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साफ-सफाई—ज़रूरी क्यों?

साफ-सफाई—ज़रूरी क्यों?

साफ-सफाई—ज़रूरी क्यों?

हज़ारों सालों तक महामारियों ने इंसानों पर अपना कहर ढाया है। कुछ लोगों का मानना था कि ये महामारियाँ परमेश्‍वर के क्रोध की निशानी हैं और वह बुरे लोगों को सज़ा दे रहा है। सदियों तक इस मामले में काफी जाँच-परख और खोज-बीन करने से पता चला है कि अकसर इनके कसूरवार हमारे आस-पास रहनेवाले छोटे-छोटे जीव-जंतु होते हैं।

चिकित्सा क्षेत्र के खोजकर्ताओं ने पाया कि बीमारियाँ फैलाने में छछूँदरों, चूहों, तिलचट्टों, मक्खियों और मच्छरों का बहुत बड़ा हाथ होता है। उन्होंने यह भी पाया कि लोग साफ-सफाई में लापरवाही बरतकर अकसर संक्रामक बीमारियों को न्यौता देते हैं। तो कहा जा सकता है कि साफ-सफाई का ताल्लुक ज़िंदगी और मौत से है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि हालात और रिवाज़ों के मुताबिक लोगों के साफ-सफाई के स्तर अलग-अलग होते हैं। जिन इलाकों में साफ पानी नहीं मिलता या गंदे पानी के निकास की अच्छी व्यवस्था नहीं होती, वहाँ साफ-सफाई पर ध्यान देना एक चुनौती हो सकता है। मगर गौर कीजिए, जब इसराएली वीराने में सफर कर रहे थे, तब उनके लिए साफ-सफाई पर खास ध्यान देना कितना मुश्‍किल रहा होगा! इसके बावजूद परमेश्‍वर ने उन्हें इस मामले में हिदायतें दीं।

परमेश्‍वर के लिए साफ-सफाई क्यों इतनी मायने रखती है? हम साफ-सफाई के मामले में सही नज़रिया कैसे रख सकते हैं? बीमारी कम करने के लिए आप और आपका परिवार कौन-सी सावधानियाँ बरत सकता है?

अफ्रीका के देश कैमरून में रहनेवाला बच्चा मैक्स * स्कूल से छुट्टी होने के बाद दौड़ा-दौड़ा अपने छोटे-से घर में आता है। उसे ज़ोरों की भूख लगी है। घर में घुसते ही उसका कुत्ता दुम हिलाता हुआ उसके पास आता है, वह उससे लिपट जाता है। फिर अपना बस्ता खाने की मेज़ पर पटक देता है और वहीं बैठकर खाने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगता है।

रसोई में माँ को पता चल जाता है कि मैक्स आ चुका है। वह उसके लिए गर्म-गर्म चावल और फली की सब्जी परोसकर लाती है। मगर जैसे ही वह उसका बस्ता साफ मेज़ पर पड़ा देखती है उसके तेवर बदल जाते हैं। वह अपने बेटे को घूरते हुए धीरे से सिर्फ इतना कहती है, “मै . . . क्स।” वह फट से समझ जाता है और अपना बस्ता वहाँ से हटा देता है। फिर दौड़कर बाहर हाथ धोने चला जाता है। भूख के मारे बेहाल जल्द ही लौट आता है और आँख चुराते हुए बुदबुदाता है: “सॉरी मम्मी। मैं भूल गया था।”

जब सेहत और साफ-सफाई की बात आती है तो इसमें एक परवाह करनेवाली माँ का बहुत बड़ा हाथ होता है। मगर उसे पूरे परिवार के सहयोग की भी ज़रूरत होती है। मैक्स का उदाहरण दिखाता है कि सफाई के मामले में लंबे समय तक तालीम देना ज़रूरी है, क्योंकि साफ-सफाई में काफी मेहनत लगती है। और खासकर बच्चों को इस मामले में लगातार याद दिलाने की ज़रूरत होती है।

मैक्स की माँ को पता है कि खाना कई तरीकों से दूषित हो सकता है। इसलिए खाना छूने से पहले वह न सिर्फ अच्छी तरह से हाथ धोती है, बल्कि मक्खियों से बचाने के लिए खाना ढककर रखती है। खाने को ढककर रखने और घर को साफ-सुथरा रखने की वजह से उसे छछूँदरों, चूहों और तिलचट्टों से निजात मिलती है।

वह साफ-सफाई का ध्यान खास इसलिए रखती है क्योंकि वह परमेश्‍वर को खुश करना चाहती है। वह कहती है: “बाइबल के मुताबिक परमेश्‍वर के लोगों को पवित्र होना चाहिए क्योंकि परमेश्‍वर पवित्र है।” (1 पतरस 1:16) वह यह भी कहती है: “पवित्रता और साफ-सफाई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए मैं अपने घर को साफ-सुथरा रखना चाहती हूँ और चाहती हूँ कि मेरा परिवार भी साफ-सुथरा दिखे। मगर यह तभी मुमकिन है जब इसमें परिवार का हर सदस्य सहयोग दे।”

परिवार का सहयोग निहायत ज़रूरी

जैसा कि मैक्स की माँ का कहना है, पारिवारिक स्वच्छता बनाए रखना पूरे परिवार का काम है। कुछ परिवार समय-समय पर साथ मिलकर इस बात पर चर्चा करते हैं कि घर के अंदर और बाहर साफ-सफाई के मामले में उनकी क्या ज़रूरतें हैं और वे इसमें कैसे सुधार कर सकते हैं। ऐसा करने से परिवार में एकता बढ़ती है और सभी को एहसास रहता है कि वे कैसे एक-दूसरे की खैरियत का खयाल रख सकते हैं। मिसाल के तौर पर, एक माँ अपने बड़े बच्चों को समझा सकती है कि शौच जाने और पैसों का लेन-देन करने के बाद या खाना खाने से पहले हाथ क्यों धोने चाहिए। फिर ये बच्चे अपने से छोटों को साफ-सफाई की अहमियत के बारे में समझा सकते हैं।

परिवार में सभी को अलग-अलग काम दिए जा सकते हैं। इसलिए परिवार हर हफ्ते घर की साफ-सफाई करने और साल में एक या दो बार पूरे घर को साफ करने का शेड्‌यूल बना सकता है। लेकिन घर के बाहर की सफाई के बारे में क्या? एक संरक्षणवादी स्ट्यूवॉर्ट एल. यूडॉल अमरीका का ज़िक्र करते हुए कहते हैं: “हम ऐसे देश में रहते हैं जहाँ की खूबसूरती फना होती जा रही है और गंदगी बढ़ती जा रही है, खुले मैदान गायब होते जा रहे हैं। और बढ़ते प्रदूषण, शोरगुल और पेड़-पौधों की बीमारियों की मार वातावरण पर पड़ रही है।”

क्या आपके इलाके का भी यही हाल है? पुराने ज़माने की तरह आज भी मध्य अफ्रीका की कुछ जगहों में मुनादी करनेवाले, लोगों को याद दिलाते हैं कि उन्हें अपने शहर और नाले-नालियों को साफ करने, पेड़ों की छँटाई करने, जंगली पौधों को उखाड़ फेंकने और कूड़ा-करकट साफ करने की ज़रूरत है।

कूड़ा-करकट नष्ट करना दुनिया की एक बहुत बड़ी समस्या है और बहुत-से अधिकारियों के तो इस बारे में सोचकर ही पसीने छूटने लगते हैं। जब नगरपालिका के लोग कूड़ा इकट्ठा करने में ढिलाई करते हैं तो उसका सड़कों पर ढेर लगने लगता है। ऐसे में उस इलाके के लोगों को शायद मदद के लिए बुलाया जाए। और अच्छे नागरिक होने के नाते मसीही बिना गिला-शिकवा किए सरकार का यह हुक्म मानते हैं और मदद के लिए सबसे पहले आगे आते हैं। (रोमियों 13:3, 5-7) इस मामले में अगर उनसे दो कदम चलने को कहा जाता है, तो वे खुशी-खुशी चार कदम चलने को तैयार रहते हैं। वे वातावरण को साफ रखने में खास दिलचस्पी दिखाते हैं और पहल करके इसमें हिस्सा लेते हैं, उन्हें इसकी याद दिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। वे जानते हैं कि अगर वे साफ-सफाई पर ध्यान देंगे तो इससे ज़ाहिर होगा कि उन्हें इस बारे में अच्छी तालीम दी जाती है और वे ज़िम्मेदार इंसान हैं। साफ-सफाई के लिए हर इंसान और हर परिवार को आगे आने की ज़रूरत है। घर के आस-पास साफ-सफाई रखने से हम स्वस्थ रहेंगे और हमारे आस-पड़ोस का माहौल भी खुशनुमा बनेगा।

शारीरिक स्वच्छता से परमेश्‍वर की महिमा होती है

साफ-सुथरे रहने और सलीकेदार कपड़े पहनने से ज़ाहिर होता है कि एक व्यक्‍ति किसकी उपासना करता है, साथ ही इससे अकसर लोगों पर अच्छा असर पड़ता है। फ्रांस के टूलूज़ शहर में यहोवा के साक्षियों के ज़िला अधिवेशन के बाद, करीब 15 जवान एक रेस्तरां में गए। रेस्तरां में उनकी पासवाली मेज़ पर एक बुज़ुर्ग जोड़ा बैठा था। जोड़े ने सोचा कि अब तो खूब हो-हल्ला होगा और वे उनकी नाक में दम कर देंगे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि सलीकेदार कपड़े पहने ये जवान कितने अदब से पेश आ रहे हैं और अच्छे से बातचीत कर रहे हैं, तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। जब वे लड़के-लड़कियाँ जाने लगे, तो उस जोड़े ने उनके अच्छे व्यवहार की बड़ी तारीफ की और एक से कहा कि आज दुनिया में आप जैसे बच्चे तो देखने को ही नहीं मिलते।

जब लोग यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर, छापेखाने और रहने की जगह देखने आते हैं, तो अकसर वहाँ की साफ-सफाई देखकर दंग रह जाते हैं। जो स्वयंसेवक इन जगहों में रहते और काम करते हैं उनसे माँग की जाती है कि वे नियमित तौर पर नहाएँ-धोएँ और साफ-सुथरे कपड़े पहनें, क्योंकि इत्र और खुशबुएँ लगाने से शरीर स्वच्छ नहीं होता। जब ये स्वयंसेवक शाम को या शनिवार-रविवार को अपने पड़ोसियों को परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने जाते हैं तो उनके अच्छे पहरावे से उनका संदेश और भी असरदार हो जाता है।

‘परमेश्‍वर की मिसाल पर चलिए’

मसीहियों से आग्रह किया गया है कि वे ‘परमेश्‍वर की मिसाल पर चलें।’ (इफिसियों 5:1) भविष्यवक्‍ता यशायाह ने एक दर्शन में देखा कि कैसे स्वर्गदूत सिरजनहार को “पवित्र, पवित्र, पवित्र” पुकार रहे हैं। (यशायाह 6:3) यह इस बात पर ज़ोर देता है कि परमेश्‍वर जैसा परम पवित्र और पावन कोई नहीं है। इसीलिए वह अपने सभी सेवकों से पवित्र या स्वच्छ होने की माँग करता है। वह उनसे कहता है: “तुम्हें पवित्र होना है क्योंकि मैं पवित्र हूँ।”—1 पतरस 1:16.

बाइबल मसीहियों को ‘सलीकेदार कपड़े’ पहनने का बढ़ावा देती है। (1 तीमुथियुस 2:9) तभी तो प्रकाशितवाक्य की किताब में उन लोगों के धर्मी कामों को “उजला, साफ और बढ़िया मलमल” के समान बताया गया है जिन्हें परमेश्‍वर पवित्र समझता है। (प्रकाशितवाक्य 19:8) दूसरी तरफ बाइबल में पाप को अकसर दाग-धब्बों से दर्शाया गया है।—नीतिवचन 15:26; यशायाह 1:16; याकूब 1:27.

आज लाखों लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहाँ उन्हें शरीर से, मन से और परमेश्‍वर की उपासना में शुद्ध बने रहने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ता है। इनसे पूरी तरह निजात तभी मिलेगी जब परमेश्‍वर ‘सबकुछ नया बना देगा।’ (प्रकाशितवाक्य 21:5) जब यह वादा पूरा होगा तब हर तरह की गंदगी हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। (w08 12/1)

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिया गया है।

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स्वच्छता परमेश्‍वर की माँग

वीराने में इसराएलियों को हिदायत दी गयी थी कि वे अपने मल को अच्छी तरह से ढाँप दें। (व्यवस्थाविवरण 23:12-14) यह बहुत ही मुश्‍किल काम रहा होगा, क्योंकि उनकी आबादी बहुत थी। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा करने से वे टाइफाइड या हैजा जैसी बीमारियों से बचे रहते थे।

उन्हें यह आज्ञा भी दी गयी थी कि अगर कोई चीज़ मृत शरीर के संपर्क में आ जाए तो उसे अच्छी तरह धोना या नष्ट कर देना चाहिए। वे शायद इस आज्ञा की वजह पूरी तरह न समझे हों, लेकिन इसे मानने से वे बहुत-से रोगों और संक्रमणों से बच सके।—लैव्यव्यवस्था 11:32-38.

निवासस्थान के अंदर सेवा करने से पहले याजकों को अपने हाथ-पैर धोना ज़रूरी था। उसके बाहर रखी ताँबे की बड़ी हौदी में पानी भरना कोई आसान काम नहीं था, इसके बावजूद याजकों को हाथ-पैर धोने की आज्ञा हर हाल में माननी थी।—निर्गमन 30:17-21.

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एक डॉक्टर का कहना

कहते हैं जल ही जीवन है, लेकिन यही जल अगर दूषित हो जाए तो उससे बीमारियाँ हो सकती हैं, यहाँ तक कि मौत भी। कैमरून के डूऑला बंदरगाह में चिकित्सा विभाग के उच्च अधिकारी डॉ. जे. अमबॉन्गे लोबे ने एक इंटरव्यू में कुछ व्यावहारिक सुझाव दिए।

“अगर आपको लगता है कि पीने का पानी साफ नहीं है तो उसे उबालिए।” लेकिन वे खबरदार करते हैं: “माना कि पानी को साफ रखने के लिए ब्लीच या दूसरे रसायनिक पदार्थों का इस्तेमाल करना गलत नहीं है, लेकिन अगर इन्हें सही जगह पर न रखा जाए या सावधानी से इस्तेमाल न किया जाए तो ये खतरनाक साबित हो सकते हैं। खाना खाने से पहले और शौच जाने के बाद हमेशा अपने हाथ साबुन से धोइए। साबुन के लिए ज़्यादा पैसे नहीं खर्च करने पड़ते, इसलिए एक गरीब इंसान भी इसे खरीद सकता है। अगर आपको चर्म रोग है तो अपने कपड़े ज़्यादातर गर्म पानी में धोइए।”

डॉक्टर लोबे का यह भी कहना है: “परिवार के हर सदस्य को घर के अंदर और बाहर की साफ-सफाई का खयाल रखना चाहिए। देखा जाता है कि शौचालय अकसर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं, इस वजह से ये मक्खियों और तिलचट्टों का अड्डा बन जाते हैं।” खासकर बच्चों को ध्यान में रखते हुए वे एक और बात के बारे में खबरदार करते हैं: “अपने आस-पास की छोटी-छोटी खाड़ियों, नदी-नालों में मत नहाइए। यहाँ ढेर सारे खतरनाक रोगाणु पनपते हैं। रात को सोने से पहले हाथ-पैर धोइए, दाँत साफ कीजिए और मच्छरदानी में सोइए।” सौ बात की एक बात है, पहले से सोचिए, कारगर कदम उठाइए और बीमारियों से पीछा छुड़ाइए।

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कपड़े धोने से चर्म रोगों और दूसरी बीमारियों से बचा जा सकता है

[पेज 10 पर तसवीर]

मसीही अपने घर के आस-पास साफ-सफाई करने में पहल करते हैं

[पेज 10 पर तसवीर]

घर-परिवार की साफ-सफाई में एक परवाह करनेवाली माँ का बहुत बड़ा हाथ होता है