सुखी परिवार का राज़
बच्चों को अनुशासन देना
जीवन का कहना है: * बचपन में जब मैं कोई गलती करता, तो मेरे माता-पिता मुझे सज़ा ज़रूर देते, लेकिन वे पहले यह समझने की पूरी कोशिश करते थे कि आखिर मैंने गलती क्यों की। आज मैं भी अपनी बेटियों के साथ उसी तरह समझदारी से पेश आने की कोशिश करता हूँ। लेकिन मेरी पत्नी अल्का एक अलग माहौल में पली-बढ़ी है। उसके माता-पिता के नाक पर गुस्सा रहता था और वे बात-बात पर अपने बच्चों को डाँटते-फटकारते थे। वे आगे-पीछे कुछ नहीं सोचते थे। कभी-कभी मुझे लगता है कि मेरी पत्नी भी उन्हीं की लीक पर चलती है और बच्चों को कठोरता से सज़ा देती है।
कल्पना का कहना है: मैं सिर्फ पाँच साल की थी, जब हमारे पिता हमें छोड़कर चले गए। वे हम बच्चों से बिलकुल प्यार नहीं करते थे। हम चार बहनें थीं और हम सब को पालने का ज़िम्मा अकेली माँ पर आ गया। उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती थी। और क्योंकि मैं सबसे बड़ी थी, इसलिए अपनी छोटी बहनों की देखभाल करने में मुझे माँ का हाथ बँटाना पड़ता था। मैं उम्र से पहले ही बड़ी हो गयी। मेरा बचपन जैसे कहीं खो गया। हालात ने मुझे इतना गंभीर बना दिया कि आज भी मैं हँसमुख कम और संजीदा ज़्यादा हूँ। जब मेरी बेटियाँ गलती करती हैं, तो मैं समस्या को लेकर गहरी चिंता में डूब जाती हूँ। उन्होंने ऐसा क्यों किया, क्या सोचकर किया होगा, बस यही मेरे दिमाग में चलता रहता है। लेकिन मेरे पति मोहन ऐसे नहीं हैं। वे इन बातों पर ज़्यादा सिर नहीं खपाते। इसमें उनकी परवरिश का काफी बड़ा हाथ है। उनके पिता हालाँकि बहुत सख्त थे, लेकिन वे मोहन से और उनकी माँ से बहुत प्यार करते थे। आज जब हमारे बच्चे कोई गड़बड़ करते हैं, तो मेरे पति चुकटियों में मसला सुलझा देते हैं। वे पहले हालात का सही-सही जायज़ा लेते हैं, फिर बच्चों को जो अनुशासन देना है वह देते हैं और बाद में ज़्यादा नहीं सोचते।
जैसे कि जीवन और कल्पना की बातों से पता चलता है, आप अपने बच्चों को किस तरह अनुशासन देते हैं यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी परवरिश किस तरह हुई थी। जो पति-पत्नी अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े हैं, उनका अनुशासन देने का तरीका भी अलग हो सकता है। और बच्चों के अनुशासन को लेकर उठनेवाले ये मतभेद, कभी-कभी पति-पत्नी के बीच दरार पैदा कर सकते हैं।
तनाव तब और भी बढ़ जाता है जब पति-पत्नी थके हुए होते हैं। जो पहली बार माँ-बाप बनते हैं, उन्हें यह जानने में देर नहीं लगती कि बच्चों को सही-गलत की शिक्षा देना और सुधारना बड़ा ही थकाऊ काम है। उन पर चौबीसों घंटे ध्यान देना होता है। जया और दिनेश की ही बात लीजिए, जिन्होंने दो बेटियों की परवरिश की है। जया कहती है: “मैं अपने बच्चों से बहुत प्यार करती हूँ। लेकिन उनकी कुछ आदतें मेरी नाक में दम कर देती थीं। रात को जब मैं उनसे सोने को कहती, तो वे सोने के लिए तैयार ही नहीं होती थीं। सोने के बाद भी वे अचानक जाग जातीं। जब भी मैं उन्हें कुछ समझाती तो वे बीच में टोकती रहतीं। वे अपने जूते, कपड़े, खिलौने सब इधर-उधर फैला देती थीं और खाना भी यहाँ-वहाँ बिखेर देती थीं।”
जयेश और उसकी पत्नी का जब दूसरा बच्चा हुआ, तो उनके सामने कुछ मुश्किलें खड़ी हुईं। उसकी पत्नी गहरी हताशा में डूब गयी थी, जैसा कि प्रसव के बाद कुछ स्त्रियों के साथ होता है। जयेश कहता है: “मैं जब काम से घर लौटता, तो अकसर थका हुआ होता था। फिर आधी रात तक नन्ही बच्ची की देखभाल में जागना पड़ता। लेकिन इस वजह से मैं अपनी बड़ी बेटी को ठीक से अनुशासन नहीं दे पा रहा था। और वह भी अपनी छोटी बहन से बहुत जलने लगी, क्योंकि अब हमारा प्यार दोनों बच्चों में बँट गया था।”
जब माँ-बाप थके होते हैं और ऊपर से अगर बच्चों की तालीम को लेकर उनमें तकरार हो जाए, तो छोटे-छोटे झगड़े भी बढ़ते-बढ़ते ज्वालामुखी का रूप ले सकते हैं। अगर मामला सुलझाया न जाए, तो पति-पत्नी के रिश्ते में दरार पड़ सकती है। और इस मौके का फायदा बच्चे उठाते हैं। वे कभी मम्मी का, तो कभी पापा का सहारा लेकर अपना मतलब निकाल लेते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए बाइबल के सिद्धांत आपकी मदद कर सकते हैं, जिन पर चलकर आप बच्चों को सही तालीम दे पाएँगे और आप पति-पत्नी का बंधन भी मज़बूत बना रहेगा। आइए उन सिद्धांतों पर गौर करें।
अपने जीवन-साथी के लिए वक्त निकालिए
परमेश्वर ने परिवार का इंतज़ाम कुछ इस तरह से किया है कि पहले एक आदमी-औरत की शादी हो और फिर बच्चे हों। और बच्चे बड़े होने पर भले ही अपना अलग घर बसा लें, मगर पति-पत्नी ज़िंदगी भर साथ रहें। पति-पत्नी के बंधन के बारे में बाइबल कहती है: “जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” (मत्ती 19:6) जबकि बच्चों के बारे में परमेश्वर का मकसद था कि एक दिन वे “अपने माता पिता से अलग” होकर अपनी ज़िंदगी शुरू करें। (मत्ती 19:5) बच्चों की परवरिश करना, शादी-शुदा ज़िंदगी में आनेवाला बस एक दौर है। यह पति-पत्नी की ज़िंदगी का एकमात्र मकसद नहीं होना चाहिए। यह सच है कि माता-पिता को अपने बच्चों को तालीम देने में समय लगाने की ज़रूरत है, लेकिन एक बात उन्हें हमेशा याद रखनी चाहिए कि वे बच्चों को सही परवरिश तभी दे पाएँगे जब उनकी शादी का बंधन मज़बूत होगा।
अपने बढ़ते बच्चों की परवरिश करने के साथ-साथ पति-पत्नी अपना आपसी रिश्ता कैसे मज़बूत कर सकते हैं? एक तरीका है, साथ मिलकर कुछ पल बिताने के लिए ऐसा वक्त तय करना जब बच्चे मौजूद न हों। और ऐसा आप नियमित तौर पर करने की कोशिश कीजिए। इससे आपको परिवार से जुड़े ज़रूरी मुद्दों पर चर्चा करने का मौका मिलेगा और आप यूँ ही एक-दूसरे के साथ होने का भी लुत्फ उठा सकेंगे। माना कि ऐसा समय निकालना हर दंपत्ति के लिए आसान नहीं होता। अल्का जिसका ज़िक्र पहले भी किया गया है, कहती है, “जब भी मुझे अपने पति के साथ बिताने के लिए थोड़ा समय मिलता है, तभी हमारी छोटी बच्ची रोने लगती है या हमारी छः साल की बेटी किसी-न-किसी बात को लेकर हमें तंग करने लगती है। जैसे, अगर उसे स्केचपैन नहीं मिलते तो घर सिर पर उठा लेती है।”
जया और दिनेश ने एक-साथ समय बिताने के लिए एक तरकीब अपनायी। उन्होंने अपनी बेटियों के लिए सोने का एक समय तय कर दिया ताकि उनके सोने के बाद वे दोनों कुछ पल साथ-साथ गुज़ार सकें। जया कहती है: “हमने अपनी लड़कियों से कह रखा था कि उन्हें इतने बजे तक सो जाना चाहिए। इससे मुझे और दिनेश को आराम से एक-दूसरे से बातें करने का मौका मिलता था।”
बच्चों के लिए सोने का एक समय तय करने से पति-पत्नी को न सिर्फ अपने लिए कुछ वक्त मिलेगा, बल्कि वे बच्चों को भी अपनी हद पहचानने में मदद देंगे। बच्चे जान पाएँगे कि ‘अपने आप को जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर खुद को न समझें।’ (रोमियों 12:3) जिन बच्चों को तय किए वक्त पर सोने की आदत डाली जाती है, वे आगे चलकर यह समझ जाते हैं कि वे परिवार के अहम सदस्य ज़रूर हैं, मगर वे माँ-बाप को अपने इशारों पर नहीं चला सकते। बच्चों का फर्ज़ है कि माँ-बाप परिवार के लिए जो नियम बनाते हैं उन्हें मानें, न कि यह उम्मीद करें कि उनकी हर माँग के मुताबिक परिवार के नियमों में फेरबदल किया जाए।
इसे आज़माइए: बच्चों के लिए सोने का एक समय तय कीजिए और इसमें कभी-भी ढील मत दीजिए। अगर बच्चा कभी सोने में देर करता है तो वजह पूछिए। अगर वह कहता है कि उसे प्यास लगी है, तो उसे पानी पीने दीजिए। उसकी एकाध बात मानना गलत नहीं होगा, लेकिन उसे बहाने-पर-बहाने बनाते रहने की इजाज़त मत दीजिए। अगर बच्चा तय वक्त से पाँच मिनट ज़्यादा जागना चाहता है और आप उसकी इच्छा पूरी करना चाहते हैं, तो घड़ी में पाँच मिनट का अलार्म लगा दीजिए। जब अलार्म बजे तो बच्चे को फौरन सोने के लिए कहिए। और ज़्यादा नखरे मत करने दीजिए। आपकी “बात हां की हां, या नहीं की नहीं हो।”—मत्ती 5:37.
बच्चों के सामने हमेशा एक रहिए
बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।” (नीतिवचन 1:8) यह आयत दिखाती है कि बच्चों पर माँ और पिता, दोनों का हक बनता है। मगर यहाँ तक कि जो पति-पत्नी एक जैसे माहौल में पले-बड़े थे, उनके बीच भी इस बात को लेकर अनबन पैदा हो सकती है कि अपने बच्चों को अनुशासन किस तरीके से देना चाहिए या फलाँ मामले में परिवार का कौन-सा नियम लागू करना सही होगा। ऐसे में माता-पिता क्या कर सकते हैं?
जीवन कहता है, “मैंने देखा है कि पति-पत्नी को कभी-भी बच्चों के सामने बहस नहीं करनी चाहिए।” पर वह कबूल करता है कि कभी-कभी पति-पत्नी के लिए यह दिखाना बहुत मुश्किल होता है कि बच्चों के अनुशासन के मामले में वे दोनों एक ही राय रखते हैं। वह कहता है, “बच्चे बहुत तेज़ होते हैं। जब हमारी बेटी को अनुशासन देने के बारे में मेरी और मेरी पत्नी की राय एक जैसी नहीं होती, तब भले ही हम यह बात अपनी बेटी के सामने नहीं कहते, मगर वह हमारे जज़्बात देखकर भाँप लेती है कि मम्मी-पापा के बीच अनबन है।”
जीवन और अल्का इस मुश्किल का कैसे सामना करते हैं? अल्का कहती है: “जब मेरे पति, बेटी की कोई गलती सुधारते हैं और मुझे 1 कुरिन्थियों 11:3; इफिसियों 6:1-3) जीवन कहता है: “जब हमारी बेटियाँ कोई गलती करती हैं, तब अगर हम पति-पत्नी दोनों मौजूद हों, तो मैं ही उनकी गलती सुधारने में पहल करता हूँ। लेकिन अगर किसी मामले पर अल्का को मुझसे ज़्यादा जानकारी है, तो मैं उसे मौका देता हूँ और उन्हें सुधारने के लिए वह जो भी कहती या करती है, मैं उसका साथ देता हूँ। अगर मुझे उसका तरीका रास नहीं आता तो मैं उससे बाद में बात करता हूँ, बच्चों के सामने नहीं।”
उनका तरीका सही नहीं लगता, तो मैं बेटी के सामने इस बारे में उनसे कुछ नहीं कहती। मैं अकेले में उन्हें अपनी राय बताती हूँ। मैं नहीं चाहती कि हमारी बच्ची को लगे कि उसके मम्मी-पापा के बीच मत-भेद है, जिसका वह फायदा उठा सकती है और चालाकी से किसी एक का इस्तेमाल करके अपनी बात मनवा सकती है। अगर उसे पता चल जाता है कि हमारी राय एक नहीं है, तो मैं उसे बताती हूँ कि यहोवा ने पिता को परिवार का मुखिया ठहराया है और हर सदस्य को उसके अधीन रहना चाहिए। इसलिए मैं खुशी-खुशी उसके पापा के अधीन रहती हूँ, और उसे भी अपने मम्मी-पापा के अधीन रहना चाहिए।” (बच्चों की ट्रेनिंग को लेकर अगर आप दोनों में अनबन है, तो यह आगे चलकर आप पति-पत्नी के रिश्ते में कड़वाहट पैदा कर सकती है। अंजाम यह होगा कि बच्चों की नज़र में आपकी इज़्ज़त कम हो जाएगी। आपके साथ ऐसा न हो, इसके लिए आप क्या कर सकते हैं?
इसे आज़माइए: बिना नागा, हर हफ्ते कोई ऐसा समय तय कीजिए जब आप पति-पत्नी बच्चों की ट्रेनिंग के बारे में एक-दूसरे के साथ चर्चा कर सकें। अगर किसी विषय पर आप दोनों अलग राय रखते हैं, तो खुलकर आपस में बात कीजिए। आपका साथी अलग नज़रिया क्यों रखता है, यह समझने की कोशिश कीजिए और मत भूलिए कि वह भी बच्चे से प्यार करता है।
बच्चों को बड़ा करने के साथ-साथ एक-दूसरे के करीब आइए
इसमें कोई शक नहीं कि बच्चों को ट्रेनिंग देने में बहुत मेहनत लगती है। कभी-कभी ऐसा लग सकता है कि आप तन और मन से पूरी तरह पस्त हो गए हैं। लेकिन भविष्य में जब आपके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएँगे, तो हो सकता है कि वे अपना एक अलग घर बसा लें। तब आप पति-पत्नी सिर्फ एक-दूसरे के लिए होंगे जैसा बच्चे होने से पहले था। पर अब सवाल यह है कि बच्चों को बड़ा करने का यह दौर आपकी शादी के बंधन को मज़बूत करेगा या कमज़ोर? यह इस पर निर्भर करता है कि आप सभोपदेशक 4:9, 10 में दी सलाह को कितनी अच्छी तरह से लागू करते हैं। वहाँ लिखा है: “एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है। क्योंकि यदि उन में से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा।”
जब बच्चों को अनुशासन देने में पति-पत्नी एक-दूसरे का साथ निभाते हैं, तो बढ़िया नतीजे निकलते हैं। कल्पना, जिसके बारे में पहले भी बताया गया है, अपनी भावनाएँ यूँ ज़ाहिर करती है: “मैं पहले भी जानती थी कि मेरे पति में बहुत-सी खूबियाँ हैं, लेकिन साथ मिलकर बच्चों को बड़ा करने से मैं उनके और भी अच्छे गुण देख पायी हूँ। वे जिस तरह बच्चों से प्यार करते हैं और उनकी देखभाल करते हैं, यह देखकर मेरे दिल में उनके लिए प्यार और इज़्ज़त बढ़ गयी है।” जीवन अपनी पत्नी अल्का के बारे में कहता है: “मेरी पत्नी ने अपने अंदर काफी बदलाव किए हैं। अब वह बड़े प्यार से बच्चों की देखभाल करती है। वाकई, उसने मेरा दिल जीत लिया है, मैं अब उसकी और भी ज़्यादा इज़्ज़त करने लगा हूँ।”
अगर आप अपने जीवन-साथी के लिए वक्त निकालें और बच्चों की परवरिश करने में एक-दूसरे का साथ दें तो जैसे-जैसे आपके बच्चे बड़े होंगे, वैसे-वैसे आप पति-पत्नी का आपसी बंधन भी मज़बूत होता जाएगा। इस तरह आप अपने बच्चों के सामने एक अच्छी मिसाल पेश कर रहे होंगे। (w09 2/1)
^ नाम बदल दिए गए हैं।
खुद से पूछिए . . .
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मैं हर हफ्ते अपने जीवन-साथी के साथ अकेले में कितना वक्त बिताता/बिताती हूँ?
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जब मेरा साथी बच्चों को अनुशासन देता है, तो मैं किस तरह उसका साथ देता/देती हूँ?