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यहोवा की चितौनियाँ विश्‍वासयोग्य हैं

यहोवा की चितौनियाँ विश्‍वासयोग्य हैं

“यहोवा के नियम [“चितौनियाँ,” एन.डब्ल्यू.] विश्‍वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं।”—भज. 19:7.

1. हम अपनी सभाओं में अकसर किन विषयों पर चर्चा करते हैं? समय-समय पर इन पर चर्चा करने से हमें कैसे मदद मिलती है?

 प्रहरीदुर्ग का अध्ययन करते वक्‍त क्या आपके मन में कभी यह खयाल आया है, ‘ऐसा लगता है इस विषय के बारे में हमने पहले पढ़ा है’? अगर आप कुछ वक्‍त से यहोवा के साक्षियों की सभाओं में हाज़िर होते आए हैं, तो आपने शायद गौर किया होगा कि कुछ विषयों पर बार-बार चर्चा की जाती है। हम अकसर परमेश्‍वर के राज, फिरौती बलिदान, चेला बनाने के काम और प्यार और विश्‍वास जैसे गुणों के बारे में अध्ययन करते हैं। समय-समय पर इन विषयों पर अध्ययन करने से हमारा विश्‍वास मज़बूत बना रहता है और हमें बढ़ावा मिलता है कि हम ‘वचन पर चलनेवाले बनें, न कि सिर्फ सुननेवाले।’—याकू. 1:22.

2. (क) यहोवा की चितौनियों का क्या मतलब है? (ख) यहोवा के कानून, इंसान के बनाए कानूनों से कैसे अलग हैं?

2 जिस इब्रानी संज्ञा का अनुवाद “चितौनियाँ,” (याद दिलाना) किया गया है, अकसर उसका मतलब होता है, नियम, आज्ञाएँ और कायदे-कानून, जो परमेश्‍वर अपने लोगों को देता है। यहोवा के कानून, इंसान के बनाए कानूनों से बिलकुल अलग होते हैं। इंसान के बनाए कानूनों में अकसर फेरबदल करने की ज़रूरत पड़ती है, जबकि यहोवा के कानून हमेशा भरोसेमंद होते हैं। यह सच है कि इनमें से कुछ कानून एक खास वक्‍त या हालात के लिए बनाए गए थे, जिन पर आज हमें चलने की ज़रूरत नहीं। लेकिन इसकी वजह यह नहीं कि उन कानूनों में कोई कमी थी। भजनहार ने लिखा: “तेरी चितौनियां सदा धर्ममय हैं।”—भज. 119:144.

3, 4. (क) यहोवा की चितौनियों में क्या शामिल हो सकता है? (ख) अगर इसराएली इन चितौनियों को मानते, तो उन्हें क्या फायदा होता?

3 आपने शायद गौर किया होगा कि यहोवा की चितौनियों में कभी-कभी चेतावनियाँ भी शामिल होती हैं। इसराएल राष्ट्र को परमेश्‍वर के नबियों के ज़रिए लगातार चेतावनियाँ मिलती रहीं। उदाहरण के लिए, इसराएलियों के वादा किए गए देश में दाखिल होने से बस पहले ही, मूसा ने उन्हें चेतावनी दी: “अपने विषय में सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन धोखा खाएं, और तुम बहककर दूसरे देवताओं की पूजा करने लगो और उनको दण्डवत्‌ करने लगो, और यहोवा का कोप तुम पर भड़के।” (व्यव. 11:16, 17) बाइबल में हम और भी ढेरों मददगार चितौनियों के बारे में पढ़ते हैं, जो परमेश्‍वर ने अपने लोगों को दी थीं।

4 दूसरे कई मौकों पर यहोवा ने इसराएलियों को याद दिलाया कि वे उसका भय मानें, उसकी आज्ञा मानें और उसके नाम का आदर करें। (व्यव. 4:29-31; 5:28, 29) अगर वे इन चितौनियों को मानते, तो इसमें कोई शक नहीं कि उन्हें ढेरों आशीषें मिलतीं।—लैव्य. 26:3-6; व्यव. 28:1-4.

इसराएलियों ने परमेश्‍वर की चितौनियों की तरफ कैसा रवैया दिखाया

5. यहोवा राजा हिज़किय्याह की तरफ से क्यों लड़ा?

5 इसराएलियों का इतिहास इस बात का गवाह है कि परमेश्‍वर ने उनसे जो भी वादा किया, वह हमेशा निभाया। मिसाल के लिए, जब अश्‍शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा पर हमला किया और राजा हिज़किय्याह की राजगद्दी हथियानी चाही, तो यहोवा ने एक स्वर्गदूत भेजकर अपने लोगों की मदद की। एक ही रात में, यहोवा के स्वर्गदूत ने अश्‍शूरी सेना के “सब शूरवीरों” को मौत के घाट उतार दिया, यहाँ तक की सन्हेरीब को शर्मिंदा होकर घर लौटना पड़ा। (2 इति. 32:21; 2 राजा 19:35) परमेश्‍वर राजा हिज़किय्याह की तरफ से क्यों लड़ा? क्योंकि ‘वह यहोवा से लिपटा रहा और उसके पीछे चलना न छोड़ा; और जो आज्ञाएं यहोवा ने दी थीं, उनका वह पालन करता रहा।’—2 राजा 18:1, 5, 6.

यहोवा की चितौनियों ने योशिय्याह को सच्ची उपासना के लिए कदम उठाने का बढ़ावा दिया (पैराग्राफ 6 देखिए)

6. राजा योशिय्याह ने यहोवा पर अपना भरोसा कैसे ज़ाहिर किया?

6 एक और शख्स जिसने यहोवा की आज्ञाएँ मानीं, वह था राजा योशिय्याह। आठ साल की उम्र से ही, “उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। वह उससे न तो दाहिनी ओर मुड़ा, और न बाईं ओर।” (2 इति. 34:1, 2) योशिय्याह ने अपने नगर की सारी मूर्तियों को नाश करके और सच्ची उपासना को बहाल करके, यहोवा पर अपना भरोसा ज़ाहिर किया। इस वजह से, यहोवा ने न सिर्फ योशिय्याह को, बल्कि पूरे राष्ट्र को आशीषें दीं।—2 इतिहास 34:31-33 पढ़िए।

7. जब इसराएलियों ने यहोवा की चितौनियों को नहीं माना, तो उसका क्या नतीजा हुआ?

7 लेकिन दुख की बात है कि परमेश्‍वर के लोगों ने यहोवा की चितौनियों पर हमेशा पूरी तरह भरोसा नहीं किया। सदियों तक, कभी उन्होंने आज्ञा मानी, तो कभी नहीं। जब भी उनका विश्‍वास कमज़ोर पड़ता, तो क्या होता? प्रेषित पौलुस के शब्दों में कहें, तो वे अकसर “शिक्षाओं के हर झोंके से इधर-उधर उड़ाए जाते।” (इफि. 4:13, 14) और जब-जब उन्होंने यहोवा पर भरोसा नहीं रखा, तब-तब उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने उन्हें चेतावनी दी थी।—लैव्य. 26:23-25; यिर्म. 5:23-25.

8. हम इसराएलियों के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं?

8 हम इसराएलियों के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं? उनकी तरह, आज भी यहोवा के सेवकों को सलाह और ताड़ना मिलती है। (2 पत. 1:12) हर बार जब हम यहोवा का प्रेरित वचन पढ़ते हैं, तो हमें उसकी आज्ञाएँ याद आती हैं। और यहोवा हमें यह चुनने की आज़ादी देता है कि क्या हम उसकी आज्ञाएँ मानेंगे या फिर वही करेंगे जो हमें सही लगता है। (नीति. 14:12) आइए कुछ वजहों पर गौर करें कि क्यों हम यहोवा की चितौनियों पर भरोसा रख सकते हैं और कैसे उन पर चलने से हमें फायदा होगा।

परमेश्‍वर की आज्ञा मानिए और जीवित रहिए

9. जब इसराएली विराने में थे, तो यहोवा ने उन्हें कैसे इस बात का यकीन दिलाया कि वह उनके साथ है?

9 जब इसराएलियों ने विराने में अपना 40 साल का सफर शुरू किया, तो यहोवा ने उन्हें साफ-साफ नहीं बताया था कि वह ठीक कैसे उन्हें निर्देश देगा, उनकी हिफाज़त करेगा और उनकी देखभाल करेगा। फिर भी उसने बार-बार यह ज़ाहिर किया कि अगर वे उस पर भरोसा रखें और उसकी हिदायतें मानें, तो उन्हें फायदा होगा। दिन में बादल के खंभे और रात में आग के खंभे के ज़रिए उनकी अगुवाई करके, यहोवा ने उन्हें याद दिलाया कि वह उस मुश्‍किल सफर में उनके साथ है। (निर्ग. 40:36-38; व्यव. 1:19) उसने उनकी ज़रूरतें भी पूरी कीं। “न तो उनके वस्त्र पुराने हुए और न उनके पांव में सूजन हुई।” वाकई, “उनको कुछ घटी न हुई।”—नहे. 9:19-21.

10. यहोवा आज अपने लोगों को कैसे मार्गदर्शन दे रहा है?

10 परमेश्‍वर के सेवक आज नयी दुनिया की दहलीज़ पर खड़े हैं, जहाँ न्याय का बसेरा होगा। क्या हमें यहोवा पर भरोसा है कि “महा-संकट” से बचने के लिए, हमें जिस किसी चीज़ की ज़रूरत है, वह सब कुछ यहोवा हमें दे रहा है? (मत्ती 24:21, 22; भज. 119:40, 41) यह तो सच है कि यहोवा हमें नयी दुनिया तक पहुँचाने के लिए बादल या आग के खंभे का इस्तेमाल नहीं कर रहा। मगर हाँ, वह अपने संगठन के ज़रिए हमें चितौनियाँ ज़रूर दे रहा है। उदाहरण के लिए, यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने के लिए, हमें बार-बार याद दिलाया जाता है कि हम बाइबल पढ़ें, पारिवारिक उपासना करें, साथ ही लगातार सभाओं और प्रचार में जाएँ। क्या इन हिदायतों को मानने के लिए हमने अपनी ज़िंदगी में फेरबदल किए हैं? ऐसा करने से हमें अपना विश्‍वास बढ़ाने में मदद मिलेगी जो हमें नयी दुनिया में ले जाएगा।

यहोवा की चितौनियाँ मानने से हमें अपने राज-घर का रख-रखाव करने में मदद मिलती है (पैराग्राफ 11 देखिए)

11. परमेश्‍वर किस तरह यह ज़ाहिर करता है कि उसे हमारी फिक्र है?

11 यहोवा के संगठन से हमें जो हिदायतें मिलती हैं, वे हमें न सिर्फ आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने में मदद देती हैं, बल्कि ये हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी मदद करती हैं। मिसाल के लिए, हमें धन-संपत्ति के बारे में सही नज़रिया बनाए रखने और एक साधारण ज़िंदगी जीने का बढ़ावा दिया जाता है, ताकि हम हद-से-ज़्यादा चिंता न करें। साथ ही, हमें पहनावे और बनाव-सिंगार, सही किस्म का मनोरंजन चुनने और कितनी शिक्षा हासिल करनी चाहिए, इन मामलों में भी हिदायतें मिलती हैं। इसके अलावा, हमें अपने घर, गाड़ी और राज-घर को सुरक्षित रखने के बारे में और कुदरती आफतों के लिए तैयार रहने के बारे में भी बार-बार याद दिलाया जाता है। ये सलाहें दिखाती हैं कि परमेश्‍वर को हमारी फिक्र है।

पहली सदी के मसीहियों को वफादार बने रहने में चितौनियों ने दी मदद

12. (क) यीशु ने अपने चेलों के साथ किस विषय पर कई दफा बात की? (ख) नम्रता के किस सबक ने पतरस पर गहरी छाप छोड़ी? और यीशु की मिसाल से हमें क्या बढ़ावा मिलना चाहिए?

12 पहली सदी में, परमेश्‍वर के लोगों को समय-समय पर चितौनियाँ मिलती रहीं, यानी उन्हें कई बातों के बारे में याद दिलाया गया। यीशु ने कई दफा अपने चेलों को नम्र बनने की ज़रूरत के बारे में बताया। लेकिन उसने अपने चेलों को सिर्फ यह नहीं समझाया कि नम्र बनने का क्या मतलब है, उसने अपने उदाहरण से उन्हें नम्रता सिखायी। धरती पर अपनी मौत से एक रात पहले, यीशु ने अपने प्रेषितों को फसह का त्योहार मनाने के लिए इकट्ठा किया। जब उसके चेले खा ही रहे थे, तो यीशु खाने की मेज़ से उठा और अपने चेलों के पैर धोए। यह एक ऐसा काम था जो अकसर सेवक किया करते थे। (यूह. 13:1-17) नम्रता के इस उदाहरण का प्रेषितों पर ज़बरदस्त असर हुआ, और वे कभी इस दिन को नहीं भूले। कुछ 30 साल बाद, प्रेषित पतरस ने, जो उस रात खाने पर यीशु के साथ था, मसीहियों को नम्रता के बारे में सलाह दी। (1 पत. 5:5) यीशु की मिसाल से हम सभी को यह बढ़ावा मिलना चाहिए कि हम एक-दूसरे से पेश आते वक्‍त नम्रता दिखाएँ।—फिलि. 2:5-8.

13. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सा ज़रूरी गुण पैदा करने के बारे में याद दिलाया?

13 एक और विषय जिस पर यीशु अकसर अपने चेलों से बात किया करता था, वह था मज़बूत विश्‍वास पैदा करने की ज़रूरत। एक बार जब चेले एक ऐसे लड़के को ठीक नहीं कर पाए, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, तो उन्होंने यीशु से पूछा, “ऐसा क्यों हुआ कि हम उसे नहीं निकाल पाए?” यीशु ने जवाब दिया: “तुम्हारे विश्‍वास की कमी की वजह से। क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्‍वास है, तो . . . तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन न होगा।” (मत्ती 17:14-20) जब तक यीशु ने धरती पर सेवा की, वह अपने चेलों को विश्‍वास के गुण की अहमियत के बारे में सिखाता रहा। (मत्ती 21:18-22 पढ़िए।) क्या हम सभी अधिवेशनों, सम्मेलनों और मसीही सभाओं में हाज़िर होते हैं, ताकि हम अपना विश्‍वास मज़बूत कर सकें? ये मौके खुशियाँ मनाने के लिए इकट्ठा होने से कहीं बढ़कर हैं। इन मौकों पर हम यहोवा पर अपना भरोसा ज़ाहिर कर पाते हैं।

14. आज मसीह जैसा प्यार पैदा करना क्यों ज़रूरी है?

14 मसीही यूनानी शास्त्र में हमें कई बार याद दिलाया गया है कि हमें एक-दूसरे के लिए प्यार दिखाना चाहिए। यीशु ने कहा कि दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा है ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे हम खुद से करते हैं।’ (मत्ती 22:39) उसी तरह, यीशु के सौतेले भाई याकूब ने प्यार को “शाही नियम” कहा। (याकू. 2:8) और प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा: “मेरे प्यारो, मैं तुम्हें कोई नयी आज्ञा नहीं बल्कि एक पुरानी आज्ञा लिख रहा हूँ जो तुम्हें पहले से मिली हुई है।” (1 यूह. 2:7, 8) जब यूहन्‍ना ने “पुरानी आज्ञा” का ज़िक्र किया, तो वह किस बारे में बात कर रहा था? वह प्यार करने की आज्ञा के बारे में बात कर रहा था। यह आज्ञा इस मायने में “पुरानी” थी कि यीशु ने दशकों “पहले से” उन्हें यह आज्ञा दी थी। मगर यह आज्ञा “नयी” भी थी, क्योंकि आगे चलकर चेलों को नए हालात में ऐसा प्यार दिखाना था, जो दूसरों की खातिर त्याग करने के लिए तैयार रहता है। मसीह के चेले होने के नाते, हम उन चेतावनियों की कितनी कदर करते हैं जो हमें इस दुनिया के ज़्यादातर लोगों की तरह स्वार्थी बनने से खबरदार करती हैं। इसके बजाय, हम ऐसा प्यार दिखाते हैं, जो दूसरों की खातिर त्याग करने के लिए तैयार रहता है।

15. धरती पर यीशु के आने का खास मकसद क्या था?

15 यीशु लोगों की दिल से परवाह करता था। यह परवाह उसने लोगों को चंगा करके और मरे हुओं को ज़िंदा करके दिखायी। लेकिन धरती पर यीशु के आने का खास मकसद, लोगों को चंगा करना नहीं था। उसके प्रचार और सिखाने के काम से लोगों को और भी ज़्यादा फायदा हुआ। वह कैसे? क्योंकि पहली सदी में जिन्हें यीशु ने चंगा किया और जिन्हें दोबारा जी उठाया, वे एक दिन बूढ़े होकर मर गए। लेकिन जिन लोगों ने यीशु के संदेश को कबूल किया, उनके पास हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका है।—यूह. 11:25, 26.

16. आज प्रचार काम और चेला बनाने का काम कितने बड़े पैमाने पर किया जा रहा है?

16 यीशु ने पहली सदी में जो प्रचार काम शुरू किया था, वह आज और भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। जी हाँ, यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी, “इसलिए जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” (मत्ती 28:19) बेशक, उन्होंने यह काम किया और हम कह सकते हैं कि आज हम भी यह काम कर रहे हैं। सत्तर लाख से ज़्यादा यहोवा के साक्षी जोश के साथ 230 से भी ज़्यादा देशों में परमेश्‍वर के राज का ऐलान कर रहे हैं और लाखों लोगों के साथ लगातार बाइबल अध्ययन कर रहे हैं। यह प्रचार काम इस बात का सबूत है कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं।

आज यहोवा पर भरोसा रखिए

17. पौलुस और पतरस ने पहली सदी के मसीहियों को क्या सलाह दी?

17 यह साफ है कि यहोवा की चितौनियों ने पहली सदी के मसीहियों को अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखने में मदद दी। मिसाल के लिए, जब पौलुस रोम की जेल में कैद था, तो उसने तीमुथियुस से कहा, ‘जो खरी शिक्षाएँ तू ने मुझसे सुनीं उनके नमूने को थामे रह।’ (2 तीमु. 1:13) ज़रा सोचिए इन शब्दों से तीमुथियुस को कितनी हिम्मत मिली होगी! इसके अलावा, प्रेषित पतरस ने मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे धीरज, भाइयों जैसा लगाव और संयम पैदा करें। यह कहने के बाद उसने कहा, “मैं तुम्हें इन बातों की याद दिलाने के लिए हमेशा तैयार रहूँगा, हालाँकि तुम इन्हें जानते हो और उस सच्चाई में मज़बूती से कायम हो।”—2 पत. 1:5-8, 12.

18. हिदायतें मिलने पर पहली सदी के मसीहियों ने कैसा रवैया दिखाया?

18 यह सच है कि पौलुस और पतरस ने मंडलियों को जो खत लिखे, वे “पहले के पवित्र भविष्यवक्‍ताओं की कही बातों” से मिलते-जुलते थे। (2 पत. 3:2) लेकिन जब पहली सदी के हमारे भाइयों को ये हिदायतें मिलीं, तो क्या उन्हें बुरा लगा? नहीं, क्योंकि ये हिदायतें परमेश्‍वर के प्यार का सबूत थीं, जिनकी मदद से उन्हें ‘परमेश्‍वर की महा-कृपा और भी ज़्यादा मिलती रही और वे हमारे प्रभु और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह के बारे में ज्ञान में बढ़ते गए।’—2 पत. 3:18.

19, 20. हमें यहोवा की चितौनियों पर क्यों भरोसा रखना चाहिए? और ऐसा करके हमें क्या फायदा होगा?

19 आज हमारे पास परमेश्‍वर के वचन, बाइबल में दर्ज़ यहोवा की चितौनियों पर भरोसा रखने की कितनी सारी वजह हैं। उसके वचन में दी सलाह कभी गलत नहीं होती। (यहोशू 23:14 पढ़िए।) बाइबल हमें बताती है कि हज़ारों सालों के दौरान, परमेश्‍वर इंसानों के साथ कैसे पेश आया। यह इतिहास हमारे फायदे के लिए दर्ज़ किया गया था। (रोमि. 15:4; 1 कुरिं 10:11) हमने बाइबल की भविष्यवाणियों को अपने दिनों में पूरे होते देखा है। भविष्यवाणियाँ भी चितौनियों की तरह हैं, जो यहोवा पहले से हमें देता है। मिसाल के लिए, आज लाखों लोग यहोवा के उपासक बने हैं, जैसा भविष्यवाणी में बताया गया था कि “अन्त के दिनों में” होगा। (यशा. 2:2, 3) इस दुनिया की बदतर होती जा रही हालत भी यह दिखाती है कि बाइबल की भविष्यवाणी पूरी हो रही है। और जैसा हमने देखा, दुनिया-भर में हो रहा प्रचार काम भी सीधे-सीधे यीशु के शब्दों को पूरा कर रहा है।—मत्ती 24:14.

20 सदियों से हमारे सृष्टिकर्ता ने यह साबित किया है कि हम उस पर भरोसा कर सकते हैं। क्या हम उसकी चितौनियों से फायदा पा रहे हैं? रोज़लेन नाम की बहन कहती है, “जैसे-जैसे मैं यहोवा पर पूरा भरोसा करने लगी, वैसे-वैसे यह और भी साफ होने लगा कि कैसे यहोवा मुझे प्यार से सँभाल रहा है और ताकत दे रहा है।” ऐसा हो कि हम भी यहोवा की चितौनियों से फायदा पाते रहें।