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ऐसे संसार में अपने बच्चों की परवरिश करना जिसमें लोगों को हर मामले में खुली छूट दी जाती है

ऐसे संसार में अपने बच्चों की परवरिश करना जिसमें लोगों को हर मामले में खुली छूट दी जाती है

ऐसे संसार में अपने बच्चों की परवरिश करना जिसमें लोगों को हर मामले में खुली छूट दी जाती है

क्या आपने कभी एक बच्चे को किसी ऐसे खिलौने की ज़िद करते देखा है, जिसे खरीदने से उसके माँ-बाप ने इनकार कर दिया है? या क्या आपने ऐसे बच्चे को देखा है, जो खेलने-कूदने के लिए उतावला हो रहा है, जबकि उसके मम्मी-पापा ने उससे कहा है कि “चुपचाप खड़े रहो”? आप समझ सकते हैं कि इस तरह के हालात में माँ-बाप वही करना चाहते हैं, जिससे बच्चे का भला हो। फिर भी, देखा गया है कि माँ-बाप अकसर अपने बच्चे की ज़िद के आगे घुटने टेक देते हैं। बच्चा अपने रोने-धोने और चीखने-चिल्लाने के ज़रिए अपने माँ-बाप की नाक में इतना दम कर देता है कि उनकी ‘ना,’ ‘हाँ’ में बदल जाती है।

बहुत-से माता-पिताओं को लगता है कि बच्चे की अच्छी परवरिश करने का मतलब है, उसकी लगभग हर फरमाइश पूरी करना। मिसाल के लिए, अमरीका में 12 से 17 साल के 750 बच्चों का सर्वे लिया गया था, जिसमें उनसे पूछा गया कि जब उनके मम्मी-पापा किसी बात के लिए इनकार करते हैं, तो वे क्या करते हैं। इस पर करीब 450 बच्चों ने कहा कि वे ज़िद करने लगते हैं। और उनमें से करीब 413 बच्चों ने कहा कि उनकी यह तरकीब काफी कामयाब रही है। उनके माता-पिताओं को शायद लगे कि इस तरह बच्चों को छूट देकर वे अपना प्यार जताते हैं। लेकिन क्या यह सच है?

पुराने ज़माने के एक नीतिवचन पर गौर कीजिए, जिसमें एक बड़े पते की बात कही गयी है: “जो बचपन से अपने नौकर को सिर चढ़ाता, वह अंत में उसे निकम्मा बना देगा।” (नीतिवचन 29:21, बुल्के बाइबिल) यह सच है कि आपका बच्चा नौकर नहीं है, मगर क्या आप इस बात से सहमत नहीं होंगे कि यही सिद्धांत बच्चों की परवरिश पर भी लागू होता है? अगर आप बच्चों को सिर चढ़ाकर रखेंगे और उनकी हर फरमाइश पूरी करेंगे, तो वे बड़े होकर ‘निकम्मे’ बन सकते हैं। यानी वे बिगड़ सकते हैं, अड़ियल और एहसानफरामोश इंसान बन सकते हैं।

इसके बिलकुल उलट, बाइबल माता-पिताओं को यह सलाह देती है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये।” (नीतिवचन 22:6) समझदार माता-पिता इस सलाह पर चलते हैं। कैसे? वे सोच-समझकर अपने बच्चों के लिए नियम बनाते हैं, उनके बारे में अपने बच्चों को साफ-साफ बताते हैं और फिर दृढ़ता के साथ उन्हें लागू करते हैं। वे यह नहीं सोचते कि बच्चों की हर माँग पूरी करना, प्यार दिखाने का एक तरीका है। और ना ही वे बच्चों के रोने-धोने, ज़िद करने या चीखने-चिल्लाने की वजह से उनकी बात मान लेते हैं। इसके बजाय, वे यीशु की इस बुद्धि-भरी सलाह पर चलते हैं: “तुम्हारी बात हां की हां, या नहीं की नहीं हो।” (मत्ती 5:37) मगर बच्चों को तालीम देने में क्या शामिल है? यह जानने के लिए आइए एक ज़बरदस्त उदाहरण पर गौर करें।

“जैसे वीर के हाथ में तीर”

बाइबल ने माँ-बाप और बच्चे के बीच के रिश्‍ते को समझाने के लिए जिस उदाहरण का इस्तेमाल किया है, वह दिखाता है कि बच्चे को अपने माँ-बाप से मार्गदर्शन पाने की सख्त ज़रूरत है। भजन 127:4, 5 कहता है: “जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं। क्या ही धन्य है वह पुरुष जिस ने अपने तर्कश को उन से भर लिया हो!” बच्चे तीर की तरह और माता-पिता एक वीर योद्धा की तरह होते हैं। जैसे एक वीर योद्धा जानता है कि उसका तीर अपने आप निशाने पर नहीं लगता, वैसे ही प्यार करनेवाले माता-पिता को एहसास रहता है कि बच्चों की परवरिश अपने आप नहीं होती। हर माँ-बाप का अरमान होता है कि उनका तीर “निशाने” पर लगे, यानी उनके बच्चे बड़े होकर ज़िम्मेदार इंसान बनें और खुशहाल ज़िंदगी जीएँ। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे बुद्धिमान बनें, अपनी ज़िंदगी में सही चुनाव करें, बेवजह की समस्याओं से बचें और बढ़िया-से-बढ़िया लक्ष्य हासिल करें। लेकिन सिर्फ चाहने से कुछ नहीं होता, माँ-बाप को मेहनत करने की ज़रूरत है।

अगर एक तीरंदाज़ चाहता है कि उसका तीर निशाने पर लगे, तो उसे क्या करने की ज़रूरत है? उसे ध्यान देने की ज़रूरत है कि तीर अच्छी तरह से तैयार किया गया हो और उसकी हिफाज़त की गयी हो। फिर उसे ध्यान से निशाना साधना चाहिए और पूरा ज़ोर लगाकर तीर चलाना चाहिए। उसी तरह, अगर हम अपने बच्चों की परवरिश ठीक से करना चाहते हैं, तो हमें उनको अच्छी तरह से तैयार करना होगा, उनकी हिफाज़त करनी होगी और उन्हें सही राह दिखाना होगा। आइए हम एक-एक करके इन तीनों पहलुओं पर चर्चा करें।

तीर को अच्छी तरह से तैयार करना

पुराने ज़माने में तीर को बहुत ही सावधानी से तैयार किया जाता था। तीर का दंड शायद हलकी लकड़ी का बना होता था। उसे हाथ से काटकर और छीलकर जितना हो सके, उतना सीधा किया जाता था। उसकी नोक बहुत ही तेज़ और पैनी बनायी जाती थी। दंड के दूसरे छोर पर पंख लगाए जाते थे, ताकि हवा में उड़ते वक्‍त वह एक सीध में जा सके।

माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे उस तीर की तरह सीधी चाल चलें और सही राह से कभी न भटकें। इसके लिए ज़रूरी है कि वे अपने बच्चों की बड़ी-बड़ी खामियों को नज़रअंदाज़ न करें। इसके बजाय, माँ-बाप को अपने बच्चों की उन खामियों को दूर करने में प्यार से उनकी मदद करनी चाहिए। ऐसा करने में काफी मेहनत लगती है, क्योंकि “लड़के के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है।” (नीतिवचन 22:15) इसलिए बाइबल माता-पिताओं को सलाह देती है कि वे अपने बच्चों को अनुशासन दें। (इफिसियों 6:4, NHT) इसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चे की सोच को सुधारने और उसकी शख्सियत को निखारने के लिए अनुशासन देना निहायत ज़रूरी है।

इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि नीतिवचन 13:24 (NHT) कहता है: “जो अपने पुत्र को छड़ी नहीं मारता, वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम करता है, वह यत्न से उसे अनुशासित करता है।” यहाँ अनुशासन की छड़ी इस्तेमाल करने का मतलब है, बच्चे को सुधारना, फिर चाहे इसके लिए कोई भी तरीका क्यों न अपनाया जाए। प्यार से अनुशासन देने के ज़रिए, माता-पिता अपने बच्चे की गलतियों को सुधारने की कोशिश करते हैं, इससे पहले कि ये उसके दिल में जड़ पकड़ लें और बाद में उसकी ज़िंदगी को मुश्‍किलों से भर दें। वाकई, अगर माँ-बाप अपने बच्चे को अनुशासन नहीं देंगे, तो यह दिखाएगा कि वे उससे प्यार नहीं करते। दूसरी तरफ, अगर माता-पिता अनुशासन देंगे, तो इससे ज़ाहिर होगा कि उन्हें अपने बच्चे से बेहद प्यार है।

अनुशासन देने में सिर्फ बच्चे को नियम बताना और उन्हें तोड़ने पर उसे सज़ा देना ही शामिल नहीं है। इसमें बच्चे को यह समझाना भी शामिल है कि नियम क्यों बनाए गए हैं। बाइबल कहती है: “जो व्यवस्था का पालन करता वह समझदार सुपूत होता है।”—नीतिवचन 28:7.

तीरंदाज़ अपने तीर में जो पंख लगाते हैं, वे तीर को कमान से छूटने के बाद एक सीध में जाने में मदद देते हैं। उसी तरह, बाइबल की शिक्षाएँ, जो परिवार की शुरूआत करनेवाले परमेश्‍वर की तरफ से मिली हैं, बच्चों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन सकती हैं, जिससे कि घर छोड़ने के बाद भी वे उन पर बने रहें। नतीजा, उन्हें ज़िंदगी-भर फायदा होगा। (इफिसियों 3:14, 15) लेकिन माता-पिता ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे कि ये शिक्षाएँ उनके बच्चों की ज़िंदगी से जुड़ जाएँ?

यह जानने के लिए, ध्यान दीजिए कि मूसा के दिनों में परमेश्‍वर ने इस्राएल जाति के माता-पिताओं को क्या सलाह दी थी: “ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना।” (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) इस सलाह के मुताबिक, माता-पिताओं को दो काम करने की ज़रूरत है। पहला, उन्हें परमेश्‍वर के वचन में लिखी बातों को सीखने और खुद पर लागू करने की ज़रूरत है। इस तरह, उन्हें परमेश्‍वर के नियमों से लगाव पैदा करना चाहिए। (भजन 119:97) इसके बाद ही वे परमेश्‍वर की सलाह में बताए दूसरे काम को पूरा कर पाएँगे और वह है, परमेश्‍वर के नियम अपने बच्चे को ‘समझाकर सिखाना।’ परमेश्‍वर के नियम समझाकर सिखाने का मतलब है, असरदार तरीके से ये नियम सिखाना और उन्हें बार-बार दोहराना, ताकि बच्चों के दिल में यह बात बैठ जाए कि परमेश्‍वर के नियम कितनी अहमियत रखते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि बच्चों को बाइबल की शिक्षाएँ सिखाने या प्यार से अनुशासन देकर उनकी बड़ी-बड़ी खामियाँ सुधारने की सलाह आज भी उतनी ही कारगर है, जितनी कि पहले थी। ये कुछ अहम तरीके हैं, जिनसे आप अपने अनमोल “तीरों” यानी अपने बच्चों को तैयार कर सकते हैं, ताकि वे बड़ों की दुनिया में कदम रखते वक्‍त सही राह पर बने रहें।

तीर की हिफाज़त करना

आइए हम फिर से भजन 127:4, 5 में दर्ज़ उदाहरण पर एक नज़र डालें। वहाँ लिखा है कि तीरंदाज़ ने “अपने तर्कश को [तीरों] से भर लिया” है। एक बार जब तीर तैयार हो जाते थे, तो उन्हें हिफाज़त से रखने की ज़रूरत पड़ती थी। इसलिए तीरंदाज़ उन्हें तरकश में लेकर चलता है, ताकि वे खराब होने या टूटने से बचे रहें। एक दिलचस्पी की बात तो यह है कि बाइबल की एक भविष्यवाणी में मसीहा को एक चमकीला तीर बताया गया है, जिसे उसके पिता ने “अपने तरकश में छिपा लिया है।” (यशायाह 49:2, NHT) जी हाँ, यहोवा ने, जिसके जैसा प्यार करनेवाला पिता चिराग लेकर ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलेगा, अपने अज़ीज़ बेटे यीशु को हर खतरे से बचाया था। और ऐसा उसने तब तक किया जब तक कि भविष्यवाणी के मुताबिक मसीहा के मरने की घड़ी नहीं आ गयी। हालाँकि परमेश्‍वर ने अपने बेटे को मौत के मुँह में जाने दिया, फिर भी उसने मौत को हमेशा के लिए उसका नुकसान नहीं करने दिया। उसने अपने बेटे को दोबारा ज़िंदा करके स्वर्ग वापस बुला लिया और उसे अमर जीवन दिया।

उसी तरह, प्यार करनेवाले माता-पिताओं को अपने बच्चों की फिक्र रहती है और वे इस बुरे संसार के खतरों से उनकी हिफाज़त करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। इसी के चलते, माता-पिता अपने बच्चों को कुछ ऐसे कामों से दूर रहने को कह सकते हैं, जो आगे चलकर उनके बच्चों की बरबादी का सबब बन सकते हैं। मिसाल के लिए, समझदार माता-पिता इस सिद्धांत को बड़ी गंभीरता से लेते हैं: “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (1 कुरिन्थियों 15:33) अगर बच्चों को ऐसे लोगों की सोहबत से बचाकर रखा जाए, जो बाइबल के नैतिक उसूलों को नहीं मानते, तो बच्चे बहुत-से खतरों से बचे रहेंगे। यहाँ तक कि ऐसे खतरों से भी जिनकी वजह से उनकी जान जा सकती है।

हो सकता है, बच्चे हमेशा इस बात का एहसान न मानें कि उनके मम्मी-पापा ने उनकी हिफाज़त की है। यहाँ तक कि वे शायद गुस्सा करें, क्योंकि उनकी हिफाज़त करने के लिए आपको अकसर ‘ना’ कहना पड़ता है। बच्चों की परवरिश पर कई किताबें लिखनेवाली एक जानी-मानी लेखिका कहती है: ‘आप अपने बच्चों की हिफाज़त करने के लिए जो कुछ करते हैं, वे शायद अपनी बातों और व्यवहार से इसके लिए कदरदानी न दिखाएँ। फिर भी, यह एक सच है कि बच्चे चाहते हैं कि उनके मम्मी-पापा उनके लिए दिनचर्या बनाएँ और उनकी हिफाज़त करें। आप ऐसा कर सकते हैं, बशर्ते आप अपने अधिकार का इस्तेमाल करें और बच्चों को कैसे व्यवहार करना चाहिए, इस बारे में कुछ सीमाएँ बाँधें।’

जी हाँ, अपने बच्चों की ऐसी हर बात से हिफाज़त कीजिए, जिससे उनका चैन और उनकी मासूमियत छिन सकती है और परमेश्‍वर के सामने उनका अच्छा नाम खराब हो सकता है। ऐसा करना यह दिखाएगा कि आप उनसे बेहद प्यार करते हैं। और जब वे बड़े हो जाएँगे, तब वे समझ जाएँगे कि आप क्यों उनके लिए नियम बनाते हैं और तब वे आपकी प्यार-भरी हिफाज़त का दिल से एहसान मानेंगे।

तीर निशाने पर मारना

गौर कीजिए कि भजन 127:4, 5 में एक “वीर” का ज़िक्र किया गया है। तो क्या इसका यह मतलब है कि बच्चों की परवरिश में सिर्फ पिता की अहम भूमिका है? जी नहीं। इसके बजाय, इस उदाहरण में जो सिद्धांत दिया गया है, वह माँ-बाप दोनों पर लागू होता है। यहाँ तक कि उन माँओं या पिताओं पर भी, जो अकेले अपने बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा करते हैं। (नीतिवचन 1:8) शब्द “वीर” से पता चलता है कि कमान से तीर चलाने के लिए काफी ज़ोर लगाना पड़ता था। पुराने ज़माने में, कमान को कभी-कभी ताँबे से मढ़ दिया जाता था और एक सैनिक से कहा जाता था कि वह ‘धनुष खींचे।’ इसके लिए सैनिक कमान के बीच के हिस्से या एक छोर को पैर से दबाकर उसे मोड़ता था, ताकि उस पर डोरी बाँध सके। (यिर्मयाह 50:14, 29, बुल्के बाइबिल) ज़ाहिर-सी बात है कि तीर को निशाने पर मारने के लिए, कसकर बंधी कमान की डोरी को खींचने में काफी ताकत और मेहनत लगती थी!

उसी तरह, बच्चों की परवरिश करने में भी काफी मेहनत करने की ज़रूरत पड़ती है। जैसे एक तीर खुद-ब-खुद जाकर निशाने पर नहीं लग सकता, वैसे ही बच्चे खुद-ब-खुद बड़े होकर ज़िम्मेदार इंसान नहीं बन सकते। मगर अफसोस, आज बहुत-से माता-पिता बच्चों की परवरिश में ज़रूरी मेहनत नहीं करना चाहते। वे आसान तरीका चुनते हैं। नैतिकता और लैंगिकता के मामले में क्या सही है और क्या गलत, ये सब खुद अपने बच्चों को सिखाने के बजाय, वे उन्हें ये बातें टेलीविज़न, स्कूल और उनके हमउम्र साथियों से सीखने देते हैं। वे बच्चों को अपनी मनमर्ज़ी करने देते हैं। और जब उन्हें किसी बात के लिए अपने बच्चों को ‘ना’ कहना मुश्‍किल लगता है, तो वे ‘हाँ’ कह देते हैं। और ऐसा करने का यह बहाना बनाते हैं कि वे अपने बच्चों का दिल नहीं तोड़ना चाहते। लेकिन हकीकत में देखा जाए तो उनकी इस छूट की वजह से बच्चों को आगे चलकर बुरा अंजाम भुगतना पड़ता है।

बच्चों की परवरिश करना कोई आसान काम नहीं। परमेश्‍वर के वचन में दी हिदायतों को मानने के साथ-साथ, तन-मन से बच्चों को बड़ा करना काफी मेहनत का काम है। फिर भी, ऐसा करने का जो नतीजा निकलता है, वह बेशकीमती खज़ाने से भी बढ़कर होता है। माता-पिता (अँग्रेज़ी) पत्रिका कहती है: “अध्ययनों से पता चला है कि जो माँ-बाप प्यार से अपना अधिकार जताते हैं, यानी अपने बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ उनके संग सख्ती भी बरतते हैं, उनके बच्चे होनहार निकलते हैं। वे पढ़ाई में अव्वल होते हैं, दूसरों के साथ आसानी से घुल-मिल जाते हैं, खुद के बारे में अच्छा महसूस करते हैं और ज़्यादा खुश रहते हैं। दूसरी तरफ, जो माता-पिता हद-से-ज़्यादा ढील देते या सख्ती बरतते हैं, उनके बच्चों में ये सारे अच्छे गुण नहीं होते।”

परमेश्‍वर के वचन में दी हिदायतों के मुताबिक, साथ ही तन-मन से बच्चों को बड़ा करने का एक और बढ़िया नतीजा निकलता है। वह क्या है? लेख की शुरूआत में हमने नीतिवचन 22:6 के पहले भाग पर चर्चा की थी, जिसमें लिखा है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये।” इसी आयत के दूसरे भाग में दिल को छू लेनेवाली बात कही गयी है: “वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।” (नीतिवचन 22:6) क्या यह वचन इस बात की गारंटी देता है कि हमारी मेहनत ज़रूर रंग लाएगी? ज़रूरी नहीं। आपके बच्चे को आज़ाद मरज़ी के साथ बनाया गया है। इसलिए उसे हक है कि वह बड़ा होकर अपनी आज़ाद मरज़ी का इस्तेमाल करे। लेकिन हाँ, यह वचन माता-पिता को एक बात का यकीन ज़रूर दिलाता है। वह क्या?

यही कि अगर आप बाइबल की हिदायतों के मुताबिक अपने बच्चों को तालीम दें, तो आप उनके लिए एक बहुत ही बढ़िया माहौल बना रहे होंगे, जिसका शानदार नतीजा निकल सकता है। वह यह कि आपके बच्चे बड़े होकर खुश और संतुष्ट होंगे और ज़िम्मेदार इंसान बनेंगे। (नीतिवचन 23:24) तो फिर, जी-जान लगाकर अपने अनमोल “तीरों” यानी अपने बच्चों को तैयार कीजिए, उनकी हिफाज़त कीजिए और उन्हें सही राह दिखाइए। तब आपको कभी पछतावा नहीं होगा। (w08 4/1)

[पेज 13 पर तसवीर]

क्या माता-पिता अपने बच्चे की हर फरमाइश पूरी करके प्यार दिखा रहे होते हैं?

[पेज 15 पर तसवीर]

प्यार करनेवाले माता-पिता अपने बच्चों को परिवार के लिए बनाए गए नियमों की वजह समझाते हैं

[पेज 15 पर तसवीर]

अच्छे माँ-बाप अपने बच्चों की इस बुरे संसार के हर खतरे से हिफाज़त करते हैं

[पेज 16 पर तसवीर]

बच्चों की परवरिश करना काफी मेहनत का काम है, पर इसका इनाम भी बहुत ही अनमोल है