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सोच-समझकर दोस्त चुनिए

सोच-समझकर दोस्त चुनिए

चौथा राज़

सोच-समझकर दोस्त चुनिए

बाइबल क्या सिखाती है? “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा।”—नीतिवचन 13:20.

चुनौती क्या है? हमारे दोस्तों के रवैए और बातचीत का ज़िंदगी के बारे में हमारे नज़रिए पर ज़बरदस्त असर होता है। वे या तो हमारी खुशी और संतोष बढ़ा सकते हैं या उसे कम कर सकते हैं।—1 कुरिंथियों 15:33.

इस सिलसिले में बाइबल में दर्ज़ एक घटना पर गौर कीजिए। प्राचीन इसराएल में, 12 जासूसों को कनान देश का भेद लेने के लिए भेजा गया। जब वे लौटकर आए, तो उनमें से ज़्यादातर ने “इस्राएलियों के साम्हने उस देश की जिसका भेद उन्हों ने लिया था निन्दा” की। लेकिन दो जासूसों ने कनान देश के बारे में कहा कि वह “अत्यन्त उत्तम देश है।” उन दस जासूसों की बुरी खबर से सभी इसराएलियों में कोलाहल मच गया। बाइबल कहती है, “सारी मण्डली चिल्ला उठी; और सब इस्राएली बुड़बुड़ाने लगे।”—गिनती 13:30-14:9.

उसी तरह, आज दुनिया में ऐसे कई लोग हैं, जो ‘कुड़कुड़ाते हैं और अपने हालात को कोसते हैं।’ (यहूदा 16) अगर हम ऐसे दोस्तों के बीच रहते हैं, जो ज़िंदगी में अपने हालात से कभी खुश नहीं रहते, तो हमारे लिए भी संतोष से जीना मुश्‍किल हो सकता है।

आप क्या कर सकते हैं? ध्यान दीजिए कि आप और आपके दोस्त किस विषय पर बातचीत करते हैं। क्या वे अपनी चीज़ों के बारे में डींगे मारते हैं या हमेशा शिकायत करते रहते हैं कि उनके पास फलाँ चीज़ नहीं? आप किस तरह के दोस्त हैं? क्या आप कुछ ऐसा करते हैं जिससे आपके दोस्त आपसे जलते-कुढ़ते हैं या उनके पास जो कुछ है, आप उन्हें उसी में संतोष करने के लिए उकसाते हैं?

आइए दाविद और राजा शाऊल के बेटे योनातन की मिसाल पर गौर करें। दाविद, अगला राजा बननेवाला था। मगर राजा शाऊल उसकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ा था क्योंकि उसे डर था कि दाविद उसकी राजगद्दी हड़प लेगा। इसलिए दाविद अपनी जान बचाने के लिए विराने में दर-दर भटक रहा था। योनातन, दाविद का जिगरी दोस्त था और अपने पिता शाऊल के बाद उसी को राजा बनना था। लेकिन वह जानता था कि परमेश्‍वर ने दाविद को अगला राजा चुना है। इस बात के लिए वह खुश था और उसने अपने दोस्त का पूरा-पूरा साथ दिया।—1 शमूएल 19:1,2; 20:30-33; 23:14-18.

आपको भी ऐसे ही दोस्त बनाने चाहिए, जो संतोष करना जानते हैं और जिन्हें आपके भले की फिक्र है। (नीतिवचन 17:17) इसके लिए ज़रूरी है कि आप भी अपने जीवन में इन बढ़िया गुणों को दिखाएँ।—फिलिप्पियों 2:3, 4. (w10-E 11/01)

[पेज 7 पर तसवीर]

आपके दोस्त आपकी खुशी और संतोष बढ़ाते हैं या उसे कम करते हैं?