‘मेरा खाना यह है कि मैं परमेश्वर की मरज़ी पूरी करूँ’
आपको सबसे ज़्यादा खुशी किस बात से मिलती है? इंसानी रिश्तों के किसी पहलू से, जैसे शादी, बच्चों की परवरिश, या किसी के साथ दोस्ती बढ़ाने से? बेशक, आपको अपने अज़ीज़ों के साथ मिलकर खाना खाने में खुशी मिलती होगी। लेकिन यहोवा का एक सेवक होने के नाते, क्या आपको परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने, उसके वचन का अध्ययन करने और खुशखबरी का प्रचार करने से और भी ज़्यादा खुशी नहीं मिलती?
पुराने ज़माने में इसराएल के राजा दाविद ने एक गीत में सृष्टिकर्ता की महिमा करते हुए गाया: “हे मेरे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूं; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्त:करण में बसी है।” (भज. 40:8) दाविद ने अपनी ज़िंदगी में कई मुश्किलों और दबावों का सामना किया। फिर भी उसने परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में सच्ची खुशी पायी। बेशक, सिर्फ दाविद ही यहोवा का ऐसा उपासक नहीं था, जिसने खुशी-खुशी सच्चे परमेश्वर की सेवा की।
प्रेषित पौलुस ने भजन 40:8 में दिए शब्दों को मसीहा या ख्रिस्त पर लागू करते हुए लिखा: “जब मसीह [यीशु] दुनिया में आया तो उसने कहा: ‘बलिदान और चढ़ावा तू ने नहीं चाहा, मगर तू ने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया। तू ने होम-बलियाँ और पाप-बलियाँ न चाहीं।’ तब मैंने कहा, ‘हे परमेश्वर, देख! मैं तेरी मरज़ी पूरी करने आया हूँ, (ठीक जैसे शास्त्र में मेरे बारे में लिखा है)।’”—इब्रा. 10:5-7.
जब यीशु धरती पर था, तब उसने सृष्टि को निहारने, दोस्तों के साथ वक्त बिताने और दूसरों के साथ खाना खाने का लुत्फ उठाया। (मत्ती 6:26-29; यूह. 2:1, 2; 12:1, 2) फिर भी, उसे सबसे ज़्यादा दिलचस्पी इस बात में थी कि वह स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता की मरज़ी पूरी करे। और ऐसा करने से उसे सबसे ज़्यादा खुशी भी मिलती थी। यीशु ने कहा: “मेरा खाना यह है कि मैं अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करूँ और उसका काम पूरा करूँ।” (यूह. 4:34; 6:38) यीशु के चेलों ने अपने गुरू से सच्ची खुशी पाने का राज़ सीखा। उन्होंने खुशी-खुशी अपनी मरज़ी से और बड़ी उत्सुकता से दूसरों को राज का संदेश सुनाया।—लूका 10:1, 8, 9, 17.
‘जाओ और चेला बनना सिखाओ’
यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी थी: “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है। और देखो! मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:19, 20) इस काम को करने में तीन चीज़ें शामिल हैं: जहाँ कहीं भी लोग मिलें उन्हें प्रचार करना, जो दिलचस्पी दिखाते हैं उनके पास जाकर वापसी भेंट करना और इन लोगों के साथ बाइबल अध्ययन चलाना। इस काम को करने से हमें सबसे ज़्यादा खुशी मिल सकती है।
प्यार हमें उभारता है कि लोगों की बेरुखी के बावजूद हम प्रचार करने में लगे रहें
चाहे लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी लें या न लें, अगर प्रचार काम की तरफ हमारा नज़रिया सही है, तो हमें इस काम से ज़रूर खुशी मिलेगी। हालाँकि हमें प्रचार में कभी-कभी बेरुखी का सामना करना पड़ता है या कई बार लोग हमारे संदेश में ज़रा-भी दिलचस्पी नहीं लेते, फिर भी हम खुशखबरी का प्रचार करने में लगे रहते हैं। क्यों? क्योंकि हमें इस बात का एहसास है कि राज का प्रचार करने के और चेला बनाने के काम में हिस्सा लेकर हम परमेश्वर और अपने पड़ोसियों के लिए अपना प्यार दिखा रहे होते हैं। और इस काम में लगे रहना ज़रूरी भी है, क्योंकि हमारी अपनी और हमारे पड़ोसियों की ज़िंदगी दाँव पर लगी है। (यहे. 3:17-21; 1 तीमु. 4:16) आइए कुछ मुद्दों पर गौर करें, जिनसे हमारे कई भाई-बहनों को मुश्किल इलाकों में भी नए जोश के साथ प्रचार करने या अपना जोश बरकरार रखने में मदद मिली है।
हर मौके का फायदा उठाइए
प्रचार करते वक्त सही सवालों का इस्तेमाल करने से अकसर अच्छे नतीजे निकलते हैं। आमाल्या नाम की बहन ने एक सुबह एक आदमी को पार्क में अखबार पढ़ते देखा। वह उस आदमी के पास गयी और उससे पूछा कि क्या उसे कोई अच्छी खबर पढ़ने को मिली। जब उस आदमी ने कहा नहीं, तो आमाल्या ने उससे कहा: “मैं आपके लिए एक अच्छी खबर लेकर आयी हूँ और वह है, परमेश्वर के राज के बारे में।” इससे उस आदमी की दिलचस्पी जागी और उसने बाइबल अध्ययन का न्यौता कबूल किया। दरअसल, आमाल्या उस पार्क में तीन बाइबल अध्ययन शुरू कर पायी।
जेनिस ने अपने काम की जगह को अपने प्रचार का इलाका बना लिया है। जब एक सुरक्षा गार्ड और साथ काम करनेवाली एक औरत ने प्रहरीदुर्ग में छपे एक लेख में दिलचस्पी ली, तो जेनिस ने उनके आगे पेशकश रखी कि वह उनके लिए लगातार पत्रिकाएँ लाएगी। जेनिस ने यही पेशकश अपने साथ काम करनेवाले एक और व्यक्ति के आगे रखी, जिसे प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में छपे अलग-अलग विषय बहुत ही दिलचस्प लगे। यह देखकर एक और सहकर्मी ने उससे पत्रिकाएँ माँगीं। इस तरह, वह अपने काम की जगह पर 11 लोगों को हर महीने पत्रिकाएँ दे रही है। जेनिस कहती है: “यहोवा ने मुझे क्या ही आशीष दी!”
सही नज़रिया रखिए
एक सफरी निगरान ने सुझाव दिया कि प्रचारकों को घर-घर के प्रचार में अपनी बातचीत सिर्फ इतना कहकर खत्म नहीं कर देनी चाहिए कि वे किसी और दिन घर-मालिक से मिलने आएँगे। उन्होंने कहा कि इसके बजाय, प्रचारक घर-मालिक से पूछ सकते हैं: “क्या मैं आपको दिखा सकता हूँ कि बाइबल अध्ययन कैसे चलाया जाता है?” या “मैं अगली बार किस दिन और किस समय आपसे दोबारा मिल सकता हूँ, ताकि हम अपनी चर्चा जारी रख सकें?” उस सफरी निगरान ने बताया कि जिस मंडली में वह सेवा कर रहा था, वहाँ के भाई-बहनों ने यह तरीका अपनाया और एक ही हफ्ते में उन्होंने 44 बाइबल अध्ययन शुरू किए!
जल्द-से-जल्द वापसी भेंट करना, हो सके तो एक-दो दिन बाद ही, काफी असरदार हो सकता है। क्यों? क्योंकि ऐसा करना दिखाएगा कि हमें नेकदिल लोगों को बाइबल समझने में मदद देने में सच्ची दिलचस्पी है। जब एक स्त्री से पूछा गया कि उसने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करना क्यों कबूल किया, तो उसने
कहा: “मैंने इसलिए अध्ययन करना शुरू किया, क्योंकि उन्होंने मुझमें सच्ची दिलचस्पी ली और मेरे लिए प्यार दिखाया।”आप घर-मालिक से पूछ सकते हैं, “क्या मैं आपको दिखा सकता हूँ कि बाइबल अध्ययन कैसे चलाया जाता है?”
‘पायनियर सेवा स्कूल’ में हाज़िर होने के कुछ ही समय के अंदर, मादाई नाम की एक बहन 15 बाइबल अध्ययन चलाने लगी। उसे और 5 बाइबल अध्ययन मिले, जो उसने दूसरे प्रचारकों को सौंप दिए। उसके कई बाइबल विद्यार्थी लगातार सभाओं में आने लगे। इतने सारे बाइबल अध्ययन शुरू करने में किस बात ने मादाई की मदद की? स्कूल ने उसे सिखाया था कि वह तब तक दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों के पास जाकर वापसी भेंट करती रहे, जब तक कि वे मिलते नहीं। एक और साक्षी बहन, जिसने कई लोगों को बाइबल सच्चाइयाँ सीखने में मदद दी है, कहती है, “मैंने सीखा है कि लगातार वापसी भेंट करने से ही हम उन लोगों की मदद कर सकते हैं, जो यहोवा को जानना चाहते हैं।”
जल्द-से-जल्द वापसी भेंट करने से हम दिखाते हैं कि जो बाइबल को समझना चाहते हैं, उन लोगों में हमें सच्ची दिलचस्पी है
वापसी भेंट करने और बाइबल अध्ययन चलाने में लगातार कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन इससे आशीषें भी बहुत मिलती हैं। राज के प्रचार काम में खुद को लगाए रखने से, हम दूसरों की मदद कर सकते हैं कि वे “सच्चाई का सही ज्ञान हासिल करें” और उद्धार पाएँ। (1 तीमु. 2:3, 4) और इससे हमें संतुष्टि और ऐसी खुशी मिल सकती है, जिसकी तुलना किसी और चीज़ से नहीं की जा सकती।