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प्रचार की अहमियत समझकर जी-जान से लगे रहिए!

प्रचार की अहमियत समझकर जी-जान से लगे रहिए!

प्रचार की अहमियत समझकर जी-जान से लगे रहिए!

“तू वचन का प्रचार करने में जी-जान से लगा रह।”—2 तीमु. 4:2.

क्या आप समझा सकते हैं?

पहली सदी के मसीहियों ने प्रचार काम को निहायत ज़रूरी क्यों समझा?

हम किस तरह प्रचार काम की अहमियत को हमेशा ध्यान में रख सकते हैं?

प्रचार काम करना, आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी क्यों है?

1, 2. पौलुस ने ‘प्रचार में जी-जान से लगे रहने’ की जो आज्ञा दी, उससे क्या सवाल उठते हैं?

 जिन लोगों पर दूसरों की जान बचाने की ज़िम्मेदारी होती है, वे अकसर बिना समय गँवाए कदम उठाते हैं। मिसाल के लिए जब दमकल विभाग को कहीं आग लगने की खबर मिलती है तो उसके कर्मचारी फौरन निकल पड़ते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि लोगों की जान खतरे में है।

2 यहोवा के साक्षी होने के नाते हम भी लोगों की जान बचाना चाहते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि हम राज की खुशखबरी सुनाने की अपनी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम जल्दबाज़ी करें या हड़बड़ी मचाएँ। प्रेषित पौलुस ने सलाह दी, “तू वचन का प्रचार करने में जी-जान से लगा रह।” (2 तीमु. 4:2) हम प्रचार में कैसे जी-जान से लगे रह सकते हैं? प्रचार में जी-जान से लगे रहना इतना ज़रूरी क्यों है?

प्रचार में जी-जान से लगे रहना ज़रूरी क्यों?

3. राज का संदेश कबूल करने या न करने के क्या नतीजे हो सकते हैं?

3 अगर आप इस बारे में सोचें कि आपके प्रचार काम से लोगों को क्या फायदा होगा और प्रचार ना करने से उन्हें क्या नुकसान होगा, तो आप खुशखबरी सुनाने की अहमियत समझ पाएँगे। (रोमि. 10:13, 14) परमेश्‍वर का वचन कहता है, “जब मैं दुष्ट से कहूं, तू निश्‍चय मरेगा, और वह अपने पाप से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे, . . . तो वह न मरेगा; वह निश्‍चय जीवित रहेगा। जितने पाप उस ने किए हों, उन में से किसी का स्मरण न किया जाएगा।” (यहे. 33:14-16) जी हाँ, सच्चाई सिखानेवालों से बाइबल कहती है, “तू खुद अपना और तेरी बात सुननेवालों का भी उद्धार करेगा।”—1 तीमु. 4:16; यहे. 3:17-21.

4. पहली सदी में प्रचार करना क्यों निहायत ज़रूरी था?

4 पौलुस ने तीमुथियुस को जी-जान से प्रचार करने की जो सलाह दी, उसकी अहमियत समझने के लिए आइए इस लेख के मुख्य वचन के आगे की कुछ आयतों पर ध्यान दें। वहाँ लिखा है: “तू वचन का प्रचार करने में जी-जान से लगा रह, चाहे अच्छा वक्‍त हो या बुरा। पूरी सहनशीलता और सिखाने की कला के साथ ताड़ना दे, डाँट और सीख देकर उकसा। इसलिए कि ऐसा वक्‍त आएगा जब वे खरी शिक्षा को बरदाश्‍त न कर सकेंगे, मगर अपनी ख्वाहिशों के मुताबिक अपने लिए ऐसे शिक्षक इकट्ठे करेंगे जो उनके कानों की खुजली मिटा सकें। वे सच्चाई की तरफ तो अपने कान बंद कर लेंगे।” (2 तीमु. 4:2-4) यीशु ने बताया था कि आगे चलकर धर्मत्यागी उठ खड़े होंगे। (मत्ती 13:24, 25, 38) वह समय जल्द आनेवाला था, इसलिए निहायत ज़रूरी था कि तीमुथियुस मंडली में भी ‘वचन का प्रचार करे’ ताकि मसीही, झूठी शिक्षाओं के बहकावे में आकर गुमराह न हो जाएँ। लोगों की ज़िंदगी दाँव पर लगी थी। आज दुनिया में कैसा माहौल है?

5, 6. प्रचार के दौरान हमारी मुलाकात जिन लोगों से होती है, वे क्या मानते हैं?

5 धर्मत्याग का असर आज बहुत बड़े पैमाने पर देखा जा सकता है। (2 थिस्स. 2:3, 8) आज कौन-सी शिक्षाएँ लोगों के कानों की खुजली मिटा रही हैं? कई देशों में विकासवाद की शिक्षा को लोग धर्म का दर्जा देने लगे हैं। हालाँकि यह विज्ञान की शिक्षा है, मगर इसका इतना ज़बरदस्त असर हुआ है कि इसने परमेश्‍वर और इंसानों के बारे में लोगों का नज़रिया बदलकर रख दिया है। एक और जानी-मानी शिक्षा यह है कि जब परमेश्‍वर को हमारी फिक्र नहीं, तो हमें उसके बारे में जानने की क्या ज़रूरत है। इस तरह की शिक्षाएँ लोगों को आध्यात्मिक तौर पर मीठी नींद सुला देती हैं। लोगों को ये शिक्षाएँ क्यों इतनी भाती हैं? ये शिक्षाएँ मानों उनसे कहती हैं, ‘अपनी मन-मरज़ी किए जाओ, तुमसे हिसाब माँगनेवाला कोई नहीं।’ यह संदेश तो बेशक लोगों के कानों की खुजली मिटाएगा ही!— भजन 10:4 पढ़िए।

6 लोग कई और तरीकों से भी अपने कानों की खुजली मिटाते हैं। मसीहीजगत के लोगों को ऐसे शिक्षक अच्छे लगते हैं जो उनसे कहें, ‘तुम चाहे कुछ भी करो, परमेश्‍वर तुमसे हमेशा प्यार करेगा।’ धर्म-गुरु यह कहकर भी लोगों के कानों की खुजली मिटाते हैं कि तीज-त्योहार मनाने और पूजा-पाठ करने से उन पर ईश्‍वर की बरकत होगी। लेकिन लोग नहीं समझते कि वे कितने बड़े खतरे में हैं। (भज. 115:4-8) अगर हम इन लोगों को नींद से जगा सकें और बाइबल की सच्चाइयाँ सिखा सकें, तो सोचिए भविष्य में उन्हें कितना फायदा होगा!

प्रचार में जी-जान से लगे रहने का मतलब क्या है?

7. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम जी-जान से प्रचार कर रहे हैं?

7 ऑपरेशन करते वक्‍त एक डॉक्टर बहुत ध्यान से अपना काम करता है, क्योंकि वह जानता है कि उसकी ज़रा-सी लापरवाही से किसी की जान जा सकती है। उसी तरह अगर हम प्रचार काम पर अपना पूरा ध्यान लगाएँ, तो हम दिखाएँगे कि हम जी-जान से यह काम कर रहे हैं। इसका मतलब है, हमें इस बारे में सोचना चाहिए कि हमारे इलाके के लोग किन मुद्दों, सवालों या जानकारी में दिलचस्पी रखते हैं। इसके अलावा, हमें ऐसे वक्‍त पर लोगों से मिलने की कोशिश करनी चाहिए जब वे इतमीनान से हमारी बात सुन सकें।—रोमि. 1:15, 16; 1 तीमु. 4:16.

8. जी-जान लगाकर काम करने में और क्या शामिल है?

8 जी-जान लगाकर काम करने में यह भी शामिल है कि हम उन बातों को पहली जगह दें जो ज़्यादा अहमियत रखती हैं। (उत्प. 19:15) मान लीजिए कि आपने कोई जाँच करवायी है। उसकी रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर आपको बुलाता है और आपसे कहता है, “देखिए, आपकी स्थिति बहुत गंभीर है। आपको अपने इलाज के बारे में जल्द-से-जल्द कुछ करना होगा, एक महीने के अंदर ही।” क्या आप यह सुनते ही झट-से डॉक्टर के कमरे से निकल जाएँगे? जी नहीं। इसके बजाय आप उससे सलाह लेंगे, घर जाएँगे और गंभीरता से सोचेंगे कि अब आपके लिए कौन-सी बातें ज़्यादा ज़रूरी हैं और आपको क्या करना चाहिए।

9. हम क्यों कह सकते हैं कि पौलुस ने इफिसुस में जी-जान से प्रचार किया?

9 एशिया ज़िले में अपने प्रचार काम के बारे में पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों को जो बात कही, उससे हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पौलुस किस तरह जी-जान से प्रचार करता था। (प्रेषितों 20:18-21 पढ़िए।) शायद वहाँ पहुँचने के पहले ही दिन से पौलुस घर-घर खुशखबरी सुनाने में लग गया। इसके अलावा दो साल तक वह “हर दिन तरन्‍नुस के स्कूल के सभा-भवन में भाषण दिया करता था।” (प्रेषि. 19:1, 8-10) इससे पता चलता है कि पौलुस जी-जान से प्रचार करने की अहमियत समझता था, इसलिए यह काम उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया था। हमें ‘प्रचार करने में जी-जान से लगे रहने’ की आज्ञा दी गयी है, इसका मतलब यह नहीं कि हम इस काम के बारे में सोचकर घबरा जाएँ। लेकिन हमें इसे अपनी ज़िंदगी में पहली जगह ज़रूर देनी चाहिए।

10. करीब 100 साल पहले मसीहियों ने जी-जान से जो प्रचार काम किया, उसके लिए हमें क्यों शुक्रगुज़ार होना चाहिए?

10 सन्‌ 1914 से पहले बाइबल विद्यार्थियों का समूह बहुत छोटा था। मगर खुशखबरी सुनाने के मामले में उन्होंने जो मिसाल रखी, उससे हम समझ सकते हैं कि जी-जान से प्रचार करने का क्या मतलब है। हालाँकि वे गिनती में कुछ हज़ार ही थे, लेकिन उन्होंने समझा कि यह काम बहुत ज़रूरी है और वे पूरे जोश के साथ इस काम में लग गए। उन्होंने सैकड़ों अखबारों में अपना संदेश छपवाया और लोगों को “फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन” नाम का रंगीन चित्रों और चलचित्रों वाला कार्यक्रम दिखाया। इस तरह वे लाखों लोगों तक खुशखबरी पहुँचा पाए। अगर उन्होंने प्रचार काम की अहमियत नहीं समझी होती, तो हममें से कई लोगों तक राज का संदेश पहुँच ही नहीं पाता।भजन 119:60 पढ़िए।

प्रचार करने की अहमियत कभी मत भूलिए

11. कुछ लोग प्रचार करने की अहमियत को क्यों भूल गए?

11 हमारा ध्यान इस बात से हट सकता है कि प्रचार काम कितना अहम है। शैतान इस दुनिया के ज़रिए हमें निजी कामों और गैर-ज़रूरी मामलों में फँसाकर प्रचार काम से हमारा ध्यान भटका देता है। (1 पत. 5:8; 1 यूह. 2:15-17) कई लोग एक वक्‍त पर परमेश्‍वर की सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते थे, मगर बाद में वे प्रचार काम की अहमियत भूल गए। पहली सदी के एक मसीही देमास की मिसाल लीजिए। वह पौलुस का “सहकर्मी” था, लेकिन इस दुनिया की चमक-दमक से उसका ध्यान बँट गया। मुश्‍किल दौर में अपने भाई पौलुस को सहारा देने के बजाय देमास ने उसे छोड़ दिया।—फिले. 23, 24; 2 तीमु. 4:10.

12. अभी क्या करने का मौका है और आगे चलकर कौन-से मौके हमारे लिए हमेशा तक खुले रहेंगे?

12 कुछ लोग कहते हैं कि ज़िंदगी एक ही बार मिलती है, इसलिए इसका पूरा मज़ा लेना चाहिए। लेकिन हमें इस नज़रिए से बचना होगा, वरना हम प्रचार काम की अहमियत भूल सकते हैं। हमें ‘असली ज़िंदगी पर मज़बूत पकड़ हासिल करनी’ चाहिए। (1 तीमु. 6:18, 19) हम जानते हैं कि जब परमेश्‍वर के राज में हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी तो हमारे पास अपने शौक पूरे करने और ज़िंदगी का मज़ा लेने के बहुत-से मौके होंगे। लेकिन अभी वक्‍त लोगों की मदद करने का है, ताकि वे हर-मगिदोन से बच सकें और यह मौका हमें बाद में नहीं मिलेगा।

13. हम मसीही किस तरह प्रचार काम की अहमियत को हमेशा ध्यान में रख सकते हैं?

13 हमारे चारों तरफ लोग आध्यात्मिक तौर पर सो रहे हैं, लेकिन हम कैसे जागते रह सकते हैं, यानी हम किस तरह प्रचार काम की अहमियत को हमेशा ध्यान में रख सकते हैं? हमें नहीं भूलना चाहिए कि एक वक्‍त था जब हम भी अंधकार में सो रहे थे और हमारे पास कोई आशा नहीं थी। लेकिन जैसा पौलुस ने कहा, हमें जगाया गया और हम पर मसीह की तरफ से ज्ञान की रौशनी चमकी। अब हमें दूसरों को यह रौशनी दिखाने का सुनहरा मौका मिला है। (इफिसियों 5:14 पढ़िए।) इसके बाद पौलुस ने लिखा: “खुद पर कड़ी नज़र रखो कि तुम्हारा चालचलन कैसा है, मूर्खों की तरह नहीं बल्कि बुद्धिमानों की तरह चलो। तय वक्‍त का पूरा-पूरा इस्तेमाल करो जिससे तुम्हें फायदा हो, क्योंकि दिन बुरे हैं।” (इफि. 5:15, 16) भले ही हमारे चारों तरफ बुराई फैली हो, लेकिन हमें ऐसे कामों के लिए ‘वक्‍त का पूरा-पूरा इस्तेमाल करना’ चाहिए, जिनसे हमें आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने में मदद मिले।

हम किस दौर में जी रहे हैं?

14-16. प्रचार काम करना, आज पहले से ज़्यादा ज़रूरी क्यों है?

14 प्रचार काम शुरू से ही ज़रूरी रहा है, लेकिन आज के दौर में इसकी अहमियत और भी बढ़ गयी है। सन्‌ 1914 से हम उन घटनाओं को पूरा होते देख रहे हैं, जिनके बारे में बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी। (मत्ती 24:3-51) कई वजहों से आज इंसान का अस्तित्व खतरे में है। आपसी समझौतों के बावजूद ताकतवर देशों के पास 2,000 से ज़्यादा परमाणु हथियार दागे जाने को एकदम तैयार हैं। कई अधिकारी बताते हैं कि आणविक हथियार बनाने की चीज़ों के ‘खोने’ की सैकड़ों रिपोर्टें मिली हैं। क्या इनमें से कुछ आतंकवादियों के हाथ लग गयी हैं? कुछ लोग कहते हैं कि किसी आतंकवादी द्वारा छेड़ा गया युद्ध, बड़ी आसानी से पूरी दुनिया को तबाह कर सकता है। लेकिन इंसानों को खतरा सिर्फ युद्ध से ही नहीं है।

15 द लैन्सेट पत्रिका और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन द्वारा 2009 में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है, “इक्कीसवीं सदी में लोगों की सेहत के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जलवायु में हो रहा बदलाव। आनेवाले दशकों में इसका बुरा असर दुनिया के ज़्यादातर लोगों की सेहत पर दिखायी देगा। अरबों लोगों की जान खतरे में पड़ जाएगी।” साथ ही, इसकी वजह से इंसानों पर और भी कई विपत्तियाँ आ सकती हैं, जैसे समुद्र-तल के ऊपर उठने से मचनेवाली तबाही, सूखा, बाढ़, महामारियाँ, तूफान और कम होते प्राकृतिक संसाधनों को लेकर युद्ध। जी हाँ, युद्ध और दूसरी आफतें इंसानों के लिए खतरा बनी हुई हैं।

16 कुछ लोग शायद सोचें कि परमाणु युद्ध के बढ़ते खतरे के चलते जो घटनाएँ घटेंगी, उनसे बाइबल में बतायी गयी “निशानी” पूरी होगी। लेकिन ज़्यादातर लोगों को इस निशानी की सही समझ नहीं है। इस निशानी को हम कई दशकों से पूरा होते देख रहे हैं। इसका मतलब है कि मसीह की मौजूदगी अभी चल रही है और यह भी कि अंत बहुत नज़दीक है। (मत्ती 24:3) आज इस निशानी के जितने पहलुओं को पूरा होते साफ देखा जा सकता है, उतना पहले कभी नहीं देखा गया। वक्‍त आ गया है कि लोग आध्यात्मिक नींद से जाग उठें। हम अपने प्रचार काम से उन्हें जगा सकते हैं।

17, 18. (क) हम “कैसे वक्‍त में” जी रहे हैं, इस बात की समझ का हम पर कैसा असर होना चाहिए? (ख) क्या बातें राज के संदेश के लिए लोगों का रवैया बदल सकती हैं?

17 यहोवा के लिए प्यार दिखाने और प्रचार सेवा को पूरा करने के लिए हमारे पास बहुत कम समय रह गया है। पौलुस ने पहली सदी में रोम के मसीहियों को जो बात कही थी, वह हमारे लिए आज और भी मायने रखती है। उसने कहा: “तुम जानते हो कि कैसे वक्‍त में जी रहे हो। अब तुम्हारे लिए नींद से जाग उठने की घड़ी आ चुकी है, इसलिए कि जब हम विश्‍वासी बने थे, तब के मुकाबले आज हमारे उद्धार का वक्‍त और भी पास आ गया है।”—रोमि. 13:11.

18 कुछ लोग शायद आध्यात्मिक तौर पर तब जाग उठें, जब वे आखिरी दिनों के बारे में बतायी गयी घटनाओं को होता देखें। इसके अलावा जब लोग देखते हैं कि सरकारें आर्थिक मंदी, परमाणु खतरों, हिंसा और पर्यावरण की बरबादी को रोकने में नाकाम हैं, तब शायद उनकी आँखें खुलें। कुछ लोगों को शायद अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत का एहसास तब हो, जब उनका परिवार बीमारी, तलाक या मौत के दर्द से गुज़रता है। प्रचार में हिस्सा लेकर हम ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं।

प्रचार की अहमियत को समझने का असर

19, 20. प्रचार काम की अहमियत को समझने की वजह से कई मसीहियों ने अपनी ज़िंदगी में कैसे बदलाव किए हैं?

19 प्रचार काम की अहमियत को समझने की वजह से कई मसीही, इसमें और ज़्यादा समय बिताने लगे हैं। इक्वेडोर में रहनेवाले एक पति-पत्नी का उदाहरण लीजिए। सन्‌ 2006 में एक खास सम्मेलन दिन हुआ था जिसका विषय था, “अपनी आँख निर्मल बनाए रखो।” इस कार्यक्रम को सुनने के बाद, इस दंपत्ति ने अपनी ज़िंदगी को और सादा बनाने का फैसला किया। उन्होंने ऐसी चीज़ों की सूची बनायी जिनकी उन्हें ज़रूरत नहीं थी। तीन महीने के अंदर, वे चार कमरेवाले मकान से दो कमरेवाले मकान में आ गए, उन्होंने कुछ चीज़ें बेच दीं और अपने सारे कर्ज़े चुका दिए। जल्द ही उन्होंने सहयोगी पायनियर सेवा शुरू कर दी। फिर सर्किट निगरान की सलाह मानकर वे एक ऐसी मंडली में सेवा करने लगे जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी।

20 उत्तर अमरीका के एक भाई ने लिखा: “मैं और मेरी पत्नी, 2006 में एक सम्मेलन में हाज़िर हुए। हमें बपतिस्मा लिए 30 साल हो चुके थे। सम्मेलन के बाद घर लौटते वक्‍त हमने इस बात पर चर्चा की कि हम अपनी ज़िंदगी को सादा बनाने के बारे में दी गयी सलाह को कैसे अमल में ला सकते हैं। (मत्ती 6:19-22) हमारे पास तीन घर, ज़मीन, महँगी कारें, एक नाव और एक चलता-फिरता घर था। हम सोचने लगे कि हम कैसे मसीही हैं, भाई-बहनों की नज़रों में हम कितने बेवकूफ दिख रहे होंगे। हमने फैसला किया कि हम पूरे समय की सेवा करेंगे। हमारी बेटी पायनियर थी और 2008 में हमने भी उसके साथ पायनियर सेवा शुरू कर दी। हम बता नहीं सकते कि भाई-बहनों के साथ ज़्यादा वक्‍त बिताने से हमें कितनी खुशी मिली! हम ऐसी जगह जाकर सेवा कर पाए हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। इसके अलावा यहोवा की सेवा में ज़्यादा काम करने से हम उसके और भी करीब आ पाए हैं। जब हम देखते हैं कि कैसे परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई सुनकर और उसे समझकर लोगों की आँखें चमक उठती हैं, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।”

21. क्या बात हमें दूसरों को खुशखबरी सुनाने के लिए उकसाती है?

21 हम जानते हैं कि ‘न्याय का दिन, यानी भक्‍तिहीन लोगों के नाश किए जाने का दिन’ बहुत जल्द आनेवाला है। (2 पत. 3:7) परमेश्‍वर के वचन की समझ हमें उकसाती है कि हम जोश के साथ दूसरों को आनेवाले महा-संकट और नयी दुनिया के बारे में बताएँ। हमारी दिली तमन्‍ना है कि हम लोगों को भविष्य की सच्ची आशा देने में जी-जान लगा दें। इस अहम काम में हिस्सा लेकर हम दिखा सकते हैं कि हम अपने परमेश्‍वर और सभी इंसानों से प्यार करते हैं।

[अध्ययन के लिए सवाल]