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“मेरा सपना पूरा हो गया”

“मेरा सपना पूरा हो गया”

“मेरा सपना पूरा हो गया”

एमीलिया नाम की एक बहन पंद्रह साल पहले पायनियर सेवा करती थी। लेकिन फिर किसी वजह से उसे अपनी पूरे समय की सेवा छोड़नी पड़ी। बीते कुछ सालों से एमीलिया के मन में रह-रहकर यही खयाल आता था कि वे दिन कितने बढ़िया थे, वह कितनी खुश रहती थी, जब वह पूरे समय की सेवा करती थी। इसलिए एमीलिया की ख्वाहिश थी कि वह फिर से खुशखबरी सुनाने के काम में और ज़्यादा करे।

एमीलिया जो नौकरी कर रही थी, उसमें उसका काफी वक्‍त चला जाता था। यह नौकरी उसके लिए एक ऐसी रुकावट थी जो उसकी खुशी छीन रही थी, वह खुशी जो परमेश्‍वर की सेवा करने से मिलती है। एक बार उसने अपने साथ काम करनेवालों के सामने अफसोस जताते हुए कहा: “काश! मैं थोड़े कम घंटे नौकरी कर सकती।” यह बात उसकी कंपनी की बॉस के कानों में पड़ी और उसने एमीलिया से पूछा, “मैंने जो सुना क्या वह सच है?” एमीलिया ने कहा कि आपने एकदम सही सुना है। मगर एमीलिया जो चाहती थी, वह तभी पूरा होता जब उसकी कंपनी का डायरेक्टर इसकी मंज़ूरी देता। कंपनी का यह नियम था कि वहाँ काम करनेवाले सभी कर्मचारी पूरे समय काम करें। इसलिए हमारी बहन ने कंपनी के डायरेक्टर से बात करने की तैयारी की। उसने परमेश्‍वर से प्रार्थना की ताकि वह हिम्मत से मगर शांत रहकर डायरेक्टर से बात कर सके।

बातचीत के दौरान, एमीलिया ने बड़ी व्यवहार-कुशलता से, पर साहस दिखाते हुए डायरेक्टर से कहा कि वह थोड़े कम घंटे नौकरी करना चाहती है, क्योंकि वह अपना बाकी समय लोगों की मदद करने में लगाना चाहती है। उसने गुज़ारिश की कि उसे इसकी मंज़ूरी दे दी जाए। उसने डायरेक्टर से कहा: “मैं एक यहोवा की साक्षी हूँ और मैं आध्यात्मिक तौर पर लोगों की मदद करना चाहती हूँ। देखा जाए तो आजकल लोगों की ज़िंदगी अनैतिकता के दलदल में धँसती जा रही है। इससे निकलने के लिए उन्हें मदद की सख्त ज़रूरत है, उन्हें नैतिक मूल्यों और आदर्शों के बारे में साफ और सही समझ की ज़रूरत है। और मैं बाइबल से उन्हें जो बुद्धि-भरी बातें बताती हूँ, वे उनके लिए सचमुच में अनमोल हैं। मैं नहीं चाहती कि नौकरी के बाद मैं जो काम करती हूँ उस वजह से यहाँ मैं अच्छा काम न दे पाऊँ। इसलिए मेरी आपसे गुज़ारिश है कि मेरे काम के घंटों में थोड़ी कटौती कर दी जाए ताकि लोगों की मदद के लिए मुझे और ज़्यादा समय मिल सके।”

डायरेक्टर ने उसकी बात बड़े ध्यान से सुनी और कहा कि एक बार उसने भी समाज सेवा करने की सोची थी। फिर उसने कहा, “आपने जो वजह बतायीं, उससे मुझे लगता है कि आपकी गुज़ारिश मान लेनी चाहिए। लेकिन क्या आपको इस बात का एहसास है कि इससे आपको कम तनख्वाह मिलेगी?” एमीलिया ने कहा कि उसने इस बारे में सोचा है और ज़रूरत पड़ी तो वह अपने रोज़मर्रा के खर्चों में कटौती करेगी। उसने यह भी कहा, “मेरा सबसे बड़ा लक्ष्य है कि मैं लोगों के लिए कुछ ऐसा करूँ जिससे उनकी ज़िंदगी सँवर जाए।” डायरेक्टर ने उससे कहा, ‘मैं तुम जैसे लोगों की सराहना करता हूँ जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद के लिए अपना समय दे देते हैं।’

अभी तक किसी भी कर्मचारी की इस तरह की शर्तें कंपनी ने मंज़ूर नहीं की थीं। मगर एमीलिया की गुज़ारिश मंज़ूर कर ली गयी और अब उसे हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम करना पड़ता है। उसे सबसे ज़्यादा हैरानी तब हुई, जब उसकी तनख्वाह बढ़ा दी गयी और अब वह उतना ही कमाती है, जितना पहले कमाती थी! वह कहती है, “मेरा सपना पूरा हो गया, अब मैं फिर से पायनियर सेवा कर सकती हूँ!”

क्या आपने अपने हालात में फेरबदल करने की सोची है, ताकि आप भी पायनियर सेवा कर सकें या दोबारा पायनियर सेवा शुरू कर सकें?

[पेज 32 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

डायरेक्टर ने उससे कहा, ‘मैं तुम जैसे लोगों की सराहना करता हूँ जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद के लिए अपना समय दे देते हैं।’