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“मैं किस से डरूं?”

“मैं किस से डरूं?”

“मैं किस से डरूं?”

“चाहे मेरे विरुद्ध लड़ाई ठन जाए, उस दशा में भी मैं हियाव बान्धे निश्‍चिंत रहूंगा।”—भज. 27:3.

नीचे दी आयतों के मुताबिक क्या बात आपको हिम्मत बढ़ाने में मदद दे सकती है?

भजन 27:1

भजन 27:4

भजन 27:11

1. भजन 27 हमें किन सवालों के जवाब देता है?

 दुनिया की हालत आज बद-से-बदतर होती जा रही है, लेकिन हमारा प्रचार काम तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। यह कैसे मुमकिन है? आर्थिक तंगी के बावजूद हम अपना काफी वक्‍त और ताकत इस काम में कैसे लगा पाते हैं? हम भविष्य के बारे में बेफिक्र क्यों रह पाते हैं, जबकि कई लोग आनेवाले कल के बारे में सोचकर डरते हैं? इन सवालों के जवाब हमें भजन 27 में मिलते हैं, जिसे राजा दाविद ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा था।

2. जब एक इंसान डर जाता है, तो क्या होता है? लेकिन हमें किस बात का यकीन है?

2 दाविद ने भजन 27 की शुरूआत इस तरह की: “यहोवा परमेश्‍वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं?” (भज. 27:1) कई बार एक इंसान इस कदर डर जाता है कि उसके हाथ-पाँव फूल जाते हैं और वह समझ नहीं पाता कि उसे क्या करना चाहिए। लेकिन जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं वे न तो डरते हैं, ना ही परेशान होते हैं। (1 पत. 3:14) अगर हम यहोवा को अपना दृढ़ गढ़ बनाएँ, तो हम ‘निडर बसे रहेंगे और बेखटके सुख से रहेंगे।’ (नीति. 1:33; 3:25) यह कैसे मुमकिन है?

“यहोवा परमेश्‍वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है”

3. यहोवा किस मायने में हमारी ज्योति है? यहोवा जो रौशनी देता है उससे फायदा पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

3 जब बाइबल कहती है कि “यहोवा परमेश्‍वर मेरी ज्योति” है, तो इसका मतलब है कि परमेश्‍वर हम पर सच्चाई की रौशनी चमकाता है। (भज. 27:1) अगर रास्ते में कोई खतरा या अड़चन हो, तो रौशनी की मदद से हम उसे देख पाते हैं। ठीक इसी तरह यहोवा दुनिया के हालात पर रौशनी डालता है। वह यह भी बताता है कि हमें इस दुनिया के किन खतरों से बचना चाहिए। उसने बाइबल में ऐसे सिद्धांत दिए हैं जो कारगर हैं। लेकिन इन सबके बारे में जानना ही काफी नहीं है। जिस तरह रास्ते में दिखनेवाली अड़चनों को हटाने के लिए हमें कुछ कदम उठाने पड़ते हैं, उसी तरह दुनिया के खतरों से बचने के लिए बाइबल के सिद्धांतों को लागू करना ज़रूरी है। भजनहार ने लिखा: “तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है” और “मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूं।” बाइबल के सिद्धांतों को लागू करके हम भी भजनहार की तरह बुद्धिमान बन सकते हैं।—भज. 119:98, 99, 130.

4. (क) दाविद इतने यकीन के साथ क्यों कह पाया कि “यहोवा . . . मेरा उद्धार है”? (ख) यहोवा कब हमारा उद्धार करेगा?

4 भजन 27:1 से पता चलता है कि दाविद ने ज़रूर अपनी ज़िंदगी के उन पलों को याद किया होगा जब यहोवा ने उसे खतरों से बचाया था। उदाहरण के लिए, यहोवा ने उसे “सिंह और भालू दोनों के पंजे से बचाया” था। उसने दाविद को लंबे-चौड़े पलिश्‍ती सैनिक, गोलियत पर जीत दिलायी थी। राजा शाऊल ने दाविद को कई बार भाले से भेदने की कोशिश की, मगर हर बार यहोवा ने उसे बचाया। (1 शमू. 17:37, 49, 50; 18:11, 12; 19:10) इन सब घटनाओं की वजह से दाविद पूरे यकीन के साथ कह पाया, “यहोवा . . . मेरा उद्धार है।” आगे चलकर जब यहोवा हमें “महा-संकट” से निकाल लाएगा तब हम भी कह पाएँगे कि ‘यहोवा हमारा उद्धार है’!—प्रका. 7:14; 2 पत. 2:9.

यहोवा से मिली हर मदद को याद कीजिए

5, 6. (क) बीते दिनों के अनुभवों को याद करने से हमें हिम्मत कैसे मिलती है? (ख) यहोवा ने एक समूह के तौर पर जिस तरह अपने सेवकों की मदद की, उसे याद करके हमारी हिम्मत कैसे बढ़ती है?

5 अपने अंदर हिम्मत बढ़ाने का एक तरीका हम भजन 27:2, 3 में लिखी बात से सीख सकते हैं। (पढ़िए।) दाविद ने याद किया कि कैसे यहोवा ने उसे कई मौकों पर बचाया था। (1 शमू. 17:34-37) ऐसा करके उसे मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात का सामना करने की हिम्मत मिली। क्या आपको भी बीते दिनों के अनुभवों को याद करने से हिम्मत मिलती है? उदाहरण के लिए, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपने किसी गंभीर समस्या को लेकर यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की और यहोवा ने आपको उसका सामना करने के लिए ताकत या बुद्धि दी? क्या आपको कोई ऐसा वक्‍त याद है जब यहोवा ने आपकी सेवा में आयी किसी रुकावट को दूर किया ताकि आपकी खुशी बरकरार रहे या फिर जब उसने आपके लिए मौके का एक बड़ा दरवाज़ा खोला? (1 कुरिं. 16:9) क्या ऐसे अनुभवों को याद करने से आपका यह भरोसा और मज़बूत नहीं होता कि यहोवा भारी मुश्‍किलों और परीक्षाओं का सामना करने के लिए आपकी मदद करेगा?—रोमि. 5:3-5.

6 लेकिन तब क्या जब एक शक्‍तिशाली सरकार यहोवा के साक्षियों को एक समूह के तौर पर खत्म करना चाहे? हमें याद करना चाहिए कि हाल के सालों में जिन लोगों ने ऐसा करने की कोशिश की है वे नाकाम रहे हैं। जब हम याद करते हैं कि यहोवा ने कैसे अपने लोगों की मदद की, तो हमें पक्का यकीन हो जाता है कि चाहे जो भी मुश्‍किल आए, यहोवा हमें उसका सामना करने की हिम्मत देगा।—दानि. 3:28.

सच्ची उपासना से गहरा लगाव रखिए

7, 8. (क) भजन 27:4 के मुताबिक, दाविद ने यहोवा से क्या दरखास्त की? (ख) यहोवा का महान आत्मिक मंदिर क्या है और वहाँ हम कैसे उपासना करते हैं?

7 एक और बात है जो हमें हिम्मत दे सकती है, वह है सच्ची उपासना के लिए हमारा गहरा लगाव। (भजन 27:4 पढ़िए।) दाविद के दिनों में ‘यहोवा का भवन’ यरूशलेम का मंदिर नहीं था बल्कि निवासस्थान था। मंदिर को तो बाद में सुलैमान ने बनाया था। दाविद ने सभी ज़रूरी इंतज़ाम किए थे ताकि सुलैमान यह आलीशान मंदिर बना सके। सदियों बाद, यीशु ने कहा कि एक ऐसा समय आएगा जब लोगों को यहोवा की उपासना करने के लिए यरूशलेम के मंदिर नहीं जाना पड़ेगा। (यूह. 4:21-23) यहोवा ने उपासना का एक अलग इंतज़ाम ठहराया था। प्रेषित पौलुस इब्रानियों के अध्याय 8 से 10 में बताता है कि जब ईसवी सन्‌ 29 में अपने बपतिस्मे के वक्‍त यीशु ने यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए खुद को पेश किया, तब एक महान आत्मिक मंदिर वजूद में आया। (इब्रा. 10:10) यहोवा ने इस आत्मिक मंदिर का इंतज़ाम इसलिए किया ताकि हम उसकी उपासना उस ढंग से कर सकें जो उसे कबूल हो। जब हम यीशु के फिरौती बलिदान में विश्‍वास करते हैं, तो परमेश्‍वर हमारी उपासना कबूल करता है। हम इस आत्मिक मंदिर में कैसे उपासना करते हैं? हम “विश्‍वास से पैदा होनेवाले पक्के यकीन के साथ सच्चे दिल से” प्रार्थना करके; बिना डगमगाए अपनी आशा का सब लोगों के सामने ऐलान करके; मंडली की सभाओं में भाई-बहनों को उकसाकर, उनमें गहरी दिलचस्पी लेकर, उनकी हिम्मत बँधाकर; और पारिवारिक उपासना करके इस मंदिर में उपासना करते हैं। (इब्रा. 10:22-25) संकटों से भरे इन आखिरी दिनों में, सच्ची उपासना के लिए गहरा लगाव रखने से हमें हिम्मत मिलती है।

8 दुनिया-भर में यहोवा के वफादार सेवक प्रचार काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। कुछ लोग नयी भाषा सीख रहे हैं तो कुछ ऐसे इलाकों में जाकर बस रहे हैं जहाँ राज के प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। भजनहार की यही इच्छा थी कि वह ‘यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रखे और उसके मन्दिर में ध्यान किया करे।’ उसी तरह हमारी भी यहोवा से यही बिनती है कि वह हमें आशीष दे और हर हाल में उसकी उपासना करने के लिए हमारी मदद करे।—भजन 27:6 पढ़िए।

परमेश्‍वर से मदद पाने का यकीन रखिए

9, 10. भजन 27:10 में क्या यकीन दिलाया गया है?

9 दाविद के शब्द दिखाते हैं कि उसे इस बात का कितना भरोसा था कि यहोवा उसकी मदद करेगा। उसने कहा: “मेरे माता-पिता भले ही मुझे छोड़ दें - प्रभु [यहोवा] मुझे अपनायेगा।” (भज. 27:10, वाल्द-बुल्के अनुवाद) पहला शमूएल अध्याय 22 से हमें पता चलता है कि दाविद के माता-पिता ने उसे असल में छोड़ा नहीं था। लेकिन आज कई मसीही ऐसे हैं जिनके परिवारवालों ने उन्हें ठुकरा दिया है। फिर भी वे अकेले नहीं हैं क्योंकि उन्हें मसीही मंडली से प्यार और मदद मिलती है और वे भाई-बहनों के बीच सुरक्षा का अनुभव करते हैं।

10 अगर यहोवा हमें तब सँभालता है जब हमारे अपने हमें छोड़ देते हैं, तो वह ज़रूर दूसरी परेशानियों का सामना करने में भी हमारी मदद करेगा। मसलन, अगर हमें इस बात की फिक्र है कि हम अपने परिवार का पेट कैसे पालेंगे, तो हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि इस मामले में यहोवा हमारी मदद ज़रूर करेगा। (इब्रा. 13:5, 6) यहोवा जानता है कि उसके वफादार सेवकों की ज़रूरतें क्या हैं और वह उनके हालात भी समझता है।

11. अगर हम यहोवा पर भरोसा करते हैं, तो इसका दूसरों पर क्या असर हो सकता है? उदाहरण देकर समझाइए।

11 लाइबेरिया में रहनेवाली विक्टोरिया की मिसाल लीजिए जो यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन कर रही थी। जिस आदमी के साथ वह रहती थी, उसने विक्टोरिया और उसके तीन बच्चों को छोड़ दिया। विक्टोरिया के पास न तो कोई नौकरी थी ना ही कोई घर। इन मुश्‍किलों के बावजूद उसने अपना अध्ययन जारी रखा और आगे चलकर बपतिस्मा लिया। एक दिन उसकी 13 साल की बेटी को एक बटुआ मिला जिसमें काफी पैसे थे। उनकी नियत कहीं बिगड़ न जाए इसलिए उन्होंने तय किया कि वे उन पैसों को नहीं गिनेंगे। उन्होंने फौरन बटुए के मालिक, एक फौजी को, बटुआ मिलने की इत्तला दी। जब वह फौजी उनसे मिला, तो उसने कहा कि अगर सब लोग यहोवा के साक्षियों की तरह ईमानदार होते, तो यह दुनिया बहुत अच्छी होती और इसमें शांति होती। विक्टोरिया ने बाइबल से उसे बताया कि यहोवा ने एक नयी दुनिया लाने का वादा किया है, जहाँ ऐसा होगा। उसका विश्‍वास और उसकी ईमानदारी उस फौजी को इतनी भा गयी कि उसने उन्हीं पैसों में से एक बड़ी रकम उसे इनाम के तौर पर दे दी। यहोवा के साक्षी अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर हैं क्योंकि वे भरोसा रखते हैं कि यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी करने की काबिलीयत रखता है।

12. नौकरी या पैसे गँवाने के बावजूद अगर हम यहोवा की सेवा करते रहें, तो इससे क्या ज़ाहिर होता है? उदाहरण देकर समझाइए।

12 गौर कीजिए कि सियर्रा लियोन में रहनेवाले एक बपतिस्मा-रहित प्रचारक, थॉमस के साथ क्या हुआ। वह एक टीचर की नौकरी करता था, मगर करीब एक साल तक उसे तनख्वाह नहीं मिली क्योंकि कुछ कागज़ी कार्रवाई बाकी थी। तनख्वाह पाने से पहले जो आखिरी कदम बचा था, वह था एक पादरी के साथ इंटरव्यू, जो स्कूल का एक बड़ा अधिकारी था। पादरी ने थॉमस से कहा कि यहोवा के साक्षी जो मानते हैं, वह स्कूल के नियमों के खिलाफ है। उसने कहा कि अगर थॉमस उस स्कूल में नौकरी करना चाहता है, तो उसे अपना विश्‍वास छोड़ना होगा। थॉमस ने वह नौकरी छोड़ दी और उसे एक साल की तनख्वाह गँवानी पड़ी। बाद में, उसे रेडियो और मोबाइल फोन की मरम्मत करने की नौकरी मिली। आम तौर पर लोगों को इस बात की चिंता होती है कि वे रोज़ी-रोटी कैसे कमाएँगे। लेकिन हम थॉमस और यहोवा के दूसरे सेवकों की मिसाल से सीख सकते हैं कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो हमें इस तरह चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं। यहोवा ने सबकुछ बनाया है और वह अपने सेवकों की हिफाज़त करता है इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि वह हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा।

13. गरीब देशों में रहनेवाले भाई-बहन क्यों जोश से प्रचार काम में लगे हुए हैं?

13 कई देशों में गरीबी के बावजूद प्रचारक बड़े जोश से प्रचार काम में लगे हुए हैं। यह कैसे मुमकिन है? एक शाखा दफ्तर बताता है: “कई घर-मालिक बाइबल अध्ययन करने को राज़ी हो जाते हैं क्योंकि उनके पास नौकरी नहीं है और इसलिए अध्ययन करने के लिए काफी वक्‍त है। भाइयों के पास भी प्रचार करने के लिए ज़्यादा वक्‍त है। इसके अलावा हमें ज़्यादातर लोगों को यह यकीन दिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं, क्योंकि वे अपने चारों तरफ बहुत बुरे हालात देखते हैं।” देखिए कि एक मिशनरी का क्या कहना है जो 12 साल से ऐसे देश में सेवा कर रहा है जहाँ हर प्रचारक औसतन 3 से भी ज़्यादा बाइबल अध्ययन चलाता है। उसने कहा: “ज़्यादातर प्रचारकों की ज़िंदगी बहुत सादी है, उनके पास बहुत-सारी चीज़ें नहीं हैं जो उनका ध्यान भटकाएँ। इस वजह से प्रचार करने और बाइबल अध्ययन कराने के लिए उनके पास ज़्यादा वक्‍त होता है।”

14. किन तरीकों से यहोवा बड़ी भीड़ की हिफाज़त करेगा?

14 यहोवा ने वादा किया है कि वह अपने लोगों की मदद करेगा और एक समूह के तौर पर उनकी हिफाज़त करेगा। हमें यकीन है कि वह अपना वादा ज़रूर निभाएगा। (भज. 37:28; 91:1-3) “महा-संकट” से जो लोग बच निकलेंगे वे वाकई एक बड़ी भीड़ होंगे। (प्रका. 7:9, 14) यह दिखाता है कि इन आखिरी दिनों में परमेश्‍वर हर कीमत पर अपने सेवकों की हिफाज़त करेगा। वह उन्हें पूरी तरह मिटने नहीं देगा। यहोवा के सेवकों को परीक्षाओं का सामना करने और परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को सुरक्षित रखने के लिए जो भी चाहिए हो, यहोवा उसका इंतज़ाम करेगा। हर-मगिदोन में भी यहोवा अपने लोगों को बचाए रखेगा।

“हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर”

15, 16. अगर हम परमेश्‍वर से सीखी बातों को लागू करें, तो हमें क्या फायदा होगा? उदाहरण देकर समझाइए।

15 अपनी हिम्मत बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर से सीखते रहें। दाविद ने बिनती की: “हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर, और मेरे द्रोहियों के कारण मुझ को चौरस [“सीधाई के,” एन.डब्ल्यू.] रास्ते पर ले चल।” (भज. 27:11) परमेश्‍वर से सीखते रहने के लिए हमें उसके संगठन से और बाइबल से मिलनेवाले निर्देशों को ध्यान से सुनना चाहिए। यह भी ज़रूरी है कि हम इन्हें तुरंत लागू करें। मिसाल के लिए, ज़िंदगी को सादा बनाने का निर्देश मानकर, कई भाई-बहनों ने अपने कर्ज़ चुकाए और गैर-ज़रूरी चीज़ों से निजात पायी। इससे वे हाल की आर्थिक मंदी का बेहतर तरीके से सामना कर पाए। उनके पास बहुत सारी चीज़ें नहीं हैं जिनकी देखभाल में उन्हें काफी वक्‍त लगाना पड़े, इसलिए वे प्रचार काम में ज़्यादा समय बिता पाते हैं। हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘जब मैं बाइबल में दी कोई सलाह पढ़ता हूँ या फिर हमारे साहित्य में कोई हिदायत पढ़ता हूँ जो विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास देता है, तो क्या मैं तुरंत उस पर अमल करता हूँ? क्या मैं ऐसा तब भी करता हूँ जब यह आसान नहीं होता?’—मत्ती 24:45.

16 अगर हम यहोवा से सीखते रहें और सीधाई की राह पर चलते रहें, तो हमें भविष्य को लेकर डरने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अमरीका में एक पायनियर भाई ने एक ऐसे काम के लिए अर्ज़ी भरी जिससे उसका पूरा परिवार पायनियर सेवा में बना रह पाता। भाई के सुपरवाइज़र ने उससे कहा कि यह नौकरी उसे नहीं मिल सकती क्योंकि उसके पास कॉलेज की डिग्री नहीं है। अगर आपके साथ ऐसा होता, तो आपको कैसा लगता? क्या आपको इस बात का पछतावा होता कि आपने और पढ़ने के बजाय पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया? दो हफ्ते बाद उस सुपरवाइज़र की नौकरी छूट गयी और उसकी जगह आए सुपरवाइज़र ने भाई से उसके लक्ष्यों के बारे में पूछा। भाई ने उसे बताया कि वह और उसकी पत्नी यहोवा के साक्षी हैं और पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। भाई ने यह सेवा जारी रख पाने की उम्मीद जतायी। इससे पहले कि भाई आगे कुछ कहता, सुपरवाइज़र ने कहा, “मुझे लग ही रहा था कि तुम सबसे हटकर हो। जानते हो, जब मेरे पिताजी अपनी आखिरी साँसें गिन रहे थे, तब दो साक्षी रोज़ आती थीं और पिताजी को बाइबल पढ़कर सुनाती थीं। मैंने तभी तय कर लिया था कि अगर मुझे कभी किसी यहोवा के साक्षी की मदद करने का मौका मिले, तो मैं ज़रूर करूँगा।” अगले ही दिन भाई को वह काम दिया गया जिसे देने के लिए पिछले सुपरवाइज़र ने इनकार किया था। सच, अगर हम राज के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो यहोवा हमारी ज़रूरतें पूरी करने का अपना वादा ज़रूर निभाएगा।—मत्ती 6:33.

विश्‍वास और आशा ज़रूरी है

17. भविष्य के बारे में निडर रहने के लिए हमें कौन-सी बातें मदद दे सकती हैं?

17 दाविद बताता है कि विश्‍वास और आशा बनाए रखना कितना ज़रूरी है। उसने कहा: “यदि मुझे यह विश्‍वास न होता कि जीवितों की भूमि में यहोवा की भलाई को देखूँगा, तो मैं हताश हो गया होता।” (भज. 27:13, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) अगर परमेश्‍वर ने हमें आशा नहीं दी होती और हमें भजन 27 में लिखी बातों की समझ नहीं होती, तो हमें ज़िंदगी कितनी बेमतलब मालूम पड़ती! आइए हम इन आखिरी दिनों में यहोवा से प्रार्थना करते रहें कि वह हमें हिम्मत दे और हर-मगिदोन से बचाए!—भजन 27:14 पढ़िए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

दाविद ने उन पलों को याद किया जब यहोवा ने उसे खतरों से बचाया था और इससे उसे हिम्मत मिली

[पेज 25 पर तसवीर]

क्या आप आर्थिक तंगी को अपनी सेवा बढ़ाने का एक मौका मानते हैं?