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आपको जो मिला है, क्या आप उसकी कदर करते हैं?

आपको जो मिला है, क्या आप उसकी कदर करते हैं?

“हमने . . . वह पवित्र शक्‍ति पायी है जो परमेश्‍वर की तरफ से है, ताकि हम उन बातों को जान सकें जो परमेश्‍वर ने हम पर कृपा करते हुए हमें दी हैं।”—1 कुरिं. 2:12.

1. लोगों के पास जो है, उसके बारे में वे कैसा महसूस करते हैं?

 आपने कई बार लोगों को यह कहते सुना होगा, “जब तक कोई चीज़ आपके हाथ से चली नहीं जाती, तब तक आपको उसकी कीमत पता नहीं चलती।” क्या आपने भी कभी ऐसा महसूस किया है? जब किसी व्यक्‍ति के पास बचपन से ही कुछ होता है, तो अकसर वह उसकी कदर नहीं करता। मिसाल के लिए, जो व्यक्‍ति पैसों में खेलकर बड़ा हुआ है, उसे शायद उन चीज़ों की कदर न हो, जो उसके पास हैं। या कम तजुरबा होने की वजह से एक नौजवान शायद पूरी तरह समझ न पाए कि ज़िंदगी में क्या बातें सच में अहमियत रखती हैं।

2, 3. (क) मसीही जवानों को किन बातों को हद-से-ज़्यादा अहमियत देने से दूर रहना चाहिए? (ख) अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

2 अगर आप जवान हैं, तो क्या बात आपके लिए मायने रखती है? आज दुनिया के ज़्यादातर जवान बस अच्छी नौकरी, बड़ा घर या हाई-टेक चीज़ों के दीवाने हैं। अगर आपके मामले में भी यह बात सच है, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इन चीज़ों से भी ज़्यादा अहमियत रखनेवाली चीज़ जो आपके पास है, उसकी आप कदर नहीं कर रहे? कौन-सी चीज़? यहोवा के साथ आपका रिश्‍ता। अफसोस, दुनिया के लाखों जवानों को इस रिश्‍ते की भनक तक नहीं। लेकिन अगर आपकी परवरिश सच्चाई में हुई है, तो आपको वाकई एक खूबसूरत तोहफा मिला है और वह है आध्यात्मिक विरासत। (मत्ती 5:3) लेकिन अगर आप इस आध्यात्मिक विरासत की कदर न करें, तो हो सकता है आप कोई गलती कर बैठें और फिर सारी ज़िंदगी पछताते रहें।

3 लेकिन अगर आप चाहें, तो ज़िंदगी-भर पछताने से बच सकते हैं। आइए हम बाइबल की कुछ मिसालों पर गौर करें, जिससे आपको अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर करने में मदद मिलेगी। इन मिसालों पर गौर करने से न सिर्फ जवानों को, बल्कि हम सभी को उन चीज़ों की कदर करने में मदद मिलेगी, जो यहोवा ने हमें दी हैं।

जिन्होंने आध्यात्मिक विरासत की कदर नहीं की

4. पहला शमूएल 8:1-5 शमूएल के बेटों के बारे में क्या बताता है?

4 बाइबल में ऐसे कुछ लोगों के बारे में बताया गया है, जिन्हें बढ़िया आध्यात्मिक विरासत मिली थी, लेकिन जिन्होंने इसकी कदर नहीं की। योएल और अबिय्याह की मिसाल लीजिए। उन्हें अपने पिता भविष्यवक्‍ता शमूएल से एक बढ़िया आध्यात्मिक विरासत मिली थी। जब शमूएल बहुत छोटा था, तभी से उसने यहोवा की सेवा करनी शुरू कर दी थी। उसने वफादारी से यहोवा की सेवा करने में एक बेमिसाल रिकॉर्ड कायम किया था। (1 शमू. 12:1-5) लेकिन योएल और अबिय्याह अपने पिता की अच्छी मिसाल पर नहीं चले। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक विरासत की ज़रा भी कदर नहीं की। इसके बजाय, उन्होंने बुरे-बुरे काम किए।—1 शमूएल 8:1-5 पढ़िए।

5, 6. योशिय्याह के बेटों और पोते ने कैसा रवैया दिखाया?

5 राजा योशिय्याह के बेटों ने भी यही रवैया दिखाया। योशिय्याह ने यहोवा की उपासना करने में एक उम्दा मिसाल रखी थी। जब परमेश्‍वर के कानून की किताब मिली और योशिय्याह को पढ़कर सुनायी गयी, तो उसने यहोवा की हिदायतें लागू करने के लिए ठोस कदम उठाए। उसने पूरे देश में मूर्तिपूजा और जादू-टोना बंद करवा दिया और लोगों को यहोवा की आज्ञा मानने का बढ़ावा दिया। (2 राजा 22:8; 23:2, 3, 12-15, 24, 25) उसके बेटों को क्या ही बढ़िया आध्यात्मिक विरासत मिली थी! आगे चलकर उसके तीन बेटे और एक पोता राजा बने, लेकिन उनमें से किसी ने भी अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर नहीं की।

6 जब योशिय्याह का बेटा यहोआहाज राजा बना, तो उसने वही किया, “जो यहोवा की दृष्टि में बुरा” था। उसने सिर्फ तीन महीने राज किया। उसके बाद मिस्र का फिरौन उसे बंदी बनाकर ले गया, जहाँ उसकी मौत हो गयी। (2 राजा 23:31-34) इसके बाद, उसके भाई यहोयाकीम ने 11 साल तक राज किया। उसने भी अपने पिता से मिली विरासत की कदर नहीं की। उसने इतने बुरे काम किए कि यिर्मयाह ने उसके बारे में भविष्यवाणी की: “उसको गदहे की नाईं मिट्टी दी जाएगी।” (यिर्म. 22:17-19) योशिय्याह का बेटा सिदकिय्याह और पोता यहोयाकीन भी बुरे निकले। वे भी योशिय्याह की अच्छी मिसाल पर नहीं चले।—2 राजा 24:8, 9, 18, 19.

7, 8. (क) सुलैमान ने किस तरह अपनी आध्यात्मिक विरासत ठुकरा दी? (ख) हम बाइबल में दी उन लोगों की मिसालों से क्या सीख सकते हैं, जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर नहीं की?

7 राजा सुलैमान ने भी अपने पिता दाविद से यहोवा की सेवा करना सीखा था। कुछ समय तक तो उसने अपनी इस आध्यात्मिक विरासत की कदर की, लेकिन आगे चलकर उसने इसे ठुकरा दिया। “जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपने पिता दाऊद की नाईं अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा।” (1 राजा 11:4) नतीजा, यहोवा ने सुलैमान को ठुकरा दिया।

8 इन सभी लोगों को यहोवा के साथ रिश्‍ता जोड़ने और सही काम करने का क्या ही सुनहरा मौका मिला था! लेकिन अफसोस, उन्होंने उस अनमोल विरासत को कौड़ियों के मोल बेच दिया। लेकिन सभी जवान ऐसे नहीं थे। कुछ जवानों ने अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर की थी। आइए अब हम ऐसे ही कुछ जवानों की मिसाल पर गौर करें और देखें कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं।

जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर की

9. आध्यात्मिक विरासत की कदर करने में नूह के बेटों ने कैसे बढ़िया मिसाल रखी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

9 आध्यात्मिक विरासत की कदर करने में नूह के बेटों ने बढ़िया मिसाल रखी। परमेश्‍वर ने उनके पिता को एक जहाज़ बनाने की आज्ञा दी थी, ताकि आनेवाले जलप्रलय से लोगों की जान बच सके। नूह के बेटे बेशक यहोवा की मरज़ी पूरी करने की अहमियत की कदर करते थे। इसलिए उन्होंने जहाज़ बनाने में अपने पिता का हाथ बँटाया। इसके बाद नूह का पूरा परिवार जहाज़ के अंदर चला गया। (उत्प. 7:1, 7) उत्पत्ति 7:3 बताता है कि वे सभी जानवरों को भी जहाज़ में ले गए, “ताकि तमाम ज़मीन पर उन की नसल बाकी रहे।” (उर्दू—ओ.वी.) इस तरह, इस जलप्रलय से न सिर्फ इंसान, बल्कि जानवर भी बच निकले। नूह के बेटों ने अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर की, इसलिए उन्हें धरती पर से मानवजाति को पूरी तरह मिटने से बचाने का और सच्ची उपासना दोबारा शुरू करने का क्या ही सम्मान मिला!—उत्प. 8:20; 9:18, 19.

10. चार इब्री नौजवानों ने कैसे दिखाया कि उन्हें अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर थी?

10 इसके कई सदियों बाद, चार इब्री नौजवानों ने भी दिखाया कि उन्हें अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर थी। वे थे हनन्याह, मीशाएल, अजर्याह और दानिय्येल। वे बहुत समझदार और सुंदर थे। जब ईसा पूर्व 617 में उन्हें बंदी बनाकर बैबिलोन ले जाया गया, तो वे बड़ी आसानी से वहाँ के तौर तरीकों में ढल सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे कभी नहीं भूले कि वे कौन हैं और उन्होंने क्या सीखा है। छुटपन से ही उन्होंने यहोवा और उसकी उपासना के बारे में जो बातें सीखी थीं, उन पर वफादारी से चलने की वजह से यहोवा ने उन्हें आशीष दी।—दानिय्येल 1:8, 11-15, 20 पढ़िए।

11. यीशु की आध्यात्मिक विरासत से दूसरों को कैसे फायदा हुआ?

11 अच्छी मिसालों की इस चर्चा में यीशु मसीह का ज़िक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। आध्यात्मिक विरासत की कदर करने में यीशु ने सबसे उम्दा मिसाल रखी। उसने अपने पिता यहोवा से जो बातें सीखी थीं, उन बातों की वह वाकई बहुत कदर करता था। उसकी यह कदरदानी इन शब्दों से साफ ज़ाहिर होती है: “जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ।” (यूह. 8:28) अपने पिता से सीखी हुई बातें दूसरों के साथ बाँटने में यीशु को खुशी होती थी, ताकि वे भी उसकी आध्यात्मिक विरासत से फायदा पा सकें। उसने लोगों से कहा: “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी है, क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:18, 43) यीशु ने अपने चेलों को खबरदार किया कि वे ‘दुनिया के न हों,’ क्योंकि इस दुनिया को आध्यात्मिक बातों की ज़रा भी कदर नहीं।—यूह. 15:19.

अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर कीजिए

12. (क) दूसरा तीमुथियुस 3:14-17 में कही बात कैसे आज बहुत-से नौजवानों के बारे में भी कही जा सकती है? (ख) जवान मसीहियों को खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?

12 इन नौजवानों की तरह, अगर आपके माता-पिता ने भी आपकी परवरिश सच्चाई में की है, तो फिर आपको भी एक आध्यात्मिक विरासत मिली है। अगर ऐसा है, तो बाइबल तीमुथियुस के बारे में जो कहती है, वही बात शायद आपके बारे में भी कही जा सकती है। (2 तीमुथियुस 3:14-17 पढ़िए।) आपने अपने माता-पिता से यहोवा के बारे में ‘सीखा’ और जाना कि कैसे आप उसे खुश कर सकते हैं। हो सकता है उन्होंने आपको तभी से सिखाना शुरू कर दिया हो, जब आप बहुत छोटे थे। इस तालीम ने दो तरीकों से आपकी मदद की। एक, आप “मसीह यीशु में विश्‍वास के ज़रिए उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान” बन सके, और दूसरा, परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए आप “हर तरह से तैयार” हो सके। लेकिन अब सवाल उठता है कि आपको अपने माता-पिता से जो विरासत मिली है, क्या आप उसकी कदर करते हैं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए पहले खुद से ये सवाल पूछिए: ‘वफादार साक्षियों की लंबी सूची में शामिल होने के बारे में मैं कैसा महसूस करता हूँ? क्या मुझे इस बात पर नाज़ है कि मैं एक यहोवा का साक्षी हूँ? उन गिने-चुने लोगों में से एक होने के बारे में मैं कैसा महसूस करता हूँ, जिन्हें परमेश्‍वर निजी तौर पर जानता है? क्या मुझे इस बात का एहसास है कि मुझे सच्चाई जानने का कितना अनोखा और अनमोल सम्मान मिला है?’

वफादार साक्षियों की लंबी सूची में शामिल होने के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं? (पैराग्राफ 9, 10, 12 देखिए)

13, 14. (क) कुछ नौजवान जिनकी परवरिश सच्चाई में हुई है, क्या करने के लिए लुभाए जाते हैं? (ख) लेकिन ऐसा करना बेवकूफी क्यों होगी? एक मिसाल दीजिए।

13 सच्चाई में पले-बढ़े कुछ जवानों को शायद यह एहसास ही न हो कि वे किस आध्यात्मिक फिरदौस में हैं और शैतान की दुनिया किस अंधकार में है। इसलिए कई मसीही जवान दुनिया की चीज़ों का स्वाद चखने के लिए इस फिरदौस से बाहर कदम रखने के लिए लुभाए तक गए हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, क्या आप बस यह देखने के लिए किसी चलती गाड़ी के सामने आना चाहेंगे कि ऐसा करना कितना दर्दनाक या जानलेवा हो सकता है? इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा करना बेवकूफी होगी! उसी तरह, हमें बस यह देखने के लिए इस दुनिया की बुरी चीज़ों को चखने की ज़रूरत नहीं कि ऐसा करना कितना दर्दनाक या जानलेवा हो सकता है।—1 पत. 4:4.

14 एशिया में रहनेवाले जेनेर नाम के एक नौजवान की परवरिश सच्चाई में हुई थी। जब वह 12 साल का था, तब उसका बपतिस्मा हुआ था। लेकिन जब वह करीब 13-14 साल का हुआ, तो दुनिया उसे अपनी तरफ खींचने लगी। वह कहता है: “मैं इस दुनिया की ‘खुली हवा’ में साँस लेना चाहता था।” वह एक दोहरी ज़िंदगी जीने लगा। वह अपने परिवार से झूठ बोलने लगा और उनसे बातें छिपाने लगा। पंद्रह साल की उम्र तक आते-आते, वह अपने दोस्तों की तरह बुरे-बुरे काम करने लगा। शराब पीना, गालियाँ देना, अपने दोस्तों के साथ हिंसक कंप्यूटर गेम्स खेलकर घर देर से लौटना, बस इन्हीं चीज़ों में उसकी ज़िंदगी सिमटकर रह गयी। लेकिन जैसे-जैसे वक्‍त बीतने लगा, उसे यह एहसास होने लगा कि इस दुनिया की चमक-दमक सिर्फ एक दिखावा थी। उसे अपनी ज़िंदगी में न तो खुशी मिल रही थी, न ही संतुष्टि। उसकी ज़िंदगी खोखली हो चुकी थी। आज जेनेर फिर से सच्चाई में लौट आया है। वह कहता है कि अब भी कभी-कभी दुनिया उसे अपनी तरफ खींचती है, लेकिन यहोवा से मिली आशीष उसके लिए कहीं ज़्यादा मायने रखती है।

15. हम सभी को किस बारे में सोचना चाहिए, फिर चाहे हमारी परवरिश सच्चाई में हुई हो या नहीं?

15 अगर आपकी परवरिश सच्चाई में नहीं भी हुई है, तो भी ज़रा सोचिए कि सृष्टिकर्ता को जानने और उसकी सेवा करने का आपको कितना बड़ा सम्मान मिला है! सोचिए इस धरती पर अरबों-खरबों लोगों में से यहोवा ने आपको चुना है। उसने आपको सच्चाई जानने और अपने साथ रिश्‍ता जोड़ने का मौका दिया है। यह कितनी बड़ी आशीष है! (यूह. 6:44, 45) आज धरती पर जीवित हर 1,000 लोगों में से सिर्फ 1 व्यक्‍ति को सच्चाई का सही ज्ञान है, और आप वह एक हैं! क्या यह बात जानकर हमें खुशी नहीं होती, फिर चाहे हमें सच्चाई किसी से भी मिली हो? (1 कुरिंथियों 2:12 पढ़िए।) जेनेर यहोवा की सेवा करने के सम्मान के बारे में कहता है: “जब मैं इस बारे में सोचता हूँ, तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मैं कौन होता हूँ कि इस पूरे जहान का मालिक, यहोवा मुझे जाने?” (भज. 8:4) एक मसीही बहन कहती है: “बच्चों को बहुत गर्व महसूस होता है जब उनका शिक्षक उन्हें जानता है। तो सोचिए, सबसे महान शिक्षक, यहोवा के ज़रिए जाने जाना उससे भी कितने बड़े गर्व की बात है!”

आप क्या चुनाव करेंगे?

16. आज मसीही नौजवानों के लिए कौन-सा चुनाव करना बुद्धिमानी होगी?

16 जैसा कि हमने देखा, जिनके पास यह आध्यात्मिक विरासत है, उन्हें क्या ही बेशकीमती सम्मान मिला है! अगर आपके मामले में यह बात सच है, तो क्या आप उन गिने-चुने नौजवानों में से एक होने का पक्का इरादा कर सकते हैं, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में सही चुनाव किया था? अगर आप ऐसा करें, तो वफादार साक्षियों की लंबी सूची में आपका भी नाम होगा। लेकिन अगर आप ऐसा न करें, तो आप दुनिया के उन ज़्यादातर नौजवानों में गिने जाएँगे, जो विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं। इसलिए उनके जैसे बनकर अपनी ज़िंदगी बरबाद मत कीजिए।—2 कुरिं. 4:3, 4.

17-19. दुनिया से अलग नज़र आने में ही क्यों बुद्धिमानी है?

17 दुनिया से अलग नज़र आना आपके लिए आसान नहीं होगा। और यह लाज़िमी भी है। आखिर नदी के तेज़ बहाव के खिलाफ तैरना इतना आसान नहीं होता। लेकिन बुद्धिमानी इसी में होगी कि हम ऐसा करें। ज़रा उस खिलाड़ी के बारे में सोचिए, जो ऑलम्पिक खेल में हिस्सा लेने के लिए चुना गया है। उस मुकाम तक पहुँचने के लिए बेशक उसे अपने साथियों से अलग नज़र आने की ज़रूरत थी। उसे उन कई चीज़ों से दूर रहने की ज़रूरत थी, जिनमें उसका काफी वक्‍त ज़ाया होता या जिनसे उसका ध्यान भटकता। लेकिन क्योंकि उसका लक्ष्य कुछ और था, इसलिए वह अपने दोस्तों से अलग नज़र आने के लिए तैयार था। तभी तो वह अच्छी तालीम ले सका और अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ सका।

18 यह दुनिया बस आज ही के बारे में सोचती है। उनका रवैया है, “कल किसने देखा है।” इसलिए वे इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते कि उनके कामों का आगे चलकर क्या अंजाम हो सकता है। लेकिन यहोवा के साक्षी अपने कामों के अंजामों के बारे में गंभीरता से सोचते हैं। वे जानते हैं कि अगर आज वे दुनिया से अलग नज़र आएँ और अनैतिकता जैसे बुरे कामों से दूर रहें, जिनसे यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता तबाह हो सकता है, तो कल वे ‘असली ज़िंदगी पर मज़बूत पकड़ हासिल कर सकेंगे।’ (1 तीमु. 6:19) जिस बहन के बारे में पहले बताया गया था, वह कहती है: “अगर आप सच्चाई के पक्ष में खड़े होंगे, तो दिन के आखिर में आप वाकई बहुत गर्व महसूस करेंगे। यह दिखाएगा कि आपमें शैतान की दुनिया के खिलाफ सिर उठाकर जीने की ताकत है। और सबसे बढ़कर, उस वक्‍त आपको यह एहसास होगा कि यहोवा स्वर्ग से आपको देखकर मुसकरा रहा है और उसे आप पर नाज़ है! तब आपको इस बात की खुशी होगी कि इस दुनिया से अलग होने का फैसला करके आपने बिलकुल सही कदम उठाया!”

19 क्या आप सिर्फ उन चीज़ों के बारे में सोचकर अपनी ज़िंदगी बरबाद करना चाहेंगे, जिन्हें आप इस मिटती दुनिया में हासिल कर सकते हैं? (सभो. 9:2, 10) आप जानते हैं कि ज़िंदगी का मकसद क्या है, आप यह भी जानते हैं कि आपके पास हमेशा की ज़िंदगी जीने की सुनहरी आशा है। तो क्या यह अक्लमंदी नहीं होगी कि आप ‘दुनिया के लोगों की तरह बनने’ के बजाय, एक मकसद-भरी ज़िंदगी जीएँ?—इफि. 4:17; मला. 3:18.

20, 21. (क) अगर हम सही फैसले लें, तो हमारा भविष्य कैसा होगा? (ख) लेकिन उसके लिए हमें क्या करना होगा?

20 अगर हम सही फैसले लें, तो हम न सिर्फ आज खुश रहेंगे, बल्कि आगे चलकर हमें “धरती के वारिस” बनने, यानी हमेशा की ज़िंदगी पाने का भी मौका मिलेगा। इतनी सारी आशीषें हमारा इंतज़ार कर रही हैं कि हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते! (मत्ती 5:5; 19:29; 25:34) माना कि यहोवा आपको ये सारी आशीषें ऐसे ही नहीं दे देगा। उसके लिए आपको कुछ करना भी होगा। (1 यूहन्‍ना 5:3, 4 पढ़िए।) मगर यकीन मानिए, अगर आप उसके वफादार रहेंगे, तो आप हरगिज़ निराश नहीं होंगे!

21 वाकई, यहोवा की बदौलत हमें कितनी सारी आध्यात्मिक विरासत मिली हैं! आज हमारे पास परमेश्‍वर के वचन का सही ज्ञान है और परमेश्‍वर और उसके मकसदों के बारे में सच्चाई की सही समझ है। हमें परमेश्‍वर के नाम से पहचाने जाने और उसके साक्षी कहलाने का खास सम्मान मिला है। इसके अलावा, हमारे पास परमेश्‍वर का यह वादा भी है कि वह हमारी मदद करने के लिए हमेशा हमारी तरफ है। (भज. 118:7) तो आइए हम सभी, फिर चाहे हम छोटे हों या बड़े, अपने जीने के तरीके से दिखाएँ कि हम अपनी आध्यात्मिक विरासत की कदर करते हैं और यहोवा को ‘हमेशा-हमेशा तक महिमा’ देना चाहते हैं।—रोमि. 11:33-36; भज. 33:12.