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यहोवा का धन्यवाद करो और आशीषें पाओ

यहोवा का धन्यवाद करो और आशीषें पाओ

“यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है।”—भज. 106:1.

1. हमें क्यों यहोवा के शुक्रगुज़ार होना चाहिए?

यहोवा के शुक्रगुज़ार होने की हमारे पास ढेरों वजह हैं और वह इसका हकदार भी है। हमें “हरेक अच्छा तोहफा और हरेक उत्तम देन” देनेवाला वही है। (याकू. 1:17) एक प्यार करनेवाला चरवाहा होने के नाते वह हमारी सभी ज़रूरतें पूरी करता है। (भज. 23:1-3) और वह “हमारा शरणस्थान और बल” ठहरता है, खासकर तब, जब हम मुश्किलों का सामना करते हैं। (भज. 46:1) वाकई, भजनहार की कही इस बात से हम पूरी तरह सहमत हैं: “यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करुणा सदा की है!”—भज. 106:1.

सन्‌ 2015 के लिए हमारा सालाना वचन है: “यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है।”—भजन 106:1

2, 3. (क) अपनी आशीषों के लिए एहसानमंदी न दिखाने के क्या खतरे हो सकते हैं? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

2 आखिर, एहसानमंदी दिखाना क्यों इतना ज़रूरी है? क्योंकि जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, इन आखिरी दिनों में हम एक एहसान-फरामोश दुनिया में जी रहे हैं। (2 तीमु. 3:2) आज ज़्यादातर लोगों को इस बात की ज़रा भी कदर नहीं कि यहोवा ने उनके लिए कितना कुछ किया है। लोग आज संतुष्ट नहीं हैं। और होंगे भी कैसे? इस दुनिया का विज्ञापन जगत उन्हें बढ़ावा जो देता रहता है कि वे और भी चीज़ें बटोरें और अपनी दुनिया को और भी खूबसूरत बनाएँ। नतीजा, आज लाखों लोग सब कुछ होते हुए भी संतुष्ट नहीं हैं। अगर हम सावधान न रहें, तो यह रवैया हममें भी आ सकता है। हो सकता है हम भी उनकी तरह उन चीज़ों के लिए एहसानमंदी दिखाना छोड़ दें, जो हमारे पास हैं। इसराएलियों की तरह, हो सकता है हम भी एहसान-फरामोश बन जाएँ और यहोवा से मिली आशीषों और उसके साथ अपने अनमोल रिश्ते के लिए अपनी कदरदानी ही खो बैठें।—भज. 106:7, 11-13.

3 इसके अलावा, जब हम पर तकलीफें आती हैं, तब भी हम एहसानमंदी दिखाने से चूक सकते हैं। वह कैसे? तकलीफें आने पर हमारा ध्यान बड़ी आसानी से हमें मिली आशीषों से हटकर हमारी तकलीफों पर जा सकता है। (भज. 116:3) तो फिर सवाल उठता है कि हम कैसे इस एहसान-फरामोश दुनिया में रहकर भी एहसानमंदी की भावना बनाए रख सकते हैं? और क्या बात हमें मुश्किल-से-मुश्किल हालात का भी सामना करने में मदद दे सकती है? आइए इन सवालों के जवाब जानें।

‘हे यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं’

4. यहोवा के एहसानमंद बने रहने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

4 अगर हम यहोवा के एहसानमंद बने रहना चाहते हैं, तो हमें दो चीज़ें करने की ज़रूरत है। एक, हमें यह पहचानने की ज़रूरत है कि यहोवा ने हमें किन अलग-अलग तरीकों से आशीषों से नवाज़ा है। और दूसरा, हमें इस बात पर मनन करने की ज़रूरत है कि कैसे उसने इन आशीषों के ज़रिए हमें निजी तौर पर अपना प्यार दिखाया है। जब भजनहार ने ऐसा किया, तो वह यह देखकर हैरान रह गया कि परमेश्वर ने उसके लिए कितने हैरतअंगेज़ काम किए हैं।—भजन 40:5; 107:43 पढ़िए।

5. एहसानमंदी बनाए रखने के मामले में हम प्रेषित पौलुस से क्या सीख सकते हैं?

5 परमेश्वर से मिली आशीषों के लिए हम अपनी एहसानमंदी कैसे बनाए रख सकते हैं? इस मामले में हम प्रेषित पौलुस से काफी कुछ सीख सकते हैं। हम जानते हैं कि पौलुस हमेशा अपनी आशीषों पर मनन किया करता था। ऐसा हम क्यों कह सकते हैं? क्योंकि वह अकसर प्रार्थना में परमेश्वर का धन्यवाद किया करता था। वह जानता था कि एक वक्‍त पर वह “परमेश्वर की तौहीन करनेवाला और ज़ुल्म ढानेवाला गुस्ताख था।” इसलिए वह इस बात के लिए बेहद शुक्रगुज़ार था कि हालाँकि उसने इतने बुरे काम किए थे, फिर भी यहोवा और यीशु मसीह ने उसे दया दिखायी थी, उसे माफ किया था और उसे खुशखबरी सुनाने का अनमोल सम्मान दिया था। (1 तीमुथियुस 1:12-14 पढ़िए।) पौलुस अपनी मसीही बिरादरी के लिए भी बहुत शुक्रगुज़ार था और उनके बढ़िया गुणों और वफादारी के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना कभी नहीं भूलता था। (फिलि. 1:3-5, 7; 1 थिस्स. 1:2, 3) और जब मुसीबत के दौर में भाई-बहनों ने उसकी मदद की, तो उसने फौरन यहोवा को धन्यवाद दिया। (प्रेषि. 28:15; 2 कुरिं. 7:5-7) इसलिए इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं कि पौलुस ने मसीहियों को बढ़ावा दिया: ‘दिखाओ कि तुम कितने एहसानमंद हो। एहसान-भरे दिल से भजन गाते, परमेश्वर का गुणगान करते और उपासना के गीत गाते हुए एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो।’—कुलु. 3:15-17, एन.डब्ल्यू.

एहसानमंद बने रहने के लिए मनन और प्रार्थना ज़रूरी है

6. आप यहोवा से मिली किस आशीष के लिए खास तौर से शुक्रगुज़ार हैं?

6 हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? पौलुस की तरह हमें भी उन आशीषों पर मनन करना चाहिए, जो यहोवा ने हमें दी हैं। (भज. 116:12) अगर आपसे पूछा जाए कि ‘यहोवा से मिली किन आशीषों के लिए आप उसके एहसानमंद हैं?’ तो आप क्या जवाब देंगे? क्या आप यहोवा के साथ अपने अनमोल रिश्ते का ज़िक्र करेंगे? या क्या आप यीशु के फिरौती बलिदान से मिलनेवाली पापों की माफी के बारे में बताएँगे? क्या आप उन भाई-बहनों का ज़िक्र करेंगे, जिन्होंने मुश्किल वक्‍त में आपका साथ दिया था? बेशक, आप अपने जीवन-साथी या बच्चों का भी ज़िक्र करेंगे। अगर आप वक्‍त निकालकर अपने प्यारे पिता, यहोवा से मिली शानदार आशीषों पर मनन करें, तो आपका दिल एहसान से भर जाएगा और आप हर दिन उसका धन्यवाद करने के लिए उभारे जाएँगे।—भजन 92:1, 2 पढ़िए।

7. (क) हमें अपनी प्रार्थनाओं में यहोवा को धन्यवाद क्यों कहना चाहिए? (ख) प्रार्थनाओं में यहोवा को धन्यवाद देने से आपको क्या आशीषें मिलेंगी?

7 अगर हम यहोवा से मिली अपनी सभी आशीषों पर मनन करें, तो यह हमें उभारेगा कि हम अपनी प्रार्थनाओं में उसे धन्यवाद दें। (भज. 95:2; 100:4, 5) ज़्यादातर लोग परमेश्वर से सिर्फ कुछ माँगने के लिए प्रार्थना करते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि जब हम अपनी प्रार्थनाओं में उन आशीषों के लिए एहसानमंदी ज़ाहिर करते हैं, जो हमारे पास पहले से ही हैं, तो यहोवा बहुत खुश होता है। बाइबल में परमेश्वर के कई सेवकों की दिल छू लेनेवाली धन्यवाद की प्रार्थनाएँ दर्ज़ हैं, जैसे कि हन्ना और हिज़किय्याह की प्रार्थनाएँ। (1 शमू. 2:1-10; यशा. 38:9-20) इन वफादार सेवकों की मिसाल पर चलिए और यहोवा ने आपके लिए जो कुछ किया है, उसके लिए उसे अपनी प्रार्थनाओं में धन्यवाद दीजिए। (1 थिस्स. 5:17, 18) ऐसा करने से आपको बहुत-सी आशीषें मिलेंगी। आपको अच्छा महसूस होगा, यहोवा के लिए आपका प्यार बढ़ेगा और आप उसके और भी करीब आएँगे।—याकू. 4:8.

आप यहोवा से मिली किन आशीषों के लिए एहसानमंद हैं? (पैराग्राफ 6, 7 देखिए)

8. क्या बात हमें एहसान-फरामोश बना सकती है?

8 अगर हम सावधान न रहें, तो एहसान-फरामोशी की भावना बड़ी आसानी से हमारे दिल में भी पनप सकती है। क्यों? क्योंकि हम असिद्ध हैं और यह भावना हमें विरासत में मिली है। ज़रा सोचिए, हमारे पहले माता-पिता, आदम और हव्वा को खूबसूरत फिरदौस में रखा गया था। उनके पास सब कुछ था। उनकी सभी ज़रूरतें पूरी की जा रही थीं और उनके पास हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी जीने का भी शानदार मौका था। (उत्प. 1:28) मगर सब कुछ होते हुए भी वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें अपनी आशीषों के लिए कोई कदरदानी नहीं थी। वे और पाना चाहते थे। नतीजा, जो उनके पास था वह भी उनके हाथ से चला गया। (उत्प. 3:6, 7, 17-19) हमारे बारे में क्या? आज हम भी ढेर सारी आशीषों से घिरे हैं। लेकिन अगर हम सावधान न रहें, तो इस एहसान-फरामोश दुनिया का रंग हम पर भी चढ़ सकता है। हम भी इन आशीषों के लिए अपनी कदरदानी खो सकते हैं। हम यहोवा के साथ अपनी दोस्ती को हलकी बात समझने लग सकते हैं। और भाइयों की पूरी बिरादरी का हिस्सा बनने का हमें जो सम्मान मिला है, उसे हम कम आँकने लग सकते हैं। कितने अफसोस की बात होगी अगर हम अपना ध्यान इन आशीषों से हटाकर इस डूबती दुनिया में अपनी दुनिया सँवारने में लगा दें। (1 यूह. 2:15-17) अगर हम नहीं चाहते कि हमारे साथ ऐसा हो, तो ज़रूरी है कि हम अपनी बेशुमार आशीषों पर मनन करते रहें और परमेश्वर के लोग होने का हमें जो सम्मान मिला है, उसके लिए लगातार यहोवा को धन्यवाद देते रहें।—भजन 27:4 पढ़िए।

जब हम परीक्षाओं का सामना करते हैं

9. जब हम पर अचानक कोई तकलीफ आती है, तो ऐसे में हमें यहोवा से मिली आशीषों पर मनन क्यों करना चाहिए?

9 एहसानमंद दिल हमें कड़ी-से-कड़ी परीक्षाओं का सामना करने में भी मदद दे सकता है। वह कैसे? हो सकता है अचानक हम पर कोई ऐसा कहर बरपे जिससे हमारी ज़िंदगी ही बदल जाए, जैसे जीवन-साथी की बेवफाई, कोई जानलेवा बीमारी, अपने किसी अज़ीज़ की मौत या फिर किसी कुदरती आफत से हुई तबाही। जब ऐसा होता है, तो हम खुद को बिलकुल लाचार और बेसहारा महसूस करते हैं। लेकिन ऐसे दर्दनाक हालात में भी अगर हम यहोवा से मिली आशीषों पर मनन करें, तो इससे हमें काफी दिलासा और हालात से जूझने की ताकत मिल सकती है। ज़रा इन मिसालों पर गौर कीजिए।

10. अपनी आशीषों पर मनन करने से इरीना को कैसे फायदा हुआ?

10 इरीना, * उत्तर अमरीका में रहनेवाली एक पायनियर बहन है, जिसकी शादी एक प्राचीन से हुई थी। लेकिन आगे चलकर उसके पति ने उससे बेवफाई की और उसे और उनके बच्चों को छोड़कर चला गया। किस बात ने इरीना को इस मुश्किल दौर में वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहने में मदद दी है? वह कहती है: “यहोवा ने जिस तरह निजी तौर पर मेरी परवाह की है, उसके लिए मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। जब मैं हर रोज़ अपनी तकलीफों के बजाय, अपनी आशीषों पर मनन करने का चुनाव करती हूँ, तो मैं देख पाती हूँ कि हमारी हिफाज़त करनेवाले हमारे स्वर्गीय पिता के ज़रिए जाने जाना और उसका प्यार पाना कितने बड़े सम्मान की बात है। मैं जानती हूँ कि वह मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेगा।” हालाँकि इरीना ने अपनी ज़िंदगी में कई दर्दनाक हालात का सामना किया है, लेकिन उसका खुश-मिज़ाज स्वभाव उसे मुश्किल-भरे वक्‍त में भी सँभाले रखता है। इतना ही नहीं, उसकी मिसाल से दूसरों का भी हौसला बढ़ता है।

11. किस बात ने क्यौंग सूक को एक जानलेवा बीमारी से जूझने में मदद दी?

11 एशिया में रहनेवाली क्यौंग सूक ने अपने पति के साथ 20 से भी ज़्यादा सालों तक पायनियर सेवा की। एक दिन अचानक डॉक्टरों ने उसे बताया कि उसे फेफड़ों का कैंसर है, जो काफी बढ़ चुका है। उन्होंने उससे कहा कि वह सिर्फ 3 से 6 महीने और जी पाएगी। हालाँकि क्यौंग सूक और उसके पति की ज़िंदगी में पहले भी कई उतार-चढ़ाव आए थे, लेकिन उन्हें सेहत को लेकर कभी कोई परेशानी नहीं हुई थी। वह कहती है: “जब मुझे अपनी बीमारी का पता चला, तो जैसे मेरे पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी। मुझे लगा जैसे मेरा सब कुछ उजड़ गया और मैं बहुत घबरा गयी।” किस बात ने क्यौंग सूक को इस हालात से जूझने में मदद दी? वह कहती है: “हर रात सोने से पहले, मैं घर की छत पर जाकर ज़ोर से प्रार्थना करती हूँ और दिन-भर में हुई ऐसी पाँच बातों के लिए यहोवा का शुक्रिया अदा करती हूँ, जिनके लिए मैं उसकी एहसानमंद हूँ। इससे मुझे हिम्मत मिलती है, और बढ़ावा मिलता है कि मैं यहोवा के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करूँ।” क्यौंग सूक को रोज़ रात को प्रार्थना करने से कैसे फायदा हुआ है? वह कहती है: “मुझे इस बात का एहसास हुआ है कि जब हम परीक्षाओं से गुज़रते हैं, तब यहोवा हमें सँभालता है। मुझे यह भी एहसास हुआ है कि हमारी ज़िंदगी में परीक्षाएँ कम, आशीषें ज़्यादा हैं।”

अपने भाई जॉन के साथ, जो तूफान से ज़िंदा बच निकला (पैराग्राफ 13 देखिए)

12. अपनी पत्नी को खोने के बाद जेसन को कैसे सुकून मिला?

12 अफ्रीका के एक शाखा दफ्तर में सेवा करनेवाले जेसन को पूरे समय की सेवा करते 30 से भी ज़्यादा साल हो चुके हैं। वह कहता है: “सात साल पहले मैंने अपनी पत्नी को खो दिया। उससे बिछड़ने का दर्द कभी-कभी बरदाश्त से बाहर हो जाता है। कैंसर से जूझते वक्‍त उसने जो कुछ सहा, उस बारे में जब मैं बहुत ज़्यादा सोचने लगता हूँ, तो मेरा दिल तड़प उठता है।” किस बात ने जेसन के तड़पते दिल को सुकून पहुँचाया? वह कहता है: “एक दफा मैं उन खूबसूरत पलों को याद कर रहा था, जो एक बार मैंने और मेरी पत्नी ने साथ बिताए थे और मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसी वक्‍त उन खूबसूरत यादों के लिए यहोवा को शुक्रिया कहा। तब मैंने बहुत सुकून महसूस किया और उसके बाद से मैं अपनी मीठी यादों के लिए लगातार यहोवा का धन्यवाद करने लगा। इस तरह शुक्रगुज़ार होने से मेरे रवैए पर काफी असर पड़ा है। मुझे आज भी उसकी कमी खलती है। लेकिन एक अच्छी शादी-शुदा ज़िंदगी के लिए और यहोवा से बहुत प्यार करनेवाली जीवन-साथी के साथ सेवा करने के सम्मान के लिए अब जब मैं यहोवा का शुक्रिया अदा करता हूँ, तो इससे मेरे रवैए में काफी सुधार आया है।”

“मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि यहोवा मेरा परमेश्वर है।”—शैरिल

13. किस बात ने शैरिल को अपने परिवार के ज़्यादातर सदस्यों को खोने के गम से उबरने में मदद दी?

13 जब 2013 के आखिर में मध्य फिलिपाईन्स में हाइयैन नाम का एक ज़बरदस्त तूफान आया, तब 13 साल की शैरिल ने उस तूफान में अपना लगभग सब कुछ गवाँ दिया। वह कहती है: “मैंने अपना घर और अपने परिवार के ज़्यादातर लोगों को खो दिया।” उसके माता-पिता और तीन भाई-बहन उस भयंकर तूफान की चपेट में आ गए। किस बात ने शैरिल को इस हादसे के बावजूद अपनी खुशी बरकरार रखने में मदद दी है? शैरिल का दिल एहसान से भरा है और वह उन आशीषों के लिए शुक्रगुज़ार है, जो उसके पास अभी भी हैं। वह कहती है: “मैंने देखा कि भाई-बहनों ने उन लोगों तक राहत पहुँचाने और उनका हौसला बढ़ाने के लिए कितना कुछ किया, जिन्हें मदद की ज़रूरत थी। मैं जानती थी कि दुनिया-भर में भाई-बहन मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं।” उसने यह भी कहा: “मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि यहोवा मेरा परमेश्वर है। वह हमेशा हमारी ज़रूरतें पूरी करता है।” जी हाँ, जब हम अपनी आशीषों के लिए शुक्रगुज़ार होते हैं, तो हम दुख को खुद पर हावी नहीं होने देते। वाकई, एक एहसानमंद दिल हमें मुश्किल-से-मुश्किल हालात का भी सामना करने की ताकत दे सकता है।—इफि. 5:20; फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए।

“मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा”

14. भविष्य में क्या-क्या शानदार आशीषें हमारा इंतज़ार कर रही हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

14 शुरू से ही यहोवा के लोग अपनी आशीषों के लिए शुक्रगुज़ार रहे हैं। मिसाल के लिए, जब यहोवा ने इसराएलियों को लाल समुंदर में फिरौन और उसकी सेना से बचाया, तो उन्होंने उसका धन्यवाद किया और उसकी महिमा करने के लिए खुशी के गीत गाए। (निर्ग. 15:1-21) आज एक सबसे अनमोल आशीष जो हमें मिली है, वह है इस बात की हमारी पक्की आशा कि बहुत जल्द हम एक ऐसा वक्‍त देखेंगे, जब हममें से किसी को भी दुख के आँसू नहीं बहाने पड़ेंगे। (भज. 37:9-11; यशा. 25:8; 33:24) सोचिए वह क्या ही समा होगा, जब यहोवा अपने सभी दुश्मनों का नाश कर देगा और नयी दुनिया में हमें जीने का मौका देगा, जहाँ चारों तरफ शांति और न्याय होगा। उस दिन हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार होंगे!—प्रका. 20:1-3; 21:3, 4.

15. पूरे 2015 के दौरान, आपने क्या करने की ठान ली है?

15 सन्‌ 2015 में हम यहोवा से ढेरों आशीषें पाने की उम्मीद कर सकते हैं। बेशक, हमें शायद कुछ परीक्षाओं से भी गुज़रना पड़े। लेकिन हम पर चाहे जो भी मुश्किलें आएँ, हम जानते हैं कि यहोवा हमें कभी नहीं छोड़ेगा। (व्यव. 31:8; भज. 9:9, 10) वफादारी से उसकी सेवा करते रहने के लिए हमें जिस किसी चीज़ की ज़रूरत है, वे सभी चीज़ें वह हमें लगातार देता रहेगा। इसलिए आइए हम भविष्यवक्ता हबक्कूक जैसा जज़्बा बनाए रखने की ठान लें, जिसने कहा: “क्योंकि चाहे अंजीर के वृक्षों में फूल न लगें, और न दाखलताओं में फल लगें, जलपाई के वृक्ष से केवल धोखा पाया जाए और खेतों में अन्न न उपजे, भेड़शालाओं में भेड़-बकरियां न रहें, और न थानों में गाय बैल हों, तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा, और अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न रहूंगा।” (हब. 3:17, 18) जी हाँ, आइए हम पूरे 2015 के दौरान, लगातार अपनी सभी आशीषों पर मनन करते रहें और 2015 के सालाना वचन में दी सलाह को मानने के लिए उभारे जाएँ: “यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है।”—भज. 106:1.

^ पैरा. 10 इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।