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तीमुथियुस—सेवा करने के लिए तैयार

तीमुथियुस—सेवा करने के लिए तैयार

“क्या आप तैयार हैं?” क्या आपसे कभी यह सवाल पूछा गया है?— शायद सवाल पूछनेवाले का यह मतलब हो कि, ‘क्या आपके पास आपकी पढ़ाई की किताबें हैं? क्या आपने अपना पाठ पढ़ लिया है?’ इस लेख में हम देखेंगे कि तीमुथियुस तैयार था। जानते हो कैसे?

जब तीमुथियुस को परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए बुलाया गया, तो उसकी सोच परमेश्‍वर के एक दूसरे सेवक के जैसी थी, जिसने कहा था: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह 6:8) तीमुथियुस परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए तैयार था, इसलिए उसकी ज़िंदगी उबाऊ नहीं थी। क्या आप उसकी ज़िंदगी के बारे में जानना चाहेंगे?—

तीमुथियुस यरूशलेम से सैकड़ों किलोमीटर दूर लुस्त्रा में पैदा हुआ था। उसकी नानी, लोइस और माँ, यूनीके पवित्र शास्त्र का अच्छा अध्ययन करती थीं। वे तीमुथियुस को बचपन से ही परमेश्‍वर के वचन के बारे में सिखाती थीं।—2 तीमुथियुस 1:5; 3:15.

जब प्रेरित पौलुस बरनबास के साथ लुस्त्रा आया, तब तीमुथियुस शायद 17-18 साल का था। यह उस समय की बात है जब पौलुस प्रचार के लिए पहली बार एक लंबी यात्रा पर निकला था। शायद इसी वक्‍त तीमुथियुस की माँ और नानी मसीही बनी थीं। क्या आप जानना चाहेंगे कि पौलुस और बरनबास को वहाँ किस मुसीबत का सामना करना पड़ा था?— जो लोग मसीहियों को पसंद नहीं करते थे, उन्होंने पौलुस को पत्थरों से मार-मार कर घायल कर दिया और उसे घसीटकर शहर से बाहर ले गए। उन्होंने सोचा कि वह मर गया।

लेकिन जब पौलुस की शिक्षाओं पर विश्‍वास करनेवाले उसके पास आए, तो वह खड़ा हो गया। अगले दिन पौलुस और बरनबास वहाँ से चले गए। लेकिन कुछ समय बाद वे लुस्त्रा वापस आए। तब पौलुस ने वहाँ एक भाषण दिया और चेलों से कहा, “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।” (प्रेरितों 14:8-22) क्या आपको मालूम है, पौलुस के कहने का क्या मतलब था?— उसका मतलब था कि दुनिया के लोग, परमेश्‍वर की सेवा करनेवालों के लिए मुसीबतें खड़ी करेंगे। पौलुस ने बाद में तीमुथियुस को लिखा: “जितने मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।”—2 तीमुथियुस 3:12; यूहन्‍ना 15:20.

लुस्त्रा से पौलुस और बरनबास अपने घर लौट गए। कुछ महीने बाद पौलुस ने सीलास को अपना साथी चुना और उन जगहों के लिए निकल पड़ा, जहाँ वह पहले प्रचार कर चुका था, ताकि नए चेलों की हिम्मत बढ़ा सके। जब वे लुस्त्रा पहुँचे, तो पौलुस को दोबारा देखकर तीमुथियुस को कितनी खुशी हुई होगी! और जब पौलुस ने उसे अपने और सीलास के साथ चलने के लिए कहा, तो उसकी खुशी दुगुनी हो गयी। वह उनके साथ चलने को तैयार हो गया।—प्रेरितों 15:40–16:5.

वहाँ से वे तीनों कई किलोमीटर पैदल चले और फिर आगे का सफर नाव से तय किया। समुद्र के दूसरे किनारे पर पहुँचने के बाद वे यूनान के थिस्सलुनीके शहर तक पैदल चलकर गए। यहाँ कई लोग मसीही बने। लेकिन कुछ लोग भड़क उठे और उन्होंने उन तीनों के खिलाफ एक भीड़ इकट्ठा कर ली। पौलुस, सीलास और तीमुथियुस की जान खतरे में थी, इसलिए वे वहाँ से बिरीया के लिए निकल गए।—प्रेरितों 17:1-10.

पौलुस को थिस्सलुनीके के उन लोगों की बहुत फिक्र थी, जो अभी-अभी मसीही बने थे, इसलिए उसने तीमुथियुस को वहाँ वापस भेजा। मालूम है क्यों?— पौलुस ने बाद में थिस्सलुनीके के मसीहियों को इसकी वजह बताते हुए कहा, ‘तुम्हें मज़बूत करने और दिलासा देने के लिए ताकि तुम हिम्मत न हार बैठो।’ क्या आप जानते हैं कि पौलुस ने जवान तीमुथियुस को इतने खतरनाक काम पर क्यों भेजा?— क्योंकि मसीहियों से नफरत करनेवाले तीमुथियुस को नहीं पहचानते थे और तीमुथियुस वहाँ जाने को तैयार था। सचमुच, तीमुथियुस ने कितनी दिलेरी दिखायी! इसका क्या नतीजा निकला? जब तीमुथियुस वापस आया, तो उसने पौलुस को बताया कि थिस्सलुनीके के मसीही अपने विश्‍वास में कितने अटल हैं। यह सुनकर पौलुस ने उन्हें लिखा, “[हमने] तुम्हारे विषय में शान्ति पाई।”—1 थिस्सलुनीकियों 3:2-7.

अगले दस साल तक तीमुथियुस पौलुस के साथ काम करता रहा। फिर जब पौलुस को रोम में बंदी बनाया गया तो तीमुथियुस, जो खुद अभी-अभी जेल से छूटा था, उसके पास गया। जेल में पौलुस ने फिलिप्पियों को एक चिट्ठी लिखी और शायद इसके लिए उसने तीमुथियुस को ही इस्तेमाल किया। पौलुस ने लिखा, ‘मुझे आशा है कि मैं तीमुथियुस को तुम्हारे पास तुरन्त भेजूंगा, क्योंकि दूसरा ऐसा कोई नहीं है जो इतना वफादार हो और तुम्हारी अच्छी तरह सेवा करे।’—फिलिप्पियों 2:19-22; इब्रानियों 13:23.

इन बातों से तीमुथियुस को कितनी खुशी मिली होगी! पौलुस को तीमुथियुस इसलिए इतना प्यारा था, क्योंकि वह सेवा करने के लिए तैयार था। हम उम्मीद करते हैं कि आप भी ऐसा ही करेंगे। (w08 4/1)