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पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहिए

पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहिए

पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहिए

“हे मेरे पुत्र . . . अपने पिता के परमेश्‍वर का ज्ञान रख, और खरे मन . . . से उसकी सेवा करता रह।”—1 इति. 28:9.

इन सवालों के जवाब ढूँढ़िए:

लाक्षणिक “दिल” क्या है?

अपने दिल की जाँच करने का एक तरीका क्या है?

हम पूरे दिल से यहोवा की सेवा कैसे कर सकते हैं?

1, 2. (क) बाइबल में शरीर के किस अंग का दूसरे अंगों के मुकाबले ज़्यादा बार लाक्षणिक तौर पर ज़िक्र किया गया है? (ख) लाक्षणिक “दिल” क्या है यह जानना क्यों बेहद ज़रूरी है?

 परमेश्‍वर के वचन, बाइबल में शरीर के अलग-अलग अंगों का अकसर लाक्षणिक तौर पर इस्तेमाल किया गया है। जैसे, कुलपिता अय्यूब ने कहा, “मेरे हाथों से कोई हिंसा नहीं हुई।” राजा सुलैमान ने कहा, “अच्छे समाचार से हड्डियां पुष्ट होती हैं।” यहोवा ने यहेजकेल को यकीन दिलाया, “मैं तेरे माथे को . . . कड़ा कर देता हूं जो चकमक पत्थर से भी कड़ा होता है।” और कुछ लोगों ने प्रेषित पौलुस से कहा, “तू हमें ऐसी नयी बातें बता रहा है जो हमारे कानों को अजीब लगती हैं।”—अय्यू. 16:17, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन; नीति. 15:30; यहे. 3:9; प्रेषि. 17:20.

2 लेकिन शरीर का एक अंग ऐसा है, जिसका दूसरे अंगों के मुकाबले बाइबल में ज़्यादा बार ज़िक्र किया गया है। और वह अंग है हमारा दिल। * वफादार हन्‍ना ने अपनी प्रार्थना में इसका ज़िक्र किया। उसने कहा, “मेरा मन यहोवा के कारण मगन है।” (1 शमू. 2:1) बाइबल लेखकों ने करीब हज़ार बार शब्द “दिल” का ज़िक्र किया और ज़्यादातर लाक्षणिक तौर पर। लाक्षणिक “दिल” क्या है यह जानना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है क्योंकि बाइबल कहती है, हमें इसकी हिफाज़त करनी चाहिए।—नीतिवचन 4:23 पढ़िए।

लाक्षणिक दिल क्या है?

3. बाइबल में दिए लाक्षणिक दिल का मतलब हम कैसे समझ सकते हैं? मिसाल देकर समझाइए।

3 हालाँकि बाइबल किसी शब्दकोश की तरह “दिल” की कोई परिभाषा नहीं देती, मगर इसका मतलब समझने में हमारी मदद ज़रूर करती है। कैसे? ज़रा इस मिसाल पर गौर कीजिए। मान लीजिए, एक दीवार पर छोटे-छोटे रंग-बिरंगे पत्थरों को जोड़कर एक खूबसूरत तसवीर बनायी गयी है। अगर हम उस तसवीर को बहुत करीब से देखें, तो शायद वह हमें इतनी समझ नहीं आएगी। लेकिन अगर हम कुछ कदम पीछे हटकर उसे थोड़ी दूर से देखें, तो हम समझ पाएँगे कि अलग-अलग पत्थरों को बारीकी से सजाकर क्या तसवीर बनायी गयी है। ठीक उसी तरह, बाइबल में जहाँ-जहाँ शब्द “दिल” आता है, अगर हम उन सब हवालों की जाँच करें, तो हम इसका मतलब अच्छी तरह समझ पाएँगे।

4. (क) बाइबल में “दिल” का क्या मतलब है? (ख) मत्ती 22:37 में दिए यीशु के शब्दों का क्या मतलब है?

4 बाइबल लेखकों ने जब शब्द “दिल” का इस्तेमाल किया, तो उनका मतलब था कि इसमें उसकी ख्वाहिशें, सोच-विचार, स्वभाव, रवैया, काबिलीयतें, इरादे और उसके लक्ष्य शामिल हैं। (व्यवस्थाविवरण 15:7; नीतिवचन 16:9; प्रेषितों 2:26 पढ़िए।) लेकिन कुछ आयतें ऐसी हैं जहाँ शब्द “दिल” में यहाँ बताए सिर्फ कुछ ही पहलू शामिल हैं। उदाहरण के लिए यीशु ने कहा था, “तुझे अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है।” (मत्ती 22:37) इस आयत में “दिल” एक इंसान की असली भावनाओं, ख्वाहिशों और जज़्बातों को दर्शाता है। यीशु ने यहाँ दिल, जान और दिमाग का अलग-अलग ज़िक्र किया। क्यों? क्योंकि वह ज़ोर देना चाहता था कि हमें अपने जज़्बातों, जीने के तरीके और जिस तरह हम अपनी दिमागी काबिलीयतें इस्तेमाल करते हैं, इन सबके ज़रिए परमेश्‍वर के लिए प्यार दिखाना चाहिए। (यूह. 17:3; इफि. 6:6) लेकिन जब सिर्फ “दिल” का ज़िक्र होता है, तो यह अंदर के इंसान को दर्शाता है।

हमें क्यों अपने दिल की हिफाज़त करनी चाहिए?

5. हमें क्यों पूरे दिल से यहोवा की सेवा में अपना भरसक करना चाहिए?

5 दिल के बारे में राजा दाविद ने सुलैमान को याद दिलाया, “हे मेरे पुत्र . . . तू अपने पिता के परमेश्‍वर का ज्ञान रख, और खरे मन और प्रसन्‍न जीव से उसकी सेवा करता रह; क्योंकि यहोवा मन को जांचता और विचार में जो कुछ उत्पन्‍न होता है उसे समझता है।” (1 इति. 28:9) असल में, यहोवा सबके दिलों का जाँचने वाला है, हमारे दिलों का भी। (नीति. 17:3; 21:2) अगर हमारे दिलों को जाँचने पर वह कुछ ऐसा पाता है जिससे उसे खुशी होती है, तो हम उसके मित्र बन सकते हैं और एक सुनहरा भविष्य पा सकते हैं। तो आइए परमेश्‍वर की प्रेरणा से दी दाविद की सलाह को मानते हुए हम पूरे दिल से यहोवा की सेवा में अपना भरसक करें।

6. क्या बातें यहोवा की सेवा करने का हमारा इरादा कमज़ोर कर सकती हैं?

6 हम जिस जोशो-खरोश के साथ उसका काम करते हैं, उससे दिखाते हैं कि हम पूरे दिल से उसकी सेवा करना चाहते हैं। साथ ही, हम जानते हैं कि शैतान की दुष्ट दुनिया और हमारे पापी शरीर का रुझान, हम पर ज़बरदस्त असर कर सकते हैं और पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने का हमारा इरादा कमज़ोर कर सकते हैं। (यिर्म. 17:9; इफि. 2:2) इसलिए हमें लगातार अपने दिल की जाँच करते रहना चाहिए कि कहीं पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने का हमारा इरादा कमज़ोर तो नहीं पड़ रहा या हम इस मामले में लापरवाही तो नहीं दिखा रहे। तो फिर हम कैसे अपने दिल की जाँच कर सकते हैं?

7. किस बात से ज़ाहिर होता है कि हमारा दिल कैसा है?

7 ठीक जिस तरह, एक पेड़ के तने के अंदर के हिस्से को कोई नहीं देख सकता। उसी तरह, कोई इंसान नहीं जान सकता कि हम असल में अंदर से कैसे हैं। पहाड़ी उपदेश में यीशु ने कहा था कि जैसे एक पेड़ के फल से पता चलता है कि पेड़ असल में कैसा है, उसी तरह हमारे कामों से ज़ाहिर होता है कि असल में हमारा दिल कैसा है यानी हम अंदर से कैसे हैं। (मत्ती 7:17-20) आइए एक काम पर गौर करें जिससे ज़ाहिर होता है कि हमारे दिल का क्या हाल है।

अपने दिल की जाँच करने का एक तरीका

8. मत्ती 6:33 में दिए यीशु के शब्दों के मुताबिक हम कैसे दिखाते हैं कि हमारे दिल में क्या है?

8 पहाड़ी उपदेश में यीशु ने अपने सुननेवालों को बताया कि पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने का अपना जज़्बा दिखाने के लिए उन्हें क्या करना होगा। उसने कहा: “तुम पहले उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।” (मत्ती 6:33) वाकई हम अपनी ज़िंदगी में जिन चीज़ों को पहली जगह देते हैं उससे ज़ाहिर करते हैं कि हम दिल की गहराइयों में किस बारे में सोचते हैं, हमारी इच्छाएँ क्या हैं और हम क्या करने की सोच रहे हैं। तो फिर यहोवा की सेवा हम पूरे दिल से कर रहे हैं या नहीं, यह हम कैसे जान सकते हैं? एक आसान तरीका है, यह देखना कि हम अपनी ज़िंदगी में किन चीज़ों को सबसे ज़्यादा अहमियत दे रहे हैं।

9. यीशु ने कुछ आदमियों को क्या न्यौता दिया और उनके रवैए से क्या ज़ाहिर हुआ?

9 यीशु ने जब अपने चेलों से गुज़ारिश की कि वे पहले राज की खोज करने में लगे रहें, तो इसके कुछ समय बाद एक वाकया हुआ। यह वाकया दिखाता है कि एक इंसान अपनी ज़िंदगी में जिस चीज़ को पहली जगह देता है उससे पता चलता है कि उसका दिल कैसा है। खुशखबरी की किताब के एक लेखक, लूका ने उस वाकये के बारे में बताते हुए कहा, यीशु ने “यरूशलेम की तरफ रुख करने की ठान ली।” हालाँकि यीशु अच्छी तरह जानता था कि उसके साथ यरूशलेम में क्या सलूक किया जाएगा, इसके बावजूद उसने ठान लिया कि वह वहाँ ज़रूर जाएगा। जब वह और उसके प्रेषित यरूशलेम के लिए “सड़क पर जा रहे थे,” तो रास्ते में यीशु कुछ आदमियों से मिला, जिन्हें उसने यह न्यौता दिया, “मेरा चेला बनकर मेरे पीछे हो ले।” वे आदमी यीशु के न्यौते को कबूल करने के लिए तैयार थे, लेकिन कुछ शर्तों पर। एक आदमी ने कहा, “मुझे इजाज़त दे कि मैं चला जाऊँ और पहले अपने पिता को दफना दूँ। दूसरे ने कहा, “हे प्रभु, मैं तेरा चेला बनकर तेरे पीछे आऊँगा, मगर मुझे इजाज़त दे कि पहले अपने घरवालों को अलविदा कह दूँ।” (लूका 9:51, 57-61) इससे साफ पता चलता है कि परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने का यीशु का इरादा कितना पक्का था वहीं दूसरी तरफ, वे दोनों आदमी अपने इरादों में कितने कमज़ोर थे। उन दो आदमियों ने राज के कामों के बजाए अपनी चिंताओं को पहली जगह देकर ज़ाहिर किया कि वे पूरे दिल से परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए तैयार नहीं थे।

10. (क) यीशु के पीछे हो लेने के न्यौते के लिए हमने कैसा रवैया दिखाया? (ख) यीशु ने क्या मिसाल दी?

10 उन दो आदमियों के उलट, हमने बुद्धिमानी दिखाते हुए यीशु के पीछे हो लेने का न्यौता कबूल किया है और हर दिन यहोवा की सेवा कर रहे हैं। इस तरह हम ज़ाहिर करते हैं कि यहोवा के बारे में हम अपने दिल में कैसा महसूस करते हैं। हो सकता है हम मंडली के कामों में ज़ोर-शोर से हिस्सा लेते हों, फिर भी हमें सतर्क रहना चाहिए क्योंकि हमारे दिल पर हमेशा एक खतरा मँडराता रहता है। वह खतरा क्या है? उन आदमियों से बातचीत करते वक्‍त यीशु ने उस खतरे के बारे में बताया। उसने कहा, “कोई भी आदमी जो हल पर हाथ रखने के बाद, पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर देखता है, वह परमेश्‍वर के राज के लायक नहीं।” (लूका 9:62) यीशु की दी इस छोटी मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?

क्या हम “अच्छी बातों से लिपटे” रहते हैं?

11. यीशु की बतायी मिसाल में मज़दूर को सौंपे गए काम का क्या हुआ? और क्यों?

11 आइए यीशु की दी मिसाल को समझने के लिए उसे और भी जीता-जागता बनाएँ, ताकि हम उसमें छिपे सबक को अच्छी तरह समझ सकें। मान लीजिए, एक मज़दूर खेत जोतने में व्यस्त है। लेकिन काम करते वक्‍त उसे बार-बार अपने घर की याद आ रही है। वह सोच रहा है कि घर पर उसके परिवारवाले, उसके दोस्त इत्मीनान से बैठकर बढ़िया खाना खा रहे होंगे, संगीत सुन रहे होंगे और हँसी मज़ाक कर रहे होंगे। मन-ही-मन उसे लग रहा है, “काश! मैं भी घर पर होता।” कुछ देर हल जोतने के बाद घर लौटने की चाहत उस मज़दूर पर इस कदर हावी हो जाती है कि वह “पीछे छोड़ी हुई चीज़ों” की तरफ मुड़कर देखने लगता है। हालाँकि बीज बोने से पहले ढेर सारा काम करना बाकी है, लेकिन उस मज़दूर का ध्यान भटक चुका है। वह काम करना बंद कर देता है। बेशक मालिक यह देखकर निराश हो जाएगा कि मज़दूर ने काम में लगे रहने के बजाय, उसे बीच में ही छोड़ दिया।

12. यीशु की मिसाल में बताए मज़दूर की तरह, आज कुछ मसीहियों के साथ क्या हो सकता है?

12 आज हमारे समय में भी ऐसा हो सकता है। उस मज़दूर किसान की तुलना हम किसी भी ऐसे मसीही के साथ कर सकते हैं, जो सच्चाई में शायद अच्छा कर रहा हो मगर परमेश्‍वर के साथ उसका रिश्‍ता खतरे में है। मान लीजिए, एक मसीही भाई लगातार सभाओं में आता है, प्रचार में हिस्सा लेता है, मगर साथ-ही-साथ उसे दुनिया की कुछ चीज़ें बहुत प्यारी हैं और दिल के किसी कोने में वह उन्हें पाने की चाहत रखता है। वह कई सालों तक परमेश्‍वर की सेवा करता है। मगर फिर दुनिया की चीज़ें पाने की चाहत उस पर इस कदर हावी हो जाती है कि वह “पीछे छोड़ी हुई चीज़ों” को मुड़कर देखने लगता है। हालाँकि परमेश्‍वर की सेवा में उसके आगे बहुत कुछ करने को है, मगर वह “जीवन के वचन पर मज़बूत पकड़” बनाए नहीं रखता और पहले की तरह परमेश्‍वर की सेवा नहीं कर पाता। (फिलि. 2:16) ज़रा सोचिए “खेत के मालिक” यहोवा को यह देखकर कितना दुख होगा कि वह भाई सेवा में लगे रहने के बजाए दुनिया की चीज़ों के पीछे चला गया।—लूका 10:2.

13. पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने में और क्या शामिल है?

13 इस मिसाल से हम क्या सीखते हैं? यह वाकई काबिले-तारीफ है कि हम लगातार मंडली की सभाओं में हाज़िर होते हैं और प्रचार में भाग लेते हैं। मगर पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने में इससे ज़्यादा कुछ शामिल है। (2 इति. 25:1, 2, 27) अगर एक मसीही के दिल में कहीं भी “पीछे छोड़ी हुई चीज़ों” के लिए यानी दुनिया की चीज़ों या उसके जीने के तरीके के लिए प्यार है, तो परमेश्‍वर के साथ उसका रिश्‍ता खतरे में पड़ सकता है। (लूका 17:32) अगर हम ‘दुष्ट बातों से घिन करें और अच्छी बातों से लिपटे रहें,’ तभी हम “परमेश्‍वर के राज के लायक” होंगे। (रोमि. 12:9; लूका 9:62) इसलिए आइए हम सब ठान लें कि शैतान की दुनिया की कोई भी चीज़ हमें राज के कामों को पूरे दिलो-जान से करने से न रोक सके, फिर चाहे वह चीज़ हमें कितनी ही ज़रूरी या अच्छी क्यों न लगे।—2 कुरिं. 11:14; फिलिप्पियों 3:13, 14 पढ़िए।

सतर्क रहिए!

14, 15. (क) शैतान किस तरह हमारे दिल पर असर कर सकता है? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि शैतान की धूर्त चाल क्यों इतनी असरदार है?

14 यहोवा के लिए हमारे प्यार ने हमें उभारा है कि हम अपना जीवन उसे समर्पित करें। समर्पण के बाद हममें से कइयों ने सालों के दौरान यह साबित किया है कि हम पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहेंगे। लेकिन शैतान हार माननेवालों में से नहीं है और वह अभी-भी हमारे दिल को निशाना बनाए हुए है। (इफि. 6:12) वह जानता है कि हम यहोवा की सेवा करना एकदम से नहीं छोड़ देंगे। इसलिए वह बड़ी चालाकी से “इस ज़माने की चिंताएँ” हम पर डालता है, ताकि परमेश्‍वर की सेवा में हमारा जोश धीरे-धीरे ठंडा पड़ जाए। (मरकुस 4:18, 19 पढ़िए।) शैतान की यह धूर्त चाल क्यों इतनी असरदार है?

15 इसका जवाब जानने के लिए एक उदाहरण लीजिए। सोचिए कि आप 100 वॉट के बल्ब की रौशनी में किताब पढ़ रहे हैं, तभी अचानक बल्ब फ्यूज़ हो जाता है और पूरे कमरे में अँधेरा छा जाता है। आप एक नया बल्ब लगाते हैं और कमरे में दोबारा रौशनी आ जाती है। अगले दिन आप शाम के वक्‍त वापस पढ़ाई करने बैठते हैं। मगर आप इस बात से अनजान हैं कि किसी ने 100 वॉट की जगह 95 वॉट का बल्ब लगा दिया है। क्या आपको रौशनी में फर्क मालूम पड़ेगा? शायद नहीं। मगर तब क्या जब अगले दिन 95 वॉट की जगह 90 वॉट का बल्ब लगा दिया जाता है? शायद आपको तब भी कोई फर्क नज़र न आए। क्यों नहीं? क्योंकि रौशनी धीरे-धीरे कम हुई है और आप इससे बेखबर हैं। ठीक इसी तरह, शैतान की दुनिया का असर धीरे-धीरे हमारा जोश कम कर सकता है। अगर ऐसा होता है, तो मानो यहोवा की सेवा में हमारे 100 वॉट के जोश को शैतान ने कम करके 95 या 90 वॉट कर दिया है। अगर एक मसीही सतर्क न रहे, तो धीरे-धीरे होनेवाले इस बदलाव को शायद वह पहचान नहीं पाएगा।—मत्ती 24:42; 1 पत. 5:8.

प्रार्थना करना बेहद ज़रूरी है

16. शैतान की चालों से हम खुद को कैसे बचा सकते हैं?

16 किस तरह हम खुद को शैतान की धूर्त चालों से बचा सकते हैं और पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रह सकते हैं? (2 कुरिं. 2:11) इसके लिए प्रार्थना करना बेहद ज़रूरी है। पौलुस ने अपने साथी मसीहियों को उकसाया कि वे “शैतान के दाँव-पेंचों के खिलाफ डटे” रहें। फिर उसने उनसे गुज़ारिश की, “हर मौके पर . . . हर तरह की प्रार्थना और मिन्‍नतें करते रहो।”—इफि. 6:11, 18; 1 पत. 4:7.

17. यीशु की प्रार्थनाओं से हम क्या सीखते हैं?

17 यीशु ने प्रार्थना करने में हमारे लिए एक बेहतरीन मिसाल रखी है और उस पर चलकर हम शैतान के खिलाफ डटे रह सकते हैं। यीशु की प्रार्थनाओं से साफ ज़ाहिर होता था कि वह पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने का अपना जज़्बा बरकरार रखना चाहता था। ध्यान दीजिए, अपनी मौत से एक दिन पहले की रात यीशु ने किस तरह प्रार्थना की। लूका ने इस बारे में लिखा: “वह असहनीय वेदना से गुज़रते हुए और भी गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करता रहा।” (लूका 22:44) यीशु ने इससे पहले भी कई बार गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की थी। मगर अब वह धरती पर अपनी सबसे बड़ी परीक्षा से गुज़र रहा था, इसलिए उसने “और भी गिड़गिड़ाकर” प्रार्थना की और उसकी सुनी गयी। यीशु की मिसाल दिखाती है कि कुछ प्रार्थनाएँ दूसरी प्रार्थनाओं से ज़्यादा गहरी और ज़बरदस्त हो सकती हैं। इसलिए चाहे हम पर कितनी भी कठिन परीक्षा क्यों न आए, शैतान हमारे खिलाफ कितनी ही धूर्त चाल क्यों न चले, हमें यहोवा की हिफाज़त के लिए “और भी गिड़गिड़ाकर” प्रार्थना करनी चाहिए।

18. (क) प्रार्थना के बारे में हमें खुद से क्या पूछना चाहिए और क्यों? (ख) क्या बातें हमारे दिल पर असर कर सकती हैं और किन तरीकों से? ( पेज 16 पर दिया बक्स देखिए।)

18 इस तरह की प्रार्थनाओं का हम पर क्या असर होता है? पौलुस ने कहा, “हर बात में प्रार्थना और मिन्‍नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्‍वर को बताते रहो। और परमेश्‍वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्‍ति से कहीं ऊपर है, तुम्हारे दिल . . . की हिफाज़त करेगी।” (फिलि. 4:6, 7) जी हाँ, पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहने के लिए सच्चे दिल से और लगातार प्रार्थना करना बेहद ज़रूरी है। (लूका 6:12) इसलिए खुद से पूछिए, ‘क्या मैं यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करता हूँ? मैं कितनी बार उससे बिनती करता हूँ?’ (मत्ती 7:7; रोमि. 12:12) इन सवालों के जवाबों से ज़ाहिर होगा कि यहोवा की सेवा करने की आपकी इच्छा कितनी गहरी है।

19. पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहने के लिए आप क्या करेंगे?

19 जैसा हमने गौर किया, ज़िंदगी में हम जिन बातों को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं, उससे काफी हद तक पता चलता है कि हमारे दिल का क्या हाल है। इसलिए हमें अपनी ज़िंदगी में इस बात को पक्का करना चाहिए कि न तो शैतान की चालें और न ही पीछे छोड़ी हुई चीज़ें, पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने का हमारा इरादा कमज़ोर कर सके। (लूका 21:19, 34-36 पढ़िए।) तो आइए दाविद की तरह हम भी यहोवा से मिन्‍नत करें, “मेरे हृदय को एकाग्रचित्‌ बना।”—भज. 86:11, हिंदी—कॉमन लैंग्वेज।

[फुटनोट]

^ पैरा. 2 बाइबल की मूल हस्तलिपियों में “दिल” के लिए जिस शब्द का इस्तेमाल हुआ है, उसे अकसर हिंदी बाइबलों में “हृदय” या “मन” अनुवाद किया गया है। इसलिए इस अध्ययन लेख की जिस किसी आयत में शब्द हृदय या मन का ज़िक्र किया गया है, उसका मूल शब्द है, “दिल।”

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर बक्स]

 दिल पर असर करनेवाली तीन चीज़ें

हम अपने दिल को दुरुस्त रखने के लिए कुछ एहतियात बरतते हैं, उसी तरह अपने लाक्षणिक दिल को स्वस्थ बनाए रखने के लिए भी हमें कुछ कदम उठाने की ज़रूरत है। यह हम कैसे कर सकते हैं? आइए तीन ज़रूरी चीज़ों पर ध्यान दें:

1 सही खुराक: अपने दिल को तंदुरुस्त बनाए रखने के लिए हम रोज़ सही और अच्छी खुराक लेते हैं। ठीक उसी तरह, अपने लाक्षणिक दिल को स्वस्थ रखने के लिए हमें लगातार परमेश्‍वर से मिलनेवाला पौष्टिक भोजन खाना चाहिए। और यह हम बाइबल का निजी अध्ययन करके, मनन करके और सभाओं में हाज़िर होकर कर सकते हैं।—भज. 1:1, 2; नीति. 15:28; इब्रा. 10:24, 25.

2 कसरत: सेहतमंद बने रहने के लिए हमारे दिल का अच्छी तरह काम करना ज़रूरी है। और दिल तभी अच्छी तरह काम करेगा जब हम कसरत करेंगे। ठीक वैसे ही हमारे लाक्षणिक दिल को भी कसरत की ज़रूरत है। और यह हम प्रचार में पूरे जोश के साथ और ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेकर कर सकते हैं।—लूका 13:24; फिलि. 3:12.

3 आसपास का माहौल: आज हम जिस माहौल में काम करते और रहते हैं, उससे हमारे शारीरिक और लाक्षणिक दोनों दिल पर तनाव पड़ता है। लेकिन हम इस तनाव को कम कर सकते हैं। कैसे? जितना ज़्यादा हो सके अपने मसीही भाई-बहनों के साथ संगति कीजिए, जो सचमुच हमारी परवाह करते हैं और पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते हैं।—भज. 119:63; नीति. 13:20.