इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अपने नौजवानों को यहोवा की सेवा करना सिखाइए

अपने नौजवानों को यहोवा की सेवा करना सिखाइए

“यीशु डील-डौल और बुद्धि में बढ़ता और तरक्की करता गया और दिनोंदिन उस पर परमेश्वर की आशीष और लोगों का अनुग्रह बढ़ता गया।”—लूका 2:52.

गीत: 41, 11

1, 2. (क) कुछ नौजवानों के माता-पिता किस बात की चिंता करते हैं? (ख) क्या करने से मसीही नौजवानों के लिए उनकी यह उम्र एक अनमोल तोहफा साबित हो सकती है?

माता-पिताओं की ज़िंदगी में खुशियों भरे बहुत-से पल आते हैं। इनमें से एक पल वह होता है, जब उनके बच्चे बपतिस्मा लेते हैं। बेरनीसी नाम की एक बहन के चार बच्चे हैं। उन चारों ने 14 साल की उम्र से पहले ही बपतिस्मा ले लिया। बहन कहती है, “उस पल हमारा दिल भर आया। हम इस बात से बेहद खुश थे कि हमारे बच्चे यहोवा की सेवा करना चाहते हैं। लेकिन हम यह भी जानते थे कि इस उम्र में हमारे बच्चों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।” अगर आपके बच्चे जवानी की दहलीज़ पर कदम रखनेवाले हैं या वे नौजवान * हैं, तो शायद आपकी भी यही चिंता हो।

2 बच्चों के एक विशेषज्ञ का कहना है, ‘किशोरावस्था, बच्चों और माता-पिताओं दोनों के लिए मुश्किल हो सकती है। कुछ माता-पिता सोचते हैं कि उनके नौजवान बच्चे बेतुकी बातें करते हैं या अब भी उनमें बचपना है, जबकि ऐसा है नहीं। नौजवान कुछ नया करना चाहते हैं, उनमें गहरी भावनाएँ होती हैं और उन्हें दोस्तों की ज़रूरत होती है।’ इसका मतलब, आपके नौजवान बच्चे यहोवा के साथ करीबी दोस्ती कायम कर सकते हैं। वे प्रचार सेवा में अपनी काबिलीयत निखार सकते हैं, परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा करने का अपना इरादा मज़बूत कर सकते हैं। यही नहीं, वे यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने का और उसकी आज्ञा मानने का खुद फैसला ले सकते हैं। जी हाँ, वे परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करते रह सकते हैं। ऐसा करने पर जवानी के दिन उनके लिए एक अनमोल तोहफा साबित हो सकते हैं। कुछ ऐसा ही यीशु ने किया था, जब वह एक नौजवान था। (लूका 2:52 पढ़िए।) लेकिन माता-पिता होने के नाते आप क्या कर सकते हैं? आप अपने नौजवान बच्चों को यहोवा की सेवा करना कैसे सिखा सकते हैं? गौर कीजिए कि यीशु ने कैसे अपने चेलों से प्यार किया, उनके साथ नम्रता से पेश आया और समझ से काम लिया। और देखिए कि आप अपने नौजवान बच्चों को यहोवा की सेवा करना सिखाते वक्‍त कैसे ये गुण दिखा सकते हैं।

दोस्त बनकर मदद कीजिए

3. प्रेषित यीशु को अपना दोस्त क्यों मानते थे?

3 यीशु अपने प्रेषितों का सिर्फ मालिक ही नहीं था। वह उनका दोस्त भी था। (यूहन्ना 15:15 पढ़िए।) बाइबल के ज़माने में, आम तौर पर एक मालिक अपने दासों से अपनी सोच और अपनी भावनाओं के बारे में बात नहीं करता था। लेकिन यीशु ने अपने प्रेषितों के साथ दासों जैसा बरताव नहीं किया। वह उनसे प्यार करता था और उनके साथ समय बिताता था। यीशु को उन्हें अपनी दिल की बातें बताना अच्छा लगता था। और जब उसके प्रेषित उसे बताते थे कि वे क्या सोच रहे हैं और कैसा महसूस कर रहे हैं, तो वह ध्यान से उनकी सुनता था। (मर. 6:30-32) इस तरह की बातचीत की वजह से यीशु और उसके प्रेषित करीबी दोस्त बन गए। और प्रेषित परमेश्वर की सेवा में मिलनेवाली ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार हो पाए।

4. माता-पिताओ, आप अपने बच्चों के दोस्त कैसे बन सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

4 माइकल नाम के भाई के दो बच्चे हैं। वह कहता है, “माता-पिता होने के नाते हम अपने बच्चों के हमउम्र तो नहीं बन सकते, लेकिन हम उनके दोस्त ज़रूर बन सकते हैं।” दोस्त एक-दूसरे के साथ वक्‍त बिताते हैं। इसलिए शायद आपको नौकरी या दूसरी चीज़ों के बजाय अपने बच्चों को ज़्यादा वक्‍त देना पड़े। इस बारे में आपको गंभीरता से सोचना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए। अकसर दोस्तों की पसंद एक-जैसी होती है। इसलिए जानिए कि आपके नौजवान बच्चों को क्या पसंद है, जैसे उनका मनपसंद संगीत कौन सा है, उन्हें कैसी फिल्में देखना पसंद है या कौन-से खेल पसंद हैं। फिर उन्हें जिन चीज़ों में मज़ा आता है, उनके साथ मिलकर उनका मज़ा लेने की कोशिश कीजिए। इटली की रहनेवाली ईलारीआ कहती है, “मैं जिस तरह का संगीत सुनती थी, मेरे मम्मी-पापा ने उसमें दिलचस्पी ली। मेरे पापा मेरे सबसे अच्छे दोस्त बन गए। मैं उनसे नाज़ुक मसलों पर भी खुलकर बात कर पाती थी।” जब आप अपने बच्चों के दोस्त बनते हैं और यहोवा का दोस्त बनने के लिए उनकी मदद करते हैं, तो इससे आपका अपने बच्चों पर अधिकार कम नहीं हो जाता। (भज. 25:14) इसके बजाय, आपके बच्चे यह देख पाएँगे कि आप उनसे प्यार करते हैं और उनकी इज़्ज़त करते हैं। और वे बेझिझक किसी भी मसले पर आपसे बात कर पाएँगे।

5. यहोवा की सेवा करते वक्‍त यीशु के चेले कैसे खुश रह सकते थे?

5 यीशु जानता था कि अगर उसके चेलों में यहोवा की सेवा करने का जोश होगा और वे उसमें खुद को व्यस्त रखेंगे, तो वे वाकई खुश रहेंगे। इसलिए उसने उन्हें प्रचार में कड़ी मेहनत करने के लिए उकसाया। और वादा किया कि वह इस काम में उनकी मदद करेगा।—मत्ती 28:19, 20.

6, 7. माता-पिता, यहोवा की सेवा से जुड़े कामों की अहमियत समझने में कैसे अपने बच्चों की मदद कर सकते हैं?

6 आप चाहते हैं कि आपका बच्चा यहोवा के करीब बना रहे। और यहोवा चाहता है कि आप उन्हें समझाएँ और सिखाएँ। ऐसा करने का अधिकार उसने आपको दिया है। (इफि. 6:4) इसलिए यह आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि आप अपने बच्चों को सिखाते रहें। ज़रा सोचिए, आप इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि आपका बच्चा स्कूल जाए। क्योंकि आप जानते हैं कि पढ़ाई उसके लिए ज़रूरी है और आप चाहते हैं कि वे नयी-नयी चीज़ें करना सीखें। उसी तरह, आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे सभाओं में जाएँ, सम्मेलनों में जाएँ और पारिवारिक उपासना में हिस्सा लें क्योंकि यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा उनकी ज़िंदगी बचा सकती है। इसलिए उनकी मदद कीजिए कि वे यहोवा के बारे में नयी-नयी चीज़ें सीखें और उन्हें यह भी समझाइए कि यहोवा ही उन्हें बुद्धिमान बना सकता है। (नीति. 24:14) अपने बच्चों को प्रचार में लगातार जाना सिखाइए। जिस तरह यीशु ने अपने चेलों की मदद की, उसी तरह आप भी अपने बच्चों की मदद कीजिए ताकि उन्हें परमेश्वर का वचन दूसरों को सिखाने में खुशी मिले।

7 अध्ययन करना, सभाओं में जाना और प्रचार में जाना कुछ ऐसे काम हैं जो यहोवा की सेवा से जुड़े हैं। अगर नौजवान इन कामों के लिए समय तय कर लें और इन्हें नियमित तौर पर करते रहें, तो उन्हें फायदा होगा। दक्षिण अफ्रीका की रहनेवाली एरिन कहती है, “हम बच्चे अकसर बाइबल अध्ययन करने, सभाओं और प्रचार में जाने के नाम पर बहाने बनाते थे। कभी-कभी तो हम जानबूझकर कुछ ऐसा करते थे जिससे पारिवारिक अध्ययन रुक जाए। लेकिन हमारे माता-पिता ने हार नहीं मानी।” यह बहन अपने माता-पिता का बहुत एहसान मानती है क्योंकि उन्होंने इन कामों की अहमियत समझने में उसकी मदद की। अब जब कभी वह किसी सभा में या प्रचार में नहीं जा पाती, तो वह जल्द-से-जल्द इन कामों में फिर से लग जाने के लिए बेताब रहती है।

नम्र बनिए

8. (क) यीशु ने कैसे दिखाया कि वह नम्र था? (ख) यीशु की नम्रता की मिसाल से चेलों को कैसे मदद मिली?

8 सिद्ध होने के बावजूद यीशु ने नम्रता से अपने चेलों के सामने कबूल किया कि उसे यहोवा की मदद की ज़रूरत है। (यूहन्ना 5:19 पढ़िए।) क्या यीशु के ऐसा कहने से चेलों ने उसकी इज़्ज़त करना कम कर दिया? बिलकुल नहीं। जितना ज़्यादा उन्होंने यीशु को देखा कि वह यहोवा की मदद पर निर्भर रहता है, उतना ही ज़्यादा चेलों ने उस पर भरोसा किया। आगे चलकर, चेले भी यीशु की नम्रता की मिसाल पर चले।—प्रेषि. 3:12, 13, 16.

9. जब आप अपनी गलती मान लेते हैं और माफी माँगते हैं, तो इससे आपके बच्चों पर क्या असर होता है?

9 हम यीशु की तरह सिद्ध नहीं हैं। हम असिद्ध हैं और गलतियाँ करते हैं। इसलिए हमें नम्र बनना चाहिए। कबूल कीजिए कि ऐसी बहुत-सी चीज़ें हैं जो आप नहीं कर सकते। और अपनी गलतियाँ भी मानिए। (1 यूह. 1:8) इससे आपका बेटा या बेटी आपकी और भी ज़्यादा इज़्ज़त करेंगे और यह सीखेंगे कि उन्हें अपनी गलती माननी चाहिए। आप किसकी ज़्यादा इज़्ज़त करते हैं? एक ऐसे मालिक की जो अपनी गलती मान लेता है या उसकी जो कभी माफी नहीं माँगता? रोज़मेरी नाम की एक बहन के तीन बच्चे हैं। वह कहती है कि अगर उससे और उसके पति से कोई गलती हो जाए, तो वे फौरन उसे मान लेते थे। वह बताती है, “इस वजह से हमारे बच्चे जब किसी परेशानी में होते थे, तो वे हमसे खुलकर बात कर पाते थे। हम जानते थे कि हम उनकी परेशानियों का सबसे अच्छा हल उन्हें नहीं बता सकते। इसलिए हम उन्हें बाइबल पर आधारित किताबों-पत्रिकाओं में खोजबीन करने के लिए कहते थे। और हम उनके साथ मिलकर प्रार्थना भी करते थे।”

10. जब यीशु अपने चेलों को कोई आज्ञा देता था, तब भी उसने कैसे नम्रता दिखायी?

10 यीशु के पास यह अधिकार था कि वह सीधे-सीधे अपने चेलों को आज्ञा दे सकता था कि उन्हें क्या करना चाहिए। फिर भी यीशु ने नम्रता दिखायी और उन्हें बताया कि वह यह आज्ञा क्यों दे रहा है। उदाहरण के लिए, उसने उनसे सिर्फ इतना नहीं कहा कि उन्हें पहले परमेश्वर के राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज करनी चाहिए, बल्कि उसने यह भी बताया कि उन्हें ऐसा क्यों करना है। उसने उनसे कहा, “ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।” जब यीशु ने उनसे कहा कि वे दूसरों पर दोष लगाना बंद करें तो उसने उन्हें समझाया, “ताकि तुम पर दोष न लगाया जाए। इसलिए कि जैसे तुम दोष लगाते हो, वैसे ही तुम पर भी दोष लगाया जाएगा।”—मत्ती 6:31–7:2.

11. जब आप अपने नौजवान को यह समझाते हैं कि आपने फलाँ नियम क्यों बनाया है या फलाँ फैसला क्यों लिया है, तो उसे क्या फायदा होगा?

11 जब भी मुमकिन हो, अपने बेटे या बेटी को समझाइए कि आपने फलाँ नियम क्यों बनाया है या फलाँ फैसला क्यों लिया है। जब वह उसकी वजह समझ जाता है, तो मुमकिन है कि वह आपकी बात मानेगा। बेरी नाम के एक भाई के चार बच्चे हैं। वह बताता है, “बच्चों को वजह बताने से वे आप पर भरोसा कर पाते हैं।” बच्चे यह बात समझ पाएँगे कि आपने कोई नियम या फैसला इसलिए नहीं लिया क्योंकि आपके पास अधिकार है। बल्कि इसलिए क्योंकि ऐसा करने की कोई वजह है। यह भी याद रखिए कि आपका बेटा या बेटी अब छोटे बच्चे नहीं रहे। वे खुद के बारे में सोचना सीख रहे हैं और अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं। (रोमि. 12:1) बेरी बताता है, “नौजवान बच्चों को यह सीखना चाहिए कि वे भावनाओं में बहकर नहीं बल्कि सोच-समझकर ऐसे फैसले लें जिसके पीछे कोई वजह हो।” (भज. 119:34) जब आप नम्र होकर अपने फैसलों की वजह बताते हैं, तो आपका बच्चा भी अपने फैसले लेना सीख पाएगा। और वह जान पाएगा कि आप उसकी इज़्ज़त करते हैं। वह यह भी जान लेगा कि आप समझते हैं कि वह बड़ा हो रहा है।

समझ से काम लीजिए

12. यीशु के पास अच्छी समझ थी, इससे वह पतरस की कैसे मदद कर पाया?

12 यीशु के पास अच्छी समझ थी और वह जानता था कि उसके चेलों को कब मदद चाहिए। उदाहरण के लिए, जब यीशु ने अपने चेलों को बताया कि वह मार डाला जाएगा, तो पतरस ने उससे कहा कि वह खुद पर दया करे। यीशु को मालूम था कि पतरस उससे प्यार करता है। लेकिन वह यह भी जानता था कि जिस तरह से पतरस सोच रहा है, वह गलत है। यीशु ने उसकी और दूसरे चेलों की कैसे मदद की? पहले यीशु ने पतरस की सोच सुधारी। फिर उसने बताया कि जब यहोवा की इच्छा पूरी करना बहुत मुश्किल हो, उस वक्‍त अगर कोई उसकी इच्छा पूरी करने से पीछे हटेगा, तो उसका क्या अंजाम होगा। यीशु ने यह भी कहा कि जो खुदगर्ज़ नहीं हैं, यहोवा उन्हें इनाम देगा। (मत्ती 16:21-27) पतरस ने यीशु की इस बात से सबक सीखा।—1 पत. 2:20, 21.

13, 14. (क) किस बात से पता चलता है कि आपके बेटे या बेटी को अपना विश्वास मज़बूत करना है? (ख) आप यह कैसे जान सकते हैं कि आपके बेटे या बेटी की क्या ज़रूरत है?

13 आपके नौजवान को किस मामले में मदद चाहिए, इस बारे में अच्छी समझ के लिए आप यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं। (भज. 32:8) हो सकता है आप यह देखें कि अब वह पहले जितना खुश नहीं रहता या वह भाई-बहनों में गलतियाँ ढूँढ़ता रहता है। शायद आपको लगे कि वह आपसे कुछ छिपा रहा है। तो फौरन यह मत मान बैठिए कि आपका बच्चा चोरी-छिपे कुछ गलत काम कर रहा है। * लेकिन उसकी परेशानी को नज़रअंदाज़ भी मत कीजिए या न ही इस उम्मीद में रहिए कि परेशानी अपने आप दूर हो जाएगी। हो सकता है कि आपको उसकी मदद करनी पड़े ताकि उसका विश्वास मज़बूत हो।

मंडली में अच्छे दोस्त बनाने में अपने बच्चों की मदद कीजिए (पैराग्राफ 14 देखिए)

14 अपने बेटे या बेटी की मदद करने के लिए उससे प्यार से और अदब से बात कीजिए। यह ऐसा है मानो आप एक कुँए से पानी निकाल रहे हैं। अगर आप जल्दी-जल्दी पानी निकालेंगे, तो आप उतना पानी नहीं निकाल पाएँगे जितना आपको चाहिए। उसी तरह, अगर आप सवाल पूछते वक्‍त बेसब्र हो जाएँगे और उससे बात करने के लिए ज़बरदस्ती करेंगे, तो आप उसके मन की बात कभी नहीं जान पाएँगे। (नीतिवचन 20:5 पढ़िए।) ईलारीआ, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहती है कि जब वह नौजवान थी, तो वह अपने स्कूल के बच्चों के साथ समय बिताना चाहती थी। लेकिन उसे मालूम था कि यह गलत है। उसके माता-पिता समझ गए कि वह किसी बात को लेकर परेशान है। ईलारीआ कहती है, “एक शाम मेरे माता-पिता ने कहा कि उन्हें मैं कुछ परेशान-सी लग रही हूँ। और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या बात है। मैं रो पड़ी, मैंने उन्हें सारी बात बतायी और उनसे मदद माँगी। उन्होंने मुझे गले लगाया और कहा कि वे मुझे समझते हैं। और वादा किया कि वे मेरी मदद करेंगे।” ईलारीआ के माता-पिता ने फौरन उसकी मदद की, ताकि वह मंडली में अच्छे दोस्त बना सके।

15. समझाइए कि कैसे यीशु ने लोगों के साथ पेश आते वक्‍त समझ से काम लिया।

15 यीशु ने अपने चेलों के अच्छे गुणों पर ध्यान देकर भी समझदारी दिखायी। जैसे, जब नतनएल को पता चला कि यीशु नासरत से है तो उसने कहा, “भला नासरत से भी कुछ अच्छा निकल सकता है?” (यूह. 1:46) अगर आप वहाँ होते, तो आप नतनएल के बारे में क्या सोचते? क्या यह सोचते कि वह नुकताचीनी कर रहा है या भेदभाव कर रहा है या उसमें विश्वास नहीं है? लेकिन यीशु ने ऐसा नहीं सोचा। उसने समझ से काम लिया और वह जानता था कि नतनएल ईमानदार है। इसलिए यीशु ने कहा, “देखो, यह एक सच्चा इसराएली है जिसमें कोई कपट नहीं।” (यूह. 1:47) यीशु लोगों के दिल पढ़ सकता था। इस काबिलीयत की मदद से उसने लोगों में अच्छे गुण देखने की कोशिश की।

16. आप अपने बच्चे को अच्छे गुण बढ़ाने में कैसे मदद कर सकते हैं?

16 हालाँकि आप यीशु की तरह दिल नहीं पढ़ सकते, लेकिन परमेश्वर की मदद से आप अपनी समझ बढ़ा सकते हैं। इस काबिलीयत की मदद से आप अपने बच्चे में अच्छे गुण देख सकते हैं। अगर आपका बच्चा आपको दुखी करता है, तो कभी उससे यह मत कहिए कि वह बुरा है या आपके लिए परेशानी खड़ी करता है। उसके बारे में कभी ऐसा सोचिए भी मत। इसके बजाय, उससे कहिए कि उसमें कई अच्छे गुण हैं और आपको यकीन है कि वह सही काम करना चाहता है। गौर कीजिए कि वह खुद में सुधार लाने के लिए क्या कर रहा है और उसकी तारीफ कीजिए। जब भी मुमकिन हो, उसे ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ देकर उसकी मदद कीजिए ताकि वह अपने अच्छे गुणों को और बढ़ा सके। यीशु ने अपने चेलों के साथ ऐसा ही किया था। नतनएल (वह बरतुलमै के नाम से भी जाना जाता था) से मिलने के डेढ़ साल बाद, यीशु ने उसे एक अहम ज़िम्मेदारी दी। उसने नतनएल को प्रेषित बनाया। नतनएल ने भी यीशु के दिए काम को ईमानदारी से किया। (लूका 6:13, 14; प्रेषि. 1:13, 14) अपने नौजवान को यह महसूस मत कराइए कि वह जो भी करता है काफी नहीं है। बल्कि उसकी तारीफ कीजिए और उसका हौसला बढ़ाइए। उसे यकीन दिलाइए कि वह आपको और यहोवा को खुश कर सकता है। और अपनी काबिलीयतों से यहोवा की सेवा कर सकता है।

अपने बच्चों को सिखाने से आपको बहुत खुशी मिलेगी

17, 18. अगर आप यहोवा की सेवा करने के लिए अपने बच्चों को सिखाते रहें, तो इससे क्या फायदा होगा?

17 अपने बच्चों की परवरिश करते वक्‍त, आप शायद कभी-कभी प्रेषित पौलुस की तरह महसूस करें। उसने बहुत-से लोगों को यहोवा के बारे में सिखाया। इस मायने में वे उसके बच्चे थे। वह उनसे बहुत प्यार करता था। इसलिए उसके लिए यह सोचना भी दुख की बात थी कि उनमें से कुछ लोग यहोवा की सेवा करना छोड़ दें। (1 कुरिं. 4:15; 2 कुरिं. 2:4) विक्टर नाम का भाई जिसने तीन बच्चों की परवरिश की, कहता है, ‘जब मेरे बच्चे नौजवान थे, वह समय आसान नहीं था। पर हमने साथ मिलकर जो अच्छे पल बिताए, उनके आगे यह मुश्किलें कुछ भी नहीं थीं। यहोवा की मदद से हम अपने बच्चों के अच्छे दोस्त बन पाए और हमने उनके साथ बहुत मज़ेदार समय बिताया।’

18 माता-पिताओ, आप अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं इसलिए आप उन्हें सिखाने में कड़ी मेहनत करते हैं। कभी हार मत मानिए। ज़रा सोचिए उस वक्‍त आपको कितनी खुशी मिलेगी, जब आपके बच्चे यहोवा की सेवा करने का फैसला करेंगे और वफादारी से ऐसा करते रहेंगे।—3 यूह. 4.

^ पैरा. 1 इस लेख में शब्द नौजवान का मतलब है, करीब 13 से 19 साल के बच्चे।

^ पैरा. 13 माता-पिता, 1 सितंबर, 2007 की प्रहरीदुर्ग का पेज 30, पैराग्राफ 12 और क्वेश्चन्स यंग पीपल आस्क—आंसर्स दैट वर्क, वॉल्यूम 2 के पेज 136-141 पढ़ सकते हैं।