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आप पर भरोसा करके आपको प्रबंधक ठहराया गया है!

आप पर भरोसा करके आपको प्रबंधक ठहराया गया है!

“तुम्हारा खुद पर अधिकार नहीं है।”—1 कुरिं. 6:19.

1. गुलामी का ज़िक्र सुनते ही लोगों के मन में कैसी तसवीर उभर आती है?

 करीब 2,500 साल पहले गुलामी के बारे में एक यूनानी लेखक ने लिखा, “गुलामी का जूआ ऐसा जूआ है जिसमें कोई भी जानबूझकर जुतना पसंद नहीं करेगा।” आज सदियों बाद भी बहुत-से लोग इस बात से सहमत होंगे। वाकई, “गुलामी” शब्द सुनते ही मन में एक ऐसे इंसान की तसवीर उभर आती है जिसे बेड़ियों में जकड़ा गया है और पीट-पीटकर काम लिया जा रहा है। उसे खून-पसीना बहाकर मज़दूरी करनी पड़ती है मगर इसका फायदा वह खुद नहीं बल्कि उसका मालिक उठाता है।

2, 3. (क) अपनी खुशी से सेवा करनेवाले मसीह के दासों या सेवकों के साथ कैसा बरताव किया जाता है? (ख) प्रबंधक की ज़िम्मेदारी के बारे में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

2 यीशु ने बताया कि उसके चेले दासों की तरह दीन होकर सेवा करेंगे। लेकिन सच्चे मसीहियों के मामले में दास होने के मायने बिलकुल अलग हैं। उनके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की जाती, न ही उन्हें ज़लील किया जाता है। इसके बजाय, उनका आदर-सम्मान किया जाता है और उन पर पूरा भरोसा रखा जाता है। मिसाल के लिए, गौर कीजिए कि यीशु ने अपनी मौत से कुछ समय पहले एक “दास” के बारे में क्या कहा। उसने बताया कि वह दास “विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास” होगा जिसे वह कुछ ज़िम्मेदारियाँ सौंपेगा।—मत्ती 24:45-47.

3 यह गौरतलब है कि लूका की किताब में इस दास को “प्रबंधक” कहा गया है। (लूका 12:42-44 पढ़िए।) हालाँकि आज के ज़्यादातर वफादार मसीही, विश्‍वासयोग्य प्रबंधक वर्ग के सदस्य नहीं हैं फिर भी बाइबल बताती है कि परमेश्‍वर के सभी सेवकों को एक मायने में प्रबंधक ठहराया गया है। तो सवाल यह है कि हम सबको प्रबंधक के नाते क्या ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं? अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में हमें कैसा नज़रिया रखना चाहिए? इन सवालों के जवाब पाने के लिए आइए देखें कि पुराने ज़माने में प्रबंधक कौन होते थे और उनकी ज़िम्मेदारियाँ क्या थीं।

प्रबंधकों की ज़िम्मेदारियाँ

4, 5. पुराने ज़माने में प्रबंधकों को क्या ज़िम्मेदारियाँ दी जाती थीं? कुछ मिसालें दीजिए।

4 पुराने ज़माने में अकसर एक भरोसेमंद दास को प्रबंधक चुना जाता था। उसे अपने मालिक के घराने या कारोबार की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी दी जाती थी। आम तौर पर प्रबंधक अपने मालिक की ज़मीन-जायदाद की देखरेख करता और दूसरे सेवकों पर अधिकार रखता था। अब्राहम का दास एलीएजेर ऐसा ही एक प्रबंधक था जिसे अब्राहम की बड़ी जायदाद की देखरेख का ज़िम्मा सौंपा गया था। शायद एलीएजेर ही वह सेवक था जिसे अब्राहम ने इसहाक के लिए लड़की ढूँढ़ने मेसोपोटामिया भेजा था। यह एक अहम और गंभीर ज़िम्मेदारी थी।—उत्प. 13:2; 15:2; 24:2-4.

5 अब्राहम का पर-पोता यूसुफ भी एक प्रबंधक था जो पोतीपर के घराने की देखरेख करता था। (उत्प. 39:1, 2, 4) समय के चलते, यूसुफ के घर पर भी एक प्रबंधक ठहराया गया जो उसके ‘घर का अधिकारी’ था। उस प्रबंधक ने ही यूसुफ के दस भाइयों के लिए मेहमान-नवाज़ी का इंतज़ाम किया। यूसुफ ने चाँदी के कटोरे के मामले में जो भी हुक्म दिए उनके मुताबिक प्रबंधक ने सारा इंतज़ाम किया। इन मिसालों से यह साफ है कि पुराने ज़माने में प्रबंधकों पर मालिक कितना भरोसा करते थे।—उत्प. 43:19-25; 44:1-12.

6. मसीही प्राचीनों को प्रबंधकों के नाते क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गयी हैं?

6 सदियों बाद, प्रेषित पौलुस ने लिखा कि मसीही मंडली की निगरानी करनेवाले भाई ‘परमेश्‍वर के ठहराए प्रबंधक’ हैं। (तीतु. 1:7) उन्हें “परमेश्‍वर के झुंड” की रखवाली करने के लिए नियुक्‍त किया गया है इसलिए वे मंडली में अगुवाई करते हैं और भाई-बहनों को ज़रूरी निर्देश देते हैं। (1 पत. 5:1, 2) इन निगरानों की अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। मिसाल के लिए, ज़्यादातर निगरान किसी एक मंडली में सेवा करते हैं। सफरी निगरान बहुत-सी मंडलियों की अगुवाई करते हैं। और शाखा-समिति के सदस्य एक या उससे ज़्यादा देशों की सारी मंडलियों की देखरेख करते हैं। हालाँकि निगरानों को अलग-अलग काम सौंपा गया है, मगर उन सबसे यही उम्मीद की जाती है कि वे अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में वफादार साबित हों। उन सबको परमेश्‍वर को “हिसाब देना होगा।”—इब्रा. 13:17.

7. हम कैसे कह सकते हैं कि सभी मसीही एक मायने में प्रबंधक हैं?

7 लेकिन उन सभी वफादार मसीहियों के बारे में क्या जो मंडली में निगरान नहीं हैं? प्रेषित पतरस ने सभी मसीहियों के नाम अपनी चिट्ठी में कहा, “परमेश्‍वर की जो महा-कृपा अलग-अलग तरीके से दिखायी गयी है उसके मुताबिक तुममें से हरेक ने देन पायी है। इसलिए तुम परमेश्‍वर के ठहराए बढ़िया प्रबंधकों के नाते अपनी इस देन को एक-दूसरे की सेवा करने में इस्तेमाल करो।” (1 पत. 1:1; 4:10) परमेश्‍वर की महा-कृपा से हम सबके पास कोई न कोई हुनर, साधन, काबिलीयतें या कोई और देन है, जिसका इस्तेमाल करके हम अपने मसीही भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि परमेश्‍वर का हर सेवक एक प्रबंधक है, चाहे वह निगरान हो या नहीं। हमें प्रबंधक ठहराकर परमेश्‍वर ने हमें बहुत सम्मान दिया है, हम पर भरोसा दिखाया है और वह हमसे उम्मीद करता है कि हम अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाएँगे।

हम पर परमेश्‍वर का अधिकार है

8. हम सबको कौन-सा अहम सिद्धांत हमेशा याद रखना चाहिए?

8 आइए अब हम ऐसे तीन सिद्धांतों पर गौर करें जिन्हें मानने से हम सभी अच्छे प्रबंधक साबित हो सकते हैं। पहला सिद्धांत है कि हम सब पर परमेश्‍वर का अधिकार है और हमें उसी को लेखा देना होगा। पौलुस ने लिखा, “तुम्हारा खुद पर अधिकार नहीं है। तुम्हें बड़ी कीमत देकर खरीदा गया है।” यहोवा परमेश्‍वर ने मसीह के खून से हमें खरीदा है। (1 कुरिं. 6:19, 20) इसलिए हम पर यहोवा का अधिकार है और हमारा फर्ज़ बनता है कि हम उसकी आज्ञाएँ मानें जो कि हम पर बोझ नहीं हैं। (रोमि. 14:8; 1 यूह. 5:3) हम परमेश्‍वर के साथ-साथ मसीह के भी दास बन गए। पुराने ज़माने के प्रबंधकों की तरह हमें भी काफी आज़ादी दी गयी है, लेकिन इस आज़ादी की कुछ सीमाएँ हैं। हमें अपनी ज़िम्मेदारी मनचाहे तरीके से नहीं, बल्कि दी गयी हिदायतों के मुताबिक निभानी है। जी हाँ, परमेश्‍वर की सेवा में हमें चाहे जो भी सुअवसर मिला हो, हम सबकी एक ही हैसियत है, हम परमेश्‍वर और मसीह के दास हैं।

9. मालिक और दास का रिश्‍ता समझाने के लिए यीशु ने क्या उदाहरण दिया?

9 यीशु के बताए एक उदाहरण से हम समझ पाते हैं कि मालिक और दास के बीच कैसा रिश्‍ता होता है। एक बार उसने चेलों को एक दास की मिसाल बतायी जो पूरा दिन काम करने के बाद घर लौटता है। तब क्या मालिक उससे यह कहता है, “फौरन यहाँ आ और खाने के लिए मेज़ से टेक लगा”? जी नहीं। वह कहता है, “मेरे शाम के खाने के लिए कुछ तैयार कर और जब तक मैं खा-पी न लूँ तब तक अंगोछे से कमर बाँधकर मेरी सेवा कर और उसके बाद तू खा-पी सकता है।” यीशु ने इस उदाहरण से अपने चेलों को क्या सीख दी? उसने कहा, “वैसे ही तुम भी, जब वे सब काम कर चुको जो तुम्हें दिए गए हैं, तो कहो, ‘हम निकम्मे दास हैं। हमें जो करना चाहिए था, बस वही हमने किया है।’”—लूका 17:7-10.

10. क्या दिखाता है कि यहोवा की सेवा में हम जो मेहनत करते हैं, उसकी वह कदर करता है?

10 यहोवा की सेवा में हम जो मेहनत करते हैं उसकी वह ज़रूर कदर करता है। बाइबल हमें भरोसा दिलाती है, “परमेश्‍वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्यार को भूल जाए जो तुमने उसके नाम के लिए दिखाया है।” (इब्रा. 6:10) यहोवा हमसे कभी-भी हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करता। इतना ही नहीं, वह हमसे वही करने को कहता है जिससे हमारा भला हो और जिसे करना हमारे लिए बोझ न हो। फिर भी यीशु के बताए उदाहरण के मुताबिक एक दास कभी अपनी ख्वाहिशों को पहली जगह नहीं देता बल्कि सबसे पहले अपने मालिक की मरज़ी पूरी करने की सोचता है। कहने का मतलब यह है कि जब हमने परमेश्‍वर को अपना जीवन समर्पित किया था तो हमने फैसला किया था कि हम हमेशा परमेश्‍वर की मरज़ी को पहली जगह देंगे। क्या आप इस बात से सहमत नहीं हैं?

यहोवा हम सबसे क्या चाहता है

11, 12. प्रबंधकों के नाते, हमें कौन-सा गुण दिखाना चाहिए? हमें किन बातों से दूर रहना चाहिए?

11 दूसरा सिद्धांत है, प्रबंधकों के नाते हम सब एक ही तरह के स्तरों को मानते हैं। यह सच है कि मंडली में कुछ ज़िम्मेदारियाँ चंद लोगों को ही दी जाती हैं। लेकिन ज़्यादातर ज़िम्मेदारियाँ सभी को दी गयी हैं। जैसे, हम सबको आज्ञा दी गयी है कि हम मसीह के चेले और यहोवा के साक्षी होने के नाते एक-दूसरे से प्यार करें। यीशु ने कहा था कि प्यार सच्चे मसीहियों की पहचान है। (यूह. 13:35) और यह प्यार हमें न सिर्फ मसीही भाई-बहनों से बल्कि उन लोगों से भी करना चाहिए जो सच्चाई में नहीं हैं। यह एक ऐसा काम है जो हम सभी कर सकते हैं और हमें करना भी चाहिए।

12 अच्छा चालचलन बनाए रखना एक और माँग है जो हम सब को पूरी करनी है। हमें हर ऐसे काम से दूर रहना चाहिए जिसका बाइबल साफ खंडन करती है। पौलुस ने लिखा, “न व्यभिचारी, न मूर्तियाँ पूजनेवाले, न शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवाले, न पुरुषों के साथ अस्वाभाविक संभोग के लिए रखे गए पुरुष, न ही पुरुषों के साथ संभोग करनेवाले पुरुष, न चोर, न लालची, न पियक्कड़, न गाली-गलौज करनेवाले और न दूसरों का धन ऐंठनेवाले परमेश्‍वर के राज के वारिस होंगे।” (1 कुरिं. 6:9, 10) माना कि चालचलन के बारे में परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक ज़िंदगी में तबदीलियाँ लाने में कड़ी मेहनत लगती है। लेकिन यह मेहनत बेकार नहीं जाती, इससे हमें बहुत फायदे होते हैं। जैसे, हम अच्छी सेहत का लुत्फ उठा सकते हैं, दूसरों के साथ अच्छा रिश्‍ता कायम कर सकते हैं और परमेश्‍वर की नज़रों में बढ़िया नाम कमा सकते हैं।—यशायाह 48:17, 18 पढ़िए।

13, 14. सभी मसीहियों को क्या ज़िम्मेदारी दी गयी है और हमें इस ज़िम्मेदारी को किस नज़र से देखना चाहिए?

13 याद कीजिए कि पुराने ज़माने में प्रबंधकों के पास बहुत काम होता था। हमारे बारे में भी यह सच है। परमेश्‍वर ने हमें क्या काम दिया है? वह चाहता है कि उसने हमें जो अनमोल सच्चाई बतायी है वह हम दूसरों को भी सिखाएँ। (मत्ती 28:19, 20) पौलुस ने लिखा, “लोग हमें मसीह के अधीन काम करनेवाले सेवक और ऐसे प्रबंधक समझें जिन्हें परमेश्‍वर के पवित्र रहस्य सौंपे गए हैं।” (1 कुरिं. 4:1) पौलुस जानता था कि प्रबंधक के नाते उसे अपने मालिक यीशु मसीह की हिदायतों के मुताबिक ‘पवित्र रहस्यों’ की हिफाज़त करनी है और उनके बारे में दूसरों को भी सिखाना है।—1 कुरिं. 9:16.

14 जब हम दूसरों को सच्चाई सिखाते हैं, तो दरअसल हम उनके लिए अपना प्यार दिखाते हैं। कुछ मसीही प्रचार में ज़्यादा वक्‍त बिता पाते हैं तो कुछ कम, क्योंकि सबके हालात अलग-अलग हैं। यहोवा इस बात को समझता है। तो हर मसीही के लिए यह बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है कि उसके लिए जितना करना मुमकिन है उतना वह ज़रूर करे। ऐसा करके हम दिखाते हैं कि हम बिना किसी स्वार्थ के परमेश्‍वर से और अपने पड़ोसी से प्यार करते हैं।

विश्‍वासयोग्य होना क्यों ज़रूरी है

15-17. (क) एक प्रबंधक का विश्‍वासयोग्य होना क्यों ज़रूरी है? (ख) यीशु ने कौन-सी मिसालें देकर समझाया कि विश्‍वासयोग्य न होने के बुरे अंजाम हो सकते हैं?

15 तीसरा सिद्धांत यह है कि हमें विश्‍वासयोग्य और भरोसेमंद होना चाहिए। यह सिद्धांत पहले दो सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है। एक प्रबंधक में कितने ही अच्छे गुण और काबिलीयतें क्यों न हों, लेकिन अगर वह गैर-ज़िम्मेदार है या मालिक का वफादार नहीं है, तो उसके सारे अच्छे गुण बेमाने हो जाएँगे। अगर एक प्रबंधक अपना काम अच्छी तरह करना चाहता है और अपने मालिक को खुश करना चाहता है तो उसका विश्‍वासयोग्य होना निहायत ज़रूरी है। याद कीजिए, पौलुस ने लिखा था, “एक प्रबंधक में यह देखा जाता है कि वह विश्‍वासयोग्य पाया जाए।”—1 कुरिं. 4:2.

16 अगर हम विश्‍वासयोग्य रहें, तो हमारे लिए इनाम पक्का है। लेकिन अगर हम विश्‍वासयोग्य न रहें, तो हमें बुरा अंजाम भुगतना होगा। यह बात हम यीशु के बताए तोड़ों के उदाहरण से जान सकते हैं। जो दास विश्‍वासयोग्य थे, उन्होंने मालिक के पैसों से “कारोबार” किया इसलिए मालिक ने उन्हें शाबाशी दी और इनाम दिया। मगर जो दास गैर-ज़िम्मेदार था, उसे मालिक ने “दुष्ट,” “आलसी” और ‘निकम्मा’ कहा और उसका तोड़ा वापस लेकर उसे बाहर फिंकवा दिया।—मत्ती 25:14-18, 23, 26, 28-30 पढ़िए।

17 एक और मौके पर यीशु ने बताया कि विश्‍वासयोग्य न होने का क्या अंजाम होता है। उसने कहा, “एक अमीर आदमी के यहाँ एक प्रबंधक था, जिसके खिलाफ उससे यह शिकायत की गयी कि वह तेरे माल की बरबादी कर रहा है। इसलिए उसने प्रबंधक को बुलाया और उससे कहा: ‘मैं तेरे बारे में यह क्या सुन रहा हूँ? प्रबंधक के अपने काम का हिसाब दे, क्योंकि अब से तू मेरे घर का कारोबार नहीं देखेगा।’” (लूका 16:1, 2) यह प्रबंधक अपने मालिक की संपत्ति लुटा रहा था, इसलिए मालिक ने उसे काम से निकाल देने का फैसला किया। इससे हमें कितनी गंभीर चेतावनी मिलती है! हम कभी नहीं चाहेंगे कि हम गैर-ज़िम्मेदार हों, बल्कि यही चाहेंगे कि हमें जो काम सौंपा गया है, उसे पूरा करके हम विश्‍वासयोग्य साबित हों।

खुद की तुलना दूसरों से करना—क्या यह अक्लमंदी है?

18. हमें क्यों खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए?

18 हममें से हरेक खुद से पूछ सकता है, ‘मैं प्रबंधक होने की अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में क्या सोचता हूँ?’ हमें कभी-भी अपनी सेवा की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से मुश्‍किलें खड़ी हो सकती हैं। बाइबल हमें सलाह देती है, “हर कोई खुद अपने काम की जाँच करे और तब उसके पास किसी दूसरे की तुलना में नहीं, बल्कि खुद अपने ही काम के बारे में गर्व करने की वजह होगी।” (गला. 6:4) हम जो करते हैं, उसकी तुलना दूसरों से करने के बजाय, अच्छा होगा कि हम खुद की जाँच करें कि कैसे हम अपने काम में सुधार ला सकते हैं और अपना भरसक कर सकते हैं। तब हम घमंड से नहीं फूलेंगे, न ही कभी निराश होंगे। खुद की जाँच करते वक्‍त हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहते। शायद खराब सेहत या ढलती उम्र या कुछ ज़िम्मेदारियों की वजह से अब हम पहले जितनी सेवा नहीं कर पाते हों। ऐसे में हमें निराश नहीं होना चाहिए। या यह भी हो सकता है कि हमारे हालात पहले से बेहतर हो गए हैं और अब हमारे लिए ज़्यादा सेवा करने की गुंजाइश है। अगर ऐसा है तो क्यों न अपनी सेवा बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठाएँ?

19. हम जो ज़िम्मेदारी चाहते हैं अगर हमें वह नहीं मिलती, तो हमें क्यों हिम्मत नहीं हारनी चाहिए?

19 इसके अलावा, हमें मंडली की ज़िम्मेदारियों के मामले में भी खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। मिसाल के लिए, हो सकता है एक भाई की बड़ी तमन्‍ना हो कि वह मंडली में प्राचीन बनकर सेवा करे या फिर सम्मेलन और अधिवेशन में भाषण दे। ऐसी खास ज़िम्मेदारियों के योग्य बनने के लिए कड़ी मेहनत करना अच्छी बात है लेकिन अगर हमें लगता है कि ये ज़िम्मेदारियाँ मिलने में देर हो रही है तो हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हमें शायद लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़े और इस देरी की वजह हम आज न समझ पा रहे हों। मूसा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। शायद उसने सोचा कि वह इसराएलियों की अगुवाई करने और उन्हें मिस्र से बाहर ले जाने के काबिल है। मगर ऐसा करने के लिए उसे 40 साल इंतज़ार करना पड़ा। इन सालों के दौरान उसे अपने अंदर ऐसे गुण बढ़ाने के लिए काफी वक्‍त मिला जो उसके लिए बेहद ज़रूरी थे, क्योंकि उसे जिन लोगों की अगुवाई करनी थी वे हठीले और बगावती थे।—प्रेषि. 7:22-25, 30-34.

20. योनातन के वाकए से हमें क्या सीख मिलती है?

20 यह भी हो सकता है कि हम जो ज़िम्मेदारी चाहते हैं वह हमें कभी न मिले। योनातन के साथ ऐसा ही हुआ था। वह शाऊल का बेटा था इसलिए शाऊल के बाद वह इसराएल का राजा बन सकता था। लेकिन परमेश्‍वर ने दाविद को राजा चुना, जो उम्र में योनातन से काफी छोटा था। तब योनातन को कैसा लगा? उसने परमेश्‍वर के इस फैसले को कबूल किया और दाविद का पूरा साथ दिया, यहाँ तक कि दाविद की खातिर अपनी जान की बाज़ी लगा दी। उसने दाविद से कहा, “तू ही इसराएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूंगा।” (1 शमू. 23:17) ध्यान दीजिए, योनातन ने कोई शिकायत नहीं की, न ही अपने पिता शाऊल की तरह दाविद से ईर्ष्या की। हम इस वाकए से क्या सीख सकते हैं? यही कि जब दूसरों को कुछ ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं तो उनसे ईर्ष्या करने के बजाय, हम सबको सोचना चाहिए कि मुझे जो ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गयी हैं उन्हें मैं कैसे बेहतर तरीके से पूरी कर सकता हूँ। साथ ही, हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि नयी दुनिया में यहोवा अपने सेवकों की वह सारी इच्छाएँ पूरी करेगा जो उसकी मरज़ी के मुताबिक होंगी।

21. हमें प्रबंधक की जो ज़िम्मेदारी दी गयी है, उसके बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

21 हम यह कभी न भूलें कि परमेश्‍वर ने हमें प्रबंधक ठहराकर हम पर भरोसा जताया है। हम ऐसे गुलाम नहीं हैं जो सारी ज़िंदगी मालिकों के हाथों ज़्यादती सहते हैं और घुट-घुटकर जीते हैं। इसके बजाय, यहोवा ने हम सभी को सम्मान का पद दिया है, इन आखिरी दिनों में उसने हम पर भरोसा करके हमें खुशखबरी सुनाने का वह काम सौंपा है जो फिर कभी नहीं दोहराया जाएगा। उसने हमें काफी आज़ादी भी दी है जिस वजह से हम चुन सकते हैं कि हम अपनी ज़िम्मेदारी किस तरह पूरी करेंगे। तो आइए हम सब विश्‍वासयोग्य प्रबंधक बने रहें। और इस बात के लिए हमेशा कदरदान बने रहें कि हमें पूरे विश्‍व की सबसे महान हस्ती यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करने का अनोखा सुअवसर मिला है!