान परोसता। मेल-बलियों का यह इंतज़ाम, कानून में दिए सच्चाई के बुनियादी ढाँचे का हिस्सा था। यह इस बात को दर्शाता है कि जो परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता रखना चाहते हैं, वे यीशु मसीह के बलिदान के आधार पर ऐसा कर सकते हैं। आज जब हम अपनी मरज़ी से अपने साधन और ताकत यहोवा की सेवा में लगाते हैं तो हम भी उसकी दोस्ती का लुत्फ उठाते हैं।

बलिदानों के बारे में ध्यान रखनेवाली बातें

13, 14. राजा शाऊल ने जो बलिदान चढ़ाना चाहा उसे परमेश्‍वर ने स्वीकार क्यों नहीं किया?

13 अगर इसराएली चाहते कि उनके बलिदान यहोवा को मंज़ूर हों, तो उन्हें ये सच्चे मन और सही रवैए के साथ चढ़ाने थे। बाइबल में ऐसे बलिदानों के बारे में भी बताया गया है जो यहोवा को मंज़ूर नहीं थे। यहोवा ने क्यों इन्हें ठुकरा दिया? आइए दो घटनाओं पर गौर करें।

14 भविष्यवक्‍ता शमूएल ने राजा शाऊल को बताया कि यहोवा अमालेकियों को सज़ा देनेवाला है। उससे कहा गया कि वह दुश्‍मन देश के लोगों और उनके मवेशियों को खाक में मिला दे। लेकिन जीत हासिल करने के बाद राजा शाऊल ने अमालेकी राजा, अगाग की जान बख्श दी। इसके अलावा, उसने सबसे अच्छे मवेशियों को बलिदान चढ़ाने के लिए बचाकर रखा। (1 शमू. 15:2, 3, 21) इस पर यहोवा ने क्या किया? आज्ञा न मानने की वजह से यहोवा ने शाऊल को ठुकरा दिया। (1 शमूएल 15:22, 23 पढ़िए।) इससे हम क्या सीखते हैं? यही कि अगर हम चाहते हैं कि हमारे बलिदान यहोवा को मंज़ूर हों तो हमें बलिदान चढ़ाने के साथ-साथ उसकी आज्ञा भी माननी चाहिए।

15. बलिदान चढ़ानेवाले कुछ इसराएलियों के बुरे कामों से क्या साबित हुआ?

15 यशायाह की किताब में भी इसी तरह का एक उदाहरण मिलता है। यशायाह के दिनों में इसराएली जो बलिदान चढ़ाते थे उनका यहोवा की नज़र में कोई मोल नहीं था क्योंकि वे बुरे कामों में लगे हुए थे। बलिदान चढ़ाना उनके लिए सिर्फ एक ढर्रा बन गया था। यहोवा ने उनसे पूछा: “तुम्हारे बहुत से मेलबलि मेरे किस काम के हैं? मैं तो मेढ़ों के होमबलियों से और पाले हुए पशुओं की चर्बी से अघा गया हूं; मैं बछड़ों वा भेड़ के बच्चों वा बकरों के लोहू से प्रसन्‍न नहीं होता . . . व्यर्थ अन्‍नबलि फिर मत लाओ; धूप से मुझे घृणा है।” ऐसा कहने की वजह क्या थी? यहोवा आगे कहता है: “तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं। अपने को धोकर पवित्र करो; मेरी आंखों के साम्हने से अपने बुरे कामों को दूर करो; भविष्य में बुराई करना छोड़ दो।”—यशा. 1:11-16.

16. हमारे बलिदान का मंज़ूर होना किस बात पर निर्भर है?

16 जो बिना पछतावा किए पाप करते रहते थे, उनके बलिदानों से यहोवा को कोई खुशी नहीं मिलती थी। लेकिन जो लोग उसकी आज्ञाओं के मुताबिक जीने की कोशिश करते थे, उनकी प्रार्थनाएँ और चढ़ावे यहोवा को मंज़ूर थे। ऐसे लोगों ने कानून के बुनियादी ढाँचे से सीखा था कि वे पापी हैं और उन्हें माफी की ज़रूरत है। (गला. 3:19) इस एहसास की वजह से पाप करने पर एक इसराएली का दिल उसे कचोटता और वह यहोवा से माफी माँगता। उसी तरह हमें भी पापों की माफी के लिए यीशु मसीह के बलिदान की अहमियत समझनी चाहिए। अगर हम इस समझ के साथ यहोवा की सेवा में बलिदान चढ़ाएँ, तो वह उससे “प्रसन्‍न” होगा।भजन 51:17, 19 पढ़िए।

यीशु के बलिदान में विश्‍वास रखिए!

17-19. (क) हम कैसे दिखा सकते हैं कि यीशु के फिरौती बलिदान के लिए हम यहोवा का एहसान मानते हैं? (ख) अगले लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

17 पुराने ज़माने के मसीहियों को परमेश्‍वर के मकसद की महज़ “छाया” ही दिखती थी। (इब्रा. 10:1) लेकिन हमें आज इसकी बेहतर समझ है। बलिदानों के बारे में दिए गए नियमों से यहूदी समझ पाते थे कि परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए। उन्हें यहोवा का सच्चे दिल से एहसान मानना था, अपना सबसे बढ़िया देना था और पाप से छुटकारे की ज़रूरत महसूस करनी थी। मसीही यूनानी शास्त्र में दी गयी जानकारी की वजह से हम समझ पाते हैं कि भविष्य में फिरौती के ज़रिए यहोवा पाप के असर को पूरी तरह मिटा देगा, साथ ही यह कि वह आज भी हमें एक अच्छा ज़मीर दे सकता है। यीशु का फिरौती बलिदान वाकई एक नायाब तोहफा है!—गला. 3:13; इब्रा. 9:9, 14.

18 बेशक, फिरौती से फायदा पाने के लिए उसकी समझ रखना ही काफी नहीं है। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “मूसा का कानून हमें मसीह तक ले जानेवाला संरक्षक बना है, ताकि हम विश्‍वास की वजह से नेक ठहराए जाएँ।” (गला. 3:24) लेकिन यह विश्‍वास कामों के बिना बेकार है। (याकू. 2:26) पहली सदी के यहूदी मसीही मूसा के कानून में दिए ज्ञान के बुनियादी ढाँचे की समझ रखते थे। इसलिए पौलुस ने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे इस ज्ञान को अमल में लाएँ। अगर वे ऐसा करते तो उनका चालचलन उस सच्चाई के मुताबिक होता जो वे दूसरों को सिखाते थे।रोमियों 2:21-23 पढ़िए।

19 हालाँकि आज के ज़माने के मसीहियों को मूसा के कानून के मुताबिक बलिदान चढ़ाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन उन्हें ऐसे बलिदान चढ़ाने चाहिए जो यहोवा को मंज़ूर हों। अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि हम यह कैसे कर सकते हैं।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

यहोवा अपने सेवकों से जिन बुनियादी चीज़ों की माँग करता था, वे आज भी नहीं बदली हैं

[पेज 18 पर तसवीर]

आप कौन-सा जानवर चढ़ाते?

[पेज 19 पर तसवीर]

जो यहोवा की मरज़ी के मुताबिक बलिदान चढ़ाते हैं, उन्हें उसकी मंज़ूरी मिलती है