अच्छी तैयारी—अभियान रहा कामयाब
मारीया इसाबेल नाम की जवान बहन एक जोशीली प्रचारक है। वह दक्षिण अमरीका के चिली देश में सैन बर्नार्डो शहर में रहती है। वह और उसका परिवार पैदाइशी मापूची हैं। उसका पूरा परिवार मापूची भाषा, जिसे मापूडूनगून भी कहा जाता है, बोलनेवालों के लिए नयी मंडली की शुरुआत करने में पूरे जोश के साथ सहयोग दे रहा है।
जब यह घोषणा की गयी कि मसीह की मौत का स्मारक मापूडूनगून भाषा में भी मनाया जाएगा और लोगों को देने के लिए उनके पास उस भाषा में 2,000 स्मारक के न्यौते हैं, तो मारीया इसाबेल सोच में पड़ गयी। वह अपनी तरफ से कैसे मदद कर सकती थी? उसने याद किया कि कैसे स्कूल में पढ़नेवाले दूसरे साक्षियों ने साथ पढ़नेवालों और अध्यापकों को गवाही दी थी, जिसके उन्हें अच्छे नतीजे मिले थे। उसने अपने माता-पिता से इस बारे में बात की और उन्होंने मिलकर फैसला किया कि मारीया इसाबेल स्कूल में न्यौते देने का कोई तरीका सोचेगी। आखिर उसने क्या तरीका सोचा?
सबसे पहले, मारीया इसाबेल ने स्कूल के अधिकारियों से पूछा कि क्या वह स्कूल के मुख्य द्वार पर एक न्यौता लगा सकती है। उन्होंने उसे इजाज़त दे दी और ऐसा करने के लिए उसकी तारीफ भी की। एक सुबह जब बच्चों की हाज़िरी ली जा रही थी, तो स्कूल के प्रिंसिपल ने उस न्यौते के बारे में लाउडस्पीकर पर घोषणा तक की!
इसके बाद, मारीया इसाबेल ने पूछा कि क्या वह सभी कक्षाओं में जा सकती है। फिर उसने हर कक्षा के अध्यापक से इजाज़त लेकर छात्रों से पूछा कि क्या उनमें से कोई मापूची है। वह कहती है, “मुझे लगता था कि पूरे स्कूल में शायद 10 या 15 छात्र मापूची परिवार से होंगे। मगर यहाँ तो इससे कहीं ज़्यादा मापूची थे। मैंने पूरे 150 न्यौते बाँटे!”
“उन्हें लग रहा था कि कोई बड़ा होगा”
एक स्त्री ने स्कूल के मुख्य द्वार पर वह पोस्टर और न्यौता देखा और पूछा कि वह उस कार्यक्रम के बारे में किससे बात कर सकती है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि वह उस वक्त कितनी हैरान हुई होगी जब उसे एक 10 साल की लड़की के पास ले जाया गया? मारीया इसाबेल मुसकुराकर कहती है, “उन्हें लग रहा था कि कोई बड़ा होगा।” मारीया इसाबेल ने उसे न्यौता दिया और उसके बारे में थोड़ा समझाया। फिर मारीया ने उस स्त्री का पता लिया ताकि वह अपने माता-पिता के साथ उससे मिल सके और परमेश्वर के राज के बारे में और बता सके। स्मारक के दिन वह स्त्री अपने साथ दिलचस्पी रखनेवाले 26 मापूची लोगों को भी लायी। उन्हें देखकर मापूडूनगून भाषा बोलनेवाले इलाके में सेवा कर रहे उन 20 प्रचारकों की खुशी का ठिकाना न रहा। आज वह समूह एक फलती-फूलती मंडली है!
आपकी उम्र चाहे जो भी हो, आप भी इस तरह अपने साथ पढ़नेवालों या साथ काम करनेवालों को स्मारक, जन भाषण या फिर ज़िला अधिवेशन का न्यौता दे सकते हैं। क्यों न आप हमारी किताबों-पत्रिकाओं में कुछ ऐसे अनुभव ढूँढ़ें जिनसे आपको इस तरह का अभियान चलाने में मदद मिल सकती है? साथ ही यहोवा की पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना कीजिए ताकि आप उसके बारे में गवाही देने की हिम्मत जुटा सकें। (लूका 11:13) अगर आप ऐसा करें, तो आप भी अपनी अच्छी तैयारी और मेहनत के नतीजे देखकर हैरान रह जाएँगे और बेशक आपका हौसला भी बढ़ेगा।