आदर्श प्रार्थना के मुताबिक ज़िंदगी जीओ—भाग दो
“तुम्हारा पिता . . . जानता है कि तुम्हें किन चीज़ों की ज़रूरत है।”—मत्ती 6:8.
1-3. एक बहन को क्यों यह यकीन है कि यहोवा जानता था कि उसे किस तरह की मदद चाहिए?
लॉनॉ नाम की एक पायनियर बहन 2012 में जर्मनी घूमने गयी। वहाँ उसके साथ जो घटना घटी उसे वह कभी नहीं भूल सकती। वह महसूस करती है कि यहोवा ने उसकी दो प्रार्थनाओं का जवाब दिया। कैसे? जब वह ट्रेन से हवाई-अड्डे की तरफ जा रही थी, तब उसने यहोवा से प्रार्थना की कि उसे कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए, जिसे वह गवाही दे सके। जब वह हवाई-अड्डे पहुँची तो उसे पता चला कि उसका हवाई जहाज़ एक दिन की देरी से उड़ान भरेगा। इससे लॉनॉ परेशान होने लगी कि वह कहाँ रात गुज़ारेगी, क्योंकि उसके करीब-करीब सारे पैसे खर्च हो चुके थे। इसलिए उसने फिर से परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मदद माँगी।
2 लॉनॉ ने प्रार्थना बस खत्म ही की थी कि तभी उसे किसी ने आवाज़ दी, “अरे लॉनॉ, तुम यहाँ क्या कर रही हो?” यह आवाज़ उस लड़के की थी जो उसके साथ स्कूल में पढ़ता था। उस लड़के के साथ उसकी माँ और दादी भी थीं, जो उसे छोड़ने आयी थीं। वह दक्षिण अफ्रीका जा रहा था। जब लॉनॉ ने उन्हें अपनी हालत के बारे
में बताया, तो उस लड़के की माँ और दादी ने उससे कहा कि वह उनके घर रुक सकती है। उन्होंने उसके विश्वास और वह पायनियर के तौर पर जो सेवा कर रही थी, उस बारे में उससे कई सवाल पूछे।3 अगली सुबह नाश्ते के बाद, लॉनॉ ने बाइबल के बारे में उनके और भी सवालों के जवाब दिए। उसने उनसे उनका फोन नंबर वगैरह लिया, ताकि आगे भी कोई उनके सवालों के जवाब दे सके। लॉनॉ अपने सफर से सही-सलामत घर वापस आयी और वह अब भी पायनियर सेवा कर रही है। उसे लगता है कि यहोवा ने उसकी प्रार्थनाओं का जवाब दिया, वह जानता था कि उसे किस तरह की मदद चाहिए और उसने उसे वह मदद दी।—भज. 65:2.
4. इस लेख में हम किन ज़रूरी बातों के बारे में चर्चा करेंगे?
4 जब अचानक हमारे सामने कोई समस्या आ जाती है, तो हम बड़ी आसानी से यहोवा से मदद माँगते हैं और वह खुशी-खुशी हमारी सुनता है। (भज. 34:15; नीति. 15:8) लेकिन आदर्श प्रार्थना में यीशु ने हमें सिखाया कि कुछ और भी ज़रूरी बातें हैं जिनके लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए। इस लेख में हम आदर्श प्रार्थना की आखिरी चार बिनतियों पर गौर करेंगे और देखेंगे कि कैसे उन बिनतियों से हमें यहोवा के वफादार बने रहने में मदद मिल सकती है।—मत्ती 6:11-13 पढ़िए।
“आज के इस दिन की रोटी हमें दे”
5, 6. यीशु ने यह क्यों सिखाया कि हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्वर ‘हमें रोटी’ दे, भले ही हमारे पास खाने की कमी न हो?
5 गौर कीजिए इस प्रार्थना में सिखाया गया है कि हमें यह गुज़ारिश करनी चाहिए कि आज के इस दिन की रोटी “हमें” दे, न सिर्फ “मुझे” दे। अफ्रीका का रहनेवाला एक सर्किट निगरान कहता है, ‘मैं अकसर सच्चे दिल से यहोवा का शुक्रिया अदा करता हूँ कि मुझे और मेरी पत्नी को यह फिक्र नहीं करनी पड़ती कि हमें अगली बार खाना कहाँ से मिलेगा। और न ही हमें यह चिंता करनी पड़ती है कि कौन हमारे ठहरने का किराया देगा। हमारे भाई हर दिन बड़े प्यार से हमारी देखभाल करते हैं। लेकिन मैं दुआ करता हूँ कि जो हमारी मदद करते हैं, उन्हें कोई तंगी न हो।’
6 हमारे पास शायद खाने की कोई कमी न हो। लेकिन हमारे बहुत-से भाई-बहन ऐसे हैं जिनका गुज़ारा बड़ी मुश्किल से चलता है। कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने किसी कुदरती आफत की मार सही है। ऐसे भाई-बहनों के लिए हमें न सिर्फ प्रार्थना करनी चाहिए, बल्कि उनकी मदद भी करनी चाहिए। मिसाल के लिए, हमारे पास जो है, उसमें से कुछ हम अपने ज़रूरतमंद भाई-बहनों को दे सकते हैं। यही नहीं, हम पूरी दुनिया में हो रहे काम के लिए लगातार दान भी दे सकते हैं। क्योंकि हम जानते हैं, हमारे दान से ज़रूरतमंद भाई-बहनों की मदद की जाती है।—1 यूह. 3:17.
7. यीशु ने कैसे सिखाया कि हमें ‘अगले दिन की चिंता कभी नहीं करनी’ चाहिए?
7 आदर्श प्रार्थना सिखाने के बाद, यीशु ने सिखाया कि हमें पैसा या खाने-पहनने जैसी ज़रूरतों के बारे में हद-से-ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। उसने कहा कि यहोवा जब जंगली फूलों को शानदार कपड़े पहनाता है, “तो अरे, कम विश्वास रखनेवालो, क्या वह तुम्हें न पहनाएगा? इसलिए कभी-भी चिंता न करना, न ही यह कहना, . . . ‘हम क्या पहनेंगे?’” उसने फिर से कहा, “अगले दिन की चिंता कभी न करना।” (मत्ती 6:30-34) हमें कल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, अगर आज हमारी बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो रही हैं, तो हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। जैसे, हम यह प्रार्थना कर सकते हैं कि हमारे पास सिर छिपाने की जगह और परिवार की देखभाल करने के लिए कोई नौकरी-पेशा हो। साथ ही, हम दुआ कर सकते हैं कि परमेश्वर हमें बुद्धि दे ताकि हम सेहत से जुड़े सही फैसले ले सकें। लेकिन कुछ और भी ज़रूरी बात है जिसके लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए।
8. यीशु ने रोटी के बारे में जो बात कही, उससे हमें कौन-सी बात याद आती है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
8 यीशु ने रोटी के बारे में जो बात कही, उससे हमें एक और बात याद आती है। उसने कहा, “इंसान सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रह सकता, बल्कि उसे यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन से ज़िंदा रहना है।” (मत्ती 4:4) इसलिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि यहोवा हमें लगातार सिखाता रहे और ज़रूरी हिदायतें देता रहे, ताकि हम उसके करीब बने रहें।
‘हमारे कर्ज़ माफ कर’
9. हमारे पाप कर्ज़ की तरह क्यों हैं?
9 यीशु ने कहा, “हमारे पापों को [“हमारे कर्ज़,” फुटनोट] माफ कर।” (मत्ती 6:12; लूका 11:4) हमारे पाप कर्ज़ की तरह हैं। कैसे? सन् 1951 की एक प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में बताया गया था कि हमें यहोवा से प्यार करना है और उसकी आज्ञा माननी है। लेकिन जब हम पाप करते हैं, तो मानो हम यहोवा के कर्ज़दार हो जाते हैं, क्योंकि तब हम उसे वह नहीं दे रहे होते जिसे पाने का वह हकदार है। ऐसे में, यहोवा चाहे तो हमारे साथ अपना रिश्ता तोड़ सकता है। प्रहरीदुर्ग आगे बताती है, “पाप करके हम परमेश्वर के लिए प्यार नहीं दिखाते।”—1 यूह. 5:3.
10. (क) यहोवा हमारे पापों को किस आधार पर माफ करता है? (ख) और हमें उस बारे में कैसा महसूस करना चाहिए?
10 हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि उसने हमारे पापों की माफी के लिए यीशु का छुड़ौती बलिदान दिया! हमें हर दिन यहोवा से माफी पाने की ज़रूरत है। हालाँकि यीशु ने आज से करीब 2,000 साल पहले हमारे लिए अपनी जान दी, मगर हम आज भी उसके बलिदान से फायदा पा सकते हैं। इस कीमती तोहफे के लिए हमें हमेशा यहोवा का धन्यवाद करना चाहिए। क्योंकि कोई असिद्ध इंसान अपना बलिदान देकर हमें पाप और मौत से नहीं छुड़ा सकता था। (भजन 49:7-9; 1 पतरस 1:18, 19 पढ़िए।) आदर्श प्रार्थना में बताए शब्द “हमारे पापों को माफ कर” हमें याद दिलाते हैं कि ठीक जिस तरह हमें छुड़ौती की ज़रूरत है, उसी तरह हमारे भाई-बहनों को भी है। यहोवा चाहता है कि हम भाई-बहनों के बारे में और यहोवा के साथ उनके रिश्ते के बारे में भी सोचें। और वह यह भी चाहता है कि जब वे हमारे खिलाफ कुछ गलत कर देते हैं, तो हमें उन्हें फौरन माफ कर देना चाहिए। आम तौर पर ये गलतियाँ छोटी होती हैं, इसलिए जब हम उन्हें माफ कर देते हैं तो हम साबित करते हैं कि हमें उनसे प्यार है। माफ करके हम यह भी ज़ाहिर करते हैं कि यहोवा से मिलनेवाली माफी के लिए हम उसके एहसानमंद हैं।—कुलु. 3:13.
11. दूसरों को माफ करना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?
11 असिद्ध होने की वजह से हमारे लिए उन लोगों को माफ करना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है, जिन्होंने हमारे खिलाफ कुछ किया है। (लैव्य. 19:18) उन्होंने हमारे साथ जो किया है, उस बारे में अगर हम मंडली में दूसरों को बताएँगे तो शायद वे हमारा पक्ष लें। नतीजा, मंडली की एकता भंग हो सकती है। अगर हम ऐसा करें तो हम दिखा रहे होंगे कि हम यहोवा की दया और उसकी तरफ से मिले फिरौती बलिदान की कदर नहीं करते। इससे हमें उस तोहफे से मिलनेवाले फायदे नहीं मिलेंगे। (मत्ती 18:35) अगर हम दूसरों को माफ नहीं करेंगे, तो यहोवा भी हमें माफ नहीं करेगा। (मत्ती 6:14, 15 पढ़िए।) और हाँ, अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमें माफ करे, तो हमें गंभीर पाप करते रहने से भी बचना चाहिए।—1 यूह. 3:4, 6.
“जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे”
12, 13. (क) यीशु के बपतिस्मे के बाद उसके साथ क्या हुआ? (ख) अगर हम लुभानेवाले हालात में पड़कर गलत काम कर बैठते हैं, तो हमें दूसरों पर दोष क्यों नहीं लगाना चाहिए? (ग) मौत तक वफादार रहकर यीशु ने क्या साबित किया?
12 आदर्श प्रार्थना के शब्द “जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे,” हमें याद दिलाते हैं कि यीशु के बपतिस्मे के कुछ ही समय बाद उसके साथ क्या हुआ। परमेश्वर की पवित्र शक्ति के असर में यीशु वीराने में गया। “वहाँ शैतान ने उसकी परीक्षा लेने के लिए उसे फुसलाने की कोशिश की।” (मत्ती 4:1; 6:13) यहोवा ने ऐसा क्यों होने दिया? यह समझने के लिए हमें जानना होगा कि परमेश्वर ने यीशु को धरती पर क्यों भेजा। उसे वह मसला सुलझाने के लिए भेजा था जो तब खड़ा हुआ था, जब आदम और हव्वा ने यहोवा की हुकूमत को ठुकरा दिया था। इससे जो सवाल उठे, उनके जवाब देने के लिए काफी वक्त की ज़रूरत थी। उदाहरण के लिए, यहोवा ने इंसान की जिस तरह सृष्टि की, क्या उसमें कोई कमी थी? क्या “दुष्ट शैतान” के बहकाए जाने पर भी सिद्ध इंसान यहोवा का वफादार रह सकता है? और क्या इंसान खुद हुकूमत करके खुश रह सकता है? (उत्प. 3:4, 5) भविष्य में जब इन सब सवालों के जवाब यहोवा की उम्मीदों के मुताबिक दिए जा चुके होंगे, तब स्वर्ग और धरती पर सभी यह जान जाएँगे कि यहोवा के हुकूमत करने का तरीका ही सबसे बढ़िया है।
13 यहोवा पवित्र परमेश्वर है, इसलिए वह कभी किसी को बुरी बातों से फुसलाकर उसकी परीक्षा नहीं लेता। “फुसलानेवाला” तो शैतान है। (मत्ती 4:3) शैतान हमारे सामने ऐसे हालात पैदा कर सकता है, जो हमें गलत काम करने के लिए लुभाते हैं। लेकिन फैसला हममें से हरेक के हाथ में है कि हम लुभाए जाने पर गलत काम करेंगे या नहीं। (याकूब 1:13-15 पढ़िए।) जब शैतान ने यीशु को फुसलाने की कोशिश की, तो यीशु ने फौरन परमेश्वर के वचन का हवाला देकर उसका विरोध किया। यीशु परमेश्वर का वफादार बना रहा। लेकिन शैतान ने भी हार नहीं मानी। उसने यीशु को फुसलाने के लिए “कोई और सही मौका मिलने तक” इंतज़ार किया। (लूका 4:13) शैतान की लाख कोशिशों के बावजूद यीशु ने यहोवा को ही अपना राजा माना और हमेशा उसकी आज्ञा मानी। उसने यह साबित कर दिया कि मुश्किल-से-मुश्किल घड़ी में भी सिद्ध इंसान यहोवा का वफादार रह सकता है। मगर शैतान, यीशु के चेलों को फुसलाने की कोशिश करता है ताकि वे यहोवा की आज्ञा न मानें और उनमें आप भी शामिल हैं।
14. अगर हम गलत काम करने से बचना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा?
14 यहोवा की हुकूमत पर उठाए गए सवालों के जवाब देना अब भी बाकी है। इसलिए यहोवा ने अब तक शैतान को हमें फुसलाने की छूट दी है। यहोवा हम पर परीक्षा नहीं लाता यानी वह हमें गलत काम करने के लिए नहीं फुसलाता। इसके बजाय, उसे तो यकीन है कि हम उसके वफादार रह सकते हैं। यही नहीं, इस मामले में वह हमारी मदद भी करना चाहता है। लेकिन वह कभी-भी हमसे सही काम करवाने की ज़बरदस्ती नहीं करता। वह हमारी आज़ाद मरज़ी की कदर करता है। इसलिए उसने यह हम पर छोड़ा है कि हम खुद तय करें कि हम उसके वफादार रहेंगे या नहीं। अगर हम गलत काम करने से बचना चाहते हैं तो हमें दो काम करने होंगे: पहला, हमें यहोवा के करीब बने रहना होगा और दूसरा, मदद के लिए लगातार उससे प्रार्थना करनी होगी। ऐसे हालात में यहोवा कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है?
15, 16. (क) ऐसे कुछ लुभानेवाले हालात या परीक्षाएँ क्या हैं जिनसे हमें बचना चाहिए? (ख) अगर हम परीक्षा में पड़ जाते हैं तो इसके लिए कौन दोषी है?
15 यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्ति देता है, ताकि उसकी मदद से हम लुभानेवाले किसी भी हालात का डटकर विरोध कर सकें। वह हमें अपने वचन बाइबल और मंडली के ज़रिए भी खतरों से सावधान करता है। उदाहरण के लिए, वह हमें खबरदार करता है कि हम अपना ज़्यादातर वक्त, पैसा और
ताकत ऐसी चीज़ों पर न लगाएँ जिनकी हमें ज़रूरत नहीं है। ऐसपन और यॉन, यूरोप के एक अमीर देश में रहते हैं। कई सालों तक इस जोड़े ने देश के एक ऐसे इलाके में पायनियर सेवा की, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। जब उनके घर में एक नन्हा मेहमान आया तो उन्हें अपनी यह सेवा छोड़नी पड़ी। कुछ समय बाद उनका एक और बच्चा हुआ। ऐसपन कहता है, ‘अब हम परमेश्वर की सेवा में उतना वक्त नहीं दे पाते जितना हम पहले दिया करते थे। इसलिए हम अकसर यहोवा से प्रार्थना करते हैं कि हम परीक्षा में न पड़ें। हम यहोवा से दुआ करते हैं कि उसके साथ हमारा रिश्ता कमज़ोर न हो और न ही प्रचार सेवा के लिए हमारा जोश ठंडा हो।’16 एक और परीक्षा का हमें सामना करना पड़ता है और वह है गंदी तसवीरें या वीडियो देखना। अगर हम इस परीक्षा में पड़ जाते हैं, तो हम शैतान पर दोष नहीं लगा सकते। क्यों? क्योंकि शैतान और उसकी दुनिया हमसे ज़बरदस्ती गलत काम नहीं करवा सकती। कुछ लोग गंदी तसवीरें या वीडियो इसलिए देखते हैं क्योंकि वे मन में बुरे खयाल आने पर उन्हें निकालते नहीं। लेकिन हमारे बहुत-से भाई-बहनों ने खुद को इस परीक्षा में पड़ने से बचाया है और हम भी ऐसा कर सकते हैं।—1 कुरिं. 10:12, 13.
“हमें उस दुष्ट शैतान से बचा”
17. (क) अगर हम इस बिनती के मुताबिक जीना चाहते हैं कि यहोवा हमें “दुष्ट शैतान से बचा” ले, तो हमें क्या करना चाहिए? (ख) जल्द ही हमें किस बात की शांति मिलनेवाली है?
17 अगर हम इस बिनती के मुताबिक जीना चाहते हैं कि यहोवा हमें “दुष्ट शैतान से बचा” ले, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें शैतान की “दुनिया के नहीं” होना चाहिए और न ही शैतान की “दुनिया और दुनिया की चीज़ों से प्यार करनेवाले” बनना चाहिए। (यूह. 15:19; 1 यूह. 2:15-17) जब यहोवा शैतान को इस दुनिया से हटा देगा और सभी दुष्ट लोगों का नाश कर देगा, तब कितनी शांति होगी! लेकिन तब तक हमें याद रखना चाहिए कि शैतान “बड़े क्रोध में है, क्योंकि वह जानता है कि उसका बहुत कम वक्त बाकी रह गया है।” यहोवा की उपासना करने से हमें रोकने के लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इसलिए हमें प्रार्थना करते रहना चाहिए कि यहोवा हमें शैतान से बचाए।—प्रका. 12:12, 17.
18. अगर आप शैतान की दुनिया के नाश से बचना चाहते हैं तो आपको क्या करना चाहिए?
18 क्या आप ऐसी दुनिया में जीना चाहते हैं जहाँ शैतान नहीं होगा? तो फिर लगातार प्रार्थना करते रहिए कि परमेश्वर का राज आए, परमेश्वर का नाम पवित्र किया जाए और उसकी मरज़ी धरती पर पूरी हो। यहोवा पर भरोसा रखिए। वह आपका खयाल रखेगा और उसके वफादार बने रहने के लिए आपको जो मदद चाहिए, वह देगा। और हाँ, आदर्श प्रार्थना के मुताबिक जीने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर मत छोड़िए।