हिम्मत से काम लीजिए—यहोवा आपके साथ है!
“हिम्मत से काम ले और हौसला रख। तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे साथ है।”—यहो. 1:9, एन. डब्ल्यू.
1, 2. (क) परीक्षाओं का सामना करने के लिए कौन-से गुण हमारी मदद कर सकते हैं? (ख) आप विश्वास की क्या परिभाषा देंगे? समझाने के लिए उदाहरण दीजिए।
यहोवा की सेवा हमारी ज़िंदगी खुशियों से भर देती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम पर कभी दुख-तकलीफें नहीं आतीं। हम पर भी दुख-तकलीफें आती हैं जैसे दुनिया के लोगों पर आती हैं। साथ ही, हमें ‘नेकी की खातिर भी दुःख उठाना’ पड़ता है। (1 पत. 3:14; 5:8, 9; 1 कुरिं. 10:13) ऐसी परीक्षाओं में हम हार न मानें बल्कि उनका डटकर सामना करें, इसके लिए हमें विश्वास और हिम्मत की ज़रूरत है।
2 विश्वास का क्या मतलब है? प्रेषित पौलुस ने लिखा: “विश्वास, आशा की हुई चीज़ों का पूरे भरोसे के साथ इंतज़ार करना है और उन असलियतों का साफ सबूत है, जो अभी दिखायी नहीं देतीं।” (इब्रा. 11:1) एक और बाइबल में इस आयत का अनुवाद यूँ किया गया है, “विश्वास एक अधिकार-पत्र की तरह है कि हम जिन बातों की आशा करते हैं वे पूरी होंगी। विश्वास का मतलब है उन बातों का पक्का यकीन रखना जो दिखायी नहीं देतीं।” (द सिम्पल इंग्लिश बाइबल) अगर हमारे हाथ में किसी ज़मीन का अधिकार-पत्र दिया गया है, तो हमें पूरा भरोसा हो जाता है कि अब यह ज़मीन हमारी है। हमारा विश्वास भी एक अधिकार-पत्र की तरह है। कैसे? हमें विश्वास है कि परमेश्वर अपने वादे हमेशा पूरे करता है। इसलिए हमें पूरा भरोसा है कि भविष्य के बारे में परमेश्वर ने जो भी वादे किए हैं, वे ज़रूर पूरे होंगे और उसने अपने वचन में जो भी बातें दर्ज़ करवायी हैं वे सच हैं, भले ही वे बातें हमें दिखायी नहीं देतीं।
3, 4. (क) हिम्मत का मतलब क्या है? (ख) अपना विश्वास मज़बूत करने और हिम्मत बढ़ाने का एक तरीका क्या है?
3 हिम्मत का मतलब है, किसी मुश्किल और खतरनाक हालात में बेखौफ होकर अपनी बात कहने और सही कदम उठाने की अंदरूनी ताकत। हिम्मत रखने का मतलब है मज़बूत होना, निडर होना और अपने विश्वास की खातिर हर मुश्किल सहने के लिए तैयार रहना।—मर. 6:49, 50; 2 तीमु. 1:7.
4 हम सभी चाहते हैं कि हमारे अंदर विश्वास और हिम्मत हो। लेकिन अगर हम पाते हैं कि हमारा विश्वास कमज़ोर हो रहा है और हम हिम्मत हार रहे हैं, तो हम क्या कर सकते हैं? बाइबल में ऐसे हज़ारों लोगों के बारे में बताया गया है जो विश्वास और हिम्मत की बढ़िया मिसाल थे। अगर हम ऐसे चंद लोगों की ज़िंदगी पर गौर करें, तो अपना विश्वास मज़बूत कर सकते हैं और हिम्मत बढ़ा सकते हैं।
यहोवा यहोशू के साथ था
5. इसराएलियों की अच्छी तरह अगुवाई करने के लिए यहोशू को क्या करना था?
5 सबसे पहले आइए हम यहोशू की मिसाल पर गौर करें। यह करीब 3,500 साल पहले की बात है। यहोवा ने अपने शक्तिशाली हाथ से लाखों इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद किया था। फिर मूसा नबी ने चालीस साल तक इसराएलियों की अगुवाई की और वह उन्हें वादा किए देश की सरहद तक ले आया। वहाँ से मूसा ने उस देश की एक झलक देखी और इसके बाद 120 साल की उम्र में नबो पहाड़ पर उसकी मौत हो गयी। मूसा के बाद इसराएलियों की अगुवाई करने के लिए यहोशू को चुना गया जो परमेश्वर की “आत्मा” यानी पवित्र शक्ति से मिलनेवाली ‘बुद्धि से परिपूर्ण था।’ (व्यव. 34:1-9) अब वह समय आ गया था जब इसराएलियों को कनान देश पर हमला करके उसे अपने कब्ज़े में लेना था। ऐसे में यहोशू को उनकी अच्छी तरह अगुवाई करने के लिए परमेश्वर से मिलनेवाली बुद्धि पर निर्भर रहने के साथ-साथ यहोवा पर विश्वास दिखाने, हिम्मत से काम लेने और हौसला रखने की ज़रूरत थी।—व्यव. 31:22, 23.
6. (क) यहोशू 23:6 के मुताबिक हमें किस बात के लिए हिम्मत की ज़रूरत है? (ख) प्रेषितों 4:18-20 और प्रेषितों 5:29 से हम क्या सीखते हैं?
6 इसराएलियों ने कनान देश को जीतने के लिए सालों तक उनसे युद्ध किया और इस दौरान यहोशू ने उनकी अच्छी तरह अगुवाई की। इस पूरे दौर में इसराएलियों ने देखा कि यहोशू ने किस तरह हर कदम पर बुद्धिमानी से काम लिया और हिम्मत और विश्वास दिखाया। बेशक यह देखकर इसराएलियों का भी हौसला मज़बूत हुआ होगा कि वे दुश्मनों का डटकर मुकाबला करें। लेकिन ऐसे जाँबाज़ सैनिक होने के साथ-साथ उन्हें यहोशू की एक सलाह मानने के लिए अंदर से भी मज़बूत होना था। यहोशू ने अपनी मौत से पहले उन्हें यह सलाह दी, तुम “हियाव [हिम्मत] बान्धकर, जो कुछ मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखा है उसके पूरा करने में चौकसी करना, उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं।” (यहो. 23:6) आज हमें भी हर तरह के हालात में यहोवा की आज्ञा मानने के लिए हिम्मत की ज़रूरत है। ऐसा करना तब भी ज़रूरी है जब अदना इंसान हम पर परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ जाने के लिए दबाव डालता है। (प्रेषितों 4:18-20; 5:29 पढ़िए।) अगर हम परमेश्वर से मदद के लिए प्रार्थना करें, तो वह हमें हिम्मत से काम लेने और अपने फैसले पर डटे रहने में मदद देगा।
परमेश्वर की सेवा में कामयाब होने के लिए हम क्या कर सकते हैं
7. यहोशू को हिम्मत से काम लेने और कामयाब होने के लिए क्या करने की ज़रूरत थी?
7 हमें परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना होगा और उसे लागू करना होगा तभी हम उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए ज़रूरी हिम्मत पाएँगे। यही सलाह यहोशू को भी दी गयी थी, जब उसे मूसा के बाद इसराएलियों का अगुवा ठहराया गया था। यहोशू को यह बताया गया था, “तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना . . . व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” (यहो. 1:7, 8) यहोशू ने यह सलाह मानी और उसके ‘सब काम सफल’ हुए। अगर हम ऐसा करें तो हमें भी परमेश्वर की सेवा करने के लिए और भी हिम्मत मिलेगी और हम कामयाब होंगे।
सन् 2013 के लिए हमारा सालाना वचन: हिम्मत से काम ले और हौसला रख। तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे साथ है।—यहोशू 1:9
8. सन् 2013 का सालाना वचन किस आयत पर आधारित है? इन शब्दों से आपको कैसे मदद मिल सकती है?
8 यहोवा ने यहोशू से आगे जो कहा उससे यहोशू का हौसला बहुत मज़बूत हुआ होगा। यहोवा ने उससे कहा, “हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।” (यहो. 1:9) आज यहोवा हमारे साथ भी है। इसलिए आइए हम ‘भय न खाएँ, और न अपना मन कच्चा करें’ फिर चाहे हम पर जो भी परीक्षा आए। खासकर यहोवा के ये शब्द गौर करने लायक हैं, “हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा . . . तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।” यहोशू 1:9 के इन्हीं शब्दों पर सन् 2013 का सालाना वचन आधारित है: ‘हिम्मत से काम ले और हौसला रख। तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे साथ है।’ यहोवा के इन शब्दों से, साथ ही विश्वास और हिम्मत की दूसरी मिसालों से आनेवाले महीनों के दौरान ज़रूर हमारा हौसला बढ़ेगा।
उन्होंने हिम्मत के साथ सही चुनाव किया
9. राहाब ने किस तरह विश्वास और हिम्मत दिखायी?
9 जब यहोशू ने दो जासूसों को कनान देश भेजा, तो राहाब नाम की वेश्या ने उन्हें छिपाया और दुश्मनों को गलत रास्ते भेज दिया। ऐसा करके राहाब ने विश्वास दिखाया और हिम्मत से काम लिया। इसलिए जब इसराएलियों ने यरीहो शहर का नाश किया तो राहाब और उसके परिवार को बख्श दिया गया। (इब्रा. 11:30, 31; याकू. 2:25) राहाब ने एक और तरह से विश्वास और हिम्मत दिखायी। उसने यहोवा को खुश करने के लिए अपनी बदचलन ज़िंदगी छोड़ दी। आज भी हमारे कुछ मसीही भाई-बहन सच्चाई जानने से पहले बुरे काम करते थे मगर उन्होंने परमेश्वर को खुश करने के लिए राहाब की तरह परमेश्वर के नैतिक स्तरों पर चलने का मज़बूत इरादा किया और विश्वास और हिम्मत के साथ अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव किए।
10. रूत ने किन हालात में सच्ची उपासना के पक्ष में चुनाव किया? इससे रूत को क्या आशीषें मिलीं?
10 यहोशू की मौत के कई सालों बाद मोआब की रहनेवाली विधवा रूत ने सच्ची उपासना करने के लिए हिम्मत से काम लिया। उसका पति इसराएली था इसलिए ज़रूर वह यहोवा के बारे में जानती होगी। उसकी सास नाओमी ने जब मोआब छोड़कर अपने देश इसराएल के बेतलेहेम लौट जाने का फैसला किया, तो रूत भी उसके साथ चल पड़ी। रास्ते में नाओमी ने रूत से कहा कि वह अपने लोगों के पास लौट जाए, मगर रूत ने उससे कहा “तू मुझ से यह बिनती न कर, कि मुझे त्याग वा छोड़कर लौट जा . . . तेरे लोग मेरे लोग होंगे; और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा।” (रूत 1:16) रूत ने यह बात दिल से कही थी, इसलिए वह नाओमी के साथ इसराएल चली गयी। बाद में नाओमी के रिश्तेदार बोअज़ ने रूत से शादी की और उसका एक बेटा हुआ और रूत को दाविद और यीशु की पुरखिन बनने का सुअवसर मिला। जी हाँ, यहोवा उन लोगों को आशीष देता है जो विश्वास और हिम्मत से सही कदम उठाते हैं।—रूत 2:12; 4:17-22; मत्ती 1:1-6.
बहुतों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की!
11. यहोयादा और यहोशेबा ने कैसे हिम्मत से काम लिया? इसका क्या अच्छा नतीजा हुआ?
11 यह देखकर हमारी हिम्मत और हमारा विश्वास बढ़ता है कि यहोवा उन लोगों का साथ देता है जो उसकी मरज़ी को पहली जगह देते हैं और अपने भाई-बहनों की मदद के लिए आगे आते हैं। महायाजक यहोयादा और उसकी पत्नी यहोशेबा पर गौर कीजिए। राजा अहज्याह की मौत के बाद उसकी माँ अतल्याह ने राजा के सभी बच्चों को मरवा डाला और खुद सिंहासन हथिया लिया। वह सिर्फ योआश की जान नहीं ले पायी। यहोयादा और यहोशेबा ने अपनी जान पर खेलकर अहज्याह के बेटे योआश को बचाया और छः साल तक उसे अतल्याह की नज़रों से छिपाए रखा। सातवें साल, यहोयादा ने योआश को राजा ऐलान कर दिया और अतल्याह को मरवा डाला। (2 राजा 11:1-16) बाद में यहोयादा ने मंदिर की मरम्मत करने में राजा योआश की मदद की। इस तरह यहोयादा ने “इसराएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया।” यही वजह थी कि जब 130 साल की उम्र में यहोयादा की मौत हुई तो उसे वहाँ दफनाया गया जहाँ राजाओं को दफनाया जाता था। (2 इति. 24:15, 16) यहोयादा और उसकी पत्नी ने जो हिम्मत दिखायी उसकी वजह से दाविद का खानदान मिटने से बच गया, जिससे आगे चलकर मसीहा पैदा होता।
12. एबेदमेलेक ने कैसे हिम्मत दिखायी?
12 राजा सिदकिय्याह के महल में काम करनेवाले एक खोजे एबेदमेलेक ने यिर्मयाह की जान बचाने के लिए अपनी जान का खतरा मोल लिया। जब यहूदा के हाकिमों ने यिर्मयाह पर देशद्रोह का इलज़ाम लगाया तो सिदकिय्याह ने उसे उन हाकिमों के हवाले कर दिया और उन्होंने यिर्मयाह को एक कीचड़ से भरे गड्डे में फिंकवा दिया ताकि वह मर जाए। (यिर्म. 38:4-6) तब एबेदमेलेक ने यिर्मयाह नबी के लिए राजा सिदकिय्याह से फरियाद की। एबेदमेलेक जानता था कि यहूदा के हाकिम यिर्मयाह से बहुत नफरत करते हैं इसलिए उसकी खातिर फरियाद करना खतरे से खाली नहीं है, फिर भी वह उसकी जान बचाने के लिए आगे बढ़ा। सिदकिय्याह ने एबेदमेलेक की फरियाद सुनी और उससे कहा कि वह यिर्मयाह की जान बचाने के लिए अपने साथ 30 आदमियों को भी ले जाए। एबेदमेलेक को इस तरह निडरता से काम लेने का बढ़िया इनाम मिला। यिर्मयाह नबी के ज़रिए परमेश्वर ने एबेदमेलेक को वचन दिया कि जब बाबुल के लोग यरूशलेम की घेराबंदी करेंगे और बहुत-से लोगों का नाश कर देंगे तब मैं तेरी जान बचाऊँगा। (यिर्म. 39:15-18) वाकई, परमेश्वर उन लोगों को आशीष देता है जो उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए हिम्मत से काम लेते हैं!
13. तीन इब्रियों ने कैसे हिम्मत दिखायी? इस घटना से हमें किस बात का यकीन होता है?
13 ईसा पूर्व सातवीं सदी में यहोवा के तीन इब्री सेवकों ने इस बात का पक्का सबूत देखा कि परमेश्वर विश्वास और हिम्मत से काम लेनेवालों को आशीष देता है। राजा नबूकदनेस्सर ने बैबिलोन की बड़ी-बड़ी हस्तियों को एक जगह इकट्ठा होने के लिए कहा और उन्हें सोने की एक विशाल मूरत को पूजने का कड़ा आदेश दिया। राजा ने कहा कि जो कोई उस मूरत की पूजा नहीं करेगा उसे आग से जलते भट्ठे में फेंक दिया जाएगा। यहोवा की उपासना करनेवाले उन तीन इब्रियों ने पूरे आदर के साथ नबूकदनेस्सर से कहा: “हमारा परमेश्वर, जिसकी हम उपासना करते हैं वह हम को उस धधकते हुए भट्ठे की आग से बचाने की शक्ति रखता है; वरन हे राजा, वह हमें तेरे हाथ से भी छुड़ा सकता है। परन्तु, यदि नहीं, तो हे राजा तुझे मालूम हो, कि हम लोग तेरे देवता की उपासना नहीं करेंगे, और न तेरी खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत् करेंगे।” (दानि. 3:16-18) उन तीन इब्रियों को आग में डाल दिया जाता है मगर जैसे दानिय्येल 3:19-30 में बताया गया है परमेश्वर उन्हें एक हैरतअंगेज़ तरीके से बचाता है। हो सकता है आज हमें आग की भट्ठी में डालने की धमकी न दी जाए, मगर किसी-न-किसी तरह से हमारी परीक्षा ज़रूर होती है। अगर हम विश्वास और हिम्मत के साथ अपनी खराई बनाए रखेंगे तो हम यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर हमें ज़रूर आशीष देगा।
14. दानिय्येल अध्याय 6 के मुताबिक, दानिय्येल ने कैसे हिम्मत से काम लिया? उसका क्या नतीजा हुआ?
14 दानिय्येल भी विश्वास और हिम्मत से काम लेने की एक अच्छी मिसाल है। उसके दुश्मनों ने राजा दारा पर यह आदेश देने का दबाव डाला कि ‘तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़ किसी और मनुष्य वा देवता से बिनती करे, वह सिंहों की मान्द में डाल दिया जाए।’ जैसे ही दानिय्येल को मालूम हुआ कि राजा ने उस आदेश-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया है, तब “वह अपने घर में गया जिसकी उपरौठी कोठरी की खिड़कियां यरूशलेम के सामने खुली रहती थीं, और अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के साम्हने घुटने टेककर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा।” (दानि. 6:6-10) इस तरह जब दानिय्येल निडर होकर अपने फैसले पर डटा रहा तो उसे शेरों की मान्द में डाल दिया गया, मगर यहोवा ने उसे मौत के मुँह से बचा लिया।—दानि. 6:16-23.
15. (क) अक्विला और प्रिस्किल्ला ने किस तरह विश्वास और हिम्मत की मिसाल कायम की? (ख) यूहन्ना 13:34 में दर्ज़ यीशु के शब्दों का क्या मतलब है? बहुत-से मसीहियों ने इस तरह का प्यार कैसे दिखाया है?
15 प्रिस्किल्ला और अक्विला ने ‘पौलुस की जान बचाने के लिए खुद अपनी जान जोखिम में डाल दी।’ (प्रेषि. 18:2; रोमि. 16:3, 4) हालाँकि बाइबल यह तो नहीं बताती कि उन्होंने किन हालात में ऐसा किया मगर यह साफ है कि उन्होंने यीशु की इस आज्ञा को मानने के लिए हिम्मत से काम लिया, “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो।” (यूह. 13:34) मूसा के कानून में भी यह नियम था कि एक इंसान को अपने पड़ोसी से वैसा ही प्यार करना चाहिए जैसे वह खुद से करता है। (लैव्य. 19:18) मगर यीशु की आज्ञा में “नयी” बात यह थी कि हमें दूसरों के लिए इतना गहरा प्यार होना चाहिए कि हम उनकी खातिर अपनी जान तक देने को तैयार हो जाएँ, ठीक जैसे यीशु ने किया था। आज बहुत-से मसीहियों ने अपने भाई-बहनों को बचाने के लिए “अपनी जान जोखिम में डाल दी” ताकि उन्हें दुश्मनों के हाथों यातनाएँ या मौत का सामना न करना पड़े।—1 यूहन्ना 3:16 पढ़िए।
16, 17. शुरू के मसीहियों ने कैसी परीक्षाओं का सामना किया? आज भी कुछ मसीहियों ने कैसी परीक्षाओं का सामना किया है?
16 यीशु की तरह, पहली सदी के मसीहियों ने हिम्मत दिखाते हुए सिर्फ यहोवा की ही उपासना की। (मत्ती 4:8-10) उन्होंने रोमी सम्राट के सम्मान में धूप जलाने से साफ इनकार कर दिया। (तसवीर देखिए।) डैनियल पी. मैनिक्स ने अपनी किताब वे मौत की दहलीज़ पर थे (अँग्रेज़ी) में लिखा कि ऐसे मसीही बहुत कम थे जिन्होंने अपने विश्वास से समझौता कर लिया। उसने लिखा, “अखाड़े में एक वेदी रखी जाती थी जिस पर हमेशा आग जलती रहती थी। एक कैदी को रिहा होने के लिए बस थोड़ी-सी धूप लेकर उस आग में छिड़कना था। फिर उसे एक दस्तावेज़ दिया जाता जो इस बात का सबूत था कि उसने बलिदान चढ़ाया है और इसके बाद वह आज़ाद कर दिया जाता। उसे समझाया जाता था कि धूप छिड़कने का मतलब सम्राट की पूजा करना नहीं है, बल्कि सिर्फ यह कबूल करना है कि रोमी सम्राट, ईश्वर का एक रूप है। हालाँकि इस तरह कैद से छूट जाना आसान था फिर भी ज़्यादातर मसीहियों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।”
17 आज के ज़माने में भी नात्ज़ी यातना शिविरों में कैद मसीहियों को अपने विश्वास से मुकरने के बजाय मौत को गले लगाना मंज़ूर था। वे चाहते तो शिविर से आसानी से छूट सकते थे। इसके लिए उन्हें एक घोषणा-पत्र पर दस्तखत करना था जिस पर लिखा होता कि अब से वे यहोवा की उपासना नहीं करेंगे। उन्हें यह मौका बार-बार दिया जाता था। फिर भी, बहुत कम साक्षियों ने अपने विश्वास से समझौता किया। हाल के सालों में, जब रवांडा में हूटू और टूट्सी लोग एक-दूसरे की जाति का सफाया करने में लग गए थे, तब हूटू और टूट्सी साक्षियों ने एक-दूसरे की जान बचायी। वाकई, इस तरह की परीक्षाओं का सामना विश्वास और हिम्मत से ही किया जा सकता है!
मत भूलिए, यहोवा हमारे साथ है!
18, 19. बाइबल में बतायी किन लोगों की मिसाल हमें प्रचार काम करते रहने में मदद दे सकती हैं?
18 आज हमें परमेश्वर के राज का प्रचार करने और चेले बनाने का काम करने का बहुत बड़ा सम्मान मिला है। आज तक परमेश्वर ने धरती पर अपने सेवकों को जितने भी काम सौंपे हैं, उनमें यह सबसे बड़ा काम है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) हम यीशु के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने प्रचार काम करने में एक बेजोड़ मिसाल रखी। वह “शहर-शहर और गाँव-गाँव फिरता हुआ लोगों को प्रचार करता और परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाता गया।” (लूका 8:1) हमें भी राज के संदेश का प्रचार करने के लिए उसकी तरह विश्वास और हिम्मत से काम लेने की ज़रूरत है। परमेश्वर की मदद से हम भी “नेकी के प्रचारक” नूह की तरह साहसी बन सकते हैं, जिसने उन “भक्तिहीन लोगों” को प्रचार किया जो जलप्रलय में नाश होनेवाले थे।—2 पत. 2:4, 5.
19 प्रार्थना हमें प्रचार काम करने की ज़िम्मेदारी निभाने में मदद देती है। जब यीशु के कुछ चेलों पर ज़ुल्म ढाए गए तो उन्होंने परमेश्वर से मदद के लिए बिनती की ताकि वे ‘निडर होकर उसका वचन सुनाते रहें।’ परमेश्वर ने उनकी प्रार्थना सुनी। (प्रेषितों 4:29-31 पढ़िए।) अगर आपको घर-घर जाकर प्रचार करने में कभी-कभी घबराहट महसूस होती है, तो यहोवा से और भी विश्वास और हिम्मत के लिए प्रार्थना कीजिए और यकीन मानिए, वह आपकी प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देगा।—भजन 66:19, 20 पढ़िए। *
20. यहोवा की सेवा करने में आज कौन हमारी मदद कर रहा है?
20 मुश्किलों से भरी इस दुष्ट दुनिया में हम पर आए दिन कोई-न-कोई परीक्षा आती है इसलिए परमेश्वर की बतायी राह पर चलना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन इस राह पर चलते रहने के लिए हमारे पास काफी मदद हाज़िर है। हमारा परमेश्वर हमारे साथ है। उसका बेटा यीशु भी हमारी मदद करता है जो मसीही मंडली का मुखिया है। उनके अलावा, दुनिया-भर में रहनेवाले सत्तर लाख से ज़्यादा मसीही भाई-बहन हमारे साथ हैं। आइए हम सब मिलकर अपना विश्वास दिखाते रहें और सन् 2013 का यह सालाना वचन हमेशा मन में रखकर खुशखबरी सुनाने का काम करते रहें, ‘हिम्मत से काम ले और हौसला रख। तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे साथ है।’—यहो. 1:9.
^ हिम्मत से काम लेनेवाले कुछ और लोगों से सीखने के लिए 15 फरवरी, 2012 की प्रहरीदुर्ग का यह लेख देखिए, ‘हियाव बान्ध और बहुत दृढ़ हो जा।’