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‘वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरे’

‘वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरे’

“वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिये पर्ब्ब करके मानना।”—निर्ग. 12:14.

1, 2. सभी मसीहियों को कौन-से त्योहार के बारे में जानकारी लेनी चाहिए? और क्यों?

 जब आप हर साल मनाए जानेवाले किसी खास दिन के बारे में सोचते हैं, तो आपको फौरन कौन-सा दिन याद आता है? अगर आप शादीशुदा हैं, तो शायद आप कहें, “मेरी शादी की सालगिरह।” दूसरों को शायद इतिहास की कोई जानी-मानी घटना का खयाल आए, जैसे वह दिन जब उनका देश स्वतंत्र हुआ था। मगर क्या आप एक ऐसे राष्ट्रीय समारोह के बारे में जानते हैं, जो पिछले 3,500 से भी ज़्यादा सालों से हर साल मनाया जा रहा है?

2 इस समारोह को फसह कहा जाता है। यह समारोह इसराएलियों के मिस्र की गुलामी से आज़ाद किए जाने की याद में मनाया जाता है। लेकिन इस समारोह की आपके लिए भी बहुत अहमियत होनी चाहिए। क्यों? क्योंकि इस समारोह का ताल्लुक आपकी ज़िंदगी के कुछ ज़रूरी पहलुओं से है। लेकिन आप शायद सोचें, ‘फसह तो यहूदी मनाते हैं और मैं तो यहूदी नहीं हूँ। तो फिर मैं इसके बारे में जानकर क्या करूँ?’ इस सवाल का जवाब आगे दिए इन खास शब्दों में मिलता है: “हमारे फसह का बलिदान, मसीह बलि किया जा चुका है।” (1 कुरिं. 5:7) इसका क्या मतलब है? जवाब जानने के लिए हमें यहूदियों के फसह के त्योहार के बारे में जानना होगा। हमें यह भी जानना होगा कि इस त्योहार का उस आज्ञा से क्या ताल्लुक है, जो सभी मसीहियों को दी गयी है।

इसराएलियों ने फसह क्यों मनाया?

3, 4. सबसे पहली बार मनाए गए फसह से पहले कौन-सी घटनाएँ घटीं?

3 दुनिया-भर में करोड़ों लोग जो यहूदी नहीं हैं, सबसे पहली बार मनाए गए फसह के आस-पास हुई घटनाओं के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी रखते हैं। हो सकता है, उन्होंने इस बारे में बाइबल की निर्गमन की किताब में पढ़ा हो, या इसकी कहानी सुनी हो या फिर इस पर बनी कोई फिल्म देखी हो। क्या आपको याद है फसह से पहले क्या हुआ था?

4 जब इसराएली कई सालों से मिस्र की गुलामी में थे, तब यहोवा ने मूसा और हारून को फिरौन के पास भेजा, ताकि वे उससे यहोवा के लोगों को छोड़ने की गुज़ारिश कर सकें। लेकिन उस मगरूर फिरौन ने इसराएलियों को जाने नहीं दिया, इसलिए यहोवा मिस्र पर दस भयानक विपत्तियाँ लाया। दसवीं विपत्ति में, मिस्रियों के पहलौठों को मार दिया गया। हार मानकर फिरौन ने इसराएलियों को मिस्र से जाने के लिए कह दिया।—निर्ग. 1:11; 3:9, 10; 5:1, 2; 11:1, 5.

5. आज़ाद होने से पहले, इसराएलियों को क्या करना था? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

5 मगर आज़ाद होने से पहले, इसराएलियों को कुछ खास हिदायतें माननी थीं। यह ईसा पूर्व 1513 के वसंत ऋतु (लगभग 21/22 मार्च) का समय था। अबीब का महीना चल रहा था, जिसे बाद में निसान कहा गया। * परमेश्‍वर ने उनसे कहा कि वे निसान 10 से ही एक खास घटना के लिए तैयारियाँ करनी शुरू कर दें, जो निसान 14 को होनेवाली थी। इब्री कैलेंडर के मुताबिक दिन सूरज ढलने के बाद शुरू होता था और अगले दिन सूरज ढलने पर खत्म होता था। तो सूरज ढलने के बाद निसान 14 के शुरू होते ही इसराएल के हर परिवार को एक नर मेम्ने (भेड़ या बकरी का बच्चा) की बलि चढ़ानी थी और उसके थोड़े-से लहू को अपने दरवाज़े के दोनों अलंगों और चौखट के सिरे पर लगाना था। (निर्ग. 12:3-7, 22, 23) फिर उन्हें मेम्ने को आग में भूनकर, उसे बिन-खमीर की रोटी और सागपात के साथ खाना था। परमेश्‍वर का स्वर्गदूत उस देश से होकर गुज़रता और मिस्रियों के पहलौठों को मार देता, मगर आज्ञा माननेवाले इसराएलियों के पहलौठे बख्श दिए जाते। इसके बाद, परमेश्‍वर के लोग आज़ाद किए जाते।—निर्ग. 12:8-13, 29-32.

6. इसराएली हर साल फसह का त्योहार क्यों मनाते?

6 इसराएलियों को वह दिन याद रखना था, जब परमेश्‍वर ने उन्हें मिस्र से आज़ाद किया था। परमेश्‍वर ने उनसे कहा था: “वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिये पर्ब्ब करके मानना; वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर पर्ब्ब माना जाए।” निसान 14 को फसह मनाने के बाद, इसराएली सात दिन का ‘बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार’ भी मनाते। हालाँकि फसह निसान 14 को मनाया जाता था, लेकिन ये आठों दिन फसह कहलाए जा सकते हैं। (निर्ग. 12:14-17; लूका 22:1; यूह. 18:28; 19:14) फसह का त्योहार उन त्योहारों में से एक था, जो इसराएलियों को हर साल मनाने की आज्ञा दी गयी थी।—2 इति. 8:13.

7. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सा नया समारोह मनाने के लिए कहा?

7 यीशु और उसके प्रेषित यहूदी थे और मूसा का कानून मानते थे, इसलिए वे हर साल फसह का त्योहार मनाते थे। (मत्ती 26:17-19) आखिरी बार अपने चेलों के साथ फसह मनाने के बाद, यीशु ने एक नए समारोह की शुरूआत की, जिसे उसके चेलों को इसके बाद से हर साल मनाना था। इस समारोह को प्रभु का संध्या भोज कहा जाता है। लेकिन उन्हें यह किस दिन मनाना था?

प्रभु का संध्या भोज किस दिन मनाया गया था?

8. कुछ लोग प्रभु के संध्या भोज और फसह के दिन के बारे में शायद क्या सवाल करें?

8 अपने प्रेषितों के साथ आखिरी बार फसह मनाने के तुरंत बाद, यीशु ने उनके साथ प्रभु का संध्या भोज मनाया। इसका मतलब है कि प्रभु का संध्या भोज, फसह के दिन ही मनाया गया था। लेकिन आपने शायद गौर किया होगा कि आज के ज़माने में हम हर साल जिस दिन मसीह की मौत का स्मारक मनाते हैं, ठीक उसी दिन यहूदी फसह नहीं मनाते। ऐसा क्यों? इसका जवाब हमें इसराएलियों को दी परमेश्‍वर की आज्ञा से मिलता है। परमेश्‍वर ने उन्हें बताया था कि निसान 14 को किस वक्‍त उन्हें मेम्ने की बलि चढ़ानी है, और उसी वक्‍त फसह की शुरूआत होनी थी।—निर्गमन 12:5, 6 पढ़िए।

9. निर्गमन 12:6 के मुताबिक फसह के मेम्ने की बलि कब चढ़ायी जानी थी? (बक्स  “दिन के किस समय?” भी देखिए।)

9 निर्गमन 12:6 के मुताबिक, मेम्ने की बलि “गोधूलि के समय” [या “दो शाम के बीच,” नयी दुनिया अनुवाद] चढ़ायी जानी थी। कुछ बाइबलों में, जिनमें यहूदी तनख भी शामिल है, इसका अनुवाद “साँझ को” भी किया गया है। और कुछ दूसरी बाइबलों में इसे “धुँधलका के वक्‍त” या “शाम के झुटपुटे के समय” भी कहा गया है। इसलिए हम कह सकते हैं कि मेम्ने की बलि सूरज ढलने के बाद, लेकिन अँधेरा होने से पहले, यानी निसान 14 की शुरूआत में चढ़ायी जानी थी।

10. (क) कुछ लोगों के मुताबिक, फसह के मेम्नों की बलि कब चढ़ायी जाती थी? (ख) लेकिन इससे क्या सवाल उठाता है?

10 आगे चलकर, कुछ यहूदियों को लगा कि मंदिर में लाए गए सभी मेम्नों की बलि चढ़ाने में घंटों लग जाते होंगे। इसलिए उनका मानना था कि निर्गमन 12:6 में बताया ‘गोधूलि का समय,’ निसान 14 के आखिरी कुछ घंटों को दर्शाता है। यानी दोपहर को जब सूरज अस्त होना शुरू होता है उस समय से लेकर शाम को सूर्यास्त के समय तक। लेकिन इससे सवाल उठता है कि अगर मेम्नों को निसान 14 के आखिर में बलि किया जाता, तो इसराएली फसह का भोज कब करते? प्रोफेसर जॉनाथन क्लवान्स के मुताबिक, फसह का भोज निसान 15 को किया जाता। लेकिन वे कबूल करते हैं कि बाइबल की निर्गमन की किताब में ऐसा कहीं पर सीधे-सीधे नहीं बताया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि रब्बियों की लिखी किताबों में यह नहीं बताया गया है कि ईसवी सन्‌ 70 में मंदिर के नाश होने से पहले फसह का त्योहार कैसे मनाया जाता था।

11. (क) ईसवी सन्‌ 33 के फसह के दिन यीशु के साथ क्या-क्या हुआ? (ख) ईसवी सन्‌ 33 के निसान 15 को “बड़ा” सब्त क्यों कहा गया है? (फुटनोट देखिए।)

11 तो फिर ईसवी सन्‌ 33 में फसह का भोज किस दिन मनाया गया था? गौर कीजिए कि निसान 13 को, जब ‘फसह का पशु बलि किए जाने’ का दिन नज़दीक आ रहा था, तब मसीह ने पतरस और यहून्‍ना से कहा: “जाओ और हमारे लिए फसह के खाने की तैयारी करो।” (लूका 22:7, 8) फिर, गुरुवार, निसान 14 को सूरज ढलने के बाद, यीशु ने अपने प्रेषितों के साथ फसह का भोज किया। इसके बाद, यीशु ने उनके साथ प्रभु का संध्या भोज मनाया। (लूका 22:14, 15) उसी रात यीशु को गिरफ्तार किया गया और उस पर मुकदमा चलाया गया। फिर अगले दिन निसान 14 को ही, दोपहर करीब 12 बजे उसे सूली पर चढ़ाया गया और उसी दोपहर उसकी मौत हो गयी। (यूह. 19:14) तो “हमारे फसह का बलिदान, मसीह” उसी दिन “बलि किया” गया, जब फसह के मेम्ने की बलि चढ़ायी गयी। (1 कुरिं. 5:7; 11:23; मत्ती 26:2) यहूदी कैलेंडर के मुताबिक जब वह दिन खत्म होने पर था, और निसान 15 शुरू नहीं हुआ था, उस वक्‍त यीशु को दफनाया गया। *लैव्य. 23:5-7; लूका 23:54.

स्मरण दिलानेवाले दिन से मिलनेवाले सबक

12, 13. फसह के त्योहार में यहूदी बच्चे किस तरह हिस्सा लेते थे?

12 अब आइए एक बार फिर मिस्र में मनाए गए पहले फसह पर गौर करें। मूसा ने कहा था कि आगे चलकर परमेश्‍वर के लोगों को हर साल फसह मनाना है। यह आज्ञा उन्हें “सदा” तक माननी थी। हर साल फसह के दौरान, बच्चे अपने माँ-बाप से पूछते कि वे यह त्योहार क्यों मना रहे हैं। (निर्गमन 12:24-27 पढ़िए; व्यव. 6:20-23) इस तरह, फसह “स्मरण दिलानेवाला” एक यादगार ठहरता, जिससे बच्चे भी कई सबक सीखते।—निर्ग. 12:14.

13 पीढ़ी-दर-पीढ़ी, इसराएली अपने बच्चों को फसह के बारे में ज़रूरी सबक सिखाते रहे। उनमें से एक सबक यह था कि यहोवा अपने उपासकों की हिफाज़त कर सकता है। इससे बच्चों ने सीखा कि यहोवा एक सच्चा और जीवित परमेश्‍वर है, जो अपने सेवकों में दिलचस्पी लेता है और उनकी खातिर कदम उठाता है। यह उसने तब साबित किया जब उसने मिस्र पर लायी दसवीं विपत्ति से इसराएलियों के पहलौठों की रक्षा की।

14. मसीही माता-पिता फसह के वाकए से अपने बच्चों को क्या सबक सिखा सकते हैं?

14 आज के ज़माने में, मसीही माता-पिता हर साल अपने बच्चों को फसह की कहानी नहीं सुनाते। लेकिन क्या आप यहूदी माता-पिताओं की तरह अपने बच्चों को यह सबक सिखाते हैं कि यहोवा अपने लोगों की हिफाज़त करता है? क्या आपके बच्चे यह साफ देख सकते हैं कि आपको पूरा यकीन है कि यहोवा आज भी हमारी हिफाज़त कर रहा है? (भज. 27:11; यशा. 12:2) यह सबक सिखाने के लिए क्या आप उन्हें एक लंबा-चौड़ा भाषण देते हैं, या उनके साथ इस विषय पर मज़ेदार चर्चा करते हैं? अपने परिवार के साथ इस सबक पर चर्चा करने की पूरी कोशिश कीजिए, क्योंकि ऐसा करने से यहोवा पर आपके परिवार का भरोसा और भी बढ़ेगा।

फसह के बारे में चर्चा करते वक्‍त, आप अपने बच्चों को क्या सबक सिखाएँगे? (पैराग्राफ 14 देखिए)

15, 16. फसह और निर्गमन के वाकए से हम यहोवा के बारे में क्या सीख सकते हैं?

15 एक और ज़रूरी सबक जो हम फसह के वाकए से सीख सकते हैं, वह यह कि यहोवा न सिर्फ अपने लोगों की हिफाज़त करना जानता है, बल्कि वह उन्हें बचा भी सकता है। ज़रा कल्पना कीजिए कि जब यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद किया, तो उन्हें कैसा महसूस हुआ होगा? यहोवा ने बादल के और आग के खंभे से उनका मार्गदर्शन किया। फिर उन्होंने देखा कि कैसे यहोवा ने लाल सागर को दो भागों में बाँट दिया और उसके बीच में से निकलने का रास्ता तैयार कर दिया। दोनों तरफ पानी ऊँची दीवारों की तरह खड़ा था। फिर, उन्होंने सूखी ज़मीन पर चलकर उस सागर को पार किया। जैसे ही वे दूसरी तरफ पहुँचे, पानी की दीवारें मिस्र की सेना पर गिर पड़ीं। फिर इसराएलियों ने यहोवा की महिमा की, क्योंकि उसने उनकी जान बचायी। उन्होंने यह गीत गाया: “मैं यहोवा का गीत गाऊंगा . . . घोड़ों समेत सवारों को उस ने समुद्र में डाल दिया है। यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है, और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है।”—निर्ग. 13:14, 21, 22; 15:1, 2; भज. 136:11-15.

16 अगर आपके बच्चे हैं, तो क्या आप उन्हें यह समझने में मदद दे रहे हैं कि यहोवा एक ताकतवर परमेश्‍वर है, जो अपने लोगों को ज़रूर बचाएगा? क्या आपके बच्चे आपका यह विश्‍वास आपके फैसलों और बातचीत से भाँप सकते हैं? आप चाहें तो अपनी पारिवारिक उपासना में निर्गमन अध्याय 12-15 पर चर्चा कर सकते हैं और इस बात पर ज़ोर दे सकते हैं कि कैसे यहोवा ने अपने लोगों को बचाया। किसी और दिन आप इसी मुद्दे को समझाने के लिए प्रेषितों 7:30-36 या दानिय्येल 3:16-18, 26-28 में दिए वाकयों पर चर्चा कर सकते हैं। हममें से हरेक को, फिर चाहे हम जवान हों या बुज़ुर्ग, इस बात का पूरा यकीन होना चाहिए कि ठीक जैसे यहोवा ने बीते समय में अपने लोगों को बचाया था, वह भविष्य में भी हमें ज़रूर बचाएगा।—1 थिस्सलुनीकियों 1:9, 10 पढ़िए।

हमारे याद रखने के लिए

17, 18. यीशु का लहू, फसह के मेम्ने के लहू से ज़्यादा मायने क्यों रखता है?

17 आज सच्चे मसीही फसह का त्योहार नहीं मनाते। वह त्योहार मूसा के कानून का हिस्सा था, लेकिन आज हम उस कानून के अधीन नहीं हैं। (रोमि. 10:4; कुलु. 2:13-16) इसके बजाए, हम परमेश्‍वर के बेटे की मौत का स्मारक मनाते हैं। फिर भी, मिस्र में शुरू हुए फसह के त्योहार से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

18 मेम्ने का लहू दरवाज़े के दोनों अलंगों और चौखट के सिरे पर छिड़कने की वजह से इसराएलियों के पहलौठों की जान बची। आज हम फसह के दिन या किसी और दिन परमेश्‍वर को जानवरों का लहू नहीं चढ़ाते। लेकिन एक बेहतर बलिदान है जिसके लहू से न सिर्फ हमारी जान बच सकती है, बल्कि हमें हमेशा की ज़िंदगी भी मिल सकती है। इस बारे में पहली सदी के अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखते वक्‍त प्रेषित पौलुस ने कहा: ‘वह लहू जो यीशु ने हम पर छिड़का है।’ जी हाँ, वह यीशु का लहू है, जिससे अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग में हमेशा तक जीने की आशा मिली है। ये अभिषिक्‍त मसीही वे ‘पहलौठे’ हैं, “जिनके नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं।” (इब्रा. 12:23, 24) साथ ही, दूसरी भेड़ों को भी यीशु के बहाए लहू से यह आशा मिली है कि वे धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जी सकेंगे। हम सभी को लगातार खुद को यह याद दिलाते रहना चाहिए: “उसी . . . के लहू के ज़रिए फिरौती देकर हमें छुड़ाया गया है। हाँ, उसी के ज़रिए परमेश्‍वर की महा-कृपा की दौलत हम पर लुटायी गयी और इस महा-कृपा से हमें गुनाहों की माफी दी गयी।”—इफि. 1:7.

19. जिस तरह यीशु की मौत हुई, उससे बाइबल में दर्ज़ भविष्यवाणी पर हमारा भरोसा कैसे मज़बूत होता है?

19 फसह के लिए मेम्ने की बलि चढ़ाते वक्‍त, इसराएलियों को इस बात का ध्यान रखना था कि वे मेम्ने की एक भी हड्डी न तोड़ें। (निर्ग. 12:46; गिन. 9:11, 12) ‘परमेश्‍वर के मेम्ने’ के बारे में क्या, जो फिरौती देने आया था? (यूह. 1:29) उसे सूली पर चढ़ाया गया था और उसकी दोनों तरफ एक-एक अपराधी को भी सूली पर लटकाया गया था। यहूदियों ने पीलातुस से कहा कि सूली पर चढ़ाए गए अपराधियों की हड्डियाँ तोड़ी जाएँ, ताकि उनकी मौत जल्दी हो जाए। इस तरह उन अपराधियों की लाशें निसान 15 शुरू होने से पहले ही सूली पर से उतार ली जातीं, क्योंकि निसान 15 बड़ा सब्त का दिन था। सैनिकों ने यीशु की दोनों तरफ लटके अपराधियों की टाँगें तोड़ दीं, “मगर जब उन्होंने यीशु के पास आकर देखा कि वह पहले ही मर चुका है, तो उसकी टाँगें नहीं तोड़ीं।” (यूह. 19:31-34) ठीक जैसे फसह के मेम्ने की हड्डियाँ नहीं तोड़ी गयी थीं, वैसे ही यीशु की हड्डियाँ भी नहीं तोड़ी गयीं। इस तरह फसह का मेम्ना, यीशु के बलिदान की महज़ एक “छाया” था, जो ईसवी सन्‌ 33 के निसान 14 को दिया गया था। (इब्रा. 10:1) साथ ही, इससे भजन 34:20 में दर्ज़ शब्द भी पूरे हुए। इस ब्यौरे से बाइबल में दी भविष्यवाणी पर हमारा भरोसा और भी मज़बूत होना चाहिए।

20. फसह और प्रभु के संध्या भोज में क्या बड़ा फर्क है?

20 लेकिन यहूदियों ने जिस तरह फसह का त्योहार मनाया था और यीशु ने अपने चेलों को जिस तरह प्रभु का संध्या भोज मनाने के लिए कहा था, उसमें कुछ फर्क है। मिसाल के लिए, मिस्र में यहूदियों ने मेम्ने का माँस खाया था, लेकिन उसका लहू नहीं पीया था। मगर यीशु ने अपने चेलों से कुछ और ही कहा था। उसने कहा था कि जो “परमेश्‍वर के राज में” राज करेंगे, उन्हें रोटी और दाख-मदिरा दोनों लेनी थीं, जो उसके शरीर और लहू के प्रतीक थे। हम अगले लेख में इस बारे में और खुलकर चर्चा करेंगे।—मर. 14:22-25.

21. फसह के बारे में जानकारी रखना क्यों फायदेमंद है?

21 इसमें कोई शक नहीं कि ईसा पूर्व 1513 के निसान 14 को मनाया गया फसह का त्योहार परमेश्‍वर के लोगों के इतिहास में बहुत मायने रखता था। और हम सभी इससे कई सबक सीख सकते हैं। हालाँकि फसह उस वक्‍त इसराएलियों के लिए “स्मरण दिलानेवाला” यादगार था, लेकिन आज हम मसीहियों को भी इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए और इससे ज़रूरी सबक सीखने चाहिए, क्योंकि “पूरा शास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया है।”—2 तीमु. 3:16.

^ इब्री कैलेंडर के मुताबिक पहला महीना अबीब कहलाता था। लेकिन इसराएलियों के बैबिलोन की बंधुआई से लौटने के बाद, इस महीने को निसान नाम दिया गया। इस लेख में हम इस महीने को निसान कहेंगे।

^ फसह का अगला दिन, यानी निसान 15, बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार का पहला दिन था, जो हमेशा सब्त का दिन होता था। इसके अलावा, ईसवी सन्‌ 33 में, निसान 15 को हर हफ्ते आनेवाला सब्त का दिन (शुक्रवार शाम से लेकर शनिवार शाम तक) भी शुरू हुआ था। तो क्योंकि उस साल ये दोनों सब्त एक ही दिन पड़े थे, इसलिए उस दिन को “बड़ा” सब्त कहा गया है।—यूहन्‍ना 19:31, 42 पढ़िए।