यहोवा के महान नाम का आदर कीजिए
‘मैं तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा।’—भज. 86:12.
1, 2. ईसाईजगत के चर्चों से उलट, यहोवा के साक्षी परमेश्वर के नाम को किस नज़र से देखते हैं?
ईसाईजगत के ज़्यादातर चर्च परमेश्वर का नाम इस्तेमाल नहीं करते। उदाहरण के लिए, रिवाइज़्ड स्टैंडर्ड वर्शन बाइबल के शुरूआती पन्नों पर लिखा है, ‘एकमात्र परमेश्वर को किसी नाम से पुकारना चर्च के लिए कतई सही नहीं होगा।’
2 दूसरी तरफ, हम यहोवा के साक्षियों को इस बात पर गर्व है कि हम परमेश्वर के नाम से जाने जाते हैं और उसके नाम की महिमा करते हैं। (भजन 86:12; यशायाह 43:10 पढ़िए।) साथ ही, यह भी हमारे लिए सम्मान की बात है कि हम परमेश्वर के नाम का मतलब जानते हैं और समझते हैं कि उसके नाम का पवित्र किया जाना कितना ज़रूरी है। (मत्ती 6:9) मगर इस सम्मान के लिए हमारी कदर कभी कम नहीं होनी चाहिए। इसलिए आइए हम तीन अहम सवालों पर गौर करें: परमेश्वर का नाम जानने का क्या मतलब है? यहोवा अपने महान नाम पर कैसे खरा उतरा है जिससे उसकी और भी महिमा हुई है? और हम यहोवा का नाम लेकर कैसे चल सकते हैं?
परमेश्वर का नाम जानने का मतलब
3. परमेश्वर का नाम जानने का क्या मतलब है?
3 परमेश्वर का नाम जानने का मतलब सिर्फ “यहोवा” शब्द से वाकिफ होना नहीं है। इसका मतलब है यह जानना कि यहोवा किस तरह का परमेश्वर है। इसमें यहोवा के गुण, मकसद और बाइबल में दर्ज़ उसके कामों के बारे में जानना भी शामिल है, जैसे वह अपने सेवकों के साथ किस तरह पेश आता है। इन सबके बारे में यहोवा हमें धीरे-धीरे समझ देता है, जैसे-जैसे उसका मकसद पूरा हो रहा है। (नीति. 4:18) यहोवा ने अपना नाम पहले इंसानी जोड़े को बताया था, तभी हव्वा ने कैन को जन्म देने के बाद यह नाम लिया। (उत्प. 4:1) वफादार कुलपिता नूह, अब्राहम, इसहाक और याकूब भी परमेश्वर का नाम जानते थे। जैसे-जैसे यहोवा ने उन्हें आशीष दी, उनका खयाल रखा और उन पर अपना मकसद ज़ाहिर किया, उनके दिल में यहोवा के नाम के लिए कदर और भी बढ़ती गयी। आगे चलकर परमेश्वर ने मूसा को अपने नाम के बारे में खास समझ दी।
4. मूसा ने परमेश्वर का नाम क्यों पूछा? और उसका यह पूछना क्यों वाजिब था?
4 निर्गमन 3:10-15 पढ़िए। जब मूसा 80 साल का था, तब परमेश्वर ने उसे एक भारी ज़िम्मेदारी सौंपी। उसने मूसा को आज्ञा दी, ‘तू मेरी इसराएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आ।’ इस पर मूसा ने बड़े आदर के साथ परमेश्वर से एक सवाल पूछा, जो बहुत अहमियत रखता है। एक तरह से उसने पूछा, ‘तेरा नाम क्या है?’ लेकिन परमेश्वर का नाम तो उसके सेवक बरसों से जानते थे, तो फिर मूसा ने यह सवाल क्यों पूछा? ज़ाहिर है वह इस बारे में और जानना चाहता था कि यहोवा कैसा शख्स है। वह परमेश्वर के बारे में ऐसी बात जानना चाहता था जिससे वह उसके लोगों को यकीन दिला पाता कि वह वाकई उन्हें छुटकारा दिलाएगा। मूसा का यह पूछना वाजिब था क्योंकि इसराएली काफी समय से गुलाम थे। शायद वे इस बात का यकीन नहीं करते कि उनके पुरखों का परमेश्वर उन्हें छुड़ा सकता है। कुछ इसराएली तो मिस्र के देवी-देवताओं की उपासना तक करने लगे थे!—यहे. 20:7, 8.
5. मूसा को जवाब देते वक्त यहोवा ने अपने नाम के बारे में क्या बताया?
5 यहोवा ने मूसा के सवाल का क्या जवाब दिया? उसने कहा, “तू इसराएलियों से यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूं [“मैं साबित होऊँगा”, एन. डब्ल्यू.] है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।” * फिर उसने कहा, “तुम्हारे पितरों का परमेश्वर . . . यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है।” परमेश्वर ने ज़ाहिर किया कि अपना मकसद पूरा करने के लिए उसे जो बनना ज़रूरी है वह बन जाएगा, यानी वह हमेशा अपने वचन का पक्का साबित होगा। इसलिए आयत 15 में यहोवा खुद कहता है, “सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा।” ये शब्द सुनकर मूसा कैसे श्रद्धा से भर गया होगा और उसका विश्वास कितना मज़बूत हुआ होगा!
यहोवा अपने नाम पर खरा उतरा
6, 7. यहोवा अपने महान नाम पर कैसे खरा उतरा?
6 मूसा को आज्ञा देने के कुछ ही समय बाद, यहोवा अपने नाम पर पूरी तरह खरा उतरा। उसने यह ‘साबित किया’ कि वह इसराएल का छुड़ानेवाला है। दस विपत्तियाँ लाकर उसने पूरे मिस्र को नीचा दिखाया, साथ ही यह साबित किया कि फिरौन और मिस्र के देवी-देवताओं में कोई ताकत नहीं। (निर्ग. 12:12) फिर यहोवा ने लाल सागर में रास्ता बनाकर इसराएलियों को उसके पार पहुँचा दिया, जबकि फिरौन और उसकी सेना को उसी में डुबो दिया। (भज. 136:13-15) “बड़े और भयानक जंगल” में यहोवा जीवन बचानेवाला साबित हुआ। उसने अपने लोगों के लिए खाने-पीने का इंतज़ाम किया, जिनकी गिनती करीब 30 लाख या शायद उससे भी ज़्यादा थी! और इस बात का भी ध्यान रखा कि उनके कपड़े पुराने न हों और न जूते घिसें। (व्यव. 1:19; 29:5) जी हाँ, कोई भी बात यहोवा को अपने महान नाम पर खरा उतरने से नहीं रोक सकती। सालों बाद यहोवा ने यशायाह से कहा, “मैं ही यहोवा हूं और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्त्ता नहीं।”—यशा. 43:11.
7 मूसा के बाद इसराएलियों की अगुवाई लेनेवाले यहोशू ने भी मिस्र और विराने में यहोवा के शानदार काम देखे। इसीलिए जब यहोशू अपनी जिंदगी के आखिरी मुकाम पर था, तब वह पूरे यकीन के साथ इसराएलियों से कह सका, “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।” (यहो. 23:14) यहोवा ने जैसा कहा था, ठीक वैसा ही किया। उसने ‘साबित कर दिया’ कि वह अपने वचन का पक्का है।
8. आज यहोवा अपने नाम पर कैसे खरा उतर रहा है?
8 आज भी यहोवा यह “साबित” कर रहा है कि वह अपने वचन का पक्का है। अपने बेटे के ज़रिए उसने पहले से बताया था कि आखिरी दिनों में राज के संदेश का “सारे जगत में” प्रचार किया जाएगा। (मत्ती 24:14) सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अलावा और कौन ऐसे काम के बारे में पहले से बता सकता है और उसे पूरा करवा सकता है, वह भी ‘कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमियों’ के ज़रिए? (प्रेषि. 4:13) इसलिए जब हम इस काम में हिस्सा लेते हैं, तो दरअसल हम बाइबल की भविष्यवाणी की पूर्ति में योगदान दे रहे होते हैं। हम अपने पिता यहोवा का आदर करते हैं और अपने कामों से जताते हैं कि हम वाकई यह प्रार्थना पूरी होते देखना चाहते हैं, “तेरा नाम पवित्र किया जाए। तेरा राज आए। तेरी मरज़ी, जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है, वैसे ही धरती पर भी पूरी हो।”—मत्ती 6:9, 10.
उसका नाम महान है
9, 10. इसराएलियों के साथ यहोवा जिस तरह पेश आया, उससे अपने नाम के बारे में उसने और क्या ज़ाहिर किया? और इसका क्या नतीजा हुआ?
9 मिस्र से निकलने के कुछ ही समय बाद, यहोवा ने अपने लोगों की खातिर एक नयी भूमिका निभायी। यहोवा ने उनसे एक करार किया जिसके तहत वह उनका “स्वामी” या पति बन गया और उसने वे सारी ज़िम्मेदारियाँ निभाने का वादा किया जो एक पति की होती हैं। (यिर्म. 3:14) और इसराएली यहोवा की पत्नी की तरह बन गए, उसके नाम से पुकारे जानेवाले लोग। (यशा. 54:5, 6) अगर वे उसके अधीन रहते और उसकी आज्ञा मानते, तो वह उनका अच्छा “पति” साबित होता। वह उन्हें आशीष देता, उनकी रक्षा करता और उन्हें शांति देता। (गिन. 6:22-27) इस तरह सभी राष्ट्रों में यहोवा के महान नाम की महिमा होती। (व्यवस्थाविवरण 4:5-8; भजन 86:7-10 पढ़िए।) और वाकई जब तक इसराएली यहोवा के लोग बने रहे, दूसरे राष्ट्रों के बहुत से लोगों ने सच्ची उपासना करने का फैसला किया। ऐसा कर उन्होंने वही कहा जो मोआब की रहनेवाली रूत ने नाओमी से कहा था, “तेरे लोग मेरे लोग होंगे, और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा।”—रूत 1:16.
10 करीब 1,500 साल तक यहोवा जिस तरह इसराएलियों के साथ पेश आया उससे उसकी शख्सियत की बहुत-सी नयी खूबियाँ ज़ाहिर हुईं। हालाँकि इसराएलियों ने बार-बार उसकी आज्ञा तोड़ी, फिर भी यहोवा साबित करता रहा कि वह “दयालु” और “कोप करने में धीरजवन्त” है। धीरज धरने और सहनशीलता दिखाने में वह बेमिसाल था। (निर्ग. 34:5-7) लेकिन यहोवा के धीरज की एक हद है। जब यहूदा राष्ट्र ने उसके बेटे को ठुकरा दिया और उसे मार डाला तो यह उसकी हद से बाहर हो गया। (मत्ती 23:37, 38) अब एक राष्ट्र के तौर पर इसराएली यहोवा के नाम से नहीं पुकारे जाते। यहोवा की नज़र में वे मर चुके थे, वे एक सूखे पेड़ की तरह हो गए थे। (लूका 23:31) तो अब परमेश्वर के नाम की तरफ उनका नज़रिया कैसा था?
11. यहूदियों ने परमेश्वर का नाम लेना क्यों बंद कर दिया?
11 इतिहास बताता है कि समय के चलते यहूदियों में परमेश्वर के नाम को लेकर एक अंधविश्वास पैदा हो गया था। वे मानने लगे थे कि परमेश्वर का नाम इतना पवित्र है कि इसे ज़बान पर नहीं लाना चाहिए। (निर्ग. 34:5-7) धीरे-धीरे यहूदियों ने परमेश्वर का नाम लेना बंद कर दिया। अपने नाम की इस तरह तौहीन होते देख यहोवा का दिल कितना दुखा होगा! (भज. 78:40, 41) यहोवा का नाम उसके लिए बहुत मायने रखता है। दरअसल बाइबल कहती है कि वह अपने नाम के लिए जलन रखता है। अब क्योंकि इसराएलियों ने यहोवा के नाम की तौहीन की थी, इसलिए वे इस लायक नहीं रहे कि उसके नाम से पुकारे जाते। (निर्ग. 34:14) इससे हमें यह सीख मिलती है कि सृष्टिकर्ता का नाम आदर के साथ लेना कितना ज़रूरी है।
यहोवा के नाम से पुकारा जानेवाला नया राष्ट्र
12. भविष्यवाणी के मुताबिक परमेश्वर के नाम से पुकारे जानेवाले लोग कौन थे?
12 यहोवा ने यिर्मयाह के ज़रिए बताया कि वह एक नए राष्ट्र यानी आत्मिक इसराएल के साथ “नई वाचा” बाँधेगा या करार करेगा। यिर्मयाह ने भविष्यवाणी की कि “छोटे से लेकर बड़े तक” उस राष्ट्र के सभी सदस्य ‘यहोवा को जानेंगे।’ (यिर्म. 31:31, 33, 34) परमेश्वर ने यह करार कब किया? ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त के दिन। इस नए राष्ट्र यानी “परमेश्वर के इसराएल” में यहूदी और गैर-यहूदी दोनों थे। तब से वे ‘परमेश्वर के नाम से पहचाने गए लोग’ या ‘परमेश्वर के नाम से पुकारे जानेवाले लोग’ बन गए।—गला. 6:16; प्रेषितों 15:14-17 पढ़िए; मत्ती 21:43.
13. (क) क्या पहली सदी के मसीही परमेश्वर का नाम इस्तेमाल करते थे? समझाइए। (ख) प्रचार में यहोवा का नाम लेने के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
13 ‘परमेश्वर के नाम से पुकारे जानेवाले’ आत्मिक इसराएल के सदस्य परमेश्वर का नाम इस्तेमाल करते थे। खासकर इब्रानी शास्त्र का हवाला देते वक्त उन्होंने ज़रूर ऐसा किया। * मिसाल के लिए, ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त के दिन जब प्रेषित पतरस ने बहुत-से राष्ट्रों से इकट्ठा हुए लोगों के सामने भाषण दिया, जिसमें यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले दोनों लोग थे, तब उसने कई बार परमेश्वर का नाम लिया। (प्रेषि. 2:14, 20, 21, 25, 34) पहली सदी के मसीही परमेश्वर के नाम का आदर करते थे, इसलिए यहोवा ने उनके प्रचार काम पर आशीष दी। उसी तरह आज जब हम गर्व से उसके नाम का ऐलान करते हैं और दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों को उनकी बाइबल से परमेश्वर का नाम दिखाते हैं, तो यहोवा हमारी सेवा पर आशीष देता है। इस तरह हम सच्चे परमेश्वर से लोगों की पहचान करवाते हैं। यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि हमारे लिए भी क्या ही सम्मान की बात है! यह पहचान कई बार यहोवा के साथ दोस्ती में बदल जाती है, ऐसी दोस्ती में जो दिन-ब-दिन गहरी होती जाती है और हमेशा कायम रहेगी।
14, 15. हम कैसे कह सकते हैं कि धर्मत्याग के बावजूद, यहोवा ने अपना नाम बरकरार रखा है?
14 आगे चलकर, मसीही मंडली में धर्मत्याग का ज़हर फैलने लगा, खासकर प्रेषितों की मौत के बाद। (2 थिस्स. 2:3-7) झूठे शिक्षक परमेश्वर का नाम न लेने का यहूदी रिवाज़ भी मानने लगे। पर क्या यहोवा अपना नाम मिटने देता? कभी नहीं! हालाँकि आज हम परमेश्वर के नाम का सही-सही उच्चारण तो नहीं जान सकते, मगर इतना ज़रूर जानते हैं कि उसका नाम क्या है। वह नाम आज तक बना हुआ है। सदियों से परमेश्वर का नाम बाइबल के बहुत-से अनुवादों में और बाइबल विद्वानों के लेखों में आया है। मिसाल के लिए, सन् 1757 में चार्ल्स पीटर्स ने लिखा कि परमेश्वर का नाम “यहोवा” उसकी शख्सियत के बारे में जितना बताता है, उतना परमेश्वर की कोई उपाधि नहीं बता सकती। सन् 1797 में परमेश्वर की उपासना के बारे में लिखी किताब में हॉपटन हेनस ने अध्याय 7 की शुरूआत में कहा, “यहोवा, यहूदियों के परमेश्वर का नाम; यहूदी सिर्फ और सिर्फ उसकी उपासना करते थे, जैसे यीशु और उसके प्रेषित भी करते थे।” हेनरी ग्रू (1781-1862) ने न सिर्फ परमेश्वर का नाम इस्तेमाल किया बल्कि वह यह भी जानता था कि परमेश्वर के नाम पर कलंक लगाया गया है और उसे पवित्र किया जाना है। उसी तरह जॉर्ज स्टॉर्ज़ (1796-1879) ने भी जो चार्ल्स टी. रसल के साथ काम करते थे, परमेश्वर का नाम इस्तेमाल किया ठीक जैसे भाई रसल ने किया।
15 सन् 1931 परमेश्वर के लोगों के लिए खास साल था। अभी तक उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाइबल विद्यार्थी कहा जाता था, मगर इस साल उन्होंने शास्त्र पर आधारित ‘यहोवा के साक्षी’ नाम अपनाया। (यशा. 43:10-12) इस तरह उन्होंने पूरी दुनिया के सामने ऐलान किया कि उनके लिए “परमेश्वर के नाम से पहचाने” जाना और उसके नाम की महिमा करना कितने गर्व की बात है। (प्रेषि. 15:14) जब हम इस बारे में सोचते हैं कि कैसे यहोवा ने अपना नाम आज तक बरकरार रखा है, तो हमें मलाकी 1:11 में दर्ज़ उसके शब्द याद आते हैं कि “उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक अन्यजातियों में मेरा नाम महान है।”
यहोवा का नाम लेकर चलिए
16. यहोवा का नाम लेकर चलने के बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए?
16 भविष्यवक्ता मीका ने लिखा, “सब राज्यों के लोग तो अपने अपने देवता का नाम लेकर चलते हैं, परन्तु हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” (मीका 4:5) जब बाइबल विद्यार्थियों ने यहोवा के साक्षी नाम अपनाया तो उनके लिए यहोवा के नाम से पुकारे जाना बड़े सम्मान की बात था। साथ ही इससे उन्हें पूरा यकीन हो गया कि यहोवा की मंज़ूरी उन पर है। (मलाकी 3:16-18 पढ़िए।) क्या आप भी ऐसा महसूस करते हैं? क्या आप ‘यहोवा का नाम लेकर चलने’ में मेहनत कर रहे हैं?
17. परमेश्वर का नाम लेकर चलने में क्या शामिल है?
17 ‘यहोवा का नाम लेकर चलने’ में कम-से-कम तीन बातें शामिल हैं। पहली, हमें यह नाम दूसरों को बताना चाहिए, क्योंकि ‘जो यहोवा का नाम पुकारते हैं वही उद्धार पाएँगे।’ (रोमि. 10:13) दूसरी, हमें यहोवा के गुण ज़ाहिर करने चाहिए, खासकर उसका प्यार। और तीसरी, जब हम खुशी-खुशी उसके नेक स्तरों के मुताबिक जीते हैं ताकि हमारे पिता यहोवा के नाम पर कोई कलंक न लगे, तब भी हम परमेश्वर का नाम लेकर चल रहे होते हैं। (1 यूह. 4:8; 5:3) तो क्या आपने ठान लिया है कि आप ‘यहोवा का नाम लेकर सदा चलते रहेंगे’?
18. जो लोग यहोवा के महान नाम का आदर करते हैं, वे यकीन के साथ भविष्य का इंतज़ार क्यों कर सकते हैं?
18 जो लोग यहोवा को जानने से इनकार कर देते हैं या फिर उसके खिलाफ जाते हैं, उन्हें जल्द ही यह जानना पड़ेगा कि यहोवा कौन है। (यहे. 38:23) इसमें फिरौन जैसे लोग शामिल हैं, जिसने कहा, ‘यहोवा कौन है कि मैं उसका वचन मानूँ?’ जल्द ही उसे अपने सवाल का जवाब मिल गया। (निर्ग. 5:1, 2; 9:16; 12:29) लेकिन हमने खुशी-खुशी यहोवा को जानने और उसके दोस्त बनने का चुनाव किया है। हमें गर्व है कि हम उसके नाम से पहचाने जाते हैं और उसकी आज्ञा माननेवाले लोग कहलाते हैं। इसलिए हम आनेवाले कल का इंतज़ार करते हैं और भजन 9:10 में दर्ज़ उसके वादे पर पूरा यकीन रखते हैं, जहाँ लिखा है, “तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपने खोजियों को त्याग नहीं दिया।”
^ परमेश्वर का नाम इब्रानी भाषा में एक क्रिया है जिसका अर्थ है, “बनना।” इसलिए यहोवा का मतलब है, “वह बनने का कारण होता है।”
^ पहली सदी के मसीही जिस इब्रानी पाठ का इस्तेमाल करते थे, उसमें टेट्राग्रामटन (इब्रानी भाषा के चार अक्षरों में परमेश्वर का नाम) पाया जाता था। सबूत दिखाते हैं कि सेप्टूआजेंट (इब्रानी शास्त्र का यूनानी अनुवाद) में भी ट्रेटाग्रामटन पाया जाता था।