अपने बच्चों को यहोवा की सेवा करना सिखाइए
‘सच्चे परमेश्वर का सेवक हमें बताए कि हम बच्चे की परवरिश कैसे करें।’—न्यायि. 13:8, एन.डब्ल्यू.
गीत: 4, 6
1. जब मानोह को पता चला कि वह पिता बननेवाला है, तो उसने क्या किया?
मानोह और उसकी पत्नी अच्छी तरह जानते थे कि उनके कभी बच्चे नहीं होंगे। लेकिन एक दिन यहोवा के एक स्वर्गदूत ने मानोह की पत्नी से कहा कि उसके एक बेटा होगा। यह सुनकर वह हैरान रह गयी! उसकी खुशी का ठिकाना न रहा! जब उसने मानोह को यह खबर सुनायी, तो वह भी खुशी से फूला नहीं समाया। लेकिन मानोह जानता था कि इस खुशी के साथ-साथ उसके कंधों पर एक भारी ज़िम्मेदारी भी आएगी। मानोह और उसकी पत्नी अपने बेटे की परवरिश इस तरह करना चाहते थे कि वह परमेश्वर से प्यार करे और उसकी सेवा करे। लेकिन इसराएल में बहुत-से लोग बुरे काम कर रहे थे, तो फिर वे ऐसा कैसे कर पाते? मानोह ने यहोवा से बिनती की कि वह दोबारा अपना स्वर्गदूत भेजे। उसने कहा, ‘तूने जिस सेवक [स्वर्गदूत] को अभी भेजा था मेहरबानी करके उस सेवक को दोबारा भेज कि वह हमें बताए कि हम बच्चे की परवरिश कैसे करें।’—न्यायि. 13:1-8, एन.डब्ल्यू.
2. (क) आपको अपने बच्चों को क्या सिखाना चाहिए? (ख) आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? (“ आपके सबसे अहम बाइबल विद्यार्थी” बक्स देखिए।)
2 अगर आप माता-पिता हैं, तो मानोह की दिल से की गयी इस बिनती को आप * (नीति. 1:8) आप पारिवारिक उपासना इस तरह कीजिए जिससे बच्चों को फायदा हो और वे सच्चाई में तरक्की करते जाएँ। लेकिन बच्चे के साथ सिर्फ बाइबल का अध्ययन करना काफी नहीं होगा, आपको और भी कुछ करना होगा। (व्यवस्थाविवरण 6:6-9 पढ़िए।) तो फिर बच्चों को यहोवा से प्यार करना और उसकी सेवा करना सिखाने में क्या बात आपकी मदद कर सकती है? इस मामले में यीशु एक बढ़िया मिसाल है। इस लेख में और अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि माता-पिता यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं। हालाँकि यीशु एक पिता नहीं था, फिर भी माता-पिता उसके सिखाने के तरीके से फायदा पा सकते हैं। यीशु अपने चेलों को प्यार और नम्रता से सिखाता था। वह अच्छी समझ भी रखता था यानी वह उनकी भावनाएँ समझता था और वह जानता था कि उनकी मदद कैसे करनी है। आइए हम एक-एक करके इन गुणों पर गौर करें।
समझ सकते हैं। आपके कंधों पर भी एक भारी ज़िम्मेदारी है कि यहोवा को जानने में आप अपने बच्चे की मदद करें और यहोवा से प्यार करना भी सिखाएँ।अपने बच्चे से प्यार कीजिए
3. यीशु के चेले कैसे जानते थे कि यीशु उनसे प्यार करता है?
3 यीशु अपने चेलों को यह कहने से कभी नहीं हिचकिचाया कि वह उनसे प्यार करता है। (यूहन्ना 15:9 पढ़िए।) वह सिर्फ ऐसा कहता ही नहीं था, ऐसा करता भी था। वह अपने चेलों के साथ काफी समय भी बिताता था। (मर. 6:31, 32; यूह. 2:2; 21:12, 13) यीशु सिर्फ उनका गुरु नहीं था, बल्कि उनका दोस्त भी था। इन सारी बातों की वजह से उसके चेलों को पूरा यकीन था कि यीशु उनसे प्यार करता है। माता-पिता यीशु से क्या सीख सकते हैं?
4. आप अपने बच्चों को कैसे जता सकते हैं कि आप उनसे प्यार करते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
4 अपने बच्चों से कहिए कि आप उनसे प्यार करते हैं और समय-समय पर उन्हें जताइए कि वे आपके लिए बहुत अनमोल हैं। (नीति. 4:3; तीतु. 2:4) ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाला शमूएल कहता है, “जब मैं बहुत छोटा था, तब हर शाम मेरे पापा बाइबल कहानियों की मेरी मनपसंद किताब में से मुझे कहानी पढ़कर सुनाते थे। वह मेरे ढेर सारे सवालों के जवाब देते थे, मुझे गले लगाते थे और मुझे चूमकर सुलाते थे। लेकिन बाद में मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि मेरे पापा ऐसे परिवार में नहीं पले-बढ़े थे, जहाँ गले लगाना और चूमना एक आम बात हो! फिर भी अपना प्यार जताने की उन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। इस वजह से मेरा उनके साथ एक मज़बूत रिश्ता हो गया। मैं खुश रहता था और मुझे कोई चिंता नहीं होती थी।” आपके बच्चे भी ऐसा ही महसूस करें, इसके लिए अकसर उनसे कहिए, “मैं आपसे प्यार करता हूँ।” उन पर अपना प्यार लुटाइए। समय निकालकर उनसे बात कीजिए, उनके साथ खाना खाइए और उनके साथ खेलिए।
5, 6. (क) यीशु को अपने चेलों से प्यार था, इसलिए उसने क्या किया? (ख) आपको अपने बच्चों को कैसे अनुशासन देना चाहिए?
5 यीशु ने कहा, “जिनसे मैं गहरा लगाव रखता हूँ उन सभी को मैं ताड़ना और अनुशासन देता हूँ।” * (प्रका. 3:19) यीशु के चेले अकसर आपस में बहस करते थे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। लेकिन यीशु ने उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा। इसके बजाय, उसने सब्र से काम लिया और उन्हें प्यार से सलाह देता रहा। और उसने सही समय और सही जगह देखकर उन्हें सलाह दी।—मर. 9:33-37.
6 आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, इसलिए आप जानते हैं कि उन्हें अनुशासन देना भी ज़रूरी है। कभी-कभार सिर्फ इतना ही समझाना काफी होता है कि क्यों कोई काम सही या गलत है। लेकिन तब क्या, अगर वे तब भी आपका कहना न मानें? (नीति. 22:15) यीशु से सीखिए। सब्र रखते हुए अपने बच्चे को सलाह देते रहिए, उन्हें सिखाते रहिए और उन्हें सुधारते रहिए। सही समय और सही जगह देखकर उन्हें अनुशासन दीजिए और ऐसा प्यार से कीजिए। दक्षिण अफ्रीका में रहनेवाली इलेन नाम की बहन बताती है कि उसके माता-पिता उसे कैसे अनुशासन देते थे। वे हमेशा उसे समझाते थे कि वे उससे क्या उम्मीद करते हैं। वे पहले से बता देते थे कि अगर वह कहना नहीं मानेगी, तो उसे सज़ा मिलेगी। और जब ऐसा होता था, तो उसे सज़ा ज़रूर मिलती थी। वह कहती है, ‘उन्होंने कभी-भी मुझे गुस्से में अनुशासन नहीं दिया और अनुशासन देते वक्त उसकी वजह ज़रूर बतायी।’ इससे वह समझ पायी कि उसके माता-पिता उससे प्यार करते हैं।
नम्र बनिए
7, 8. (क) यीशु के चेलों ने उसकी प्रार्थनाओं से क्या सीखा? (ख) आपकी प्रार्थना से आपके बच्चे यहोवा पर निर्भर रहना कैसे सीख सकते हैं?
7 यीशु ने मरने से पहले धरती पर अपनी आखिरी रात को अपने पिता से बिनती की, “हे अब्बा, हे पिता, तेरे लिए सबकुछ मुमकिन है। यह प्याला मेरे सामने से हटा दे। मगर जो मैं चाहता हूँ वह नहीं, बल्कि वही हो जो तू चाहता है।” * (मर. 14:36) ज़रा सोचिए उसके चेलों ने जब उसकी यह प्रार्थना सुनी होगी, तो उन्हें कैसा लगा होगा। वे यह समझ पाए कि सिद्ध होने के बावजूद भी यीशु ने मदद के लिए अपने पिता से प्रार्थना की। इस तरह उन्होंने सीखा कि उन्हें भी नम्र होना चाहिए और यहोवा पर निर्भर रहना चाहिए।
8 आपके बच्चे आपकी प्रार्थना से बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह सच है कि जब आप यहोवा से प्रार्थना कर रहे होते हैं, आप बच्चों को सिखा नहीं रहे होते। लेकिन जब वे आपको प्रार्थना करते सुनते हैं, तो वे यहोवा पर निर्भर होना सीख सकते हैं। यहोवा से सिर्फ यह प्रार्थना मत कीजिए कि वह आपके बच्चों की मदद करे, बल्कि उससे खुद के लिए भी मदद माँगिए। जैसे अधिवेशन के लिए छुट्टी चाहिए, तो अपने मालिक से बात करने के लिए बुद्धि माँगिए। या पड़ोसी को गवाही देनी हो, तो हिम्मत के लिए प्रार्थना कीजिए। जब आपके बच्चे आपको ऐसे प्रार्थना करते हुए सुनेंगे, तो वे भी यहोवा पर निर्भर रहना सीख पाएँगे। ब्राज़ील की रहनेवाली आना को ही लीजिए, वह कहती है, “जब भी कोई समस्या उठती थी जैसे जब मेरे दादा-दादी बीमार थे, तो मम्मी-पापा यहोवा से उस हालात का सामना करने के लिए हिम्मत माँगते थे और सही फैसले लेने के लिए बुद्धि
माँगते थे। जब वे बहुत परेशानी में होते थे, तब भी वे मामले को यहोवा के हाथ में छोड़ देते थे। इससे मैं यहोवा पर भरोसा करना सीख पायी।”9. (क) यीशु ने अपने चेलों को कैसे सिखाया कि वे नम्र होकर दूसरों की मदद करें? (ख) अगर आप नम्र हैं और दूसरों की मदद करने के लिए त्याग करते हैं, तो आपके बच्चे इससे क्या सीखेंगे?
9 यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वे नम्र हों और खुदगर्ज़ न बनें। ऐसा उसने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि खुद किया भी। (लूका 22:27 पढ़िए।) उसके प्रेषितों ने देखा कि यीशु ने यहोवा की सेवा करने के लिए और दूसरों की मदद करने के लिए कई त्याग किए थे। और उन्होंने भी ऐसा करना सीखा। आप भी अपनी मिसाल से अपने बच्चों को सिखा सकते हैं। डेबी, जिसके दो बच्चे हैं, कहती है, ‘मेरे पति प्राचीन होने के नाते काफी समय भाई-बहनों के साथ बिताते हैं। लेकिन इस बात से मुझे कभी चिढ़ नहीं मची। क्योंकि मुझे पता था कि हमें जब कभी उनकी ज़रूरत होगी, उस वक्त वह हमारे साथ होंगे।’ (1 तीमु. 3:4, 5) डेबी और उसके पति, प्रानास की मिसाल से उनके परिवार पर क्या असर हुआ? प्रानास कहता है कि उनके बच्चे सम्मेलनों से जुड़े कामों में हिस्सा लेने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे खुश रहते थे, उन्होंने अच्छे दोस्त बनाएँ और वे भाई-बहनों के साथ समय बिताना चाहते थे। इस परिवार के सभी लोग आज पूरे-समय की सेवा कर रहे हैं। आप जिस तरह नम्र बनेंगे और दूसरों की मदद करने के लिए त्याग करेंगे, उससे ज़रूर आपके बच्चे दूसरों की मदद करना सीखेंगे।
समझ से काम लीजिए
10. जब कुछ लोग यीशु को ढूँढ़ते हुए गलील आए, तो उसने कैसे समझ से काम लिया?
10 यीशु के पास अच्छी समझ थी। वह सिर्फ यह ध्यान नहीं देता था कि लोग क्या करते हैं बल्कि वे ऐसा क्यों करते हैं। वह लोगों के दिल पढ़ सकता था। उदाहरण के लिए, एक बार कुछ लोग उसे ढूँढ़ते हुए गलील आए। (यूह. 6:22-24) वह समझ गया कि लोग वहाँ इसलिए नहीं आए क्योंकि वे उससे सीखना चाहते हैं बल्कि इसलिए कि उन्हें खाना चाहिए। (यूह. 2:25) यीशु जानता था कि वे क्या सोच रहे हैं। फिर उसने सब्र से काम लेते हुए उन्हें सुधारा और समझाया कि उन्हें क्या बदलाव करने चाहिए।—यूहन्ना 6:25-27 पढ़िए।
11. (क) आप कैसे समझ सकते हैं कि आपके बच्चे प्रचार के बारे में क्या सोचते हैं? (ख) आप अपने बच्चों के लिए प्रचार काम कैसे मज़ेदार बना सकते हैं?
11 हालाँकि आप किसी का दिल नहीं पढ़ सकते, लेकिन आप भी समझ से काम ले सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप यह समझने की कोशिश कर सकते हैं कि आपके बच्चे प्रचार
के बारे में क्या सोचते हैं। अपने आप से पूछिए, ‘क्या ऐसा है कि वे प्रचार के दौरान सिर्फ तभी खुश होते हैं, जब हम थोड़ी देर आराम करने के लिए रुकते हैं या कुछ खाने-पीने के लिए रुकते हैं?’ अगर आपको लगता है कि आपके बच्चों को प्रचार में इतना मज़ा नहीं आ रहा, तो उनके लिए प्रचार काम मज़ेदार बनाने की कोशिश कीजिए। उन्हें छोटे-छोटे काम दीजिए जो वे कर सकें, ताकि उन्हें लगे कि उन्होंने भी प्रचार में हिस्सा लिया है।12. (क) यीशु ने अपने चेलों को किस बारे में खबरदार किया? (ख) यीशु की बात कैसे सही समय पर दी सलाह साबित हुई?
12 यीशु ने और किस तरह से समझ दिखायी? वह जानता था कि एक गलती से कई गलतियों की शुरूआत होती है और यहाँ तक कि गंभीर पाप भी हो सकता है। और उसने अपने चेलों को इस बारे में खबरदार भी किया था। उदाहरण के लिए, चेले जानते थे कि लैंगिक अनैतिकता गलत है। लेकिन यीशु ने उन्हें खबरदार किया कि कौन-सी बातें अनैतिकता की तरफ ले जा सकती हैं। उसने कहा, “हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में स्त्री के लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस स्त्री के साथ व्यभिचार कर चुका। अगर तेरी दायीं आँख तुझसे पाप करवा रही है, तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे।” (मत्ती 5:27-29) उस समय यीशु के चेले रोमी हुकूमत के अधीन रहते थे और रोमी लोग अनैतिक ज़िंदगी जीते थे। उन्हें ऐसे नाटक देखने का शौक था, जिनमें गंदे सीन और गंदी भाषा भरी पड़ी थी। इसलिए यीशु ने अपने चेलों को प्यार से समझाया कि वे ऐसी कोई भी चीज़ न देखें जिससे उनके लिए सही काम करना मुश्किल हो जाए!
13, 14. आप अपने बच्चों को गंदा मनोरंजन करने से कैसे रोक सकते हैं?
13 माता-पिता होने के नाते आप समझ से काम लेकर अपने बच्चों को ऐसे काम करने से रोक सकते हैं जिससे परमेश्वर नाखुश होता है। दुख की बात है कि आज छोटे-छोटे बच्चों को भी पोर्नोग्राफी यानी गंदी तसवीरें और दूसरी गंदी चीज़ें देखने को मिलती हैं। आपको अपने बच्चों को यह तो बताना ही है कि गंदी चीज़ें देखना गलत है। लेकिन उनकी हिफाज़त करने के लिए आप और भी कुछ कर सकते हैं। खुद से पूछिए, ‘क्या मेरे बच्चे जानते हैं कि गंदी तसवीरें या गंदे वीडियो क्यों इतने खतरनाक हैं? क्या बात उन्हें ऐसी तसवीरें देखने के लिए लुभा सकती है? क्या मेरे बच्चे मुझसे किसी भी बारे में खुलकर बात कर सकते हैं, तब भी जब वे गंदी तसवीरें या गंदे वीडियो देखने के लिए लुभाए जाते हैं?’ अगर आपके बच्चे छोटे हैं, तब भी आप उनसे कह सकते हैं, “अगर आपको इंटरनेट पर कभी कोई गंदी तसवीर दिखायी दे और आपको उसे और देखने का मन करे, तो मुझसे बेझिझक आकर बात करना। ज़रा भी डरना या शर्माना मत। मैं आपकी मदद करूँगा।”
14 मनोरंजन चुनते वक्त ध्यान दीजिए कि आप अपने बच्चों के लिए कैसे एक अच्छी मिसाल रख सकते हैं। प्रानास, जिसका ज़िक्र पहले किया गया है, कहता है, “आप बहुत सारी चीज़ों के लिए बहुत कुछ कह सकते हो। लेकिन आप क्या करते हो, बच्चे उस पर गौर करते हैं और फिर वैसा ही करते हैं।” अगर आप हमेशा मनोरंजन के लिए ऐसा संगीत, फिल्में और किताबें चुनें जो अच्छी हों, तो शायद आपके बच्चे भी वैसा ही करेंगे।—रोमि. 2:21-24.
यहोवा आपकी मदद करेगा
15, 16. (क) आप क्यों यकीन कर सकते हैं कि यहोवा बच्चों को सिखाने में आपकी मदद करेगा? (ख) अगले लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?
15 जब मानोह ने अपने बेटे की परवरिश करने के लिए यहोवा से मदद माँगी, तब क्या हुआ? “मानोह की यह बात परमेश्वर ने सुन ली।” (न्यायि. 13:9) माता-पिताओ, यहोवा आपकी प्रार्थनाएँ भी सुनेगा। वह बच्चों को सिखाने में आपकी मदद करेगा। और आप प्यार, नम्रता और समझ से काम लेकर अपने बच्चों की परवरिश कर सकते हैं।
16 जैसे यहोवा छोटे बच्चों को सिखाने में माता-पिताओं की मदद करता है, वैसे ही वह नौजवानों को सिखाने में भी उनकी मदद कर सकता है। अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि जब आप अपने नौजवान को यहोवा की सेवा करना सिखाते हैं, तो आप कैसे यीशु की तरह प्यार, नम्रता और समझ से काम ले सकते हैं?
^ पैरा. 2 इस लेख में नन्हे-मुन्नों से लेकर 12 साल की उम्र तक के बच्चों की बात की गयी है।
^ पैरा. 5 बाइबल सिखाती है कि अनुशासन देने का मतलब है सलाह देना, सिखाना, सुधारना और कभी-कभी तो सज़ा भी देना। माता-पिताओं को बच्चों को प्यार से अनुशासन देना चाहिए, कभी-भी गुस्से में नहीं।
^ पैरा. 7 दी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक, यीशु के समय में बच्चे अपने पिता को अब्बा कहकर पुकारते थे। इस शब्द से प्यार और आदर झलकता था।