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हमेशा यहोवा पर भरोसा रखिए!

हमेशा यहोवा पर भरोसा रखिए!

“हर समय उस पर भरोसा रखो।”—भज. 62:8.

1-3. पौलुस को यह यकीन क्यों था कि वह यहोवा पर भरोसा रख सकता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

सोचिए आप पहली सदी में जीनेवाले एक मसीही हैं और आप रोम में रह रहे हैं। रोमी लोग बड़ी बेरहमी से मसीहियों पर ज़ुल्म ढा रहे हैं। उन्होंने मसीहियों पर इलज़ाम लगाया है कि रोम में भयंकर आग लगानेवाले यही हैं, ये मसीही। ये लोगों से नफरत करते हैं। रोमी हमारे बहुत-से भाई-बहनों को गिरफ्तार करके उनके साथ बुरा सलूक कर रहे हैं। कई भाई-बहनों को जंगली जानवरों के आगे छोड़ दिया जाता है, जो उन्हें फाड़ खाते हैं। और दूसरे कई भाई-बहनों के हाथ-पैरों में कीलें ठोंककर उन्हें खंभों पर लटकाया जाता है। फिर रात में उजियाला करने के लिए उन्हें ज़िंदा ही जला दिया जाता है। ऐसे में आपको हर दिन यह डर लगा रहता है कि कहीं आपके साथ भी ऐसा ही कुछ न किया जाए। जी हाँ, रोम में मसीहियों को ऐसे ही दर्दनाक हालात से गुज़रना पड़ा।

2 इसी मुश्किल दौर में प्रेषित पौलुस जेल में कैद था। उसने शायद सोचा हो कि पता नहीं मसीही भाई-बहन उसकी मदद करने आएँगे या नहीं। क्योंकि एक बार ऐसे ही हालात में किसी ने उसकी मदद नहीं की। इसके बावजूद, पौलुस ने कबूल किया कि ऐसा नहीं था कि वह पूरी तरह बेसहारा हो गया हो। उसने कहा, “मगर प्रभु मेरे पास खड़ा रहा और उसने मुझमें शक्‍ति भर दी।” जी हाँ, उस वक्‍त प्रभु यीशु ने पौलुस को ताकत दी। पौलुस ने यह भी कहा कि उसे “शेर के मुँह से छुड़ाया गया” था।—2 तीमु. 4:16, 17. *

3 पौलुस को याद था कि कैसे यहोवा ने बीते समय में उसकी मदद की थी। इसलिए उसे पूरा यकीन था कि आज वह जिस हालात में है, उससे निकलने और भविष्य में ऐसे किसी भी ज़ुल्म का सामना करने में यहोवा उसे ज़रूरी ताकत देगा। उसे इस बात का इतना यकीन था कि उसने लिखा, “प्रभु मुझे हर दुष्ट चाल से ज़रूर बचाएगा।” (2 तीमु. 4:18) इससे पौलुस ने सीखा कि जिन हालात में उसके भाई-बहन उसकी मदद नहीं कर सकते, उन हालात में भी वह यह भरोसा रख सकता है कि यहोवा और यीशु ज़रूर उसकी मदद करेंगे। इस बात पर उसे ज़रा भी शक नहीं था!

यहोवा पर भरोसा रखने के मौके

4, 5. (क) कौन आपको हमेशा ज़रूरी मदद दे सकता है? (ख) आप यहोवा के साथ अपना रिश्ता कैसे और मज़बूत कर सकते हैं?

4 क्या कभी आप ऐसे मुश्किल हालात से गुज़रे हैं जब आपको लगा हो कि आप बिलकुल अकेले हैं, आपकी मदद करनेवाला कोई नहीं? हो सकता है आपकी नौकरी छूट गयी हो या स्कूल में आप पर कोई दबाव आया हो। शायद आप बहुत बीमार हो गए हों या किसी दूसरी आज़माइश से गुज़रे हों। हो सकता है ऐसे में आपने दूसरों से मदद माँगी हो। मगर आपको निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि वे आपको ज़रूरी मदद नहीं दे पाए। बेशक कुछ परेशानियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें सुलझाना इंसान के बस में नहीं है। ऐसे में आप क्या करेंगे? बाइबल हमसे कहती है, ‘यहोवा पर भरोसा रखो।’ (नीति. 3:5, 6) लेकिन क्या आप यकीन रख सकते हैं कि वह आपकी मदद करेगा? बिलकुल! हम बाइबल में ऐसी कई मिसालें पढ़ सकते हैं जो हमें यकीन दिलाती हैं कि यहोवा सच में अपने लोगों की मदद करता है।

5 जब लोग आपको ज़रूरी मदद नहीं देते, तो दिल में कड़वाहट मत पालिए। इसके बजाय, पौलुस की तरह उन मुश्किल हालात को यहोवा पर पूरी तरह भरोसा करने का एक मौका समझिए। इन हालात में आपको यह भी देखने का मौका मिलता है कि यहोवा कैसे आपकी परवाह करता है। इससे यहोवा पर आपका भरोसा बढ़ेगा और उसके साथ आपका रिश्ता और भी मज़बूत होगा।

हमें यहोवा पर भरोसा करने की ज़रूरत है

6. जब हम किसी समस्या से गुज़रते हैं, तो यहोवा पर भरोसा रखना क्यों आसान नहीं होता?

6 हो सकता है आप किसी ऐसी समस्या से गुज़र रहे हों जिस वजह से आप बहुत परेशान हैं। आपने शायद उससे निपटने की हर मुमकिन कोशिश की हो और मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना भी की हो। तो क्या अब आप इस बात से सुकून महसूस कर सकते हैं कि यहोवा आपकी मदद ज़रूर करेगा? जी हाँ, आप कर सकते हैं! (भजन 62:8; 1 पतरस 5:7 पढ़िए।) यहोवा पर भरोसा करना सीखना बहुत ज़रूरी है। इससे हम यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता बना पाते हैं। लेकिन मदद के लिए यहोवा पर भरोसा करना हमेशा आसान नहीं होता। वह क्यों? एक वजह तो यह है कि यहोवा शायद फौरन हमारी प्रार्थनाओं का जवाब न दे।—भज. 13:1, 2; 74:10; 89:46; 90:13; हब. 1:2.

7. यहोवा हमेशा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब फौरन नहीं देता। ऐसा क्यों?

7 यहोवा हमेशा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब फौरन नहीं देता। ऐसा क्यों? बाइबल कहती है कि यहोवा एक पिता की तरह है। (भज. 103:13) एक पिता अपने बच्चे की हर माँग पूरी नहीं करता या जैसे ही बच्चा कुछ माँगता है, वह फौरन उसे वह चीज़ नहीं देता। वह जानता है कि कभी-कभी बच्चा अचानक किसी चीज़ के लिए ज़िद करने लगता है, लेकिन कुछ समय बाद ऐसा होता है कि वह चीज़ उसे नहीं चाहिए। पिता यह भी जानता है कि उसके बच्चे के लिए सबसे अच्छा क्या है और बच्चे की ज़रूरत पूरी करने का दूसरों पर क्या असर हो सकता है। उसे पता है कि बच्चे की ज़रूरतें क्या हैं और ये कब पूरी की जानी चाहिए। अगर पिता बच्चे की हर माँग फौरन पूरी कर दे, तब तो पिता बच्चे का नौकर बन जाएगा। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता यहोवा हमसे प्यार करता है। वह हमारा सृष्टिकर्ता है और बहुत बुद्धिमान है। इसलिए वह जानता है कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं। और वह यह तय करता है कि हम जिस बात के लिए प्रार्थना करते हैं, उसका जवाब देना कब सबसे अच्छा होगा। तो फिर हमारी भलाई इसी में है कि हम यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करें और देखें कि वह कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है।—यशायाह 29:16; 45:9 से तुलना कीजिए।

8. मुश्किलें सहने के सिलसिले में यहोवा हमसे क्या वादा करता है?

8 यह भी याद रखिए कि यहोवा जानता है कौन किस हद तक मुश्किलें सह सकता है। (भज. 103:14) इसलिए वह हमें मुश्किलों के दौरान धीरज धरने के लिए ज़रूरी ताकत देता है। यह सच है कि कभी-कभी हमें लगता है कि अब हम और नहीं सह सकते। लेकिन यहोवा वादा करता है कि अगर कोई मुश्किल हमारी बरदाश्त के बाहर हो जाए तो “वह उससे निकलने का रास्ता भी निकालेगा।” (1 कुरिंथियों 10:13 पढ़िए।) जी हाँ, हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा जानता है, हम किस हद तक मुश्किलें सह सकते हैं। तो क्या यह जानकर हमें दिलासा नहीं मिलता?

9. अगर हम यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना करते हैं, लेकिन वह उसका जवाब फौरन नहीं देता, तो हमें क्या करना चाहिए?

9 अगर हम यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना करते हैं, लेकिन वह उसका जवाब फौरन नहीं देता, तो आइए हम सब्र रखें। याद रखिए, यहोवा भी सब्र दिखाता है। कैसे? हालाँकि वह हमारी मदद करने के लिए बेताब है, मगर ऐसा करने के लिए वह सबसे बढ़िया वक्‍त का इंतज़ार करता है। बाइबल कहती है, “यहोवा इसलिये विलम्ब [या “सब्र दिखाते हुए इंतज़ार,” एन.डब्ल्यू.] करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिये ऊँचे उठेगा कि तुम पर दया करे। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्वर है; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं।”—यशा. 30:18.

“शेर के मुँह से”

10-12. (क) किस वजह से एक बीमार रिश्तेदार की देखभाल करना मुश्किल हो सकता है? (ख) जब आप मुश्किल दौर में यहोवा पर भरोसा रखते हैं, तो इससे उसके साथ आपके रिश्ते पर क्या असर होता है? एक उदाहरण देकर समझाइए।

10 जब आप मुश्किल हालात से गुज़रते हैं, तो शायद आप भी पौलुस की तरह महसूस करें। आपको शायद लगे कि आप “शेर के मुँह” में चले गए हैं और आप चाहते हैं कि कोई आपको बचा ले। (2 तीमु. 4:17) ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि आप यहोवा पर भरोसा रखें। मान लीजिए, आपके परिवार का कोई सदस्य बीमार है और आप उसकी देखभाल कर रहे हैं। आपने यहोवा से प्रार्थना की है कि वह आपको सही फैसले लेने के लिए बुद्धि और हिम्मत से काम लेने में मदद दे। * आपने अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश की है। अब क्या आपको यह जानकर सुकून नहीं मिलता कि यहोवा की नज़रें आप पर हैं और वह आपको धीरज धरने और उसके वफादार बने रहने में ज़रूर मदद देगा?—भज. 32:8.

11 लेकिन आपके हालात शायद इतने मुश्किल हों कि आपको शायद लगे, यहोवा आपकी मदद नहीं कर रहा है। और आपको जो कदम उठाने हैं, उससे शायद आपका डॉक्टर सहमत न हो। वह शायद आपको कुछ और ही सलाह दे। यह भी हो सकता है कि आप अपने रिश्तेदारों से जो दिलासा पाने की उम्मीद कर रहे हैं, वह उनसे नहीं मिल रहा। उलटा ऐसा लगता है कि वे आपके हालात और बिगाड़ रहे हैं। ऐसे में ताकत पाने के लिए हमेशा यहोवा पर भरोसा रखिए। उसके साथ अपना रिश्ता मज़बूत करते रहिए। (1 शमूएल 30:3, 6 पढ़िए।) बाद में, जब आपको एहसास होगा कि यहोवा ने कैसे आपकी मदद की है, तो उसके साथ आपका रिश्ता और भी मज़बूत हो जाएगा।

12 लता * नाम की बहन ने कुछ ऐसा ही महसूस किया। उसने अपने बीमार माता-पिता की मौत से पहले काफी लंबे समय तक उनकी देखभाल की। वह कहती है, “ऐसे हालात में, मुझे, मेरे पति और मेरे भाई को अकसर समझ नहीं आता था कि क्या करें। कभी-कभी हम एकदम बेसहारा महसूस करते थे। लेकिन आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो हम साफ देख पाते हैं कि कैसे यहोवा ने हमारा साथ दिया। उसने हमें ताकत दी और वह सब दिया जिसकी हमें ज़रूरत थी, तब भी जब हमें लगा कि सारे रास्ते बंद हो चुके हैं।”

13. एक-के-बाद-एक आयी मुसीबतों के दौरान, रेखा को धीरज धरने में किस बात ने मदद दी?

13 अगर हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखेंगे, तो हम बड़ी-से-बड़ी मुसीबतों में भी धीरज धर पाएँगे। रेखा नाम की एक बहन का कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। उसका पति यहोवा का साक्षी नहीं है। वह उसे तलाक देनेवाला था। इसी दौरान, उस बहन के भाई को पता चला कि उसे लूपस नाम की एक गंभीर बीमारी है (इस बीमारी में त्वचा पर ज़ख्म बनने लगते हैं)। कुछ ही महीनों बाद, उस बहन की भाभी की मौत हो गयी। फिर जब रेखा को लगा कि अब वह इस सदमे से उबरने लगी है तो उसने पायनियर सेवा करना शुरू कर दिया। मगर तभी उसकी माँ की मौत हो गयी। एक-के-बाद-एक आयी मुसीबतों के दौरान, रेखा को धीरज धरने में किस बात ने मदद दी? वह कहती है, “मैं हर दिन यहोवा से बात करती थी, छोटे-छोटे फैसलों के लिए भी। ऐसा करने से यहोवा मेरे लिए असल बन गया। इससे मैंने यहोवा पर भरोसा रखना सीखा, बजाय खुद पर या दूसरे लोगों पर। यहोवा ने सच में मेरी मदद की, उसने मेरी हर ज़रूरत पूरी की। इस वजह से मैं महसूस कर सकी कि यहोवा कदम-कदम पर मेरा साथ दे रहा है।”

परिवार में भी ऐसे हालात खड़े हो सकते हैं, जिसमें यहोवा के साथ हमारे रिश्ते की परख हो सकती है (पैराग्राफ 14-16 देखिए)

14. अगर आपके किसी अज़ीज़ का बहिष्कार हो जाए, तो उस वक्‍त यहोवा कैसे आपकी मदद करेगा?

14 एक और मुश्किल हालात पर ध्यान दीजिए। कल्पना कीजिए कि आपके किसी अज़ीज़ का बहिष्कार हो गया है। आप जानते हैं कि बहिष्कार किए गए व्यक्‍ति के साथ पेश आने के बारे में बाइबल क्या कहती है। (1 कुरिं. 5:11; 2 यूह. 10) लेकिन आप उस इंसान से बेहद प्यार करते हैं, इसलिए आपको बाइबल सिद्धांतों पर चलना शायद मुश्किल लगे, यहाँ तक कि नामुमकिन लगे। * ऐसे में क्या आप स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता पर भरोसा रखेंगे कि वह आपको बाइबल सिद्धांतों पर चलने में मदद देगा? क्या आप इस हालात को यहोवा के और करीब आने का एक मौका समझेंगे?

15. आदम ने यहोवा की आज्ञा क्यों नहीं मानी?

15 अब ज़रा एक पल के लिए पहले इंसान आदम के बारे में सोचिए। क्या उसने वाकई ऐसा सोचा होगा कि वह यहोवा की आज्ञा तोड़कर भी ज़िंदा रह सकता है? नहीं, क्योंकि बाइबल कहती है आदम “छला नहीं गया था।” (1 तीमु. 2:14) तो फिर उसने यहोवा की आज्ञा क्यों नहीं मानी? उसे यहोवा से ज़्यादा अपनी पत्नी से प्यार था। इसीलिए उसने अपनी पत्नी की बात सुनी और उसका दिया फल खा लिया। उसने अपने परमेश्वर, यहोवा की आज्ञा मानने के बजाय अपनी पत्नी की बात मानी।—उत्प. 3:6, 17.

16. हमारा प्यार किसके लिए सबसे ज़्यादा गहरा होना चाहिए? और क्यों?

16 तो क्या हमारे दिल में अपने अज़ीज़ों के लिए गहरा प्यार नहीं होना चाहिए? नहीं, ऐसा नहीं है। अपने अज़ीज़ों के लिए गहरा प्यार होना गलत नहीं है, लेकिन हमारे दिल में यहोवा के लिए उनसे भी ज़्यादा गहरा प्यार होना चाहिए। (मत्ती 22:37, 38 पढ़िए।) जब हम यहोवा से इतना गहरा प्यार करेंगे तो हम अपने अज़ीज़ों की सबसे अच्छी तरह मदद कर पाएँगे, फिर चाहे वे यहोवा की सेवा करते हों या नहीं। तो फिर यहोवा के लिए अपना प्यार और उस पर अपना भरोसा बढ़ाते जाइए। अगर आप अपने किसी अज़ीज़ के बहिष्कार होने की वजह से परेशान हैं, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए और उसे अपने दिल की हर बात बताइए। * (रोमि. 12:12; फिलि. 4:6, 7) भले ही आप अंदर से एकदम टूट गए हों, फिर भी इस हालात को यहोवा के साथ अपना रिश्ता और मज़बूत करने का एक मौका समझिए। इससे आप उस पर भरोसा कर पाएँगे और यह जान पाएँगे कि उसकी आज्ञा मानने से सबसे अच्छे नतीजे निकलते हैं।

इंतज़ार करते वक्‍त क्या करें?

यहोवा की सेवा में व्यस्त रहकर उस पर अपना भरोसा दिखाइए (पैराग्राफ 17 देखिए)

17. अगर हम प्रचार काम में खुद को व्यस्त रखेंगे, तो हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?

17 यहोवा ने पौलुस को “शेर के मुँह से” किस मकसद से छुड़ाया? पौलुस खुद जवाब देता है, “ताकि मेरे ज़रिए अच्छी तरह प्रचार पूरा हो।” (2 तीमु. 4:17) यहोवा ने हमें भी “खुशखबरी” सुनाने का काम सौंपा है और वह हमें अपना “सहकर्मी” कहता है। (1 थिस्स. 2:4; 1 कुरिं. 3:9) अगर हम पौलुस की तरह इस काम में खुद को पूरी तरह व्यस्त रखें, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें हर ज़रूरी मदद देगा। (मत्ती 6:33) फिर हम आसानी से यह इंतज़ार कर पाएँगे कि यहोवा सही वक्‍त पर हमारी प्रार्थना का जवाब देगा।

18. आप यहोवा पर अपना भरोसा और उसके साथ अपना रिश्ता कैसे मज़बूत कर सकते हैं?

18 तो आइए आज हमारे पास जो समय है, उसे यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने में लगाएँ। जब आप पर कोई आज़माइश आती है और आप बहुत परेशान हो जाते हैं तो इस हालात को यहोवा के और करीब आने का मौका समझिए। परमेश्वर का वचन बाइबल पढ़िए, उसका अध्ययन कीजिए और सीखी बातों पर मनन कीजिए। लगातार यहोवा से प्रार्थना करते रहिए और उसकी सेवा करते रहिए। अगर आप इन सब कामों में खुद को पूरी तरह लगाएँ, तो आप भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा आपको हर मुश्किल हालात में धीरज धरने की ताकत देगा, आज और आनेवाले दिनों में भी!

^ पैरा. 2 हो सकता है पौलुस को सचमुच के शेरों से बचाया गया हो या शायद किसी दूसरे खतरनाक हालात से बचाया गया हो।

^ पैरा. 10 बीमारी से जूझ रहे मसीहियों को धीरज धरने में मदद देने और उनकी देखभाल करनेवालों की मदद के लिए हमारी पत्रिकाओं में लेख छापे गए हैं। सजग होइए! के ये अंक देखिए: 8 फरवरी, 1994 (अँग्रेज़ी); 8 फरवरी, 1997 (अँग्रेज़ी); 22 मई, 2000 (अँग्रेज़ी) और 22 जनवरी, 2001 (अँग्रेज़ी)। साथ ही, 15 मई, 2010 की प्रहरीदुर्ग, पेज 17-19 और 15 दिसंबर, 2011 की प्रहरीदुर्ग, पेज 27-30 देखिए।

^ पैरा. 12 नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 16 जब हमारा कोई अज़ीज़ यहोवा को छोड़ देता है, तो हम मदद के लिए आगे बतायी पत्रिकाओं में दिए लेख देख सकते हैं: 1 सितंबर, 2006 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) का पेज 17-21; 15 जनवरी, 2007 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) का पेज 17-20; 15 जुलाई, 2011 की प्रहरीदुर्ग का पेज 30-32 और 15 जनवरी, 2013 की प्रहरीदुर्ग का पेज 15-16.