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“यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो”

“यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो”

“अपने काम में आलस न दिखाओ। . . . यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो।”—रोमि. 12:11.

1. गुलामी के बारे में दुनिया के लोगों के नज़रिए और रोमियों 12:11 में जिस गुलामी का बढ़ावा दिया गया है, उसके बीच फर्क बताइए।

 मसीहियों के तौर पर दास बनकर सेवा, या गुलामी करना, उस गुलामी से बिलकुल अलग है जो दुनिया के लोग सोचते हैं। जब दुनिया के लोग गुलामी के बारे में सोचते हैं, तो उनके मन में एक ऐसे बेबस इंसान की तसवीर उभर आती है जिससे बेरहमी से पीट-पीटकर काम लिया जा रहा है, जिस पर ज़ुल्म ढाया जा रहा है और जिसके साथ अन्याय किया जा रहा है। मगर परमेश्‍वर के प्रेरित वचन में एक अलग ही तरह की गुलामी के बारे में बताया गया है, जिसमें एक इंसान खुशी-खुशी अपने प्यारे मालिक की सेवा करता है। जब प्रेषित पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों को ‘यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करने’ के लिए कहा, तब वह दरअसल उन्हें परमेश्‍वर के लिए प्यार से उभारे जाकर उसकी पवित्र सेवा करने का बढ़ावा दे रहा था। (रोमि. 12:11) इस तरह की गुलामी में क्या शामिल है? हम शैतान और उसकी दुनिया के गुलाम बनने से कैसे दूर रह सकते हैं? यहोवा के दास के तौर पर वफादारी से उसकी सेवा करने से हमें क्या आशीषें मिलेंगी?

‘मैं अपने स्वामी से प्रेम रखता हूं’

2. (क) एक इसराएली दास किस वजह से आज़ाद होने से इनकार कर सकता था? (ख) अपने कान छिदवाकर एक दास क्या दिखाता था?

2 यहोवा ने इसराएलियों को जो कानून दिए थे, उन्हें पढ़ने से हम जान सकते हैं कि यहोवा हमसे किस तरह की गुलामी चाहता है। एक इब्री दास को छ: साल अपने मालिक की सेवा करने के बाद सातवें साल आज़ादी दे दी जाती थी। (निर्ग. 21:2) लेकिन अगर कोई दास अपने मालिक से प्यार होने की वजह से उसकी सेवा करते रहना चाहता था, तो उसके लिए यहोवा ने एक बेहतरीन इंतज़ाम किया था। ऐसे में, मालिक को अपने दास को दरवाज़े के किवाड़ या चौखट के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करना था। (निर्ग. 21:5, 6) वह ऐसा क्यों करता था? इब्रानी भाषा में आज्ञा मानने के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, वह सुनने या ध्यान से सुनने से जुड़ा है। तो फिर अपने कान छिदवाकर एक दास दिखाता था कि वह अपने मालिक की आज्ञा मानते रहना चाहता है। यही बात हमारे समर्पण के बारे में भी कही जा सकती है। जब हम यहोवा को समर्पण करते हैं, तो हम दिखा रहे होते हैं कि हम उसकी आज्ञा मानने के लिए तैयार हैं, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं।

3. हम परमेश्‍वर को अपनी ज़िंदगी क्यों समर्पित करते हैं?

3 जब हमने एक मसीही के तौर पर बपतिस्मा लेने के लिए खुद को पेश किया था, तब तक हम यह फैसला कर चुके थे कि हम यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करेंगे। यहोवा की आज्ञा मानने और उसकी मरज़ी पूरी करने की हमारी इच्छा ने ही हमें समर्पण करने के लिए उकसाया। समर्पण करने के लिए किसी ने भी हम पर दबाव नहीं डाला। यहाँ तक कि जवान भाई-बहन भी यहोवा को अपना निजी समर्पण करने के बाद ही बपतिस्मा लेते हैं। वे अपनी मरज़ी से ऐसा करते हैं, अपने माँ-बाप को खुश करने के लिए नहीं। हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने मालिक, यहोवा को अपनी ज़िंदगी इसलिए समर्पित करते हैं, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं। प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा, “परमेश्‍वर से प्यार करने का मतलब यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें।”—1 यूह. 5:3.

आज़ाद, पर फिर भी गुलाम

4. “नेकी के दास” बनने के लिए क्या ज़रूरी है?

4 हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमें अपना दास बनने का मौका दिया है! मसीह के फिरौती बलिदान पर हम जो विश्‍वास दिखाते हैं, उसकी बिनाह पर हम पाप के जूए से आज़ाद हो पाते हैं। हालाँकि हम अब भी असिद्ध हैं, मगर हमने खुद को खुशी-खुशी यहोवा और यीशु के अधीन कर दिया है। पौलुस ने अपने एक प्रेरित खत में इस बारे में खुलकर समझाया: “खुद को पाप के लिए तो मरा हुआ, मगर मसीह यीशु के ज़रिए परमेश्‍वर के लिए ज़िंदा समझो।” फिर उसने आगाह किया: “क्या तुम नहीं जानते कि अगर तुम किसी की आज्ञा मानने के लिए खुद को गुलामों की तरह उसके हवाले करते रहते हो, तो उसी के गुलाम बन जाते हो? फिर चाहे पाप के गुलाम, जिसका अंजाम मौत है या चाहे आज्ञा-पालन के गुलाम, जिसका नतीजा परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहराया जाना है। मगर परमेश्‍वर का धन्यवाद हो कि तुम जो पाप के गुलाम थे, अब तुम दिल से उस शिक्षा के आज्ञाकारी बने जिसके हवाले उसने तुम्हें किया था। हाँ, क्योंकि तुम्हें पाप से आज़ाद किया गया था, इसलिए तुम नेकी के दास बने।” (रोमि. 6:11, 16-18) ध्यान दीजिए कि प्रेषित यहाँ ‘दिल से आज्ञाकारी बनने’ का ज़िक्र करता है। इसलिए जब हम परमेश्‍वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित करते हैं, तो हम “नेकी के दास” बन जाते हैं।

5. हम सब कौन-सी लड़ाई लड़ रहे हैं? और क्यों?

5 लेकिन समर्पण के मुताबिक जीने में कई बाधाएँ आती हैं। हम दो तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं। एक वह, जो प्रेषित पौलुस ने भी लड़ी। उसने लिखा: “मेरे अंदर का इंसान वाकई परमेश्‍वर के कानून में खुशी पाता है मगर मैं अपने अंगों में दूसरे कानून को काम करता हुआ पाता हूँ, जो मेरे सोच-विचार पर राज करनेवाले कानून से लड़ता है और मुझे पाप के उस कानून का गुलाम बना लेता है जो मेरे अंगों में है।” (रोमि. 7:22, 23) हम भी विरासत में मिली असिद्धता से जूझ रहे हैं। इसलिए, हम लगातार अपनी पापी इच्छाओं से लड़ते रहते हैं। प्रेषित पतरस ने हमें बढ़ावा दिया: “आज़ाद लोगों की तरह जीओ, फिर भी अपनी आज़ादी को बुरे काम करने के लिए आड़ की तरह इस्तेमाल मत करो, बल्कि परमेश्‍वर के दासों की तरह जीओ।”—1 पत. 2:16.

6, 7. शैतान कैसे इस दुनिया को आकर्षक बनाता है?

6 हम एक और लड़ाई लड़ रहे हैं, और वह है एक ऐसी दुनिया के खिलाफ, जिस पर दुष्ट स्वर्गदूतों का असर है। इस दुनिया का राजा, शैतान हम पर तीरों से वार करता है, ताकि यहोवा और यीशु मसीह को हम जो वफादारी दिखाते हैं, उसे वह तोड़ सके। वह हमें लुभाने की कोशिश करता है, ताकि हम उसकी दुनिया का भाग बन जाएँ। इस तरह वह हमें अपना गुलाम बनाना चाहता है। (इफिसियों 6:11, 12 पढ़िए।) ऐसा करने का शैतान का एक तरीका है, इस दुनिया को आकर्षक और लुभावना बनाना। प्रेषित यूहन्‍ना ने खबरदार किया: “अगर कोई दुनिया से प्यार करता है, तो उसमें पिता के लिए प्यार नहीं है। क्योंकि दुनिया में जो कुछ है, यानी शरीर की ख्वाहिशें, आँखों की ख्वाहिशें और अपनी चीज़ों का दिखावा, पिता की तरफ से नहीं बल्कि दुनिया की तरफ से है।”—1 यूह. 2:15, 16.

7 इस दुनिया में हर किसी पर अमीर बनने की धुन सवार है। शैतान लोगों को यकीन दिलाना चाहता है कि पैसा ही उन्हें खुशियाँ दे सकता है। खरीददारी करने के लिए बड़ी-बड़ी दुकानों की कोई कमी नहीं। विज्ञापन की दुनिया हमें ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीने का बढ़ावा देती है। कई ट्रैवल एजेंसियाँ आपको जगह-जगह घूमने के लिए बढ़िया-से-बढ़िया पैकेज मुहैय्या करवाती हैं, लेकिन अकसर ऐसे लोगों के साथ जो दुनियावी सोच रखते हैं। जी हाँ, सभी यही चाहते हैं कि हम अपनी ज़िंदगी को और “बेहतर” बनाएँ, लेकिन हमेशा वैसे जैसे यह दुनिया चाहती है।

8, 9. आज हम इंसानों पर कौन-सा बड़ा खतरा मँडरा रहा है? और यह क्यों एक खतरा है?

8 पहली-सदी के जिन मसीहियों ने दुनियावी सोच अपना ली थी, उन्हें पतरस खबरदार करता है: “ऐसे लोगों को अपना दिन का वक्‍त ऐयाशी में बिताना अच्छा लगता है। ये दाग और कलंक हैं, जिन्हें तुम्हारे साथ दावतें उड़ाते वक्‍त अपनी छल से भरी शिक्षाओं को बढ़ावा देने में बेइंतिहा खुशी मिलती है। वे ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं जिनसे कुछ फायदा नहीं होता और वे शरीर की ख्वाहिशों से और वासना से भरी आदतों से उन लोगों को फँसा लेते हैं जो बुरे काम करनेवाले दुनियावी लोगों के बीच से अभी-अभी निकले ही हैं। वे उन्हें आज़ादी दिलाने का वादा करते हैं, जबकि वे खुद भ्रष्टता के गुलाम हैं। क्योंकि जो जिसके बस में आ जाता है उसका गुलाम हो जाता है।”—2 पत. 2:13, 18, 19.

9 “आँखों की ख्वाहिशें” पूरी करने से एक इंसान आज़ाद नहीं हो जाता। इसके बजाय, वह इस दुनिया के अदृश्‍य सरदार, शैतान इब्‌लीस का गुलाम बन जाता है। (1 यूह. 5:19) आज हम इंसानों पर पैसे का गुलाम बनने का एक बहुत बड़ा खतरा मँडरा रहा है। यह ऐसी गुलामी है, जिससे आज़ाद हो पाना बहुत ही मुश्‍किल है।

एक करियर जो यहोवा को भाए

10, 11. आज शैतान ने खासकर किन्हें अपना निशाना बनाया है? और आज दुनिया जो कोर्स करने का बढ़ावा देती है, उससे उनके लिए क्या मुश्‍किल खड़ी हो सकती है?

10 ठीक जैसे शैतान ने अदन के बाग में किया था, वह आज भी ऐसे लोगों को अपना निशाना बनाता है जो ज़्यादा तजुर्बा नहीं रखते। वह खास तौर से नौजवानों को अपना निशाना बनाता है। जब एक जवान, या दरअसल कोई भी, अपनी मरज़ी से दास बनकर यहोवा की सेवा करने के लिए खुद को पेश करता है, तो शैतान को ज़रा-भी खुशी नहीं होती। परमेश्‍वर का यह दुश्‍मन चाहता है कि जिन्होंने यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की है, वे सभी यहोवा के लिए अपनी वफादारी बनाए रखने और उसकी भक्‍ति करने में नाकाम हो जाएँ।

11 उस दास की मिसाल पर फिर से गौर कीजिए जिसे अपना कान छिदवाना मंज़ूर था। कान छिदवाने से दास को थोड़ी देर के लिए दर्द ज़रूर होता था। हालाँकि कुछ समय बाद वह दर्द खत्म हो जाता था, मगर इससे हमेशा के लिए इस बात की निशानी रह जाती थी कि उसने अपनी मरज़ी से गुलाम बने रहने का फैसला किया है। उसी तरह, एक जवान मसीही के लिए अपने हमउम्र साथियों से बिलकुल अलग रास्ता इख्तियार करना मुश्‍किल हो सकता है। शायद ऐसा करने के लिए उसे कुछ दुख भी झेलना पड़े। शैतान नौजवानों को यकीन दिलाना चाहता है कि उसकी दुनिया में करियर बनाने से ही एक इंसान सुखी रह सकता है। मगर मसीहियों को अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने की अहमियत को गंभीरता से लेना चाहिए। यीशु ने सिखाया: “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।” (मत्ती 5:3) समर्पित मसीही परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने के लिए जीते हैं, शैतान की नहीं। वे यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहते हैं और उसकी व्यवस्था पर रात दिन मनन करते हैं। (भजन 1:1-3 पढ़िए।) मगर आज की दुनिया ज़्यादातर ऐसे कोर्स करने का बढ़ावा देती है, जिसकी वजह से यहोवा के सेवकों को मनन करने और अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने के लिए बहुत ही कम समय मिलता है।

12. आज बहुत-से जवानों को क्या चुनाव करना होता है?

12 दुनियावी मालिक एक मसीही दास का जीना दूभर कर सकता था। कुरिंथियों को लिखी पहली चिट्ठी में, पौलुस ने पूछा: “क्या तुझे तब बुलाया गया जब तू एक दास था?” फिर उसने उन्हें सलाह दी: “तो यह बात तुझे परेशान न करे। लेकिन अगर तू आज़ाद हो सकता है, तो ऐसे मौके को न छोड़।” (1 कुरिं. 7:21) अगर एक दास का मालिक ऐसा होता जो उसका जीना दूभर कर रहा हो, तो उस दास के लिए बेहतर होता कि वह अपने मालिक से आज़ाद हो जाए। आज, बहुत-से देशों में एक उम्र तक स्कूल की शिक्षा हासिल करना ज़रूरी है। इसके बाद, विद्यार्थी चुनाव कर सकते हैं कि वे आगे पढ़ाई जारी रखेंगे या नहीं। अगर वे अपना करियर बनाने के लिए पढ़ाई जारी रखने का चुनाव करते हैं, तो इससे पूरे समय की सेवा करने की उनकी आज़ादी छिन सकती है।—1 कुरिंथियों 7:23 पढ़िए।

आप कौन-से मालिक की गुलामी करेंगे?

ऊँची शिक्षा या सबसे ऊँची शिक्षा?

13. यहोवा के सेवकों के लिए किस तरह की शिक्षा सबसे फायदेमंद साबित हो सकती है?

13 पौलुस ने कुलुस्से के मसीहियों को चेतावनी दी: “खबरदार रहो: कहीं ऐसा न हो कि कोई तुम्हें दुनियावी फलसफों और छलनेवाली उन खोखली बातों से अपना शिकार बनाकर ले जाए, जो इंसानों की परंपराओं और दुनियादारी के उसूलों के मुताबिक हैं और मसीह की शिक्षाओं के मुताबिक नहीं।” (कुलु. 2:8) आज ‘दुनियावी फलसफे और छलनेवाली खोखली बातें, जो इंसानों की परंपराओं के मुताबिक हैं,’ अकसर इस दुनिया के बड़े-बड़े ज्ञानियों की बातों में झलकती हैं, जो दुनियावी सोच को बढ़ावा देते हैं। बहुत-से विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिन्होंने ऊँची शिक्षा तो हासिल की होती है, मगर उन्हें बहुत कम हुनर सिखाए जाते हैं या कई मामलों में तो बिलकुल भी नहीं। नतीजा, वे इस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार नहीं होते। इसके उलट, यहोवा के सेवक ऐसी शिक्षा का चुनाव करते हैं, जो उन्हें अपने अंदर ऐसे हुनर बढ़ाने में मदद करती है, जिससे आगे चलकर वे सादगी-भरा जीवन जी सकें और यहोवा की सेवा को पहली जगह दे सकें। वे उस सलाह के मुताबिक चलते हैं, जो प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस को दी थी: “असल में, परमेश्‍वर की भक्‍ति ही अपने आप में बड़ी कमाई है, बशर्ते कि जो हमारे पास है हम उसी में संतोष करें। इसलिए अगर हमारे पास खाना, कपड़ा और सिर छिपाने की जगह है, तो उसी में संतोष करना चाहिए।” (1 तीमु. 6:6, 8) अपने नाम के आगे बहुत-सी डिग्रियाँ लगाने के बजाय, सच्चे मसीही प्रचार काम में पूरा-पूरा हिस्सा लेते हैं और दूसरों को मसीह के चेले बनने में मदद देने पर अपना ध्यान लगाते हैं।—2 कुरिंथियों 3:1-3 पढ़िए।

14. फिलिप्पियों 3:8 के मुताबिक, पौलुस ने परमेश्‍वर और मसीह का दास बनकर सेवा करने के अपने सम्मान को किस नज़र से देखा?

14 प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर गौर कीजिए। उसने यहूदी शिक्षक गमलीएल से शिक्षा पायी थी, जो मूसा का कानून सिखाया करता था। जो शिक्षा पौलुस को मिली थी, उसकी तुलना आज के बड़े-बड़े विश्‍वविद्यालयों में मिलनेवाली शिक्षा से की जा सकती है। लेकिन पौलुस ने परमेश्‍वर और मसीह का दास बनकर सेवा करने के सम्मान के आगे इस शिक्षा को किस नज़र से देखा? उसने लिखा: “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु के बारे में उस ज्ञान की खातिर जिसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता, सब बातों को . . . नुकसान समझता हूँ।” इसके बाद उसने लिखा: “उसी की खातिर मैंने सब बातों का नुकसान उठाया है और मैं इन्हें ढेर सारा कूड़ा समझता हूँ ताकि मसीह को पा सकूँ।” (फिलि. 3:8) अगर मसीही जवान और उनके माँ-बाप भी पौलुस का नज़रिया अपनाएँ, तो शिक्षा के मामले में उन्हें बुद्धि-भरे फैसले करने में मदद मिलेगी। (तसवीरें देखिए।)

सबसे ऊँची शिक्षा से फायदा पाइए

15, 16. यहोवा के संगठन से हमें कौन-सी शिक्षा मिलती है? और इस शिक्षा का मकसद क्या है?

15 आज ऊँची शिक्षा देनेवाले कई कॉलेजों वगैरह में कैसा माहौल होता है? क्या वहाँ लोग अकसर सरकार या अधिकारियों पर अपना गुस्सा नहीं निकालते और खुलेआम उनके खिलाफ बगावत नहीं करते? (इफि. 2:2) इसके बिलकुल उलट, यहोवा के संगठन में सबसे ऊँचे दर्जे की शिक्षा मिलती है, और वह भी मसीही मंडली के शांति-भरे माहौल में। हममें से हरेक के पास हर हफ्ते होनेवाले परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा पाने का मौका है। इसके अलावा, यहोवा के संगठन में कुछ खास तरह के स्कूल भी चलाए जाते हैं, जैसे ‘अविवाहित भाइयों के लिए बाइबल स्कूल,’ जिसमें अविवाहित पायनियर भाइयों को तालीम दी जाती है, और ‘मसीही जोड़ों के लिए बाइबल स्कूल,’ जिसमें मसीही पायनियर जोड़ों को तालीम मिलती है। परमेश्‍वर के संगठन के ज़रिए मिलनेवाली ये शिक्षाएँ हमारी मदद करती हैं कि हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने मालिक, यहोवा की आज्ञा मानें।

16 हम वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स या सीडी रॉम पर वॉचटावर लाइब्रेरी की मदद से और भी गहराई से खोजबीन करके बेहतरीन आध्यात्मिक खज़ाना ढूँढ़ सकते हैं। बाइबल की शिक्षा देनेवाले इन इंतज़ामों का मकसद है कि हम और भी अच्छी तरह यहोवा की उपासना कर सकें। इन इंतज़ामों की बदौलत हम जान पाते हैं कि परमेश्‍वर के साथ सुलह करने में हम कैसे दूसरों की मदद कर सकते हैं। (2 कुरिं. 5:20) बदले में वे दूसरों को सिखाने के योग्य बन पाएँगे।—2 तीमु. 2:2.

दास का इनाम

17. सबसे ऊँची शिक्षा चुनने से क्या इनाम मिलते हैं?

17 यीशु के दिए तोड़ों के उदाहरण में, दो वफादार दासों को मालिक ने शाबाशी दी और उन्हें और भी काम देकर अपनी खुशी में शामिल कर लिया। (मत्ती 25:21, 23 पढ़िए।) आज सबसे ऊँची शिक्षा का चुनाव करने से हमें खुशियाँ और आशीषें मिलती हैं। माइकल के उदाहरण पर गौर कीजिए। वह स्कूल में इतना होनहार था कि उसके शिक्षकों ने उसके साथ एक बैठक रखी, ताकि वे उसे ऊँची शिक्षा पाने का बढ़ावा दे सकें। जब माइकल ने उन्हें बताया कि वह एक छोटा-सा कोर्स करना चाहता है, ताकि वह कुछ हुनर हासिल कर सके, तो उन शिक्षकों को बहुत हैरानी हुई। जल्द ही, उस हुनर की वजह से वह पायनियर सेवा के साथ-साथ अपना गुज़ारा भी चला सका। क्या माइकल को ऊँची शिक्षा पाने का मौका ठुकराने का पछतावा है? वह कहता है: “पायनियर के तौर पर और अब मंडली में एक प्राचीन के तौर पर मुझे परमेश्‍वर से जो शिक्षा मिली है, वह वाकई बहुत अनमोल है। मुझे जो आशीषें और ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं, वह उन पैसों से कहीं बढ़कर हैं, जो शायद मैं ऊँची शिक्षा हासिल करके कमाता। मैं बहुत खुश हूँ कि मैंने ऊँची शिक्षा लेने का फैसला नहीं किया।”

18. सबसे ऊँची शिक्षा चुनने के लिए क्या बात आपको उकसाती है?

18 सबसे ऊँची शिक्षा हमें यहोवा की मरज़ी पूरी करना सिखाती है, साथ ही, यह दास बनकर उसकी सेवा करने में हमारी मदद करती है। यह शिक्षा हमें ‘भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद होने’ और आखिरकार, “परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” पाने की आशा देती है। (रोमि. 8:21) सबसे बढ़कर, हम सीखते हैं कि हम कैसे सबसे बढ़िया तरीके से दिखा सकते हैं कि हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने मालिक, यहोवा से सचमुच प्यार करते हैं।—निर्ग. 21:5.