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क्या आपको याद है?

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क्या आपको याद है?

क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ पढ़ने का आनंद लिया है? देखिए कि क्या आप नीचे दिए सवालों के जवाब दे पाते हैं या नहीं:

किस मायने में सुलैमान की मिसाल हमारे लिए एक चेतावनी है?

परमेश्‍वर ने राजा सुलैमान पर आशीष दी और उसे राजा के तौर पर इस्तेमाल किया। लेकिन अपनी हुकूमत के दौरान उसने परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन नहीं किया। उसने झूठे देवी-देवताओं की पूजा करनेवाली फिरौन की बेटी से शादी की। यही नहीं, उसने कई पत्नियाँ रखीं। झूठे देवताओं को पूजने वाली ये स्त्रियाँ धीरे-धीरे उसे झूठी उपासना की तरफ ले गयीं। हमें खबरदार रहना चाहिए कि कहीं हमारे अंदर धीरे-धीरे गलत रवैया या फितरत पैदा न हो जाए। (व्यव. 7:1-4; 17:17; 1 राजा 11:4-8)—12/15, पेज 10-12.

क्या बात दिखाती है कि इस धरती पर पहली सदी से हमेशा कोई-न-कोई अभिषिक्‍त मसीही रहा है?

यीशु ने “गेहूँ” और “जंगली पौधों” की जो मिसाल दी थी, उसमें “बढ़िया बीज” का मतलब है “राज के बेटे।” (मत्ती 13:24-30, 38) कटाई तक जंगली पौधे, गेहूँ के साथ-साथ बढ़ते हैं। हालाँकि हम पूरे यकीन के साथ तो नहीं कह सकते कि कौन गेहूँ वर्ग के थे, मगर हाँ, पहली सदी से लेकर हमारे समय तक कुछ अभिषिक्‍त जन हमेशा रहे हैं।—1/15, पेज 7.

हम किस तरह ईर्ष्या की फितरत पर काबू पा सकते हैं?

कुछ ज़रूरी कदम जो हमारी मदद कर सकते हैं: भाइयों के लिए लगाव और प्यार पैदा कीजिए; परमेश्‍वर के लोगों के साथ संगति कीजिए; भलाई करने के मौके ढूँढ़िए और ‘खुशी मनानेवालों के साथ खुशी मनाइए।’ (रोमि. 12:15)—2/15, पेज 16-17.

दूसरों को सलाह देते वक्‍त हमें किन सिद्धातों को ध्यान में रखना चाहिए?

हकीकत को पहचानिए। जल्दबाज़ी में जवाब मत दीजिए। परमेश्‍वर के वचन पर नम्रता से चलिए। विश्‍वासयोग्य दास से मिले साहित्य का अच्छा इस्तेमाल कीजिए। दूसरों के लिए फैसले लेने से दूर रहिए।—3/15, पेज 7-9.