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‘उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ खो बैठने’ से दूर रहिए!

‘उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ खो बैठने’ से दूर रहिए!

‘भाइयो, हम तुमसे यह गुज़ारिश करते हैं कि उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ न खो बैठना।’—2 थिस्स. 2:1, 2.

1, 2. (क) छल-कपट की खबरें इतनी आम क्यों हो गयी हैं? (ख) आज हम किस तरह छल-कपट होते देखते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

 आज दुनिया में आए दिन धोखाधड़ी, घोटाले और छल-कपट की खबरें सुनने को मिलती हैं। लेकिन इनसे हमें हैरान नहीं होना चाहिए, क्योंकि बाइबल साफ-साफ कहती है कि शैतान इब्‌लीस लोगों को धोखा देने में माहिर है और वह इस दुनिया पर राज कर रहा है। (1 तीमु. 2:14; 1 यूह. 5:19) जैसे-जैसे इस दुष्ट दुनिया का अंत करीब आ रहा है, शैतान का गुस्सा और भी बढ़ता जा रहा है क्योंकि उसका “बहुत कम वक्‍त” बाकी रह गया है। (प्रका. 12:12) इसलिए हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि जो लोग इब्‌लीस के झाँसे में आ गए हैं, वे और भी बढ़-चढ़कर बेईमानी करेंगे, खासकर उनके साथ जो सच्ची उपासना का साथ देते हैं।

2 कई बार मीडिया में यहोवा के सेवकों के बारे में और वे जो मानते हैं, उस बारे में आधी-अधूरी सच्चाई बतायी जाती है, यहाँ तक कि कभी-कभी तो उनके बारे में सरासर झूठ कहा जाता है। इस तरह की अफवाहें फैलाने के लिए मीडिया के लोग अखबार की सुर्खियों, टीवी और इंटरनेट का सहारा लेते हैं। नतीजा, कुछ लोग बिना जाँच-पड़ताल किए इन झूठी बातों को सच मान बैठते हैं और इस वजह से बहुत परेशान हो जाते हैं।

3. क्या बात हमारी मदद कर सकती है ताकि हम छलावे में न आएँ?

3 लेकिन हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हम शैतान के इस छलावे का सामना कर सकते हैं। हमारे पास परमेश्‍वर का वचन है, जो “टेढ़ी बातों को सीध में लाने . . . के लिए फायदेमंद है।” (2 तीमु. 3:16) प्रेषित पौलुस ने पहली सदी में थिस्सलुनीके की मंडली को जो बात लिखी, वह दिखाती है कि वहाँ के कुछ मसीही गुमराह हो गए थे। उसने उन्हें उकसाया कि वे ‘उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ न खो बैठें।’ (2 थिस्स. 2:1, 2) पौलुस की प्यार-भरी चेतावनी से हम कौन-से सबक सीख सकते हैं और हम कैसे उन बातों को लागू कर सकते हैं?

सही वक्‍त पर दी गयी चेतावनियाँ

4. (क) थिस्सलुनीके के मसीहियों को ‘यहोवा के दिन’ के आने के बारे में किस तरह चेतावनी दी गयी थी? (ख) आज हमें यह चेतावनी कैसे दी जा रही है?

4 थिस्सलुनीके की मंडली को लिखे अपने पहले खत में पौलुस ने भाइयों को ‘यहोवा के दिन’ के आने के बारे में चेतावनी दी थी। वह नहीं चाहता था कि वहाँ के मसीही अंधकार में रहें। इसके बजाए, वह चाहता था कि वे यहोवा के दिन के लिए हमेशा तैयार रहें। इसलिए उसने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे ‘रौशनी के बेटों’ के नाते “जागते रहें और होश-हवास बनाए रखें।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:1-6 पढ़िए।) हम आज महानगरी बैबिलोन, यानी दुनिया-भर में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म के विनाश का इंतज़ार कर रहे हैं। इस घटना से यहोवा के महान दिन की शुरूआत होगी। हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा के मकसद के पूरा होने के बारे में हमें बेहतर समझ मिली है। इसके अलावा, मंडली की सभाओं में हमें सही वक्‍त पर ऐसी हिदायतें दी जाती हैं, जिनकी मदद से हम अपने होश-हवास बनाए रख पाते हैं। अगर हम लगातार मिलनेवाली इन चेतावनियों पर ध्यान दें, तो “अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करते हुए पवित्र सेवा” करने का हमारा इरादा और भी पक्का हो सकता है।—रोमि. 12:1.

पौलुस के लिखे खतों में मसीहियों को सही वक्‍त पर चेतावनियाँ दी गयी थीं (पैराग्राफ 4, 5 देखिए)

5, 6. (क) थिस्सलुनीकियों को भेजे अपने दूसरे खत में पौलुस ने किस बारे में लिखा? (ख) परमेश्‍वर के ज़रिए ठहराए गए वक्‍त पर यीशु क्या करेगा? (ग) हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?

5 थिस्सलुनीके में रहनेवाले मसीहियों को पहला खत भेजने के जल्द बाद, पौलुस ने उन्हें दूसरा खत भेजा। इसमें पौलुस ने आनेवाले क्लेश की तरफ उनका ध्यान खींचा, जब प्रभु यीशु परमेश्‍वर की तरफ से उन सभी का न्याय करेगा “जो परमेश्‍वर को नहीं जानते और . . . खुशखबरी को नहीं मानते।” (2 थिस्स. 1:6-8) अध्याय 2 में पौलुस बताता है कि उस मंडली के कुछ लोग यहोवा के दिन के बारे में सोचकर इतना “घबरा” गए थे कि उन्हें लगा कि यहोवा का दिन बस आने ही वाला है। (2 थिस्सलुनीकियों 2:1, 2 पढ़िए।) पहली सदी में रहनेवाले उन मसीहियों को यहोवा के मकसद के पूरा होने के बारे में बहुत कम समझ थी। बाद में, पौलुस ने भी इस बात को माना, जब उसने भविष्यवाणी के बारे में लिखा: “हमारा ज्ञान अधूरा है और हम अधूरी भविष्यवाणी करते हैं। लेकिन जब वह आएगा जो पूरा है, तो जो अधूरा है वह मिट जाएगा।” (1 कुरिं. 13:9, 10) मगर यहोवा ने पौलुस, प्रेषित पतरस और उस समय के दूसरे वफादार अभिषिक्‍त भाइयों के ज़रिए जो चेतावनियाँ दर्ज़ करवायी थीं, उन पर ध्यान देने से वे मसीही अपना विश्‍वास बरकरार रख सकते थे।

6 उनकी सोच सुधारने के लिए, पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा कि यहोवा का दिन आने से पहले बड़े पैमाने पर परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत होगी और “दुराचारी पुरुष” आएगा। * उसके बाद, परमेश्‍वर के ज़रिए ठहराए गए वक्‍त पर प्रभु यीशु “दुराचारी पुरुष” और उसके छलावे में आनेवाले सभी लोगों को “भस्म कर देगा।” प्रेषित पौलुस ने उन पर आनेवाले इस न्याय की वजह बतायी, वह यह कि “उन्होंने सच्चाई से प्यार नहीं किया।” (2 थिस्स. 2:3, 8-10) हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘मैं सच्चाई से कितना प्यार करता हूँ? क्या मैं इस पत्रिका का और दूसरे साहित्यों का अध्ययन करता हूँ, जिनका इंतज़ाम दुनिया-भर में परमेश्‍वर के लोगों के लिए किया जाता है, ताकि मैं बाइबल की शिक्षाओं के बारे में ताज़ा-तरीन जानकारी से वाकिफ हो सकूँ?’

सोच-समझकर मेल-जोल कीजिए

7, 8. (क) शुरूआती मसीहियों को किन खतरों से बचना था? (ख) आज सच्चे मसीहियों के आगे कौन-सा सबसे बड़ा खतरा है?

7 ज़ाहिर है, मसीही सच्ची उपासना के खिलाफ बगावत करनेवालों की शिक्षाओं के अलावा और भी कई खतरों का सामना करते। जैसे, पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा कि “पैसे का प्यार तरह-तरह की बुराइयों की जड़ है।” उसने कहा कि “इसमें पड़कर कुछ लोग विश्‍वास से भटक गए हैं और उन्होंने कई तरह की दुःख-तकलीफों से खुद को छलनी कर लिया है।” (1 तीमु. 6:10) इसके अलावा, “शरीर के काम” भी मसीहियों के लिए लगातार खतरे पैदा करते।—गला. 5:19-21.

8 लेकिन आप समझ सकते हैं कि क्यों पौलुस ने थिस्सलुनीके के मसीहियों को खासकर उन लोगों से सावधान रहने के बारे में और भी कड़ी चेतावनी दी, जिन्हें उसने “झूठे प्रेषित” कहा। वह इसलिए क्योंकि इनमें से कुछ लोगों ने “चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें” कही थीं। (2 कुरिं. 11:4, 13; प्रेषि. 20:30) आगे चलकर, यीशु ने इफिसुस की मंडली की तारीफ की, क्योंकि उन्होंने मंडली में “बुरे लोगों को बरदाश्‍त नहीं” किया। इफिसुस के मसीहियों ने उन लोगों की “जाँच-परख” की थी और पाया था कि वे दरअसल झूठे प्रेषित और दगाबाज़ हैं। (प्रका. 2:2) दिलचस्पी की बात है कि थिस्सलुनीके की मंडली को लिखे अपने दूसरे खत में पौलुस ने उन्हें यह सलाह दी: “भाइयो, हम प्रभु यीशु मसीह के नाम से तुम्हें आदेश देते हैं कि ऐसे किसी भी भाई से दूर हो जाओ और उससे कोई मेल-जोल न रखो जो कायदे से नहीं चलता।” इसके बाद उसने खासकर ऐसे मसीहियों का ज़िक्र किया जो ‘काम नहीं करना चाहते।’ (2 थिस्स. 3:6, 10) थिस्सलुनीके के भाइयों को कायदे से न चलनेवाले आलसी और कामचोर लोगों से दूर रहना था। अगर ऐसा है, तो फिर ज़रा सोचिए, उनके लिए ऐसे लोगों से दूर रहना और भी कितना ज़रूरी था, जो परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की तरफ रुख कर रहे थे! जी हाँ, उस वक्‍त खासकर ऐसे लोगों के साथ गहरा मेल-जोल रखना खतरनाक साबित हो सकता था और मसीहियों को उनसे दूर रहना था। आज भी यह बात सौ फीसदी सच है।—नीति. 13:20.

9. अगर कोई अटकलें लगाने लगे या फिर दूसरों की नुकताचीनी करने लगे, तो हमें क्यों सावधान हो जाना चाहिए?

9 हम महा-संकट के बहुत करीब पहुँच रहे हैं। साथ ही, इस दुष्ट दुनिया की व्यवस्था का अंत भी बहुत नज़दीक है। इसलिए यहोवा की तरफ से पहली सदी में दी गयी चेतावनियाँ आज हमारे लिए और भी ज़्यादा अहमियत रखती हैं। हम यहोवा की महा-कृपा का ‘मकसद भूलकर’ हमेशा की ज़िंदगी नहीं खोना चाहते, फिर चाहे वह स्वर्ग में हो या धरती पर। (2 कुरिं. 6:1) अगर हमारी मंडली की सभाओं में आनेवाला कोई व्यक्‍ति हमें ऐसी बातों के बारे में अटकलें लगाने के लिए लुभाता है, जिनके बारे में बाइबल में साफ-साफ नहीं समझाया गया है या फिर प्राचीनों और मंडली के दूसरे सदस्यों की नुकताचीनी करने के लिए उकसाता है, तो हमें सावधान हो जाना चाहिए।—2 थिस्स. 3:13-15.

‘उन बातों को थामे रहो’

10. थिस्सलुनीके के मसीहियों को किन बातों को मानने का बढ़ावा दिया गया था?

10 पौलुस ने थिस्सलुनीके के भाइयों को बढ़ावा दिया कि वे ‘मज़बूत खड़े रहें’ और जो बातें उन्होंने सीखी थीं, उन्हीं के मुताबिक चलते रहें। (2 थिस्सलुनीकियों 2:15 पढ़िए।) वे “बातें” क्या थीं, जो उन्हें सिखायी गयी थीं? यहाँ पौलुस उन शिक्षाओं की बात नहीं कर रहा था, जो झूठे धर्म सिखाते हैं। इसके बजाए, वह यीशु की शिक्षाओं और उन शिक्षाओं के बारे में बात कर रहा था जिन्हें परमेश्‍वर ने पौलुस और दूसरों को लिखने के लिए प्रेरित किया था। पौलुस ने कुरिंथ के भाइयों की तारीफ की, क्योंकि जैसे उसने लिखा, “तुम सब बातों में मुझे ध्यान में रखते हो और जैसी हिदायतें मैंने तुम्हें सौंपी थीं, उन्हें तुम उसी तरह मज़बूती से थामे रहते हो।” (1 कुरिं. 11:2) ये शिक्षाएँ यहोवा और उसके बेटे, यीशु की तरफ से थीं, इसलिए इन पर भरोसा किया जा सकता था।

11. जब लोग दूसरों के छलावे में आ जाते हैं, तो इसका उन पर क्या असर हो सकता है?

11 इब्रानियों को लिखे अपने खत में पौलुस ने कहा कि एक मसीही विश्‍वास से भटक सकता है और यहोवा का वफादार बने रहने से चूक सकता है। (इब्रानियों 2:1; 3:12 पढ़िए।) उसने खत में ‘दूर जाने’ के बारे में दो बार ज़िक्र किया। एक कश्‍ती दो तरीकों से किनारे से दूर जा सकती है। एक है धीरे-धीरे। ऐसे में जब वह किनारे से दूर जाने लगती है, तो शुरू-शुरू में इसका पता नहीं चलता। मगर कुछ समय बाद देखने पर पता चलता है कि वह काफी दूर निकल चुकी है। दूसरी तरफ, एक व्यक्‍ति खुद अपने हाथों से कश्‍ती को धकेलकर किनारे से दूर कर सकता है। उसी तरह एक मसीही या तो धीरे-धीरे यहोवा से दूर जा सकता है या फिर खुद ही यहोवा से दूर जाने का चुनाव कर सकता है। ये बात दिखाती है कि अगर एक शख्स किसी के छलावे में आ जाए, तो उसके साथ ये दो चीज़ें हो सकती हैं और सच्चाई पर उसका यकीन कम हो सकता है।

12. कौन-से काम यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते को खतरे में डाल सकते हैं?

12 थिस्सलुनीके के कुछ मसीहियों के साथ भी शायद ऐसा ही हुआ था। क्या आज हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है? बेशक। बहुत-से काम आज हमारा समय ज़ाया कर सकते हैं। ज़रा सोचिए, सोशल नेटवर्क साइट का इस्तेमाल करने में, ई-मेल पढ़ने और उनका जवाब देने में, अपने शौक पूरे करने में, या फिर हर वक्‍त खेल की दुनिया की ताज़ा खबरें सुनने में कितने घंटे बरबाद हो जाते हैं। इनमें से कोई भी काम एक मसीही का ध्यान भटका सकता है और यहोवा की सेवा में उसका जोश कम कर सकता है। नतीजा? वह शायद दिल से प्रार्थना करना छोड़ दे, मसीही सभाओं में जाना कम कर दे, साथ ही परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और खुशखबरी का प्रचार करने में भी कम समय बिताने लगे। तो फिर, हम क्या कर सकते हैं, ताकि हम उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ न खो बैठें?

कुछ बातें जो समझ-बूझ खो बैठने से हमारी हिफाज़त कर सकती हैं

13. (क) जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, आज कई लोगों का रवैया कैसा है? (ख) हम अपने विश्‍वास की हिफाज़त कैसे कर सकते हैं?

13 हमें हमेशा इस बात का एहसास होना चाहिए कि समय की धारा में हम कहाँ पर हैं। साथ ही, हमें यह भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे लोगों के साथ वक्‍त बिताना हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है, जो इस बात को कबूल नहीं करते कि हम “आखिरी दिनों में” जी रहे हैं। प्रेषित पतरस ने लिखा कि हमारे दिनों में “खिल्ली उड़ानेवाले आएँगे और अपनी बातों से खिल्ली उड़ाएँगे। ये अपनी ही ख्वाहिश के मुताबिक ऐसा करेंगे, और यह कहेंगे: ‘उसने वादा किया था कि वह मौजूद होगा, मगर वह कहाँ है? जब से हमारे बाप-दादा मौत की नींद सो गए हैं, तब से सबकुछ बिलकुल वैसा ही चल रहा है, जैसा सृष्टि की शुरूआत से था।’ ” (2 पत. 3:3, 4) परमेश्‍वर का वचन हर दिन पढ़ने और बिना नागा गहरा अध्ययन करने से हमें वक्‍त की नज़ाकत को समझने में मदद मिलेगी और हमें यह एहसास रहेगा कि हम “आखिरी दिनों में” जी रहे हैं। बाइबल में सच्ची उपासना के खिलाफ बगावत की जो भविष्यवाणी की गयी थी, वह बहुत समय पहले शुरू हो चुकी थी और आज भी जारी है। “दुराचारी पुरुष” आज भी वजूद में है और परमेश्‍वर के सेवकों का विरोध कर रहा है। इन सभी कारणों की वजह से हमें यहोवा के दिन को नज़दीक आता देखकर और भी सतर्क रहने की ज़रूरत है।—सप. 1:7.

अच्छी तैयारी करने और प्रचार काम में हिस्सा लेने से हम उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ खो बैठने से दूर रह सकते हैं (पैराग्राफ 14, 15 देखिए)

14. यहोवा की सेवा में व्यस्त रहने से कैसे हमारी हिफाज़त होती है?

14 बहुत से लोगों का तजुरबा कहता है कि सतर्क रहने और अपनी समझ-बूझ न खो बैठने का एक अहम तरीका है, राज की खुशखबरी का नियमित तौर पर प्रचार करना। इसलिए जब मंडली के मुखिया, मसीह यीशु ने अपने चेलों को यह आज्ञा दी थी कि वे सब राष्ट्रों के लोगों को चेला बनाएँ और उन्हें वे सब बातें मानना सिखाएँ, जो उसने उन्हें सिखायी थीं, तो वह दरअसल उन्हें ऐसी सलाह दे रहा था जिससे उनकी हिफाज़त होती। (मत्ती 28:19, 20) इस आज्ञा को मानने के लिए हमें प्रचार में जोशीले होने की ज़रूरत है। क्या आपको लगता है कि थिस्सलुनीके के भाई बस नाम के लिए प्रचार और सिखाने का काम करने में ही संतुष्ट थे, मानो वे बस एक फर्ज़ निभा रहे हों? याद कीजिए कि पौलुस ने उन्हें क्या लिखा था: “पवित्र शक्‍ति के ज़बरदस्त असर में रुकावट न डालो। भविष्यवाणियों के वचनों को तुच्छ न समझो।” (1 थिस्स. 5:19, 20) जिन भविष्यवाणियों का हम अध्ययन करते हैं और दूसरों को बताते हैं, वे वाकई रोमांचक हैं!

15. हम पारिवारिक उपासना के दौरान किन बातों पर चर्चा कर सकते हैं?

15 हम सभी अपने परिवारवालों को प्रचार काम में अपनी काबिलीयतें बढ़ाने में मदद देना चाहते हैं। बहुत से भाई-बहनों ने पाया है कि ऐसा करने का एक तरीका है, अपनी पारिवारिक उपासना में कुछ वक्‍त प्रचार काम की तैयारी करने के लिए निकालना। आप चाहें तो वापसी भेंट करने की तैयारी कर सकते हैं। जैसे आप चर्चा कर सकते हैं कि वापसी भेंट करते वक्‍त परिवार के सदस्य किस बारे में बात करेंगे? वे ऐसा क्या कह सकते हैं जिससे घर-मालिक और भी जानने की इच्छा रखे? वापसी भेंट करने के लिए कौन-सा समय सबसे अच्छा रहेगा? बहुत से लोग पारिवारिक उपासना का कुछ वक्‍त सभाओं की तैयारी करने में भी लगाते हैं, ताकि वे सभाओं में चर्चा किए जानेवाले विषयों से वाकिफ हो सकें। क्या आप सभाओं में हिस्सा लेने के लिए और ज़्यादा तैयारी कर सकते हैं? सभाओं में जवाब देने से आपका विश्‍वास मज़बूत होगा और इससे आपको मदद मिलेगी कि आप अपनी समझ-बूझ न खो बैठें। (भज. 35:18) जी हाँ, पारिवारिक उपासना हमारी हिफाज़त करेगी कि हम उन बातों के बारे में अटकलें न लगाएँ, न ही शक करें, जो यहोवा अपने संगठन के ज़रिए हमें बताता है या जिनके बारे में बाइबल साफ-साफ नहीं समझाती।

16. अभिषिक्‍त मसीहियों के पास समझ-बूझ से काम लेने की क्या वजह है?

16 सालों के दौरान यहोवा ने लगातार बाइबल की भविष्यवाणी की बेहतर समझ देकर अपने लोगों पर बरकत दी है। जब हम इन भविष्यवाणियों पर मनन करते हैं, तो हमारा भरोसा क्या ही बढ़ता है कि भविष्य में हमें शानदार आशीषें ज़रूर मिलेंगी! अभिषिक्‍त जनों को स्वर्ग में मसीह के साथ जीने की आशा है। वाकई, उनके पास समझ-बूझ से काम लेने की क्या ही बढ़िया वजह है! पौलुस ने थिस्सलुनीके के भाइयों को जो लिखा था, वह आज अभिषिक्‍त जनों पर लागू होता है: “भाइयो, तुम जो यहोवा के प्यारे हो, तुम्हारे लिए हमेशा परमेश्‍वर का धन्यवाद करना हमारा फर्ज़ बनता है, क्योंकि परमेश्‍वर ने . . . अपनी पवित्र शक्‍ति से तुम्हें शुद्ध करने के ज़रिए और सच्चाई पर तुम्हारे विश्‍वास की वजह से तुम्हें . . . चुना है।”—2 थिस्स. 2:13.

17. दूसरा थिस्सलुनीकियों 3:1-5 में लिखे शब्दों से आपको क्या करने का हौसला मिलता है?

17 जिन्हें इस धरती पर हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा है, उन्हें भी अपनी समझ-बूझ न खो बैठने की भरसक कोशिश करनी चाहिए। अगर आप भी उनमें से एक हैं, तो पौलुस की उस प्यार-भरी सलाह को दिल में उतार लीजिए, जो उसने थिस्सलुनीके में रहनेवाले अपने अभिषिक्‍त भाई-बहनों को लिखी थी। (2 थिस्सलुनीकियों 3:1-5 पढ़िए।) हममें से हरेक को इन प्यार-भरे शब्दों के लिए दिल से कदरदानी दिखानी चाहिए। जी हाँ, थिस्सलुनीकियों को लिखी ये चिट्ठियाँ हमें चेतावनी देती हैं कि हम ऐसी बातों के बारे में अटकलें न लगाएँ, जो बाइबल में साफ-साफ नहीं बतायी गयी हैं। अंत के इतने करीब होने की वजह से हम इन चेतावनियों के लिए कितने शुक्रगुज़ार हैं!

^ जैसा कि हम प्रेषितों 20:29, 30 में पढ़ते हैं, पौलुस ने बताया कि मसीही मंडलियों के बीच से ही “ऐसे आदमी उठ खड़े होंगे जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।” इतिहास गवाह है कि समय के चलते, अगुवाई लेनेवालों और मंडली के दूसरे सदस्यों के बीच फर्क होने लगा। तीसरी सदी के आते-आते, यह साफ हो गया कि एक समूह के तौर पर ईसाईजगत के पादरी ही “दुराचारी पुरुष” हैं।—1 सितंबर, 1990 की प्रहरीदुर्ग के पेज 12-16 देखिए।