इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

मूसा के विश्‍वास की मिसाल पर चलिए

मूसा के विश्‍वास की मिसाल पर चलिए

“विश्‍वास ही से मूसा ने, बड़ा होने पर फिरौन की बेटी का बेटा कहलाने से इनकार कर दिया।”—इब्रा. 11:24.

1, 2. (क) जब मूसा 40 साल का था, तब उसने क्या फैसला किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) मूसा ने इसराएली दासों के साथ ज़ुल्म सहने का चुनाव क्यों किया?

 मूसा जानता था कि अगर वह मिस्र में रहता, तो उसका भविष्य सुनहरा हो सकता था। उसने वहाँ रईसों को आलीशान महलों में रहते देखा था। खुद उसकी परवरिश शाही परिवार में हुई थी, जिन्होंने उसे गोद लिया था। उसे “मिसिरयों की हर तरह की शिक्षा दी गयी” थी, जिसमें शायद खगोल-विज्ञान, गणित, तरह-तरह के विज्ञान, निर्माण काम, इतिहास, साहित्य और भाषाओं का ज्ञान शामिल था। (प्रेषि. 7:22) उसे वह तमाम दौलत, ताकत और ऐशो-आराम की ज़िंदगी आसानी से मिल सकती थी, जिसका एक आम मिस्री बस ख्वाब ही देख सकता था!

2 इसके बावजूद, जब मूसा 40 साल का था, तब उसने एक ऐसा फैसला लिया, जिसे सुनकर फिरौन और उसके परिवार के होश उड़ गए होंगे। उसने मिस्र की शानो-शौकत को ठुकरा दिया। तो क्या वह एक आम मिस्री की ज़िंदगी जीना चाहता था? नहीं, मूसा वह भी नहीं चाहता था। उसने इसराएली दासों की तरह ज़िंदगी जीने का चुनाव किया। आखिर क्यों? क्योंकि मूसा विश्‍वास से चलनेवाला इंसान था। (इब्रानियों 11:24-26 पढ़िए।) अपने विश्‍वास की वजह से, मूसा मानो यहोवा को देख सकता था। उसे “अदृश्‍य परमेश्‍वर” और उसके वादों के पूरा होने पर अटूट विश्‍वास था।—इब्रा. 11:27.

3. इस लेख में किन तीन सवालों के जवाब दिए जाएँगे?

3 मूसा की तरह, हमें भी कबूल करना चाहिए कि इस दुनिया की शानो-शौकत ही सब कुछ नहीं। हमें विश्‍वास की आँखों से यहोवा को देखना चाहिए। हमें ‘उनमें से होना चाहिए जो विश्‍वास रखते हैं।’ (इब्रा. 10:38, 39) अपना विश्‍वास मज़बूत करने के लिए, आइए हम उन बातों पर गौर करें जो इब्रानियों 11:24-26 में मूसा के बारे में लिखी गयी हैं। उन बातों पर गौर करते वक्‍त, इन सवालों के जवाब ढूँढ़ने की कोशिश कीजिए: विश्‍वास ने कैसे मूसा को शरीर की ख्वाहिशें ठुकराने में मदद दी? जब उसकी निंदा की गयी, तो विश्‍वास ने कैसे उसे यहोवा की सेवा में मिली ज़िम्मेदारियों को अनमोल समझने में मदद दी? और क्यों मूसा अपनी नज़र “इनाम पाने पर लगाए” रहा?

उसने शरीर की ख्वाहिशें ठुकरा दीं

4. ‘पाप का सुख’ भोगने के सिलसिले में मूसा क्या बात समझ पाया?

4 विश्‍वास की आँखों से मूसा समझ पाया कि ‘पाप का सुख’ बस चंद दिनों के लिए ही भोगा जा सकता था। लेकिन दूसरों का नज़रिया शायद कुछ और ही था। हालाँकि मिस्र मूर्तिपूजा और जादू-टोने में डूबा हुआ था, लेकिन उन्होंने इस मुल्क को अपनी आँखों के सामने एक विश्‍व शक्‍ति बनते देखा था, जबकि यहोवा के लोग अब भी दासों की तरह ज़ुल्म सह रहे थे। मगर मूसा जानता था कि परमेश्‍वर हालात का रुख बदल सकता है। हालाँकि ऐसा लग रहा था कि अपनी ख्वाहिशें पूरी करनेवाले, कामयाबी की बुलंदियाँ छू रहे हैं, लेकिन मूसा को विश्‍वास था कि दुष्टों का नाश ज़रूर होगा। इसका नतीजा यह हुआ कि वह “पाप का चंद दिनों का सुख भोगने” के लिए लुभाया नहीं गया।

5. क्या बात हमें “पाप का चंद दिनों का सुख भोगने” की ख्वाहिश को ठुकराने में मदद देगी?

5 आप “पाप का चंद दिनों का सुख भोगने” की ख्वाहिश को कैसे ठुकरा सकते हैं? कभी मत भूलिए कि पाप करने से मिलनेवाली खुशी बस थोड़े ही समय के लिए होती है। विश्‍वास आपको यह देखने में मदद देगा कि “यह दुनिया मिटती जा रही है और इसके साथ इसकी ख्वाहिशें भी मिट जाएँगी।” (1 यूह. 2:15-17) उन लोगों के भविष्य के बारे में मनन कीजिए, जो बिना पछतावा किए पाप करते रहते हैं। वे ‘फिसलनेवाले स्थानों में हैं, वे नाश हो गए हैं।’ (भज. 73:18, 19) जब आपमें पाप करने की इच्छा जागती है, तो खुद से पूछिए, ‘मैं अपने लिए किस तरह का भविष्य चाहता हूँ?’

6. (क) मूसा ने “फिरौन की बेटी का बेटा कहलाने से” इनकार क्यों किया? (ख) आपको क्यों लगता है कि मूसा का फैसला सही था?

6 मूसा के विश्‍वास ने उसे यह चुनाव करने में भी मदद दी कि वह आगे चलकर अपनी ज़िंदगी में क्या करेगा। “विश्‍वास ही से मूसा ने, बड़ा होने पर फिरौन की बेटी का बेटा कहलाने से इनकार कर दिया।” (इब्रा. 11:24) मूसा ने इस तरह तर्क नहीं किया कि पहले वह शाही दरबार में एक ऊँचा ओहदा पा ले, और फिर अपनी दौलत और ताकत का इस्तेमाल कर, अपने इसराएली भाइयों की मदद करने के ज़रिए परमेश्‍वर की सेवा करे। मूसा यहोवा से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसने अपने पूरे दिल, पूरी जान और पूरी ताकत से यहोवा की सेवा करने की ठान ली थी। (व्यव. 6:5) मूसा के इस फैसले ने उसे बहुत से दुखों से बचाया। वह कैसे? मूसा ने मिस्रियों की जो बहुत-सी धन-दौलत त्याग दी थी, वह आखिरकार इसराएली लूट ले गए। (निर्ग. 12:35, 36) यहाँ तक कि फिरौन को मुँह की खानी पड़ी और उसे मौत के घाट उतार दिया गया। (भज. 136:15) मगर मूसा का क्या हुआ? वह ज़िंदा बच गया और परमेश्‍वर ने उसे पूरे इसराएल राष्ट्र को एक सुरक्षित जगह तक पहुँचाने के लिए इस्तेमाल किया। उसे ज़िंदगी में असली कामयाबी मिली।

7. (क) मत्ती 6:19-21 के मुताबिक, हमें हमेशा की ज़िंदगी के लिए क्यों योजना बनानी चाहिए? (ख) कौन-सा अनुभव दिखाता है कि चंद दिनों की ज़िंदगी और हमेशा की ज़िंदगी की योजना बनाने में फर्क है?

7 अगर आप जवान हैं, तो विश्‍वास आपको करियर चुनने में कैसे मदद दे सकता है? भविष्य के लिए योजना बनाइए। क्या आप परमेश्‍वर के वादों पर विश्‍वास करते हुए हमेशा की ज़िंदगी के लिए ‘धन जमा करेंगे’ या चंद दिनों की ज़िंदगी के लिए? (मत्ती 6:19-21 पढ़िए।) यह फैसला सोफी नाम की एक बहन को करना था, जो एक बहुत ही हुनरमंद बैले डांसर थी। अमरीका की कई कंपनियों ने उसके आगे पढ़ाई का खर्च उठाने और अपनी कंपनी में एक अच्छी नौकरी देने की पेशकश रखी। वह कहती है: “मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगता था कि सब मेरी वाह-वाही कर रहे हैं। सच पूछो तो मैं खुद को दूसरों से बेहतर समझने लगी थी।” मगर वह आगे कहती है, “लेकिन मैं खुश नहीं थी।” फिर सोफी ने नौजवान पूछते हैं—मैं अपनी ज़िंदगी के साथ क्या करूँगा? (अँग्रेज़ी) वीडियो देखा। वह कहती है: “मुझे एहसास हुआ कि दुनिया ने मुझे कामयाबी और चाहनेवालों की वाह-वाही तो दी थी, लेकिन इसके बदले में मैंने तन-मन से यहोवा की सेवा करना लगभग छोड़ ही दिया था।” वह आगे कहती है: “मैंने गिड़गिड़ाकर यहोवा से प्रार्थना की और अपना डांस करियर छोड़ दिया।” वह अपने फैसले के बारे में कैसा महसूस करती है? वह कहती है: “मुझे अपनी पिछली ज़िंदगी छोड़ने का कोई अफसोस नहीं। आज मैं बहुत खुश हूँ। मैं अपने पति के साथ पायनियर सेवा कर रही हूँ। हालाँकि हम मशहूर नहीं हैं और हमारे पास ज़्यादा धन-दौलत भी नहीं है, लेकिन हमारे पास यहोवा है, बाइबल विद्यार्थी हैं और यहोवा की सेवा में रखे लक्ष्य हैं। मुझे अपने गुज़रे कल पर कोई पछतावा नहीं है।”

8. बाइबल की कौन-सी सलाह एक जवान को यह फैसला करने में मदद दे सकती है कि उसे कौन-सा करियर चुनना चाहिए?

8 यहोवा जानता है कि आपकी भलाई किसमें है। मूसा ने कहा: “तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय माने, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे, और यहोवा की जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनको ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो?” (व्यव. 10:12, 13) इसलिए अपनी जवानी में एक ऐसा करियर चुनिए, जिससे आप “अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से” यहोवा की सेवा और उससे प्यार कर सकें। इस तरह चुनाव करने से आप यकीन रख सकते हैं कि आप ही का ‘भला होगा।’

उसने सेवा में मिली ज़िम्मेदारियों को अनमोल समझा

9. समझाइए कि मूसा को यहोवा की दी ज़िम्मेदारी निभाना क्यों मुश्‍किल लगा होगा।

9 मूसा ने इस बात को “समझा कि परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन [“मसीह,” फुटनोट] होने के नाते निंदा सहना, मिस्र के खज़ानों से कहीं बड़ी दौलत है।” (इब्रा. 11:26) इस आयत में मूसा को “अभिषिक्‍त जन” या “मसीह” कहा गया है। इसका मतलब है कि यहोवा ने उसे इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद कराने के लिए चुना था। मूसा जानता था कि यह उसके लिए लोहे के चने चबाने के बराबर होगा। यहाँ तक कि उसे “निंदा” या विरोध सहना पड़ेगा। एक दफा एक इसराएली ने यह कहकर मूसा की खिल्ली उड़ायी थी: “किस ने तुझे हम लोगों पर हाकिम और न्यायी ठहराया?” (निर्ग. 2:13, 14) बाद में, खुद मूसा ने यहोवा से पूछा: ‘फ़िरौन मेरी क्योंकर सुनेगा?’ (निर्ग. 6:12) मूसा ने विरोध का सामना करने के लिए खुद को तैयार किया। वह कैसे? उसने यहोवा से प्रार्थना करके उसे अपना डर और अपनी चिंताएँ बतायीं। यहोवा ने कैसे मूसा की मदद की, ताकि वह यह मुश्‍किल ज़िम्मेदारी निभाने में कामयाब हो सके?

10. यहोवा ने किन तरीकों से मूसा को मदद दी, ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारी निभा सके?

10 यहोवा ने चार तरीकों से मूसा को मदद दी। सबसे पहले, यहोवा ने मूसा से वादा किया: “निश्‍चय मैं तेरे संग रहूंगा।” (निर्ग. 3:12) दूसरा, यहोवा ने अपने नाम के मतलब का एक पहलू समझाते हुए उसे आशा और हिम्मत दी: “मैं जो बनना चाहता हूँ वही बन जाऊँगा।” a (निर्ग. 3:14, एन.डब्ल्यू.) तीसरा, उसने मूसा को चमत्कार करने की ताकत दी, जिससे साबित हो गया कि मूसा को वाकई परमेश्‍वर ने भेजा था। (निर्ग. 4:2-5) और चौथा, यहोवा ने हारून को मूसा की तरफ से बोलने और उसे अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में मदद देने के लिए चुना। (निर्ग. 4:14-16) अपनी ज़िंदगी के आखिरी लमहों तक, मूसा को इस बात का पूरा यकीन हो चुका था कि परमेश्‍वर अपने सेवकों को जो भी ज़िम्मेदारी सौंपता है, उसे पूरी करने में वह उन्हें मदद ज़रूर देता है। इसलिए वह यहोशू से कह सका: “तेरे आगे आगे चलनेवाला यहोवा है; वह तेरे संग रहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिये मत डर और तेरा मन कच्चा न हो।”—व्यव. 31:8.

11. मूसा ने अपनी ज़िम्मेदारी को अनमोल क्यों समझा?

11 यहोवा ने जिस तरह मूसा को मदद दी, उसकी वजह से मूसा ने अपनी मुश्‍किल ज़िम्मेदारी को “मिस्र के खज़ानों” से भी ज़्यादा अनमोल समझा। और क्यों न हो, कहाँ मिस्र के फिरौन की सेवा करना और कहाँ इस पूरे जहान के मालिक यहोवा की सेवा करना! यहोवा के “अभिषिक्‍त जन” के तौर पर इसराएल की अगुवाई करने के आगे, मिस्र का राजकुमार कहलाने की क्या बिसात? सही नज़रिया बनाए रखने की वजह से मूसा को आशीष मिली। वह यहोवा के साथ एक खास और करीबी रिश्‍ते का लुत्फ उठा पाया, और यहोवा ने उसे इसराएलियों को वादा किए गए देश तक ले जाने के लिए “बड़े भय के काम” करने की ताकत दी।—व्यव. 34:10-12.

12. यहोवा ने हमें क्या-क्या सम्मान दिए हैं?

12 यहोवा ने हमें भी एक ज़िम्मेदारी सौंपी है। उसने हमें, प्रेषित पौलुस और दूसरे सेवकों की तरह, “सेवा के लिए” ठहराया है। (1 तीमुथियुस 1:12-14 पढ़िए।) खुशखबरी का प्रचार करने का यह सम्मान हम सभी मसीहियों को मिला है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) कुछ भाई-बहन पूरे समय के सेवकों के तौर पर काम करते हैं। बपतिस्मा पाए प्रौढ़ भाई सहायक सेवकों और प्राचीनों के तौर पर मंडली में दूसरों की सेवा करते हैं। लेकिन हो सकता है आपके परिवार के अविश्‍वासी सदस्य, उस सम्मान की कदर न करें, जो आपको यहोवा की सेवा में मिले हैं। यहाँ तक कि यहोवा की सेवा में आप जो त्याग करते हैं, उसके लिए शायद वे आपकी निंदा भी करें। (मत्ती 10:34-37) अगर वे आपको निराश करने में कामयाब हो जाते हैं, तो शायद आप सोचने लगें कि क्या आपके त्याग करने का कोई फायदा भी हुआ है या क्या वाकई आप अपनी ज़िम्मेदारी निभा पाएँगे। अगर आपके साथ ऐसा होता है, तो विश्‍वास कैसे आपको धीरज धरने में मदद देगा?

13. यहोवा हमें उसकी सेवा में मिली ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने में कैसे मदद देता है?

13 यहोवा से गिड़गिड़ाकर मदद माँगिए और विश्‍वास रखिए कि वह आपकी मदद ज़रूर करेगा। उसे अपना डर और अपनी चिंताएँ बताइए। आखिर, यहोवा ने ही तो आपको यह ज़िम्मेदारी सौंपी है, इसलिए आप पूरा यकीन रख सकते हैं कि वह आपको कामयाब होने में ज़रूर मदद देगा। कैसे? ठीक उसी तरह जैसे उसने मूसा की मदद की थी। सबसे पहले, यहोवा वादा करता है: “मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा।” (यशा. 41:10) दूसरा, वह आपको याद दिलाता है कि आप उसके वादों पर भरोसा रख सकते हैं: “मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूंगा; मैं ने यह विचार बान्धा है और उसे सुफल भी करूंगा।” (यशा. 46:11) तीसरा, यहोवा आपको अपनी सेवा में कामयाब होने के लिए “वह ताकत [देता है] जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।” (2 कुरिं. 4:7) और चौथा, उसकी सेवा में बने रहने के लिए, हमारी परवाह करनेवाला पिता आपको दुनिया-भर में फैली सच्चे उपासकों की बिरादरी देता है, जो ‘एक-दूसरे को दिलासा देते और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते’ हैं। (1 थिस्स. 5:11) जब यहोवा आपको अपनी सेवा में कामयाबी हासिल करने के लिए ज़रूरी मदद देता है, तो इससे उस पर आपका विश्‍वास और भी मज़बूत होगा। नतीजा, आप यहोवा की सेवा में मिली अपनी ज़िम्मेदारियों को दुनिया के किसी भी खज़ाने से ज़्यादा अनमोल समझेंगे।

“वह अपनी नज़र इनाम पाने पर लगाए हुए था”

14. मूसा को क्यों पूरा यकीन था कि उसे इनाम मिलेगा?

14 मूसा “अपनी नज़र इनाम पाने पर लगाए हुए था।” (इब्रा. 11:26) जी हाँ, हालाँकि मूसा को भविष्य में होनेवाली बहुत-सी बातों की जानकारी नहीं थी, फिर भी उसे जो थोड़ा-बहुत मालूम था, उस आधार पर उसने अपनी ज़िंदगी में फैसले लिए। अपने पुरखा अब्राहम की तरह, मूसा को पूरा भरोसा था कि यहोवा मरे हुओं को जी उठा सकता है। (लूका 20:37, 38; इब्रा. 11:17-19) मूसा को परमेश्‍वर के वादों पर भरोसा था और इसलिए उसने 40 साल की अपनी भगोड़े की ज़िंदगी को और वीराने में बिताए 40 सालों को बेकार नहीं समझा। हालाँकि वह नहीं जानता था कि यहोवा ठीक किस तरह अपने सभी वादे पूरे करेगा, फिर भी उसे यहोवा पर इतना विश्‍वास था कि वह भविष्य में मिलनेवाले इनाम को मानो देख सकता था।

15, 16. (क) हमें अपनी नज़र इनाम पाने पर लगाए रखने की ज़रूरत क्यों है? (ख) आप परमेश्‍वर के राज में किन आशीषों का लुत्फ उठाने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं?

15 क्या आप अपनी नज़र अपना इनाम “पाने पर लगाए हुए” हैं? मूसा की तरह, हम भी अभी तक ठीक-ठीक नहीं जानते कि यहोवा अपने वादे कैसे पूरे करेगा। मिसाल के लिए, जहाँ तक महा-संकट के आने की बात है, हम “नहीं जानते कि [उसका] तय किया हुआ वक्‍त कौन-सा है।” (मर. 13:32, 33) हालाँकि हम भविष्य के बारे में सब कुछ नहीं जानते, मगर हाँ, हम आनेवाले फिरदौस के बारे में मूसा से कहीं ज़्यादा जानकारी रखते हैं। परमेश्‍वर के आनेवाले राज में ज़िंदगी कैसी होगी इस मामले में यहोवा ने हमसे इतने सारे वादे किए हैं कि इनकी मदद से हम अपनी नज़र उस इनाम पर “लगाए” रख सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो इन वादों की मदद से हम अपने मन में नयी दुनिया की एक साफ तसवीर बना सकते हैं। मन में नयी दुनिया की साफ तसवीर होने से हमें वाकई बढ़ावा मिलेगा कि हम परमेश्‍वर के राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें। वह क्यों? ज़रा सोचिए: क्या आप एक ऐसा घर खरीदने में अपना पैसा लगाएँगे, जिसके बारे में आपको बहुत कम जानकारी है? हरगिज़ नहीं। तो हम एक ऐसे राज को पहली जगह देने में अपनी ज़िंदगी कैसे लगाएँगे, जो हमारे लिए असल ही न हो। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम अपनी विश्‍वास की आँखों से परमेश्‍वर के राज में अपनी ज़िंदगी की एक साफ तसवीर देखें।

मूसा जैसे वफादार सेवकों से बात करना कितना रोमांचक होगा! (पैराग्राफ 16 देखिए)

16 अपने मन में परमेश्‍वर के राज की एक साफ तसवीर बनाने के लिए, इनाम पर अपनी नज़र “लगाए” रखिए, यानी फिरदौस में अपनी ज़िंदगी की कल्पना कीजिए। मिसाल के लिए, जब आप बाइबल के उन किरदारों की ज़िंदगी के बारे में अध्ययन करते हैं, जिन्हें फिरदौस में दोबारा जी उठाया जाएगा, तो सोचिए कि आप उनसे क्या पूछना चाहेंगे। सोचिए कि वे आखिरी दिनों में बितायी आपकी ज़िंदगी के बारे में आपसे क्या पूछ सकते हैं। कल्पना कीजिए उस वक्‍त आप कितने खुश होंगे जब आप सैकड़ों साल पहले जीए अपने रिश्‍तेदारों से मिलेंगे और उन्हें सिखाएँगे कि परमेश्‍वर ने उनके लिए क्या-क्या किया है। और सोचिए कि जब आप शांत माहौल में जंगली जानवरों को देखेंगे और उनके बारे में नयी-नयी बातें जानेंगे, तो आपको कितनी खुशी होगी। इस बारे में मनन कीजिए कि जब आप धीरे-धीरे सिद्ध होते जाएँगे, तो आप खुद को यहोवा के कितने करीब महसूस करेंगे।

17. भविष्य में मिलनेवाले इनाम की अपने मन में साफ तसवीर बनाए रखने से आज हमें कैसे मदद मिल सकती है?

17 भविष्य में मिलनेवाले इनाम की अपने मन में साफ तसवीर बनाए रखने से हमें धीरज धरने, खुश रहने और फैसले लेने में मदद मिलती है। पौलुस ने अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखा: “अगर हम उसकी आशा रखते हैं जिसे हमने देखा नहीं, तो हम धीरज के साथ उसका इंतज़ार करते रहते हैं।” (रोमि. 8:25) पर यह बात सिर्फ अभिषिक्‍त मसीहियों पर ही नहीं, बल्कि उन सभी मसीहियों पर भी लागू होती है, जो हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा रखते हैं। हालाँकि हमें अभी तक यह इनाम नहीं मिला है, लेकिन हमारा विश्‍वास इतना मज़बूत है कि हम धीरज धरते हुए “इनाम पाने” का इंतज़ार कर रहे हैं। मूसा की तरह, हमें भी नहीं लगता कि यहोवा की सेवा में हमने जो इतने साल बिताए हैं, वे सब बेकार गए। इसके बजाय, हमें पूरा यकीन है कि “जो चीज़ें दिखायी देती हैं वे कुछ वक्‍त के लिए हैं, मगर जो दिखायी नहीं देतीं वे हमेशा कायम रहती हैं।”—2 कुरिंथियों 4:16-18 पढ़िए।

18, 19. (क) हमें अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष क्यों करना होगा? (ख) हम अगले लेख में किस बारे में चर्चा करेंगे?

18 विश्‍वास हमें “उन असलियतों का साफ सबूत [पहचानने में मदद देता] है, जो अभी दिखायी नहीं देतीं।” (इब्रा. 11:1) एक शारीरिक इंसान विश्‍वास की आँखों से नहीं देखता, इसलिए वह यहोवा की सेवा करने के सम्मान की कदर नहीं करता। वह इसे “मूर्खता” समझता है। (1 कुरिं. 2:14) हम हमेशा तक जीने की आशा रखते हैं और मरे हुए लोगों को जी उठते देखना चाहते हैं, जो कि ऐसी बातें हैं जिनके बारे में इस दुनिया के लोग सोच भी नहीं सकते। पौलुस के दिनों में कुछ लोग उसे “बकबक करनेवाला” कहते थे, मानो उसे कुछ पता ही न हो। उसी तरह, आज ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि हम जिस आशा के बारे में प्रचार करते हैं, वह बेवकूफी है।—प्रेषि. 17:18.

19 हम ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिनमें ज़रा-भी विश्‍वास नहीं है, इसलिए हमें अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा। यहोवा से मिन्‍नत कीजिए कि आप ‘अपना विश्‍वास खो न दें।’ (लूका 22:32) मूसा की तरह, कभी मत भूलिए कि पाप करने का क्या अंजाम होता है, कि यहोवा की सेवा करना क्या ही बड़ा सम्मान है, और आपके पास हमेशा तक जीने की आशा है। क्या हम मूसा की मिसाल से सिर्फ यही सीखते हैं? नहीं। अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि कैसे उसके विश्‍वास ने उसे “अदृश्‍य परमेश्‍वर” को देखने में मदद दी।—इब्रा. 11:27.

a निर्गमन 3:14 में दर्ज़ परमेश्‍वर के शब्दों के बारे में बाइबल के एक विद्वान ने लिखा: “कोई भी चीज़ उसे अपनी मरज़ी पूरी करने से रोक नहीं सकती . . . यह नाम [यहोवा] इसराएल का दृढ़ गढ़ ठहरता, जिससे उन्हें बहुत दिलासा और आशा मिलती।”