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यहोवा की बतायी राह पर चलकर सच्ची आज़ादी पाइए!

यहोवा की बतायी राह पर चलकर सच्ची आज़ादी पाइए!

यहोवा की बतायी राह पर चलकर सच्ची आज़ादी पाइए!

‘आज़ादी दिलानेवाले सिद्ध कानून की बहुत करीब से जाँच कीजिए।’—याकू. 1:25.

क्या आप समझा सकते हैं?

कौन-सा कानून सच्ची आज़ादी दिलाता है? कौन इससे फायदा पाते हैं?

सच्ची आज़ादी पाने के लिए क्या करना ज़रूरी है?

जो ज़िंदगी की राह पर चलते हैं, उन्हें आखिर में कौन-सी आज़ादी मिलेगी?

1, 2. (क) क्या दुनिया में लोग वाकई आज़ाद हैं? (ख) यहोवा के सेवक कैसी आज़ादी का अनुभव करेंगे?

 आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ चारों तरफ खून-खराबा बढ़ता जा रहा है, लोग लालची होते जा रहे हैं और बेधड़क कानून तोड़ रहे हैं। (2 तीमु. 3:1-5) इन हालात पर काबू पाने के लिए सरकार नए-नए कानून बना रही है, पुलिस बल को मज़बूत कर रही है और लोगों पर नज़र रखने के लिए जगह-जगह कैमरे लगवा रही है। इसके अलावा, लोग खुद भी अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठा रहे हैं। कई देशों में लोगों ने अपने घरों में ऐसे यंत्र लगवाए हैं जिनसे किसी घुसपैठिए के आने का पता लगाया जा सकता है। कुछ लोग अपने घर में दो-तीन ताले लगाते हैं तो दूसरे, घर के चारों ओर कंटीले तारों का बाड़ा बाँधते हैं। कई लोग अँधेरा होने के बाद घर के बाहर कदम नहीं रखते। इसके अलावा, चाहे दिन हो या रात, कुछ माँ-बाप अपने बच्चों को अकेले घर से बाहर खेलने के लिए भेजने से डरते हैं। इन सबका नतीजा यह हुआ है कि लोगों की आज़ादी छिन गयी है। ऐसा लगता है कि हालात बिगड़ते ही जाएँगे।

2 अदन के बाग में शैतान ने दावा किया था कि इंसान परमेश्‍वर की हुकूमत को ठुकराकर सही मायनों में आज़ादी पा सकता है। मगर इतिहास गवाह है कि यह सरासर झूठ है। लोग उपासना और नैतिकता के मामले में जितनी ज़्यादा अपनी मन-मरज़ी करते हैं, उतना ही ज़्यादा पूरे समाज को तकलीफें झेलनी पड़ती हैं। हम यहोवा के सेवक भी इन तकलीफों से अछूते नहीं हैं। लेकिन बाइबल हमें यह आशा देती है कि एक दिन इंसान भ्रष्टता और पाप की गुलामी से छूटकर, “परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” का अनुभव कर सकेंगे। (रोमि. 8:21) हालाँकि यह भविष्य में होगा लेकिन यहोवा अभी से हमें यह आज़ादी पाने के लिए तैयार कर रहा है। वह कैसे?

3. यहोवा ने हमें कौन-सा कानून दिया है? हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

3 याकूब बताता है कि हमें तैयार करने के लिए यहोवा ने ‘आज़ादी दिलानेवाला सिद्ध कानून’ दिया है। (याकूब 1:25 पढ़िए।) इन शब्दों का अनुवाद, “स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था” (हिंदी - ओ.वी.) और ‘व्यवस्था जिससे स्वतन्त्रता प्राप्त होती है’ (हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) भी किया गया है। जब लोग ‘कानून’ या ‘व्यवस्था’ जैसे शब्द सुनते हैं, तो अकसर उनके मन में आज़ादी का नहीं बल्कि बंदिशों का खयाल आता है। तो फिर “सिद्ध कानून,” “आज़ादी” कैसे दिला सकता है? यह ‘आज़ादी दिलानेवाला सिद्ध कानून’ है क्या?

आज़ादी दिलानेवाला कानून

4. ‘आज़ादी दिलानेवाला सिद्ध कानून’ क्या है? इससे किन्हें फायदा होता है?

4 ‘आज़ादी दिलानेवाला सिद्ध कानून’ मूसा का कानून नहीं है क्योंकि वह तो इसराएलियों के पापों को ज़ाहिर करता था। इसके अलावा मसीह ने मूसा का कानून पूरा कर दिया था। (मत्ती 5:17; गला. 3:19) तो फिर याकूब किस कानून की बात कर रहा था? वह ‘मसीह के कानून’ की बात कर रहा था जिसे ‘विश्‍वास का कानून’ और ‘आज़ाद लोगों का कानून’ भी कहा गया है। (गला. 6:2; रोमि. 3:27; याकू. 2:12) यानी “सिद्ध कानून” का नाता उन बातों से है, जो यहोवा हमसे चाहता है। इस “सिद्ध कानून” से अभिषिक्‍त मसीही और “दूसरी भेड़ें,” दोनों फायदा पाते हैं।—यूह. 10:16.

5. आज़ादी दिलानेवाले सिद्ध कानून को मानना मुश्‍किल क्यों नहीं है?

5 “सिद्ध कानून” दुनिया के देशों के कानूनों से अलग है। कई देशों के कानून बहुत पेचीदा और कड़े होते हैं। लेकिन “सिद्ध कानून” ऐसा नहीं है। इसके नियम सरल और आसान हैं और इसमें जो सिद्धांत दिए हैं, वे कई मामलों में लागू किए जा सकते हैं। (1 यूह. 5:3) यीशु ने कहा, “मेरा जूआ आरामदायक और मेरा बोझ हल्का है।” (मत्ती 11:29, 30) साथ ही, इस “सिद्ध कानून” में सज़ा और जुरमानों की एक लंबी सूची नहीं दी गयी है क्योंकि यह प्यार पर आधारित है। यह पत्थर की पटियाओं पर नहीं बल्कि लोगों के मनों में और उनके दिलों पर लिखा गया है।—इब्रानियों 8:6, 10 पढ़िए।

सिद्ध कानून” हमें आज़ादी कैसे दिलाता है

6, 7. यहोवा के नियमों के बारे में क्या कहा जा सकता है? आज़ादी दिलानेवाला कानून हमें क्या करने की छूट देता है?

6 यहोवा ने इंसानों के लिए जो नियम ठहराए हैं, वे उन्हीं के फायदे के लिए हैं। इन नियमों को मानने से इंसानों की हिफाज़त होती है। मिसाल के लिए गुरुत्वाकर्षण को लीजिए। कुदरत का यह नियम लोगों को एक बोझ नहीं लगता बल्कि वे समझते हैं कि इससे उन्हें फायदा ही होता है। ठीक इसी तरह, यहोवा ने मसीह के “सिद्ध कानून” में उपासना और नैतिकता के बारे में जो नियम दिए हैं, उन्हें मानने से इंसानों की हिफाज़त होती है।

7 आज़ादी दिलानेवाला कानून हमें अपनी सभी जायज़ इच्छाएँ पूरी करने की छूट देता है, बशर्ते हम कुछ ऐसा न करें जिससे हमें नुकसान हो और दूसरों की आज़ादी या उनका हक छिन जाए। तो फिर सच्ची आज़ादी पाने के लिए ज़रूरी है कि हमारी इच्छाएँ सही हों, यानी हम वही करना सीखें जो यहोवा को भाता हो और उसके स्तरों के मुताबिक हो। हमें उन बातों से प्यार करना चाहिए जिनसे यहोवा प्यार करता है और उन बातों से नफरत करनी चाहिए जिनसे वह नफरत करता है। ऐसा करने के लिए आज़ादी दिलानेवाला कानून हमें मदद देता है।—आमो. 5:15.

8, 9. अगर हम आज़ादी दिलानेवाले कानून को मानें, तो हमें क्या फायदे होंगे? उदाहरण देकर समझाइए।

8 असिद्ध होने के नाते, हम अपनी गलत इच्छाओं के चंगुल में फँसे हैं और इससे छूटना आसान नहीं है। लेकिन अगर हम आज़ादी दिलानेवाले कानून को मानते रहें, तो कामयाब हो सकते हैं। जय की मिसाल लीजिए जिसे सिगरेट पीने की लत थी। जब उसने बाइबल का अध्ययन शुरू किया, तो उसने सीखा कि यह बुरी आदत परमेश्‍वर को पसंद नहीं है। अब उसे फैसला करना था कि वह अपनी गलत इच्छा का गुलाम बना रहेगा या फिर यहोवा की बात मानेगा। उसने परमेश्‍वर की सेवा करने का सही फैसला किया। ऐसा करना उसके लिए कतई आसान नहीं था क्योंकि कई बार उसमें सिगरेट पीने की ज़बरदस्त तलब उठती थी। इस आदत पर काबू पाने के बाद उसे कैसा लगा? वह कहता है: “मैं बहुत खुश हुआ, मुझे लगा जैसे मैं किसी कैद से आज़ाद हो गया!”

9 जय ने जाना कि दुनिया, लोगों को ‘शरीर की बातों पर मन लगाने’ की जो आज़ादी देती है, वह दरअसल उन्हें पाप का गुलाम बना देती है। दूसरी तरफ, जो लोग यहोवा का कानून मानते हैं, वे “पवित्र शक्‍ति की बातों पर मन” लगाते हैं। इससे वे सही मायनों में आज़ाद हो जाते हैं और आगे चलकर उन्हें “जीवन और शांति” मिलती है। (रोमि. 8:5, 6) जय इस आदत को कैसे छोड़ पाया? वह अपने बलबूते पर नहीं बल्कि परमेश्‍वर की मदद से ऐसा कर पाया। वह कहता है: “मैं नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करता था और पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करता था। मंडली के भाई-बहनों से भी मुझे काफी मदद मिली।” इन ज़रियों से हमें भी सच्ची आज़ादी पाने में मदद मिल सकती है। आइए देखें कैसे।

परमेश्‍वर के वचन को करीब से जाँचिए

10. परमेश्‍वर के कानून की ‘बहुत करीब से जाँच करने’ का क्या मतलब है?

10 याकूब 1:25 में लिखा है: “जो इंसान आज़ादी दिलानेवाले सिद्ध कानून की बहुत करीब से जाँच करता है और इसमें खोजबीन करता रहता है, वह ऐसा करने से खुशी पाएगा।” जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘बहुत करीब से जाँच करना’ किया गया है, उसका मतलब है “झुककर ध्यान से देखना।” ऐसा करने में मेहनत लगती है। जी हाँ, अगर हम आज़ादी दिलानेवाले कानून को अपने मन और दिल में बसाना चाहते हैं, तो हमें पूरी लगन से बाइबल का अध्ययन करना होगा और जो हम पढ़ते हैं, उसके बारे में गहराई से मनन करना होगा।—1 तीमु. 4:15.

11, 12. (क) यीशु ने इस बात पर कैसे ज़ोर दिया कि हमें सच्चाई की राह पर चलते रहना चाहिए? (ख) जवानों को किस खतरे से बचना चाहिए?

11 परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और उस पर मनन करने के साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि हम उसमें लिखी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू ‘करते रहें’ और इस तरह सच्चाई की राह पर चलते रहें। यीशु ने उस पर यकीन करनेवाले कुछ लोगों से भी ऐसी ही बात कही थी। उसने कहा: “अगर तुम मेरी शिक्षा में बने रहते हो, तो तुम सचमुच मेरे चेले हो। तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।” (यूह. 8:31, 32) एक किताब के मुताबिक यहाँ शब्द “जानोगे,” उस कदर को भी दर्शा सकता है जो किसी बात को जाननेवाला इंसान, उसकी अहमियत या मोल को समझने की वजह से दिखाता है। इसलिए हम सही मायनों में सच्चाई को तभी ‘जानेंगे’ जब हम सच्चाई की कदर करके उसके मुताबिक ज़िंदगी बिताएँगे। अगर हम ऐसा करें तो हम कह पाएँगे कि “परमेश्‍वर का वचन” हममें “काम कर रहा है,” यानी यह हमें इस तरह बदल रहा है कि हम परमेश्‍वर के गुण और भी अच्छी तरह ज़ाहिर कर सकें।—1 थिस्स. 2:13.

12 खुद से पूछिए, ‘क्या मैं वाकई सच्चाई को जानता हूँ? क्या मैं सच्चाई की राह पर चल रहा हूँ? या मैं अब भी उस “आज़ादी” के लिए तरसता हूँ, जो यह दुनिया देती है?’ एक बहन, जिसके माता-पिता मसीही थे, उन दिनों को याद करती है, जब वह एक नौजवान थी। वह कहती है: “जब आपकी परवरिश सच्चाई में होती है, तो यहोवा एक तरह से हमेशा आपके इर्द-गिर्द ही रहता है। लेकिन मैंने खुद यहोवा को कभी करीब से नहीं जाना था। मैंने कभी उन बातों से नफरत करना नहीं सीखा था, जिनसे यहोवा नफरत करता है। मुझे नहीं लगता था कि मैं जो भी करती हूँ उससे यहोवा को कोई फर्क पड़ता है। मैंने मुसीबत की घड़ी में कभी उससे मदद नहीं माँगी; मैं सोचती थी कि मैं सबकुछ जानती हूँ। मगर मैं समझ गयी हूँ कि यह बहुत बड़ी बेवकूफी थी, क्योंकि उस वक्‍त, मैं असल में कुछ भी नहीं जानती थी।” खुशी की बात है कि इस बहन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी ज़िंदगी में बड़े बदलाव किए। वह एक पायनियर के तौर पर सेवा भी करने लगी।

पवित्र शक्‍ति हमें आज़ाद होने में मदद दे सकती है

13. परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमें आज़ाद होने में मदद कैसे देती है?

13 दूसरा कुरिंथियों 3:17 में लिखा है: “जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति है, वहाँ आज़ादी होती है।” पवित्र शक्‍ति हमें आज़ाद होने में मदद कैसे देती है? यह हममें ‘प्यार, खुशी, शांति, सहनशीलता, कृपा, भलाई, विश्‍वास, कोमलता और संयम’ पैदा करती है। (गला. 5:22, 23) इन गुणों के बगैर, खासकर प्यार के बिना, लोग सही मायने में आज़ाद नहीं हो सकते। दुनिया में जो हो रहा है उससे यह साफ ज़ाहिर है। दिलचस्पी की बात है कि पवित्र शक्‍ति के फल का ज़िक्र करने के बाद, प्रेषित पौलुस ने कहा कि “ऐसी बातों के खिलाफ कोई कानून नहीं है।” उसका क्या मतलब था? कोई ऐसा कानून नहीं है जो बताता है कि हम किस हद तक पवित्र शक्‍ति का फल बढ़ा सकते हैं। (गला. 5:18) पवित्र शक्‍ति का फल बढ़ाने की कोई सीमा नहीं है क्योंकि यहोवा चाहता है कि हम अपने अंदर वे गुण लगातार बढ़ाते रहें जो मसीह में थे और उन्हें खुलकर ज़ाहिर करें।

14. इस दुनिया की फितरत लोगों को गुलाम कैसे बनाती है?

14 जो इस दुनिया की फितरत को खुद पर हावी होने देते हैं और अपने शरीर की ख्वाहिशों को पूरा करते हैं, उन्हें लग सकता है कि वे आज़ाद हैं। (2 पतरस 2:18, 19 पढ़िए।) लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दरअसल ऐसे लोगों की आज़ादी कम हो जाती है क्योंकि सरकार उनके बुरे कामों को रोकने के लिए ढेरों कानून बनाती है। पौलुस ने कहा, “कानून नेक इंसान के लिए नहीं बल्कि ऐसों के लिए जारी किया जाता है जो दुराचारी और बागी हैं।” (1 तीमु. 1:9, 10) इसके अलावा वे पाप के गुलाम भी बन जाते हैं और वही करते हैं जो उनका बेरहम मालिक यानी ‘शरीर चाहता है।’ (इफि. 2:1-3) उनकी तुलना हम उन चींटियों से कर सकते हैं जो अपनी भूख मिटाने के लिए सीधे शहद के कटोरे में उतर जाती हैं और शहद में फँस जाती हैं। इसी तरह, वे लोग अपनी गलत इच्छाओं को पूरा करने के चक्कर में पाप के गुलाम बन जाते हैं।—याकू. 1:14, 15.

मंडली का हिस्सा बनने से मिलनेवाली आज़ादी

15, 16. मंडली के साथ संगति करना क्यों इतना ज़रूरी है? हम मंडली में किस तरह की आज़ादी का आनंद उठाते हैं?

15 आप मसीही मंडली का हिस्सा इसलिए बन पाए हैं क्योंकि यहोवा ने खुद आपको अपनी ओर खींचा। (यूह. 6:44) ऐसा नहीं था कि आप कोई अर्ज़ी भरकर मंडली का सदस्य बन सकते थे, जैसे एक इंसान किसी क्लब का सदस्य बनता है। यहोवा ने क्यों आपको अपनी तरफ खींचा? क्या इसलिए कि आप बहुत नेक थे और परमेश्‍वर से डरते थे? बेशक आप जानते हैं कि ऐसा नहीं था। उसने आपमें एक ऐसा दिल देखा जो उसका प्यार-भरा मार्गदर्शन कबूल करता और आज़ादी दिलानेवाला उसका कानून मानता। मंडली के ज़रिए यहोवा ने आपको झूठी शिक्षाओं और अंधविश्‍वासों से आज़ाद किया। मंडली के ज़रिए ही वह आपको आध्यात्मिक भोजन देता है और सिखाता है कि आप मसीह की तरह कैसे बन सकते हैं। (इफिसियों 4:22-24 पढ़िए।) इस तरह आप उन लोगों में से एक बन पाते हैं, जिन्हें सही मायनों में “आज़ाद लोग” कहा जा सकता है। यह आपके लिए क्या ही बड़े सम्मान की बात है!—याकू. 2:12.

16 ज़रा सोचिए, जब आप उन लोगों के साथ होते हैं जो पूरे दिल से यहोवा से प्यार करते हैं, तो क्या आपको किसी बात का डर होता है? राज-घर में भाई-बहनों से बात करते वक्‍त क्या आपको अपना सामान हमेशा अपने पास रखना पड़ता है, इस डर से कि कहीं कोई उसे उठा ना ले जाए? बिलकुल नहीं! हम बेफिक्र रहते हैं और बहुत सुरक्षित महसूस करते हैं। क्या आप बाहरवालों के किसी समारोह में ऐसा महसूस कर पाएँगे? शायद नहीं। आप परमेश्‍वर के लोगों के बीच जिस आज़ादी का अनुभव करते हैं वह उस आज़ादी की महज़ एक झलक है जो आगे चलकर हमें मिलनेवाली है।

“परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी”

17. इंसानों को जो आज़ादी मिलेगी उसका “परमेश्‍वर के बेटों के ज़ाहिर होने” से क्या नाता है?

17 भविष्य में यहोवा धरती पर रहनेवाले अपने सेवकों को जो आज़ादी देगा, उसके बारे में बताते वक्‍त पौलुस ने कहा: “सृष्टि, परमेश्‍वर के बेटों के ज़ाहिर होने का इंतज़ार करते हुए बड़ी बेताबी से आस लगाए हुए है।” फिर उसने कहा: “सृष्टि भी भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद होकर परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी पाएगी।” (रोमि. 8:19-21) यहाँ शब्द “सृष्टि” उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें धरती पर जीने की आशा है। इन लोगों को तब आशीषें मिलेंगी जब पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त परमेश्‍वर के बेटे ‘ज़ाहिर होंगे।’ इन “बेटों” का ज़ाहिर होना तब शुरू होगा जब वे स्वर्ग में जी उठाए जाने के बाद, मसीह के साथ मिलकर धरती से बुराई को दूर करेंगे और एक नयी व्यवस्था में दाखिल होने के लिए “बड़ी भीड़” की मदद करेंगे।—प्रका. 7:9, 14.

18. इंसानों को किन बातों से आज़ादी मिलेगी? आखिर में इंसान किस तरह की आज़ादी पाएँगे?

18 इसके बाद इंसान उस आज़ादी का अनुभव करेंगे जिसका अनुभव उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों का अब उन पर कोई ज़ोर नहीं चलेगा। (प्रका. 20:1-3) इंसान आज़ाद होकर कितनी राहत महसूस करेंगे! इसके बाद 1,44,000 जन, राजा और याजकों के नाते, फिरौती के ज़रिए धीरे-धीरे इंसानों को पाप और असिद्धता से पूरी तरह आज़ाद करेंगे। (प्रका. 5:9, 10) जो आखिरी परीक्षा में खरे उतरेंगे, वे पूरी तरह आज़ाद हो जाएँगे। इस तरह वे उस आज़ादी को पाएँगे जो परमेश्‍वर ने इंसानों को बनाते वक्‍त उनके लिए चाही थी, यानी “परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी।” ज़रा सोचिए, आपको फिर कभी परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के लिए जद्दोजेहद नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि आप तन-मन से सिद्ध हो जाएँगे और आपकी शख्सियत परमेश्‍वर की तरह हो जाएगी!

19. अगर हम भविष्य में सच्ची आज़ादी पाना चाहते हैं, तो आज हमें क्या करते रहना चाहिए?

19 क्या आप “परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” पाने की तमन्‍ना रखते हैं? अगर हाँ, तो “आज़ादी दिलानेवाले सिद्ध कानून” को अपने दिलो-दिमाग पर असर करने दीजिए। इसके लिए पूरी लगन से बाइबल का अध्ययन कीजिए। सच्चाई की राह पर चलते रहिए। पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना कीजिए। मसीही मंडली के साथ संगति करते रहिए और यहोवा से मिलनेवाले आध्यात्मिक भोजन का पूरा-पूरा फायदा उठाइए। शैतान के बहकावे में आकर हव्वा की तरह यह मत सोचिए कि यहोवा की राह पर चलने से आपकी आज़ादी छिन जाएगी। यह सच है कि शैतान चालाक है लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह हम पर हावी हो जाए क्योंकि “हम उसकी चालबाज़ियों से अनजान नहीं।” (2 कुरिं. 2:11) अगले लेख में हम इसी बारे में चर्चा करेंगे।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीरें]

क्या मैं अब भी उस “आज़ादी” के लिए तरसता हूँ, जो यह दुनिया देती है?

[पेज 9 पर तसवीरें]

क्या मैं सच्चाई की राह पर चल रहा हूँ?