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अतीत के झरोखे से

“सबकी नज़रें मुझी पर टिक गयीं!”

“सबकी नज़रें मुझी पर टिक गयीं!”

जब पूरे समय की प्रचारक शार्लट वाइट एक अटैची को पहियों पर चलाते हुए अमरीका के केंटाकी राज्य के लूइविल शहर पहुँची, तो वहाँ हलचल मच गयी।

यह बात सन्‌ 1908 की है। बहन वाइट के हाथों में यह नया आविष्कार देखकर लोगों की आँखें फटी-की-फटी रह गयीं। इस आविष्कार का नाम था, डॉन-गाड़ी (डॉन-मोबील)। बहन कहती है: “लोग फुसफुसाने लगे और सबकी नज़रें मुझी पर टिक गयीं!”

उस ज़माने में यहोवा के साक्षियों को बाइबल विद्यार्थी कहा जाता था। उनकी दिली तमन्‍ना थी कि उन्होंने बाइबल का गहराई से अध्ययन करके जो अनमोल सच्चाइयाँ सीखी थीं, वे उन्हें दूसरों तक पहुँचाएँ। कई लोगों ने मिलेनियल डॉन नाम की किताब से सच्चाई सीखी थी। इसके कई खंड थे। बाद में इन किताबों को स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स भी कहा गया। जिन मसीहियों के लिए मुनासिब था, उन्होंने दूर-दूर के कसबों, बस्तियों और गाँवों में जाकर लोगों को ये किताबें दीं, जिन्हें “बाइबल विद्यार्थियों के लिए मदद” भी कहा जाता था।

सन्‌ 1908 में बहन वाइट और उनके जैसे जोशीले प्रचारक, कपड़े की जिल्दवाली इस किताब के छ: खंड, 1.65 अमरीकी डॉलर में लोगों को देते थे। दिलचस्पी दिखानेवालों को तुरंत ही किताबें देने के बजाय वे उनसे ऑर्डर लेते और बाद में, अकसर तनख्वाह वाले दिन, किताबें लेकर आते और सिर्फ छपाई का मामूली खर्च लेते। तभी तो हमारे काम का विरोध करनेवाले एक इंसान की यह शिकायत थी कि हम यह किताब बहुत सस्ते में देते हैं!

मलिंडा कीफर को याद है कि वे हर हफ्ते दो सौ से लेकर तीन सौ किताबों के ऑर्डर लेती थीं। लेकिन डॉन किताबों में लोगों की गहरी दिलचस्पी ने एक उलझन खड़ी कर दी थी। अगर हम इस किताब के सिर्फ छठे खंड की बात करें, तो उसमें 740 पन्‍ने थे और प्रहरीदुर्ग में बताया गया था कि “पचास किताबों का वज़न 18 किलो था,” इसलिए इसे लोगों तक पहुँचाना एक “भारी बोझ” था, खासकर बहनों के लिए।

डॉन किताबों को लोगों तक पहुँचाने की इस उलझन को भाई जेम्स कोल ने सुलझाया। उन्होंने रबड़ के दो पहियोंवाले एक ऐसे ढाँचे का आविष्कार किया, जिस पर एक अटैची को पेंचों के सहारे लगाया जा सकता था। अब उन्हें किताबों के भारी बक्सों को अपने कंधों पर ढोने की ज़रूरत नहीं थी, इसीलिए उन्होंने कहा: “अब मुझे अपने कंधे नहीं तुड़वाने पड़ेंगे।” सन्‌ 1908 में, ओहायो के सिनसिनेटी शहर में हुए एक अधिवेशन में जब उन्होंने अपना यह आविष्कार लोगों के सामने पेश किया तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। इस ढाँचे के दोनों छोर पर एक-एक बटन लगा था, जिन पर ‘डॉन-मोबील’ नाम खुदा हुआ था क्योंकि इस गाड़ी का इस्तेमाल ज़्यादातर मिलेनियल डॉन किताबों को ले जाने के लिए ही किया जाता था। थोड़े से अभ्यास के बाद, दर्जनों किताबों से भरी अटैची, बस एक ही हाथ से लायी ले जायी जा सकती थी। ज़रूरत के मुताबिक गाड़ी की ऊँचाई को बदला जा सकता था और यह कच्ची सड़कों पर भी चलायी जा सकती थी। दिन के आखिर में, प्रचार खत्म करने के बाद पहियों को इस तरह घुमाया जा सकता था, जिससे वे अटैची की एक तरफ सट जाते। इस तरह उसे आसानी से घर ले जाया जा सकता था, फिर चाहे आप पैदल जा रहे हों या ट्राम से।

जो बहनें पूरे समय की सेवा करती थीं उनके लिए डॉन-गाड़ी मुफ्त थी, लेकिन दूसरों को इसके लिए 2.50 अमरीकी डॉलर देने पड़ते थे। बहन कीफर, जिन्हें आप यहाँ तसवीर में देख सकते हैं, इसके इस्तेमाल में इतनी माहिर हो गयी थीं कि वे एक हाथ से गाड़ी खींचतीं और दूसरे हाथ में किताबों से भरा एक और थैला भी ले जातीं। अमरीका के पेन्सिलवेनिया राज्य में, कोयले की खानवाले एक शहर में बहन को दिलचस्पी दिखानेवाले कई लोग मिले। जिस दिन लोगों तक ये किताबें पहुँचानी होतीं, उस दिन वे तीन-चार दफा डॉन-गाड़ी लेकर अलेगेनी नदी पर बना एक पुल पार करती थीं।

सन्‌ 1987 में एक विमान चालक ने पहियोंवाली अटैची का आविष्कार किया, जिसे आप आज आम तौर पर हवाई अड्डों और रेलवे-स्टेशनों पर देखते हैं। लेकिन करीब सौ साल पहले, जब जोशीले बाइबल प्रचारक सच्चाई के बीज बिखेरते हुए सड़कों पर अपनी डॉन-गाड़ियाँ लिए चलते थे, तब वे राहगीरों की अचरज भरी निगाहें देखकर ज़रूर मन-ही-मन मुसकुराते होंगे।

[पेज 32 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

जिस दिन लोगों तक ये किताबें पहुँचानी होतीं, उस दिन बहन कीफर तीन-चार दफा डॉन-गाड़ी लेकर अलेगेनी नदी पर बना एक पुल पार करती थीं

[पेज 32 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

इससे डॉन किताबों को लोगों तक पहुँचाने की उलझन सुलझी