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“पीछे छोड़ी हुई चीज़ों” को मुड़कर मत देखिए

“पीछे छोड़ी हुई चीज़ों” को मुड़कर मत देखिए

“पीछे छोड़ी हुई चीज़ों” को मुड़कर मत देखिए

“कोई भी आदमी जो हल पर हाथ रखने के बाद, पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर देखता है, वह परमेश्‍वर के राज के लायक नहीं।”—लूका 9:62.

आप क्या जवाब देंगे?

हमें क्यों ‘लूत की पत्नी को याद रखना’ चाहिए?

हमें किन तीन बातों के बारे में ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए?

हम यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर कैसे चल सकते हैं?

1. यीशु ने क्या चेतावनी दी थी और इससे कौन-सा सवाल उठता है?

 “लूत की पत्नी को याद रखो।” (लूका 17:32) यह चेतावनी यीशु ने 2,000 साल पहले दी थी और इस पर ध्यान देना आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। लेकिन यीशु की इस चेतावनी का क्या मतलब था? उसने जिन लोगों से यह बात कही, वे यहूदी थे और उन्हें इस बारे में ज़्यादा समझाने की ज़रूरत नहीं थी। उन्हें पता था कि जब लूत का परिवार सदोम छोड़कर भाग रहा था, तो उसकी पत्नी ने परमेश्‍वर की आज्ञा के खिलाफ पीछे मुड़कर देखा और वह नमक का खंभा बन गयी।—उत्पत्ति 19:17, 26 पढ़िए।

2. लूत की पत्नी ने पीछे मुड़कर क्यों देखा होगा और इसका क्या अंजाम हुआ?

2 लूत की पत्नी ने आखिर पीछे मुड़कर क्यों देखा? क्या वह यह जानना चाहती थी कि पीछे शहर में क्या हो रहा है? क्या उसे यकीन नहीं था कि वाकई शहर का नाश हो रहा है? क्या उसका विश्‍वास कमज़ोर हो गया था? क्या उसने इसलिए पीछे मुड़कर देखा क्योंकि उसके मन में अब भी उन चीज़ों के लिए लालसा थी, जिन्हें वह पीछे सदोम में छोड़ आयी थी? (लूका 17:31) बात चाहे जो भी हो, परमेश्‍वर की आज्ञा न मानने की वजह से उसे अपनी जान गँवानी पड़ी। ज़रा सोचिए, जिस दिन सदोम और अमोरा के दुष्ट निवासियों का नाश हुआ उसी दिन उसकी भी मौत हुई! इसीलिए यीशु ने यह चेतावनी दी: “लूत की पत्नी को याद रखो”!

3. यीशु ने पीछे मुड़कर न देखने की अहमियत कैसे समझायी?

3 आज हम भी एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जब हमें पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर नहीं देखना चाहिए। एक बार यीशु ने एक आदमी को उसके पीछे हो लेने का न्यौता दिया, मगर उस आदमी ने पहले अपने घरवालों से अलविदा कहने की इजाज़त माँगी। यीशु ने जो जवाब दिया उससे उसने पीछे मुड़कर न देखने की अहमियत समझायी। यीशु ने कहा: “कोई भी आदमी जो हल पर हाथ रखने के बाद, पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर देखता है, वह परमेश्‍वर के राज के लायक नहीं।” (लूका 9:62) क्या यीशु उस आदमी के साथ रुखाई से पेश आ रहा था या उससे हद-से-ज़्यादा की माँग कर रहा था? जी नहीं। यीशु को अच्छी तरह मालूम था कि वह आदमी चेला बनने की ज़िम्मेदारी से दूर भागने के लिए बस एक बहाना बना रहा है। यीशु के मुताबिक इस तरह टाल-मटोल करना “पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को” मुड़कर देखने के बराबर था। एक इंसान चाहे हल चलाते-चलाते पीछे मुड़कर देखे या फिर हल छोड़कर पीछे देखे, दोनों ही मामलों में उसका ध्यान अपने काम पर से हट जाता है और वह अपना काम सही तरह से नहीं कर पाता।

4. हमें अपनी नज़रें किस पर टिकाए रखनी चाहिए?

4 बीती बातों पर ध्यान लगाने के बजाय, हमें अपनी नज़रें आगे आनेवाली चीज़ों पर टिकाए रखनी चाहिए। नीतिवचन 4:25 में यह बात साफ बतायी गयी है। वहाँ लिखा है: “तेरी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें, और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें।”

5. हमें क्यों पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर नहीं देखना चाहिए?

5 हमारे लिए पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर न देखना बहुत ज़रूरी है। क्यों? क्योंकि हम “आखिरी दिनों में” जी रहे हैं। (2 तीमु. 3:1) बहुत जल्द, हम सिर्फ दो शहरों का ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की व्यवस्था का नाश देखेंगे। अगर हम चाहते हैं कि हमारे साथ वह न हो जो लूत की पत्नी के साथ हुआ, तो हमें क्या करना होगा? सबसे पहले हमें पहचानना होगा कि कौन-सी चीज़ें हमें पीछे मुड़कर देखने के लिए लुभा सकती हैं। (2 कुरिं. 2:11) आइए देखें कि ऐसी कुछ चीज़ें क्या हैं और हम कैसे उन पर अपना ध्यान लगाने से बच सकते हैं।

वे सुहावने दिन

6. यह क्यों ज़रूरी नहीं कि हम बीते दिनों को जिस तरह याद करते हों, वे हकीकत में वैसे ही रहे हों?

6 हमारा यह सोचना कि बीते दिन कितने सुहावने थे, एक खतरा हो सकता है। ज़रूरी नहीं कि हम बीते दिनों को जिस तरह याद करते हों, वे हकीकत में वैसे ही रहे हों। हो सकता है कि हम बीते दिनों की मुश्‍किलों को भूलकर सिर्फ खुशी के लमहों को याद कर रहे हों, जिससे हमें लग रहा है कि वे दिन बहुत सुहावने थे। इस सोच की वजह से शायद हम उन दिनों की याद में ही डूबे रहें और उनके लौट आने की ख्वाहिश करने लगें। लेकिन बाइबल हमें चेतावनी देती है: “यह न कहना, बीते दिन इन से क्यों उत्तम थे? क्योंकि यह तू बुद्धिमानी से नहीं पूछता।” (सभो. 7:10) इस तरह की सोच क्यों खतरनाक हो सकती है?

7-9. (क) मिस्र में इसराएलियों के साथ क्या हुआ? (ख) इसराएली किन वजहों से खुश हो सकते थे? (ग) वे किस बात को लेकर कुड़कुड़ाने लगे?

7 गौर कीजिए कि मूसा के दिनों में इसराएलियों के साथ क्या हुआ। हालाँकि शुरू-शुरू में इसराएलियों के साथ मिस्र के लोग अच्छी तरह पेश आए, मगर यूसुफ की मौत के बाद मिस्रियों ने “उन पर बेगारी करानेवालों को नियुक्‍त किया कि वे उन पर भार डाल डालकर उनको दुःख दिया करें।” (निर्ग. 1:11) आगे चलकर फिरौन ने फरमान जारी किया कि इसराएलियों के जितने बेटे पैदा हों, उन्हें मार डाला जाए क्योंकि वह नहीं चाहता था कि इसराएलियों की आबादी बढ़े। (निर्ग. 1:15, 16, 22) उनकी इस बुरी हालत को देखकर यहोवा ने मूसा से कहा: “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दुःख को निश्‍चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है।”—निर्ग. 3:7.

8 कल्पना कीजिए कि जब यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद किया, तो वे कितने खुश हुए होंगे? जब यहोवा घमंडी फिरौन और उसके लोगों पर दस विपत्तियाँ लाया, तो इसराएलियों ने उसकी ताकत का हैरतअंगेज़ नमूना देखा। (निर्गमन 6:1, 6, 7 पढ़िए।) मिस्रियों ने न सिर्फ इसराएलियों को जाने दिया बल्कि वे उनसे मिन्‍नतें करने लगे कि वे उनका देश छोड़कर चले जाएँ। जाते वक्‍त मिस्रियों ने उन्हें इतना सोना-चाँदी दिया कि बाइबल कहती है, परमेश्‍वर के लोगों ने “मिस्रियों को लूट लिया।” (निर्ग. 12:33-36) इसके बाद, जब उन्होंने लाल समुद्र में फिरौन और उसकी सेना को डूबते देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। (निर्ग. 14:30, 31) इन चमत्कारों को देखकर तो किसी का भी विश्‍वास मज़बूत हो जाता!

9 लेकिन कुछ ही समय बाद यही लोग कुड़कुड़ाने लगे। इसकी क्या वजह थी? खाना! यहोवा ने उन्हें जो दिया था उससे वे असंतुष्ट हो गए और शिकायत करने लगे। वे कहने लगे, “हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी; परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्‍ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।” (गिन. 11:5, 6) जी हाँ, उनकी सोच बिगड़ गयी थी, इस हद तक कि वे उस देश में लौट जाना चाहते थे, जहाँ उन्हें गुलाम बनाकर रखा गया था। (गिन. 14:2-4) इसराएली पीछे मुड़कर उन चीज़ों को देखने लगे, जिन्हें वे छोड़ आए थे और इस वजह से उन्होंने यहोवा की मंज़ूरी खो दी।—गिन. 11:10.

10. हम इसराएलियों से क्या सबक सीख सकते हैं?

10 हम इसराएलियों से क्या सबक सीख सकते हैं? मुश्‍किलों और परेशानियों के दौर से गुज़रते वक्‍त हमें लग सकता है कि बीते दिन बहुत अच्छे थे, यहाँ तक कि हमें लगे कि सच्चाई सीखने से पहले हमारी ज़िंदगी बहुत अच्छी थी। लेकिन हमें खुद को इस तरह की सोच से दूर रखना चाहिए। अपने अनुभवों से सीखी बातों को याद करना या अपनी मीठी यादों को ताज़ा करना गलत नहीं है। लेकिन हमें इन बातों के बारे में हद-से-ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। हमें बीते दिनों को उसी तरह देखना चाहिए जैसे वे हकीकत में थे, नहीं तो हम अभी की ज़िंदगी से और ज़्यादा दुखी हो जाएँगे और पुराने तौर-तरीकों की ओर लौटने की सोचने लगेंगे।—2 पतरस 2:20-22 पढ़िए।

बीते समय में किए त्याग

11. कुछ लोग बीते दिनों में किए त्याग को आज किस नज़र से देखते हैं?

11 परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए कई लोगों ने बहुत से त्याग किए हैं। लेकिन बड़े दुख की बात है कि इनमें से कुछ लोगों को बाद में ऐसा करने का अफसोस होता है और वे सोचने लगते हैं कि उन्होंने अच्छे मौकों को हाथ से जाने दिया। हो सकता है, आपके पास ऊँची शिक्षा हासिल करने, नाम या पैसे कमाने के मौके रहे हों, लेकिन आपने फैसला किया कि आप इन चीज़ों के पीछे नहीं भागेंगे। हमारे कई भाई-बहन व्यापार, मनोरंजन, शिक्षा या खेल के क्षेत्र में एक पहचान बना चुके थे, मगर सच्चाई के लिए उन्होंने ये सब पीछे छोड़ दिया। लेकिन अब जब काफी वक्‍त गुज़रने के बाद भी अंत नहीं आया है, तो क्या आपके मन में यह खयाल आता है कि अगर आपने ये सब त्याग नहीं किए होते, तो आज आप एक बड़े मुकाम पर होते?

12. पौलुस ने उन चीज़ों के बारे में कैसा महसूस किया जो उसने पीछे छोड़ दी थीं?

12 यीशु का चेला बनने के लिए प्रेषित पौलुस ने कई त्याग किए थे। (फिलि. 3:4-6) पीछे छोड़ी हुई चीज़ों के बारे में उसने कैसा महसूस किया? वह बताता है: “जो बातें मेरे फायदे की थीं, उन्हीं को मैंने मसीह की खातिर नुकसान समझा है।” उसने ऐसा क्यों कहा? वह आगे बताता है: “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु के बारे में उस ज्ञान की खातिर जिसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता, सब बातों को वाकई नुकसान समझता हूँ। उसी की खातिर मैंने सब बातों का नुकसान उठाया है और मैं इन्हें ढेर सारा कूड़ा समझता हूँ ताकि मसीह को पा सकूँ।” * (फिलि. 3:7, 8) जिस तरह एक इंसान को कूड़ा फेंकने का अफसोस नहीं होता, उसी तरह पौलुस को इस बात का पछतावा नहीं हुआ कि उसने दुनिया में नाम कमाने के मौके छोड़ दिए थे। उसकी नज़र में अब उनका कोई मोल नहीं था।

13, 14. हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

13 अगर हम यह सोचने लगे हैं कि हमने ज़िंदगी में नाम कमाने के अच्छे मौकों को हाथ से जाने दिया है, तो क्या बात हमें इस सोच से दूर रहने में मदद दे सकती है? पौलुस की मिसाल हमारी मदद कर सकती है। कैसे? इस बारे में सोचिए कि अभी आपके पास जो है, वह कितना अनमोल है। आपका यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता है और आपने उसकी नज़रों में वफादार सेवक के तौर पर एक अच्छा नाम कमाया है। (इब्रा. 6:10) क्या दुनिया की कोई भी चीज़ उन आशीषों की बराबरी कर सकती है, जो यहोवा की सेवा में हमें आज मिल रही हैं और भविष्य में मिलेंगी?मरकुस 10:28-30 पढ़िए।

14 पौलुस ने आगे जो कहा उससे हमें वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करते रहने में मदद मिल सकती है। उसने कहा: “जो बातें पीछे रह गयी हैं, उन्हें भूलकर मैं खुद को खींचता हुआ आगे की बातों की तरफ बढ़ता जा रहा हूँ।” (फिलि. 3:13) ध्यान दीजिए कि पौलुस ने यहाँ दो अहम कदम उठाने के बारे में कहा। पहला, हमें उन बातों को भूलना होगा जिन्हें हम पीछे छोड़ आए हैं, यानी हमें उनके बारे इतना नहीं सोचना चाहिए कि हमारे पास परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए वक्‍त और ताकत ही न बचे। दूसरा, अंतिम रेखा के पास पहुँचे एक धावक की तरह, हमें आगे की बातों की तरफ ध्यान लगाकर खुद को खींचते हुए, बढ़ते रहना होगा।

15. यहोवा के वफादार सेवकों की मिसाल पर मनन करने से हमें क्या फायदा हो सकता है?

15 परमेश्‍वर के वफादार सेवकों की मिसालों पर मनन करने से हमें आगे बढ़ते रहने में काफी मदद मिल सकती है, फिर चाहे ये मिसाल पुराने ज़माने की हों या आज के ज़माने कीं। उदाहरण के लिए अगर अब्राहम और सारा, ऊर देश को याद करते रहते, “तो उनके पास वहाँ लौट जाने का मौका था।” (इब्रा. 11:13-15) लेकिन वे लौटकर नहीं गए। मूसा ने मिस्र से भागते वक्‍त जितनी चीज़ें पीछे छोड़ी थीं, उतनी किसी भी इसराएली को नहीं छोड़नी पड़ी थीं। लेकिन हम बाइबल में कहीं नहीं पढ़ते कि आगे चलकर उसे इसका पछतावा हुआ। इसके बजाय बाइबल बताती है, “उसने समझा कि परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन होने के नाते निंदा सहना, मिस्र के खज़ानों से कहीं बड़ी दौलत है, क्योंकि वह अपनी नज़र इनाम पाने पर लगाए हुए था।”—इब्रा. 11:26.

बीते समय के कड़वे अनुभव

16. बीती ज़िंदगी के अनुभवों का हम पर क्या असर हो सकता है?

16 बीती ज़िंदगी की हर याद शायद मीठी न हो। हो सकता है कि हम अपने पापों या गलतियों को लेकर अब भी परेशान हो जाते हैं। (भज. 51:3) या शायद हमें कड़ी सलाह दी गयी हो, जिसका दर्द हम आज भी नहीं भुला पाए हों। (इब्रा. 12:11) इसके अलावा हो सकता है कि हमारे साथ कोई नाइंसाफी हुई है, या हमें लग रहा है कि ऐसा हुआ है और हम इसे नहीं भुला पा रहे हैं। (भज. 55:2) ऐसे बुरे अनुभवों की वजह से हम पीछे मुड़कर देखने लग सकते हैं। ऐसा न हो इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? आइए तीन उदाहरणों पर गौर करें।

17. (क) पौलुस ने खुद को “सभी पवित्र जनों में सबसे छोटे से भी छोटा” क्यों कहा? (ख) बुरे ख्यालों को खुद पर हावी न होने देने के लिए पौलुस ने क्या किया?

17 हमारी पिछली गलतियाँ। प्रेषित पौलुस ने कहा कि वह एक ऐसा इंसान है “जो सभी पवित्र जनों में सबसे छोटे से भी छोटा है।” (इफि. 3:8) वह ऐसा क्यों महसूस करता था? पौलुस बताता है: “क्योंकि मैंने परमेश्‍वर की मंडली पर ज़ुल्म ढाया।” (1 कुरिं. 15:9) सोचिए कि जब पौलुस उन लोगों से मिलता होगा जिन्हें एक वक्‍त पर उसने सताया था, तो उसे कैसा लगता होगा? बेशक उसे बुरा लगता होगा। लेकिन उसने इन भावनाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उसने अपना ध्यान उस महा-कृपा पर लगाया जो उस पर दिखायी गयी थी। (1 तीमु. 1:12-16) इस महा-कृपा के लिए वह बहुत एहसानमंद था और इससे उसे अपनी सेवा में और ज़्यादा करने का बढ़ावा मिला। पौलुस जिन बातों को भूलकर आगे बढ़ना चाहता था उनमें वे पाप भी शामिल थे, जो उसने एक वक्‍त पर किए थे। हमें भी अपना ध्यान उस दया पर लगाना चाहिए जो परमेश्‍वर ने हम पर दिखायी है। अगर हम ऐसा करें, तो हम अपनी पिछली गलतियों को लेकर बेवजह परेशान नहीं होंगे बल्कि अपनी ताकत यहोवा की सेवा में लगाएँगे, क्योंकि जो हो चुका है उसे हम नहीं बदल सकते।

18. (क) अगर हम किसी सलाह को लेकर दुखी या नाराज़ हो जाते हैं, तो क्या हो सकता है? (ख) सलाह कबूल करने के बारे में हम सुलैमान की बात को कैसे लागू कर सकते हैं?

18 कड़ी सलाह मिलने का दर्द। अगर हमें पहले कभी कोई कड़ी सलाह मिली है और हम उसके बारे में सोच-सोचकर दुखी या नाराज़ हो जाते हैं, तो शायद हम ‘हिम्मत हार’ बैठें। (इब्रा. 12:5) चाहे हम सलाह को “हल्की बात” समझकर ठुकरा दें या फिर पहले तो उसे कबूल कर लें लेकिन बाद में ‘हिम्मत हार’ जाएँ, नतीजा एक ही होता है। हमें सलाह से कोई फायदा नहीं पहुँचता। इसलिए अच्छा होगा कि हम सुलैमान की यह बात मानें: “शिक्षा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे; उसकी रक्षा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है।” (नीति. 4:13) जिस तरह गाड़ी चलानेवाला एक व्यक्‍ति सड़क के किनारे लगे निर्देशों को मानकर आगे बढ़ता जाता है, उसी तरह ज़रूरी है कि हम भी सलाह कबूल करें, उसे लागू करें और आगे बढ़ते रहें।—नीति. 4:26, 27; इब्रानियों 12:12, 13 पढ़िए।

19. हम हबक्कूक और यिर्मयाह की मिसाल पर किस तरह चल सकते हैं?

19 नाइंसाफी—चाहे असल में हुई हो या हमें ऐसा लग रहा हो। हम शायद कभी-कभी भविष्यवक्‍ता हबक्कूक की तरह महसूस करें। वह समझ नहीं पाया कि यहोवा क्यों नाइंसाफी होने दे रहा है, इसलिए उसने यहोवा से इंसाफ की गुहार लगायी। (हब. 1:2, 3) लेकिन उसका विश्‍वास कमज़ोर नहीं हुआ था। उसने कहा: “तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा, और अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर के द्वारा अति प्रसन्‍न रहूंगा।” (हब. 3:18) हमें भी उसकी मिसाल पर चलना चाहिए। साथ ही, अगर हम यिर्मयाह की तरह न्याय के परमेश्‍वर यहोवा पर पूरे विश्‍वास के साथ ‘आशा रखें,’ तो हम यकीन रख सकते हैं कि वह ज़रूर सही वक्‍त पर सबकुछ ठीक कर देगा।—विला. 3:19-24.

20. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमने ‘लूत की पत्नी को याद रखा’ है?

20 हम बहुत रोमांचक दौर में जी रहे हैं। आज बहुत-सी शानदार घटनाएँ घट रही हैं और आगे कई और होनेवाली हैं। आइए हम सभी यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलते रहें। बाइबल में सलाह दी गयी है कि हम पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर न देखें बल्कि आगे की ओर देखते रहें। इस सलाह को मानकर हम दिखाएँगे कि हमने ‘लूत की पत्नी को याद रखा’ है।

[फुटनोट]

^ पैरा. 12 मूल भाषा के जिस शब्द का अनुवाद यहाँ “कूड़ा” किया गया है, उसका मतलब “कुत्तों के सामने फेंका हुआ बचा-खुचा बेकार का खाना,” “गोबर” या “मल” भी हो सकता है। एक बाइबल विद्वान कहता है कि पौलुस का मतलब था, “किसी बेकार, घिनौनी चीज़ को छोड़ देना और उससे कोई भी नाता न रखना।”

[अध्ययन के लिए सवाल]