सुखी परिवार का राज़
किशोरों को सिखाएँ ज़िम्मेदार इंसान बनना
“अपने बेटों से बात करना मुझे बहुत अच्छा लगता था। वे मेरी बात ध्यान से सुनते और उसे फौरन मानते थे। मगर किशोर उम्र तक पहुँचते-पहुँचते वे हर बात पर ज़बान लड़ाने लगे। यहाँ तक कि वे उपासना के मामले में भी बहस करने लगे। वे कहते हैं: ‘क्या ज़रूरी है कि हमेशा बाइबल के बारे में ही बात करें?’ हालाँकि मैंने ये सब दूसरे परिवारों में होते देखा, लेकिन मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे परिवार में ऐसा होगा।”—रेजी। *
क्या आपके बच्चे किशोरावस्था में हैं? अगर हाँ, तो आप उनके सबसे अनोखे दौर को देख रहे हैं। मगर हो सकता है, इस दौरान आपको कई बार दुख भी पहुँचे। नीचे दिए हालात पर गौर कीजिए।
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जब आपका बेटा छोटा था, तो वह एक नाव की तरह आपसे हमेशा बंधा रहता था। पर वह तेरह साल का क्या हुआ, वह मानो रस्सी छुड़ाना चाहता है। वह समुंदर पर जाने के लिए बेताब है। यही नहीं, वह नहीं चाहता कि आप उसके साथ आएँ।
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जब आपकी बेटी एक छोटी बच्ची थी, तो वह आपको अपनी एक-एक बात बताती थी। मगर जब से वह किशोर उम्र की हुई है, उसने अपने दोस्तों का एक अलग ही गुट बना लिया है, जिसमें आपके लिए कोई जगह नहीं।
क्या आपके घर का भी यही हाल है? अगर हाँ, तो फौरन इस नतीजे पर मत पहुँचिए कि आपका बच्चा एक ऐसा बागी बन रहा है, जिसे बदला नहीं जा सकता। तो फिर वह ऐसा बर्ताव क्यों कर रहा है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आइए जानें कि बच्चे के विकास में किशोरावस्था क्या अहम भूमिका निभाती है।
किशोरावस्था—ज़िंदगी का एक अहम मोड़
पैदा होने के बाद, एक बच्चा कई चीज़ें पहली बार करता है, जैसे उसका पहला कदम, पहला शब्द, स्कूल का पहला दिन वगैरह-वगैरह। हर बार जब बच्चा कुछ नया करता है, तो माँ-बाप का दिल बाग-बाग हो जाता है। बच्चे की कामयाबी, उसके बढ़ने की निशानी होती है। आखिर यही तो माँ-बाप का अरमान होता है।
किशोरावस्था भी ज़िंदगी का एक अहम मोड़ है। मगर कुछ माँ-बाप इस बारे में सोचकर ही घबराते हैं। उनका इस तरह महसूस करना वाजिब है। आखिरकार, कौन-से माँ-बाप यह देखकर खुश होंगे कि उनकी हर बात माननेवाला बच्चा अब अचानक अपनी मनमानी करने लगा है? फिर भी किशोरावस्था एक बच्चे की ज़िंदगी में अहम पड़ाव है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?
बाइबल कहती है कि हर इंसान की ज़िंदगी में एक वक्त ऐसा आता है, जब वह ‘अपने माता पिता को छोड़’ एक अलग ज़िंदगी बसर करता है। (उत्पत्ति 2:24) यह दिन एक माता-पिता के लिए खुशी का दिन भी होता है और गम का भी। और किशोरावस्था एक बच्चे को ऐसे ही दिन के लिए तैयार करती है। उस वक्त आपके बच्चे को प्रेषित पौलुस की तरह यह कहने के काबिल होना चाहिए: “जब मैं बच्चा था, तो बच्चों की तरह बात करता था, बच्चों की तरह सोचता था, बच्चों जैसी समझ रखता था। मगर अब क्योंकि मैं बड़ा हो गया हूँ, तो मैंने बचपना छोड़ दिया है।”—1 कुरिंथियों 13:11.
दूसरे शब्दों में कहें तो किशोरावस्था में आपका बच्चा अपना बचपना छोड़ता है। वह एक ज़िम्मेदार इंसान बनना सीखता है, जिससे वह आगे चलकर अपने पैरों पर खड़ा हो
सके और हर काम खुद कर सके। एक किताब के मुताबिक, किशोरावस्था वह समय होता है, जब बच्चे अपने माता-पिता से अलग एक नयी ज़िंदगी की शुरूआत करने की तैयारी करते हैं।फिलहाल हो सकता है, आपको यह यकीन करना मुश्किल लगे कि आपका लाडला या लाडली बहुत जल्द एक ज़िम्मेदार इंसान बनेंगे। आप शायद कहें:
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“मेरा बेटा अपनी चीज़ें तक ठीक-से नहीं रख सकता, तो भला वह अपना घर क्या सँभालेगा?”
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“जब मेरी बेटी को इस ज़िम्मेदारी का एहसास नहीं कि उसे वक्त पर घर पहुँचना चाहिए, तो वह नौकरी करने की भारी ज़िम्मेदारी कैसे उठाएगी?”
अगर आपको भी यही चिंता खाए जा रही है, तो याद रखिए: कोई भी बच्चा एक ही दिन में आत्म-निर्भर बनना नहीं सीख जाता, बल्कि इसमें सालों लग सकते हैं। आपने अब तक के अपने तजुरबे से देखा होगा कि “लड़के [या लड़की] के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है।”—नीतिवचन 22:15.
लेकिन अगर आप उसे सही राह दिखाते रहें, तो वह बड़ा होकर एक ज़िम्मेदार इंसान बन सकता है। साथ ही, वह ‘अपनी सोचने-समझने की शक्ति का इस्तेमाल कर, सही-गलत में फर्क करने के लिए इसे प्रशिक्षित कर लेता है।’—इब्रानियों 5:14.
कामयाबी का राज़
आप अपने किशोर बच्चे को बड़ों की दुनिया में कदम रखने के लिए कैसे तैयार कर सकते हैं? उसे अपनी “सोचने-समझने की शक्ति” बढ़ाने में मदद दीजिए, ताकि वह खुद सही फैसले ले पाए। (रोमियों 12:1, 2) इस सिलसिले में आगे दिए बाइबल के सिद्धांत आपकी मदद कर सकते हैं।
फिलिप्पियों 4:5: “सब लोग यह जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो।” मान लीजिए, आपका किशोर आपसे घर देर से आने की इजाज़त माँगता है। मगर आप फौरन ना कर देते हैं। इस पर वह सारा घर सिर पर उठा लेता है। वह चिल्लाता है: “मैं अब कोई बच्चा नहीं रहा!” आप शायद जवाब दें: “अच्छा, पर हरकत तो एकदम बच्चों जैसी है।” मगर ऐसा जवाब देने से पहले इस बात पर गौर कीजिए: यह सच है कि बच्चे को जितनी आज़ादी चाहिए, वह उससे कहीं ज़्यादा की माँग करता है। मगर सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि माँ-बाप अपने बच्चों को जितनी आज़ादी दे सकते हैं, वे उससे बहुत कम देते हैं। सोचिए, क्या आप कभी-कभार उसे थोड़ी और छूट दे सकते हैं? क्यों न आप मामले को अपने बच्चे की नज़र से देखने की कोशिश करें?
इसे आज़माइए: ऐसे एक-दो दायरे लिखिए, जिनमें आप अपने किशोर बच्चे को थोड़ी और आज़ादी दे सकते हैं। उसे समझाइए कि यह सिर्फ कुछ वक्त के लिए है। अगर वह हद में रहकर अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करेगा, तो आप बाद में उसे और छूट देंगे। लेकिन अगर वह अपनी आज़ादी का गलत फायदा उठाएगा, तो उससे वह आज़ादी भी छीन ली जाएगी।—मती 25:21.
कुलुस्सियों 3:21: “हे पिताओ, अपने बालकों को कड़ुवाहट से मत भरो। कहीं ऐसा न हो कि वे जतन करना ही छोड़ दें।”—ईज़ी-टू-रीड वर्शन। कुछ माता-पिता बच्चे को अपनी मुट्ठी में रखना चाहते हैं। वह किसके साथ है, क्या कर रहा है, उसके हर कदम पर वे कड़ी नज़र रखते हैं। उसे किसके साथ दोस्ती करनी चाहिए, यह भी माता-पिता तय करते हैं। जब वह फोन पर बात करता है, तो वे चोरी-छिपे उसकी बातें सुनते हैं। पर ये सब करने का गलत नतीजा निकल सकता है। उसे बाँधे रखना, रेत पकड़ने के बराबर है। आपकी पकड़ जितनी मज़बूत होती है, उतनी ही वह हाथ से फिसलती जाती है। आप जितना ज़्यादा उसके दोस्तों की बुराई करेंगे, वह उतना ज़्यादा उन्हें चाहने लगेगा। चोरी-छिपे उसकी बातें सुनने से वह अपने साथियों से बात करने की कोई और तरकीब ढूँढ़ निकालेगा। और फिर सोचिए, अगर आपका किशोर बच्चा अभी सही फैसला करना नहीं सीखेगा, तो वह बड़ा होकर घर छोड़ने के बाद क्या अपने फैसले खुद ले पाएगा?
इसे आज़माइए: अगली बार जब आप अपने किशोर बच्चे के साथ किसी मुद्दे पर चर्चा करें, तो उसे यह समझने में मदद दीजिए कि वह जो भी चुनाव करेगा, उससे तय होगा कि वह खुद के लिए अच्छा नाम बनाएगा या बुरा। मिसाल के लिए, उसके दोस्तों में नुक्स निकालने के बजाय कहिए: “क्या तुमने कभी सोचा है कि अगर तुम्हारा दोस्त [नाम] कोई कानून तोड़ने के लिए पकड़ा जाए, तो क्या होगा? दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचेंगे?” अपने किशोर को समझाइए कि उसके फैसलों से या तो उसका नाम रौशन होगा या फिर मिट्टी में मिल जाएगा।—नीतिवचन 11:17, 22; 20:11.
इफिसियों 6:4: “अपने बच्चों को चिढ़ मत दिलाओ, बल्कि उन्हें यहोवा की तरफ से आनेवाला अनुशासन देते हुए और उसी की सोच के मुताबिक उनके मन को ढालते हुए उनकी परवरिश करो।” ‘परमेश्वर की सोच के मुताबिक मन को ढालने’ का मतलब बच्चे के दिमाग में सिर्फ जानकारी भरना नहीं, बल्कि उसके मन में ऊँचे नैतिक मूल्य बिठाना है, ताकि वह उनके मुताबिक काम कर सके। ऐसी तालीम खासकर उस वक्त देना ज़रूरी हो जाता है, जब आपका बच्चा जवान होने लगता है। आन्ड्रे नाम के एक पिता ने कहा: “जैसे-जैसे आपके बच्चे बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे उन्हें समझाने के तरीके में आपको फेरबदल करना पड़ता है।”—2 तीमुथियुस 3:14.
इसे आज़माइए: जब कोई समस्या आती है, तो बच्चे से कहिए कि अगर वह आपकी जगह होता, तो क्या सलाह देता? उससे कहिए कि अगर उसकी सोच सही है, तो वह उसकी पैरवी करे और अगर गलत है, तो उसे झुठलाए। इसके लिए उसे खोजबीन करने का बढ़ावा दीजिए। फिर एक हफ्ते बाद दोबारा उस मसले पर चर्चा कीजिए।
गलातियों 6:7: “इंसान जो बोएगा, वही काटेगा भी।” एक छोटे बच्चे को सज़ा देकर सुधारा जा सकता है। जैसे, उसे दूसरे कमरे में भेजना या उसे अपना मन-पसंद काम ना करने देना। लेकिन जहाँ तक एक किशोर की बात आती है, जब वह कोई गलती करता है तो उसे उसका अंजाम भुगतने देना चाहिए।—नीतिवचन 6:27.
इसे आज़माइए: जब आपका बच्चा किसी से कुछ उधार लेता है, तो उसे चुकाकर उसे बचाने की कोशिश मत कीजिए। ना ही उसके टीचर के आगे यह बहाना बनाइए कि आपका बच्चा क्यों फलाँ विषय में फेल हो गया। उसे अपने किए की सज़ा भुगतने दीजिए। इससे वह ज़िंदगी-भर उस सबक को नहीं भूलेगा।
आप शायद सोच रहे होंगे कि ‘काश! मेरा बच्चा बिना किसी परेशानी के बड़ा हो जाता।’ मगर सच तो यह है कि किशोरावस्था में समस्याएँ आती ही हैं। पर हिम्मत मत हारिए! यह दौर ऐसा है, जिसमें आप बहुत ही बढ़िया ढंग से अपने ‘लड़के को उस मार्ग की शिक्षा दे सकते हैं, जिसमें उसे चलना चाहिए।’ (नीतिवचन 22:6) इसमें कोई दो राय नहीं कि बाइबल सिद्धांतों की बुनियाद पर ही आप अपने परिवार को खुशहाल बना सकते हैं। (w09 5/1)
^ नाम बदल दिया गया है।
खुद से पूछिए . . .
जब मेरा बच्चा घर छोड़ एक अलग ज़िंदगी बसर करेगा, तब क्या वह ये काम कर पाएगा?
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उपासना से जुड़े कामों का एक अच्छा कार्यक्रम बनाए रखना
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बढ़िया चुनाव और सही फैसले लेना
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दूसरों से तहज़ीब से बातचीत करना
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अपनी सेहत का अच्छा खयाल रखना
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किफायत से खर्च करना और बजट बनाना
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अपने घर या फ्लैट को साफ-सुथरा रखना
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लगन और मेहनत से काम करना