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यहोवा की आवाज़ सुनिए, फिर चाहे आप जहाँ भी हों

यहोवा की आवाज़ सुनिए, फिर चाहे आप जहाँ भी हों

“तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, मार्ग यही है।”—यशा. 30:21.

1, 2. यहोवा हमारा मार्गदर्शन कैसे करता है?

 यहोवा शुरू से अपने लोगों का अलग-अलग तरीकों से मार्गदर्शन करता आया है। जैसे उसने बीते ज़माने में स्वर्गदूतों और सपनों के ज़रिए और दर्शन दिखाकर अपने लोगों को बताया कि भविष्य में क्या होगा या उन्हें कुछ काम सौंपे। (गिन. 7:89; यहे. 1:1; दानि. 2:19) कुछ मौकों पर परमेश्‍वर ने उसकी तरफ से बात करने और लोगों को मार्गदर्शन देने के लिए इंसानों को चुना। यहोवा ने लोगों तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए चाहे जो भी ज़रिया इस्तेमाल किया हो, जिन्होंने उसे माना, उन्हें आशीषें मिलीं।

2 आज यहोवा हमारा मार्गदर्शन करने के लिए बाइबल, अपनी पवित्र शक्‍ति और मंडली का इस्तेमाल करता है। (प्रेषि. 9:31; 15:28; 2 तीमु. 3:16, 17) उसकी दिखायी राह इतनी साफ होती है कि मानो हम उसे यह कहते हुए सुन सकते हैं: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशा. 30:21) यहोवा अपनी आवाज़ हम तक पहुँचाने के लिए यीशु का भी इस्तेमाल करता है। उसने मंडली की अगुवाई करने के लिए यीशु को ठहराया है, जो ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ के ज़रिए ऐसा करता है। (मत्ती 24:45) हमें यहोवा के निर्देशों और सलाहों को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि इसी पर हमारी हमेशा की ज़िंदगी टिकी है।—इब्रा. 5:9.

3. कौन-सी बातें हमें यहोवा की आज्ञा पूरी तरह मानने से रोक सकती हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 शैतान जानता है कि यहोवा की तरफ से मिलनेवाले निर्देशों से हमारी जान बच सकती है, इसलिए वह उन पर से हमारा ध्यान हटाने की कोशिश करता है, ताकि हम यहोवा की न सुनें। इसके अलावा, हमारा अपना असिद्ध दिल भी शायद यहोवा की आज्ञा पूरी तरह न मानना चाहे। (यिर्म. 17:9) इस लेख में हम देखेंगे कि परमेश्‍वर की आवाज़ सुनने में आनेवाली इन रुकावटों को हम कैसे पार कर सकते हैं। साथ ही, हम देखेंगे कि यहोवा की आवाज़ सुनने से और उससे प्रार्थना में बात करने से हम उसके करीब कैसे बने रह सकते हैं, फिर हालात चाहे जैसे भी हों।

शैतान के झाँसे में आने से बचिए

4. शैतान लोगों के सोचने के तरीके पर कैसे असर करने की कोशिश करता है?

4 शैतान झूठी बातें फैलाकर या तोड़-मरोड़कर पेश की गयी जानकारी के ज़रिए लोगों के सोचने के तरीके पर असर करने की कोशिश करता है। (1 यूहन्‍ना 5:19 पढ़िए।) अखबार, किताबें, पत्रिकाएँ, रेडियो, टीवी और इंटरनेट पूरी धरती पर जानकारी फैलाते हैं। बेशक, इनसे हमें कुछ फायदेमंद जानकारी मिलती है, लेकिन अकसर ये ऐसे चालचलन को बढ़ावा देते हैं, जो यहोवा के स्तरों के खिलाफ हैं। (यिर्म. 2:13) मिसाल के लिए, आज मीडिया जगत कहता है कि समान लिंग के व्यक्‍तियों का आपस में शादी करना गलत नहीं। इस वजह से कई लोगों को लगता है कि बाइबल समलैंगिकता को बेवजह गलत ठहराती है।—1 कुरिं. 6:9, 10.

5. हम शैतान की फैलायी झूठी बातों में फँसने से कैसे बच सकते हैं?

5 यहोवा के स्तरों से प्यार करनेवाले, शैतान की फैलायी झूठी बातों में फँसने से कैसे बच सकते हैं? वे कैसे जान सकते हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा? “[परमेश्‍वर के] वचन के अनुसार सावधान रहने से।” (भज. 119:9) परमेश्‍वर का लिखित वचन हमें सच और झूठ के बीच में फर्क करने में मदद देता है। (नीति. 23:23) यीशु ने कहा था कि हमें “यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन” की ज़रूरत है। (मत्ती 4:4) बाइबल में यहोवा ने हमें सिद्धांत दिए हैं, जिन्हें हमें लागू करना सीखना होगा। उदाहरण के लिए, व्यभिचार के बारे में लिखित कानून दिए जाने से बहुत पहले, यूसुफ जानता था कि पोतीपर की पत्नी के साथ नाजायज़ संबंध रखना, परमेश्‍वर के खिलाफ पाप करना होगा। यहोवा की आज्ञा तोड़ने का खयाल तक उसके मन में कभी नहीं आया। (उत्पत्ति 39:7-9 पढ़िए।) हालाँकि पोतीपर की पत्नी लंबे समय तक यूसुफ पर गलत काम करने का दबाव डालती रही, लेकिन यूसुफ ने उसकी आवाज़ सुनने के बजाय, यहोवा की आवाज़ सुनने का चुनाव किया। आज हमें भी शैतान की फैलायी झूठी बातों के शोर पर कान लगाने के बजाय, यहोवा की आवाज़ सुननी चाहिए।

6, 7. शैतान की दुष्ट सलाह से दूर रहने के लिए हमें क्या करना होगा?

6 इस दुनिया में कई अलग-अलग धार्मिक विचार हैं और बहुत-से लोगों को लगता है कि सच्चे धर्म को पहचानना नामुमकिन है। लेकिन अगर हम यहोवा की सुनने को तैयार हैं, तो वह आसानी से सच्चाई को पहचानने में हमारी मदद कर सकता है। हमें यह फैसला करना होगा कि हम किसकी सुनेंगे। एक वक्‍त पर दो अलग-अलग आवाज़ों पर ध्यान देना लगभग नामुमकिन है। ठीक जैसे भेड़ अपने चरवाहे की आवाज़ पहचानती है, हमें भी यीशु की ‘आवाज़ पहचानने’ की ज़रूरत है, जिसे यहोवा ने हमारी चरवाही करने के लिए चुना है।—यूहन्‍ना 10:3-5 पढ़िए।

7 यीशु ने कहा: “तुम जो सुनते हो, उस पर ध्यान दो।” (मर. 4:24) यहोवा के निर्देश बिलकुल साफ और सीधे हैं, लेकिन हमारा रवैया सही होना चाहिए ताकि हम उन निर्देशों को कबूल कर सकें। अगर हम सावधानी न बरतें, तो शायद हम यहोवा के प्यार-भरे निर्देशों पर ध्यान देने के बजाय, शैतान की दुष्ट सलाह पर कान लगाने लगें। इसलिए इस दुनिया के संगीत, वीडियो, टीवी कार्यक्रमों, किताबों, साथियों, शिक्षकों या बड़े-बड़े ज्ञानियों को कभी-भी अपनी ज़िंदगी पर काबू पाने मत दीजिए।—कुलु. 2:8.

8. (क) हमारे दिल में क्या चल रहा है, इसे पहचानने की कुछ निशानियाँ क्या हैं? (ख) अगर हम सावधान न रहें, तो क्या हो सकता है?

8 शैतान जानता है कि हम इंसानों में पापी फितरत है। इसलिए जब वह हमें कुछ पाप करने के लिए उकसाता है, तो ऐसे में हमारे लिए यहोवा के वफादार बने रहना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। (यूह. 8:44-47) मिसाल के लिए, हो सकता है हम प्रचार में ढीले पड़ गए हों, हमने प्रार्थना करनी छोड़ दी हो या सभाओं में जाना कम कर दिया हो। ये सब इस बात की निशानियाँ हैं कि हमारे दिल में क्या चल रहा है, और इन्हें नज़रअंदाज़ करना खतरनाक साबित हो सकता है। अगर हम सावधान न रहें, तो हम यहोवा की आवाज़ सुनना शायद धीरे-धीरे बंद कर दें। और आखिर में, हमारी पापी फितरत शायद हम पर हावी हो जाए और हम कोई ऐसा गंभीर पाप कर बैठें, जिसे करने की हमने कभी सोची भी नहीं होगी। (रोमि. 7:15) लेकिन अगर हम इन निशानियों को पहचानें और खुद में सुधार लाने के लिए फौरन कदम उठाएँ, तो हम वह गंभीर पाप करने से बच सकते हैं। और अगर हम ध्यान से यहोवा की आवाज़ सुनें, तो हम सच्चे मसीही धर्म के खिलाफ बगावत करनेवालों की शिक्षाओं को ठुकरा सकेंगे।—नीति. 11:9.

9. जल्द-से-जल्द अपनी गलत इच्छाओं को पहचानना क्यों ज़रूरी है?

9 अगर एक बीमार इंसान को अपनी गंभीर बीमारी के बारे में जल्द-से-जल्द पता लग जाए, तो उसके ठीक होने की गुंजाइश ज़्यादा होती है। उसी तरह, जैसे ही हमें एहसास होता है कि हमारे अंदर ऐसी इच्छाएँ हैं, जो हमें पाप की तरफ ले जा सकती हैं, तो हमें फौरन कदम उठाना चाहिए, इससे पहले कि शैतान हमें ‘जीते-जी फँसा ले ताकि हम उसकी मरज़ी पूरी करें।’ (2 तीमु. 2:26) अगर हमें एहसास होता है कि हमारी सोच और ख्वाहिशें यहोवा की माँगों के मुताबिक नहीं हैं, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें फौरन उसके पास लौट आना चाहिए, उससे मार्गदर्शन लेना चाहिए और उस पर चलना चाहिए। (यशा. 44:22) हमें इस बात का भी एहसास होना चाहिए कि एक गलत फैसला एक इंसान के दिल पर इस कदर गहरे घाव छोड़ सकता है कि यहोवा के पास लौट आने के बाद भी वे जल्दी नहीं भरते। इसलिए कितना अच्छा होगा अगर हम गलती करने से ही दूर रहें!

परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े अलग-अलग पहलुओं में लगातार हिस्सा लेने से आप शैतान के झाँसे में आने से कैसे बच सकते हैं? (पैराग्राफ 4-9 देखिए)

घमंड और लालच को ठुकराइए

10, 11. (क) घमंड की कुछ निशानियाँ क्या हैं? (ख) कोरह, दातान और अबीराम की बगावत से हम क्या ज़रूरी सबक सीखते हैं?

10 हमें इस बात को पहचानना चाहिए कि हमारा दिल हमें यहोवा से दूर ले जा सकता है। उदाहरण के लिए, हम घमंडी या लालची बन सकते हैं। ऐसे बुरे गुण होने की वजह से हम बड़ी-बड़ी गलतियाँ कर सकते हैं। एक घमंडी इंसान शायद सोचे कि वह बहुत खास है और वह जो चाहे कर सकता है। वह शायद सोचता हो कि किसी को भी उसे यह बताने का हक नहीं कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, फिर चाहे वे उसके भाई-बहन, प्राचीन या संगठन ही क्यों न हो। वह शायद यहोवा से इतना दूर चला जाए कि यहोवा की आवाज़ उसे सुनायी ही न दे।

11 यहोवा ने वीराने में इसराएलियों की अगुवाई करने के लिए मूसा और हारून को ठहराया था। लेकिन घमंड की वजह से कोरह, दातान और अबीराम ने बगावत की और अपने तरीके से यहोवा की उपासना करने का इंतज़ाम किया। इस पर यहोवा ने क्या किया? उसने उन्हें मार डाला। (गिन. 26:8-10) इस उदाहरण से हम एक ज़रूरी सबक सीखते हैं। यहोवा के खिलाफ बगावत विनाश की तरफ ले जाती है। बाइबल कहती है, ‘विनाश से पहिले गर्व है।’—नीति. 16:18; यशा. 13:11.

12, 13. (क) एक मिसाल देकर समझाइए कि लालच कैसे एक इंसान को बरबादी की राह पर ले जा सकता है। (ख) समझाइए कि अगर हम अपने अंदर लालच को बढ़ने से न रोकें, तो यह कैसे हम पर हावी हो सकता है।

12 लालच भी हमें बरबादी की राह पर ले जा सकता है। एक लालची इंसान अकसर सोचता है कि यहोवा के निर्देश उस पर लागू नहीं होते। वह शायद सोचे कि वह उन चीज़ों को ले सकता है, जो उसकी नहीं हैं। एक मिसाल पर गौर कीजिए। सीरिया के सेनापति, नामान को कोढ़ की बीमारी थी और परमेश्‍वर के नबी एलीशा ने उसे ठीक कर दिया था। नामान इसके लिए इतना शुक्रगुज़ार था कि वह तोहफे के रूप में एलीशा को पैसे और कपड़े देना चाहता था, लेकिन एलीशा ने उन्हें लेने से इनकार कर दिया। मगर एलीशा के एक सेवक, गेहजी की नज़र उन तोहफों पर थी। उसने सोचा: “यहोवा के जीवन की शपथ मैं [नामान के] पीछे दौड़कर उस से कुछ न कुछ ले लूंगा।” एलीशा को बताए बगैर, वह दौड़कर नामान के पीछे गया और उससे झूठ कहकर “एक किक्कार चान्दी और दो जोड़े वस्त्र” माँगे। लालच करने और झूठ बोलने का गेहजी को क्या सबक मिला? नामान का कोढ़ उसे लग गया!—2 राजा 5:20-27.

13 अगर हम अपने अंदर लालच को बढ़ने से न रोकें, तो हमारी छोटी-सी ख्वाहिश आगे चलकर हमारी ज़िंदगी तबाह कर सकती है। यह बात बाइबल में दिए आकान के किस्से से साफ हो जाती है। ध्यान दीजिए कि लालच कितनी जल्दी आकान पर हावी हो गया। उसने कहा: “जब मुझे लूट में शिनार देश का एक सुन्दर ओढ़ना, और दो सौ शेकेल चांदी, और पचास शेकेल सोने की एक ईंट देख पड़ी, तब मैं ने उनका लालच करके उन्हें रख लिया।” आकान को अपनी गलत इच्छा को ठुकरा देना चाहिए था। लेकिन इसके बजाय, उसने ये चीज़ें चुरा लीं और उन्हें अपने तंबू में छिपा दिया। यहोवा ने आकान के पाप का सबके सामने परदाफाश किया और उसी दिन उसे और उसके परिवार को पत्थरवाह करके मार डाला गया। (यहो. 7:11, 21, 24, 25) हममें से कोई भी आकान की तरह लालची बन सकता है। इसलिए हमें ‘हर तरह के लालच से खुद को बचाए रखना’ चाहिए। (लूका 12:15) व्यभिचार भी एक तरह का लालच है। हो सकता है हमारे मन में कभी-कभार ही बुरे खयाल आते हों, लेकिन यह ज़रूरी है कि हम अपनी सोच को काबू में रखें, ताकि हम पाप न कर बैठें।—याकूब 1:14, 15 पढ़िए।

14. अगर हमें घमंड या लालच की वजह से कोई गलत काम करने का मन करे, तो हमें क्या करना चाहिए?

14 जी हाँ, घमंड और लालच दोनों के बुरे अंजाम हो सकते हैं। गलत काम करने के अंजाम के बारे में सोचने से हमें यहोवा की आवाज़ सुनते रहने में मदद मिलेगी। (व्यव. 32:29) बाइबल में यहोवा हमें सही काम करने के फायदे और गलत काम करने के बुरे अंजाम दोनों ही बताता है। अगर हमें घमंड या लालच की वजह से कोई गलत काम करने का मन करे, तो बुद्धिमानी इसी में होगी कि हम सोचें कि उस काम का हम पर, हमारे अज़ीज़ों पर और यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते पर क्या असर पड़ेगा।

यहोवा से लगातार बात करते रहिए

15. हम यीशु की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

15 यहोवा चाहता है कि हम ज़िंदगी का पूरा-पूरा लुत्फ उठाएँ। (भज. 1:1-3) वह हमें सही वक्‍त पर सही मार्गदर्शन देता है। (इब्रानियों 4:16 पढ़िए।) हालाँकि यीशु सिद्ध था, लेकिन यहोवा से लगातार बात करना उसकी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा था। वह हमेशा प्रार्थना में लगा रहता था। यहोवा ने शानदार तरीकों से यीशु की मदद की और उसका मार्गदर्शन किया। उसने स्वर्गदूतों को उसकी सेवा करने के लिए भेजा, उसे पवित्र शक्‍ति दी और 12 प्रेषितों को चुनने में उसे मार्गदर्शन दिया। यहोवा ने स्वर्ग से बात भी की, जिससे साबित हुआ कि वह यीशु के साथ था और उसे मंज़ूर करता था। (मत्ती 3:17; 17:5; मर. 1:12, 13; लूका 6:12, 13; यूह. 12:28) यीशु की तरह, हमें भी लगातार और दिल से प्रार्थना करने की ज़रूरत है। (भज. 62:7, 8; इब्रा. 5:7) प्रार्थना हमें यहोवा के करीब बने रहने में और इस तरह जीने में मदद देती है, जिससे उसकी महिमा हो।

16. यहोवा हमें अपनी आवाज़ सुनने में कैसे मदद देता है?

16 हालाँकि यहोवा अपनी सलाह सभी के लिए मुहैया कराता है, लेकिन वह उसे मानने के लिए किसी पर दबाव नहीं डालता। हमें मार्गदर्शन के लिए उसकी पवित्र शक्‍ति माँगने की ज़रूरत है। अगर हम ऐसा करें, तो वह उदारता से हमें अपनी पवित्र शक्‍ति देगा। (लूका 11:10-13 पढ़िए।) बाइबल कहती है: “ध्यान दो कि तुम कैसे सुनते हो।” (लूका 8:18) मिसाल के लिए, अगर हम अनैतिकता से दूर रहने के लिए यहोवा से मदद माँगते हैं, लेकिन पोर्नोग्राफी या अनैतिक फिल्में देखते रहते हैं, तो हम दिखा रहे होते हैं कि हम असल में उसकी मदद नहीं चाहते। उसकी मदद पाने के लिए हमें ऐसी जगह पर या ऐसे माहौल में होना चाहिए, जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति काम करती है, जैसे कि हमारी मंडली की सभाओं में। यहोवा के कई सेवक विनाश की तरफ ले जानेवाली राह से बच पाए, क्योंकि उन्होंने सभाओं के दौरान यहोवा की सुनी। जब उन्हें एहसास हुआ कि उनमें गलत इच्छाएँ पनप रही हैं, तो उन्होंने खुद को सुधारा।—भज. 73:12-17; 143:10.

यहोवा की आवाज़ ध्यान से सुनते रहिए

17. खुद पर भरोसा करना क्यों खतरनाक होता है?

17 हम इसराएल के राजा दाविद से एक ज़रूरी सबक सीखते हैं। जब तक दाविद यहोवा पर निर्भर रहा, तब तक वह बड़े-बड़े काम कर पाया। जैसे, जब वह जवान था, तब उसने लंबे-चौड़े गोलियत को मार गिराया। बाद में वह एक सैनिक और उसके बाद राजा बना। उसका काम था इसराएल राष्ट्र की रक्षा करना और उनके लिए अच्छे फैसले लेना। लेकिन जब वह खुद पर भरोसा करने लगा, तब उसके दिल ने उसे धोखा दे दिया। उसने बतशेबा के साथ पाप किया, और-तो-और उसके पति को भी मरवा डाला। लेकिन जब यहोवा ने उसे सुधारा, तो दाविद ने नम्र होकर यहोवा की सुनी, अपनी गलतियाँ कबूल कीं और फिर से यहोवा का दोस्त बन गया।—भज. 51:4, 6, 10, 11.

18. यहोवा की आवाज़ लगातार सुनने के लिए क्या बात हमारी मदद करेगी?

18 पहला कुरिंथियों 10:12 से हम सीखते हैं कि हमें खुद पर भरोसा नहीं करना चाहिए। बाइबल साफ बताती है कि हम खुद का मार्गदर्शन नहीं कर सकते। (यिर्म. 10:23) इसका मतलब है कि हम या तो यहोवा की सुनेंगे या शैतान की। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम प्रार्थना करने में लगे रहें और पवित्र शक्‍ति की दिखायी राह पर चलें। जी हाँ, ऐसा हो कि हम हमेशा यहोवा की आवाज़ ध्यान से सुनते रहें।