जीवन कहानी
मैंने एक पिता को खोया—और एक पिता को पाया
मेरे पिता का जन्म सन् 1899 में ऑस्ट्रिया के ग्राट्स शहर में हुआ था। इसका मतलब है कि पहले विश्व युद्ध के दौरान वे एक नौजवान थे। सन् 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू होते ही उन्हें फौज में भर्ती कर लिया गया। सन् 1943 में जब वे रूस में लड़ रहे थे, तब उनकी मौत हो गयी। इस तरह, दो साल की उम्र में ही मैंने अपने पिता को खो दिया। इसलिए मैं कभी अपने पिता को जान नहीं पाया। जब मैं स्कूल गया, तो मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि दूसरे लड़कों के पिताजी थे, लेकिन मेरे नहीं थे। जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ, तो मुझे यह जानकर दिलासा मिला कि स्वर्ग में रहनेवाला हमारा एक पिता है, जो कभी नहीं मर सकता।—हब. 1:12, एन.डब्ल्यू.
बॉय स्काउट्स में मेरे अनुभव
जब मैं सात साल का था, तब मैं ‘बॉय स्काउट्स यूथ मूवमेंट’ का सदस्य बन गया। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसे ब्रिटिश सेना के लेफ्टिनेंट जनरल, रॉबर्ट स्टीफेनसन स्मिथ बेडेन-पोएल ने सन् 1908 में ग्रेट ब्रिटेन में शुरू किया था। सन् 1916 में, उसने छोटे लड़कों के लिए ‘वुल्फ कब्स’ (या ‘कब स्काउट्स’) नाम के संगठन की शुरूआत की।
मुझे इस समूह के साथ शनिवार-रविवार को शहर से दूर कैंपिंग के लिए जाना और अलग-अलग चीज़ें करना बहुत अच्छा लगता था, जैसे तंबुओं में सोना, यूनिफॉर्म पहनना और ड्रम के बजने के साथ-साथ कदम-ताल करना। मुझे खासकर हमारे स्काउट्स के दूसरे लड़कों के साथ वक्त बिताना बहुत अच्छा लगता था। हम शाम को आग जलाते और उसके आस-पास बैठकर गीत गाते और जंगल में खेलते। हमने प्रकृति के बारे में भी बहुत कुछ सीखा, जिससे मैंने हमारे सृष्टिकर्ता की बनायी हुई चीज़ों से प्यार करना सीखा।
‘बॉय स्काउट्स’ को सिखाया जाता है कि वे हर रोज़ एक अच्छा काम करें और ‘बॉय स्काउट्स’ के दूसरे लड़कों से मिलने पर एक-दूसरे से कहें “हमेशा तैयार।” मुझे यह बहुत अच्छा लगता था। हमारे समूह में 100 से भी ज़्यादा लड़के थे, जिनमें से करीब आधे कैथोलिक थे, आधे प्रोटेस्टेंट और एक बौद्ध धर्म को माननेवाला था।
सन् 1920 से हर कुछ सालों में एक बार ‘बॉय स्काउट्स’ की अंतर्राष्ट्रीय सभाएँ रखी जा रही हैं। मैं इनमें से कुछ सभाओं में हाज़िर हुआ था। एक सभा जिसमें मैं हाज़िर हुआ था, वह अगस्त 1951 में ऑस्ट्रिया के बाट इशल कसबे में रखी गयी थी। और दूसरी सभा जिसमें मैं हाज़िर हुआ था, वह अगस्त 1957 में इंग्लैंड के बर्मिंगहैम शहर के पास रखी गयी थी, जिसमें 85 देशों से करीब 33,000 लड़के आए थे। इसके अलावा, करीब 7,50,000 लोग भी इस सभा में आए थे। उनमें से एक थी, इंग्लैंड की रानी एलिज़बेथ। मेरे लिए ‘बॉय स्काउट्स’ होना ऐसा था मानो मैं दुनिया-भर में फैले भाइयों की बिरादरी का एक हिस्सा हूँ। मैं उस वक्त नहीं जानता था कि बहुत जल्द मैं इससे कहीं बेहतर बिरादरी से मिलनेवाला हूँ, एक ऐसी बिरादरी से जो परमेश्वर से प्यार करनेवालों से बनी है।
पहली बार यहोवा के एक साक्षी से मुलाकात
सन् 1958 के मार्च/अप्रैल में, मैं ऑस्ट्रिया के ग्राट्स शहर के ग्रैंड होटल वीसलर में एक वेटर के तौर पर अपनी ट्रेनिंग
खत्म करनेवाला था। उस वक्त मेरे साथ काम करनेवाले एक पेस्ट्री शैफ, रूडॉल्फ चिगेर्ल ने मुझे गवाही दी। यह पहली बार था जब मैं सच्चाई के बारे में सुन रहा था। उसने कहा कि त्रिएक की शिक्षा बाइबल पर आधारित नहीं है। मैंने उससे कहा कि वह गलत कह रहा है, यह शिक्षा बाइबल से ही है। वह मेरा अच्छा दोस्त था, इसलिए मैं उसे कैथोलिक चर्च में लौट आने के लिए कायल करना चाहता था।रूडॉल्फ, जिसे मैं रूडी पुकारता था, मुझे एक बाइबल देना चाहता था। मैंने उससे कहा कि मुझे सिर्फ कैथोलिक बाइबल चाहिए। इसलिए उसने मुझे एक कैथोलिक बाइबल दी और जब मैंने उसे पढ़ना शुरू किया, तो मैंने देखा कि उसमें एक ट्रैक्ट रखा था, जिसे वॉचटावर सोसाइटी ने छापा था। रूडी ने उस ट्रैक्ट को बाइबल में रखा था। मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी, क्योंकि मुझे लगा कि कोई भी इस तरह के साहित्य में कुछ भी ऐसी बात लिख सकता है, जो शायद हमें पढ़ने में सही लगे, मगर असल में सही न हो। लेकिन मैं रूडी के साथ बाइबल पर चर्चा करने के लिए तैयार था। रूडी ने समझ से काम लिया और दोबारा मुझे कोई किताब या पत्रिकाएँ पेश नहीं कीं। करीब तीन महीनों तक हम बीच-बीच में बाइबल से चर्चा करते रहे। कभी-कभी तो हम देर रात तक बातें करते थे।
होटल में ट्रेनिंग खत्म करने के बाद, मेरी माँ ने मुझे होटल मैनेजमेंट स्कूल भेज दिया और इसका सारा खर्चा भी उठाया। यह स्कूल बाट होफ्गास्टाईन नाम के शहर में था, जो ऐल्प्स पहाड़ों के बीच एक घाटी में था। यह स्कूल बाट होफ्गास्टाईन के ग्रैंड होटल से जुड़ा हुआ था, इसलिए ज़्यादा तजुरबा हासिल करने के लिए कभी-कभी मैं वहाँ पर काम करता था।
दो मिशनरी बहनों से मुलाकात
रूडी ने मेरा नया पता वीएना के शाखा दफ्तर को भेज दिया था, जिसके बाद शाखा दफ्तर ने इल्ज़े उन्टरडॉर्फर और एल्फ्रीडे लॉर नाम की दो मिशनरी बहनों को मेरे पास भेजा। a एक दिन होटल के रिसेप्शनिस्ट ने मुझे बुलाया और कहा कि दो स्त्रियाँ बाहर गाड़ी में हैं और मुझसे मिलना चाहती हैं। मैं उन्हें नहीं जानता था, मगर मैं बाहर देखने गया कि वे कौन हैं। मुझे बाद में पता चला कि जर्मनी में नात्ज़ी हुकूमत के दौरान, जब हमारे काम पर पाबंदी लगी थी, तब इल्ज़े और एल्फ्रीडे एक जगह से दूसरी जगह, भाइयों तक हमारे साहित्य पहुँचाने का काम करती थीं। दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से पहले, जर्मनी की खुफिया पुलिस (गेस्टापो) ने उन्हें गिरफ्तार करके लिक्खटनबर्ग यातना शिविर भेज दिया था। फिर, युद्ध के दौरान उन्हें बर्लिन शहर के बास रावन्सब्रूक यातना शिविर भेज दिया गया था।
ये बहनें मेरी माँ की उम्र की थीं, इसलिए मेरे दिल में उनके लिए इज़्ज़त थी। मैं नहीं चाहता था कि मैं उनके साथ कई बार मिलकर चर्चा करूँ और फिर बाद में उनसे यह कहकर उनका समय बरबाद कर दूँ कि मुझे दिलचस्पी नहीं है। इसलिए मैंने उनसे कहा कि वे मुझे उन आयतों की एक सूची दें, जो इस कैथोलिक शिक्षा को झूठा साबित करती हों कि पहला पोप प्रेषित पतरस था और बाकी सभी पोप को उससे अधिकार मिलता है, जिसे ‘अपौस्टोलिक सक्सेशन’ कहा जाता है। मैंने उनसे कहा कि मैं वह सूची हमारे इलाके के पादरी के पास ले जाऊँगा और उसी के साथ इस बारे में चर्चा करूँगा। मुझे लगा कि ऐसा करके मैं सच्चाई जान जाऊँगा।
असली पवित्र पिता के बारे में सच्चाई जानना
कैथोलिक चर्च मत्ती 16:18, 19 में पाए गए यीशु के शब्दों का यह मतलब निकालता है कि वह ‘अपौस्टोलिक सक्सेशन’ की शिक्षा के बारे में बात कर रहा था। कैथोलिक चर्च यह भी कहता है कि जब पोप, जिसे पवित्र पिता भी कहा जाता है, बाइबल की शिक्षाओं के बारे में बात करता है, तो वह कोई गलती नहीं कर सकता। बहुत-से कैथोलिक इस बात को मानते हैं और उनका विश्वास इस एक बात पर टिका हुआ है। मैं भी इस बात को मानता था और सोचता था कि अगर पोप कहता है कि त्रिएक की शिक्षा सच्ची है, तो वह ज़रूर सच्ची होगी। मगर फिर मैंने सोचा कि अगर पोप से गलती हो सकती है, तो हो सकता है कि त्रिएक की शिक्षा झूठी हो।
जब मैं पादरी से मिलने गया, तो वह मेरे सवालों का जवाब नहीं दे पाया। इसके बजाय, उसने मुझे ‘अपौस्टोलिक सक्सेशन’ के बारे में एक किताब दे दी। मैंने उसे घर ले जाकर पढ़ा। फिर मैं दोबारा पादरी के पास गया और इस बार मेरे मन में पहले से भी ज़्यादा सवाल थे। वह उनका जवाब नहीं दे पाया और उसने कहा: “न तो मैं तुम्हें कायल कर सकता हूँ, और न ही तुम मुझे कायल कर सकते हो।” यह कहकर उसने मुझे घर भेज दिया। वह मेरे साथ और चर्चा नहीं करना चाहता था।
इस मुलाकात के बात, मैं इल्ज़े और एल्फ्रीडे के साथ बाइबल अध्ययन करने को तैयार था। उन्होंने मुझे स्वर्ग में रहनेवाले असली पवित्र पिता, यहोवा परमेश्वर के बारे में बहुत कुछ सिखाया। (यूह. 17:11) उस इलाके में कोई मंडली नहीं थी, इसलिए ये दोनों बहनें दिलचस्पी लेनेवाले एक परिवार के घर में सभाएँ चलाती थीं। सिर्फ कुछ लोग ही सभाओं में हाज़िर होते थे। अगुवाई लेने के लिए कोई बपतिस्मा-शुदा भाई नहीं था, इसलिए इल्ज़े और एल्फ्रीडे सभा के दौरान जानकारी को आपस में चर्चा के तौर पर पेश करते थे। कभी-कभी किसी दूसरे शहर से कोई भाई आकर किराए की जगह पर जन भाषण देता था।
प्रचार काम शुरू करना
इल्ज़े और एल्फ्रीडे ने अक्टूबर 1958 में मेरे साथ बाइबल अध्ययन करना शुरू किया। तीन महीने बाद, जनवरी 1959 में मैंने बपतिस्मा ले लिया। बपतिस्मे से पहले मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं उनके साथ घर-घर जा सकता हूँ, ताकि मैं देख सकूँ कि प्रचार काम कैसे किया जाता है। (प्रेषि. 20:20) उनके साथ पहली बार प्रचार में जाने के बाद, मैंने प्रचार करने के लिए अपना एक इलाका माँगा। उन्होंने मुझे एक गाँव का इलाका दिया। इसके बाद, मैं अकेले ही वहाँ घर-घर का प्रचार करने और दिलचस्पी दिखानेवालों के साथ वापसी भेंट करने जाता था। मैं सबसे पहली बार जिस भाई के साथ प्रचार में गया था, वे हमारे सर्किट निगरान थे, जो बाद में हमारे यहाँ दौरा करने आए थे।
सन् 1960 में होटल की ट्रेनिंग खत्म करने के बाद मैं अपने शहर लौट आया, ताकि मैं अपने रिश्तेदारों को बाइबल की सच्चाई सिखा सकूँ। हालाँकि अब तक उनमें से किसी ने भी सच्चाई नहीं अपनायी है, लेकिन कुछ हैं जो दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
पूरे समय की सेवा में बितायी ज़िंदगी
सन् 1961 में शाखा दफ्तर ने कुछ खत भेजे, जिनमें भाई-बहनों को पायनियर सेवा करने का बढ़ावा दिया गया था। मैं अविवाहित था और मेरी सेहत भी अच्छी थी, इसलिए मुझे लगा कि मुझे पायनियर सेवा शुरू कर देनी चाहिए। मुझे लगा कि पायनियर सेवा करने के लिए मुझे एक गाड़ी की ज़रूरत है। इसलिए मैंने सोचा कि मैं कुछ महीने और काम कर लेता हूँ, ताकि मैं एक गाड़ी खरीद सकूँ। जब मैंने सर्किट निगरान, भाई कुर्ट कून से पूछा कि इस बारे में उनका क्या खयाल है, तो उन्होंने कहा: “क्या यीशु और उसके प्रेषितों को पूरे समय की सेवा करने के लिए गाड़ी की ज़रूरत थी?” बस फिर क्या था! मैंने जल्द-से-जल्द पायनियर सेवा शुरू करने की योजना बना ली। लेकिन क्योंकि मैं होटल के रेस्तराँ में हर हफ्ते 72 घंटे काम करता था, मुझे कुछ बदलाव करने की ज़रूरत थी।
मैंने अपने बॉस से 72 घंटे के बजाय, 60 घंटे काम करने की इजाज़त माँगी। वे मान गए, और-तो-और उन्होंने मेरी तनख्वाह भी नहीं घटायी। कुछ वक्त बाद, मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं
हर हफ्ते सिर्फ 48 घंटे काम कर सकता हूँ। एक बार फिर उन्होंने हाँ कर दी और मेरी तनख्वाह में इस बार भी कोई बदलाव नहीं किया। फिर मैंने हर हफ्ते सिर्फ 36 घंटे काम करने की इजाज़त माँगी, और एक बार फिर वे मान गए। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मुझे अब भी वही तनख्वाह मिल रही थी! शायद वे नहीं चाहते थे कि मैं नौकरी छोड़कर जाऊँ। इस शेड्यूल से मुझे पायनियर सेवा शुरू करने में मदद मिली। उस वक्त पायनियरों को हर महीने प्रचार काम में 100 घंटे बिताने होते थे।चार महीने बाद, मुझे कैरिंथिया प्रांत के श्पिटाल आन डेर ड्रेऊ शहर की छोटी-सी मंडली में खास पायनियर और मंडली सेवक के तौर पर नियुक्त किया गया। उस ज़माने में खास पायनियरों को हर महीने प्रचार काम में 150 घंटे बिताने होते थे। मेरे साथ पायनियर सेवा करने के लिए कोई सहयोगी नहीं था, लेकिन गरट्रूड लोबनर नाम की एक बहन ने प्रचार काम में मेरा बहुत साथ दिया। बहन लोबनर मंडली में सहायक मंडली सेवक की ज़िम्मेदारी सँभालती थीं। b
और भी ज़िम्मेदारियाँ
सन् 1963 में मुझे सर्किट निगरान के तौर पर सेवा करने का न्यौता दिया गया। मैं अकसर एक मंडली से दूसरी मंडली तक जाने के लिए, कई भारी सूटकेस उठाए ट्रेन से सफर करता था। ज़्यादातर भाइयों के पास गाड़ी नहीं थी, इसलिए कोई भी मुझे स्टेशन पर लेने नहीं आ सकता था। मैं नहीं चाहता था कि भाइयों को बुरा लगे, इसलिए मैं टैक्सी लेने के बजाय, भाइयों के घरों तक पैदल चलकर जाता था।
सन् 1965 में मुझे गिलियड स्कूल की 41वीं क्लास में हाज़िर होने का न्यौता मिला। मेरी क्लास में मेरे अलावा बहुत-से भाई-बहन अविवाहित थे। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि क्लास के बाद मुझे वापस अपने देश ऑस्ट्रिया में सर्किट निगरान के तौर पर सेवा करने के लिए भेजा गया। लेकिन अमरीका से जाने से पहले, मुझे एक सर्किट निगरान के साथ चार हफ्ते काम करने के लिए कहा गया। मुझे भाई एन्थनी कॉन्टी के साथ सेवा करने का एक बहुत बड़ा सम्मान मिला। वे दूसरों से बहुत प्यार करते थे। उन्हें प्रचार काम से भी बहुत लगाव था और उसमें वे काफी असरदार भी थे। हमने न्यू यॉर्क के उत्तरी हिस्से में कॉर्नवॉल नाम के इलाके में साथ काम किया।
जब मैं वापस ऑस्ट्रिया आया, तो मुझे एक सर्किट में भेजा गया, जहाँ मेरी मुलाकात टोव मेरेटे नाम की एक सुंदर अविवाहित बहन से हुई। जब वह पाँच साल की थी, तब से उसकी परवरिश सच्चाई में हुई। जब भाई-बहन हमसे पूछते हैं कि हम दोनों कैसे मिले, तो हम मज़ाक में कहते हैं, “शाखा दफ्तर ने इसका इंतज़ाम किया।” अगले साल, अप्रैल 1967 में हमने शादी कर ली, जिसके बाद हमें साथ मिलकर सफरी काम जारी रखने की इजाज़त दी गयी।
अगले साल, यानी सन् 1968 में मुझे एहसास हुआ कि यहोवा ने अपनी महा-कृपा दिखाते हुए मुझे अपने आत्मिक बेटे के नाते गोद लिया है। इस तरह, स्वर्ग में रहनेवाले पिता यहोवा के साथ और उन लोगों के साथ भी मेरा एक बहुत ही खास रिश्ता शुरू हुआ, जो रोमियों 8:15 के मुताबिक यहोवा को “‘अब्बा, हे पिता!’ पुकारते हैं।”
मैंने और मेरेटे ने 1976 तक साथ मिलकर सर्किट और ज़िला काम किया। कभी-कभी सर्दियों में हम ऐसे कमरों में सोते, जिनमें कमरे को गरम रखने का कोई इंतज़ाम नहीं था, और तापमान शून्य डिग्री से भी कम होता था। एक बार, हमारी नींद खुल गयी और मैंने देखा कि हमारे चेहरे के पास कंबल का
हिस्सा जम गया था! आखिरकार हमने तय किया कि हम बिजली से चलनेवाला एक छोटा-सा हीटर साथ लेकर चलेंगे, ताकि हम रात में ठंड सहन कर सकें। कुछ जगहों पर, अगर हमें रात को टॉयलेट जाना होता, तो हमें बर्फीले रास्तों से होते हुए, घर के बाहर बने टॉयलेट में जाना पड़ता, जहाँ कड़कड़ाती ठंडी हवा चल रही होती। हमारे पास रहने के लिए कोई अपार्टमेंट नहीं था, इसलिए सोमवार के दिन हम आम तौर पर उसी घर में ठहरते, जहाँ हम पिछले हफ्ते रहे थे। फिर मंगलवार सुबह हम अगली मंडली में जाने के लिए निकल पड़ते।मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि इन सालों के दौरान, मेरी प्यारी पत्नी ने हमेशा मेरा बहुत साथ दिया है। उसे प्रचार में जाना बहुत पसंद है और मुझे कभी-भी उसे प्रचार में जाने का बढ़ावा नहीं देना पड़ता। उसे भाई-बहनों के साथ संगति करना भी बहुत अच्छा लगता है और वह दूसरों की बहुत परवाह करती है। उसका साथ मेरे लिए बहुत मददगार साबित हुआ है।
सन् 1976 में हमें वीएना में ऑस्ट्रिया के शाखा दफ्तर में सेवा करने का न्यौता मिला और मुझे शाखा-समिति के सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया। उस वक्त ऑस्ट्रिया शाखा दफ्तर, पूर्वी यूरोप के कई देशों में होनेवाले काम की देखरेख कर रहा था, और इस बात का ध्यान रख रहा था कि बगैर किसी को पता चले, उन देशों में भाइयों को साहित्य मिलता रहे। भाई यूएरगन रून्डल इस काम में अगुवाई ले रहे थे और मुझे उनके साथ काम करने का सम्मान मिला। बाद में, मुझे 10 पूर्वी यूरोपीय भाषाओं में साहित्य अनुवाद करने के काम में अगुवाई लेने की ज़िम्मेदारी दी गयी। भाई यूएरगन और उनकी पत्नी गरट्रूड आज भी जर्मनी में खास पायनियरों के तौर पर वफादारी से सेवा कर रहे हैं। सन् 1978 से, ऑस्ट्रिया शाखा दफ्तर ने एक छोटे से प्रेस पर 6 भाषाओं में हमारी पत्रिकाएँ फोटोटाइपसेट करनी और छापनी शुरू की। हम अपनी पत्रिकाएँ दूसरे देशों में भी भेजते थे। भाई ऑटो कूग्लिच, जो अब अपनी पत्नी इंग्रीट के साथ जर्मनी में शाखा दफ्तर में सेवा कर रहे हैं, उस वक्त इस काम की निगरानी किया करते थे।
पूर्वी यूरोप में भाई अपने-अपने देशों में भी साहित्य छापते थे। इसके लिए वे कॉपी मशीन या फिल्म का इस्तेमाल करते थे। लेकिन उन्हें दूसरे देशों के भाइयों की मदद की ज़रूरत थी। यहोवा ने उनके काम की हिफाज़त की। शाखा दफ्तर में हम सभी इन भाइयों से बहुत प्यार करते थे, जिन्होंने कई सालों तक पाबंदी के बावजूद वफादारी से सेवा की।
रोमानिया का एक खास दौरा
सन् 1989 में मुझे शासी निकाय के सदस्य, भाई थियोडोर जारज़ के साथ रोमानिया जाने का सम्मान मिला। हमारा मकसद
था, भाइयों के एक बड़े समूह को संगठन में लौट आने में मदद देना। सन् 1949 से, ये भाई संगठन से अलग हो गए थे और उन्होंने अपनी ही मंडलियाँ बना ली थीं। लेकिन उन्होंने प्रचार काम करना और नए लोगों को बपतिस्मा देना जारी रखा। यहाँ तक कि संगठन के वफादार भाइयों की तरह, वे फौज में भरती न होने की वजह से जेल भी गए। रोमानिया में हमारे काम पर अब भी पाबंदी थी, इसलिए हमें चोरी-छिपे मिलना पड़ा। हम चार प्राचीनों और रोमानिया की देश-समिति (कंट्री कमिटी) के नियुक्त सदस्यों के कुछ भाइयों से भाई पाम्फील आल्बू के घर पर मिले। हम ऑस्ट्रिया से एक अनुवादक, रॉल्फ केलनर को भी अपने साथ ले गए।बातचीत की दूसरी रात, भाई आल्बू ने अपने बाकी चार साथी प्राचीनों को हमारे साथ एक होने के लिए कायल करते हुए कहा, “अगर हम अभी ऐसा न करें, तो शायद हमें फिर कभी मौका नहीं मिलेगा।” इसके चलते, करीब 5,000 भाई संगठन में लौट आए। यहोवा की क्या ही शानदार जीत हुई और शैतान क्या ही बुरी तरह हार गया!
सन् 1989 के आखिर में, शासी निकाय ने मुझे और मेरी पत्नी को न्यू यॉर्क में विश्व मुख्यालय में सेवा करने का न्यौता दिया। यह सुनकर हम हैरान रह गए। हमने जुलाई 1990 में ब्रुकलिन बेथेल में सेवा करनी शुरू की। सन् 1992 में, मुझे शासी निकाय की सेवा-समिति की मदद करने का ज़िम्मा सौंपा गया और जुलाई 1994 से मुझे शासी निकाय का एक सदस्य होने का सम्मान मिला है।
अतीत को याद करना और भविष्य की ओर देखना
वह ज़माना और था, जब मैं एक होटल में वेटर के तौर पर दूसरों को शारीरिक खाना परोसता था। आज मैं दुनिया-भर में फैले भाइयों की बिरादरी के लिए आध्यात्मिक खाना तैयार करने और परोसने के काम में हिस्सा लेने का लुत्फ उठा रहा हूँ। (मत्ती 24:45-47) जब मैं खास पूरे समय की सेवा में बिताए 50 से भी ज़्यादा सालों के बारे में सोचता हूँ और देखता हूँ कि किस तरह यहोवा ने दुनिया-भर में फैले हमारे भाइयों की बिरादरी को आशीष दी है, तो मेरा दिल एहसान और खुशी से भर जाता है। मुझे यहोवा के साक्षियों के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में जाना बहुत पसंद है, जहाँ हम स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता, यहोवा के बारे में और बाइबल की सच्चाइयों के बारे में सीखते हैं।
मैं प्रार्थना करता हूँ कि और भी लाखों लोग बाइबल का अध्ययन करें, सच्चाई अपनाएँ और दुनिया-भर में फैले हमारे मसीही भाइयों की बिरादरी के साथ मिलकर यहोवा की सेवा करें। (1 पत. 2:17) मुझे उस वक्त का भी इंतज़ार है, जब मैं स्वर्ग से धरती पर लोगों को दोबारा जी उठते देखूँगा और आखिरकार अपने पिता को देख पाऊँगा। मैं आशा करता हूँ कि वे, मेरी माँ और मेरे दूसरे अज़ीज़ रिश्तेदार सभी फिरदौस में यहोवा की उपासना करने की इच्छा ज़ाहिर करेंगे।
मुझे उस वक्त का इंतज़ार है, जब मैं स्वर्ग से धरती पर लोगों को दोबारा जी उठते देखूँगा और आखिरकार अपने पिता को देख पाऊँगा