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दो बातों के बीच फर्क करने की तकनीक से फायदा पाइए

दो बातों के बीच फर्क करने की तकनीक से फायदा पाइए

क्या आप इस बात से सहमत नहीं कि यीशु इस धरती पर जीया सबसे महान शिक्षक था? हो सकता है आपने उसके सिखाने के कुछ तरीके अपनाने की कोशिश की हो, जैसे सवालों का इस्तेमाल करना और मिसाल देकर समझाना। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि वह अकसर दो बातों के बीच फर्क बताकर सिखाया करता था?

बहुत-से लोग बात करते समय फर्क करने की इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। कई बार आप भी बिना ज़्यादा ध्यान दिए ऐसा करते हैं। जैसे आप शायद कहें, “उन्होंने तो कहा था कि सारे फल पक गए हैं, लेकिन ये तो अब भी कच्चे हैं।” या “एक वक्‍त पर वह बहुत शर्मीली थी, मगर अब वह आसानी से सबके साथ घुल-मिल जाती है।”

ऐसे मामलों में, आप पहले कोई बात बताते हैं, फिर आप लेकिन, पर, मगर, इसके बजाय, जबकि, या दूसरी तरफ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके दूसरी बात कहते हैं, जो पहली बात से बिलकुल अलग होती है। आम तौर पर जब आप इस तरह बात करते हैं, तो लोगों को आपकी बात आसानी से समझ में आती है और वे जान जाते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं।

हालाँकि कुछ भाषाओं या संस्कृतियों में दो बातों के बीच फर्क करना आम नहीं है, मगर अच्छा होगा कि हम इसकी अहमियत समझें। क्यों? क्योंकि परमेश्‍वर के प्रेरित वचन में भी कई बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। यीशु अकसर दो बातों के बीच फर्क बताकर कोई मुद्दा समझाया करता था। याद कीजिए उसने कहा था: “लोग दीपक जलाकर उसे टोकरी से ढककर नहीं रखते, बल्कि दीपदान पर रखते हैं।” “मैं [मूसा के कानून को] रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ।” “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तू शादी के बाहर यौन-संबंध न रखना।’ मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है . . . ।” “कहा गया था, ‘आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत।’ लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ: जो दुष्ट है उसका मुकाबला मत करो; इसके बजाय, जो कोई तेरे दाएँ गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी तरफ दूसरा गाल भी कर दे।”—मत्ती 5:15, 17, 27, 28, 38, 39.

बाइबल की दूसरी किताबों में भी इस तरह दो बातों के बीच अंतर बताया गया है। इससे आपको मुद्दा समझने में मदद मिल सकती है या फिर आप कोई काम करने का बेहतर तरीका जान सकते हैं। अगर आप एक माँ या पिता हैं, तो गौर कीजिए कि कैसे इस उदाहरण में दो बातों के बीच फर्क बताया गया है: “हे पिताओ, अपने बच्चों को चिढ़ मत दिलाओ, बल्कि उन्हें यहोवा की तरफ से आनेवाला अनुशासन देते हुए और उसी की सोच के मुताबिक उनके मन को ढालते हुए उनकी परवरिश करो।” (इफि. 6:4) अगर प्रेषित पौलुस ने सिर्फ इतना ही लिखा होता कि एक पिता (या माँ) को अपने बच्चे की परवरिश, परमेश्‍वर की तरफ से आनेवाले अनुशासन के मुताबिक करनी चाहिए, तो इतना कहना भी सही होता। लेकिन, जब वह कहता है कि उन्हें ‘चिढ़ मत दिलाओ, बल्कि यहोवा की सोच के मुताबिक उनके मन को ढालते हुए उनकी परवरिश करो,’ तो इस तरह दो बातों में फर्क करके समझाने से यह मुद्दा और भी खुलकर समझ में आता है।

बाद में उसी अध्याय में पौलुस ने लिखा: “हमारी कुश्‍ती हाड़-माँस के इंसानों से नहीं, बल्कि . . . उन शक्‍तिशाली दुष्ट दूतों से है जो स्वर्गीय स्थानों में हैं।” (इफि. 6:12) यह फर्क हमें इस बात को जानने में मदद देता है कि यह कोई छोटी-मोटी कुश्‍ती नहीं है। यह कुश्‍ती इंसानों के खिलाफ नहीं, बल्कि शक्‍तिशाली दुष्ट दूतों के खिलाफ है।

दो बातों के बीच फर्क करने के फायदे

बाइबल की इस इफिसियों की किताब में ही आपको ऐसी कई आयतें मिलेंगी, जहाँ प्रेषित पौलुस दो बातों के बीच फर्क बताता है। इनके बारे में सोचने से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि पौलुस यहाँ क्या कहना चाह रहा है। हम यह भी साफ-साफ समझ पाएँगे कि हमें क्या करना चाहिए।

इस लेख में दिए चार्ट पर गौर करने से आपको मज़ा आएगा और बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा। इसमें इफिसियों अध्याय 4 और 5 में से कुछ आयतें दी गयी हैं, जिनमें दो बातों के बीच फर्क बताया गया है। जैसे-जैसे आप हर मुद्दे में दिए दोनों पहलुओं पर गौर करेंगे, तो अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचिए। खुद से पूछिए: ‘मेरा रवैया असल में कैसा है? इस हालात में या इससे मिलते-जुलते हालात में मैं कैसा रवैया दिखाता हूँ? दूसरों के मुताबिक, मुद्दे का कौन-सा पहलू मुझ पर लागू होता है?’ अगर किसी मुद्दे को पढ़ने से आपको यह एहसास होता है कि आपको किसी मामले में सुधार करने की ज़रूरत है, तो उसे करने की कोशिश कीजिए। दो बातों के बीच फर्क करने की इस तकनीक से फायदा पाइए।

या फिर आप इस चार्ट का इस्तेमाल अपनी पारिवारिक उपासना में कर सकते हैं। पहले, परिवार के सभी सदस्य चार्ट में दिए सभी मुद्दे पढ़ सकते हैं। फिर आपमें से कोई, किसी मुद्दे का एक पहलू पढ़ सकता है, और परिवार के बाकी सदस्य मुद्दे का दूसरा पहलू याद करके बताने की कोशिश कर सकते हैं। इससे परिवार में सभी के बीच चर्चा हो सकती है कि आप सभी कैसे दूसरे पहलू को और अच्छी तरह लागू कर सकते हैं। जी हाँ, दो विपरीत बातें बतानेवाले ऐसे मुद्दों पर गौर करने से जवान और बुज़ुर्ग सभी को बढ़ावा मिलेगा कि वे परिवार में और बाहर अच्छा मसीही चालचलन बनाए रखें।

क्या आपको मुद्दे का दूसरा पहलू याद है?

जब आप दो बातों के बीच फर्क करने की इस तकनीक की अहमियत समझ जाएँगे, तो आप आसानी से बाइबल में दिए ऐसे उदाहरणों को पहचानने लगेंगे। साथ ही आप पाएँगे कि ये प्रचार काम में भी बहुत असरदार हो सकते हैं। मिसाल के लिए, आप घर-मालिक से कह सकते हैं: “बहुत-से लोगों का कहना है कि इंसानों में अमर-आत्मा होती है, लेकिन ध्यान दीजिए कि बाइबल यहाँ पर क्या कहती है।” या फिर बाइबल अध्ययन चलाते वक्‍त आप पूछ सकते हैं: “इस इलाके में ज़्यादातर लोगों का मानना है कि परमेश्‍वर और यीशु मसीह एक ही व्यक्‍ति हैं, मगर इस बारे में बाइबल क्या कहती है? और आप इस बारे में क्या मानते हैं?”

जी हाँ, बाइबल में कई बार दो बातों के बीच फर्क बताकर मुद्दों को समझाया गया है, जो हमें परमेश्‍वर की दिखायी राह पर चलने में मदद दे सकते हैं। और इस बढ़िया तकनीक का इस्तेमाल करके हम दूसरों को भी बाइबल में दर्ज़ सच्चाइयाँ सिखा सकते हैं।