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‘बहुत तकलीफों’ के बावजूद वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा कीजिए

‘बहुत तकलीफों’ के बावजूद वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा कीजिए

“हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना है।”—प्रेषि. 14:22.

1. परमेश्‍वर के सेवक “बहुत तकलीफें” क्यों झेलते हैं?

 क्या यह जानकर आपको हैरानी होती है कि हमेशा की ज़िंदगी का तोहफा पाने से पहले हमें “बहुत तकलीफें” झेलनी पड़ेंगी? शायद नहीं। हमें सच्चाई में चाहे कितने ही साल हो गए हों, हम सभी तकलीफों का सामना करते हैं। क्यों? इसकी एक वजह यह है कि हम शैतान की दुनिया में जी रहे हैं।—प्रका. 12:12.

2. (क) सभी असिद्ध इंसानों पर आनेवाली मुश्‍किलों के अलावा, मसीही और किस तकलीफ का सामना करते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) ज़ुल्मों के पीछे किसका हाथ है? (ग) हम यह कैसे जानते हैं?

2 सभी असिद्ध इंसान ज़िंदगी में मुश्‍किलों का सामना करते हैं। लेकिन मसीहियों को उन मुश्‍किलों के अलावा और भी कई तकलीफों का सामना करना पड़ता है। (1 कुरिं. 10:13) ऐसी ही एक तकलीफ जिसका वे सामना करते हैं, वह है कड़ा विरोध। वे इसलिए कड़ा विरोध सहते हैं क्योंकि उन्होंने ठान रखा है कि वे परमेश्‍वर के वफादार बने रहेंगे। यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “एक दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्होंने मुझ पर ज़ुल्म किया है, तो तुम पर भी ज़ुल्म करेंगे।” (यूह. 15:20) इन ज़ुल्मों के पीछे किसका हाथ है? शैतान का। बाइबल उसे “गरजते हुए शेर” की तरह बताती है, जो “इस ताक में घूम रहा है” कि परमेश्‍वर के लोगों को “निगल जाए।” (1 पत. 5:8) शैतान यहोवा की तरफ हमारी वफादारी तोड़ने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। आइए देखें कि प्रेषित पौलुस के साथ क्या हुआ।

लुस्त्रा शहर में आयी तकलीफें

3-5. (क) लुस्त्रा में पौलुस पर क्या ज़ुल्म ढाया गया? (ख) तकलीफों के बारे में कहे पौलुस के शब्द किस तरह हिम्मत बँधानेवाले थे?

3 परमेश्‍वर का वफादार रहने की वजह से पौलुस कई बार ज़ुल्मों का शिकार हुआ। (2 कुरिं. 11:23-27) एक बार लुस्त्रा शहर में पौलुस ने एक ऐसे आदमी को चंगा किया, जो जन्म से ही लँगड़ा था। इस चमत्कार की वजह से लोग पौलुस और बरनबास को देवता कहने लगे। दोनों को भीड़ से गिड़गिड़ाकर बिनती करनी पड़ी कि वे उनकी उपासना न करें! लेकिन जल्द ही वहाँ यहूदी धर्म-गुरू आ धमके और उन्होंने पौलुस और बरनबास के बारे में बुरा-भला कह-कहकर लोगों के दिमाग में ज़हर घोल दिया। अचानक पासा पलट गया! भीड़ उनकी झूठी बातों में आ गयी। नतीजा, वे पौलुस पर तब तक पत्थरवाह करते रहे, जब तक कि उन्हें नहीं लगा कि वह मर गया है।—प्रेषि. 14:8-19.

4 दिरबे शहर का दौरा करने के बाद, पौलुस और बरनबास “लुस्त्रा और इकुनियुम और अंताकिया लौट गए। वे चेलों की हिम्मत बँधाते रहे और उन्हें यह कहकर विश्‍वास में बने रहने का बढ़ावा देते रहे: ‘हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना है।’” (प्रेषि. 14:21, 22) यह बात पढ़कर हमें शायद अजीब लगे। आखिर “बहुत तकलीफें” झेलने की बात सुनकर किसकी हिम्मत बँधेगी? तो जब पौलुस और बरनबास ने कहा कि चेलों को बहुत तकलीफें झेलनी पड़ेंगी, तो इससे भला “चेलों की हिम्मत” कैसे ‘बँधी’?

5 हमें इस सवाल का जवाब पौलुस के शब्दों में ही मिलता है। ध्यान दीजिए कि उसने सिर्फ इतना नहीं कहा: “हमें बहुत तकलीफें झेलनी होंगी।” उसने यह भी कहा: “हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना है।” जी हाँ, पौलुस यहाँ उस शानदार इनाम पर ज़ोर दे रहा था, जो परमेश्‍वर के वफादार रहनेवालों को मिलेगा। यह इनाम कोई सपना नहीं है। यीशु ने कहा था: “जो अंत तक धीरज धरेगा, वही उद्धार पाएगा।”मत्ती 10:22.

6. तकलीफों के बावजूद धीरज धरनेवालों को क्या इनाम मिलेगा?

6 अगर हम तकलीफों के बावजूद धीरज धरें, तो हमें इनाम मिलेगा। अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए यह इनाम है, स्वर्ग में यीशु के साथ राजा के तौर पर अमर जीवन। और ‘दूसरी भेड़ों’ के लिए यह इनाम है, धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी, जहाँ “न्याय का बसेरा होगा।” (यूह. 10:16; 2 पत. 3:13) मगर तब तक, जैसे पौलुस ने कहा, हमें बहुत तकलीफें झेलनी होंगी। आइए अब हम दो तरह की परीक्षाओं पर गौर करें, जो शायद हम पर आ सकती हैं।

सामने से किए जानेवाले हमले

7. सामने से किए जानेवाले हमलों में क्या शामिल है?

7 यीशु ने भविष्यवाणी की थी: “लोग तुम्हें निचली अदालतों के हवाले करेंगे और तुम सभा-घरों में पीटे जाओगे। तुम . . . राज्यपालों और राजाओं के सामने कठघरे में पेश किए जाओगे।” (मर. 13:9) यीशु के इन शब्दों से पता चलता है कि कुछ मसीही सामने से किए जानेवाले हमलों के शिकार होंगे, जैसे कि ज़ुल्म के। कई बार हो सकता है यह ज़ुल्म धर्म-गुरुओं या नेताओं की तरफ से आए। (प्रेषि. 5:27, 28) एक बार फिर पौलुस की मिसाल पर गौर कीजिए। क्या वह ज़ुल्मों के बारे में सोचकर डर गया था? बिलकुल नहीं।—प्रेषितों 20:22, 23 पढ़िए।

8, 9. (क) पौलुस ने कैसे दिखाया कि उसने धीरज धरने की ठान ली है? (ख) आज कुछ भाइयों ने सामने से किए जानेवाले हमलों का सामना कैसे किया है?

8 पौलुस ने सामने से किए जानेवाले शैतान के हमलों का हिम्मत के साथ सामना किया और कहा: “मैं अपनी जान को ज़रा भी कीमती नहीं समझता कि इसकी परवाह करूँ, बस इतना चाहता हूँ कि मैं किसी तरह अपनी दौड़ पूरी कर सकूँ और अपनी सेवा पूरी कर सकूँ। यही सेवा जो मुझे प्रभु यीशु से मिली थी कि परमेश्‍वर की महा-कृपा के बारे में खुशखबरी की अच्छी गवाही दूँ।” (प्रेषि. 20:24) इन शब्दों से पता चलता है कि पौलुस ज़ुल्मों का शिकार होने से घबराया नहीं। इसके बजाय, उसने धीरज धरने की ठान ली थी। उसका लक्ष्य था तकलीफों के बावजूद “अच्छी गवाही” देना।

9 पौलुस की तरह, आज हमारे कई भाई-बहनों ने ज़ुल्मों के दौर में वफादारी से अपनी खराई बनाए रखी है। मिसाल के लिए, एक देश में कुछ साक्षी करीब 20 साल से जेल में कैद हैं। क्यों? क्योंकि उन्होंने राजनीतिक मामलों में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया था। उनके मामले को कभी अदालत में पेश ही नहीं किया गया। उनके परिवारवालों तक को उनसे मिलने की इजाज़त नहीं है। और उनमें से कुछ भाइयों को तो बेरहमी से मारा-पीटा और तड़पाया गया है।

10. हमें अचानक आनेवाली तकलीफों से क्यों घबराना नहीं चाहिए?

10 हमारे कुछ भाई-बहन ऐसी तकलीफों का भी सामना करते हैं, जो उन पर अचानक आ जाती हैं। अगर आपके साथ ऐसा होता है, तो घबराइए मत। यूसुफ को याद कीजिए। उसे अचानक गुलाम बनाकर बेच दिया गया था। लेकिन यहोवा ने “उसे उसकी सारी मुसीबतों से छुटकारा दिलाया।” (प्रेषि. 7:9, 10) यहोवा आपको भी आपकी सारी मुसीबतों से छुटकारा दिला सकता है। हमेशा याद रखिए कि “यहोवा जानता है कि जो उसकी भक्‍ति करते हैं उन्हें परीक्षा से कैसे निकाले।” (2 पत. 2:9) आप यहोवा पर भरोसा रख सकते हैं और हिम्मत के साथ ज़ुल्मों का सामना कर सकते हैं। भरोसा रखिए कि यहोवा आपको इस दुष्ट दुनिया से बचा सकता है और हमेशा की ज़िंदगी दे सकता है।—1 पत. 5:8, 9.

छिपकर किए जानेवाले हमले

11. छिपकर किए जानेवाले हमले सामने से किए जानेवाले हमलों से कैसे अलग हैं?

11 हमें छिपकर किए जानेवाले हमलों का भी सामना करना पड़ सकता है। ये हमले सामने से किए जानेवाले हमलों से कैसे अलग हैं? सामने से किए जानेवाले हमले भयंकर तूफान की तरह होते हैं, जो अचानक आता है और पल भर में हमारे घर को नेस्तनाबूद कर देता है। जबकि छिपकर किए जानेवाले हमले, दीमक की तरह होते हैं, जो लकड़ी से बने हमारे घर को धीरे-धीरे कुतर-कुतरकर अंदर से खोखला करती जाती है। जब तक हमें इस बात का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, क्योंकि हमारा घर ढह जाने की कगार पर होता है।

12. (क) शैतान के छिपकर किए जानेवाले हमलों में से एक हमला कौन-सा है? (ख) यह हमला क्यों सबसे असरदार है? (ग) पौलुस पर निराशा का क्या असर हुआ?

12 शैतान यहोवा के साथ आपकी दोस्ती तोड़ना चाहता है। वह या तो आप पर ज़ुल्म ढाकर सामने से हमला कर सकता है या आपको निराश करके छिपकर हमला कर सकता है। निराशा शैतान के सबसे असरदार हथियारों में से एक है। क्यों? क्योंकि निराशा धीरे-धीरे परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते को कमज़ोर कर सकती है। कुछ मौकों पर प्रेषित पौलुस ने भी निराश महसूस किया था। एक बार तो उसने खुद को “लाचार इंसान” तक कहा। (रोमियों 7:21-24 पढ़िए।) लेकिन पौलुस का तो यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता था और वह शायद शासी निकाय का एक सदस्य भी था। तो फिर उसने निराश महसूस क्यों किया? अपनी असिद्धताओं की वजह से। वह अच्छा करना चाहता था, लेकिन ऐसा करना उसके लिए हमेशा आसान नहीं होता था। अगर आप भी निराश महसूस करते हैं, तो आप यह जानकर दिलासा पा सकते हैं कि पौलुस भी इसी तरह की भावनाओं से गुज़रा था।

13, 14. (क) परमेश्‍वर के कुछ सेवक निराश क्यों हो जाते हैं? (ख) कौन चाहता है कि हमारा विश्‍वास तहस-नहस हो जाए? और क्यों?

13 कभी-कभी हमारे कई भाई-बहन निराश महसूस करते हैं, उन्हें चिंता सताती है, यहाँ तक कि वे शायद खुद को नाकाबिल भी महसूस करने लगते हैं। मिसाल के लिए, एक जोशीली पायनियर बहन कहती है: “मुझसे हुई एक गलती के बारे में मैं बार-बार सोचती रहती हूँ, और हर बार मुझे उस गलती के बारे में पहले से भी ज़्यादा बुरा लगता है। जब मैं उन सभी गलतियों के बारे में सोचती हूँ, जो मैंने की हैं, तो कभी-कभी मुझे लगने लगता है जैसे कोई भी मुझसे प्यार नहीं करेगा, यहोवा भी नहीं।”

14 इस बहन की तरह, यहोवा के कुछ जोशीले सेवक निराश महसूस क्यों करते हैं? इसकी कई वजह हो सकती हैं। कुछ शायद ऐसा इसलिए महसूस करते हैं क्योंकि वे या तो खुद को या अपने हालात को हमेशा कोसते रहते हैं। (नीति. 15:15) दूसरों को शायद कोई ऐसी बीमारी है, जिसका उनकी भावनाओं पर असर पड़ता है और इसलिए वे निराश हो जाते हैं। निराशा की वजह चाहे जो भी हो, याद रखिए कि कौन हमारे खिलाफ इसका इस्तेमाल करना चाहता है। कौन चाहता है कि हम इतने निराश हो जाएँ कि हम यहोवा की सेवा करना ही छोड़ दें? शैतान, और कौन! उसे तो मौत की सज़ा सुना दी गयी है और वह चाहता है कि आप भी ऐसा महसूस करें कि आपके पास भी बचने की कोई उम्मीद नहीं है। (प्रका. 20:10) सच तो यह है कि वह चाहे सामने से हमला करे या छिपकर, उसका मकसद बस एक ही है: हमें चिंता के बोझ तले दबाना, हमारा जोश ठंडा करना और हमें यहोवा की सेवा करने से रोकना। कभी इस गलतफहमी में मत रहिए कि वह आपको बख्श देगा! परमेश्‍वर का हर बंदा इस युद्ध में शामिल है, एक ऐसे युद्ध में जिसमें हमें परमेश्‍वर की तरफ अपनी खराई बनाए रखनी है।

15. दूसरा कुरिंथियों 4:16, 17 के मुताबिक, हमने क्या करने की ठान ली है?

15 ठान लीजिए कि आप इस युद्ध में हार नहीं मानेंगे। इनाम पर अपनी नज़र लगाए रखिए। पौलुस ने कुरिंथ में रहनेवाले मसीहियों को लिखा: “हम हार नहीं मानते, चाहे हमारा बाहर का इंसान मिटता जा रहा है, मगर हमारा अंदर का इंसान दिन-ब-दिन नया होता जा रहा है। हालाँकि हमारी दुःख-तकलीफें पल-भर के लिए और हल्की हैं, ये हमारे लिए ऐसी अपार महिमा पैदा करती हैं जो बेमिसाल है और हमेशा तक कायम रहती है।”—2 कुरिं. 4:16, 17.

तकलीफों का सामना करने के लिए अभी से तैयारी कीजिए

सभी मसीही, फिर चाहे वे छोटे हों या बड़े, अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताने के लिए खुद को अच्छी तालीम देते हैं (पैराग्राफ 16 देखिए)

16. यह क्यों ज़रूरी है कि हम आनेवाली तकलीफों के लिए खुद को अभी से तैयार करें?

16 जैसा कि हमने देखा, शैतान के ढेरों ‘दाँव-पेंच’ या धूर्त चालें हैं, जिन्हें वह हमारे खिलाफ इस्तेमाल करता है। (इफि. 6:11) इसलिए हमें 1 पतरस 5:9 में दी सलाह को लागू करना चाहिए: “तुम विश्‍वास में मज़बूत रहकर उसका मुकाबला करो।” मज़बूत बने रहने के लिए हमें अभी से अपने दिलो-दिमाग को तैयार करने की ज़रूरत है, ताकि हम सही काम करने के लिए हरदम तैयार रहें। मिसाल के लिए, युद्ध में जाने से बहुत पहले सैनिकों को खास तालीम दी जाती है, ताकि वे युद्ध के लिए तैयार हो सकें। हमारे मामले में भी यह बात सच है। हम नहीं जानते कि भविष्य में हमें किस तरह के युद्ध लड़ने पड़ेंगे। इसलिए जब तक वक्‍त है, हमें खुद को अच्छी तालीम देनी चाहिए। प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को उकसाया: “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्‍वास में हो या नहीं। तुम खुद क्या हो, इसका सबूत देते रहो।”—2 कुरिं. 13:5.

17-19. (क) अपनी जाँच करने के लिए हम खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं? (ख) नौजवान स्कूल में अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताने के लिए कैसे तैयारी कर सकते हैं?

17 खुद को जाँचने का एक तरीका है, खुद से इस तरह के सवाल पूछना, जैसे: ‘क्या मैं लगातार प्रार्थना करता हूँ? जब मेरे साथी मुझ पर गलत काम करने का दबाव डालते हैं, तो क्या मैं इंसानों के बजाय, परमेश्‍वर की आज्ञा मानता हूँ? क्या मैं बिना नागा सभाओं में हाज़िर होता हूँ? क्या मैं हिम्मत के साथ अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताता हूँ? क्या मैं अपने भाइयों की गलतियों को माफ कर देता हूँ, ठीक जैसे मैं उनसे उम्मीद करता हूँ कि वे मुझे माफ करें? क्या मैं अपनी मंडली के प्राचीनों की आज्ञा मानता हूँ और उनकी भी जो दुनिया-भर की मंडलियों की निगरानी करते हैं?’

18 ध्यान दीजिए कि ऊपर बताए सवालों में से दो सवाल, हिम्मत के साथ अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताने और अपने साथियों के दबाव का सामना करने के बारे में हैं। हमारे कई जवान भाई-बहनों को स्कूल में ऐसा करना पड़ता है। मगर वे ऐसा करने में कोई शर्म या झिझक महसूस नहीं करते। हिम्मत के साथ गवाही देने में किस बात ने उन्हें मदद दी है? उन्होंने हमारी पत्रिकाओं में दिए सुझावों का इस्तेमाल किया है। उदाहरण के लिए, अक्टूबर-दिसंबर 2009 की सजग होइए! में सुझाव दिया गया था कि अगर आपके साथ पढ़नेवाला विद्यार्थी आपसे पूछता है: “तुम विकासवाद में विश्‍वास क्यों नहीं करते?” तो आप बस इतना कह सकते हैं: “मैं विकासवाद पर क्यों विश्‍वास करूँ? जबकि जाने-माने वैज्ञानिक खुद इस बात पर एक-दूसरे से सहमत नहीं।” माता-पिताओ, अपने बच्चों के साथ इस बारे में रिहर्सल करना मत भूलिए कि वे किन तरीकों से अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बता सकते हैं, ताकि वे स्कूल में ऐसा करने के लिए तैयार रहें।

19 माना कि अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताना या यहोवा की दूसरी आज्ञाएँ मानना हमेशा आसान नहीं होता। मिसाल के लिए, दिन-भर काम करने के बाद, हो सकता है हमें सभाओं में जाने के लिए खुद के साथ सख्ती बरतनी पड़े। या फिर हो सकता है प्रचार में जाने के लिए सुबह-सुबह बिस्तर से उठना हमें मुश्‍किल लगे। लेकिन याद रखिए, अगर आप अभी से ये चीज़ें करने की आदत डालें, तो भविष्य में जब बड़ी-बड़ी परीक्षाएँ आएँगी, तो आप उनका सामना करने के लिए तैयार होंगे।

20, 21. (क) फिरौती बलिदान पर मनन करने से हमें निराशा की भावनाओं से जूझने में कैसे मदद मिल सकती है? (ख) हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए?

20 छिपकर किए जानेवाले हमलों के बारे में क्या? मिसाल के लिए, हम निराशा की भावनाओं से कैसे जूझ सकते हैं? ऐसा करने का एक सबसे ज़बरदस्त तरीका है, यीशु के फिरौती बलिदान पर मनन करना। प्रेषित पौलुस ने भी यही किया था। कभी-कभी वह खुद को लाचार महसूस करता था। फिर भी वह जानता था कि मसीह सिद्ध इंसानों के लिए नहीं, बल्कि उसके जैसे पापियों के लिए मरा। पौलुस ने लिखा: “मैं . . . उस विश्‍वास से जी रहा हूँ जो मुझे परमेश्‍वर के बेटे पर है, जिसने मुझसे प्यार किया और खुद को मेरे लिए दे दिया।” (गला. 2:20) जी हाँ, पौलुस ने फिरौती के इंतज़ाम को कबूल किया और माना कि फिरौती बलिदान निजी तौर पर उसके लिए दिया गया था।

21 अगर आप भी फिरौती को यहोवा की तरफ से मिला एक निजी तोहफा समझें, तो इससे आपको भी बहुत फायदा हो सकता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ऐसा करने से निराशा फौरन दूर हो जाएगी। नयी दुनिया के आने तक हममें से कुछ भाई-बहनों को समय-समय पर निराशा से जूझना पड़ेगा। लेकिन याद रखिए, इनाम उन्हीं को मिलेगा, जो हिम्मत नहीं हारेंगे। हर एक दिन हमें परमेश्‍वर के राज के करीब ले जा रहा है। जब परमेश्‍वर का राज आएगा, तब धरती पर शांति होगी और सभी इंसान सिद्ध होंगे। उस राज में दाखिल होने की ठान लीजिए, फिर चाहे इसके लिए आपको आज बहुत तकलीफें क्यों न झेलनी पड़ें।