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हमें पवित्र क्यों होना चाहिए

हमें पवित्र क्यों होना चाहिए

“तुम पवित्र बनो।”—लैव्य. 11:45.

1. लैव्यव्यवस्था की किताब हमारी मदद कैसे कर सकती है?

 यहोवा अपने सभी सेवकों से उम्मीद करता है कि वे पवित्र हों। हालाँकि पूरी बाइबल में कई बार पवित्रता का ज़िक्र किया गया है, लेकिन लैव्यव्यवस्था की किताब में इस गुण का सबसे ज़्यादा बार ज़िक्र किया गया है। इस किताब को समझने और इसके लिए कदर बढ़ाने से हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि हम पवित्र कैसे हो सकते हैं।

2. लैव्यव्यवस्था की किताब की कुछ खासियतें क्या हैं?

2 लैव्यव्यवस्था की किताब मूसा ने लिखी थी। यह किताब ‘पूरे शास्त्र’ का हिस्सा है, जो ‘सिखाने के लिए फायदेमंद है।’ (2 तीमु. 3:16) इस किताब के हर अध्याय में यहोवा का नाम औसतन दस बार आता है। लैव्यव्यवस्था की किताब को समझने से हमारा यह इरादा और भी मज़बूत होगा कि हम ऐसा कुछ न करें, जिससे परमेश्‍वर के नाम का अनादर हो। (लैव्य. 22:32) इस किताब में कई बार ये शब्द पाए जाते हैं: “मैं यहोवा हूँ।” इन शब्दों से हमें खुद को यह याद दिलाने का बढ़ावा मिलना चाहिए कि हम परमेश्‍वर की आज्ञा मानें। आइए हम इस लेख में और अगले लेख में लैव्यव्यवस्था की किताब में पाए जानेवाले कुछ अनमोल खज़ानों से रू-ब-रू हों। इससे हमें परमेश्‍वर की उपासना में पवित्र बने रहने में मदद मिलेगी।

पवित्र होना एक माँग है

3, 4. हारून और उसके बेटों को जल से नहलाना किस बात को दर्शाता था? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 लैव्यव्यवस्था 8:5, 6 पढ़िए। यहोवा ने हारून को इसराएल का महायाजक और हारून के बेटों को याजक ठहराया था। हारून यीशु को दर्शाता है और हारून के बेटे अभिषिक्‍त मसीहियों को दर्शाते हैं। हारून को जल से नहलाने का क्या मतलब था? क्या इसका यह मतलब था कि यीशु को शुद्ध किए जाने की ज़रूरत थी? नहीं। यीशु में कोई पाप नहीं था और वह “निष्कलंक” था, इसलिए उसे शुद्ध किए जाने की ज़रूरत नहीं थी। (इब्रा. 7:26; 9:14) लेकिन हारून शुद्ध किए जाने के बाद यीशु को दर्शाता था, जो शुद्ध और नेक है। जहाँ तक हारून के बेटों की बात है, तो उन्हें जल से नहलाना किस बात को दर्शाता था?

4 हारून के बेटों को जल से नहलाना उन लोगों के शुद्ध किए जाने को दर्शाता था, जिन्हें स्वर्ग में याजक बनने के लिए चुना गया है। क्या अभिषिक्‍त मसीहियों का शुद्ध किया जाना उनके बपतिस्मे से ताल्लुक रखता है? नहीं, क्योंकि बपतिस्मे से पाप नहीं धुल जाते। इसके बजाय, बपतिस्मा इस बात की निशानी है कि एक व्यक्‍ति ने परमेश्‍वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित की है। तो फिर अभिषिक्‍त मसीही शुद्ध कैसे किए जाते हैं? ‘वचन से।’ (इफि. 5:25-27) इसका मतलब है कि उन्हें मसीह की शिक्षाओं को अपनी ज़िंदगी में पूरी तरह लागू करना चाहिए। जब वे ऐसा करते हैं, तो वे पवित्र और शुद्ध होते हैं। लेकिन ‘दूसरी भेड़ों’ के बारे में क्या?—यूह. 10:16.

5. यह क्यों कहा जा सकता है कि बड़ी भीड़ के लोग भी परमेश्‍वर के वचन से शुद्ध किए जाते हैं?

5 हारून के बेटे दूसरी भेड़ों की “बड़ी भीड़” को नहीं दर्शाते थे। (प्रका. 7:9) लेकिन बड़ी भीड़ के लोग भी परमेश्‍वर के वचन से पवित्र और शुद्ध किए जाते हैं। जब वे बाइबल में पढ़ते हैं कि यीशु का बलिदान कितनी अहमियत रखता है और इस बलिदान से क्या-क्या मुमकिन हुआ है, तो वे इन बातों पर विश्‍वास करने और “दिन-रात” यहोवा की “पवित्र सेवा” करने के लिए उभारे जाते हैं। (प्रका. 7:13-15) जब अभिषिक्‍त जन और दूसरी भेड़ें लगातार परमेश्‍वर के वचन से खुद को शुद्ध करती हैं, तो इसका असर उनके “बढ़िया चालचलन” से साफ ज़ाहिर होता है। (1 पत. 2:12) जब यहोवा देखता है कि अभिषिक्‍त जन और दूसरी भेड़ें शुद्ध हैं और एकता में रहकर अपने चरवाहे यीशु की सुनती और उसकी आज्ञा मानती हैं, तो उसका दिल खुश होता है।

6. हमें समय-समय पर खुद की जाँच क्यों करनी चाहिए?

6 इसराएल के याजकों का शारीरिक तौर पर शुद्ध होना आज हमारे लिए क्या मायने रखता है? बेशक, हमारे बाइबल विद्यार्थी अकसर गौर करते हैं कि हम कितने साफ-सुथरे रहते हैं और अपनी उपासना की जगह को भी कितना साफ-सुथरा रखते हैं। लेकिन इससे भी बढ़कर, याजकों की शारीरिक शुद्धता हमें इस बात का एहसास दिलाती है कि जो यहोवा की उपासना करना चाहते हैं, उन्हें अपना “हृदय शुद्ध” रखना चाहिए। (भजन 24:3, 4 पढ़िए; यशा. 2:2, 3.) इसका मतलब है कि हमें शुद्ध दिलो-दिमाग और साफ शरीर से यहोवा की पवित्र सेवा करनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम समय-समय पर खुद की जाँच करें। ऐसा करते वक्‍त हो सकता है हम पाएँ कि हमें पवित्र बने रहने के लिए कुछ बड़े बदलाव करने की ज़रूरत है। (2 कुरिं. 13:5) मिसाल के लिए, एक बपतिस्मा-शुदा भाई जो जानबूझकर पोर्नोग्राफी देखता है, उसे खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं यह साबित कर रहा हूँ कि मैं पवित्र हूँ?’ फिर उसे इस बुरी लत से छुटकारा पाने के लिए मदद लेनी चाहिए।—याकू. 5:14.

आज्ञा मानकर साबित कीजिए कि आप पवित्र हैं

7. यीशु ने क्या मिसाल रखी, जो लैव्यव्यवस्था 8:22-24 में बतायी याजकों की ज़िम्मेदारियों से मेल खाती थी?

7 जब इसराएल के याजकों को ठहराया गया था, तब एक मेढ़े का खून महायाजक हारून और उसके बेटों के दाहिने कान, दाहिने हाथ के अँगूठे और दाहिने पाँव के अँगूठे पर लगाया गया था। (लैव्यव्यवस्था 8:22-24 पढ़िए।) इसका क्या मतलब था? जिस तरह खून का इस्तेमाल किया गया था, वह इस बात को दर्शाता था कि याजकों को यहोवा की बातों पर कान लगाना था, उन्हें अपने हाथों से यहोवा की सेवा करनी थी और अपने कदमों को यहोवा के मार्गदर्शन के मुताबिक बढ़ाना था। महायाजक यीशु ने इस मामले में अभिषिक्‍त जनों और दूसरी भेड़ों के आगे सबसे उम्दा मिसाल रखी। उसने हमेशा परमेश्‍वर की बातों पर कान लगाया, उसकी मरज़ी पूरी की और वह हमेशा उसकी बतायी राह पर चला।—यूह. 4:31-34.

8. हम सभी को क्या करना चाहिए?

8 यहोवा के उपासक होने के नाते, हम सभी को यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए, जिसने यहोवा की तरफ अपनी खराई बनाए रखी। हमें बाइबल में दिए परमेश्‍वर के मार्गदर्शन पर बारीकी से चलना चाहिए और ऐसा करके “पवित्र शक्‍ति को दुःखी” करने से दूर रहना चाहिए। (इफि. 4:30) ठान लीजिए कि आप “अपने कदमों के लिए सीधा रास्ता” बनाते रहेंगे।—इब्रा. 12:13.

9. (क) शासी निकाय के सदस्यों के साथ करीबी से काम करनेवाले तीन भाइयों ने क्या कहा? (ख) उनकी बातों से आपको परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और पवित्र बने रहने में कैसे मदद मिल सकती है?

9 ज़रा तीन भाइयों की कही बातों पर ध्यान दीजिए, जो अभिषिक्‍त नहीं हैं, मगर जो कई सालों से शासी निकाय के सदस्यों के साथ करीबी से काम कर रहे हैं। गौर कीजिए कि किस तरह उन्होंने परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और पवित्र बने रहने में एक अच्छी मिसाल रखी। उनमें से एक भाई ने कहा: “बेशक, यह सेवा मेरे लिए एक अनोखा सम्मान रही है, लेकिन इन भाइयों के साथ करीबी से काम करने की वजह से समय-समय पर यह ज़ाहिर हुआ है कि हालाँकि ये भाई पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किए गए हैं, लेकिन फिर भी वे असिद्ध हैं। मगर सालों के दौरान मेरा एक लक्ष्य रहा है कि मैं अगुवाई करनेवालों की आज्ञा मानूँ।” दूसरे भाई ने कहा: “2 कुरिंथियों 10:5 जैसी आयतों ने, जो ‘मसीह की आज्ञा मानने’ के बारे में बताती हैं, मुझे मदद दी है कि मैं अगुवाई करनेवालों की आज्ञा मानूँ और उन्हें सहयोग दूँ। और मैं दिल से उनकी आज्ञा मानने की कोशिश करता हूँ।” तीसरे भाई ने कहा: “अगर हम यहोवा के संगठन की, साथ ही जिन्हें वह धरती पर अपना मकसद पूरा करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, उनकी आज्ञा मानें, तो ऐसा करके हम दिखा रहे होंगे कि यहोवा जिन चीज़ों से प्यार करता है, उन चीज़ों से हम प्यार करते हैं और जिन चीज़ों से वह नफरत करता है, उन चीज़ों से हम नफरत करते हैं। साथ ही, उनकी आज्ञाएँ मानकर हम यह भी दिखा रहे होंगे कि हम हमेशा यहोवा के मार्गदर्शन को कबूल करते हैं और जिन कामों से वह खुश होता है, वही काम करते हैं।” यह भाई, भाई नेथन नॉर की मिसाल को याद करता है, जो आगे चलकर शासी निकाय के सदस्य बने थे। सन्‌ 1925 की वॉच टावर में “राष्ट्र का जन्म” नाम का एक लेख आया था। इस लेख पर उस वक्‍त कुछ लोगों ने सवाल उठाया था। मगर भाई नॉर ने उस लेख में कही बातों को फौरन कबूल कर लिया था। भाई नॉर ने आज्ञा मानने का जो रवैया दिखाया, वह इस भाई के दिल को छू गया। इन तीन भाइयों की कही बातों पर मनन करने से हमें परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और पवित्र बने रहने में मदद मिल सकती है।

खून के बारे में दिया परमेश्‍वर का नियम मानकर पवित्र बने रहिए

10. खून के बारे में दिया परमेश्‍वर का नियम मानना हमारे लिए कितना ज़रूरी है?

10 लैव्यव्यवस्था 17:10 पढ़िए। यहोवा ने इसराएलियों को आज्ञा दी थी कि वे “किसी प्रकार का लोहू” न खाएँ। मसीहियों को भी यही आज्ञा दी गयी है कि वे इंसानों और जानवरों के लहू से दूर रहें। (प्रेषि. 15:28, 29) हम ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते, जिससे परमेश्‍वर को ठेस पहुँचे और वह हमें मंडली से बेदखल कर दे। हम यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी आज्ञा मानना चाहते हैं। हमारी जान खतरे में भी क्यों न हो, हम तब भी उन लोगों के दबाव में नहीं आएँगे, जो यहोवा को नहीं जानते और जिनके लिए यहोवा के स्तर कोई मायने नहीं रखते। हम जानते हैं कि अगर हम खून न चढ़वाएँ, तो लोग हम पर हँसेंगे और हमारा मज़ाक उड़ाएँगे, लेकिन हमने ठान लिया है कि हम तब भी परमेश्‍वर की आज्ञा मानेंगे। (यहू. 17, 18) क्या बात हमें अपने इरादे पर डटे रहने में मदद देगी?—व्यव. 12:23.

11. हम क्यों कह सकते हैं कि प्रायश्‍चित दिन बस नाम के लिए मनाया जानेवाला एक रिवाज़ नहीं था?

11 इसराएल का महायाजक साल में एक बार प्रायश्‍चित दिन के वक्‍त जानवरों के लहू के साथ जो करता था, उससे हमें लहू के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया जानने में मदद मिलती है। लहू को सिर्फ एक खास मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता था, और वह था पापों की माफी के लिए, ताकि इसराएली परमेश्‍वर के साथ शांति-भरा रिश्‍ता कायम कर सकें। प्रायश्‍चित दिन के वक्‍त, महायाजक बछड़े और बकरे के लहू को करार के संदूक के ढक्कन के सामने छिड़कता था। (लैव्य. 16:14, 15, 19) इस लहू के ज़रिए, परमेश्‍वर इसराएलियों के पापों को माफ कर देता था। यहोवा ने यह भी कहा था कि अगर एक आदमी किसी जानवर को खाने के लिए मारता है, तो उसे उस जानवर के लहू को ज़मीन पर उँडेल देना था और उसे मिट्टी से ढक देना था, क्योंकि “सब प्राणियों का प्राण उनका लोहू ही है।” (लैव्य. 17:11-14) क्या ये सब बस नाम के लिए मनाए जानेवाले रिवाज़ थे? नहीं। सैकड़ों साल पहले, परमेश्‍वर ने नूह और उसकी संतानों को भी लहू से दूर रहने के लिए कहा था। (उत्प. 9:3-6) यह बात मसीहियों के लिए क्या मायने रखती है?

12. पौलुस ने लहू और पापों की माफी के बीच क्या नाता बताया?

12 प्रेषित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को लिखे अपने खत में समझाया कि लहू में शुद्ध करने की ताकत है। उसने लिखा: “मूसा के कानून के मुताबिक करीब-करीब सारी चीज़ें लहू से शुद्ध की जाती हैं। और जब तक लहू नहीं बहाया जाता, माफी नहीं मिलती।” (इब्रा. 9:22) पौलुस ने यह भी कहा कि हालाँकि जानवरों के बलिदान कुछ हद तक लोगों को अपने पापों की माफी दिलाते थे, मगर वे पूरी तरह पापों को मिटा नहीं सकते थे। ये बलिदान इसराएलियों को महज़ याद दिलाते थे कि वे पापी हैं और उन्हें अपने पापों को पूरी तरह से मिटाने के लिए एक बड़े बलिदान की ज़रूरत है। जी हाँ, वह कानून जिसके तहत ये बलिदान चढ़ाए जाते थे, “आनेवाली अच्छी बातों की महज़ छाया” था, “उनका असली रूप नहीं।” (इब्रा. 10:1-4) तो फिर पापों की माफी कैसे मुमकिन हो पाती?

13. यीशु का यहोवा के आगे अपने लहू का मोल पेश करना आपके लिए क्या मायने रखता है?

13 इफिसियों 1:7 पढ़िए। यीशु का सभी इंसानों के लिए अपनी जान कुरबान करना और ‘खुद को हमारे लिए दे देना’ बेशक उन सभी लोगों के लिए बहुत मायने रखता है, जो यीशु और उसके पिता से प्यार करते हैं। (गला. 2:20) लेकिन जिस चीज़ ने हमें असल मायने में पाप की गिरफ्त से छुटकारा दिलाया, वह उसकी कुरबानी नहीं थी, मगर जी उठने के बाद उसने जो किया, वह था। इस बात को समझने के लिए ज़रा एक बार फिर प्रायश्‍चित दिन पर गौर कीजिए। जब महायाजक परम-पवित्र में दाखिल होता था, तो वह मानो यहोवा के सामने जा रहा होता था। वहाँ पर, महायाजक बलि किए गए जानवरों के लहू को यहोवा के आगे पेश करता था। (लैव्य. 16:11-15) ठीक उसी तरह, यीशु जी उठाए जाने के बाद परम-पवित्र में, यानी स्वर्ग में, दाखिल हुआ और वहाँ उसने अपने इंसानी लहू का मोल यहोवा के आगे पेश किया। (इब्रा. 9:6, 7, 11-14, 24-28) हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हम यीशु के बहाए लहू पर विश्‍वास करके पापों की माफी और एक साफ ज़मीर पा सकते हैं!

14, 15. लहू के बारे में दिए यहोवा के कानून को समझना और उसे मानना क्यों ज़रूरी है?

14 शायद अब आपको समझ आ गया होगा कि क्यों यहोवा हमें आज्ञा देता है कि हमें “किसी प्रकार का लोहू” नहीं लेना चाहिए। (लैव्य. 17:10) क्या आप समझते हैं कि लहू परमेश्‍वर की नज़र में क्यों इतना पवित्र है? लहू जीवन को दर्शाता है। (उत्प. 9:4) बेशक, आप इस बात से सहमत होंगे कि लहू के बारे में हमें परमेश्‍वर का नज़रिया अपनाना चाहिए और लहू से दूर रहने की उसकी आज्ञा माननी चाहिए। परमेश्‍वर के साथ शांति बनाए रखने का सिर्फ एक ही तरीका है, और वह है यीशु के फिरौती बलिदान पर विश्‍वास करना और यह समझना कि लहू हमारे सृष्टिकर्ता की नज़रों में बहुत ही अनमोल है।—कुलु. 1:19, 20.

15 हममें से किसी के भी सामने अचानक खून का मसला उठ सकता है। हमें फैसला करना पड़ सकता है कि हम खून चढ़वाएँगे या नहीं, खून का अंश लेंगे या नहीं, या फिर इलाज के उन तरीकों को अपनाएँगे या नहीं, जिनमें खून इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि ऐसे हालात उठने से पहले ही आप यहोवा से प्रार्थना करें, इस बारे में खोजबीन करें और एक अटल फैसला लें। इससे आप यकीन के साथ दूसरों को बता पाएँगे कि इस मामले में आपका क्या फैसला है। जिस चीज़ को यहोवा कबूल नहीं करता, उस चीज़ को कबूल करके हम यहोवा को कभी दुखी नहीं करना चाहेंगे! आज कई डॉक्टर और दूसरे लोग हमें बढ़ावा देते हैं कि हम दूसरों की जान बचाने के लिए अपना खून दें। लेकिन परमेश्‍वर के पवित्र लोग होने के नाते, हम जानते हैं कि सिर्फ यहोवा को ही यह बताने का हक है कि खून का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए। उसकी नज़र में ‘किसी भी प्रकार का लोहू’ पवित्र है। इसलिए हमें लहू के बारे में दिया उसका कानून मानने की ठान लेनी चाहिए। हम अपने पवित्र चालचलन से यह साबित करते हैं कि हम यीशु के लहू की कदर करते हैं। सिर्फ उसी के लहू से हमारे लिए पापों की माफी और हमेशा की ज़िंदगी पाना मुमकिन हुआ है।—यूह. 3:16.

क्या आपने लहू के बारे में दिए यहोवा के नियम को मानने की ठान ली है? (पैराग्राफ 14, 15 देखिए)

यहोवा हमसे पवित्र होने की उम्मीद क्यों करता है

16. यहोवा के लोगों को पवित्र क्यों होना चाहिए?

16 जब यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद किया, तो उसने उनसे कहा था: “मैं वह यहोवा हूं जो तुम्हें मिस्र देश से इसलिये निकाल ले आया हूं कि तुम्हारा परमेश्‍वर ठहरूं; इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।” (लैव्य. 11:45) यहोवा इसराएलियों से उम्मीद करता था कि वे पवित्र हों, क्योंकि वह खुद पवित्र है। यहोवा आज हमसे भी यही उम्मीद करता है। लैव्यव्यवस्था की किताब इस बात को पुख्ता करती है।

17. अब आप बाइबल की लैव्यव्यवस्था की किताब के बारे में कैसा महसूस करते हैं?

17 बेशक, लैव्यव्यवस्था की किताब से कुछ मुद्दों पर चर्चा करके आपको फायदा हुआ होगा। मुमकिन है कि अब बाइबल की इस किताब के लिए आपके दिल में कदर और भी बढ़ गयी होगी। साथ ही, इस अध्ययन से आपको और अच्छी तरह समझ आ गया होगा कि क्यों हमें पवित्र होना चाहिए। लैव्यव्यवस्था की किताब में और कौन-कौन-से अनमोल खज़ाने गढ़े हैं? बाइबल की यह किताब हमें परमेश्‍वर की उपासना शुद्ध तरीके से करने में कैसे मदद दे सकती है? इन सवालों पर हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।