अपने बच्चों को सिखाइए
बुरे दोस्तों की वजह से योआश ने यहोवा को छोड़ दिया
बहुत समय पहले की बात है। यरूशलेम नाम के शहर में हर कोई डरा हुआ था। इसी शहर में यहोवा परमेश्वर का मंदिर था। मगर वहाँ के लोग क्यों डरे हुए थे? क्योंकि वहाँ के राजा अहज्याह को मार डाला गया था। इसके बाद, उसकी माँ अतल्याह ने जो किया वह तो आप सोच भी नहीं सकते। उसने अहज्याह के बेटों को यानी अपने पोतों को मरवा डाला! क्या आप जानते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया?— * ताकि वह रानी बनकर राज कर सके।
लेकिन अतल्याह का एक पोता बच गया और उसे इस बारे में बिलकुल पता नहीं चला। उस बच्चे का नाम योआश था। क्या आप जानना चाहेंगे कि वह कैसे बचा?— योआश की एक बुआ थी यहोशेबा। यहोशेबा का पति यहोयादा महायाजक था और परमेश्वर के मंदिर में सेवा करता था। इसलिए उन दोनों ने मिलकर योआश को मंदिर में छिपाए रखा।
छ: साल तक योआश मंदिर में रहा और किसी को इसकी भनक तक न पड़ी। वहाँ उसे परमेश्वर यहोवा और उसके नियमों के बारे में सिखाया गया। जब योआश 7 साल का हुआ तब यहोयादा उसे राजा बनाने की तैयारी करने लगा। क्या आप जानना चाहेंगे कि यहोयादा ने क्या किया? और योआश की दादी यानी दुष्ट रानी अतल्याह का क्या हुआ?—
उस ज़माने में राजाओं की रक्षा के लिए कुछ खास सिपाही होते थे। यहोयादा ने चुपके से इन सिपाहियों को इकट्ठा किया और बताया कि कैसे उसने और उसकी पत्नी ने मिलकर अहज्याह के बेटे को बचाया। तब वह योआश को उनके सामने लाया। सिपाहियों को यकीन हो गया कि योआश को ही राजा बनना चाहिए। और फिर उन्होंने उसे राजगद्दी दिलाने के लिए एक तरकीब बनायी।
यहोयादा, योआश को लोगों के सामने लाया और उसे ताज पहनाया। इसके बाद सब ‘ताली बजा-बजाकर कह उठे, “राजा जीता रहे!”’ इस दौरान सिपाही योआश के चारों तरफ खड़े थे, ताकि उस पर कोई हमला न कर सके। अतल्याह ने जब यह शोर सुना तो वह दौड़ी-दौड़ी आयी। उसने चिल्लाया: ‘यह मेरे खिलाफ एक साज़िश है!’ पर यहोयादा के हुक्म पर सिपाहियों ने अतल्याह को मौत के घाट उतार दिया।—2 राजा 11:1-16.
आपको क्या लगता है, क्या योआश आगे भी यहोयादा की बात मानता रहा और जो सही था वही करता रहा?— जी हाँ, मगर सिर्फ यहोयादा के ज़िंदा रहने तक। योआश ने इस बात का भी ख्याल रखा कि लोग परमेश्वर के मंदिर की मरम्मत के लिए दान दें। जबकि उसके पिता अहज्याह और 2 राजा 12:1-16.
दादा यहोराम ने मंदिर को टूटे-फूटे हाल में ही छोड़ दिया था। पर अब आइए देखें कि महायाजक यहोयादा की मौत के बाद क्या हुआ।—यहोयादा की मौत के समय योआश करीब 40 साल का था। उसने उन लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया जो यहोवा की उपासना करते थे। और उन लोगों के साथ दोस्ती कर ली जो झूठे देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उस वक्त तक यहोयादा का बेटा जकर्याह याजक बन चुका था। आप क्या सोचते हैं, जब जकर्याह को योआश के बुरे-बुरे कामों के बारे में पता चला, तो उसने क्या किया?—
जकर्याह ने योआश से कहा: ‘तुमने यहोवा को छोड़ दिया है, इसलिए वह भी तुम्हें छोड़ देगा।’ यह सुनकर योआश गुस्से से लाल-पीला हो गया। उसने हुक्म दिया कि जकर्याह को पत्थर मार-मारकर खत्म कर दिया जाए। ज़रा सोचिए, जिस योआश को कातिल के हाथ से बचाया गया था, अब वह खुद एक कातिल बन गया!—2 इतिहास 24:1-3, 15-22.
योआश के किस्से से हम क्या सीखते हैं?— हमें हरगिज़ अतल्याह की तरह नहीं बनना चाहिए, जो बहुत ही क्रूर थी और दूसरों से नफरत करती थी। इसके बजाय, हमें मंडली के सभी भाई-बहनों से प्यार करना चाहिए। यही नहीं, हमें अपने दुश्मनों से भी प्यार करना चाहिए, ठीक जैसा यीशु ने सिखाया था। (मत्ती 5:44; यूहन्ना 13:34, 35) और याद रखिए, अगर हमने योआश की तरह अच्छे काम करना शुरू किया है, तो हमें उसे जारी रखना चाहिए। हमें हमेशा उन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए, जो यहोवा से प्यार करते हैं और हमें यहोवा की सेवा करते रहने का बढ़ावा देते हैं। (w09 4/1)
^ अगर आप बच्चों को यह लेख पढ़कर सुना रहे हैं तो सवाल के बाद जहाँ डैश है, वहाँ थोड़ी देर रुकिए और उन्हें जवाब देने के लिए कहिए।