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शादी-शुदा ज़िंदगी में तनाव के बावजूद उम्मीद रखिए

शादी-शुदा ज़िंदगी में तनाव के बावजूद उम्मीद रखिए

शादी-शुदा ज़िंदगी में तनाव के बावजूद उम्मीद रखिए

“शादी-शुदा लोगों को मैं ये हिदायतें देता हूँ, दरअसल मैं नहीं बल्कि प्रभु देता है।”—1 कुरिं. 7:10.

क्या आप समझा सकते हैं?

क्यों कहा जा सकता है कि परमेश्‍वर एक स्त्री-पुरुष को शादी के बंधन में बाँधता है?

जिन मसीहियों की शादी-शुदा ज़िंदगी में समस्याएँ उठी हैं, प्राचीन उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?

हमें शादी-शुदा ज़िंदगी के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

1. मसीहियों को शादी के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए और क्यों?

 जब दो मसीही शादी करते हैं, तो वे परमेश्‍वर के सामने जीवन-भर साथ निभाने की शपथ लेते हैं। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि यह कोई हलकी बात नहीं है। (सभो. 5:4-6) यहोवा ने ही शादी के इंतज़ाम की शुरूआत की है इसलिए कहा जा सकता है कि वह एक स्त्री-पुरुष को ‘बंधन में बाँधता है।’ (मर. 10:9) परमेश्‍वर की नज़र में यह बंधन बरकरार रहता है फिर चाहे इस मामले में देश के कानून जो भी हों। इसलिए उसके सेवकों को भी इस बंधन को अटूट मानना चाहिए, उन सेवकों को भी जो अपनी शादी के वक्‍त मसीही नहीं थे।

2. इस लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

2 एक कामयाब शादी, पति-पत्नी की ज़िंदगी को खुशियों से भर सकती है। लेकिन अगर शादी के रिश्‍ते में तनाव आ गया हो, तो क्या किया जा सकता है? क्या रिश्‍तों में आयी दरार को भरा जा सकता है? जिनकी शादी-शुदा ज़िंदगी में सुख-शांति नहीं है, क्या उन्हें कोई मदद मिल सकती है?

इससे सुख मिलेगा या दुख?

3, 4. जीवन-साथी का चुनाव करते वक्‍त गलत फैसले लेने के क्या नतीजे हो सकते हैं?

3 जब एक मसीही की शादी कामयाब होती है, तो इससे न सिर्फ उसे खुशी मिलती है बल्कि यहोवा की महिमा भी होती है। लेकिन अगर शादी बिखरने लगे, तो बहुत दुख होता है। अगर एक अविवाहित मसीही, शादी के बारे में परमेश्‍वर की हिदायतों के मुताबिक काम करे, तो वह अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी की अच्छी शुरूआत कर सकता है। लेकिन अगर कोई जीवन-साथी का चुनाव करते वक्‍त गलत फैसले करे, तो इससे आगे चलकर बहुत निराशा और दुख हो सकता है। मिसाल के लिए, कुछ जवान तब डेटिंग करने लगते हैं, जब वे शादी-शुदा ज़िंदगी की ज़िम्मेदारियों को सँभालने के लिए तैयार नहीं होते। कुछ लोग इंटरनेट पर जीवन-साथी को ढूँढ़ लेते हैं और जल्दबाज़ी में शादी कर लेते हैं, लेकिन बाद में पछताते हैं। दूसरे, शादी के पहले की मुलाकातों के दौरान गंभीर पाप कर बैठते हैं और इस वजह से शादी-शुदा ज़िंदगी की शुरूआत से ही उनके दिल में एक-दूसरे के लिए आदर नहीं होता।

4 कुछ मसीही, “सिर्फ प्रभु में” शादी करने की आज्ञा को तोड़ देते हैं। नतीजा एक ऐसा परिवार होता है जिसमें पति या पत्नी में से एक सच्चाई में नहीं होता और इस वजह से उन्हें काफी दुख झेलना पड़ता है। (1 कुरिं. 7:39) अगर आपके साथ कुछ ऐसा हुआ है, तो परमेश्‍वर से माफी के लिए प्रार्थना कीजिए और उससे मदद माँगिए। यहोवा पाप के बुरे अंजामों को पूरी तरह दूर तो नहीं करता, मगर पश्‍चाताप करनेवालों को अपने मुश्‍किल हालात का सामना करने में मदद ज़रूर देता है। (भज. 130:1-4) अगर आप यह ठान लें कि आज और हमेशा तक आप उसे खुश करने की पूरी कोशिश करेंगे, तो ‘यहोवा का आनन्द आपका दृढ़ गढ़’ होगा।—नहे. 8:10.

जब शादी खतरे में हो

5. जो अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी से खुश नहीं हैं, उन्हें कैसे खयालों से दूर रहना चाहिए?

5 जो मसीही अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी से खुश नहीं हैं, वे शायद सोचें: ‘क्या इस रिश्‍ते को सुधारने की कोशिश करने का कोई फायदा है? काश, मैंने किसी और से शादी की होती!’ कुछ लोग शायद अपने रिश्‍ते को खत्म करने की सोचें और कहें, ‘मैं आज़ाद हो जाऊँगा! क्यों न मैं तलाक ले लूँ? अगर मैं बाइबल के आधार पर तलाक नहीं ले सकता, तो क्यों न मैं अपने साथी से अलग हो जाऊँ और एक बार फिर ज़िंदगी का लुत्फ उठाऊँ?’ इस तरह सोचने की बजाय, अच्छा होगा कि एक मसीही, परमेश्‍वर की हिदायतें माने और अपने हालात को सुधारने की पूरी-पूरी कोशिश करे।

6. मत्ती 19:9 में दर्ज़ यीशु के शब्दों का मतलब समझाइए।

6 एक मसीही ने भले ही तलाक ले लिया हो, मगर वह दोबारा शादी तभी कर सकता है अगर उसका तलाक, शास्त्र में बताए आधार पर हुआ हो। यीशु ने कहा, “जो कोई व्यभिचार को छोड़ किसी और वजह से अपनी पत्नी को तलाक देता है, और किसी दूसरी से शादी करता है, वह शादी के बाहर यौन-संबंध रखने का गुनहगार है।” (मत्ती 19:9) यहाँ पर शब्द “व्यभिचार” में, शादी के बाहर यौन-संबंध और दूसरे गंभीर लैंगिक पाप शामिल हैं। अगर कोई व्यभिचार को छोड़ किसी और बिनाह पर तलाक की सोच रहा हो, तो ज़रूरी है कि वह प्रार्थना में परमेश्‍वर से मदद माँगे और सोच-समझकर कदम उठाए।

7. अगर एक मसीही की शादी टूटने पर हो, तो लोग क्या सोच सकते हैं?

7 अगर किसी की शादी टूटने की कगार पर हो, तो उसकी आध्यात्मिकता पर सवाल उठ सकता है। प्रेषित पौलुस ने यह गंभीर सवाल खड़ा किया: “वाकई अगर कोई आदमी अपने घरबार की देखरेख करना नहीं जानता, तो वह परमेश्‍वर की मंडली की देखभाल कैसे कर पाएगा?” (1 तीमु. 3:5) दरअसल, अगर दोनों साथी मसीही हैं और फिर भी उनकी शादी टूटने पर है, तो लोग कह सकते हैं कि वे जैसा सिखाते हैं वैसा करते नहीं।—रोमि. 2:21-24.

8. अगर किसी मसीही जोड़े ने अलग होने का फैसला किया है, तो इसकी क्या वजह हो सकती है?

8 जब एक मसीही जोड़ा अलग होने या व्यभिचार को छोड़ किसी और वजह से एक-दूसरे को तलाक देने की सोचता है, तो यह दिखाता है कि परमेश्‍वर के साथ उनका रिश्‍ता ज़रूर कमज़ोर पड़ गया है। उनमें से एक या फिर दोनों बाइबल में दिए उसूलों को लागू नहीं कर रहे हैं। अगर वे वाकई “सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा” रख रहे होते, तो उनका रिश्‍ता इस कदर कमज़ोर नहीं पड़ता।नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।

9. शादी-शुदा ज़िंदगी को सुधारने के लिए मेहनत करने से कुछ मसीहियों को क्या आशीषें मिली हैं?

9 कई शादियाँ जो टूटने के मुकाम पर थीं, आगे चलकर कामयाब हुई हैं। जिन मसीहियों ने जल्द हार मानने की बजाय अपने रिश्‍ते को सुधारने की कोशिश की है, उनकी मेहनत अकसर रंग लायी है। मिसाल के लिए, गौर कीजिए कि उन परिवारों में क्या हो सकता है जहाँ पति-पत्नी में से सिर्फ एक सच्चाई में है। प्रेषित पतरस ने लिखा: “पत्नियो, तुम अपने-अपने पति के अधीन रहो ताकि अगर किसी का पति परमेश्‍वर के वचन की आज्ञा नहीं मानता, तो वह अपनी पत्नी के पवित्र चालचलन और गहरे आदर को देखकर तुम्हारे कुछ बोले बिना ही जीत लिया जाए।” (1 पत. 3:1, 2) जी हाँ, एक मसीही के अच्छे चालचलन की वजह से उसका अविश्‍वासी साथी सच्चाई को अपना सकता है! अगर हम अपनी शादी को टूटने से बचा पाएँ, तो इससे परमेश्‍वर की महिमा होगी। इसके अलावा यह पति, पत्नी और उनके बच्चों के लिए भी एक आशीष साबित हो सकती है।

10, 11. शादी-शुदा ज़िंदगी में अचानक क्या समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं, मगर एक मसीही किस बात का यकीन रख सकता है?

10 यहोवा को खुश करने के मकसद से ज़्यादातर अविवाहित मसीही, समर्पित विश्‍वासियों को ही अपना जीवन-साथी चुनते हैं। फिर भी, कई बार हालात अचानक ही रुख मोड़ लेते हैं। मिसाल के लिए, हो सकता है कि एक साथी जज़बाती तौर पर गंभीर रूप से बीमार हो जाए। या फिर शादी के कुछ समय बाद, एक साथी शायद सच्चाई में ठंडा पड़ जाए। लिंडा * की बात लीजिए जो एक जोशीली मसीही और एक अच्छी माँ है। उसका पति एक बपतिस्मा पाया हुआ भाई था, मगर वह गलत राह पर निकल पड़ा और पश्‍चाताप न करने की वजह से उसका बहिष्कार कर दिया गया। अगर एक मसीही के साथ ऐसा हो, और वह सोचने लगे कि अब इस रिश्‍ते में कुछ नहीं रखा, तो उसे क्या करना चाहिए?

11 आप पूछ सकते हैं, ‘क्या मुझे हर हाल में अपनी शादी को बचाने की कोशिश करनी चाहिए, फिर चाहे कुछ भी हो जाए?’ यह फैसला आपको खुद लेना होगा। किसी और को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। लेकिन फिर भी, एक टूटती हुई शादी को बचाने के कई अच्छे कारण हैं। परमेश्‍वर अपने ऐसे सेवक को अनमोल समझता है जो शादी-शुदा ज़िंदगी में आयी मुश्‍किलों के बावजूद अपने साथी को इसलिए नहीं छोड़ता क्योंकि उसका ज़मीर उसे ऐसा करने की इजाज़त नहीं देता। (1 पतरस 2:19, 20 पढ़िए।) अपनी शादी को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनेवाले मसीहियों को यहोवा अपने वचन और पवित्र शक्‍ति के ज़रिए मदद देता है।

वे आपकी मदद के लिए तैयार हैं

12. जब हम प्राचीनों से मदद माँगते हैं, तो हमें किस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए?

12 अगर आप अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी में मुश्‍किलों का सामना कर रहे हैं, तो तजुरबेकार मसीहियों से मदद लेने में हिचकिचाइए मत। प्राचीन झुंड के चरवाहे हैं। बाइबल से सलाह देकर आपकी मदद करने में उन्हें खुशी होगी। (प्रेषि. 20:28; याकू. 5:14, 15) ऐसा मत सोचिए कि अगर आप प्राचीनों से अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी की समस्याओं के बारे में बात करेंगे, तो आप और आपका साथी उनकी नज़र में अपनी इज़्ज़त खो बैठेंगे। इसके बजाय, यकीन रखिए कि जब वे आपको परमेश्‍वर को खुश करने की पूरी कोशिश करते देखेंगे, तो उनके दिल में आपके लिए इज़्ज़त और बढ़ जाएगी।

13. पहला कुरिंथियों 7:10-16 में क्या सलाह दी गयी है?

13 जब ऐसे मसीही प्राचीनों से मदद माँगते हैं, जिनके जीवन-साथी सच्चाई में नहीं हैं, तो प्राचीन उन्हें पौलुस की यह सलाह दे सकते हैं: “शादी-शुदा लोगों को मैं ये हिदायतें देता हूँ, दरअसल मैं नहीं बल्कि प्रभु देता है कि एक पत्नी को अपने पति से अलग नहीं होना चाहिए। लेकिन अगर वह अलग हो भी जाए, तो वह फिर शादी न करे या दोबारा अपने पति के साथ मेल कर ले। और एक पति को चाहिए कि अपनी पत्नी को न छोड़े। . . . इसलिए कि पत्नी, अगर तू अपने पति के साथ रहे तो क्या जाने तू अपने पति को बचा ले? या पति, अगर तू अपनी पत्नी के साथ रहे तो क्या जाने तू अपनी पत्नी को बचा ले?” (1 कुरिं. 7:10-16) जब कोई अविश्‍वासी साथी सच्चाई में आ जाता है, तो यह कितनी खुशी की बात होती है!

14, 15. किन हालात में एक मसीही अलग होने की सोच सकता है और इस बारे में प्रार्थना करना और ईमानदारी से खुद की जाँच करना क्यों ज़रूरी है?

14 एक मसीही पत्नी किन हालात में अपने पति से “अलग” हो सकती है? कुछ पत्नियों ने इसलिए अलग होने का फैसला किया है क्योंकि उनके पतियों ने जानबूझकर परिवार की रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम करने से इनकार किया है या उन्हें बहुत ज़्यादा मारा-पीटा है या फिर उनकी आध्यात्मिकता खतरे में डाल दी है।

15 बेशक अपने साथी से अलग होना या ना होना एक निजी मामला है। लेकिन एक बपतिस्मा-शुदा मसीही को यह फैसला लेने से पहले प्रार्थना करनी चाहिए और ईमानदारी से खुद की जाँच करनी चाहिए। मिसाल के लिए, वह खुद से पूछ सकता है, ‘क्या मेरी आध्यात्मिकता सिर्फ मेरे अविश्‍वासी साथी की वजह से कमज़ोर हुई है या फिर मैंने खुद ही निजी अध्ययन, सभाओं और प्रचार जैसे कामों को नज़रअंदाज़ किया है?’

16. मसीही तलाक लेने के मामले में जल्दबाज़ी क्यों नहीं करते?

16 हम कभी भी तलाक के मामले में जल्दबाज़ी नहीं करेंगे क्योंकि हम यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को अनमोल समझते हैं और शादी को परमेश्‍वर का दिया तोहफा मानते हैं। यहोवा के सेवक होने के नाते, हम नहीं चाहते कि हमारे किसी फैसले से उसके नाम पर कलंक लगे। तो हम बस इसलिए अपनी शादी को तोड़ने के तरीके नहीं ढूँढ़ेंगे, क्योंकि हम किसी और से शादी करने के ख्वाब देखने लगे हैं।—यिर्म. 17:9; मला. 2:13-16.

17. कब कहा जा सकता है कि परमेश्‍वर ने एक शादी-शुदा मसीही को शांति के लिए बुलाया है?

17 एक मसीही को, जिसका साथी अविश्‍वासी हो, अपनी शादी के रिश्‍ते को मज़बूत बनाए रखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। लेकिन हर मुमकिन कोशिश के बावजूद अगर अविश्‍वासी साथी उसके साथ रहने से इनकार कर देता है, तो उसे खुद को इसके लिए कसूरवार नहीं ठहराना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “अगर अविश्‍वासी साथी अलग होना चाहता है, तो उसे अलग होने दो। ऐसे हालात में एक भाई या बहन बंदिश में नहीं, मगर परमेश्‍वर ने तुम्हें शांति के लिए बुलाया है।”—1 कुरिं. 7:15. *

यहोवा पर भरोसा रखिए

18. चाहे हम अपनी शादी को ना भी बचा पाएँ, मगर इसे बचाने की कोशिश करने का क्या अच्छे नतीजे हो सकते हैं?

18 शादी-शुदा ज़िंदगी में चाहे जो भी समस्या आए, यहोवा से हिम्मत माँगिए और उस पर भरोसा रखिए। (भजन 27:14 पढ़िए।) इस लेख में हमने पहले लिंडा का ज़िक्र किया था। कई सालों तक उसने अपनी शादी को बचाने की बहुत कोशिश की। मगर आखिरकार उसका तलाक हो गया। क्या उसे लगता है कि उसकी सारी मेहनत बेकार थी? लिंडा जवाब देती है: “बिलकुल नहीं, मैंने जो कोशिशें कीं, उससे बाहरवालों को एक अच्छी गवाही मिली, मेरा ज़मीर साफ रहा और सबसे बढ़कर, मेरी बेटी को सच्चाई में मज़बूत बने रहने में मदद मिली। बड़ी होकर वह यहोवा की एक जोशीली साक्षी बनी।”

19. शादी को बचाने की कोशिश करने का क्या नतीजा हो सकता है?

19 मर्लिन नाम की एक मसीही स्त्री को इस बात की खुशी है कि उसने परमेश्‍वर पर भरोसा रखा और अपनी शादी को बचाने के लिए कड़ी मेहनत की। वह कहती है, “आर्थिक ज़िम्मेदारी न निभाने और मेरी आध्यात्मिकता को खतरे में डालने के आधार पर मैं अपने पति से अलग होने की सोच रही थी। एक वक्‍त पर मेरे पति एक प्राचीन थे, लेकिन कारोबार में कुछ गलत फैसले लेने की वजह से उन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों से हाथ धोना पड़ा। धीरे-धीरे उन्होंने सभाओं में जाना कम कर दिया और हमने एक-दूसरे से बातचीत बंद कर दी। जब हमारे शहर में एक आतंकवादी हमला हुआ, तो मैं इतनी सहम गयी कि मैंने लोगों से मिलना-जुलना कम कर दिया। फिर एक दिन मुझे एहसास हुआ कि गलती मेरी भी थी। हमने एक-दूसरे से दोबारा बातचीत शुरू कर दी, अपना पारिवारिक अध्ययन फिर से करने लगे और लगातार सभाओं में हाज़िर होने लगे। प्राचीनों ने हमारी बहुत मदद की। हमारी शादी-शुदा ज़िंदगी में खुशियाँ लौट आयीं। समय के गुज़रते मेरे पति को फिर से मंडली में ज़िम्मेदारियाँ मिलीं। मैंने ठोकर खाकर सबक सीखा पर मुझे खुशी है कि आखिर में सबकुछ ठीक हो गया।”

20, 21. शादी-शुदा ज़िंदगी के बारे में हमें क्या ठान लेना चाहिए?

20 चाहे हम शादी-शुदा हों या ना हों, आइए हम ठान लें कि हम हमेशा हिम्मत से काम लेंगे और यहोवा पर भरोसा रखेंगे। अगर हम अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी में मुश्‍किलों का सामना कर रहे हैं, तो हमें उन्हें हल करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए और याद रखना चाहिए कि शादी के रिश्‍ते में जुड़े दो लोग “दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं।” (मत्ती 19:6) हमें हमेशा यह भी याद रखना चाहिए कि अगर मुश्‍किलों के बावजूद हम अपने अविश्‍वासी जीवन-साथी का संग न छोडें, तो शायद हम उसे सच्चाई अपनाते देखने की खुशी का अनुभव कर सकेंगे।

21 चाहे हमारे हालात जैसे भी हों, हमें ऐसे फैसले लेने चाहिए जिनसे उन लोगों को एक अच्छी गवाही मिले, जो मसीही मंडली का हिस्सा नहीं हैं। अगर हमारी शादी कमज़ोर पड़ गयी है, तो आइए हम दिलो-जान से प्रार्थना करें, ईमानदारी से अपने इरादों की जाँच करें, ध्यान से बाइबल का अध्ययन करें और प्राचीनों की मदद लें। लेकिन इन सबसे बढ़कर, आइए हम ठान लें कि हम सब बातों में यहोवा परमेश्‍वर को खुश करेंगे और उसके तोहफे, यानी शादी-शुदा ज़िंदगी के लिए कदर दिखाएँगे।

[फुटनोट]

^ पैरा. 10 नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 17 खुद को परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखो के पेज 251-253; 1 नवंबर, 1988 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 26-27; 15 सितंबर, 1975 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) का पेज 575 देखिए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

जिन मसीहियों ने जल्द हार मानने की बजाय अपने रिश्‍ते को सुधारने की कोशिश की है, उनकी मेहनत अकसर रंग लायी है

[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

हमेशा यहोवा पर भरोसा रखिए और उससे हिम्मत के लिए बिनती कीजिए

[पेज 9 पर तसवीर]

अपनी शादी को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनेवाले मसीहियों को यहोवा आशीष देता है

[पेज 11 पर तसवीर]

मसीही मंडली दिलासा और आध्यात्मिक तौर पर मदद दे सकती है