बचपन में मैंने जो फैसला किया
सन् 1985 की बात है। उस वक्त मैं बस दस साल का था। मैं अमरीका के ओहायो राज्य के कोलंबस शहर के एक स्कूल में पढ़ता था। उस वक्त कम्बोडिया देश से कुछ बच्चे मेरे स्कूल में पढ़ने आए थे। उनमें से एक लड़का अँग्रेज़ी के कुछ शब्द जानता था। तसवीरें बना-बनाकर वह मुझे डरावने किस्से सुनाने लगा, कि कैसे कम्बोडिया के लोगों पर अत्याचार किया गया था, उन्हें जान से मार डाला गया था और किस तरह लोग अपनी जान बचाकर भागे थे। मैं रात को उन बच्चों के बारे में सोचकर रो पड़ता था। मैं उन्हें फिरदौस और दोबारा जी उठाए जाने की आशा के बारे में बताना चाहता था, लेकिन उन्हें मेरी भाषा समझ में नहीं आती थी। हालाँकि तब मैं बहुत छोटा था, लेकिन मैंने सोच लिया कि मैं कम्बोडियन भाषा सीखूँगा, ताकि मैं साथ पढ़नेवालों को यहोवा के बारे में बता सकूँ। उस समय मुझे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि किस तरह मेरा यह फैसला आगे चलकर मेरी ज़िंदगी बदल देगा।
कम्बोडियन भाषा सीखना आसान नहीं था। मैंने दो बार फैसला किया कि मैं यह भाषा सीखना छोड़ दूँगा, लेकिन यहोवा ने मेरे माता-पिता के ज़रिए मेरा हौसला बढ़ाया। आगे चलकर, मेरे स्कूल के टीचर और साथ पढ़नेवाले मुझ पर दबाव डालने लगे कि मैं एक ऐसा करियर चुनूँ जिसमें मुझे खूब दौलत-शोहरत मिल सके। लेकिन मैं पायनियर बनना चाहता था। अपना यह लक्ष्य हासिल करने के लिए मैंने स्कूल में ऐसे कोर्स चुने, जिनसे मुझे पार्ट-टाइम नौकरी मिल सके। स्कूल छूटने के बाद, मैं कुछ पायनियरों के साथ प्रचार में जाता था। मैं खुद आगे आकर कुछ विद्यार्थियों को अँग्रेज़ी भी सिखाने लगा। मेरे इस फैसले से आगे चलकर मुझे बहुत मदद मिली।
जब मैं 16 साल का था, तब मैंने सुना कि अमरीका में कैलिफोर्निया राज्य के लाँग बीच शहर में कम्बोडियन भाषा बोलनेवाला एक समूह है। मैं वहाँ गया और मैंने कम्बोडियन भाषा पढ़ना सीखा। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के फौरन बाद मैं पायनियर सेवा करने लगा और अपने घर के पास रहनेवाले कम्बोडियन भाषा बोलनेवालों को खुशखबरी सुनाता रहा। जब तक मैं 18 साल का हुआ, मैं कम्बोडिया जाकर बसने के बारे में सोचने लगा। वह अभी-भी बहुत खतरनाक जगह थी, लेकिन मैं जानता था कि वहाँ रह रहे 1 करोड़ लोगों में से बहुत कम लोगों ने राज की खुशखबरी सुनी है। उस समय, पूरे देश में बस एक ही मंडली थी, जिसमें 13 प्रचारक थे। जब मैं 19 साल का हुआ, तब मैं पहली बार कम्बोडिया घूमने गया। दो साल बाद, मैंने फैसला किया कि मैं वहाँ जाकर बस जाऊँगा। कम्बोडिया में प्रचार करने के साथ-साथ अपना गुज़ारा चलाने के लिए मैं पार्ट-टाइम अनुवाद करने और अँग्रेज़ी सिखाने लगा। बाद में, मुझे एक ऐसी जीवन-साथी मिली, जिसके लक्ष्य भी मेरे लक्ष्यों जैसे ही थे। हम दोनों ने मिलकर कम्बोडिया के कई लोगों को सच्चाई अपनाने में मदद दी है और ऐसा करने में बहुत खुशी पायी है।
यहोवा ने मेरे “दिल की मुरादें” पूरी की हैं। (भज. 37:4, उर्दू—ओ.वी.) चेले बनाने के काम से जितना संतोष मिलता है, उतना और किसी काम से नहीं मिल सकता। मैं 16 सालों से कम्बोडिया में सेवा कर रहा हूँ। इस दौरान, 13 प्रचारकों से बनी यहाँ की वह छोटी-सी मंडली बढ़ते-बढ़ते 12 मंडलियाँ और 4 दूर-दराज़ के समूह बन गए हैं!—जेसन ब्लैकवेल की ज़ुबानी।