सात चरवाहे, आठ प्रधान—आज हमारे लिए क्या मायने रखते हैं?
“हम उनके विरुद्ध सात चरवाहे वरन आठ प्रधान मनुष्य खड़े करेंगे।”—मीका 5:5.
1. सीरिया और इसराएल के राजाओं का मनसूबा कामयाब क्यों नहीं होता?
ईसा पूर्व 762 और 759 के बीच किसी समय पर इसराएल के राजा और सीरिया के राजा ने यहूदा राज्य के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया। उनका मकसद क्या था? यरूशलेम पर हमला करना, राजा आहाज़ को राजगद्दी से हटाना और उसकी जगह शायद किसी ऐसे शख्स को राजा बनाना, जो राजा दाविद के वंश से न हो। (यशा. 7:5, 6) लेकिन उनका यह मनसूबा कामयाब नहीं होता। क्यों? क्योंकि यहोवा ने वादा किया था कि दाविद के खानदान से ही कोई हमेशा के लिए उसकी राजगद्दी पर बैठेगा। और ऐसा कभी नहीं हो सकता कि यहोवा के मुँह से निकली एक भी बात पूरी न हो।—यहो. 23:14; 2 शमू. 7:16.
2-4. (क) समझाइए कि यशायाह 7:14, 16 ईसा पूर्व आठवीं सदी में कैसे पूरा हुआ? (ख) समझाइए कि ये आयतें ईसवी सन् पहली सदी में कैसे पूरी हुईं?
2 पहले-पहल तो ऐसा लगा कि सीरिया और इसराएल के राजा युद्ध जीत जाएँगे। सिर्फ एक ही लड़ाई में, राजा आहाज़ के 1,20,000 जाँबाज़ सैनिकों की जान चली गयी! और उसके अपने बेटे, मासेयाह तक को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। (2 इति. 28:6, 7) मगर यहोवा सबकुछ देख रहा था। उसे दाविद को किया अपना वादा याद था, इसलिए उसने भविष्यवक्ता यशायाह को बेहद हौसला बढ़ानेवाले संदेश के साथ भेजा।
3 यशायाह ने कहा था: “सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानूएल रखेगी। . . . उस से पहिले कि वह लड़का बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना जाने, वह देश जिसके दोनों राजाओं से तू घबरा रहा है [सीरिया और इसराएल] निर्जन हो जाएगा।” (यशा. 7:14, 16) इस भविष्यवाणी का पहला हिस्सा अकसर मसीहा के जन्म पर लागू किया जाता है, और यह सही भी है। (मत्ती 1:23) लेकिन “दोनों राजाओं” ने, यानी सीरिया और इसराएल के राजाओं ने पहली सदी में यहूदा पर हमला नहीं किया था, इसलिए यह कहा जा सकता है कि इम्मानूएल के बारे में की गयी भविष्यवाणी पहली बार यशायाह के दिनों में पूरी हुई होगी। वह कैसे?
4 यशायाह के ज़रिए की गयी इस शानदार घोषणा के कुछ ही समय बाद, उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम महेर्शालाल्हाशबज रखा गया। मुमकिन है कि यह बच्चा वही “इम्मानूएल” था, जिसका ज़िक्र यशायाह ने किया था। * बाइबल के ज़माने में, कई बार शायद किसी खास घटना को याद रखने के लिए एक बच्चे के जन्म पर उसे एक नाम दिया जाता था, लेकिन उसके माता-पिता और रिश्तेदार उसे किसी और नाम से पुकारते थे। (2 शमू. 12:24, 25) इस बात का कोई सबूत नहीं कि यीशु को कभी इम्मानूएल नाम से पुकारा गया था।—यशायाह 7:14; 8:3, 4 पढ़िए।
5. राजा आहाज़ ने कौन-सा मूर्खता-भरा फैसला लिया?
5 जहाँ एक तरफ इसराएल और सीरिया के राजा यहूदा राष्ट्र पर कब्ज़ा करने की साज़िश रच रहे थे, वहीं दूसरी तरफ अश्शूर राष्ट्र भी यहूदा पर फतह हासिल करने की योजना बना रहा था। अश्शूर एक उपद्रवी राष्ट्र था जो विश्व शक्ति के तौर पर उभर रहा था। यशायाह 8:3, 4 के मुताबिक, अश्शूर राष्ट्र यहूदा पर हमला करने से पहले, सीरिया और इसराएल पर कब्ज़ा करता। यहूदा के राजा, आहाज़ को यशायाह के ज़रिए मिले परमेश्वर के वचन पर भरोसा करना चाहिए था। इसके बजाए, उसने अश्शूरियों के साथ मिलकर एक संधि की, जो बहुत बड़ी मूर्खता थी। नतीजा, आगे चलकर अश्शूरी यहूदा पर हुकूमत करने लगे और लोगों पर ज़ुल्म ढाने लगे। (2 राजा 16:7-10) यहूदा के लोगों का अगुवा, या चरवाहा होने के नाते, आहाज़ को अपने लोगों की हिफाज़त करनी चाहिए थी। लेकिन कितने दुख की बात है कि वह ऐसा करने से चूक गया। हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘जब मुझे ज़रूरी फैसले लेने होते हैं, तो क्या मैं परमेश्वर पर भरोसा रखता हूँ या इंसानों पर?’—नीति. 3:5, 6.
एक नया चरवाहा अलग रवैया दिखाता है
6. हिज़किय्याह कैसे आहाज़ से अलग था?
6 ईसा पूर्व 746 में आहाज़ की मौत हो गयी और उसकी जगह उसका बेटा हिज़किय्याह राजा बन गया। उस वक्त तक यहूदा में गरीबी फैल गयी थी और लोगों ने यहोवा की उपासना करना छोड़ दिया था। राजा बनने के बाद जवान हिज़किय्याह सबसे पहले क्या करता? क्या वह यहूदा की आर्थिक व्यवस्था सुधारने की कोशिश करता? नहीं। हिज़किय्याह यहोवा से बेहद प्यार करता था और वह इस राष्ट्र के लोगों का एक अच्छा चरवाहा था। जो सबसे पहला कदम उसने उठाया, वह था दोबारा यहोवा की उपासना करने में लोगों की मदद करना। हिज़किय्याह जानता था कि उसके लिए परमेश्वर की क्या मरज़ी है, इसलिए उसने सही कदम उठाने में ज़रा भी देर नहीं की। वह हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है!—2 इति. 29:1-19.
7. लेवियों को नए राजा के साथ की ज़रूरत क्यों थी?
7 लेवियों को एक गंभीर ज़िम्मेदारी दी गयी थी कि वे यहोवा की उपासना करने में लोगों की मदद करें। इसलिए हिज़किय्याह ने लेवियों के साथ एक सभा रखी और उनसे वादा किया कि इस काम में वह उनका साथ देगा। कल्पना कीजिए कि उस सभा में जब वफादार लेवियों ने राजा को यह कहते सुना होगा कि ‘यहोवा ने अपने सम्मुख खड़े रहने, और अपनी सेवा टहल करने के लिये तुम्हीं को चुन लिया है,’ तो वे कैसे खुशी से रो पड़े होंगे! (2 इति. 29:11) लेवियों को साफ शब्दों में यह आज्ञा मिली कि वे सच्चे परमेश्वर की उपासना करने में लोगों की मदद करें।
8. (क) लोगों को दोबारा यहोवा की उपासना करने में मदद देने के लिए हिज़किय्याह ने और क्या कदम उठाए? (ख) इसका क्या नतीजा हुआ?
8 हिज़किय्याह ने यहूदा और इसराएल में रहनेवाले सभी लोगों को एक शानदार फसह का त्योहार मनाने का न्यौता दिया। इसके बाद सात दिन के लिए बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार मनाया गया। लोगों को यह त्योहार इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे और सात दिन मनाया। बाइबल बताती है: “यरूशलेम में बड़ा आनन्द हुआ, क्योंकि दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान के दिनों से ऐसी बात यरूशलेम में न हुई थी।” (2 इति. 30:25, 26) इस त्योहार से बेशक सभी लोगों का हौसला बहुत बढ़ा होगा। हम 2 इतिहास 31:1 में पढ़ते हैं, ‘जब यह सब हो चुका, तब उन सभों ने अशेरों को काट डाला, और ऊंचे स्थानों और वेदियों को गिरा दिया।’ जी हाँ, यहूदा के लोग यहोवा के पास लौट आए थे। इससे उन्हें आगे आनेवाली मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार रहने में मदद मिली।
राजा यहोवा पर भरोसा करता है
9. (क) इसराएल की योजना किस तरह विफल हो गयी? (ख) शुरूआत में सन्हेरीब को यहूदा में क्या कामयाबी मिली?
9 जैसे यशायाह ने भविष्यवाणी की थी, अश्शूरियों ने इसराएल राष्ट्र पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें बंदी बनाकर ले गए। इससे इसराएल की यह योजना वहीं दफन हो गयी कि वह यहूदा के लिए ऐसा राजा चुनेगा, जो दाविद के वंश से न हो। और अश्शूरियों की योजना का क्या हुआ? अब उनका अगला निशाना यहूदा राष्ट्र था। बाइबल कहती है: “हिजकिय्याह राजा के चौदहवें वर्ष में अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरों पर चढ़ाई करके उनको ले लिया।” सन्हेरीब ने यहूदा के 46 शहरों पर कब्ज़ा कर लिया। ज़रा सोचिए, अगर आप उस वक्त यरूशलेम में रह रहे होते, तो आपको कैसा लगता। अश्शूरी सेना एक-के-बाद-एक यहूदा के शहरों पर अपना कब्ज़ा जमा रही थी और जल्द ही यरूशलेम तक पहुँचनेवाली थी।—2 राजा 18:13.
10. मीका 5:5, 6 से हिज़किय्याह का हौसला क्यों बढ़ा होगा?
10 बेशक हिज़किय्याह जानता था कि यरूशलेम पर खतरा मँडरा रहा है। लेकिन उसने घबराकर यहोवा की उपासना न करनेवाले किसी राष्ट्र से मदद नहीं माँगी, जैसे उसके पिता आहाज़ ने किया था जो यहोवा का वफादार न रहा। इसके बजाय, हिज़किय्याह ने यहोवा पर भरोसा रखा। (2 इति. 28:20, 21) शायद वह भविष्यवक्ता मीका के शब्दों से वाकिफ रहा होगा, जिसने अश्शूर के बारे में लिखा था: ‘जब अश्शूरी चढ़ाई करें, तब हम उनके विरुद्ध सात चरवाहे वरन आठ प्रधान मनुष्य खड़े करेंगे। और वे अश्शूर के देश को तलवार चलाकर मार लेंगे।’ (मीका 5:5, 6) इन शब्दों से ज़रूर हिज़किय्याह का हौसला बढ़ा होगा, क्योंकि ये शब्द दिखाते हैं कि अश्शूर के खिलाफ एक बहुत ही अनोखी सेना खड़ी होगी और उन दुश्मनों को आखिरकार हरा दिया जाएगा।
11. सात चरवाहों और आठ प्रधानों के बारे में की गयी भविष्यवाणी की सबसे अहम पूर्ति कब होगी?
11 सात चरवाहों और आठ प्रधानों (या “राजकुमार,” द न्यू इंग्लिश बाइबल) के बारे में की गयी भविष्यवाणी की सबसे अहम पूर्ति, यीशु के पैदा होने के कई सालों बाद होती, जिसके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी कि वह “इस्राएलियों में प्रभुता करनेवाला होगा; और उसका निकलना प्राचीनकाल से . . . होता आया है।” (मीका 5:1, 2 पढ़िए।) दरअसल यह भविष्यवाणी उस वक्त पूरी होगी जब आज के ज़माने का “अश्शूरी” यहोवा के सेवकों का वजूद पूरी तरह से मिटाने के लिए उन पर हमला करेगा। इस खूँखार दुश्मन से लड़ने के लिए यहोवा अपने बेटे के कमान के अधीन, किस सेना का इस्तेमाल करेगा? इस सवाल का जवाब हम आगे देखेंगे। मगर पहले आइए देखें कि अश्शूरियों के हमला करने पर हिज़किय्याह ने जो कदम उठाए, उससे हम क्या सीख सकते हैं।
हिज़किय्याह कारगर कदम उठाता है
12. हिज़किय्याह और उसका साथ देनेवालों ने परमेश्वर के लोगों की हिफाज़त करने के लिए क्या किया?
12 जब हमें लगता है कि हम किसी समस्या को नहीं सुलझा सकते, तो यहोवा हमें ज़रूरी मदद देने के लिए हमेशा तैयार रहता है। लेकिन वह यह भी चाहता है कि उस समस्या को सुलझाने के लिए हम अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश करें। हिज़किय्याह जो कर सकता था, उसने किया। बाइबल कहती है कि उसने “अपने हाकिमों और वीरों के साथ” सलाह-मशविरा किया और साथ मिलकर उन्होंने फैसला किया कि वे “नगर के बाहर के सोतों को [“रोक,” हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन] दें; . . . फिर हिजकिय्याह ने हियाव बान्धकर शहरपनाह जहां कहीं टूटी थी, वहां वहां उसको बनवाया, और उसे गुम्मटों के बराबर ऊंचा किया और बाहर एक और शहरपनाह बनवाई, . . . और बहुत से तीर और ढालें भी बनवाईं।” (2 इति. 32:3-5) उस वक्त, अपने लोगों की हिफाज़त और चरवाहों की तरह देखभाल करने के लिए यहोवा ने हिज़किय्याह, उसके हाकिमों, यानी राजकुमारों और वफादार नबियों जैसे शूरवीरों का इस्तेमाल किया।
13. (क) हिज़किय्याह ने कौन-सा सबसे ज़रूरी कदम उठाया ताकि लोग अश्शूर के हमले के लिए तैयार हो सकें? (ख) हिज़किय्याह के शब्दों से लोगों को कैसे मदद मिली?
13 इसके बाद हिज़किय्याह ने जो कदम उठाया वह सोतों के पानी को रोकने या शहरपनाह को और मज़बूत करने से कहीं ज़्यादा अहमियत रखता था। हिज़किय्याह अपने लोगों की परवाह करनेवाला चरवाहा था, इसलिए उसने उन्हें इकट्ठा किया और यह कहकर उनका हौसला बढ़ाया: “तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो . . . और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साथ है, वह उसके संगियों से बड़ा है। अर्थात् उसका सहारा तो मनुष्य ही है; परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है।” यह सुनकर उनका विश्वास कितना बढ़ा होगा कि यहोवा अपने लोगों की तरफ से लड़ेगा! इसका नतीजा क्या हुआ? “यहूदा के राजा हिजकिय्याह [“के शब्दों से लोगों को आत्मबल मिला,” वाल्द-बुल्के अनुवाद]।” ध्यान दीजिए कि हिज़किय्याह “के शब्दों से” लोगों को हिम्मत मिली और उनका हौसला बढ़ा। हिज़किय्याह, उसके राजकुमार और शूरवीर, साथ ही भविष्यवक्ता मीका और यशायाह असरदार चरवाहे साबित हुए, ठीक जैसे यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता के ज़रिए पहले से बताया था।—2 इति. 32:7, 8; मीका 5:5, 6 पढ़िए।
14. (क) रबशाके ने क्या कहा? (ख) लोगों ने इस पर कैसा रवैया दिखाया?
14 अश्शूर के राजा ने यरूशलेम के दक्षिण-पश्चिमी इलाके के लाकीश शहर में डेरा डाला। वहाँ से उसने तीन राजदूतों को यरूशलेम भेजा ताकि वे जाकर लोगों से कहें कि वे हार मान लें। उन तीनों में से सबसे खास राजदूत, रबशाके ने कई तरह के पैंतरे अपनाए। उसने यरूशलेम के लोगों से उनकी अपनी भाषा, इब्रानी में बात की। सबसे पहले तो उसने लोगों को मनाने की कोशिश की कि वे हिज़किय्याह की बात न सुनें, बल्कि अश्शूरियों की बात मानें। फिर उसने उन्हें एक ऐसे देश में ले जाने का झूठा वादा किया, जहाँ वे आराम की ज़िंदगी बिता सकेंगे। (2 राजा 18:31, 32 पढ़िए।) रबशाके ने उनसे यह भी कहा कि ठीक जैसे दूसरे राष्ट्रों के ईश्वर अपने उपासकों को नहीं बचा पाए थे, उसी तरह यहोवा भी यहूदियों को अश्शूरियों के हाथों से नहीं बचा पाएगा। लेकिन लोगों ने बुद्धिमानी से काम लिया और इन राजदूतों की झूठी बातों और झूठे इलज़ामों पर कोई ध्यान नहीं दिया। आज हमारे दिनों में भी, यहोवा के उपासक इसी तरह बुद्धिमानी से पेश आते हैं।—2 राजा 18:35, 36 पढ़िए।
15. (क) यरूशलेम के लोगों को क्या करना था? (ख) यहोवा ने उस शहर को कैसे बचाया?
15 लाज़िमी है कि हिज़किय्याह बहुत परेशान था। लेकिन किसी दूसरे देश से मदद माँगने के बजाय, उसने भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए यहोवा से मदद की गुहार लगायी। यशायाह ने हिज़किय्याह से कहा: “वह [सन्हेरीब] इस नगर में प्रवेश करने, वरन इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा।” (2 राजा 19:32) यरूशलेम के लोगों को बस डटे रहना था और हिम्मत नहीं हारनी थी। यहोवा उनकी तरफ से लड़ता। और ठीक ऐसा ही हुआ! “उसी रात में क्या हुआ, कि यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियों की छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरुषों को मारा।” (2 राजा 19:35) जी हाँ, यरूशलेम के लोगों की जान बच गयी, मगर इसलिए नहीं कि हिज़किय्याह ने उस शहर को मज़बूत करने के लिए कदम उठाए थे, बल्कि इसलिए कि यहोवा ने अपनी शक्ति से उन्हें बचाया था।
आज हमारे लिए सबक
16. आज ये किन्हें दर्शाते हैं: (क) यरूशलेम के रहनेवाले? (ख) “अश्शूरी”? (ग) सात चरवाहे और आठ प्रधान?
16 सात चरवाहों और आठ प्रधानों के बारे में की गयी भविष्यवाणी की सबसे अहम पूर्ति आज हमारे समय में हो रही है। पुराने ज़माने में अश्शूरियों ने यरूशलेम के रहनेवालों पर हमला किया था। उसी तरह बहुत जल्द, आज के ज़माने का “अश्शूरी,” बेबस और लाचार नज़र आनेवाले यहोवा के लोगों पर हमला करेगा, ताकि उन्हें पूरी तरह मिटा दे। बाइबल उस हमले के अलावा, “मागोग देश के गोग” के हमले, ‘उत्तर देश के राजा’ के हमले, और “धरती के राजाओं” के हमले का भी ज़िक्र करती है। (यहे. 38:2, 10-13; दानि. 11:40, 44, 45; प्रका. 17:14; 19:19) क्या ये हमले एक-दूसरे से अलग हैं? ज़रूरी नहीं। हो सकता है एक ही हमले को बताने के लिए बाइबल में अलग-अलग नाम दिए गए हों। मीका की भविष्यवाणी के मुताबिक, यहोवा इस बेरहम दुश्मन “अश्शूरी” के खिलाफ लड़ने के लिए किस सेना का इस्तेमाल करेगा? एक बहुत ही अनोखी सेना का, यानी ‘सात चरवाहों वरन आठ प्रधानों,’ या राजकुमारों का! (मीका 5:5) ये कौन हैं? ये कोई और नहीं, बल्कि मंडली के प्राचीन हैं। (1 पत. 5:2) यहोवा ने आज बड़ी तादाद में वफादार प्राचीनों को ठहराया है, ताकि वे उसकी अनमोल भेड़ों की देखभाल कर सकें और उन्हें भविष्य में होनेवाले “अश्शूरी” के हमले के लिए तैयार कर सकें। * उनके बारे में मीका की भविष्यवाणी कहती है कि वे “अश्शूर के देश को . . . तलवार चलाकर मार लेंगे।” (मीका 5:6) जी हाँ, दुश्मन को हराने के लिए वे जिन ‘युद्ध के हथियारों’ का इस्तेमाल करेंगे, उनमें से एक है “पवित्र शक्ति की तलवार,” यानी परमेश्वर का वचन।—2 कुरिं. 10:4; इफि. 6:17.
17. जिस ब्यौरे पर अभी हमने गौर किया, उससे प्राचीन कौन-से चार सबक सीख सकते हैं?
17 आप प्राचीन, जो यह लेख पढ़ रहे हैं, इस ब्यौरे से, जिस पर अभी हमने गौर किया, कुछ ज़रूरी सबक सीख सकते हैं: (1) भविष्य में होनेवाले “अश्शूरी” के हमले के लिए खुद को तैयार करने का सबसे ज़रूरी कदम जो आप उठा सकते हैं, वह है परमेश्वर पर अपना विश्वास मज़बूत करना और अपने भाइयों को भी ऐसा करने में मदद देना। (2) जब “अश्शूरी” हमला करेगा, तब आपको इस बात पर पूरा यकीन होना चाहिए कि यहोवा हमें बचाएगा। (3) उस समय, यहोवा के संगठन से आपको जो निर्देश मिलेंगे, वे शायद आपको अजीब लगें या उतने कारगर न लगें। लेकिन हमें जो भी निर्देश मिलें, हमें उन्हें मानने के लिए तैयार रहना चाहिए, फिर चाहे हम उनसे राज़ी हों या न हों, क्योंकि उन्हें मानने से हमारी जान बच सकती है। (4) अगर कोई इस दुनिया की शिक्षा, धन-दौलत या इंसानी संगठनों पर भरोसा कर रहे हैं, तो अभी वक्त है कि वे अपने सोचने के तरीके में बदलाव करें। आपको ऐसे लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जिन्हें यहोवा पर पूरा भरोसा नहीं है।
18. इस वाकए पर मनन करने से हमें भविष्य में कैसे मदद मिल सकती है?
18 एक समय आएगा जब परमेश्वर के सेवक बेबस और लाचार नज़र आएँगे, ठीक जैसे हिज़किय्याह के दिनों में यरूशलेम में रहनेवाले यहूदी नज़र आ रहे थे। जब ऐसा होगा तब हम हिज़किय्याह के शब्दों से हिम्मत पा सकेंगे। आइए हम याद रखें कि हमारे दुश्मनों का “सहारा तो मनुष्य ही है; परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है”!—2 इति. 32:8.
^ यशायाह 7:14 में जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “कुमारी” किया गया है, वह शब्द कुँवारी या शादीशुदा स्त्री दोनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए वह शब्द यशायाह की पत्नी और यहूदी कुँवारी मरियम दोनों पर लागू किया जा सकता है।
^ बाइबल में संख्या सात कई बार पूर्णता को दर्शाने के लिए इस्तेमाल की गयी है। संख्या आठ (सात से एक ज़्यादा) कभी-कभी बड़ी तादाद को दर्शाती है।