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‘यहोवा जो एक है,’ अपने परिवार को एक करता है

‘यहोवा जो एक है,’ अपने परिवार को एक करता है

‘यहोवा जो एक है,’ अपने परिवार को एक करता है

‘मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम उस एकता में रहो जो पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलती है।’—इफि. 4:1, 3.

समझाइए:

परमेश्‍वर ने एक “इंतज़ाम” क्यों ठहराया है?

हम कैसे ‘पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलनेवाली एकता’ में रह सकते हैं?

क्या बात हमें ‘एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आने’ में मदद देगी?

1, 2. यहोवा ने धरती और इंसानों के लिए क्या मकसद ठहराया है?

 परिवार। यह शब्द सुनते ही आपके मन में कैसी तसवीर उभरती है? क्या आप एक ऐसे माहौल के बारे में सोचते हैं जहाँ अपनापन और खुशियाँ पनपती हैं और जहाँ सभी को बढ़ने का मौका मिलता है? प्यार का एक ऐसा आशियाना जहाँ सभी मिलकर काम करते हैं, सुरक्षित महसूस करते हैं, खुलकर एक-दूसरे को अपने विचार बताते हैं और नयी-नयी बातें सीखते हैं? अगर आप एक ऐसे परिवार का हिस्सा हैं जहाँ सभी एक-दूसरे की परवाह करते हैं, तो ज़रूर आपके मन में ऐसी ही तसवीर उभरेगी। परिवार के इंतज़ाम की शुरूआत खुद यहोवा ने की थी। (इफि. 3:14, 15) उसका मकसद था कि स्वर्ग और धरती पर रहनेवाले सभी को सुरक्षा और भरोसे का माहौल मिले और उनके बीच एकता हो।

2 जब इंसानों ने पाप किया तो परमेश्‍वर के परिवार के साथ उनका नाता टूट गया। लेकिन इंसानों के लिए परमेश्‍वर का मकसद बदला नहीं। धरती को फिरदौस बनाकर, आदम और हव्वा की संतानों से आबाद करने का अपना मकसद परमेश्‍वर हर हाल में पूरा करेगा। (उत्प. 1:28; यशा. 45:18) उसने इसके लिए सभी ज़रूरी कदम उठाए हैं। इनके बारे में हम इफिसियों की किताब में पढ़ते हैं। इस किताब का मुख्य विषय एकता है। आइए इसकी कुछ आयतों पर गौर करें और जानें कि अपनी पूरी सृष्टि को एक करने का परमेश्‍वर का जो मकसद है, उसमें हम उसका साथ कैसे दे सकते हैं।

इंतज़ाम और उसका काम

3. इफिसियों 1:10 में बताया गया “इंतज़ाम” क्या है और इसके पहले भाग की शुरूआत कब हुई?

3 मूसा ने इसराएलियों से कहा था: “यहोवा हमारा परमेश्‍वर है, यहोवा एक ही है।” (व्यव. 6:4) यहोवा सभी काम अपने मकसद के हिसाब से करता है। इसलिए “तय वक्‍त के पूरा होने पर” परमेश्‍वर ने स्वर्ग और धरती पर रहनेवाले सभी को एकता के बंधन में बाँधने के लिए “एक इंतज़ाम” की शुरूआत की। (इफिसियों 1:8-10 पढ़िए।) इस इंतज़ाम के दो भाग हैं। पहले भाग में परमेश्‍वर, यीशु मसीह के अधीन स्वर्ग में काम करने के लिए लोगों को चुनता है और उन्हें इस काम के लिए तैयार करता है। इस भाग की शुरूआत ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त में हुई जब यहोवा ने स्वर्ग में राज करने के लिए लोगों का अभिषेक करना शुरू किया। (प्रेषि. 2:1-4) वह मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर अभिषिक्‍त जनों को जीवन पाने के लिए नेक ठहराता है। इसलिए अभिषिक्‍त जन कह पाते हैं कि उन्हें ‘परमेश्‍वर के बच्चों’ के नाते गोद लिया गया है।—रोमि. 3:23, 24; 5:1; 8:15-17.

4, 5. “इंतज़ाम” के दूसरे भाग में परमेश्‍वर क्या करता है?

4 इस इंतज़ाम के दूसरे भाग में यहोवा मसीहाई राज के अधीन, धरती पर फिरदौस में रहने के लिए लोगों को तैयार करता है। जो फिरदौस में रहेंगे उनमें पहले होंगे “बड़ी भीड़” के लोग। (प्रका. 7:9, 13-17; 21:1-5) हज़ार साल की हुकूमत के दौरान, इस बड़ी भीड़ के अलावा वे करोड़ों लोग भी फिरदौस में रहेंगे जिन्हें मरे हुओं में से जी उठाया जाएगा। (प्रका. 20:12, 13) ये जी उठाए गए लोग और बड़ी भीड़, दोनों ‘धरती की चीज़ें’ हैं। ज़रा सोचिए, पुनरुत्थान के बाद इंसानों को सच्ची एकता ज़ाहिर करने के कितने मौके मिलेंगे! हज़ार साल के अंत में इन पर आखिरी परीक्षा लायी जाएगी। जो इस परीक्षा में खरे उतरेंगे, उन्हें धरती पर ‘परमेश्‍वर के बच्चों’ के नाते गोद लिया जाएगा।—रोमि. 8:21; प्रका. 20:7, 8.

5 आज यहोवा अभिषिक्‍त जनों को स्वर्ग में रहने और दूसरी भेड़ों को फिरदौस में रहने के लिए तैयार कर रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि हममें से हरेक परमेश्‍वर के इंतज़ाम का साथ कैसे दे सकता है।

‘पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलनेवाली एकता में रहो’

6. कौन-सी आयतें दिखाती हैं कि मसीहियों को एक-साथ इकट्ठा होना चाहिए?

6 बाइबल मसीहियों को एक-साथ इकट्ठा होने के लिए कहती है। (1 कुरिं. 14:23; इब्रा. 10:24, 25) लेकिन सही मायनों में एक होने का मतलब, सिर्फ एक जगह पर इकट्ठा होना नहीं है। लोग किसी बाज़ार या स्टेडियम में भी इकट्ठा होते हैं। हमारे बीच सच्ची एकता तब होती है जब हम यहोवा की हिदायतों को मानते हैं और पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलकर खुद में सुधार लाते हैं।

7. ‘पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलनेवाली एकता में रहने’ का क्या मतलब है?

7 यहोवा मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर हम सभी को नेक ठहराता है। वह अभिषिक्‍त लोगों को नेक ठहराकर बेटा मानता है और दूसरी भेड़ के लोगों को अपना दोस्त कहता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमारे बीच कोई अनबन नहीं होगी। जब तक धरती पर यह व्यवस्था रहेगी तब तक हमारे बीच मतभेद तो होगा ही। (रोमि. 5:9; याकू. 2:23) अगर ऐसा नहीं होता, तो बाइबल हमें यह सलाह ही न देती कि “एक-दूसरे की सहते रहो।” तो फिर हम अपने भाई-बहनों के साथ एकता कैसे बनाए रख सकते हैं? इसके लिए हमें “मन की पूरी दीनता” और “कोमलता” पैदा करनी चाहिए। इसके अलावा, जैसे पौलुस ने हमें बढ़ावा दिया, हमें शांति और एकता बनाए रखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। पौलुस ने कहा था, “शांति के एक करनेवाले बंधन में बंधे हुए उस एकता में रहने की जी-जान से कोशिश करते रहो जो पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलती है।” (इफिसियों 4:1-3 पढ़िए।) इस सलाह पर अमल करने के लिए ज़रूरी है कि हम पवित्र शक्‍ति को खुद पर असर करने दें ताकि यह हममें अपना फल पैदा करे। पवित्र शक्‍ति का फल दो लोगों के बीच आयी दरार को भरता है, जबकि शरीर के काम हमेशा फूट डालते हैं।

8. शरीर के काम फूट कैसे पैदा करते हैं?

8 गौर कीजिए कि “शरीर के काम” कैसे फूट पैदा करते हैं। (गलातियों 5:19-21) व्यभिचार एक इंसान को यहोवा और मंडली से दूर कर देता है। शादी के बाहर यौन-संबंध, एक परिवार को तोड़ सकता है। यह बच्चों को अपने माता-पिता से और निर्दोष साथी को अपने पति या पत्नी से जुदा कर देता है। अशुद्धता, एक इंसान को परमेश्‍वर से और उसके अपनों से अलग कर देती है। जिस तरह दो चीज़ों को गोंद से चिपकाने के लिए ज़रूरी है कि उनकी सतह साफ हो, उसी तरह परमेश्‍वर और उसके संगठन के साथ जुड़े रहने के लिए शुद्धता ज़रूरी है। जो इंसान बदचलनी करता है वह दिखाता है कि उसे परमेश्‍वर के ऊँचे स्तरों की कोई परवाह नहीं है। शरीर के दूसरे काम भी एक इंसान को परमेश्‍वर और दूसरों से दूर करते हैं। इन कामों से परमेश्‍वर को सख्त नफरत है।

9. हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हम एकता और शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं?

9 शरीर के काम हमारी एकता को भंग कर सकते हैं इसलिए बेहद ज़रूरी है कि हममें से हरेक खुद से पूछे: ‘क्या मैं भाई-बहनों के साथ शांति और एकता बनाए रखने की पूरी कोशिश करता हूँ? जब कोई अनबन हो जाती है, तो क्या मैं लोगों के सामने अपना दुखड़ा रोता हूँ ताकि मुझे सबकी हमदर्दी मिले? क्या मैं चाहता हूँ कि दूसरों के साथ मेरी जो अनबन हुई है, उसे प्राचीन सुलझाएँ ताकि मुझे खुद उनसे बात न करनी पड़े? अगर किसी को मुझसे शिकायत है, तो क्या मैं उसकी नज़रों से बचने की कोशिश करता हूँ, ताकि उससे मेरा सामना ना हो और मुझे उससे बात न करनी पड़े?’ अगर हम ऐसा करते हैं, तो क्या हम यह कह सकते हैं कि मसीह में सबकुछ इकट्ठा करने के यहोवा के मकसद का हम साथ दे रहे हैं?

10, 11. (क) अपने भाइयों के साथ शांति बनाए रखना इतना ज़रूरी क्यों है? (ख) सच्ची शांति और यहोवा की आशीषें पाने के लिए क्या करना ज़रूरी है?

10 यीशु ने कहा: “अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, तो तू अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और जब तू लौट आए तब अपनी भेंट चढ़ा। . . . जल्द-से-जल्द सुलह कर ले।” (मत्ती 5:23-25) याकूब ने लिखा, “जो शांति कायम करनेवाले हैं, वे शांति के हालात में बीज बोते हैं और नेकी के फल काटते हैं।” (याकू. 3:17, 18) अगर हम दूसरों के साथ शांति न बनाए रखें, तो हम सही मायनों में नेक काम नहीं कर सकते।

11 इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए। कुछ देशों में युद्ध के दौरान बारूदी सुरंगें बिछायी गयी थीं। कहा जाता है कि इनकी वजह से इन देशों में करीब 35 प्रतिशत ज़मीन पर खेती नहीं की जाती। जब कहीं बारूदी सुरंग फटता है, तो किसान उस खेत को छोड़ देते हैं, वे न तो वहाँ कोई बीज बोते हैं ना ही कुछ उगाते हैं। इसकी वजह से गाँव के किसानों की रोज़ी-रोटी छिन जाती है। शहर में रहनेवालों पर भी इसका असर होता है क्योंकि उन तक फल-सब्ज़ियाँ नहीं पहुँचतीं। उसी तरह, अगर हमारा रवैया बारूदी सुरंग जैसा हो, तो हम अपने अंदर मसीही गुणों को नहीं बढ़ा पाएँगे। इसका असर दूसरों पर भी होगा। उनके लिए हमारे साथ शांति बनाए रखना बहुत मुश्‍किल होगा। लेकिन अगर हम आसानी से दूसरों को माफ करें और दूसरों के साथ भलाई करें, तो सभी को सच्ची शांति और यहोवा की तरफ से आशीषें मिलेंगी।

12. प्राचीन एकता बनाए रखने में हमारी मदद कैसे करते हैं?

12 “आदमियों के रूप में तोहफे” भी हमारे बीच एकता बनाए रखने में एक अहम भूमिका निभाते हैं। वे हमें ‘विश्‍वास में एकता हासिल’ करने में मदद देते हैं। (इफि. 4:8, 13) जब प्राचीन, हमारे साथ परमेश्‍वर की सेवा से जुड़े काम करते हैं और हमें बाइबल से कुछ सलाह देते हैं, तो इससे हमें नयी शख्सियत को पहनने में मदद मिलती है। (इफि. 4:22-24) जब वे हमें कोई सलाह देते हैं, तो क्या हम यह मानते हैं कि इस तरह यहोवा हमें नयी दुनिया में जीने के लिए तैयार कर रहा है? प्राचीनो, क्या आप दूसरों की मदद करने के मकसद से उन्हें सलाह देते हैं?—गला. 6:1.

“एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आओ”

13. अगर हम इफिसियों 4:25-32 में दी सलाह को ठुकराएँ, तो क्या हो सकता है?

13 इफिसियों 4:25-29 में बताया गया है कि हमें झूठ बोलने, गुस्सा करने, आलसी बनने और गंदी बातें बोलने जैसे कामों से दूर रहना चाहिए क्योंकि ये फूट डालते हैं। अगर हम इस सलाह को ठुकरा दें, तो हम पवित्र शक्‍ति को दुखी कर रहे होंगे क्योंकि वह एकता को बढ़ावा देती है। (इफि. 4:30) पौलुस ने आगे जो बताया उसे लागू करना भी शांति और एकता बनाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी है। उसने कहा: “हर तरह की जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज, साथ ही हर तरह की बुराई को खुद से दूर करो। इसके बजाय, एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आओ और कोमल-करुणा दिखाते हुए एक-दूसरे को दिल से माफ करो, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने भी मसीह के ज़रिए तुम्हें दिल से माफ किया है।”—इफि. 4:31, 32.

14. (क) पौलुस ने “कृपा से पेश” आने की जो सलाह दी, उससे क्या ज़ाहिर होता है? (ख) क्या बात हमें कृपा से पेश आने में मदद देगी?

14 जब पौलुस कहता है, “कृपा से पेश आओ,” तो इसका मतलब है कि कहीं-न-कहीं तो हम ऐसा करने से चूक जाते हैं और इसलिए हमें सुधार करना चाहिए। हमें सीखना चाहिए कि हम खुद की भावनाओं से ज़्यादा, दूसरों की भावनाओं की कदर कैसे करें। (फिलि. 2:4) अगर हम किसी के बारे में कुछ ऐसा कहने की सोच रहे हैं, जिससे लोग हँसेंगे या सोचेंगे कि हम बहुत होशियार हैं, तो हमें पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हम ऐसा करके कृपा दिखा रहे होंगे। अगर हम इस तरह सोच-समझकर बात करें, तो हम “कृपा से पेश” आ पाएँगे।

प्यार और अधीनता दिखाना सीखिए

15. इफिसियों 5:28 से मसीह की मिसाल पर चलने के बारे में पति क्या सीख सकते हैं?

15 पति-पत्नी के रिश्‍ते की तुलना बाइबल मसीह और मंडली के बीच के रिश्‍ते से करती है। इसका मतलब है कि एक पति को अपनी पत्नी के साथ प्यार से पेश आना चाहिए, उसका खयाल रखना चाहिए और उसे सही मार्गदर्शन देना चाहिए। साथ ही, पत्नी को अपने पति के अधीन रहना चाहिए। (इफि. 5:22-33) जब पौलुस ने लिखा कि “इसी तरह पतियों को चाहिए कि वे अपनी-अपनी पत्नी से ऐसे प्यार करते रहें जैसे अपने शरीर से,” तो उसका क्या मतलब था? (इफि. 5:28) इससे पहले पौलुस ने कहा था कि मसीह ने मंडली से प्यार किया और उसकी खातिर अपनी जान दे दी “ताकि वह पानी-रूपी वचन के स्नान से स्वच्छ कर उसे पवित्र बनाए।” अपने परिवार की आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करना एक पति की ज़िम्मेदारी है। ऐसा करके वह मसीह में सबकुछ इकट्ठा करने के यहोवा के मकसद का साथ दे रहा होगा।

16. जब माता-पिता परमेश्‍वर से मिली अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं, तो इसका क्या नतीजा होता है?

16 माता-पिताओं को याद रखना चाहिए कि बच्चों की परवरिश करना परमेश्‍वर से मिली एक ज़िम्मेदारी है। लेकिन बड़े दुख की बात है कि आज कई लोगों में “मोह-ममता” नहीं रही। (2 तीमु. 3:1, 3) कई पिता, बच्चों की देखभाल करने की अपनी ज़िम्मेदारी को नज़रअंदाज़ करते हैं। इसका बच्चों पर बहुत बुरा असर होता है और उन्हें दुख होता है। पौलुस ने मसीही पिताओं को यह सलाह दी थी: “अपने बच्चों को चिढ़ मत दिलाओ, बल्कि उन्हें यहोवा की तरफ से आनेवाला अनुशासन देते हुए और उसी की सोच के मुताबिक उनके मन को ढालते हुए उनकी परवरिश करो।” (इफि. 6:4) दूसरों को प्यार दिखाने और अधिकार रखनेवालों के अधीन रहने के शुरूआती सबक, बच्चे परिवार से ही सीखते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि माता-पिता परिवार में प्यार-भरा माहौल बनाए रखें और गुस्सा, क्रोध, गाली-गलौज वगैरह से दूर रहें। जब माता-पिता बच्चों को ऐसी तालीम देते हैं, तो वे यहोवा के इंतज़ाम के मुताबिक काम करते हैं और बच्चों को नयी दुनिया में जीने के लिए तैयार करते हैं।

17. शैतान का मुकाबला करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

17 हमें याद रखना चाहिए कि इब्‌लीस ने हमेशा दूसरों को परमेश्‍वर की सेवा करने से रोका है और वह आगे भी ऐसा करता रहेगा। आज जब दुनिया में लोग तलाक लेते हैं, बगैर शादी के साथ रहते हैं और अपने ही लिंग के व्यक्‍ति के साथ शादी करते हैं, तो वे शैतान की मरज़ी पूरी करते हैं। लेकिन हम दुनिया के ऐसे तौर-तरीकों और रवैयों को नहीं अपनाते। इसकी बजाय हम यीशु की मिसाल पर चलते हैं। (इफि. 4:17-21) बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि हम ‘परमेश्‍वर के दिए सारे हथियार बाँध लें’ ताकि इब्‌लीस और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों का मुकाबला करने में हम कामयाब हो सकें।—इफिसियों 6:10-13 पढ़िए।

“प्यार की राह पर चलते रहो”

18. मसीही एकता के लिए कौन-सा गुण ज़रूरी है?

18 मसीही एकता के लिए प्यार ज़रूरी है। हम “एक ही प्रभु” यीशु मसीह से, “एक ही परमेश्‍वर” यहोवा से और एक-दूसरे से बेहद प्यार करते हैं। इसीलिए हमने शांति और एकता बनाए रखने का पक्का इरादा किया है। (इफि. 4:3-6) यीशु ने प्रार्थना में इसी प्यार का ज़िक्र करते हुए कहा: “मैं सिर्फ इन्हीं के लिए बिनती नहीं करता, मगर उनके लिए भी करता हूँ जो इनके वचन के ज़रिए मुझ पर विश्‍वास करते हैं, ताकि वे सभी एक हो सकें। ठीक जैसे हे पिता, तू मेरे साथ एकता में है और मैं तेरे साथ एकता में हूँ। उसी तरह, वे भी हमारे साथ एकता में हो सकें . . . मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है और आगे भी बताऊँगा ताकि जो प्यार तू ने मुझसे किया, वह उनमें भी हो और मैं उनके साथ एकता में रहूँ।”—यूह. 17:20, 21, 26.

19. आपने क्या करने की ठान ली है?

19 हो सकता है कि असिद्धता की वजह से हमारा दिल अच्छे और बुरे के बीच बँटा हुआ हो। ऐसे में परमेश्‍वर के लिए प्यार हमें उभारेगा कि हम भजनहार की तरह यह प्रार्थना करें: “मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।” (भज. 86:11) आइए हम ठान लें कि जब शैतान हमें यहोवा और भाई-बहनों से अलग करने की कोशिश करेगा, तो हम डटकर उसका मुकाबला करेंगे। हमारी कोशिश हमेशा यही रहेगी कि हम परिवार में, प्रचार में और मंडली में, “परमेश्‍वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर” और “प्यार की राह पर” चलते रहें।—इफि. 5:1, 2.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 29 पर तसवीर]

वह अपनी भेंट को वेदी के सामने ही छोड़कर, अपने भाई के साथ सुलह करने जाता है

[पेज 31 पर तसवीर]

माता-पिताओ, अपने बच्चों को दूसरों का आदर करना सिखाइए