कोई भी बात आपको महिमा पाने से रोक न सके
“नम्र [स्वभाववाला] महिमा का अधिकारी होता है।”—नीति. 29:23.
1, 2. (क) “महिमा” के लिए इस्तेमाल किए गए इब्रानी शब्द के क्या मायने हैं? (ख) हम इस लेख में किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
“महिमा” * शब्द सुनते ही आपके मन में सबसे पहले क्या बात आती है? परमेश्वर की सृष्टि की बेमिसाल खूबसूरती? (भज. 19:1) या अमीर, बुद्धिमान और कामयाब लोगों को मिलनेवाली वाहवाही? बाइबल में “महिमा” के लिए इस्तेमाल किए गए इब्रानी शब्द का मतलब है, “भारीपन।” पुराने ज़माने में सिक्के सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुओं के बने होते थे और सिक्के जितने भारी होते थे, उतना ही ज़्यादा उनका मोल होता था। इसलिए जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “महिमा” किया गया है, उसे उन चीज़ों को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जो बेशकीमती हैं या जिन्हें देखकर हम दंग रह जाएँ।
2 हो सकता है हम एक व्यक्ति के रुतबे, ओहदे या उसकी शोहरत को देखकर उसे महिमा या आदर दें। लेकिन यहोवा एक इंसान में क्या देखकर उसे महिमा से नवाज़ता है? नीतिवचन 22:4 कहता है: “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।” और चेले याकूब ने भी लिखा: “यहोवा की नज़रों में खुद को नम्र करो और वह तुम्हें ऊँचा करेगा।” (याकू. 4:10) वह महिमा क्या है जो यहोवा इंसानों को देता है? क्या बातें हमें वह महिमा पाने से रोक सकती हैं? और हम महिमा पाने में दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं?
3-5. हमें किस तरह यहोवा से महिमा मिलती है?
3 भजनहार को पूरा यकीन था कि यहोवा उसे महिमा देगा। (भजन 73:23, 24 पढ़िए।) यहोवा उसकी आज्ञा माननेवालों को महिमा कैसे देता है? उन पर अपनी मंज़ूरी देकर और कई तरीकों से उन पर आशीषें बरसाकर। मिसाल के लिए, वह उन्हें यह समझने में मदद देता है कि उसकी मरज़ी क्या है। साथ ही, वह उन्हें अपने साथ एक करीबी रिश्ता बनाने का सम्मान भी देता है।—1 कुरिं. 2:7; याकू. 4:8.
4 यहोवा हमें खुशखबरी का प्रचार करने का सुअवसर देकर भी हमें महिमा से नवाज़ता है। (2 कुरिं. 4:1, 7) जब हम प्रचार काम में हिस्सा लेकर यहोवा की बड़ाई करते हैं और दूसरों को फायदा पहुँचाते हैं, तो हमें यहोवा से महिमा मिलती है, क्योंकि वह हमसे वादा करता है: “जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा।” (1 शमू. 2:30) ऐसे लोग यहोवा के साथ एक अच्छा नाम बना पाते हैं और मंडली के दूसरे सेवकों से भी तारीफ पाते हैं। इस तरह यहोवा उनका आदर करता है।—नीति. 11:16; 22:1.
5 जो लोग ‘यहोवा की बाट जोहते और उसके मार्ग पर बने रहते’ हैं, उनका भविष्य कैसा होगा? उनसे वादा किया गया है: “वह [यहोवा] तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।” (भज. 37:34) वाकई, उन्हें ऐसा सम्मान मिलेगा जिसकी तुलना किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती, वह है हमेशा की ज़िंदगी।—भज. 37:29.
“मैं इंसानों से अपनी बड़ाई नहीं चाहता”
6, 7. क्यों कई लोगों ने यीशु पर विश्वास नहीं किया?
6 यहोवा हमें जो महिमा देना चाहता है उसे पाने से क्या बातें हमें रोक सकती हैं? एक है, ऐसे लोगों के सोच-विचारों को हद-से-ज़्यादा तवज्जह देना, जिनका यहोवा के साथ कोई रिश्ता नहीं है। गौर कीजिए प्रेषित यूहन्ना ने यीशु के दिनों के कुछ धर्म-अधिकारियों के बारे में क्या कहा: “धर्म-अधिकारियों में से भी बहुत-से ऐसे थे जिन्होंने असल में यीशु पर विश्वास तो किया, मगर फरीसियों के डर से वे खुलकर उसे स्वीकार नहीं करते थे ताकि ऐसा न हो कि उन्हें सभा-घर से बेदखल कर दिया जाए। क्योंकि उन्हें परमेश्वर से मिलनेवाली महिमा से बढ़कर इंसानों से मिलनेवाली महिमा प्यारी थी।” (यूह. 12:42, 43) कितना अच्छा होता अगर इन धर्म-अधिकारियों ने फरीसियों की बातों को इतनी तवज्जह न दी होती!
7 अपनी सेवा की शुरूआत में यीशु ने साफ बता दिया था कि क्यों कई लोग उसे स्वीकार नहीं करेंगे और उस पर विश्वास नहीं करेंगे। (यूहन्ना 5:39-44 पढ़िए।) सदियों से इसराएल राष्ट्र मसीहा के आने की आस लगाए हुए था। जब यीशु ने सिखाना शुरू किया, तब कुछ लोग दानिय्येल की भविष्यवाणी से समझ गए होंगे कि मसीहा के आने का ठहराया समय आ पहुँचा है। यहाँ तक कि कुछ महीने पहले जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने प्रचार करना शुरू किया, तो कइयों को लगा, “कहीं यही तो मसीह नहीं?” (लूका 3:15) लेकिन अब जब मसीहा सचमुच उनके बीच था, तो मूसा के कानून के जानकारों ने उस पर विश्वास नहीं किया। क्यों? इसकी वजह बताते हुए यीशु ने उनसे कहा: “तुम मेरा यकीन कर भी कैसे सकते हो, क्योंकि तुम इंसानों की बड़ाई करते हो और उनसे अपनी बड़ाई करवाते हो और वह बड़ाई पाना नहीं चाहते जो एकमात्र परमेश्वर से मिलती है?”
8, 9. मिसाल देकर समझाइए कि कैसे इंसानों से मिलनेवाली महिमा, परमेश्वर से मिलनेवाली महिमा से ज़्यादा प्यारी हो सकती है?
8 इंसानों से मिलनेवाली महिमा कैसे परमेश्वर से मिलनेवाली महिमा से ज़्यादा प्यारी हो सकती है? इसे समझने के लिए आइए महिमा की तुलना रौशनी से करें। हमारा विश्व तेज से भरपूर है। कब आपने पिछली बार चाँदनी रात में आसमान में टिमटिमाते हज़ारों तारों को निहारा था? उन जगमगाते तारों ने आपको वाकई हैरत में डाल दिया होगा! (1 कुरिं. 15:40, 41) लेकिन कुछ शहरों में रौशनी इतनी ज़्यादा होती है कि आप तारों को देख ही नहीं सकते। क्यों? क्या इसलिए कि शहर की सड़कों-इमारतों और स्टेडियम की चकाचौंध कर देनेवाली रौशनी तारों की रौशनी से कहीं ज़्यादा है? नहीं, ऐसा नहीं है। यह इसलिए होता है क्योंकि शहर की रौशनी हमारे ज़्यादा करीब होती है और इस वजह से हम तारों को देख नहीं पाते। अगर हम टिमटिमाते खूबसूरत तारों को देखना चाहते हैं, तो हमें ऐसी जगह जाना होगा जहाँ शहर की रौशनी से हमारी आँखें चुँधिया न जाएँ।
9 उसी तरह, अगर इंसानों से मिलनेवाली महिमा हमारे दिल के ज़्यादा करीब हो, तो हम परमेश्वर से मिलनेवाली महिमा की कदर करने से चूक जाएँगे। कई लोग इसलिए खुशखबरी कबूल नहीं करते, क्योंकि वे डरते हैं कि उनके दोस्त या रिश्तेदार उनके बारे में क्या सोचेंगे। यहाँ तक कि यहोवा के समर्पित सेवकों को भी ऐसी चिंता सता सकती है। एक नौजवान के बारे में सोचिए, जिसे ऐसे इलाके में प्रचार करने के लिए कहा गया है, जहाँ सभी लोग उसे जानते हैं। लेकिन वे यह नहीं जानते कि वह एक यहोवा का साक्षी है। ऐसे में, क्या वह डर के मारे उस इलाके में प्रचार नहीं करेगा? एक और मिसाल लीजिए। एक भाई यहोवा की सेवा में और ज़्यादा करना चाहता है, मगर दूसरे इस बात पर उसका मज़ाक उड़ाते हैं। ऐसे में, क्या वह उन लोगों की बात को तवज्जह देगा, जो यहोवा की सेवा की कदर नहीं करते? या फिर सोचिए कि एक मसीही ने गंभीर पाप किया है। क्या वह अपने पाप को छिपाए रखेगा, इस डर से कि कहीं उसे मंडली में अपनी ज़िम्मेदारियों से हाथ न धोना पड़े, या यह सोचकर कि उसके परिवारवालों या दोस्तों पर क्या बीतेगी? अगर यहोवा के साथ अपना रिश्ता उसे ज़्यादा प्यारा है, तो वह ऐसा नहीं करेगा, बल्कि वह ‘मंडली के प्राचीनों को बुलाकर’ उनसे मदद लेगा।—याकूब 5:14-16 पढ़िए।
10. (क) दूसरे आपके बारे में क्या सोचेंगे इस बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता करने से क्या होगा? (ख) अगर हम नम्र बने रहें, तो हम क्या यकीन रख सकते हैं?
10 हो सकता है आपको लगे कि आप एक प्रौढ़ मसीही बनने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, मगर एक भाई हमेशा आपको सलाह देता है। ऐसे में या तो आप उसकी सलाह मानकर उससे फायदा पा सकते हैं। या फिर आप अपने घमंड की वजह से या यह सोचकर कि लोग क्या कहेंगे, उस सलाह को ठुकरा सकते हैं या उसे न मानने की सफाई देने लग सकते हैं। या फिर सोचिए आप दूसरे भाई-बहनों के साथ किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। ऐसे में क्या आपको यह चिंता खाए जाएगी कि आपके दिए सुझावों या मेहनत का श्रेय आपको मिलेगा या नहीं? अगर आप खुद को इनमें से किसी हालात में पाते हैं, तो याद रखिए कि “नम्र [स्वभाववाला] महिमा का अधिकारी होता है।”—नीति. 29:23.
11. जब कोई हमारी तारीफ करता है, तो हमें कैसा रवैया दिखाना चाहिए? और क्यों?
11 उसी तरह, निगरानों और निगरानी का पद पाने की ‘कोशिश में आगे बढ़नेवालों’ को खबरदार रहना चाहिए कि वे कभी-भी इंसानों से मान-सम्मान पाने की ख्वाहिश न रखें। (1 तीमु. 3:1; 1 थिस्स. 2:6) जब एक भाई को उसके किसी अच्छे काम के लिए शाबाशी दी जाती है, तो उसे कैसा रवैया दिखाना चाहिए? यकीनन, वह राजा शाऊल की तरह पेश नहीं आएगा जिसने अपनी बड़ाई करने के लिए एक स्मारक खड़ा किया था। (1 शमू. 15:12) मगर क्या वह भाई इस बात को कबूल करेगा कि यहोवा की मदद से ही वह यह काम कर पाया और भविष्य में उसे जो भी कामयाबी मिलेगी, वह यहोवा की आशीष और मदद की बदौलत ही मिलेगी? (1 पत. 4:11) जब कोई हमारी तारीफ करता है, तो हम अंदर-ही-अंदर कैसा महसूस करते हैं, उससे ज़ाहिर होगा कि हम किससे महिमा पाने की ख्वाहिश रखते हैं।—नीति. 27:21.
“तुम . . . अपने पिता की ख्वाहिशों को पूरा करना चाहते हो”
12. कुछ यहूदियों ने किस वजह से यीशु की बात पर ध्यान नहीं दिया?
12 एक और बात जो हमें परमेश्वर से महिमा पाने से रोक सकती है, वह है हमारी ख्वाहिशें। गलत ख्वाहिशों की वजह से हम शायद सच्चाई को सुनना ही न चाहें। (यूहन्ना 8:43-47 पढ़िए।) मिसाल के लिए, यीशु ने कुछ यहूदियों से कहा कि उन्होंने इसलिए उसके संदेश पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि वे ‘अपने पिता शैतान की ख्वाहिशों को पूरा करना चाहते’ थे।
13, 14. (क) दूसरों की बात सुनने के सिलसिले में हमारा दिमाग कैसे काम करता है इस बारे में खोजकर्ताओं का क्या कहना है? (ख) हम किसकी सुनेंगे यह किस बात पर निर्भर करता है?
13 कभी-कभी हम वही बात सुनते हैं, जो हम सुनना चाहते हैं। (2 पत. 3:5) यहोवा ने हमारे दिमाग को इतनी ज़बरदस्त काबिलीयत के साथ रचा है कि हम अपने कानों में पड़नेवाली कुछ आवाज़ों को अनसुना कर सकते हैं। कुछ देर रुककर ध्यान दीजिए कि इस वक्त आप कितनी आवाज़ें एक-साथ सुन सकते हैं। शायद कुछ देर पहले आपने इनमें से ज़्यादातर आवाज़ों पर ध्यान ही नहीं दिया था। ऐसा क्यों? हालाँकि आप कई आवाज़ों को एक-साथ सुन रहे थे, लेकिन आपका दिमाग आपको उनमें से सिर्फ एक ही आवाज़ पर ध्यान देने में मदद कर रहा था। मगर खोजकर्ताओं ने पाया है कि जब दो लोग आपसे बात करते हैं, तो आप एक-साथ उन दोनों की बात नहीं सुन सकते। ऐसे में आपको चुनाव करना होगा कि आप उनमें से किसकी बात पर ध्यान देंगे। बेशक आप उसी व्यक्ति की बात पर ध्यान देंगे, जिसे आप सुनना चाहते हैं। जो यहूदी अपने पिता शैतान की ख्वाहिशों को पूरा करना चाहते थे, उन्होंने यीशु की नहीं सुनी।
14 हमें ‘बुद्धि के घर’ और ‘मूर्खता के घर’ दोनों से बुलावा आता है। (नीति. 9:1-5, 13-17) यह ऐसा है मानो बुद्धि और मूर्खता दोनों हमें उनकी सुनने के लिए आवाज़ दे रही हैं और हमें इन दोनों में से किसी एक को चुनना है। हम किसकी सुनेंगे? इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि हम किसकी इच्छा पूरी करना चाहते हैं। यीशु की भेड़ें उसकी आवाज़ सुनती हैं और उसके पीछे-पीछे चलती हैं। (यूह. 10:16, 27) वे “सच्चाई के पक्ष में” हैं। (यूह. 18:37) “वे अजनबियों की आवाज़ नहीं पहचानतीं।” (यूह. 10:5) यीशु के पीछे चलनेवाले ये नम्र लोग यहोवा से महिमा पाते हैं।—नीति. 3:13, 16; 8:1, 18.
“इनका मतलब तुम्हारी महिमा है”
15. पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि उसकी दुख-तकलीफों का मतलब इफिसुस के भाइयों की “महिमा” है?
15 परमेश्वर से महिमा पाने में हम दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं? एक तरीका है, धीरज धरने में अच्छी मिसाल रखकर। इफिसुस की मंडली को पौलुस ने लिखा था: “मैं तुमसे कहता हूँ कि मेरी इन दुःख-तकलीफों की वजह से, जो मैं तुम्हारी खातिर सह रहा हूँ, तुम हिम्मत न हारना क्योंकि इनका मतलब तुम्हारी महिमा है।” (इफि. 3:13) पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि उसकी दुख-तकलीफों का मतलब इफिसुस के भाइयों की “महिमा” है? आज़माइशों के बावजूद अपने भाइयों की सेवा करते रहकर पौलुस ने दिखाया कि यहोवा की सेवा करना मसीहियों के लिए सबसे ज़्यादा अहमियत रखनी चाहिए। अगर पौलुस ने ऐसे में हार मान ली होती, तो इससे उसके भाइयों को लगता कि यहोवा की सेवा करना, उसके साथ उनका रिश्ता और उनकी आशा कोई खास अहमियत नहीं रखतीं। धीरज धरने में एक अच्छी मिसाल रखकर पौलुस ने अपने भाइयों को दिखाया कि मसीह का चेला होना किसी भी त्याग से कहीं बढ़कर है।
16. लुस्त्रा शहर में पौलुस के साथ क्या हुआ?
16 सोचिए पौलुस के जोश और उसके धीरज का भाइयों पर कितना असर हुआ। प्रेषितों 14:19, 20 कहता है: “अंताकिया और इकुनियुम से यहूदी [लुस्त्रा में] आ धमके और उन्होंने लोगों को अपनी तरफ कर लिया। तब लोगों ने पौलुस पर पत्थरवाह किया और उसे मरा समझकर शहर के बाहर घसीटकर ले गए। मगर जब चेले उसके चारों तरफ आ खड़े हुए, तो वह उठ बैठा और शहर में गया। दूसरे दिन वह बरनबास के साथ दिरबे चला गया।” ज़रा सोचिए, पौलुस को पत्थरवाह करके मारने की कोशिश की गयी, मगर उसके अगले ही दिन उसने करीब 100 किलोमीटर लंबा सफर तय किया और वह भी पैदल।
17, 18. (क) किस मायने में तीमुथियुस ने लुस्त्रा में पौलुस की तकलीफों को नज़दीकी से देखा होगा? (ख) पौलुस ने जो धीरज दिखाया उसका तीमुथियुस पर क्या असर हुआ?
17 जो “चेले” लुस्त्रा में पौलुस की मदद करने आए, क्या उनमें तीमुथियुस भी था? प्रेषितों की किताब में दिया ब्यौरा इस बारे में खुलकर नहीं बताता। हो सकता है वह वहाँ मौजूद रहा हो। लेकिन तीमुथियुस इतना ज़रूर जानता था कि पौलुस के साथ क्या-क्या हुआ है। गौर कीजिए पौलुस ने तीमुथियुस को अपने दूसरे खत में क्या लिखा: “तू ने मेरी शिक्षाओं, मेरे जीने के तरीके . . . को नज़दीकी से देखा है।” तीमुथियुस न सिर्फ यह जानता था कि लुस्त्रा में पौलुस पर पत्थरवाह किया गया, बल्कि वह यह भी जानता था कि अंताकिया शहर से उसे खदेड़ा गया और इकुनियुम में कुछ लोगों ने उस पर पत्थरवाह करने की कोशिश की।—2 तीमु. 3:10, 11; प्रेषि. 13:50; 14:5, 19.
18 जी हाँ, तीमुथियुस अच्छी तरह जानता था कि मुश्किल हालात में पौलुस ने कैसे धीरज धरा। पौलुस की मिसाल का तीमुथियुस पर ज़बरदस्त असर हुआ। जब पौलुस दोबारा लुस्त्रा आया, तो उसने देखा कि खुद तीमुथियुस ने भी मंडली में एक अच्छी मिसाल कायम की है, और “लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे।” (प्रेषि. 16:1, 2) वक्त के गुज़रते, तीमुथियुस भारी ज़िम्मेदारियाँ उठाने के काबिल बना।—फिलि. 2:19, 20; 1 तीमु. 1:3.
19. हमारे धीरज धरने से दूसरों पर क्या असर हो सकता है?
19 अगर हम भी धीरज धरते हुए परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में लगे रहें, तो हमारी मिसाल का जवानों पर अच्छा असर हो सकता है, और वे भी यहोवा की सेवा में आगे बढ़ते जाने के लिए उकसाए जा सकते हैं। जवान प्रचारक गौर से देखते हैं कि हम प्रचार में लोगों से किस तरह बात करते हैं या मुश्किल हालात का कैसे सामना करते हैं, और वे हमसे सीखकर फायदा पाते हैं। पौलुस ‘सबकुछ सहता गया’ ताकि जो वफादार बने रहते हैं, वे “उद्धार और वह महिमा पा सकें जो हमेशा तक रहेगी।”—2 तीमु. 2:10.
20. क्यों हमें यहोवा से मिलनेवाली महिमा पाने के लिए कोशिश करते रहना चाहिए?
20 तो क्या हमें भी ‘वह बड़ाई पाने’ की कोशिश नहीं करते रहना चाहिए, “जो एकमात्र परमेश्वर से मिलती है?” (यूह. 5:44; 7:18) हमें ज़रूर ऐसा करना चाहिए। (रोमियों 2:6, 7 पढ़िए।) क्यों? क्योंकि ‘जो महिमा की खोज करते हैं,’ उन्हें यहोवा “हमेशा की ज़िंदगी देगा।” इतना ही नहीं, जब हम ‘भले कामों में लगे रहते’ हैं, तो इससे दूसरों को वफादार बने रहने और हमेशा की ज़िंदगी पाने में मदद मिल सकती है। इसलिए ठान लीजिए कि कोई भी बात आपको यहोवा से मिलनेवाली महिमा पाने से रोक न सके।
^ हिंदी बाइबलों में “महिमा” के लिए इस्तेमाल किए गए मूल शब्दों का अनुवाद बड़ाई, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर और तेज भी किया गया है।