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सबसे आखिरी दुश्‍मन, मौत को मिटा दिया जाएगा

सबसे आखिरी दुश्‍मन, मौत को मिटा दिया जाएगा

“सब से आखिरी दुश्‍मन जो मिटा दिया जाएगा, वह मौत है।”—1 कुरिं. 15:26.

1, 2. (क) शुरूआत में आदम और हव्वा की ज़िंदगी कैसी थी? (ख) इससे क्या सवाल खड़े होते हैं?

 जब आदम और हव्वा को बनाया गया था, तब उनका कोई भी दुश्‍मन नहीं था। वे दोनों सिद्ध थे और फिरदौस में रहते थे। उनका अपने सृष्टिकर्ता के साथ एक करीबी रिश्‍ता था। वे उसका बेटा और बेटी कहलाते थे। (उत्प. 2:7-9; लूका 3:38) परमेश्‍वर ने उन्हें एक ज़रूरी काम दिया था। (उत्पत्ति 1:28 पढ़िए।) इस काम को पूरा करने के लिए उन्हें कितने समय जीना था? ‘पृथ्वी में भर जाने और उसको अपने वश में करने,’ यानी पृथ्वी को आबाद करने और अदन के बगीचे की सरहदों को बढ़ाकर पूरी पृथ्वी को फिरदौस बनाने के लिए उन्हें हमेशा तक जीने की ज़रूरत नहीं पड़ती। लेकिन ‘पृथ्वी [के] सब जन्तुओं पर अधिकार रखने’ के लिए बेशक उन्हें हमेशा तक जीने की ज़रूरत पड़ती। वे यह ज़िम्मेदारी हमेशा-हमेशा तक पूरी करते रहने का लुत्फ उठा सकते थे।

2 लेकिन आज हालात इतने अलग क्यों हैं? आज हमारी खुशियों के बीच इतने सारे दुश्‍मन क्यों आ गए, जिनमें से सबसे बड़ा दुश्‍मन मौत है? परमेश्‍वर इन दुश्‍मनों को कैसे मिटाएगा? इन सभी सवालों के जवाब बाइबल में हैं। आइए अब हम उन पर चर्चा करें।

एक प्यार-भरी चेतावनी

3, 4. (क) परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा को क्या आज्ञा दी थी? (ख) उनके लिए इस आज्ञा को मानना कितना ज़रूरी था?

3 हालाँकि आदम और हव्वा को हमेशा की ज़िंदगी मिली थी, लेकिन उन्हें अमर जीवन नहीं मिला था। ज़िंदा रहने के लिए उन्हें साँस लेने, खाने-पीने और सोने की ज़रूरत थी। लेकिन इन सबसे बढ़कर, उनकी ज़िंदगी सृष्टिकर्ता, यहोवा के साथ उनके रिश्‍ते पर निर्भर थी। (व्यव. 8:3) यहोवा के मार्गदर्शन पर चलकर ही वे हमेशा की ज़िंदगी जीने का लुत्फ उठा सकते थे। हव्वा की सृष्टि करने से पहले ही, यहोवा ने आदम से साफ-साफ कहा था: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।”—उत्प. 2:16, 17.

4 ‘भले या बुरे के ज्ञान का वृक्ष’ इस बात को दर्शाता था कि परमेश्‍वर को यह तय करने का हक था कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। आदम के पास अच्छे और बुरे के बीच फर्क करने की काबिलीयत थी, क्योंकि उसे परमेश्‍वर के स्वरूप में बनाया गया था और उसके पास ज़मीर था। यह पेड़ आदम और हव्वा को याद दिलाता कि उन्हें यहोवा के मार्गदर्शन की हमेशा ज़रूरत पड़ेगी। अगर वे उस पेड़ का फल खाते, तो एक मायने में वे परमेश्‍वर से कह रहे होते, “हमें आपके कायदे-कानूनों की कोई ज़रूरत नहीं है।” नतीजा, वे और उनके बच्चे मर जाते, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने उन्हें चेतावनी दी थी।

इंसानों पर मौत कैसे आयी

5. आदम और हव्वा ने यहोवा की आज्ञा क्यों तोड़ी?

5 आदम ने हव्वा को यहोवा की आज्ञा के बारे में बताया था। हव्वा को वह आज्ञा इतनी अच्छी तरह मालूम थी कि बाद में वह उसे लगभग शब्द-ब-शब्द दोहरा सकी। (उत्प. 3:1-3) उसने वह आज्ञा शैतान के आगे दोहरायी, जो साँप को एक कठपुतली की तरह इस्तेमाल करके हव्वा से बात कर रहा था। शैतान इब्‌लीस ने अधिकार और आज़ादी पाने की अपनी इच्छा को अपने अंदर पनपने दिया था। (याकूब 1:14, 15 से तुलना कीजिए।) उसने हव्वा से कहा कि परमेश्‍वर झूठ बोल रहा है और अगर वह परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ेगी, तो वह मरेगी नहीं, बल्कि परमेश्‍वर की तरह बन जाएगी। (उत्प. 3:4, 5) हव्वा उसकी बातों में आ गयी। उसने अपनी मरज़ी से फैसला करके फल खा लिया और आदम को भी ऐसा ही करने को कहा। (उत्प. 3:6, 17) शैतान ने हव्वा से झूठ बोला था। (1 तीमुथियुस 2:14 पढ़िए।) आदम जानता था कि ऐसा करना गलत है, फिर भी उसने “अपनी पत्नी की बात सुनी।” हालाँकि यह साँप उन्हें शायद एक दोस्त की तरह नज़र आ रहा था, लेकिन दरअसल साँप के ज़रिए बात करनेवाला शैतान इब्‌लीस एक दुश्‍मन था, एक ऐसा बेरहम दुश्‍मन जो बखूबी जानता था कि उसका एक झूठ आगे चलकर दुनिया में कितनी तबाही मचाएगा।

6, 7. यहोवा ने आदम और हव्वा का न्याय कैसे किया?

6 आदम और हव्वा ने ज़िंदगी और सभी अच्छी चीज़ें देनेवाले यहोवा के खिलाफ बगावत की। बेशक, यहोवा सब कुछ देख रहा था। वह जानता था कि उन्होंने क्या किया है। (1 इति. 28:9; नीतिवचन 15:3 पढ़िए।) लेकिन फिर भी उसने आदम, हव्वा और शैतान को यह दिखाने का मौका दिया कि वे उसके बारे में असल में कैसा महसूस करते हैं। एक पिता होने के नाते, बेशक यहोवा को उनके कामों से बहुत ठेस पहुँची होगी। (उत्पत्ति 6:6 से तुलना कीजिए।) लेकिन एक न्यायी होने के नाते, उसने उन पापियों को सज़ा सुनायी, ठीक जैसे उसने कहा था।

7 परमेश्‍वर ने आदम से कहा था: “जिस दिन तू [भले या बुरे के ज्ञान के पेड़ का] फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” आदम ने शायद सोचा होगा कि परमेश्‍वर के ऐसा कहने का मतलब था कि वह सूरज ढलने से पहले ही मर जाएगा। लेकिन उसी दिन कुछ वक्‍त बाद “दिन के ठंडे समय,” यहोवा ने आदम और हव्वा से बात की। (उत्प. 3:8) एक नेक न्यायी होने के नाते, उसने पहले उन दोनों की बात सुनी कि वे क्या कहना चाहते हैं। (उत्प. 3:9-13) इसके बाद उसने उन दोनों पापियों को मौत की सज़ा सुनायी। (उत्प. 3:14-19) अगर यहोवा ने उन दोनों को उसी समय मार डाला होता, तो आदम और हव्वा और उनके बच्चों के लिए उसका मकसद कभी पूरा नहीं हो पाता। (यशा. 55:11) हालाँकि पाप के असर दिखने फौरन शुरू हो गए थे, लेकिन यहोवा ने आदम और हव्वा को कुछ समय तक जीने दिया, ताकि वे बच्चे पैदा कर सकें, जो आगे चलकर यहोवा के ज़रिए किए जानेवाले इंतज़ामों से फायदा पा सकते थे। यहोवा की नज़र में आदम और हव्वा उसी दिन मर गए थे, जब उन्होंने पाप किया था। और क्योंकि यहोवा के लिए 1,000 साल एक दिन के बराबर है, इसलिए वे उसी “दिन” मर गए।—2 पत. 3:8.

8, 9. आदम के पाप का उसके सभी बच्चों पर कैसे असर पड़ा? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

8 आदम और हव्वा ने जो किया, क्या उसका असर उनके बच्चों पर होता? बिलकुल। रोमियों 5:12 कहता है: “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।” यह कहने के बाद, प्रेषित पौलुस ने कहा: “एक आदमी के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे।” (रोमि. 5:19) वफादार हाबिल पहला इंसान था जिसकी मौत हुई। (उत्प. 4:8) फिर आदम के दूसरे बच्चे और नाती-पोते बूढ़े होकर मर गए। इस तरह, इंसानों को विरासत में पाप और मौत मिली। ये ऐसे दो दुश्‍मन हैं, जिनसे असिद्ध इंसान पीछा नहीं छुड़ा सकता। हालाँकि हम नहीं जानते कि आदम से उसके बच्चों को पाप और मौत ठीक किस तरह मिली, लेकिन हम उनके अंजाम ज़रूर देख सकते हैं।

9 इसलिए हम समझ सकते हैं कि क्यों बाइबल पाप और मौत की तुलना एक ऐसे “पर्दे” से करती है, “जो सभी जातियों और सभी व्यक्‍तियों को ढके” हुए है। (यशा. 25:7, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कोई भी इंसान पाप और मौत से बच नहीं सकता। तभी तो बाइबल कहती है कि “आदम में सभी मर रहे हैं।” (1 कुरिं. 15:22) इसलिए पौलुस ने यह सवाल पूछा: “मुझे इस शरीर से, जो मर रहा है, कौन छुड़ाएगा?” (रोमि. 7:24) क्या कोई था, जो पौलुस को इस दुश्‍मन से छुड़ा सकता था? a

पाप और मौत को मिटा दिया जाएगा

10. (क) बाइबल की कौन-सी आयतें दिखाती हैं कि यहोवा मौत को मिटा देगा? (ख) ये आयतें हमें यहोवा और उसके बेटे के बारे में क्या सिखाती हैं?

10 यहोवा पौलुस को छुड़ा सकता था। बाइबल कहती है: “वह मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा, और प्रभु यहोवा सभों के मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा।” (यशा. 25:8) जिस तरह एक पिता को अपने बच्चों की हर परेशानी को दूर करने और उनकी आँखों में आए हर आँसू को पोंछ देने में खुशी होती है, उसी तरह यहोवा को आदम से आयी मौत को मिटाने में बेहद खुशी होगी! ऐसा करने में यीशु मसीह अपने पिता का साथ देगा। हम 1 कुरिंथियों 15:22 में पढ़ते हैं: “ठीक जैसे आदम में सभी मर रहे हैं, वैसे ही मसीह में सभी ज़िंदा किए जाएँगे।” उसी तरह, जब पौलुस ने पूछा कि ‘मुझे कौन छुड़ाएगा?’ तो उसने खुद अपने सवाल का जवाब देते हुए कहा: “हमारे प्रभु, यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर का धन्यवाद हो!” (रोमि. 7:25) यह बात साफ है कि जब आदम और हव्वा ने पाप किया, तो यहोवा ने इंसानों से प्यार करना नहीं छोड़ा। और यीशु, जिसने आदम और हव्वा को वजूद में लाने में अपने पिता का हाथ बँटाया था, आज भी इंसानों से प्यार करता है। (नीति. 8:30, 31) लेकिन इंसानों को पाप और मौत से कैसे छुड़ाया जाता?

11. इंसानों की मदद करने के लिए यहोवा ने क्या इंतज़ाम किया?

11 जब आदम ने पाप किया, तो यहोवा ने उसे मौत की सज़ा सुना दी। नतीजा, सभी इंसानों को विरासत में असिद्धता और मौत मिली। (रोमि. 5:12, 16) रोमियों 5:18 बताता है: “एक ही गुनाह का अंजाम यह हुआ कि सब किस्म के लोग सज़ा के लायक ठहरे।” अपने ही स्तरों को नज़रअंदाज़ किए बगैर, यहोवा ने इंसानों की मदद करने के लिए क्या किया? इस सवाल का जवाब हमें यीशु के इन शब्दों से मिलता है: ‘इंसान का बेटा इसलिए आया कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।’ (मत्ती 20:28) एक सिद्ध इंसान होने के नाते, यीशु फिरौती दे सकता था। यह फिरौती इंसाफ की माँग कैसे पूरी करती?—1 तीमु. 2:5, 6

12. वह कौन-सा फिरौती बलिदान था, जिससे इंसाफ की माँग पूरी हुई?

12 एक सिद्ध इंसान होने के नाते, यीशु हमेशा तक जी सकता था। आदम के लिए यहोवा का यही मकसद था। लेकिन क्योंकि यीशु अपने पिता और आदम की संतानों से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसने अपना इंसानी जीवन कुरबान कर दिया। जी हाँ, यीशु ने एक ऐसा सिद्ध इंसानी जीवन कुरबान कर दिया, जो उस जीवन के बराबर था जो आदम ने गवाँ दिया था। बाद में, यहोवा ने यीशु को स्वर्ग में एक आत्मिक व्यक्‍ति के रूप में दोबारा जी उठाया। (1 पत. 3:18) फिरौती बलिदान ने यहोवा के इंसाफ की माँग को इस तरह पूरा किया कि एक सिद्ध जीवन के बदले एक सिद्ध जीवन दिया गया। यीशु ने आदम की संतानों के लिए हमेशा की ज़िंदगी जीना मुमकिन बना दिया। एक तरह से कहें तो यीशु ने आदम की जगह ली। इसलिए पौलुस यीशु को “आखिरी आदम” कहता है, जो अब जीवन देनेवाला आत्मिक प्राणी है।—1 कुरिं. 15:45.

हाबिल, जो सबसे पहले मरा था, यीशु की फिरौती से फायदा पाएगा (पैराग्राफ 13 देखिए)

13. जो लोग मर चुके हैं, उनमें से ज़्यादातर लोगों के लिए “आखिरी आदम” क्या करेगा?

13 बहुत जल्द “आखिरी आदम,” यीशु, इंसानों को हमेशा की ज़िंदगी देगा। इन इंसानों में मौत की नींद सो रहे ज़्यादातर लोग शामिल होंगे। उनका पुनरुत्थान किया जाएगा, यानी उन्हें धरती पर दोबारा ज़िंदा किया जाएगा।—यूह. 5:28, 29.

14. इंसान विरासत में मिली असिद्धता से कैसे आज़ाद हो पाएँगे?

14 इंसान विरासत में मिली असिद्धता से कैसे आज़ाद हो पाएँगे? इसके लिए यहोवा ने स्वर्ग में एक सरकार कायम की है। यह सरकार “आखिरी आदम” और इंसानों में से चुने गए 1,44,000 जनों से मिलकर बनी है। (प्रकाशितवाक्य 5:9, 10 पढ़िए।) ये 1,44,000 जन धरती पर रहते वक्‍त असिद्ध थे, इसलिए स्वर्ग से राज करते वक्‍त वे अपनी प्रजा को अच्छी तरह समझ पाएँगे। हज़ार साल तक यीशु और उसके संगी शासक इंसानों को सिद्ध बनने में मदद देंगे।—प्रका. 20:6.

15, 16. (क) बाइबल में ‘आखिरी दुश्‍मन, मौत’ किसे दर्शाती है? (ख) इस दुश्‍मन को कब मिटाया जाएगा? (ग) पहला कुरिंथियों 15:28 के मुताबिक, यीशु आगे चलकर क्या करेगा?

15 हज़ार साल के आखिर में, आज्ञा माननेवाले सभी लोग पाप और मौत से आज़ाद हो जाएँगे। पौलुस समझाता है: “ठीक जैसे आदम में सभी मर रहे हैं, वैसे ही मसीह में सभी ज़िंदा किए जाएँगे। मगर हर कोई अपनी-अपनी बारी से: पहले फलों के तौर पर मसीह, उसके बाद वे जो मसीह के हैं [जो उसके साथ राज करते हैं] उसकी मौजूदगी के दौरान ज़िंदा किए जाएँगे। इसके बाद अंत में, जब वह सारी हुकूमत और सारे अधिकार और सारी ताकत को मिटा चुका होगा, तब वह अपने परमेश्‍वर और पिता के हाथ में राज सौंप देगा। इसलिए कि उसका तब तक राजा बनकर राज करना ज़रूरी है जब तक कि परमेश्‍वर सारे दुश्‍मनों को उसके पाँव तले नहीं कर देता। सब से आखिरी दुश्‍मन जो मिटा दिया जाएगा, वह मौत है।” (1 कुरिं. 15:22-26) जी हाँ, ‘आखिरी दुश्‍मन, मौत’ आदम से विरासत में मिली मौत को दर्शाती है, जिसे मिटा दिया जाएगा। यह “पर्दा” जो इंसानों पर पड़ा हुआ है, वह हमेशा के लिए हटा दिया जाएगा।—यशा. 25:7, 8.

16 पौलुस आगे बताता है: “जब सबकुछ उसके अधीन कर दिया जाएगा, तब बेटा भी अपने आप को उस एक के अधीन कर देगा जिसने सबकुछ उसके अधीन किया था, ताकि परमेश्‍वर ही सबके लिए सबकुछ हो।” (1 कुरिं. 15:28) एक हज़ार साल के आखिर में, यीशु के राज करने का मकसद पूरा हो चुका होगा। इसलिए उसे यहोवा को न सिर्फ अपना अधिकार लौटाने, बल्कि पूरी तरह सिद्ध हो चुके इंसानी परिवार को सौंपने में भी खुशी होगी।

17. शैतान का क्या हश्र होगा?

17 इंसानों पर दुख-तकलीफें लानेवाले शैतान का क्या होगा? इसका जवाब हमें प्रकाशितवाक्य 20:7-15 में मिलता है। हज़ार साल के खत्म होने पर शैतान को सिद्ध इंसानों को गुमराह करने और उनकी आखिरी परीक्षा लेने की इजाज़त दी जाएगी। इसके बाद शैतान और जो उसके पीछे होने का चुनाव करेंगे, उनका हमेशा-हमेशा के लिए नाश कर दिया जाएगा। इस तरह वे “दूसरी मौत” की गिरफ्त में आ जाएँगे। (प्रका. 21:8) अब क्योंकि इस “दूसरी मौत” की गिरफ्त में आनेवाले कभी ज़िंदा नहीं किए जाएँगे, इसलिए कहा जा सकता है कि “दूसरी मौत” कभी नहीं ‘मिटायी जाएगी।’ अगर हम यहोवा के वफादार रहें, तो यह “दूसरी मौत” हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी, इसलिए हमें इससे घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है।

18. परमेश्‍वर ने आदम को जो काम सौंपा था, वह कैसे पूरा होगा?

18 उस वक्‍त, सभी इंसान सिद्ध होंगे और हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए यहोवा की मंज़ूरी पा चुके होंगे। इंसानों की खुशियों के बीच आनेवाले सभी दुश्‍मनों को मिटाया जा चुका होगा। यहोवा ने आदम को जो काम दिया था, वह बगैर आदम के पूरा हो चुका होगा। उसकी संतान धरती और जानवरों की देखभाल करने का लुत्फ उठाएगी। हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि बहुत जल्द यहोवा आखिरी दुश्‍मन, मौत को मिटा देगा!

a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स किताब कहती है कि जब वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि हम क्यों बूढ़े होते और मरते हैं, तो वे एक अहम सच्चाई पर ध्यान देना भूल जाते हैं। वे इस बात को नहीं मानते कि सृष्टिकर्ता ने ही पहले इंसानों को मौत की सज़ा सुनायी थी। इस वजह से वे पूरी तरह नहीं समझ पाते कि हम क्यों बूढ़े होते और मरते हैं।—भाग 2, पेज 247.