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“नींद से जाग उठने” में लोगों की मदद कीजिए

“नींद से जाग उठने” में लोगों की मदद कीजिए

“नींद से जाग उठने” में लोगों की मदद कीजिए

“तुम जानते हो कि कैसे वक्‍त में जी रहे हो। अब तुम्हारे लिए नींद से जाग उठने की घड़ी आ चुकी है।”—रोमि. 13:11.

क्या आप समझा सकते हैं?

यह क्यों ज़रूरी है कि मसीही आध्यात्मिक तौर पर जागते रहें?

प्रचार में सचेत रहना और घर-मालिक की सुनना क्यों ज़रूरी है?

प्यार और कोमलता, प्रचार काम में क्या भूमिका निभाती हैं?

1, 2. बहुत-से लोग किस मायने में सो रहे हैं?

 हर साल गाड़ी चलाते वक्‍त ऊँघने या सो जाने की वजह से हज़ारों लोगों की जान चली जाती है। दूसरे अपनी नौकरी से हाथ धो बैठते हैं, क्योंकि वे समय पर नहीं उठते या काम की जगह पर सो जाते हैं। मगर आध्यात्मिक तौर पर ऊँघने के इससे भी बुरे नतीजे हो सकते हैं। इसलिए बाइबल कहती है: “सुखी है वह जो जागता रहता है।”—प्रका. 16:14-16.

2 यहोवा का भयानक दिन नज़दीक आ रहा है, लेकिन मानवजाति आध्यात्मिक तौर पर सो रही है। ईसाईजगत के कुछ गुरुओं ने तो अपनी भेड़ों के बारे में यह तक कहा है कि वे ‘चादर ताने सो रहे हैं।’ आध्यात्मिक तौर पर सोने का क्या मतलब है? सच्चे मसीहियों के लिए जागते रहना क्यों ज़रूरी है? इस नींद से जागने के लिए हम दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?

आध्यात्मिक नींद क्या है?

3. आप आध्यात्मिक तौर पर सोए हुए इंसान को कैसे पहचान सकते हैं?

3 हम जानते हैं कि जो सो रहे होते हैं, वे कोई काम नहीं करते; लेकिन आध्यात्मिक तौर पर सोनेवाले शायद इतने व्यस्त हों कि उन्हें साँस लेने तक की फुरसत न मिले। मगर वे आध्यात्मिक कामों के बजाय ज़िंदगी की चिंताओं में, मौज-मस्ती करने में या दौलत-शोहरत कमाने की भाग-दौड़ में व्यस्त रहते हैं। वे इन चीज़ों में इस कदर डूब जाते हैं कि अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतों की ओर कोई ध्यान नहीं देते। लेकिन जो लोग आध्यात्मिक तौर पर जाग रहे हैं, उन्हें इस बात का एहसास होता है कि वे “आखिरी दिनों में” जी रहे हैं, इसलिए वे परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।—2 पत. 3:3, 4; लूका 21:34-36.

4. पौलुस ने जब कहा, “आओ हम बाकियों की तरह न सोएँ,” तो उसका क्या मतलब था?

4 1 थिस्सलुनीकियों 5:4-8 पढ़िए। यहाँ पौलुस अपने मसीही भाइयों को बढ़ावा दे रहा है कि वे “बाकियों की तरह न सोएँ।” पौलुस का क्या मतलब था? ‘सोए’ रहने का एक मतलब है यहोवा के नैतिक स्तरों को नज़रअंदाज़ करना। इसका एक और मतलब है, इस बात को नज़रअंदाज़ करना कि इस दुष्ट दुनिया को नाश करने का यहोवा का समय आ पहुँचा है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम पर ऐसे दुष्ट लोगों की सोच और रवैए का असर ना पड़े।

5. आध्यात्मिक तौर पर सोए हुए लोगों की क्या सोच होती है?

5 कुछ लोग मानते हैं कि उनके कामों का लेखा लेनेवाला कोई परमेश्‍वर है ही नहीं। (भज. 53:1) दूसरे सोचते हैं कि परमेश्‍वर को इंसानों की कोई परवाह नहीं, तो हम क्यों उसकी फिक्र करें। कुछ और लोग सोचते हैं कि बस किसी धर्म से जुड़ जाना, परमेश्‍वर के करीब आने के लिए काफी है। ये सभी आध्यात्मिक तौर पर सोए हुए हैं। ऐसे लोगों का जागना ज़रूरी है। हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?

खुद हमें भी जागते रहना चाहिए

6. मसीहियों को आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने की पुरज़ोर कोशिश क्यों करनी चाहिए?

6 दूसरों को जगाने के लिए ज़रूरी है कि खुद हम जगे रहें। हम यह कैसे कर सकते हैं? परमेश्‍वर का वचन आध्यात्मिक तौर पर सोने की तुलना “अंधकार के कामों” से यानी रंग-रलियाँ मनाने, नशेबाज़ी करने, नाजायज़ संबंध रखने, बदचलनी, झगड़े और जलन से करता है। (रोमियों 13:11-14 पढ़िए।) अपना चालचलन शुद्ध रखना एक चुनौती हो सकती है। इसलिए चौकन्‍ना रहना बेहद ज़रूरी है। अगर एक ड्राइवर खबरदार न रहे, सो जाए, तो उसकी जान खतरे में पड़ सकती है। कितना ज़रूरी है कि एक मसीही इस बात को समझे कि आध्यात्मिक तौर पर ऊँघना, जानलेवा हो सकता है!

7. लोगों के बारे में गलत राय कायम करने का क्या नतीजा हो सकता है?

7 शायद एक मसीही यह राय कायम कर ले कि उसके प्रचार इलाके में सभी ने खुशखबरी को ठुकरा दिया है और वे कभी सच्चाई कबूल नहीं करेंगे। (नीति. 6:10, 11) वह सोच सकता है, ‘जब कोई मेरी सुन ही नहीं रहा है, तो फिर इतना जोश दिखाने का क्या फायदा?’ माना कि आज बहुत-से लोग आध्यात्मिक तौर पर सो रहे हैं, लेकिन कल को उनके हालात और रवैए बदल सकते हैं। कुछ लोग आगे चलकर जाग जाते हैं और खुशखबरी कबूल कर लेते हैं। अगर हम खुद जागते रहें यानी राज के संदेश को दिलचस्प ढंग से पेश करने के नए तरीके आज़माएँ, तो हम उनकी मदद कर सकते हैं। जागते रहने के लिए खुद को यह याद दिलाना भी ज़रूरी है कि हमारा प्रचार काम क्यों इतनी अहमियत रखता है।

हमारी सेवा क्यों इतनी ज़रूरी है?

8. हमारा प्रचार काम इतना अहम क्यों है?

8 याद रखिए कि लोग चाहे हमारी सुनें या न सुनें, प्रचार काम से यहोवा की महिमा होती है और परमेश्‍वर के मकसद में इसकी एक अहम भूमिका है। जो खुशखबरी को नहीं मानते, वे बहुत जल्द विनाश की सज़ा पाएँगे। हमारे प्रचार काम के प्रति लोग जो रवैया दिखाते हैं, उसी के आधार पर उनका न्याय किया जाएगा। (2 थिस्स. 1:8, 9) एक मसीही का यह सोचना गलत होगा कि “अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोग मरे हुओं में से जी उठेंगे” ही, तो फिर इतने जोश से प्रचार क्यों करें। (प्रेषि. 24:15) परमेश्‍वर का वचन बताता है कि जिन्हें ‘बकरियाँ’ करार दिया जाएगा, उन्हें “हमेशा के लिए नाश” किया जाएगा। हमारे प्रचार काम के ज़रिए परमेश्‍वर उन्हें दया दिखाता है और उन्हें खुद को बदलने का मौका देता है ताकि वे “हमेशा की ज़िंदगी” पा सकें। (मत्ती 25:32, 41, 46; रोमि. 10:13-15) अगर हम प्रचार ना करें, तो लोग ज़िंदगी देनेवाला यह संदेश कैसे सुनेंगे?

9. खुशखबरी का प्रचार करने से कैसे आपको और दूसरों को फायदा हुआ है?

9 खुशखबरी का प्रचार करने से हमें भी फायदा होता है। (1 तीमुथियुस 4:16 पढ़िए।) क्या आपने यह महसूस नहीं किया कि यहोवा और उसके राज के बारे में बात करने से खुद आपका विश्‍वास मज़बूत होता है और यहोवा के लिए आपका प्यार बढ़ता है? क्या इससे आपको अपने अंदर मसीही गुण बढ़ाने में मदद नहीं मिली है? जब आप प्रचार करके परमेश्‍वर के लिए अपनी भक्‍ति ज़ाहिर करते हैं, तो क्या इससे आपकी खुशी नहीं बढ़ती है? जिन लोगों को दूसरों को सच्चाई सिखाने का सुअवसर मिला है, उन्हें यह देखने की खुशी मिली है कि किस तरह यहोवा की पवित्र शक्‍ति लोगों को अपनी ज़िंदगी सुधारने में मदद देती है।

सचेत रहिए

10, 11. (क) यीशु और पौलुस ने कैसे दिखाया कि वे सतर्क और सचेत थे? (ख) समझाइए कि कैसे सतर्क और सचेत रहने से हम अपनी सेवा निखार सकते हैं।

10 हर इंसान की अलग-अलग बातों में दिलचस्पी होती है। अगर हम यह ध्यान में रखते हुए उससे बात करें तो हम उसे खुशखबरी की ओर आकर्षित कर सकते हैं। लेकिन उसकी दिलचस्पी क्या है यह जानने के लिए ज़रूरी है कि हम सचेत रहें। सिद्ध होने के नाते यीशु फरीसी के अनकहे गुस्से को भाँप सका, पापी स्त्री के सच्चे पश्‍चाताप को पहचान पाया और विधवा की त्याग की भावना को समझ सका। (लूका 7:37-50; 21:1-4) यीशु हरेक की आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कर सका। हम सिद्ध तो नहीं हैं, लेकिन अगर हम सतर्क और सचेत रहें तो हम लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरत समझ सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने इस मामले में एक अच्छी मिसाल रखी। वह सतर्क था इसलिए उसने अलग-अलग स्वभाव और जाति के लोगों के दिल तक पहुँचने के लिए खुशखबरी की अपनी पेशकश में फेरबदल की।—प्रेषि. 17:22, 23, 34; 1 कुरिं. 9:19-23.

11 अगर हम यीशु और पौलुस की तरह सतर्क और सचेत रहें, तो हम समझ पाएँगे कि दूसरों में दिलचस्पी जगाने का सबसे बढ़िया तरीका क्या हो सकता है। मिसाल के लिए, जब आप प्रचार में लोगों से मिलते हैं, तो ऐसी चीज़ों पर ध्यान दीजिए जिनसे आप उनकी संस्कृति, रुचि, या परिवार के हालात का अंदाज़ा लगा सकें। अगर आपको दिख रहा है कि वे कोई काम कर रहे हैं, तो आप उस काम के बारे में दो-चार शब्द कहने के बाद अपनी बातचीत शुरू कर सकते हैं।

12. प्रचार काम के दौरान एक-दूसरे से बातचीत करने के बारे में हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?

12 प्रचार काम में सचेत रहने का मतलब यह भी है कि हम अपना ध्यान भटकने न दें। यह सच है कि प्रचार के दौरान अपने साथी से बातचीत करने से हौसला-अफज़ाई होती है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि प्रचार में जाने का हमारा मकसद है लोगों को गवाही देना। (सभो. 3:1, 7) इसलिए हमें ध्यान रखना चाहिए कि एक घर से दूसरे घर जाने के दौरान की जानेवाली हमारी बातचीत, प्रचार सेवा के आड़े न आए। अगर हमारी बातचीत इस बारे में हो कि हम दिलचस्पी दिखानेवालों के साथ किस बारे में बात करेंगे, तो इससे हमारा ध्यान हमारे मकसद पर लगा रहेगा। इसके अलावा हमें मोबाइल फोन के इस्तेमाल के बारे में भी सावधान रहना चाहिए। हालाँकि यह कभी-कभी हमारे प्रचार काम के लिए मददगार होता है, मगर हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह घर-मालिक के साथ हमारी बातचीत में कोई खलल पैदा ना करे।

निजी दिलचस्पी लीजिए

13, 14. (क) हम घर-मालिक के दिल की बात का कैसे पता लगा सकते हैं? (ख) हम आध्यात्मिक बातों में एक इंसान की रुचि कैसे जगा सकते हैं?

13 सचेत और सजग सेवक, घर-मालिक की ध्यान से सुनते हैं। आप अपने इलाके के लोगों से कौन-से सवाल पूछ सकते हैं ताकि वे आपको अपने दिल की बात बताएँ? क्या वे इस बात से परेशान हैं कि दुनिया में इतने सारे धर्म हैं, इतनी हिंसा है और सरकारें नाकाम साबित हुई हैं? क्या आप जीव-जंतुओं की कमाल की बनावट या बाइबल की कारगर सलाह के बारे में बात करके हमारे संदेश में लोगों की रुचि जगा सकते हैं? लगभग सभी संस्कृतियों के लोगों को प्रार्थना में रुचि होती है, यहाँ तक कि कुछ नास्तिक लोगों को भी। कुछ लोग शायद इस सवाल का जवाब चाहते हों कि क्या प्रार्थना सुननेवाला कोई है? कुछ और, शायद यह जानना चाहें कि क्या परमेश्‍वर सभी प्रार्थनाएँ सुनता है? अगर नहीं, तो हम क्या कर सकते हैं ताकि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थना सुने?

14 बातचीत शुरू करने की कला के बारे में हम तजुरबेकार प्रचारकों से काफी कुछ सीख सकते हैं। ध्यान दीजिए कि कुशल प्रचारक किस तरह सवाल पूछते हैं। उनके सवाल ऐसे होते हैं कि सामनेवाले को यह नहीं लगता कि उससे पूछताछ की जा रही है या उसके निजी मामलों में दखल दिया जा रहा है। यह भी देखिए कि अपनी बातचीत के लहज़े और चेहरे के हाव-भाव से वे कैसे ज़ाहिर करते हैं कि उन्हें घर-मालिक का नज़रिया समझने में दिलचस्पी है।—नीति. 15:13.

प्यार और कुशलता

15. प्रचार करते वक्‍त हमें क्यों प्यार से पेश आना चाहिए?

15 क्या आपको अच्छा लगेगा कि कोई आपको गहरी नींद से जगाए? बहुत-से लोग गुस्सा हो जाते हैं जब कोई उन्हें एकदम से जगाता है। बेहतर होगा कि किसी को प्यार से, धीरे-धीरे जगाया जाए। यही बात लोगों को आध्यात्मिक तौर पर जगाने के मामले में भी सच है। उदाहरण के लिए, अगर कोई आपके आने पर गुस्सा हो जाए, तो आप क्या कर सकते हैं? प्यार से उन्हें कहिए, ‘माफ कीजिए, शायद आपको हमारा आना पसंद नहीं आया।’ फिर नमस्ते कहकर शांति से लौट जाइए। (नीति. 15:1; 17:14; 2 तीमु. 2:24) आपके ऐसे व्यवहार से, हो सकता है जब अगली बार यहोवा के साक्षी उससे मिलने आएँ, तो वह उनकी सुन ले।

16, 17. प्रचार करते वक्‍त आप समझदारी कैसे दिखा सकते हैं?

16 लेकिन कभी-कभी घर-मालिक के रूखे बर्ताव के बावजूद आप शायद उससे बात कर पाएँ। कुछ घर-मालिक हमसे कहें, “मैं सिर्फ अपने धर्म को मानता हूँ” या “मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं,” शायद इसलिए कि उन्हें लगता है कि किसी से पीछा छुड़ाने का यह सबसे आसान तरीका है। लेकिन अगर कुशलता और प्यार से काम लिया जाए, तो आप शायद ऐसा सवाल पूछ पाएँ जिससे हमारे संदेश में उसकी दिलचस्पी जाग सकती है।—कुलुस्सियों 4:6 पढ़िए।

17 कभी-कभार हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो व्यस्त होने की वजह से हमसे बात नहीं कर सकते। बेहतर होगा कि ऐसे में उनके हालात समझकर हम लौट जाएँ। लेकिन हो सकता है कुछ मौकों पर आप लौटने से पहले घर-मालिक से दो-शब्द कह पाएँ। कुछ भाई एक ही मिनट के अंदर घर-मालिक को बाइबल से एक आयत दिखाकर अगली बार बातचीत करने के लिए एक सवाल भी पूछ लेते हैं। इस छोटे-से प्रदर्शन से कई बार घर-मालिक की रुचि इतनी बढ़ जाती है कि उसे लगता है कि वह हमसे बात करने के लिए कुछ समय निकाल सकता है। अगर हालात इजाज़त दें, तो क्यों न आप यह तरीका आज़माएँ?

18. मौका ढूँढ़कर गवाही देने में हम और असरदार कैसे हो सकते हैं?

18 अगर हम मौके ढूँढ़कर गवाही देने के लिए तैयार रहें, तो जिन लोगों से हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मिलते हैं, उन्हें हम खुशखबरी सुना सकेंगे। बहुत-से भाई-बहन अपनी जेब या बैग में कुछ साहित्य रखते हैं। इसके अलावा, वे बाइबल की एक आयत भी याद कर लेते हैं ताकि मौका मिलने पर वे इसे दूसरों को बता सकें। अगर इस तरह से गवाही देने के लिए आपको मदद चाहिए, तो आप अपनी मंडली के सेवा निगरान या पायनियरों से बात कर सकते हैं।

कोमलता से अपने रिश्‍तेदारों को जगाना

19. अपने रिश्‍तेदारों की मदद करने के मामले में हमें हार क्यों नहीं माननी चाहिए?

19 हम सबकी यह तमन्‍ना है कि हमारे रिश्‍तेदार खुशखबरी कबूल करें। (यहो. 2:13; प्रेषि. 10:24, 48; 16:31, 32) अगर शुरू-शुरू में वे हमारी सुनने से इनकार कर दें, तो हमारा जोश ठंडा पड़ सकता है। हमें लग सकता है कि हम चाहे कुछ भी करें या कहें, उनका रवैया बदलने से रहा। लेकिन हो सकता है, आपके रिश्‍तेदारों के साथ कोई ऐसी घटना घटे, जिससे उनकी ज़िंदगी बदल जाए या फिर उनका नज़रिया बदल जाए। यह भी हो सकता है कि आप वक्‍त के साथ सच्चाई समझाने में और माहिर हो जाएँ, जिस वजह से शायद वे आपकी सुन लें।

20. रिश्‍तेदारों से बात करते वक्‍त सूझ-बूझ से काम लेना ज़रूरी क्यों है?

20 हमें अपने रिश्‍तेदारों की भावनाओं की कदर करनी चाहिए। (रोमि. 2:4) क्या हमें उनके साथ उसी तरह कोमलता से नहीं बात करनी चाहिए, जिस तरह हम प्रचार में मिलनेवालों से करते हैं? कोमलता और अदब के साथ पेश आइए। उन्हें बताइए कि सच्चाई का आपकी ज़िंदगी पर क्या अच्छा असर हुआ है, मगर इस तरह नहीं कि उन्हें लगे कि आप उन्हें भाषण दे रहे हैं। (इफि. 4:23, 24) उन्हें साफ-साफ बताइए कि यहोवा ने कैसे आपको अपने ‘लाभ के लिए शिक्षा दी है,’ जिससे आपकी ज़िंदगी बेहतर बन गयी है। (यशा. 48:17) अपनी मिसाल से ज़ाहिर कीजिए कि एक मसीही की ज़िंदगी कैसी होती है।

21, 22. एक अनुभव बताइए जो दिखाता है कि रिश्‍तेदारों को आध्यात्मिक तौर पर मदद करने की कोशिश करते रहना क्यों फायदेमंद है।

21 हाल ही में एक बहन ने लिखा: “अपनी बातचीत और चालचलन से मैंने हमेशा अपने 13 भाई-बहनों को गवाही देने की कोशिश की है। ऐसा कोई भी साल नहीं बीता जब मैंने उनमें से हरेक को खत न लिखा हो। फिर भी 30 साल से मैं सच्चाई में अकेली हूँ।”

22 वह आगे बताती है: “एक दिन मैंने अपनी एक बहन को फोन किया, जो मुझसे काफी दूर रहती है। उसने मुझे बताया कि उसकी दरखास्त के बावजूद, उसके चर्च का पादरी उसके साथ बाइबल अध्ययन नहीं कर रहा। जब मैंने उसके साथ बाइबल अध्ययन करने की बात कही, तो उसने कहा, ‘ठीक है, लेकिन मैं तुम्हें पहले से बता देती हूँ: मैं कभी एक यहोवा की साक्षी नहीं बनूँगी।’ मैंने उसे डाक से बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब भेजी। फिर मैं हर कुछ दिन बाद उसे फोन करती रही, लेकिन उसने किताब खोलकर तक नहीं देखी थी। एक दिन मैंने उससे फोन पर कहा कि वह अपनी किताब ले आए और फिर हमने किताब में दी आयतें पढ़ीं और लगभग 15 मिनट तक चर्चा की। दो-चार बार ऐसा करने के बाद, उसने मुझे बताया कि वह 15 मिनट से ज़्यादा समय अध्ययन करना चाहती है। फिर तो अध्ययन करने के लिए वह मुझे फोन करने लगी, कभी-कभार उस वक्‍त, जब मैं सुबह बिस्तर में ही होती थी। कई बार तो वह मुझे दिन में दो बार फोन करती थी। अगले साल उसने बपतिस्मा लिया और उसके अगले साल उसने पायनियर सेवा शुरू कर दी।”

23. हमें लोगों को आध्यात्मिक नींद से जगाने की कोशिश क्यों जारी रखनी चाहिए?

23 लोगों को आध्यात्मिक नींद से जगाने के लिए कुशलता और लगातार मेहनत की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन हमारी मेहनत बेकार नहीं है। हर महीने 20,000 से भी ज़्यादा नम्र लोग यहोवा के साक्षियों के तौर पर बपतिस्मा ले रहे हैं। तो फिर आइए हम पौलुस की इस सलाह को मन में उतार लें, जो उसने पहली सदी के हमारे भाई अरखिप्पुस से कही थी: “प्रभु में सेवा की जो ज़िम्मेदारी तुझे सौंपी गयी है, ध्यान रख कि तू उसे पूरा करे।” (कुलु. 4:17) अगले लेख में हम इस बारे में चर्चा करेंगे कि प्रचार की अहमियत को समझते हुए उसमें जी-जान से लगे रहने का क्या मतलब है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर बक्स]

हम कैसे जागते रह सकते हैं

▪ परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में व्यस्त रहिए

▪ अंधकार के कामों से दूर रहिए

▪ आध्यात्मिक तौर पर ऊँघने से बचिए

▪ अपने इलाके के लोगों के बारे में सही नज़रिया रखिए

▪ प्रचार करने के नए-नए तरीके ढूँढ़िए

▪ अपने प्रचार काम की अहमियत को याद रखिए