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आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर की सेवा कीजिए

आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर की सेवा कीजिए

आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर की सेवा कीजिए

“परमेश्‍वर से प्यार करने का मतलब यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें; और उसकी आज्ञाएँ हम पर बोझ नहीं हैं।”—1 यूह. 5:3.

क्या आप जवाब दे सकते हैं?

परमेश्‍वर के नियमों के बारे में शैतान किस सोच को बढ़ावा देता है?

हमें इस बात का खास खयाल क्यों रखना चाहिए कि हम किन्हें अपना दोस्त चुनते हैं?

आज़ादी दिलानेवाले परमेश्‍वर के वफादार बने रहने के लिए क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

1. यहोवा अपनी आज़ादी का इस्तेमाल किस तरह करता है? उसने आदम और हव्वा के मामले में यह कैसे दिखाया?

 सिर्फ यहोवा ही एक ऐसा शख्स है जो पूरी तरह आज़ाद है। लेकिन वह कभी अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल नहीं करता। परमेश्‍वर ने हमें कठपुतलियों की तरह नहीं बनाया, वह हमें अपने इशारों पर नहीं नचाता। इसके बजाय, उसने हमें अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी दी है। हमें अपनी सभी जायज़ इच्छाओं को पूरा करने की छूट है। मसलन, परमेश्‍वर ने हमारे पहले माता-पिता को काफी आज़ादी दी थी। उसने आदम और हव्वा को सिर्फ एक बात के लिए मना किया था। उन्हें “भले या बुरे के ज्ञान” के पेड़ का फल नहीं खाना था। (उत्प. 2:17) वाकई, वे बड़ी आसानी से परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी कर सकते थे। इससे उनकी आज़ादी कतई नहीं छिनती।

2. आदम और हव्वा पाप के गुलाम कैसे बने?

2 परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा को इतनी आज़ादी क्यों दी? क्योंकि उसने उन्हें अपने ही स्वरूप में बनाया था और उन्हें एक ज़मीर दिया था। यहोवा को उम्मीद थी कि वे उससे प्यार करते रहेंगे और इसलिए सही फैसले लेंगे। (उत्प. 1:27; रोमि. 2:15) लेकिन बड़े दुख की बात है कि आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर का एहसान नहीं माना जिसने उन्हें ज़िंदगी दी थी, ना ही उस आज़ादी की कदर की जो उन्हें उससे मिली थी। इसके बजाय, उन्होंने सही-गलत का फैसला खुद करने की आज़ादी पानी चाही, जिसकी पेशकश शैतान ने उनके सामने रखी थी। उन्हें लगा कि इस तरह वे और भी आज़ाद हो जाएँगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे और उनकी सभी संतान पाप के गुलाम बन गए और उन्हें कई तकलीफों और मौत का सामना करना पड़ा।—रोमि. 5:12.

3, 4. परमेश्‍वर के नियमों के बारे में शैतान किस सोच को बढ़ावा देता है?

3 अगर शैतान दो सिद्ध इंसानों और कई स्वर्गदूतों को परमेश्‍वर की हुकूमत ठुकराने के लिए बहका सकता है, तो बेशक वह हमें भी बहका सकता है। वह आज भी वही हथकंडे अपनाता है जो उसने पहले अपनाए थे। वह इस सोच को बढ़ावा देता है कि परमेश्‍वर के नियम एक बोझ हैं। ये इतने सख्त हैं कि अगर हम इनके मुताबिक जीएँ तो ज़िंदगी में कोई मस्ती और मज़ा ही नहीं रहेगा। (1 यूह. 5:3) अगर हमारा उठना-बैठना अकसर ऐसे लोगों के साथ हो जो इस तरह की सोच रखते हैं, तो इसका हम पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। चौबीस साल की एक बहन, जो अनैतिकता में फँस गयी थी, बताती है: “मुझ पर बुरी सोहबत का बहुत असर पड़ा, क्योंकि मैं कुछ ऐसा नहीं करना चाहती थी जो मेरे साथियों को पसंद न हो।” शायद आपको भी इसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ा हो।

4 दुख की बात है कि कुछ मसीहियों पर ऐसा दबाव मंडली के साथियों से आता है। एक जवान भाई ने कहा: “मेरी दोस्ती कुछ ऐसे साक्षियों से थी जो अविश्‍वासियों के साथ डेटिंग करते थे। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं जितना ज़्यादा उनके साथ संगति कर रहा था, उतना ही उनकी तरह बनता जा रहा था। यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता कमज़ोर पड़ गया था। सभाओं में मेरा मन नहीं लगता था और प्रचार में जाना तो मैंने करीब-करीब बंद ही कर दिया था। मैं समझ गया कि मुझे उनसे नाता तोड़ना होगा और मैंने वही किया!” क्या आपको अंदाज़ा है कि आपके दोस्तों का आप पर किस हद तक असर हो सकता है? इसी सिलसिले में, बाइबल में दी एक मिसाल पर ध्यान दीजिए।—रोमि. 15:4.

उसने उनके मन को हर लिया

5, 6. अबशालोम ने दूसरों को कैसे बहकाया? क्या वह अपनी चाल में कामयाब हुआ?

5 बाइबल में ऐसे कई लोगों की मिसाल दी गयी है, जिनका दूसरों पर बुरा असर हुआ। एक मिसाल राजा दाविद के बेटे, अबशालोम की है। वह सुंदर और सजीला था। लेकिन आगे चलकर, शैतान की तरह, उस पर भी बड़ा बनने का जुनून सवार हो गया। उसने अपने पिता की राजगद्दी हथियानी चाही, जिस पर उसका कोई हक नहीं था। * राजपाट हड़पने के लिए उसने नेकी का मुखौटा पहना और यह दिखावा किया कि उसे लोगों की बहुत फिक्र है, जबकि राजा दाविद उनकी कोई परवाह नहीं करता। ठीक जिस तरह शैतान ने अदन के बाग में आदम और हव्वा के बारे में फिक्रमंद होने का दिखावा किया था, उसी तरह अबशालोम ने जताया कि वह लोगों का सच्चा हमदर्द है। उसने भी झूठ बोलकर अपने पिता को बदनाम किया।—2 शमू. 15:1-5.

6 क्या अबशालोम अपनी चाल में कामयाब हुआ? हाँ, वह कुछ हद तक कामयाब हुआ क्योंकि बाइबल कहती है: “अबशालोम ने इस्राएली मनुष्यों के मन को हर लिया।” (2 शमू. 15:6) लेकिन आगे चलकर अपने घमंड की वजह से अबशालोम को मुँह की खानी पड़ी। न सिर्फ उसकी मौत हुई बल्कि उन हज़ारों लोगों की भी मौत हुई जिन्होंने उसके बहकावे में आकर उसका साथ दिया था।—2 शमू. 18:7, 14-17.

7. हम अबशालोम की मिसाल से क्या सबक सीख सकते हैं? (पेज 14 पर दी तसवीर देखिए।)

7 वे इसराएली इतनी आसानी से उसके बहकावे में क्यों आ गए? शायद अबशालोम ने उन्हें कुछ देने का वादा किया हो जिसके लालच में वे आ गए। या फिर हो सकता है, उसके रंग-रूप का उन पर गहरा असर हुआ हो। वजह चाहे जो भी रही हो, एक बात तो तय है कि ये इसराएली, यहोवा और उसके ठहराए राजा के वफादार नहीं थे। आज के ज़माने में शैतान, अबशालोम जैसे लोगों का इस्तेमाल करके यहोवा के सेवकों का मन मोह लेने की कोशिश करता है। ऐसे लोग शायद कहें, ‘यहोवा के मुताबिक जीने से तो आज़ादी छिन जाती है। जो यहोवा की सेवा नहीं करते उनकी तो ऐश है!’ क्या आप इस झूठ पर विश्‍वास करेंगे या फिर यहोवा के वफादार रहेंगे? क्या आपको यकीन है कि सिर्फ यहोवा का “सिद्ध कानून,” यानी मसीह का कानून ही आपको सच्ची आज़ादी दिला सकता है? (याकू. 1:25) अगर हाँ, तो उस कानून को अनमोल समझकर उसे मानिए। चाहे कोई भी दबाव आए, अपनी मसीही आज़ादी का गलत इस्तेमाल मत कीजिए।—1 पतरस 2:16 पढ़िए।

8. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि यहोवा के स्तरों को ठुकराने से खुशी नहीं मिलती?

8 शैतान खासकर जवान लोगों को अपना निशाना बनाता है। एक भाई जो अब करीब 35 साल का है, कहता है: “जब मैं एक नौजवान था, तब मैं नैतिकता के मामले में यहोवा के स्तरों को एक बंदिश समझता था। मैं नहीं मानता था कि इन स्तरों से मेरी हिफाज़त होती है।” नतीजा, यह भाई अनैतिकता में फँस गया। उसने सोचा था कि उसे खुशी मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह आगे बताता है: “कई सालों तक दोष की भावना ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। मैं खुद को कोसता रहता था।” एक बहन उन दिनों को याद करती है जब वह एक नौजवान थी और अनैतिकता में फँस गयी थी। वह कहती है: “अनैतिक काम करने के बाद एक गहरा गम आपको आ घेरता है। ऐसा लगता है कि आप किसी लायक नहीं। आज 19 साल बाद भी जब मैं उस वक्‍त के बारे में सोचती हूँ तो मुझे बहुत अफसोस होता है।” एक और बहन कहती है: “मेरे गलत चालचलन की वजह से मेरे अपनों को जो गहरी ठेस पहुँची, उसके बारे में सोचकर मैं मानसिक, आध्यात्मिक और जज़बाती तौर पर टूट गयी। सच, यहोवा को नाखुश करने से ज़िंदगी दुशवार हो जाती है।” शैतान नहीं चाहता कि आप पाप के ऐसे अंजामों के बारे में सोचें।

9. (क) यहोवा, उसके कानून और उसके सिद्धांतों के बारे में आपका नज़रिया क्या है यह जानने के लिए आप खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं? (ख) परमेश्‍वर को अच्छी तरह जानना क्यों ज़रूरी है?

9 बड़े दुख की बात है कि कई जवान और बुज़ुर्ग भाई-बहनों ने मुसीबत में फँसने के बाद यह सबक सीखा है कि दो पल की खुशी के लिए पाप का गुलाम बनने के कितने बुरे नतीजे होते हैं। (गला. 6:7, 8) खुद से पूछिए: ‘क्या मैं शैतान की शातिर चालों को भाँप पाता हूँ? क्या मैं मानता हूँ कि यहोवा मेरा सबसे करीबी दोस्त है जो मेरी भलाई चाहता है और हमेशा मुझसे सच बोलता है? क्या मुझे यकीन है कि वह मुझसे ऐसी कोई बात नहीं छिपाएगा जिससे मुझे फायदा होगा और खुशी मिलेगी?’ (यशायाह 48:17, 18 पढ़िए।) इन सवालों का जवाब आप ईमानदारी से ‘हाँ’ में तभी दे पाएँगे जब आप यहोवा को अच्छी तरह जानते हों और यह मानते हों कि यहोवा ने आपको कानून और सिद्धांत इसलिए दिए हैं क्योंकि वह आपसे प्यार करता है न कि इसलिए कि वह आप पर बंदिशें लगाना चाहता है।—याकू. 4:8.

प्रार्थना कीजिए कि आप बुद्धिमान और आज्ञाकारी बनें

10. हमें जवान राजा सुलैमान की मिसाल पर चलने की कोशिश क्यों करनी चाहिए?

10 सुलैमान जब जवान था तब उसने नम्रता दिखाते हुए परमेश्‍वर से यह प्रार्थना की: “मैं छोटा लड़का सा हूं जो भीतर बाहर आना जाना नहीं जानता।” फिर उसने बिनती की कि यहोवा उसे एक ऐसा दिल दे, जो उसकी बात मानने और बुद्धि से काम लेने के लिए उसे उभारे। (1 राजा 3:7-9, 12) यहोवा ने उसकी बिनती सुनी। अगर आप इस तरह प्रार्थना करें तो वह आपकी भी सुनेगा, फिर चाहे आप जवान हों या बुज़ुर्ग। इसका मतलब यह नहीं कि वह कोई चमत्कार करके आपको बुद्धि और अंदरूनी समझ देगा। लेकिन अगर आप उसके वचन का गहराई से अध्ययन करें, पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करें और मसीही मंडली के ज़रिए दिए निर्देश और मार्गदर्शन कबूल करें, तो आप परमेश्‍वर से बुद्धि पा सकते हैं। (याकू. 1:5) यहाँ तक कि परमेश्‍वर अपने जवान सेवकों को भी उन लोगों के मुकाबले ज़्यादा बुद्धिमान बना सकता है, जो उसकी आज्ञा नहीं मानते। जी हाँ, वह उन्हें इस दुनिया के “बुद्धिमानों और ज्ञानियों” से भी ज़्यादा बुद्धि दे सकता है।—लूका 10:21; भजन 119:98-100 पढ़िए।

11-13. (क) हम भजन 26:4; नीतिवचन 13:20 और 1 कुरिंथियों 15:33 से क्या ज़रूरी सबक सीख सकते हैं? (ख) बाइबल में दिए इन सिद्धांतों को आप कैसे लागू करेंगे?

11 आइए अब हम कुछ आयतों पर चर्चा करें, जिनसे हम दोस्त चुनने के बारे में कुछ ज़रूरी सबक सीख सकते हैं। ऐसा करके हम समझ पाएँगे कि बाइबल का अध्ययन करना और उसमें लिखी बातों पर मनन करना यहोवा को अच्छी तरह जानने के लिए कितना ज़रूरी है। भजन 26:4 कहता है: “मैं निकम्मी चाल चलनेवालों के संग नहीं बैठा, और न मैं कपटियों के साथ कहीं जाऊंगा।” नीतिवचन 13:20 बताता है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” और 1 कुरिंथियों 15:33 में लिखा है: “धोखा न खाओ। बुरी सोहबत अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।”

12 हम इन आयतों से क्या ज़रूरी सबक सीख सकते हैं? पहला, यहोवा चाहता है कि हम सोच-समझकर अपने दोस्त चुनें। परमेश्‍वर नहीं चाहता कि हम खुद को नुकसान पहुँचाएँ या फिर उसके साथ अपनी दोस्ती को जोखिम में डालें। दूसरा सबक है कि हमारे दोस्तों का हम पर या तो अच्छा या फिर बुरा असर पड़ता है। यह एक बुनियादी सच्चाई है। इन आयतों से ज़ाहिर होता है कि यहोवा हमारे दिल तक पहुँचना चाहता है। कैसे? ध्यान दीजिए कि इन आयतों में नियम नहीं दिए गए हैं। इनमें यह नहीं बताया गया है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। इनमें सिर्फ कुछ सच्चाइयाँ बयान की गयी हैं। इन आयतों के ज़रिए मानों यहोवा हमसे कह रहा है: ‘देखो, हकीकत यह है। इस बारे में तुम्हारी सोच क्या है? खुद फैसला करो कि तुम क्या करोगे।’

13 इन तीन आयतों में बुनियादी सच्चाइयाँ पेश की गयी हैं इसलिए ये आयतें हर ज़माने के लोगों के लिए फायदेमंद हैं और इन्हें अलग-अलग हालात में लागू किया जा सकता है। खुद से पूछिए: मैं ऐसे लोगों की संगत से कैसे दूर रह सकता हूँ जो ‘कपटी’ हैं, यानी जो अपनी असलियत छिपाते हैं? ऐसे लोगों से मेरा आमना-सामना किन हालात में हो सकता है? (नीति. 3:32; 6:12) वे ‘बुद्धिमान’ कौन हैं जिनके साथ यहोवा चाहता है कि मैं संगति करूँ और वे ‘मूर्ख’ कौन हैं जिनसे वह चाहता है कि मैं दूर रहूँ? (भज. 111:10; 112:1; नीति. 1:7) बुरी सोहबत, मेरी कौन-सी “अच्छी आदतें” बिगाड़ सकती है? क्या सिर्फ दुनिया के लोग ही “बुरी सोहबत” हो सकते हैं? (2 पत. 2:1-3) आप इन सवालों का क्या जवाब देंगे?

14. आप अपनी पारिवारिक उपासना को बेहतर कैसे बना सकते हैं?

14 इसी तरह, क्यों न आप कुछ ऐसी आयतों पर मनन करें जिनसे आपको या आपके परिवार को फायदा हो और यह देखने की कोशिश करें कि परमेश्‍वर की सोच क्या है। * माता-पिताओ, आप पारिवारिक उपासना की शाम को ऐसे विषयों पर चर्चा कर सकते हैं। इस तरह से चर्चा कीजिए कि परिवार का हर सदस्य यह समझ सके कि कैसे यहोवा के कानून और उसके सिद्धांतों से उसका गहरा प्यार झलकता है। (भज. 119:72) अगर आप इस तरह अध्ययन करें, तो परिवार के सभी सदस्य परमेश्‍वर यहोवा के और एक-दूसरे के और करीब आ पाएँगे।

15. आप कैसे जान सकते हैं कि आप बुद्धिमान और आज्ञाकारी हैं?

15 आप कैसे जान सकते हैं कि आप बुद्धिमान और आज्ञाकारी हैं? यह जानने का एक तरीका है, अपनी सोच की तुलना पुराने ज़माने के वफादार लोगों की सोच से करना और देखना कि आपकी सोच उनसे मेल खाती है कि नहीं। ऐसा ही एक वफादार शख्स था, राजा दाविद। उसने लिखा: “हे मेरे परमेश्‍वर, मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्‍न होता हूँ; तेरी व्यवस्था मेरे हृदय में बसी है।” (भज. 40:8, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) इसी तरह एक दूसरे भजनहार ने लिखा: “मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।” (भज. 119:97) परमेश्‍वर के कानून के लिए प्यार पैदा करने में मेहनत लगती है। इसके लिए आपको बाइबल का गहरा अध्ययन करना होगा, उस पर मनन करना होगा और प्रार्थना करनी होगी। इसके अलावा, जैसे-जैसे आप परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक चलने की आशीषों का अनुभव करेंगे, वैसे-वैसे परमेश्‍वर के कानून के लिए आपका प्यार बढ़ता जाएगा।—भज. 34:8.

अपनी मसीही आज़ादी की हिफाज़त कीजिए!

16. अगर हम सच्ची आज़ादी की हिफाज़त करना चाहते हैं, तो हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?

16 इतिहास में हम पाते हैं कि कई देशों ने अपनी आज़ादी की खातिर लड़ाइयाँ लड़ी हैं। क्या हमें भी अपनी मसीही आज़ादी की हिफाज़त करने के लिए कड़ा संघर्ष नहीं करना चाहिए? याद रखिए कि हमें सिर्फ शैतान, इस दुनिया और इसकी खतरनाक फितरत से ही नहीं लड़ना है। हमें अपनी असिद्धताओं और अपने धोखेबाज़ दिल से भी लड़ना है। (यिर्म. 17:9; इफि. 2:3) लेकिन यहोवा की मदद से हम फतह पा सकते हैं। हमारी हर छोटी-बड़ी जीत के कम-से-कम दो अच्छे नतीजे निकलते हैं। एक यह कि हम यहोवा का दिल खुश कर पाते हैं। (नीति. 27:11) दूसरा, जब हम “आज़ादी दिलानेवाले सिद्ध कानून” को मानने के फायदों का अनुभव करते हैं, तो हमेशा की ज़िंदगी की ओर ले जानेवाले ‘तंग रास्ते’ पर बने रहने का हमारा इरादा और भी पक्का हो जाता है। इसके अलावा भविष्य में हम उस शानदार आज़ादी का भी अनुभव कर सकेंगे जिसका वादा यहोवा ने अपने सभी वफादार सेवकों से किया है।—याकू. 1:25; मत्ती 7:13, 14.

17. हमें अपनी गलतियों को लेकर हद-से-ज़्यादा निराश क्यों नहीं हो जाना चाहिए? यहोवा हमें किनके ज़रिए मदद देता है?

17 बेशक, कभी-न-कभी हम सभी गलतियाँ करते हैं। (सभो. 7:20) जब ऐसा होता है, तो निराश मत होइए, ना ही यह सोचिए कि अब आप यहोवा के प्यार के काबिल नहीं। इसके बजाय अपनी गलती सुधारने के लिए कदम उठाइए। अगर ज़रूरत पड़े तो प्राचीनों से मदद माँगने में हिचकिचाइए मत। याकूब ने लिखा कि प्राचीनों की ‘विश्‍वास से की गयी प्रार्थना बीमार को अच्छा कर देगी और यहोवा उसे उठाकर खड़ा कर देगा। और अगर उसने पाप भी किए हों, तो वे माफ किए जाएँगे।’ (याकू. 5:15) कभी मत भूलिए कि परमेश्‍वर दयालु है और आपमें कुछ अच्छा देखकर उसी ने आपको मसीही मंडली का हिस्सा बनाया है। (भजन 103:8, 9 पढ़िए।) अगर आप पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहेंगे, तो वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा।—1 इति. 28:9.

18. अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी रक्षा करे, तो हमें क्या करना होगा?

18 अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने अपने 11 वफादार प्रेषितों के लिए यहोवा से यह बिनती की: “उस दुष्ट की वजह से उनकी देखभाल कर।” (यूह. 17:15) जिस तरह यीशु को अपने प्रेषितों की फिक्र थी, उसी तरह उसे आज अपने सभी चेलों की फिक्र है। इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा यीशु की प्रार्थना सुनकर इन मुश्‍किल दिनों में हमारी भी रक्षा करेगा। बाइबल कहती है: “जो खराई से चलते हैं, उनके लिये [यहोवा] ढाल ठहरता है . . . और अपने भक्‍तों के मार्ग की रक्षा करता है।” (नीति. 2:7, 8) यह सच है कि खराई के रास्ते पर चलना आसान नहीं है लेकिन यही वह रास्ता है जो हमेशा की ज़िंदगी और सच्ची आज़ादी की ओर हमें ले जा सकता है। (रोमि. 8:21) हमारी दुआ है कि आप किसी के बहकावे में आकर इस रास्ते से भटक न जाएँ!

[फुटनोट]

^ पैरा. 5 अबशालोम के पैदा होने के बाद ही यहोवा ने दाविद से वादा किया था कि आगे चलकर वह उसे एक “वंश” या बेटा देगा, जो उसकी राजगद्दी पर बैठेगा। यानी अबशालोम ज़रूर जानता होगा कि यहोवा ने राजा बनने के लिए किसी और को चुना है।—2 शमू. 3:3; 7:12, 13.

^ पैरा. 14 उदाहरण के लिए आप 1 कुरिंथियों 13:4-8 पर चर्चा कर सकते हैं, जहाँ पौलुस प्यार के बारे में बताता है या फिर भजन 19:7-11 पर गौर कर सकते हैं, जहाँ यहोवा के नियम मानने से मिलनेवाली आशीषों के बारे में बताया गया है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 14 पर तसवीरें]

हम अबशालोम जैसे लोगों को कैसे पहचान सकते हैं और उनसे कैसे बच सकते हैं?