“तेरा राज आए”—मगर कब?
“जब तुम ये सब बातें होती देखो, तो जान लो कि इंसान का बेटा पास ही दरवाज़े पर है।”—मत्ती 24:33.
1, 2. (क) एक तरह के अंधेपन की वजह क्या है? (ख) परमेश्वर के राज के बारे में हम क्या जानते हैं?
आपने शायद गौर किया होगा कि फलाँ घटना के बारे में लोगों को हमेशा एक-जैसी जानकारी याद नहीं रहती। उसी तरह, एक व्यक्ति को शायद यह याद रखने में मुश्किल हो कि डॉक्टर ने उसकी जाँच करने के बाद उससे क्या कहा था। या किसी व्यक्ति को अपनी चाबियाँ या चश्मा न मिल रहा हो, भले ही वह उसकी आँखों के सामने हो। ऐसा क्यों होता है? शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी वजह दरअसल एक तरह का अंधापन है। ऐसा तब होता है जब हम एक समय पर कई चीज़ें करने की कोशिश करते हैं। कहा जाता है कि हमारा दिमाग एक समय पर सिर्फ एक ही चीज़ पर पूरी तरह ध्यान दे सकता है।
2 आज दुनिया में जो घटनाएँ हो रही हैं, उसे लेकर भी कई लोगों को इसी तरह का एक अंधापन है। लोग शायद इस बात से राज़ी हों कि 1914 से यह दुनिया बहुत बदल गयी है, लेकिन वे यह नहीं समझते कि इन घटनाओं के मायने क्या हैं। मगर बाइबल के विद्यार्थी होने के नाते, हम जानते हैं कि 1914 में परमेश्वर का राज शुरू हुआ, जब यीशु को स्वर्ग में राजा बनाया गया। पर हम यह भी जानते हैं कि फिलहाल हमें इस प्रार्थना का पूरा जवाब नहीं मिला है कि “तेरा राज आए। तेरी मरज़ी, जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है, वैसे ही धरती पर भी पूरी हो।” (मत्ती ) इस प्रार्थना का पूरा जवाब हमें तब मिलेगा जब इस दुष्ट दुनिया का नाश होगा। उसके बाद ही इस धरती पर परमेश्वर की मरज़ी पूरी होगी, जैसे आज स्वर्ग में पूरी हो रही है। 6:10
3. परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने की वजह से हम क्या देख सकते हैं?
3 हम लगातार परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं, इसलिए हम देख सकते हैं कि आज बाइबल की भविष्यवाणियाँ पूरी हो रही हैं। इस मामले में हम दुनिया के लोगों से कितने अलग हैं। लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इतने मशगूल हैं कि वे इस बात के साफ सबूत नहीं देख पा रहे कि मसीह 1914 से राज कर रहा है और बहुत जल्द इस दुष्ट दुनिया का नाश करेगा। अगर आप दशकों से यहोवा की सेवा कर रहे हैं, तो खुद से पूछिए: ‘क्या मैं अब भी यकीन करता हूँ कि इस दुनिया का अंत बहुत करीब है और धरती पर हो रही घटनाएँ इस बात को साबित करती हैं?’ या अगर आप हाल ही में साक्षी बने हैं, तो आपका ध्यान किस बात पर लगा हुआ है? आपका जवाब चाहे जो भी हो, आइए हम तीन ज़रूरी वजहों पर गौर करें कि हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर जल्द ही धरती पर अपनी मरज़ी पूरी करेगा।
घुड़सवार आ पहुँचे हैं
4, 5. (क) सन् 1914 में राजा बनते ही यीशु ने क्या किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) यीशु के पीछे-पीछे चले आ रहे तीन घुड़सवार किसे दर्शाते हैं? (ग) यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई है?
4 सन् 1914 में यीशु मसीह को स्वर्ग का ताज पहनाया गया, यानी वह परमेश्वर के राज का राजा बना। प्रकाशितवाक्य अध्याय 6 में दी भविष्यवाणी में उसे एक सफेद घोड़े पर सवार बताया गया है। राजा बनते ही, वह शैतान की दुष्ट दुनिया को मिटाने निकल पड़ा। (प्रकाशितवाक्य 6:1, 2 पढ़िए।) प्रकाशितवाक्य अध्याय 6 में दी ब्यौरेदार भविष्यवाणी बताती है कि परमेश्वर का राज शुरू होने के फौरन बाद, दुनिया की हालत बहुत बदतर हो जाएगी। बड़े पैमाने पर युद्ध, अकाल, महामारियाँ और अलग-अलग वजहों से मौत होगी। भविष्यवाणी में इन आपदाओं को तीन घुड़सवारों से दर्शाया गया है, जो यीशु मसीह के बिलकुल पीछे-पीछे चले आ रहे हैं।—प्रका. 6:3-8.
5 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देशों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने और शांति कायम करने का वादा किया था। इसके बावजूद, जैसा कि भविष्यवाणी की गयी थी, युद्ध की वजह से ‘पृथ्वी पर से शांति उठा ली’ गयी। पहला विश्व युद्ध इस धरती पर से शांति उठा ले जानेवाले भयानक युद्धों की महज़ शुरूआत ही था। हालाँकि 1914 के बाद से आर्थिक और विज्ञान के क्षेत्र में बहुत तरक्की हुई है, फिर भी खाने के लाले पड़े हैं, जिस वजह से दुनिया-भर में लोगों की जान को खतरा है। इसके अलावा, कौन इस बात को नकार सकता है कि तरह-तरह की बीमारियों, कुदरती आफतों और दूसरी ‘जानलेवा महामारियों’ की वजह से हर साल लाखों लोग मौत के मुँह में जा रहे हैं? ये घटनाएँ आज जिस पैमाने पर घट रही हैं, और जिस तेज़ी से यह बढ़ती और बदतर होती जा रही हैं, वैसा इंसान के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया। क्या आप इसके मायने समझते हैं?
6. (क) किनका ध्यान बाइबल की भविष्यवाणियों के पूरा होने पर लगा हुआ था? (ख) भविष्यवाणी के पूरा होने पर उन्होंने क्या किया?
6 सन् 1914 और उसके बाद के सालों में, पहले विश्व युद्ध और स्पैनिश फ्लू की वजह से बहुत से लोगों का ध्यान भटक गया था। लेकिन अभिषिक्त मसीही बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे कि सन् 1914 में “राष्ट्रों के लिए तय किया हुआ वक्त” पूरा होगा। (लूका 21:24) वे पक्के तौर पर तो नहीं जानते थे कि यह कैसे होगा, लेकिन वे इतना ज़रूर जानते थे कि 1914 में परमेश्वर के शासन में एक नया मोड़ आएगा। जैसे ही वे इस बात को समझ गए कि कैसे बाइबल की भविष्यवाणी पूरी हुई है, उन्होंने हिम्मत के साथ दूसरों को ऐलान किया कि परमेश्वर का राज शुरू हो चुका है। लेकिन राज का संदेश सुनाने की वजह से बहुत-से राष्ट्रों में उन पर बुरी तरह ज़ुल्म ढाए जाने लगे। यह अपने-आप में भविष्यवाणी के पूरा होने का सबूत था। अगले कुछ दशकों में, राज के दुश्मन ‘कानून की आड़ में उत्पात मचाने’ लगे। इसके अलावा, उन्होंने हमारे भाइयों को मारा-पीटा, कैद में डाला, यहाँ तक कि उन्हें फाँसी पर चढ़ाकर, गोली मारकर, या सिर काटकर मौत के घाट उतारा।—भज. 94:20; प्रका. 12:15.
7. आज ज़्यादातर लोग दुनिया में हो रही बातों के मायने क्यों नहीं समझ पा रहे हैं?
7 जबकि इस बात के इतने सारे सबूत मौजूद हैं कि परमेश्वर का राज आज स्वर्ग में राज कर रहा है, फिर भी क्यों ज़्यादातर लोग इन सबूतों को नहीं देख पा रहे हैं? वे क्यों नहीं देख पा रहे कि दुनिया में हो रही घटनाएँ बाइबल की भविष्यवाणी पूरा कर रही हैं, ठीक जैसे परमेश्वर के लोग इतने सालों से बताते आ रहे हैं? क्या इसलिए कि वे सिर्फ उन्हीं बातों को देख रहे हैं, जिन्हें वे देखना चाहते हैं? (2 कुरिं. 5:7) क्या वे अपनी ज़िंदगी में इतने उलझ गए हैं कि वे यह देख ही नहीं पा रहे कि परमेश्वर आज क्या-क्या कर रहा है? (मत्ती 24:37-39) क्या कुछ लोगों का ध्यान शैतान की दुनिया के फैलाए झूठे विचारों और लक्ष्यों की वजह से भटक गया है? (2 कुरिं. 4:4) परमेश्वर का राज आज क्या कर रहा है, यह समझने के लिए ज़रूरी है कि हम विश्वास करें और इस बात को समझने की कोशिश करें कि जो हो रहा है, उसके पीछे वजह क्या है। हम कितने शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि आज दुनिया में जो हो रहा है, उसकी तरफ हम अंधे नहीं हैं!
बुराई बद-से-बदतर होती जा रही है
8-10. (क) दूसरा तीमुथियुस 3:1-5 की भविष्यवाणी कैसे पूरी हो रही है? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि बुराई बद-से-बदतर होती चली जा रही है?
8 परमेश्वर जल्द ही धरती पर अपनी मरज़ी पूरी करेगा, इस बात पर यकीन करने की दूसरी वजह क्या है? इस दुनिया में बद-से-बदतर हो रही बुराई। लगभग सौ सालों से हम 2 तीमुथियुस 3:1-5 में दर्ज़ भविष्यवाणी को पूरा होते देख रहे हैं। इन आयतों में बताए रवैए दुनिया-भर में तेज़ी से फैल रहे हैं। क्या आप लोगों के रवैए में हो रहे इस बदलाव को भी देख रहे हैं? आइए इसके कुछ उदाहरणों पर गौर करें।—2 तीमुथियुस 3:1, 13 पढ़िए।
9 सन् 1940 या 1950 के दशक में लोग जिन कामों को घिनौना समझते थे, ज़रा उनकी तुलना आज स्कूल, काम की जगह, मनोरंजन, खेल और फैशन की दुनिया में हो रहे कामों से कीजिए। आज हर कहीं हिंसा और अनैतिकता का बोलबाला है। लोगों में एक-दूसरे से ज़्यादा हिंसक, अनैतिक और क्रूर बनने की होड़ लगी है। सन्1950 के दशक में जिन टी.वी. कार्यक्रमों को देखने लायक नहीं समझा जाता था, उन्हीं कार्यक्रमों को आज लोग परिवार के साथ मिलकर देखने लायक समझते हैं। और बहुत-से लोगों ने पाया है कि आज समलैंगिक काम करनेवालों का मनोरंजन और फैशन की दुनिया में बहुत दबदबा है। वे खुलेआम अपने जीने के तरीके का बखान करते हैं। हम कितने शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि हम इन बातों के बारे में परमेश्वर का नज़रिया जानते हैं!—यहूदा 14, 15 पढ़िए।
10 इसके अलावा, दशकों पहले नौजवानों में देखे जानेवाले बगावती रवैए की तुलना आज के नौजवानों के रवैए से कीजिए। उदाहरण के लिए, 1950 के दशक में माता-पिता चिंता करते थे कि कहीं उनके बच्चे सिगरेट तो नहीं पी रहे, अश्लील नाच-गानों में हिस्सा तो नहीं ले रहे, या शराब तो नहीं पी रहे और उनका इस तरह चिंता करना लाज़िमी भी था। लेकिन आज इस तरह की चौंका देनेवाली खबरें बहुत आम हो चुकी हैं, जैसे 15 साल के एक विद्यार्थी ने अपने साथ पढ़नेवालों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं, जिनमें से 2 की मौत हो गयी और 13 घायल हो गए। शराब के नशे में धुत नौजवानों के एक समूह ने 9 साल की एक लड़की का बेरहमी से खून कर दिया और उसके पिता और एक रिश्तेदार को खूब पीटा। एक और खबर बताती है कि एशिया के एक देश में, पिछले दस सालों के दौरान किए गए आधे से ज़्यादा जुर्म के लिए नौजवान ज़िम्मेदार थे। क्या कोई भी इस बात को नकार सकता है कि आज हालात बद-से-बदतर होते जा रहे हैं?
11. कई लोगों को यह एहसास क्यों नहीं होता कि हालात बद-से-बदतर होते जा रहे हैं?
11 प्रेषित पतरस ने बिलकुल सही कहा था: “आखिरी दिनों में खिल्ली उड़ानेवाले आएँगे और अपनी बातों से खिल्ली उड़ाएँगे। ये अपनी ही ख्वाहिश के मुताबिक ऐसा करेंगे, और यह कहेंगे: ‘उसने वादा किया था कि वह मौजूद होगा, मगर वह कहाँ है? जब से हमारे बाप-दादा मौत की नींद सो गए हैं, तब से सबकुछ बिलकुल वैसा ही चल रहा है, जैसा सृष्टि की शुरूआत से था।’” (2 पत. 3:3, 4) कुछ लोग इस तरह से क्यों पेश आते हैं? ऐसा लगता है कि हम किसी बात को जितना ज़्यादा होते देखते हैं, उतना ही कम उस पर ध्यान देते हैं। अगर हमारे किसी करीबी दोस्त का बर्ताव अचानक बदल जाए, तो हम शायद चौंक जाएँ। वहीं दूसरी तरफ, धीरे-धीरे लोगों के रवैए में आए बदलाव और उनके गिरते नैतिक उसूल देखकर हम शायद इतना न चौंकें। फिर भी, जिस तरह लोगों के नैतिक उसूल धीरे-धीरे गिरते जा रहें हैं, हमें उसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना बहुत ही खतरनाक हो सकता है।
12, 13. (क) हमें दुनिया में हो रही घटनाओं से क्यों निराश नहीं हो जाना चाहिए? (ख) क्या बात हमें इन आखिरी दिनों से जूझने में मदद देगी, जिनका “सामना करना मुश्किल” है?
12 प्रेषित पौलुस ने हमें चेतावनी दी थी कि “आखिरी दिनों में” हालात ऐसे होंगे कि उनका “सामना करना मुश्किल होगा।” (2 तीमु. 3:1) मगर ऐसा नहीं है कि उनका सामना किया ही नहीं जा सकता, इसलिए हमें हकीकत से मुँह मोड़ने की ज़रूरत नहीं। यहोवा, उसकी पवित्र शक्ति और मसीही मंडली की मदद से हम किसी भी तरह की निराशा या डर पर काबू पा सकते हैं। हम उसके वफादार बने रह सकते हैं। परमेश्वर हमें “वह ताकत [देगा] जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।”—2 कुरिं. 4:7-10.
13 पौलुस ने आखिरी दिनों के बारे में भविष्यवाणी की शुरूआत इन शब्दों से की: “यह जान ले।” ये शब्द इस बात की गारंटी देते हैं कि इसके बाद जो उसने कहा वह हर हाल में पूरा होगा। इसमें कोई शक नहीं कि यह दुनिया बद-से-बदतर होती चली जाएगी, जब तक कि यहोवा अंत नहीं लाता। इतिहास गवाह है कि कई बार जब किसी जाति या राष्ट्र के नैतिक स्तर गिरे हैं, तो वह जाति या पूरा-का-पूरा राष्ट्र खत्म हो गया है। लेकिन इंसान के इतिहास में पहले कभी दुनिया-भर में नैतिक स्तर इस कदर नहीं गिरे, जितने कि आज गिर गए हैं। बहुत-से लोग शायद इस बात को नज़रअंदाज़ कर दें कि इसके क्या मायने हैं। मगर 1914 से जो घटनाएँ घट रही हैं, उनसे हमें इस बात का पूरा यकीन हो जाना चाहिए कि परमेश्वर का राज दुष्टता का अंत करने के लिए बहुत जल्द कदम उठाएगा।
यह पीढ़ी नहीं मिटेगी
14-16. परमेश्वर का राज जल्द ‘आएगा,’ इस पर यकीन करने की तीसरी वजह क्या है?
14 परमेश्वर के लोगों का इतिहास हमें इस बात की तीसरी वजह देता है कि क्यों हम यकीन कर सकते हैं कि अंत नज़दीक है। उदाहरण के लिए, स्वर्ग में परमेश्वर के राज के शुरू होने से पहले, वफादार अभिषिक्त जनों का एक समूह परमेश्वर की सेवा कर रहा था। जब भविष्यवाणी उस तरीके से पूरी नहीं हुई जैसे उन्होंने 1914 में होने की उम्मीद की थी, तो उन्होंने क्या किया? उनमें से ज़्यादातर जनों ने आज़माइशों और विरोध के बावजूद अपनी खराई बनाए रखी, और लगातार यहोवा की सेवा करते रहे। उनमें से ज़्यादातर अभिषिक्त मसीहियों ने सालों के दौरान वफादारी से धरती पर अपनी सेवा खत्म कर दी है।
15 इस दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त के बारे में की अपनी भविष्यवाणी में यीशु ने कहा: “जब तक ये सारी बातें न हो लें, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ न मिटेगी।” (मत्ती 24:33-35 पढ़िए।) हम जानते हैं कि जब यीशु ने शब्द “यह पीढ़ी” कहे, तब वह दरअसल अभिषिक्त मसीहियों से बने दो समूहों की बात कर रहा था। पहला समूह 1914 में मौजूद था और वह समझ गया था कि मसीह ने उस साल राजा के तौर पर राज करना शुरू कर दिया था। इस समूह के सदस्य 1914 में न सिर्फ जीवित थे, बल्कि उस साल या उससे पहले, पवित्र शक्ति से उनका अभिषेक भी हो चुका था।—रोमि. 8:14-17.
16 आइए अब इस “पीढ़ी” के दूसरे समूह पर गौर करें। जब पहले समूह के कुछ अभिषिक्त सदस्य धरती पर ज़िंदा थे, तब दूसरे समूह के सभी सदस्य न सिर्फ धरती पर जीवित थे, बल्कि पवित्र शक्ति से उनका अभिषेक भी किया जा चुका था। इसका मतलब है कि इन दोनों समूहों के सदस्य अभिषिक्त मसीहियों के तौर पर कुछ समय तक साथ-साथ जीए थे। इसलिए आज धरती पर जीवित हरेक अभिषिक्त जन इस “पीढ़ी” में शामिल नहीं है, जिसका ज़िक्र यीशु ने किया था। इस दूसरे समूह के अभिषिक्त मसीही भी अब काफी बुज़ुर्ग हो चुके हैं। फिर भी, मत्ती 24:34 में दर्ज़ यीशु के शब्द हमें इस बात का भरोसा दिलाते हैं कि महा-संकट की शुरूआत देखने से पहले इस “पीढ़ी” के कम-से-कम कुछ सदस्य ‘हरगिज़ न मिटेंगे।’ इससे हमें और भी यकीन हो जाता है कि अब बहुत जल्द परमेश्वर के राज का राजा, दुष्टों का नाश कर देगा और नयी दुनिया ले आएगा, जहाँ न्याय का बसेरा होगा।—2 पत. 3:13.
मसीह जल्द फतह हासिल करेगा
17. हमने जिन तीन सबूतों पर गौर किया है, उनसे हम किस नतीजे पर पहुँचते हैं?
17 हमने जिन तीन सबूतों पर गौर किया, उनसे हम किस नतीजे पर पहुँच सकते हैं? जैसा कि यीशु ने खबरदार किया था, हम नहीं जानते कि अंत किस दिन या किस वक्त आएगा। (मत्ती 24:36; 25:13) मगर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि “नींद से जाग उठने की घड़ी आ चुकी है,” जैसा कि पौलुस ने कहा था। (रोमियों 13:11 पढ़िए।) आज हम उसी घड़ी में, यानी आखिरी दिनों में जी रहे हैं। अगर हम बाइबल में दर्ज़ भविष्यवाणियों पर, साथ ही यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह जो कर रहे हैं, उस पर पूरा-पूरा ध्यान दें, तो हम इस बात के साफ सबूत देख सकेंगे कि आज हम वाकई इस दुष्ट दुनिया के अंत के बहुत ही करीब हैं।
18. जो लोग यीशु मसीह को राजा मानने से इनकार करेंगे, उनका क्या अंजाम होगा?
18 जो लोग सफेद घोड़े पर सवार यीशु मसीह के शानदार अधिकार को मानने से इनकार करेंगे, जल्द ही उन्हें यह कबूल करना पड़ेगा कि वे गलत हैं। वे उस न्याय से नहीं बच पाएँगे, जो उन पर आनेवाला है। जब ऐसा होगा, तब कई लोग डर के मारे चिल्लाएँगे: “कौन उनके सामने खड़ा होने के काबिल है?” (प्रका. 6:15-17) प्रकाशितवाक्य का अध्याय 7 हमें इस सवाल का जवाब देता है। अभिषिक्त जन और “बड़ी भीड़” के लोग ‘खड़े होंगे,’ क्योंकि उन पर परमेश्वर की मंज़ूरी होगी। फिर दूसरी भेड़ों की “बड़ी भीड़” महा-संकट से बच निकलेगी और परमेश्वर की नयी दुनिया में दाखिल होगी।—प्रका. 7:9, 13-15.
19. आप, जो इस बात का यकीन करते हैं कि अंत बहुत करीब है, किस वक्त की राह तक रहे हैं?
19 अगर हम अपना ध्यान बाइबल की उन भविष्यवाणियों पर लगाए रखें, जो आज हमारे दिनों में पूरी हो रही हैं, तो शैतान की इस दुनिया में हमारा ध्यान भटकेगा नहीं। और न ही हम दुनिया में हो रही घटनाओं के असल मतलब को नज़रअंदाज़ करेंगे। जल्द ही, मसीह परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक हर-मगिदोन के युद्ध में दुष्ट दुनिया का नाश करके जीत हासिल कर लेगा। (प्रका. 19:11, 19-21) ज़रा कल्पना कीजिए कि उस वक्त हम कितनी खुशी का अनुभव करेंगे!—प्रका. 20:1-3, 6; 21:3, 4.