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शादी—क्या आप परमेश्‍वर के इस तोहफे की कदर करते हैं?

शादी—क्या आप परमेश्‍वर के इस तोहफे की कदर करते हैं?

शादी—क्या आप परमेश्‍वर के इस तोहफे की कदर करते हैं?

‘यहोवा, पति और अच्छा घर पाने में तुम्हारी सहायता करे।’—रूत 1:9, हिंदी ईज़ी-टू रीड वर्शन।

इनके जवाब ढूँढ़िए:

पुराने ज़माने में, परमेश्‍वर के सेवकों ने कैसे ज़ाहिर किया कि वे शादी को उससे मिला तोहफा मानते हैं?

हम कैसे जानते हैं कि यहोवा, जीवन-साथी के हमारे चुनाव में दिलचस्पी रखता है?

आप शादी-शुदा ज़िंदगी के बारे में बाइबल में दी किस सलाह को लागू करेंगे?

1. परमेश्‍वर ने जब आदम को एक पत्नी दी, तो उसे कैसा लगा?

 “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है: सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।” (उत्प. 2:23) दुनिया का पहला इंसान, आदम पत्नी पाकर इतना खुश हुआ कि वह एक पल के लिए शायर बन गया! आदम को गहरी नींद सुलाकर यहोवा ने उसकी पसली से यह सुंदर स्त्री बनायी थी जिसका नाम आदम ने बाद में हव्वा रखा। परमेश्‍वर ने उन दोनों को शादी के प्यार-भरे रिश्‍ते में जोड़ दिया। यहोवा ने आदम की पसली से हव्वा को तैयार किया था इसलिए आदम और हव्वा के बीच का बंधन आज के ज़माने के किसी भी पति-पत्नी के बंधन से कहीं ज़्यादा मज़बूत था।

2. स्त्री और पुरुष एक-दूसरे की ओर आकर्षित क्यों होते हैं?

2 हमें इस बात से यहोवा की बेजोड़ बुद्धि का सबूत मिलता है कि उसने इंसानों को बनाते वक्‍त उनमें रोमानी प्यार का जज़्बा डाला। यह प्यार एक स्त्री और पुरुष को एक-दूसरे की ओर आकर्षित करता है। द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है: “जब एक स्त्री और पुरुष की शादी होती है, तो वे एक-दूसरे के साथ लैंगिक संबंध रखने की चाहत रखते हैं और उम्मीद करते हैं कि एक-दूसरे के लिए उनका आकर्षण ज़िंदगी-भर बना रहेगा।” यहोवा के लोगों ने भी इस सच्चाई का अनुभव किया है।

उन्होंने इस तोहफे की कदर की

3. इसहाक को उसकी पत्नी कैसे मिली?

3 परमेश्‍वर का वफादार सेवक अब्राहम, शादी के इंतज़ाम के बारे में यहोवा का नज़रिया रखता था। इसलिए उसने अपने बुज़ुर्ग सेवक को मेसोपोटामिया भेजा ताकि वह इसहाक के लिए एक पत्नी चुने। उस सेवक ने मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना की और इसका अच्छा नतीजा निकला। परमेश्‍वर का भय माननेवाली रिबका इसहाक की पत्नी बनी और उसने अब्राहम का वंश आगे बढ़ाया। इस तरह उसने यहोवा के इंतज़ाम में एक भूमिका निभायी। (उत्प. 22:18; 24:12-14, 67) क्या इस वाकए से हमें इस नतीजे पर पहुँचना चाहिए कि एक भाई या बहन को, बिना किसी के कहे उनकी शादी की बात चलाने की छूट है? जी नहीं, हमें ऐसा करने का कोई हक नहीं, फिर चाहे हमारे इरादे कितने ही अच्छे क्यों न हों। आजकल कई लोग अपना जीवन-साथी खुद ही चुनते हैं। परमेश्‍वर जोड़ियाँ नहीं बनाता, लेकिन वह मसीहियों को जीवन-साथी चुनने के मामले में और दूसरे कई मामलों में सही राह ज़रूर दिखाता है। मगर इसके लिए ज़रूरी है कि वे उससे निर्देश पाने के लिए प्रार्थना करें और उसकी पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलें।—गला. 5:18, 25.

4, 5. आप क्यों कह सकते हैं कि शूलेम्मिन और चरवाहा एक-दूसरे को चाहते थे?

4 पुराने ज़माने के इसराएल की सुंदर शूलेम्मिन नहीं चाहती थी कि उसकी सहेलियाँ उस पर राजा सुलैमान की पत्नियों में से एक होने का दबाव डालें। उसने कहा: “हे यरूशलेम की पुत्रियो, मुझ से शपथ खाओ, जब तक [मुझ में] प्रेम स्वत: न जाग उठे तब तक तुम उसे न जगाना और न उकसाना।” (श्रेष्ठ. 8:4, न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) शूलेम्मिन और एक चरवाहा एक-दूसरे को चाहते थे। शूलेम्मिन ने खुद को मामूली स्त्री बताते हुए कहा: “मैं शारोन के केसर की पाटल सी हूँ। मैं घाटियों की कुमुदिनी [सोसन का फूल] हूँ।” लेकिन उस चरवाहे ने कहा: “हे मेरी प्रिये, अन्य युवतियों के बीच तुम वैसी ही हो मानों काँटों के बीच कुमुदिनी हो”! (श्रेष्ठ. 2:1, 2, न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) वाकई वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे।

5 शूलेम्मिन और चरवाहा, दोनों यहोवा से बहुत प्यार करते थे इसलिए उनकी शादी का बंधन ज़रूर मज़बूत होता। दरअसल शूलेम्मिन ने अपने प्यारे चरवाहे से कहा: “तू मुझे मुहर के समान अपने हृदय पर लगा ले, [मुहर] के समान अपनी बांह पर बांध ले। क्योंकि प्रेम तो मृत्यु के तुल्य सामर्थी, और ईर्ष्या अधोलोक के समान निर्दयी है। उसकी लपटें तो आग की लपटें हैं, हां, यहोवा ही की लपटे हैं [क्योंकि प्रेम उसी की देन है]। अगाध जल-राशि प्रेम को नहीं बुझा सकती, न नदियां उसको डुबा सकती है। चाहे कोई प्रेम के बदले में अपने घर की सारी सम्पत्ति दे दे फिर भी वह अत्यन्त तुच्छ ठहरेगी।” (श्रेष्ठ. 8:6, 7, न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) जब परमेश्‍वर का कोई सेवक शादी की सोचता है, तो वह बेशक इसी तरह का प्यार पाना चाहता है।

परमेश्‍वर की नज़र में एक अहम चुनाव

6, 7. हम क्यों कह सकते हैं कि परमेश्‍वर को इस बात में दिलचस्पी है कि हम किसे जीवन-साथी चुनते हैं?

6 परमेश्‍वर को इस बात में दिलचस्पी है कि आप किसे जीवन-साथी चुनते हैं। उसने कनान के रहनेवालों के बारे में इसराएलियों को यह आज्ञा दी थी: “न उन से ब्याह शादी करना, न तो अपनी बेटी उनके बेटे को ब्याह देना, और न उनकी बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह लेना। क्योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएंगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा।” (व्यव. 7:3, 4) इसके सदियों बाद याजक एज्रा ने कहा: “तुम लोगों ने विश्‍वासघात करके अन्यजाति-स्त्रियां ब्याह लीं, और इस से इस्राएल का दोष बढ़ गया है।” (एज्रा 10:10) प्रेषित पौलुस ने भी मसीहियों से कहा: “एक पत्नी अपने पति के जीते-जी उससे बँधी होती है। लेकिन अगर उसका पति मौत की नींद सो जाता है, तो वह जिससे चाहे उससे शादी करने के लिए आज़ाद है, मगर सिर्फ प्रभु में।”1 कुरिं. 7:39.

7 अगर परमेश्‍वर का एक समर्पित सेवक किसी अविश्‍वासी से शादी करे, तो वह परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ रहा होगा। एज्रा के दिनों में इसराएलियों ने “अन्यजाति-स्त्रियां ब्याह लीं” और इस तरह उन्होंने विश्‍वासघात किया। बाइबल में साफ तौर पर दी गयी आज्ञाओं को नज़रअंदाज़ करना सरासर गलत होगा। (एज्रा 10:10; 2 कुरिं. 6:14, 15) एक मसीही अविश्‍वासी से शादी करके मंडली में एक अच्छी मिसाल नहीं रखता, बल्कि यह दिखाता है कि उसे शादी के मामले में परमेश्‍वर के इंतज़ाम की कदर नहीं है। अगर बपतिस्मा-शुदा भाई-बहन अविश्‍वासियों से इस तरह का रिश्‍ता जोड़ें, तो उन्हें परमेश्‍वर के संगठन में मिली ज़िम्मेदारियों से हाथ धोना पड़ सकता है। एक तरफ परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ना, वहीं दूसरी तरफ आशीष के लिए उससे बिनती करना, मानों यह कहना हुआ: ‘यहोवा मैंने जानबूझकर आपकी आज्ञा तोड़ी है। मगर फिर भी, मुझे आशीष ज़रूर दीजिए।’

यहोवा बेहतर जानता है

8. हमें शादी के मामले में परमेश्‍वर के निर्देश क्यों मानने चाहिए?

8 एक मशीन का बनानेवाला ही सबसे अच्छी तरह जानता है कि उसके कौन-से पुरज़े कहाँ जोड़े जाते हैं और वह कैसे काम करती है। क्या आप बिना उसके निर्देश माने, अपनी मरज़ी के मुताबिक पुरज़े जोड़कर वह मशीन तैयार कर पाएँगे? अगर आप ऐसा कर भी लें, तब भी वह मशीन शायद ही ठीक से काम करे। उसी तरह, अगर हम चाहते हैं कि खुशहाल शादी-शुदा ज़िंदगी का हमारा सपना पूरा हो, तो ज़रूरी है कि हम शादी की शुरूआत करनेवाले यहोवा के निर्देशों को मानें।

9. हम यह क्यों कह सकते हैं कि यहोवा अकेलेपन के एहसास को और शादी-शुदा ज़िंदगी की खुशियों को समझता है?

9 इंसानों की बनावट और शादी-शुदा ज़िंदगी के बारे में यहोवा सब कुछ जानता है। उसी ने इंसानों में लैंगिक इच्छाएँ डालीं, ताकि वे ‘फूले-फलें।’ (उत्प. 1:28) परमेश्‍वर अकेलेपन के एहसास को भी समझता है। स्त्री को बनाने से पहले उसने कहा: “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए।” (उत्प. 2:18) यहोवा यह भी जानता है कि शादी के बंधन से कितनी खुशी मिल सकती है।नीतिवचन 5:15-18 पढ़िए।

10. मसीही जोड़ों को लैंगिक संबंधों के बारे में क्या बातें याद रखनी चाहिए?

10 आदम ने मानवजाति को पाप और असिद्धता विरासत में दी, इसलिए आज कोई भी ऐसा नहीं, जिसकी शादी-शुदा ज़िंदगी में तकलीफें ना हों। लेकिन अगर परमेश्‍वर के सेवक उसके निर्देश मानें, तो वे शादी-शुदा ज़िंदगी में सच्ची खुशी पा सकते हैं। मिसाल के लिए लैंगिक संबंधों के बारे में पौलुस ने जो सलाह दी थी उस पर गौर कीजिए। (1 कुरिंथियों 7:1-5 पढ़िए।) बाइबल यह नहीं कहती कि शादी-शुदा जोड़ों को सिर्फ बच्चे पैदा करने के मकसद से लैंगिक संबंध रखने चाहिए। इस तरह के संबंधों से शारीरिक और भावनात्मक ज़रूरतें भी पूरी होती हैं। लेकिन अस्वाभाविक लैंगिक संबंध रखना परमेश्‍वर को कतई पसंद नहीं। शादी-शुदा ज़िंदगी के इस अहम पहलू में मसीही पति-पत्नियों को प्यार ज़ाहिर करते वक्‍त एक-दूसरे के साथ कोमलता से पेश आना चाहिए और ऐसे किसी भी काम से दूर रहना चाहिए जिससे परमेश्‍वर नाखुश हो।

11. यहोवा के बताए रास्ते पर चलने से रूत को क्या आशीष मिली?

11 शादी-शुदा ज़िंदगी खुशियों से भरी होनी चाहिए, न कि दुखों से। यह एक बोझ नहीं लगनी चाहिए। मसीहियों का घर शांति का बसेरा होना चाहिए। गौर कीजिए कि 3,000 साल पहले बुज़ुर्ग विधवा नाओमी और उसकी विधवा बहुओं, ओर्पा और रूत के साथ क्या हुआ। जब वे मोआब देश छोड़कर यहूदा जा रही थीं, तब नाओमी ने अपनी जवान बहुओं को अपने लोगों के पास लौट जाने को कहा। लेकिन मोआब की रहनेवाली रूत ने नाओमी और उसके परमेश्‍वर यहोवा को नहीं छोड़ा। यही वजह थी कि रूत को यह भरोसा दिलाया गया कि ‘यहोवा जिसके पंखों तले वह शरण लेने आई थी उसे पूरा बदला देगा।’ (रूत 1:9; 2:12) रूत, शादी को परमेश्‍वर की तरफ से मिला एक तोहफा समझती थी और उसकी कदर करती थी। इसलिए उसने यहोवा के उपासक, बोअज से शादी की जो उससे उम्र में काफी बड़ा था। जब धरती पर वह दोबारा जी उठेगी, तो उसे यह जानकर कितनी खुशी होगी कि वह यीशु मसीह की पूर्वज बनी। (मत्ती 1:1, 5, 6; लूका 3:23, 32) यहोवा के बताए रास्ते पर चलने से उसे कितनी आशीषें मिलीं!

शादी को कामयाब बनाने के लिए बढ़िया सलाह

12. शादी-शुदा ज़िंदगी के बारे में सही सलाह कहाँ पायी जा सकती है?

12 शादी की शुरूआत करनेवाले के नाते परमेश्‍वर हमें बताता है कि शादी-शुदा ज़िंदगी को कामयाब कैसे बनाया जाए। इस बारे में कोई भी इंसान परमेश्‍वर जितना नहीं जानता। बाइबल की सलाह हमेशा सही होती है इसलिए सलाह देनेवाले को बाइबल के स्तरों के आधार पर ही सलाह देनी चाहिए। मिसाल के लिए, पौलुस ने लिखा: “तुम में से हरेक अपनी पत्नी से वैसा ही प्यार करे जैसा वह अपने आप से करता है। और पत्नी भी अपने पति का गहरा आदर करे।” (इफि. 5:33) किसी मसीही के लिए इन शब्दों को समझना मुश्‍किल नहीं होना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि क्या वे यहोवा के वचन में दी इस सलाह को लागू करेंगे या नहीं? अगर वे शादी को परमेश्‍वर की तरफ से दिया एक तोहफा समझते हैं तो बेशक वे इस सलाह को अपनाएँगे। *

13. पहला पतरस 3:7 की सलाह को ना मानने का क्या नतीजा हो सकता है?

13 एक मसीही पति को अपनी पत्नी के साथ प्यार से पेश आना चाहिए। प्रेषित पतरस ने लिखा: “पतियो, तुम भी इसी तरह अपनी-अपनी पत्नी के साथ समझदारी से जीवन बिताते रहो। और स्त्री होने के नाते उसे अपने से ज़्यादा नाज़ुक पात्र समझकर उसके साथ आदर से पेश आओ, क्योंकि तुम भी उसके साथ महा-कृपा से मिलनेवाले जीवन के वारिस हो, ताकि तुम्हारी प्रार्थनाओं में रुकावट न आए।” (1 पत. 3:7) अगर एक पति यहोवा की सलाह न माने, तो परमेश्‍वर शायद उसकी प्रार्थनाओं को कबूल न करे। इससे पति और पत्नी का परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता खराब हो सकता है। उनके आपसी रिश्‍तों में भी दरार आ सकती है। शायद उनके बीच झगड़े हों और वे एक-दूसरे के साथ कठोरता से व्यवहार करने लगें।

14. एक अच्छी पत्नी अपने परिवार पर कैसा असर कर सकती है?

14 यहोवा के वचन और उसकी पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलनेवाली एक पत्नी, अपने घर को शांति और खुशियों का आशियाना बना सकती है। बेशक, परमेश्‍वर का भय माननेवाला पति, अपनी पत्नी से प्यार करता है और शारीरिक और आध्यात्मिक तौर पर उसकी हिफाज़त करता है। एक पत्नी भी यही चाहती है कि उसका पति उससे प्यार करे। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि वह खुद को उसके प्यार के काबिल बनाए। नीतिवचन 14:1 कहता है “हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है।” एक परिवार की कामयाबी और खुशी के पीछे, बुद्धि और प्यार से काम लेनेवाली पत्नी का हाथ होता है। एक ऐसी पत्नी, शादी को परमेश्‍वर से मिला तोहफा समझकर उसकी कदर करती है।

15. इफिसियों 5:22-25 में क्या सलाह दी गयी है?

15 यीशु ने मंडली को गहरा प्यार दिखाया। पति-पत्नी एक-दूसरे को इसी तरह का प्यार दिखाकर ज़ाहिर करते हैं कि वे शादी को परमेश्‍वर की तरफ से दिया एक तोहफा समझते हैं। (इफिसियों 5:22-25 पढ़िए।) जो पति-पत्नी एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं वे अभिमान को अपने रिश्‍ते के आड़े नहीं आने देते। वे बच्चों की तरह एक-दूसरे से बात करना बंद नहीं कर देते और कोई ऐसा व्यवहार नहीं करते जिससे उनकी शादी टूट जाए। सच्चा प्यार दिखानेवाले पति-पत्नियों को बहुत-सी आशीषें मिलती हैं!

उन्हें कोई इंसान अलग न करे

16. कुछ मसीही अविवाहित क्यों रहते हैं?

16 हालाँकि ज़्यादातर लोग ज़िंदगी में कभी-न-कभी शादी करने की सोचते हैं, लेकिन यहोवा के कुछ सेवक अविवाहित रहते हैं। इसकी वजह शायद यह हो कि उन्हें एक ऐसा जीवन-साथी नहीं मिला जो खुद उन्हें और यहोवा को पसंद हो। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें परमेश्‍वर की तरफ से कुँवारेपन का तोहफा मिला है, जिस वजह से वे बिना ध्यान भटकाए यहोवा की सेवा में खुद को लगा सकते हैं। बेशक यह ज़रूरी है कि एक इंसान परमेश्‍वर के ठहराए दायरों में रहकर ही अविवाहित ज़िंदगी का लुत्फ उठाए।—मत्ती 19:10-12; 1 कुरिं. 7:1, 6, 7, 17.

17. (क) हमें यीशु के किन शब्दों को याद रखना चाहिए? (ख) अगर एक मसीही के मन में दूसरे के जीवन-साथी के लिए लालच पैदा हो, तो उसे बिना देर किए क्या करना चाहिए?

17 चाहे हम शादी-शुदा हों या न हों, हम सभी को यीशु के ये शब्द याद रखने चाहिए: “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि जिसने उनकी सृष्टि की थी, उसने शुरूआत से ही उन्हें नर और नारी बनाया था और कहा था, ‘इस वजह से पुरुष अपने पिता और अपनी माँ को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे’? तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं। इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” (मत्ती 19:4-6) किसी और के जीवन-साथी का लालच करना पाप है। (व्यव. 5:21) अगर किसी मसीही के मन में ऐसे गलत ख्याल आते हैं, तो उसे तुरंत इन्हें मन से निकाल बाहर करना चाहिए। कई बार ऐसा करना आसान नहीं होता क्योंकि उसने अपने मन में गलत इच्छाओं को पनपने दिया होता है। (मत्ती 5:27-30) लेकिन इस तरह की सोच को सुधारना और धोखा देनेवाले दिल की गलत इच्छाओं को काबू में रखना बेहद ज़रूरी है, फिर चाहे यह हमारे लिए कितना ही मुश्‍किल क्यों न हो।—यिर्म. 17:9.

18. हमें शादी के इंतज़ाम को किस नज़र से देखना चाहिए?

18 जो लोग यहोवा परमेश्‍वर को नहीं जानते और शादी को उसका दिया तोहफा नहीं मानते, वे भी कुछ हद तक इस रिश्‍ते के लिए कदर दिखाते हैं। तो फिर सोचिए कि हमें उसके इस इंतज़ाम की कितनी ज़्यादा कदर करनी चाहिए क्योंकि हम तो “आनंदित परमेश्‍वर” यहोवा के समर्पित सेवक हैं। आइए, हम इस बात का सबूत दें कि हम परमेश्‍वर के दिए इस खूबसूरत और अनमोल तोहफे की वाकई कदर करते हैं!—1 तीमु. 1:11.

[फुटनोट]

^ पैरा. 12 शादी-शुदा ज़िंदगी के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए किताब खुद को परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखो के अध्याय 10 और 11 देखिए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

कामयाब शादी-शुदा ज़िंदगी से यहोवा की महिमा होती है और परिवार में सभी को खुशियाँ मिलती हैं

[पेज 5 पर तसवीर]

रूत ने शादी को परमेश्‍वर से मिला एक तोहफा मानकर उसकी कदर की

[पेज 7 पर तसवीर]

क्या आप परमेश्‍वर के तोहफे, शादी की वाकई कदर करते हैं?