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विधवाएँ और विधुर—उनकी ज़रूरतें क्या हैं? आप कैसे उनकी मदद कर सकते हैं?

विधवाएँ और विधुर—उनकी ज़रूरतें क्या हैं? आप कैसे उनकी मदद कर सकते हैं?

विधवाएँ और विधुर—उनकी ज़रूरतें क्या हैं? आप कैसे उनकी मदद कर सकते हैं?

रसोई घर में हलकी-सी रौशनी है और ज़्हॉन मेज़ पर खाना लगा रही है। तभी वह अचानक गौर करती है कि उसने मेज पर दो थाली लगा दी। . . . वह फूट-फूटकर रोने लगती है। उसके पति को गुज़रे दो साल हो चुके हैं। मगर आदतन आज भी उसने मेज़ पर दो थाली लगा दी।

अपने हमदम को मौत में खोने से जो दर्द होता है उसे वह इंसान कभी समझ नहीं सकता जिसने यह अनुभव न किया हो। मौत एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसे कबूल करने में एक इंसान को वक्‍त लगता है। बहत्तर साल की बैरल को ही लीजिए जिसके पति की अचानक मौत हो गयी। वह कहती है, “मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं अब उन्हें कभी दरवाजे से अंदर आते हुए नहीं देख पाऊँगी।”

कुछ लोग जो ऑपरेशन में अपना हाथ या पैर खो देते हैं उन्हें कभी-कभी ऐसा लगता है मानो उनका वह अंग अभी-भी शरीर से जुड़ा हुआ है। ठीक उसी तरह, एक गमगीन साथी को कभी-कभी अपना खोया हुआ जीवन-साथी भीड़ में नज़र आने लगता है या वह अकेले में उससे बातें करने लगता है मानो वह उसके आस-पास ही है।

ऐसे हालात में परिवारवाले और दोस्त यह नहीं समझ पाते कि गमगीन व्यक्‍ति के साथ कैसे पेश आएँ। क्या आप किसी को जानते हैं जिसने हाल ही में अपने साथी को मौत में खोया है? आप किस तरह उनकी मदद कर सकते हैं? विधवाओं और विधुरों को उनके गम से उभरने में मदद देने के लिए आपको क्या जानना ज़रूरी है? आप कैसे धीरे-धीरे उन्हें दोबारा ज़िंदगी का मज़ा लेने में मदद दे सकते हैं?

ध्यान में रखनेवाली बातें

दोस्त और रिश्‍तेदारों से शायद अपने अज़ीज़ का दर्द देखा न जाए और वे नेक इरादे से उसके गम को कम करने की कोशिश करें। लेकिन एक खोजकर्ता जिसने 700 विधवाओं और विधुरों पर सर्वे किया, लिखता है, “एक व्यक्‍ति कितने दिनों तक शोक मनाएगा, इसकी सीमा कोई तय नहीं कर सकता।” इसलिए उनके आँसुओं को मत रोकिए, उन्हें बहने दीजिए। उन्हें कुछ वक्‍त दीजिए ताकि वे अपना दुख ज़ाहिर कर सकें।—उत्पत्ति 37:34, 35; अय्यूब 10:1.

कभी-कभी शायद आपके लिए यह ज़रूरी हो कि आप अंत्येष्टि से जुड़े कामों में मदद करें। लेकिन याद रखिए कि सारे कामों का ज़िम्मा आप अपने सिर पर न लें। उनचास साल का एक विधुर, पॉल कहता है, “मुझे बहुत अच्छा लगा कि जिन लोगों ने मेरी पत्नी के अंत्येष्टि से जुड़े कामों में हाथ बँटाया, उन्होंने सारे इंतज़ाम खुद ही नहीं कर दिए बल्कि मुझे तय करने के लिए कहा। यह बात मेरे लिए बहुत मायने रखती थी कि सारे इंतज़ाम ठीक-ठीक हों। क्योंकि यही एक आखिरी चीज़ थी जो मैं अपनी पत्नी के सम्मान में कर सकता था।”

आप जो भी मदद देते हैं बेशक उसकी कदर की जाएगी। अड़सठ साल की एक विधवा आइलीन का कहना है, “अंत्येष्टि का इंतज़ाम और दूसरी कागज़ी कार्रवाई करना मेरे लिए मुश्‍किल था क्योंकि उस समय मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था। शुक्र है मेरा बेटा और बहू मेरे साथ थे और उन्होंने मेरी मदद की।”

मदद देने के अलावा, गुज़रे साथी के बारे में बात करने से मत झिझकिए। बैरल, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था कहती है, “मेरे दोस्तों ने मेरी बहुत मदद की। लेकिन मैंने गौर किया कि कई लोग मेरे पति जॉन के बारे में मुझसे बात करने से कतराते थे। इसलिए मुझे लगता था मानो मेरे पति कभी थे ही नहीं। इस बात से मुझे बड़ा दुख होता था।” समय के चलते शायद एक विधवा या विधुर अपने साथी के बारे में खुलकर दूसरों से बात करना चाहे। क्या गुज़र चुके साथी के बारे में आपको कोई ऐसा वाकया याद है, जब उसने आपकी मदद की हो? या क्या आपको उसके बारे में कोई मज़ेदार किस्सा याद है? अगर हाँ, तो बेझिझक उस किस्से के बारे में बताइए। अगर आपको लगता है कि आपकी बात सुनकर एक विधवा या विधुर को खुशी होगी तो खुलकर बताइए कि आपको उसके जीवन-साथी के बारे में कौन-सी बात पसंद थी। और किस बात के लिए आपको उसकी कमी खलती है। ऐसा करने से दुखी साथी को एहसास होगा कि वह अकेला नहीं है, जिसे उसके अज़ीज़ की कमी महसूस हो रही है।—रोमियों 12:15.

एक विधवा या विधुर की मदद करते वक्‍त उस पर सलाहों की बौछार मत कीजिए। और किसी भी मामले में उस पर जल्द-से-जल्द फैसले लेने का दबाव मत डालिए। * इसके बजाय, समझदारी से काम लीजिए और खुद से पूछिए, ‘मैं ऐसे क्या कदम उठा सकता हूँ जिससे मैं अपने दोस्त या रिश्‍तेदार को ज़िंदगी के इस कठिन दौर से गुज़रने में मदद दे सकूँ?’

आप क्या कर सकते हैं?

साथी के गुज़र जाने के तुरंत बाद अगर एक विधवा या विधुर को कुछ कारगर मदद दी जाए तो वह इसकी बहुत कदर करेगा। आप क्या कर सकते हैं? क्या आप उसके लिए खाना पका सकते हैं, मिलने आए उनके रिश्‍तेदारों को अपने घर ठहरा सकते हैं या फिर क्या आप उस विधवा या विधुर के साथ वक्‍त बीता सकते हैं?

याद रखिए एक स्त्री और एक पुरुष, दुख और अकेलेपन से अलग-अलग तरह से जूझते हैं। उदाहरण के लिए, दुनिया के कुछ देशों में आधे से ज़्यादा विधुर 18 महीनों के अंदर ही दूसरी शादी कर लेते हैं। मगर विधवाओं के मामले में ऐसा बहुत कम होता है। लेकिन क्यों?

ज़्यादातर लोगों का मानना है कि विधुर सिर्फ अपनी शारीरिक और लैंगिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए दूसरी शादी करते हैं। लेकिन यह सरासर गलत है। दरअसल आदमियों की फितरत होती है कि वे अपनी सारी बातें खुलकर अपने जीवन-साथी को ही बताते हैं। इसलिए साथी के मर जाने के बाद वे बहुत-ही तनहा महसूस करते हैं। वहीं दूसरी तरफ, पति के गुज़र जाने के बाद स्त्रियाँ जज़्बाती तौर पर खुद को सँभालने के ज़्यादा काबिल होती हैं। फिर चाहे उनके पति के नाते-रिश्‍तेदार उन्हें कभी-कभी नज़रअंदाज़ क्यों न कर दें। आदमियों की इस फितरत से आप समझ सकते हैं कि क्यों ज़्यादातर विधुर अकेलापन दूर करने के लिए शादी कर लेते हैं। और तुरंत एक नया रिश्‍ता कायम करने के खतरे पर गौर नहीं करते। विधुरों के मुकाबले विधवाएँ अकेलेपन से लड़ना अच्छी तरह जानती हैं।

आपका दोस्त चाहे एक विधुर हो या विधवा, आप उसके अकेलेपन का बोझ कैसे हलका कर सकते हैं? उनचास साल की हेलन कहती है, “मदद तो हर कोई करना चाहता है मगर कोई पहल नहीं करता। वे अकसर कहते हैं, ‘अगर मैं आपके लिए कुछ कर सकता हूँ तो मुझे ज़रूर बताइएगा।’ लेकिन अगर वे मुझसे यह कहें कि ‘मैं खरीदारी करने जा रहा हूँ। क्या आप मेरे साथ आना चाहेंगी?’ तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।” पॉल, जिसकी पत्नी की कैंसर से मौत हो गयी, उसे यह बात बहुत पसंद है कि कोई उसे अपने साथ घुमाने ले जाता है। वह बताता है: “कभी-कभी लोगों से घुलना-मिलना या अपने हालात के बारे में उनसे बात करना शायद आपको अच्छा ना लगता हो। लेकिन अपने दोस्तों के साथ एक शाम गुज़ारने के बाद, आपकी तबियत खुश हो जाती है और आप अकेलापन महसूस नहीं करते। जब आपको यह एहसास होता है कि लोग आपकी परवाह करते हैं तो बाकी सारी चीज़ें आसान लगने लगती हैं।” *

जब हमदर्दी की खास ज़रूरत होती है

हेलन ने गौर किया कि जब उसके रिश्‍तेदार दोबारा अपने रोज़मर्रा के कामों में लग गए, तब उसे और भी जज़्बाती तौर पर सहारे की ज़रूरत महसूस हुई। वह कहती है, “दोस्त और नाते-रिश्‍तेदार सिर्फ चंद दिनों के लिए आपके साथ होते हैं। बाद में वे सब अपने-अपने कामों में लग जाते हैं। उनकी ज़िंदगी पहले जैसी हो जाती है, लेकिन आपकी ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रहती।” सच्चे दोस्त बखूबी समझते हैं कि ऐसी नाज़ुक घड़ी में आपको सहारे की ज़रूरत होती है। इसलिए वे हमेशा मदद देने के लिए तैयार रहते हैं।

एक विधवा या विधुर को दूसरों के साथ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत तब होती है जब उनकी शादी की या उसके साथी की मौत की सालगिरह होती है। आइलीन जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, वह बताती है कि मेरी शादी की सालगिरह पर मेरा बेटा मुझे अकेलापन महसूस नहीं होने देता। वह कहती है, “हर साल मेरी शादी की सालगिरह पर मेरा बेटा कैवन मुझे बाहर घुमाने ले जाता है। और हम दोनों दोपहर का खाना साथ खाते हैं। अपने बेटे के साथ बिताए ये पल मेरे लिए बहुत खास हैं।” तो क्यों न आप इस बात का ध्यान रखें कि एक विधवा या विधुर के लिए सबसे मुश्‍किल वक्‍त कौन-सा होता है जब उसे सहारे की ज़रूरत होती है, फिर चाहे वह आपका रिश्‍तेदार हो या कोई दोस्त। आप शायद अपने काम-काज में फेरबदल करके उनके साथ वक्‍त बिता सकते हैं या फिर किसी और से कह सकते हैं कि वह उनके साथ इस ज़रूरत की घड़ी में वक्‍त बिताएँ।—नीतिवचन 17:17.

ऐसे लोग जिनके साथी गुज़र गए हैं वे खुद दूसरों को दिलासा दे सकते हैं। ऐनी, जिसके पति को गुज़रे आठ साल हो गए हैं, अपनी एक विधवा सहेली के बारे में कहती है, “वह बड़े पक्के इरादे वाली है और इसका मुझ पर गहरा असर हुआ है। उसे देखकर मुझे ज़िंदगी में आगे बढ़ते रहने में मदद मिली है।”

जी हाँ, जो विधवा या विधुर अपने साथी को खोने के गम पर काबू पा लेते हैं, वे दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं और उनमें उम्मीद जगाते हैं। बाइबल में ऐसी दो विधवाओं का ज़िक्र किया गया है जो एक-दूसरे का सहारा बनीं। उनका नाम था, रूत और उसकी सास नाओमी। उनका ब्यौरा दिल छू लेनेवाला है। यह बताता है कि कैसे इन दोनों ने एक-दूसरे के लिए परवाह दिखायी जिससे उन्हें अपने गम से उभरने और चुनौतियों का सामना करने में मदद मिली।—रूत 1:15-17; 3:1; 4:14, 15.

चंगा करने का समय

दोबारा पहले जैसी ज़िंदगी जीने के लिए एक विधवा या विधुर को अपने प्यारे साथी की यादें संजोए रखने और अपनी ज़रूरतों का खयाल रखने के बारे में सही नज़रिया रखना चाहिए। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा था कि “रोने का [एक] समय” होता है। लेकिन उसने यह भी कहा कि “चंगा करने का भी समय” होता है।—सभोपदेशक 3:3, 4.

पॉल, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, समझाता है कि बीती यादों को भूलाना इतना आसान नहीं होता। वह कहता है, “मैं और मेरी पत्नी मानो दो छोटे पेड़ों की तरह साथ-साथ बढ़े हुए और एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़ गए। लेकिन एक पेड़ मर गया और दूसरे को आधा-अधूरा छोड़ गया। अब मुझे अकेले जीना अजीब-सा लगता है।” कुछ लोग अपने साथी की बीती यादों के साथ जीना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे इस तरह अपने साथी के लिए वफादारी दिखा रहे होते हैं। दूसरे ऐसे हैं जो सोचते हैं कि ज़िंदगी का मज़ा लेना अपने गुज़रे साथी के साथ विश्‍वासघात करना है। इसलिए वे दूसरों से मिलना-जुलना और उनके साथ घूमना-फिरना पसंद नहीं करते। आप कैसे एक विधवा या विधुर की मदद कर सकते हैं जिससे वे धीरे-धीरे अपने गम से उभर पाएँ और दोबारा पहले जैसी ज़िंदगी जी सकें?

पहला कदम, विधवा या विधुर की मदद कीजिए ताकि वे खुलकर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर कर सकें। हर्बर्ट की मिसाल लीजिए जिसकी पत्नी को गुज़रे छ: साल हो चुके हैं। उसका कहना है, “मैं वह हर लमहा संजोकर रखता हूँ जब कोई मुझसे मुलाकात करने आता है और इत्मीनान से मेरी बातें सुनता है। मेरे दिमाग में जो भी घूमता रहता है मैं वह सारी बातें उसे कह सुनाता हूँ। फुरसत के दो पल बिताने के लिए शायद मैं सही आदमी नहीं। लेकिन जब लोग हमदर्दी के साथ मेरी बातें सुनते हैं तो मैं इसकी बहुत कदर करता हूँ।” पॉल, जिसका इस लेख में ज़िक्र किया गया है, उसे अपने एक समझदार दोस्त से काफी मदद मिली। उसका दोस्त अकसर उससे पूछता था कि वह कैसा महसूस कर रहा है। पॉल कहता है, “मुझे उसके बात करने का अंदाज़ बहुत अच्छा लगता था क्योंकि वह नरमी और सच्चे दिल से बात करता था। और मैं अकसर उसे बताता था कि मैं कैसा महसूस करता हूँ।”—नीतिवचन 18:24.

जब एक विधवा या विधुर अपनी भावनाएँ जैसे पछतावा, शर्मिंदगी या गुस्सा ज़ाहिर करता है तो यह इस बात का इशारा है कि वह धीरे-धीरे अपने नए हालात कबूल कर रहा है। राजा दाविद के मामले में भी यह बात सच हुई। जब उसने अपने सबसे अच्छे दोस्त, यहोवा परमेश्‍वर के आगे दिल खोलकर रख दिया, तो उसे ‘उठने’ की ताकत मिली और वह इस सच्चाई को कबूल कर पाया कि उसका बेटा मर चुका है।—2 शमूएल 12:19-23.

एक विधवा या विधुर को पहले-पहल अपने रोज़मर्रा के कामों में जुट जाना शायद मुश्‍किल लगे लेकिन ऐसा करना ज़रूरी है। क्या आप उन्हें अपने साथ खरीदारी के लिए या शाम को टहलने के लिए ले जा सकते हैं? क्या आप किसी काम में उनकी मदद ले सकते हैं? यह एक और तरीका है जिससे आप उन्हें अकेलेपन से बाहर निकाल सकते हैं। आप और क्या कर सकते हैं? क्या एक विधवा बच्चों की देखभाल कर सकती है या फिर कोई खास तरह का खाना बनाना सिखा सकती है? क्या एक विधुर घर की मरम्मत करने में आपका हाथ बँटा सकता है? इस तरह के काम करने से उन्हें खुशी मिलेगी साथ ही, उन्हें जीने का एक मकसद भी मिलेगा।

अपनी भावनाएँ दूसरों पर खुलकर ज़ाहिर करने से शायद एक विधवा या विधुर दोबारा धीरे-धीरे ज़िंदगी का मज़ा लेने लगे और अपने लिए कुछ नए लक्ष्य रखे। चौवालीस साल की एक विधवा माँ यॉनेट ने अपनी ज़िंदगी में इस बात को सच पाया। वह याद करती है, “रोज़मर्रा के कामों में फिर से रम जाना मेरे लिए बहुत मुश्‍किल था! हर दिन घर का काम करना, पैसों का हिसाब-किताब रखना, तीन बच्चों की देखभाल करना, सचमुच यह सब मेरे लिए बहुत कठिन था।” मगर समय के गुज़रते यॉनेट ने हर काम सलीके से करना सिखा। साथ ही, उसने जाना कि वह किस तरह बच्चों के साथ असरदार तरीके से बात कर सकती है। इसके अलावा, उसने करीबी दोस्तों से मिलनेवाली मदद कबूल करना भी सीखा।

“ज़िंदगी एक अनमोल तोहफा बनी रहती है”

एक दोस्त और रिश्‍तेदार के नाते अगर आप विधवा और विधुर को बढ़िया मदद देना चाहते हैं तो आपको उनसे सही उम्मीद रखनी चाहिए। कई महीनों यहाँ तक की सालों तक उनकी ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं। कभी-कभी वे शायद सुकून और शांति महसूस करें और कभी निराशा के काले बादल उन्हें आ घेरें। सचमुच, एक विधवा या विधुर के ‘मन का दुःख’ बहुत भारी हो सकता है।—1 राजा 8:38, 39.

ऐसे वक्‍त में उनकी हिम्मत बँधाने की ज़रूरत है ताकि वे हकीकत से आँख न मूँद लें और अकेलेपन में न डूब जाएँ। इस तरह की मदद से कई विधवा और विधुर ने पाया है कि उनकी ज़िंदगी को एक नयी दिशा मिली है। अफ्रीका में पूरे समय की सेवा करनेवाले एक साठ साल के विधुर क्लॉड का कहना है, “अपने साथी के मरने का रंज होने के बावजूद ज़िंदगी एक अनमोल तोहफा बनी रहती है।”

जी हाँ, अपने प्यारे हमसफर की मौत के बाद एक विधवा या विधुर की ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रहती। लेकिन वे कई तरह से दूसरों की मदद कर सकते हैं और उनकी ज़िंदगी में रंग भर सकते हैं।—सभोपदेशक 11:7, 8. (w10-E 05/01)

[फुटनोट]

^ पेज 12 पर दिया बक्स “अपने अज़ीज़ की अमानत क्या रखना है उन्हें सलामत?” देखिए।

^ गमगीन साथी की कारगर तरीके से किस तरह मदद की जा सकती है, इस बारे में और ज़्यादा जानने के लिए जब आपका कोई अपना मर जाए ब्रोशर में पेज 20-25 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 11 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सच्चे दोस्त मदद और सहारा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं

[पेज 12 पर बक्स/ तसवीर]

अपने अज़ीज़ की अमानत क्या रखना है उन्हें सलामत?

हेलन जिसका पति कुछ साल पहले गुज़र गया, कहती है, “मैंने अपने पति की बहुत-सी चीज़ें सँभालकर रखी हैं। ये चीज़ें मेरे अंदर सुनहरी यादें ताज़ा कर देती हैं। मैं इन्हें फेंकना नहीं चाहती क्योंकि समय के चलते हमारी भावनाएँ बदल सकती हैं।”

इसके उलट, क्लॉड जिसकी पत्नी को गुज़रे पाँच साल हो गए हैं कहता है, “जहाँ तक मेरी बात है मुझे अपनी पत्नी की चीज़ों की ज़रूरत नहीं। मैं इनके बिना भी उसे याद रख सकता हूँ। मुझे लगता है कि उसकी चीज़ें दूसरों को दे देने से मुझे हकीकत कबूल करने और गम से उभरने में आसानी हुई है।”

इन दो अनुभवों से पता चलता है कि अपने साथी की मौत के बाद उसकी चीज़ों का क्या करें, इस बारे में लोग अलग-अलग फैसला लेते हैं। इसलिए समझदार दोस्त और रिश्‍तेदार इस सिलसिले में ज़बरदस्ती दूसरों पर अपनी राय नहीं थोपते।—गलातियों 6:2, 5.

[पेज 9 पर तसवीरें]

क्या ऐसा कोई खास दिन है, जब आपकी मदद की कदर की जाएगी?

[पेज 9 पर तसवीर]

याद से उन्हें अपने साथ बाहर घुमाने ले जाइए

[पेज 10 पर तसवीरें]

रोज़मर्रा के काम या मन बहलाव करते वक्‍त विधवाओं और विधुरों को भी शामिल कीजिए