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प्रचार करते वक्‍त सुनहरे नियम पर अमल कीजिए

प्रचार करते वक्‍त सुनहरे नियम पर अमल कीजिए

“जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।”—मत्ती 7:12.

1. क्या यह बात कोई मायने रखती है कि हम लोगों से बात करते वक्‍त उनके साथ किस तरह पेश आते हैं? एक मिसाल दीजिए। (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

 फिजी देश में एक पति-पत्नी लोगों को मसीह की मौत के स्मारक में हाज़िर होने का न्यौता दे रहे थे। वे एक स्त्री से उसके घर के बाहर बात कर रहे थे कि अचानक बारिश शुरू हो गयी। इस भाई ने अपना एक छाता उस स्त्री को इस्तेमाल करने के लिए दिया और वह और उसकी पत्नी एक छाता इस्तेमाल करने लगे। यह बात उस स्त्री के दिल को इस कदर छू गयी कि उसने फैसला किया कि वह स्मारक में ज़रूर जाएगी। बाद में उसने बताया कि उस जोड़े ने उससे जो कहा था, उस बारे में उसे ज़्यादा कुछ याद नहीं, लेकिन जिस तरह वे उसके साथ पेश आए थे, वह उसे ज़रूर याद रहा। यह जोड़ा दरअसल एक ऐसे नियम पर अमल कर रहा था, जिसे अकसर सुनहरा नियम कहा जाता है।

2. (क) सुनहरा नियम क्या है? (ख) हम उस पर कैसे अमल कर सकते हैं?

2 सुनहरा नियम क्या है? यह वही सलाह है जो यीशु ने दी थी, जब उसने कहा: “जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” (मत्ती 7:12) हम इस सुनहरे नियम पर कैसे अमल कर सकते हैं? सबसे पहले, खुद से पूछिए, ‘अगर मैं उस व्यक्‍ति की जगह होता, तो मैं क्या चाहता कि लोग मेरे साथ किस तरह पेश आएँ?’ फिर सामनेवाले के साथ उसी तरह पेश आने की पूरी कोशिश कीजिए।—1 कुरिं. 10:24.

3, 4. (क) समझाइए कि क्यों हमें भाई-बहनों के अलावा, दूसरों के साथ पेश आते वक्‍त भी सुनहरे नियम पर अमल करना चाहिए। (ख) इस लेख में हम किन चार सवालों पर गौर करेंगे?

3 क्या यीशु यह कह रहा था कि हमें सिर्फ मंडली में दूसरों के साथ पेश आते वक्‍त सुनहरे नियम को मानना चाहिए? नहीं। वह बता रहा था कि हमें सभी के साथ, यहाँ तक कि अपने दुश्‍मनों के साथ भी, किस तरह पेश आना चाहिए। (लूका 6:27, 28, 31, 35 पढ़िए।) इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि लोगों को प्रचार करते वक्‍त भी हम इस नियम पर अमल करें, क्योंकि हो सकता है उनमें से बहुत-से लोग खुशखबरी कबूल कर लें और “हमेशा की ज़िंदगी” पाएँ।—प्रेषि. 13:48.

4 अब हम चार सवालों पर गौर करेंगे, जिन्हें हम प्रचार करते वक्‍त ध्यान में रख सकते हैं। मैं किनसे बात कर रहा हूँ? मैं उनसे कहाँ बात कर रहा हूँ? लोगों से बात करने का सबसे सही वक्‍त कब होगा? और मुझे उनसे कैसे बात करनी चाहिए? जैसा कि हम आगे देखेंगे, ये सवाल हमें यह समझने में मदद देंगे कि लोग क्या चाहते हैं कि हम उनके साथ कैसे पेश आएँ। फिर हम जान पाएँगे कि हर व्यक्‍ति से बात करने का सबसे बढ़िया तरीका क्या होगा।—1 कुरिं. 9:19-23.

मैं किनसे बात कर रहा हूँ?

5. हम खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं?

5 प्रचार में मिलनेवाले हरेक व्यक्‍ति की एक अलग शख्सियत होती है। हर किसी की परवरिश एक अलग माहौल में हुई होती है और सभी की अपनी समस्याएँ होती हैं। (2 इति. 6:29) जब आप किसी से बात करते हैं, तो खुद से पूछिए: ‘अगर मैं उसकी जगह होता, तो मैं क्या चाहता कि सामनेवाला मेरे साथ किस तरह पेश आए? क्या मैं चाहता कि कोई मुझे जाने बगैर ही मेरे बारे में राय कायम कर ले? या क्या मैं चाहता कि वह मुझे निजी तौर पर जाने?’ ये सवाल हमें सुनहरे नियम पर अमल करने में और हर घर-मालिक के साथ उसकी शख्सियत को ध्यान में रखते हुए पेश आने में मदद दे सकते हैं।

6, 7. प्रचार करते वक्‍त अगर कोई हमारे साथ बेरुखी या कठोरता से पेश आता है, तो हमें क्या करना चाहिए?

6 मिसाल के लिए, मसीही अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि वे बाइबल की इस सलाह को मानें कि उनके “बोल हमेशा मन को भानेवाले” हों। (कुलु. 4:6) मगर हम असिद्ध हैं। शायद हमारा दिन अच्छा नहीं जा रहा और हम किसी से कुछ ऐसा कह बैठें, जिसका हमें बाद में अफसोस हो। (याकू. 3:2) जब ऐसा होता है, तो हम उम्मीद करते हैं कि सामनेवाला इस बात को ध्यान में रखे कि हम हमेशा इस तरह पेश नहीं आते। हम नहीं चाहेंगे कि वह हमारे बारे में यह राय कायम कर ले कि हम एक कठोर इंसान हैं। तो सोचिए, जब दूसरे हमारे साथ कठोरता से पेश आते हैं, तब क्या हमें भी उन्हें इसी तरह लिहाज़ नहीं दिखाना चाहिए?

7 प्रचार करते वक्‍त अगर कोई आपके साथ बेरुखी या कठोरता से पेश आता है, तो क्या आप यह समझने की कोशिश कर सकते हैं कि वह इस तरह क्यों पेश आ रहा है? क्या हो सकता है कि वह नौकरी-पेशे या स्कूल की पढ़ाई की वजह से तनाव में हो? क्या उसे कोई गंभीर बीमारी है? बहुत-से लोग पहली बार साक्षियों से मिलते वक्‍त कठोरता से पेश आए थे, मगर इसके बावजूद जब साक्षियों ने उन्हें आदर और कोमलता दिखायी, तो उन्होंने अच्छा रवैया दिखाया।—नीति. 15:1; 1 पत. 3:15.

8. हमें “सब किस्म के लोगों” को प्रचार क्यों करना चाहिए?

8 हम सब किस्म के लोगों को प्रचार करते हैं। पिछले कुछ सालों के दौरान, प्रहरीदुर्ग में आए “ज़िंदगी सँवार देती है बाइबल” नाम के श्रृंखला लेखों में 60 से भी ज़्यादा अनुभव प्रकाशित किए गए हैं। इन लेखों में ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जो एक वक्‍त पर चोर, शराबी, गैंग के सदस्य, या ड्रग्स लेनेवाले थे। कुछ नेता या धर्म-गुरू थे, तो कुछ करियर के पीछे भागनेवालों में से थे। दूसरे ऐसे थे, जो बहुत ही अनैतिक ज़िंदगी जी रहे थे। लेकिन सभी ने खुशखबरी सुनी, बाइबल अध्ययन कबूल किया, अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए और आखिर में वे सच्चाई में आ गए। यह दिखाता है कि हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि कुछ लोग कभी राज की खुशखबरी कबूल नहीं करेंगे। (1 कुरिंथियों 6:9-11 पढ़िए।) ‘सब किस्म के लोग’ सच्चाई में आ सकते हैं।—1 कुरिं. 9:22.

मैं लोगों से कहाँ बात कर रहा हूँ?

9. हमें दूसरों के घर के लिए आदर क्यों दिखाना चाहिए?

9 हम अकसर लोगों के घर पर उन्हें गवाही देते हैं। (मत्ती 10:11-13) हमारा घर हमारे लिए बहुत अहमियत रखता है, इसलिए जब लोग हमारे घर और हमारी चीज़ों के लिए आदर दिखाते हैं, तो हमें अच्छा लगता है। हम चाहते हैं कि हमारा घर एक ऐसी जगह हो जहाँ हम सुरक्षित महसूस करें और अपने परिवार के साथ वक्‍त बिता सकें। जब हम प्रचार में लोगों से बात करते हैं, तो हमें भी उनके घर के लिए वही आदर दिखाना चाहिए।—प्रेषि. 5:42.

10. प्रचार करते वक्‍त हम दूसरों को नाराज़ करने से कैसे दूर रह सकते हैं?

10 आज हम एक ऐसी दुनिया में जीते हैं, जहाँ चारों तरफ जुर्म किए जा रहे हैं। इसलिए कई घर-मालिक अजनबियों को देखकर शक करने लगते हैं। (2 तीमु. 3:1-5) हमें कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे लोग हम पर शक करने लगें। मिसाल के लिए, कल्पना कीजिए आप किसी के दरवाज़े पर दस्तक देते हैं। अगर कोई दरवाज़ा नहीं खोलता, तो शायद आपको खिड़की से अंदर झाँकने या फिर घर के आस-पास जाकर देखने का मन करे, ताकि आप घर-मालिक को ढूँढ़ सकें। आप शायद ऐसा इसलिए करें, क्योंकि आप प्रचार करते वक्‍त ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों से मिलना चाहते हैं। (प्रेषि. 10:42) आप सच्चे दिल से लोगों की मदद करना चाहते हैं, ताकि वे परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई सीख सकें। (रोमि. 1:14, 15) मगर आपके इलाके में ऐसा करने से क्या घर-मालिक नाराज़ हो सकता है? आपको ऐसा करते देखकर उसके पड़ोसी क्या सोचेंगे? हमें सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए और ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे हमारे प्रचार इलाके में लोग नाराज़ हो जाएँ। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “हम किसी भी तरह से ठोकर खाने की कोई वजह नहीं देते ताकि हमारी सेवा में कोई खामी न पायी जाए।” (2 कुरिं. 6:3) जब हम अपने प्रचार इलाके में लोगों के घर और उनकी चीज़ों के लिए आदर दिखाते हैं, तो हो सकता है वे सच्चाई की तरफ आकर्षित हों।—1 पतरस 2:12 पढ़िए।

आइए हम हमेशा प्रचार में लोगों के घर और चीज़ों के लिए आदर दिखाएँ (पैराग्राफ 10 देखिए)

लोगों से बात करने का सबसे सही वक्‍त कब होगा?

11. जब दूसरे हमारे वक्‍त की कदर करते हैं, तो हमें क्यों अच्छा लगता है?

11 हममें से ज़्यादातर लोग बहुत व्यस्त रहते हैं। अपने सभी काम पूरे करने के लिए, हमें पहले से योजना बनानी पड़ती है कि हम किस समय पर क्या काम करेंगे। (इफि. 5:16; फिलि. 1:10) अगर अचानक किसी वजह से हमें अपने शेड्‌यूल में कुछ तबदीली करनी पड़े, तो हो सकता है हम खीज उठें। इसलिए जब दूसरे हमारे वक्‍त की कदर करते हैं और जब वे समझते हैं कि क्यों हम उनके साथ ज़्यादा वक्‍त नहीं बिता सकते, तो हमें अच्छा लगता है। सुनहरा नियम हमें यह दिखाने में कैसे मदद दे सकता है कि हम दूसरों के वक्‍त की कदर करते हैं?

12. हम यह कैसे तय कर सकते हैं कि हमारे प्रचार इलाके में लोगों से बात करने का सबसे सही वक्‍त कब होगा?

12 लोगों से बात करने का सबसे सही वक्‍त कब होता है? खुद से पूछिए: ‘मेरे प्रचार इलाके में, लोग अकसर कब घर पर रहते हैं? उनके पास हमारी बात सुनने के लिए कब वक्‍त होगा?’ अच्छा होगा अगर हम अपने शेड्‌यूल में फेरबदल करें और उस वक्‍त उनसे जाकर मिलें। कई जगहों पर लोग शाम को घर पर मिलते हैं और उस समय घर-घर का प्रचार करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं। अगर आपके इलाके में भी यह बात सच है, तो क्या आप शाम को कुछ देर के लिए घर-घर के प्रचार में जाने की योजना बना सकते हैं? (1 कुरिंथियों 10:24 पढ़िए।) अगर हम लोगों की सहुलियत के हिसाब से उनसे बात करने के लिए त्याग करें, तो यहोवा ज़रूर हमें आशीष देगा।

13. आप घर-मालिक के लिए आदर कैसे दिखा सकते हैं?

13 हम और किस तरह दिखा सकते हैं कि हम घर-मालिक का आदर करते हैं? जब हमें प्रचार में कोई दिलचस्पी दिखानेवाला व्यक्‍ति मिलता है, तो बेशक हमें उसे अच्छी गवाही देनी चाहिए, लेकिन हमें उसका बहुत ज़्यादा समय नहीं लेना चाहिए। शायद घर-मालिक ने कुछ और काम करने की योजना बनायी हो, जो उसके लिए ज़रूरी हो। अगर वह कहता है कि वह व्यस्त है, तो हम कह सकते हैं कि हम उसका ज़्यादा समय नहीं लेंगे। फिर हमें अपनी बात रखनी चाहिए और जल्द-से-जल्द बातचीत खत्म करनी चाहिए। (मत्ती 5:37) बातचीत खत्म करने से पहले, अच्छा होगा अगर हम घर-मालिक से पूछें कि उससे दोबारा मिलने का सबसे सही वक्‍त कब होगा। कुछ प्रचारक कहते हैं: “मैं आपसे दोबारा मिलना चाहूँगा। क्या आप चाहेंगे कि मैं आने से पहले आपको फोन या मैसेज कर दूँ?” जब हम इस बात की कदर करते हैं कि लोग व्यस्त रहते हैं और उनके अपने काम होते हैं, तो हम पौलुस की मिसाल पर चल रहे होते हैं, जो ‘अपने फायदे की नहीं, बल्कि बहुतों के फायदे की खोज में रहता था ताकि वे उद्धार पा सकें।’—1 कुरिं. 10:33.

मुझे लोगों के साथ कैसे बात करनी चाहिए?

14-16. (क) हमें घर-मालिक को साफ-साफ क्यों बताना चाहिए कि हमारे आने का मकसद क्या है? एक उदाहरण दीजिए। (ख) एक सफरी निगरान प्रचार में क्या तरीका अपनाता है?

14 कल्पना कीजिए कि कोई आपको फोन करता है, मगर आप उसकी आवाज़ नहीं पहचानते। वह एक अजनबी है, मगर आपसे पूछता है कि आप किस तरह का खाना पसंद करते हैं। आप सोचते हैं कि कौन फोन कर रहा है और आखिर वह चाहता क्या है। आप रुखाई से पेश नहीं आना चाहते, इसलिए आप कुछ देर उससे बात कर लेते हैं, मगर फिर आप शायद उससे कह दें कि आप बातचीत जारी नहीं रखना चाहते। अब इसी दृश्‍य की एक बार फिर कल्पना कीजिए। एक व्यक्‍ति आपको फोन करता है, मगर इस बार वह आपको अपनी पहचान बताता है। वह कहता है कि वह एक ऐसी नौकरी कर रहा है जिसमें वह लोगों को पौष्टिक खाना खाने का बढ़ावा देता है। वह आपको बताता है कि उसके पास कुछ जानकारी है जिससे आपको मदद मिल सकती है। ऐसे में शायद आप उसकी बात सुनना चाहें। दरअसल, जब लोग हमसे बात करते वक्‍त अपनी पहचान नहीं छिपाते, तो हमें अच्छा लगता है। प्रचार करते वक्‍त हम लोगों के लिए इस तरह आदर कैसे दिखा सकते हैं?

15 कुछ इलाकों में, हमें घर-मालिक को साफ-साफ बताना चाहिए कि हमारे आने का मकसद क्या है। ज़रा कल्पना कीजिए: आप एक घर-मालिक के दरवाज़े पर दस्तक देते हैं। आपके पास बहुत अनमोल जानकारी है, जिसकी घर-मालिक को सख्त ज़रूरत है। पर आप उसे यह नहीं बताते कि आप कौन हैं और क्यों उसके घर आए हैं। इसके बजाय, आप बस इस तरह का सवाल पूछकर सीधे अपनी पेशकश शुरू कर देते हैं: “अगर आप इस दुनिया की कोई समस्या सुलझा सकते, तो आप किस समस्या को दूर करते?” आप यह सवाल इसलिए पूछते हैं, ताकि आप यह पता लगा सकें कि घर-मालिक किस बारे में सोच रहा है, और फिर आप बाइबल से कोई आयत पढ़ सकें। लेकिन शायद घर-मालिक सोच रहा हो: ‘आखिर यह अजनबी है कौन, और क्यों मुझसे यह सवाल पूछ रहा है?’ हम सभी चाहते हैं कि लोगों को हमसे बात करने में खुशी हो। (फिलि. 2:3, 4) हम यह कैसे कर सकते हैं?

16 एक सफरी निगरान यह तरीका अपनाता है: अपना परिचय देने के बाद, वह घर-मालिक को क्या आप सच्चाई जानना चाहेंगे? ट्रैक्ट की एक कॉपी देता है और कहता है: “आज हम इस इलाके में सभी को इसकी एक कॉपी दे रहे हैं। इसमें ऐसे 6 सवाल दिए हैं जो कई लोग पूछते हैं। यह आपके लिए है।” भाई कहता है कि जब लोग जान जाते हैं कि भाई क्यों उनसे मिलने आया है, तो ज़्यादातर लोग इत्मीनान से उसके साथ बातचीत करने के लिए राज़ी हो जाते हैं और भाई के लिए भी बातचीत जारी रखना ज़्यादा आसान हो जाता है। घर-मालिक को ट्रैक्ट देने के बाद, भाई उससे पूछता है: “क्या आपने कभी इनमें से किसी सवाल के बारे में सोचा है?” अगर घर-मालिक एक सवाल चुनता है, तो भाई ट्रैक्ट खोलकर उसके साथ चर्चा करता है कि बाइबल उस सवाल का क्या जवाब देती है। अगर घर-मालिक कोई सवाल नहीं चुनता, तो भाई घर-मालिक को शर्मिंदा किए बगैर एक सवाल चुनता है और बातचीत जारी रखता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बातचीत शुरू करने के बहुत-से तरीके हैं। कुछ जगहों पर यह ज़रूरी है कि हम पहले वहाँ के रिवाज़ के मुताबिक घर-मालिक से दुआ-सलाम करें और फिर उन्हें बताएँ कि हम क्यों उनके घर आए हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अगर हम चाहते हैं कि लोग हमारा संदेश सुनें, तो यह बेहद ज़रूरी है कि हम अपनी पेशकश में फेरबदल करने के लिए तैयार रहें।

प्रचार करते वक्‍त सुनहरे नियम पर अमल कीजिए

17. प्रचार करते वक्‍त सुनहरे नियम पर अमल करने के कुछ तरीके क्या हैं?

17 तो फिर, प्रचार करते वक्‍त सुनहरे नियम पर अमल करने के कुछ तरीके क्या हैं? हम हर व्यक्‍ति की शख्सियत को ध्यान में रखते हुए उसके साथ पेश आते हैं। हम दूसरों के घर और उनकी चीज़ों के लिए आदर दिखाते हैं। हम पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि हम लोगों से उस वक्‍त जाकर मिलें, जब वे घर पर होते हैं और जब उनके पास हमारी बात सुनने के लिए वक्‍त होता है। साथ ही, हम अपनी बातचीत इस तरह शुरू करते हैं, जिससे लोग हमारी बात सुनना चाहें।

18. अपने प्रचार इलाके में दूसरों के साथ उसी तरह पेश आना क्यों अच्छा है, जैसे हम चाहते हैं कि वे हमारे साथ पेश आएँ?

18 जब हम अपने प्रचार इलाके में लोगों से अच्छी तरह पेश आते हैं और उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम बाइबल सिद्धांतों को लागू कर रहे हैं, जिससे स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता की महिमा होती है। (मत्ती 5:16) दूसरों को आदर दिखाने से हो सकता है ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग सच्चाई सीखना चाहें। (1 तीमु. 4:16) लोग राज के संदेश की तरफ चाहे कैसा भी रवैया दिखाएँ, हमें इस बात की खुशी होगी कि हमने प्रचार काम में अपना भरसक किया है। (2 तीमु. 4:5) आइए हम प्रेषित पौलुस की मिसाल पर चलें, जिसने लिखा: “मैं सबकुछ खुशखबरी की खातिर करता हूँ ताकि यह खबर मैं दूसरों के साथ बाँट सकूँ।” (1 कुरिं. 9:23) आइए हम सभी दूसरों से बात करते वक्‍त सुनहरे नियम पर अमल करें।